Author: Pravesh Rana

भाजपा ने निकाली तिरंगा शौर्य सम्मान यात्रा

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चीड़बाग शौर्य स्थल से गांधी पार्क तक तिरंगा शौर्य सम्मान यात्रा का आयोजन किया गया। यह यात्रा हाल ही में भारतीय सशस्त्र बलों द्वारा सफलतापूर्वक संपन्न ऑपरेशन सिंदूर की ऐतिहासिक विजय को समर्पित रही।
पदयात्रा में हजारों की संख्या में आम नागरिकों, पूर्व सैनिकों, युवाओं और महिलाओं ने भाग लिया।

मुख्यमंत्री ने शौर्य स्थल पर पुष्प चक्र अर्पित कर शहीदों को श्रद्धांजलि दी। उन्होंने कहा कि ऑपरेशन सिंदूर के माध्यम से भारत ने न केवल वीरता का प्रदर्शन किया, बल्कि यह भी स्पष्ट संदेश दिया कि नया भारत आतंकवाद का जवाब उसी की भाषा में देने में सक्षम है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व की सराहना करते हुए उन्होंने कहा कि देश अब अत्याधुनिक स्वदेशी तकनीक से अपनी सीमाओं की रक्षा कर रहा है।

उत्तराखंड वीरों की भूमि

मुख्यमंत्री ने कहा कि उत्तराखंड वीरभूमि है, जहाँ लगभग हर परिवार देशसेवा से जुड़ा है। उन्होंने युवाओं से सेना और सुरक्षा बलों से प्रेरणा लेकर राष्ट्रसेवा में आगे आने का आह्वान किया। साथ ही उन्होंने प्रस्ताव रखा कि ऑपरेशन सिंदूर की विजय के उपलक्ष्य में तिरंगा शौर्य सम्मान यात्रा को प्रत्येक वर्ष मनाया जाए।

इस अवसर पर सैनिक कल्याण मंत्री गणेश जोशी, राज्यसभा सांसद व भाजपा प्रदेश अध्यक्ष महेंद्र भट्ट, पूर्व मुख्यमंत्री रमेश पोखरियाल निशंक, विधायक खजान दास, उमेश शर्मा काऊ, बृज भूषण गैरोला, भरत चौधरी, देहरादून के मेयर सौरभ थपलियाल, पूर्व सांसद तरुण विजय, आदित्य कोठारी, सिद्धार्थ अग्रवाल, रजनी रावत, देवेंद्र भसीन और श्याम अग्रवाल सहित कई जनप्रतिनिधि उपस्थित रहे।

हरिद्वार नगर निगम भूमि घोटाला-बड़ों से पूछताछ, लैंड यूज के पीछे कौन है मास्टरमाइंड !

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बड़े अधिकारियों की नाक के नीचे हुए करोड़ों की जमीन घोटाले की जांच ने दो कदम आगे बढ़ा दिए हैं। कई स्तर पर हुई खुली लापरवाही की खबरों के बीच हरिद्वार डीएम कर्मेन्द्र सिंह व पूर्व नगर आयुक्त वरुण चौधरी ने अपने बयान दर्ज करवा दिए हैं।

हरिद्वार नगर निगम की बिना किसी ठोस परियोजना के कूड़े के ढेर के बगल वाली 33 बीघा भूमि खरीद की फ़ाइल का तेजी से दौड़ना भी कई सवाल खड़े कर गया। इस अहम फाइल को किस का ‘बाहरी व मजबूत’ बल लग रहा था ,यह भी सत्ता के गलियारों में चर्चा का विषय बना हुआ है। आखिरकार, कृषि भूमि का लैंड यूज चेंज कर चार गुना अधिक मूल्य पर जमीन की खरीद में पीछे किस मास्टरमाइंड का हाथ था, यह भी कौतूहल का विषय बना हुआ है।

गौरतलब है कि नगर निगम का कार्यकाल समाप्त होने के बाद 2024 में आईएएस वरुण चौधरी को नगर निगम का प्रशासक तैनात किया गया था।भूमि खरीद में नगर निगम एक्ट का पालन किया जाना था। जमीन खरीद से जुड़े शासन के नियम व निर्देश भी अपनी जगह मौजूद थे। बावजूद इसके एक कॄषि योग्य भूमि का लैंड यूज परिवर्तित कर कामर्शियल कर दिया। और सिर्फ कुछ करोड़ की जमीन आधे अरब से अधिक दाम में खरीद ली गयी। इस मामले में हवा के माफिक दौड़ी फाइल का पेट भी नियमबद्ध दस्तावेजों से नहीं भरा गया।

 

निकाय विभाग से जुड़े सूत्रों का कहना है कि
नगर निगम ने किस परियोजना या योजना के लिए कूड़े के ढेर के बगल वाली जमीन खरीदी। जमीन खरीद का क्या प्रयोजन था? यह भी साफ नहीं किया गया। चूंकि, कामर्शियल रेट पर करोड़ों की खरीदी गई जमीन पर निगम की कोई फ्लैट बनाने की योजना थी? या फिर मॉल आदि कोई अन्य कामर्शियल गतिविधि को अंजाम देना था ? यह भी सार्वजनिक नहीं किया गया। अलबत्ता गोदाम बनाने की बात अवश्य कही गयी।

हरिद्वार नगर निगम भूमि घोटाले में एक बात यह भी सामने आ रही है कि सम्बंधित जिम्मेदार अधिकारियों ने भूमि खरीद की तय प्रक्रिया का पालन नहीं किया।

जांच अभी जारी है। जांच अधिकारी रणवीर चौहान का साफ कहना है कि वे जांच पूरी होने के बाद ही कुछ कह पाएंगे। चौहान का कहना है कि जॉच पूरी होते ही रिपोर्ट शासन को सौंप दी जाएगी। जॉच अधिकारी नियुक्त होते ही आईएएस रणवीर सिंह नगर निगम भूमि घोटाले की जॉच के लिए हरिद्वार में मौका मुआयना कर चुके हैं।

इधर, चार अधिकारियों के निलंबन के बाद सम्बंधित अधिकारियों व कर्मियों से पूछताछ के सिलसिला जारी है।

हरिद्वार नगर निगम भूमि खरीद घोटाले में 1 मई को चार अधिकारियों के निलंबन के बाद जांच अधिकारी आईएएस रणवीर सिंह ने हरिद्वार के डीएम कर्मेन्द्र सिंह व पूर्व नगर प्रशासक हरिद्वार वरुण चौधरी से पूछताछ की। मौजूदा समय में आईएएस वरुण चौधरी सचिवालय में अपर सचिव स्वास्थ्य की जिम्मेदारी संभाल रहे हैं।

नियमों को ताक पर रखकर करोड़ों की बंदरबांट के इस हैरतअंगेज कारनामे में तत्कालीन एसडीएम अजयवीर सिंह के स्टेनो और डाटा एंट्री ऑपरेटर से भी पूछताछ की गई। कुछ समय पूर्व अजयवीर सिंह का हरिद्वार से अन्यत्र तबादला किया गया।

अब बड़े अधिकारियों से पूछताछ के बाद उम्मीद जगी है कि कुछ घोटालेबाज शातिर अधिकारियों पर भी गाज गिरेगी। नियमों का उल्लंघन कर व भू उपयोग परिवर्तन से करोड़ों का खेल करने वाले मास्टरमाइंड का चेहरा कब बेनकाब होगा। इसका भी सभी को इंतजार है।

गौरतलब है कि हरिद्वार से जुड़े अधिकारियों ने यह कारनामा नगर निगम भंग होने के समय अंजाम दिया था। बाद में हरिद्वार की मेयर निर्वाचित होने पर किरण जैसल ने इस भूमि खरीद घोटाले की शिकायत सीएम धामी से की। सीएम धामी ने जांच आईएएस अधिकारी रणवीर सिंह को सौंपी।

हालांकि, खबर यह भी है कि दोषियों को बचाने के लिए एक लॉबी ने ऐड़ी चोटी का जोर लगाया हुआ है।
इसी के तहत पहले जांच अधिकारी किसी अन्य अफसर को बनाने का दांव चला गया था लेकिन सीएम ने अन्य नामों को दरकिनार करते हुए आईएएस चौहान को जांच अधिकारी नियुक्त कर मंसूबे पूरे नहीं होने दिए।

गौरतलब है कि कई सौ करोड़ के NH 74 भूमि घोटाले में कई अधिकारी व कर्मी जेल गए थे लेकिन कुछ अहम किरदार साफ बच निकले थे। कहीं हरिद्वार नगर निगम के आधे अरब से अधिक मूल्य के फ्रॉड में बड़ी मछलियां साफ बच न जाएं, यह जांच की समग्रता पर निर्भर करेगा…

अब तक हुई निलंबन की कार्रवाई

निलंबित सहायक नगर आयुक्त रविंद्र कुमार दयाल, अधिशासी अभियंता आनंद सिंह मिश्रवाण , कर एवं राजस्व अधीक्षक लक्ष्मीकांत भट्ट और जेई दिनेश चंद्र कांडपाल शामिल हैं। ये चारों जमीन खरीद मामले के लिए बनाए गई समिति में शामिल थे।

इस प्रकरण में सेवा विस्तार पर कार्यरत सेवानिवृत्त सम्पत्ति लिपिक वेदपाल की संलिप्तता पायी गयी है। उनका सेवा विस्तार समाप्त करते हुए अनुशासनात्मक कार्रवाई करने के निर्देश देने के साथ ही सुश्री निकिता बिष्ट, वरिष्ठ वित्त अधिकारी,नगर निगम, हरिद्वार का स्पष्टीकरण तलब किया गया है।

ऐसे हुई 15 से 54 करोड़ रुपए कीमत

भूमि का लैंड यूज कृषि था। तब उसका सर्किल रेट छह हजार रुपये के आस पास था। यदि भूमि को कृषि भूमि के तौर पर खरीदा जाता, तब उसकी कुल कीमत पंद्रह करोड़ के आस पास होती। लेकिन लैंड यूज चेंज कर खेले गए खेल के बाद भूमि की कीमत 54 करोड़ के आस पास हो गई। खास बात ये है कि अक्टूबर में एसडीएम अजयवीर सिंह ने लैंड यूज बदला और चंद दिनों में ही निगम निगम हरिद्वार ने एग्रीमेंट कर दिया और नवंबर में रजिस्ट्री कर दी।

नगर निगम हरिद्वार ने नवंबर 2024 में सराय कूड़ा निस्तारण केंद्र से सटी 33 बीघा भूमि का क्रय किया था। ये भूमि 54 करोड़ रुपए में खरीदी थी जबकि छह करोड़ रुपए स्टाप ड्यूटी के तौर पर सरकारी खजाने में जमा हुए थे। 2024 में तब नगर प्रशासक आईएएस वरुण चौधरी थे। जमीन खरीद मामले में मेयर किरण जैसल ने सवाल खड़े किए थे। जिसके बाद सीएम पुष्कर सिंह धामी ने इस मामले की जांच सीनियर आईएएस अफसर रणवीर सिंह को सौंपी थी। अब इस मामले में जमीन को बेचने वाले किसान के खातों को फ्रीज करने के आदेश कर दिए गए हैं।

लैंड यूज में खेल-

अक्टूबर 2024 में एसडीएम अजयवीर सिंह ने जमीन का लैंड यूज बदला। और चंद दिनों में ही नगर निगम ने खरीद का एग्रीमेंट कर लिया। नवंबर में रजिस्ट्री पूरी हो गई। यह तेजी संदेहास्पद है और प्रक्रियागत नियमों की अनदेखी को दर्शाती है।

पारदर्शिता का अभाव-

जमीन खरीद के लिए कोई पारदर्शी बोली प्रक्रिया नहीं अपनाई गई, जो सरकारी खरीद नियमों का स्पष्ट उल्लंघन है। साथ ही, नगर निगम ने इस खरीद के लिए शासन से कोई पूर्व अनुमति नहीं ली।

सशर्त अनुमति का दुरुपयोग

जमीन को गोदाम बनाने के लिए धारा 143 के तहत सशर्त अनुमति दी गई थी, जिसमें शर्त थी कि यदि भूमि का उपयोग निर्धारित प्रयोजन से अलग किया गया, तो अनुमति स्वतः निरस्त हो जाएगी। आरोप है कि इस जमीन का उपयोग कूड़ा डंपिंग के लिए किया गया, जो अनुमति का उल्लंघन हो सकता है।

घोटाले में पूर्व नगर प्रशासक (एमएनए) वरुण चौधरी पर सर्किल रेट का दुरुपयोग कर सौदा करने का आरोप है। जिलाधिकारी कर्मेन्द्र सिंह और नगर निगम आयुक्त भी जांच के घेरे में हैं।

इस तरह के बड़े सौदों में तहसील और नगर निगम की संयुक्त जांच अनिवार्य होती है, लेकिन ऐसा नहीं किया गया। यह प्रशासनिक लापरवाही का स्पष्ट उदाहरण है। साथ ही, सर्किल रेट और लैंड यूज में बदलाव की प्रक्रिया में पारदर्शिता का अभाव रहा।

यह घोटाला न केवल वित्तीय अनियमितताओं, बल्कि प्रशासनिक जवाबदेही और भ्रष्टाचार की गहरी जड़ों को उजागर करता है।

ऑपरेशन सिंदूर पर क्‍या बोले उत्‍तराखंड के धाकड़ सीएम धामी? पढ़कर गर्व से चौड़ा हो जाएगा हर भारतीय का सीना

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भारतीय सेना ने पाकिस्तान और गुलाम जम्मू-कश्मीर में एयरस्ट्राइक की। भारतीय सेना के इस साहस की देश और दुनिया में सराहना हो रही है। उत्‍तराखंड में भी लोग इस बदले की खुशी को अपने-अपने तरीके से मना रहे हैं और भारत माता की जय के नारे लगा रहे हैं। देश-दुनिया के राजनेता भारत और भारतीय सेना के जज्‍बे की तारीफ कर रहे हैं।

सेना के जज्‍बे की तारीफ

उत्‍तराखंड के धाकड़ सीएम पुष्‍कर सिंह धामी ने भी सेना के जज्‍बे की तारीफ की है। उन्‍होंने कहा कि ‘भारतीय सेना ने देर रात पाक अधिकृत जम्मू-कश्मीर और पाकिस्तान में आतंकवादियों के ठिकानों को नेस्तनाबूत कर दिया है। आतंकवाद पर इस कमर तोड़ कार्रवाई से हमारे वीर जवानों ने एक बार फिर पूरे देश का मस्तक ऊंचा कर दिया है।

निर्दोष भारतीयों की हत्या का प्रतिशोध

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी के कुशल नेतृत्व में भारत द्वारा आतंकवाद पर किया गया यह हमला न सिर्फ पहलगाम में निर्दोष भारतीयों की हुई हत्या का प्रतिशोध है, अपितु यह इस बात का भी परिचायक है कि कोई भी अगर हमारे देश की एकता, अखंडता और नागरिकों की सुरक्षा को चुनौती देगा, तो भारत उसे उसके घर में घुसकर जवाब देने में सक्षम है।’

भूमि घोटाला जांच के लिए हरिद्वार पहुंचे आईएएस अधिकारी, किया निरीक्षण, खुलेंगे राज!

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नगर निगम हरिद्वार की ओर से भूमि खरीद में किए गए करोड़ों के घोटाले की परतें अब खुलने लगी हैं। शासन स्तर पर गंभीरता से लिए गए इस प्रकरण की जांच के लिए नियुक्त वरिष्ठ आईएएस अधिकारी रणवीर सिंह चौहान मंगलवार को जांच के सिलसिले में हरिद्वार पहुंचे।

उन्होंने जिला प्रशासन, एचआरडीए और नगर निगम के अधिकारियों के साथ सराय क्षेत्र में उस 33 बीघा भूमि का स्थलीय निरीक्षण किया, जिसे नगर निगम ने 54 करोड़ रुपये में खरीदा था। यह राशि नगर निगम को रिंग रोड परियोजना के तहत अधिग्रहित भूमि के बदले मुआवजे के रूप में मिली थी।

निगम निगम की ओर से क्रय की गई भूमि की वास्तविक कीमत मात्र 15 करोड़ रुपये थी, लेकिन लैंड यूज परिवर्तन और सर्किल रेट का अनुचित लाभ उठाकर इसे चार गुना अधिक मूल्य पर खरीदा गया। प्रारंभिक जांच में गड़बड़ियों के संकेत मिलने पर एक मई को नगर निगम के चार अधिकारियों पर विभागीय कार्रवाई हो चुकी है, जबकि इस पूरे प्रकरण में कई बड़े नाम भी जांच के दायरे में आ सकते हैं। मंगलवार को सराय क्षेत्र में स्थलीय निरीक्षण के लिए पहुंचे जांच अधिकारी रणवीर सिंह चौहान ने मौके पर भूमि के राजस्व अभिलेखों का अवलोकन भी किया।

इस मौके पर उनके साथ एचआरडीए सचिव मनीष सिंह और एसडीएम जितेंद्र कुमार सहित राजस्व के अधिकारी मौजूद रहे। जिसके बाद रणवीर सिंह चौहान डामकोठी पहुंचे, जहां इस जमीन से संबंधित पत्रावलियों की जांच की। निगम के कुछ अधिकारी कर्मचारियों के बयान भी दर्ज किए। जांच अधिकारी रणवीर सिंह चौहान ने स्पष्ट किया कि आवश्यक होने पर संबंधित अधिकारियों और कर्मचारियों के बयान भी दर्ज किए जाएंगे। शासन की ओर से इस जांच को शीघ्र पूर्ण करने के निर्देश हैं।

गौरतलब है कि यह पूरा मामला उस समय संदेह के घेरे में आया, जब भूमि की खरीद में सर्किल रेट और बाजार मूल्य के बीच भारी अंतर पर विशेषज्ञों और स्थानीय जनप्रतिनिधियों ने सवाल उठाए। खास बात यह भी है कि जिस समय यह भूमि खरीदी गई, नगर निगम प्रत्यक्ष रूप से प्रशासनिक नियंत्रण में था और आईएएस अधिकारी वरुण चौधरी निगम नगर आयुक्त के पद पर कार्यरत थे।

जोशीमठ-औली रोपवे परियोजना के लिए डीपीआर तैयार,राज्य में पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए महत्वपूर्ण

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उत्तराखंड में जोशीमठ-औली रोपवे परियोजना आगे बढ़ रही है। राज्य की निर्माण एजेंसी ब्रिडकुल ने नए रोपवे के लिए विस्तृत परियोजना रिपोर्ट (डीपीआर) का मसौदा तैयार कर लिया है, जो 3.917 किलोमीटर की दूरी तय करेगी। अंतिम डीपीआर जल्द ही सरकार को भेजी जाएगी। मंजूरी मिलते ही निर्माण शुरू हो जाएगा। रोपवे से क्षेत्र में पर्यटन को बढ़ावा मिलने की उम्मीद है। सुरक्षा चिंताओं के कारण पुराने रोपवे को जनवरी 2023 से बंद कर दिया गया है।

ब्रिडकुल ने मसौदा योजना तैयार की

ब्रिडकुल के प्रबंध निदेशक एनपी सिंह ने पुष्टि की कि रोपवे के लिए डीपीआर लगभग पूरी हो चुकी है। पुराने रोपवे के असुरक्षित हो जाने के बाद इस परियोजना को पूरी तरह से ब्रिडकुल द्वारा ही संभाला जा रहा है।

उन्होंने कहा कि पहले रोपवे के पहले और दूसरे टावर की नींव में कुछ समस्या थी, जिसके कारण इसे बंद करना पड़ा। तब से, BRIDCUL नए सर्वेक्षण करने और नए रोपवे की योजना बनाने का काम संभाल रहा है।

नींव और सर्वेक्षण सहित सभी औपचारिकताएं पूरी कर ली गई हैं।

परियोजना का निर्माण 2 चरणों में किया जाएगा

रोपवे का निर्माण दो चरणों में किया जाएगा।

  • प्रथम चरण : 11 टावरों और 21 केबिनों के साथ 2.76 किलोमीटर की दूरी तय करेगा।
  • द्वितीय चरण : 1.157 किलोमीटर, गौरसौ बुग्याल तक विस्तारित, 7 टावर और 9 केबिन।

परियोजना की कुल लागत 426 करोड़ रुपये आंकी गई है। सिंह ने बताया कि डीपीआर का अंतिम संस्करण एक सप्ताह के भीतर सरकार को सौंप दिया जाएगा।

ऐसे तैयार होगा रोपवे

प्रतिदिन 500 यात्रियों की क्षमता

एक बार चालू होने के बाद, रोपवे प्रति घंटे प्रति दिशा (पीपीएचपीडी) लगभग 500 यात्रियों को ले जाने में सक्षम होगा। प्रत्येक ट्रॉली 10 लोगों को ले जा सकेगी।

कुल मिलाकर, 3.917 किलोमीटर लंबे मार्ग में दोनों चरणों में 18 टावर और 30 केबिन शामिल होंगे।

 

इंदिरा गांधी ने रखी थी पुराने रोपवे की नींव

मूल रोपवे परियोजना 1983 में शुरू हुई थी जब तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने इसकी आधारशिला रखी थी। इसे 1984-85 में ज़िगज़ैग तकनीक का उपयोग करके पूरा किया गया था। तब से, जोशीमठ और औली के बीच पर्यटकों की यात्रा के लिए रोपवे का उपयोग किया जाता रहा है, जब तक कि इसे सुरक्षा चिंताओं के कारण जनवरी 2023 में बंद नहीं कर दिया गया।

अब, राज्य इस क्षेत्र में पर्यटन को एक बार फिर बढ़ावा देने के लिए एक सुरक्षित और उन्नत संस्करण बनाने की योजना बना रहा है।

1983 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने रखी थी आधारशिला

 

कश्मीरी छात्रों पर बयान के बाद देहरादून में अलर्ट, हिंदू रक्षा दल के अध्यक्ष पर मुकदमा दर्ज

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हिंदू रक्षा दल की ओर से कश्मीरी छात्रों पर दिए गए बयान के बाद बृहस्पतिवार को पुलिस अलर्ट रही। पुलिस ने हिंदू रक्षा दल के अध्यक्ष के खिलाफ मुकदमा दर्ज किया है। साथ ही सुबह से दोपहर तक दल के नेताओं को घर पर ही नजरबंद किया।

हिंदू रक्षा दल के प्रदेश अध्यक्ष ललित शर्मा ने बुधवार को कश्मीरी छात्रों पर विवादित बयान दिया था। सोशल मीडिया पर भी इसका वीडियो वायरल हुआ तो पुलिस हरकत में आई। अलर्ट जारी करने के साथ ही कश्मीरी छात्रों की सुरक्षा भी बढ़ा दी गई। बृहस्पतिवार को सुबह 10 बजे से ही पुलिस हिंदू रक्षा दल के लोगों के घरों पर पहुंच गई और उन्हें घरों से निकलने नहीं दिया।दोपहर तक उनके घरों पर पुलिस का कड़ा पहरा रहा।

एसएसपी अजय सिंह ने बताया कि कश्मीरी छात्रों पर दिए गए बयान के बाद आरोपी के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर लिया गया है। कश्मीरी छात्रों की सुरक्षा के लिए पुलिस गंभीर है। यदि कोई शांतिभंग का प्रयास करेगा तो सख्त कार्रवाई की जाएगी।

देहरादून के शिक्षण संस्थानों में 1201 कश्मीरी छात्र पढ़ाई कर रहे हैं। इनकी सुरक्षा को लेकर एसएसपी अजय सिंह ने बृहस्पतिवार को बैठक की। जिन जगहों पर कश्मीरी छात्र रह रहे हैं, वहां के संचालकों को एसएसपी ने सुरक्षा के निर्देश दिए। साथ ही ऐसे क्षेत्रों में पीएसी तैनात की गई है। पीएसी लगातार इन क्षेत्रों में भ्रमण करेगी।

स्कूलों में बैग फ्री डे,महीने के अंतिम शनिवार अब मस्ती की पाठशाला

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प्रदेश के सरकारी और निजी सभी स्कूलों में महीने के अंतिम शनिवार को बस्ते की छुट्टी रहेगी। उत्तराखंड बोर्ड के स्कूल हों या फिर सीबीएसई, आईसीएससी, संस्कृत और भारतीय शिक्षा परिषद के स्कूल सभी में बच्चों के कंधों पर बस्ते नहीं होंगे। सरकार ने हर महीने के अंतिम शनिवार को बस्ता मुक्त दिवस मनाने का निर्णय लिया है।

In The Government Schools The Fourth Saturday Of The Month Will Be Bag Free Day - Amar Ujala Hindi News Live - सरकारी स्कूलों में महीने का चौथा शनिवार होगा बैग फ्री
शिक्षा मंत्री डॉ.धन सिंह रावत के मुताबिक इसी शनिवार से इस व्यवस्था को लागू किया जाएगा। एससीईआरटी सभागार में आयोजित कार्यशाला में शिक्षा मंत्री डॉ. रावत ने बस्ता रहित दिवस की शुरुआत की और गतिविधि पुस्तिका का विमोचन किया। उन्होंने कहा कि बच्चों को पढ़ाई के साथ ही खेल, व्यावसायिक शिक्षा, कृषि, चित्रकला सहित विभिन्न गतिविधियों में दक्ष बनाया जाना है।
No bags, it's masti time at govt schools - The Tribune
इसके लिए सभी स्कूलों में बच्चे महीने में एक दिन बिना बस्ते के आएंगे। विदेशों में बच्चे खुशनुमा माहौल में पढ़ते हैं। उनके लिए इसी तरह का माहौल होना चाहिए। कार्यक्रम में शिक्षा सचिव रविनाथ रामन, महानिदेशक झरना कमठान, मिशन निदेशक एनएचएम स्वाति भदौरिया, डाॅ. मुकुल सती, विभिन्न निजी स्कूलों के प्रबंधक व बोर्ड के अधिकारी मौजूद रहे।

‘सिंधु जल समझौता’ रद्द होने से पाकिस्तान पर क्या असर पड़ेगा,क्या भारत सच में रोक सकता है पानी ?

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पहलगाम आतंकी हमला निश्चित रूप से सुरक्षा व्यवस्था में कुछ कमियों को उजागर करता है, और यह सरकार के लिए एक चेतावनी है कि खुफिया तंत्र, सीमा सुरक्षा, और पर्यटन स्थलों की निगरानी को और मजबूत करने की जरूरत है। लेकिन इसे केवल सरकार की नाकामी का सबूत कहना अतिशयोक्ति होगी,क्योंकि  आतंकी हमले जटिल सुरक्षा चुनौतियाँ हैं, जिनके पीछे कई कारक होते हैं, जैसे सीमा पार से आतंकवाद का समर्थन, स्थानीय परिस्थितियाँ, और वैश्विक आतंकी नेटवर्क। सरकार की नीतियों और सुरक्षा व्यवस्थाओं में कमियाँ हो सकती हैं, लेकिन इस तरह की घटनाओं को पूरी तरह से एक पक्ष की विफलता के रूप में देखना सही नहीं है।भारत सरकार ने त्वरित प्रतिक्रिया दी, जिसमें सर्च ऑपरेशन, सुरक्षा समीक्षा बैठकें, और पाकिस्तान के खिलाफ कड़े कदम जैसे सिंधु जल संधि को स्थगित करना और अटारी बॉर्डर बंद करना शामिल हैं। इसके अलावा, जम्मू-कश्मीर सरकार ने पीड़ितों के लिए मुआवजे की घोषणा की,,,इससे पहले भी सरकार ने कई ऐसे एक्शन लिए हैं जो आतंकवादियों की कमर तोड़ने में कारगर साबित हुए हैं,,,कई बार आतंकी हमले होने से पहले ही उन पर एक्शन भी हुआ है,,,क्योंकि आतंकवाद एक बहुआयामी चुनौती है, जिसमें बाहरी ताकतों की बड़ी भूमिका है,,, सिर्फ ये कहना कि सरकार की नाकामी से ये घटना हुई ये भी सही नहीं होगा,,,हाँ चूक जरूर कुछ मामलों में सरकार से हो चुकी है,,,लेकिन भारत ने भी कूटनीतिक तरिके से पाकिस्तान को जवाब देना शुरू कर दिया है,,,,इनमें सबसे प्रमुख है सिंधु  जल समझौता रद्द करना,,,
 
 
यहां ये जानना भी जरूरी  हो जाता है कि आखिर  सिंधु  जल   समझौता रद्द होने से पाकिस्तान पर क्या प्रभाव पड़ सकते हैं,,,भारत द्वारा पाकिस्तान के साथ सिंधु जल समझौता  रद्द करने या निलंबित करने के कई दूरगामी परिणाम हो सकते हैं। यह समझौता 1960 में विश्व बैंक की मध्यस्थता से हुआ था, जिसके तहत सिंधु नदी प्रणाली की छह नदियों—सिंधु, झेलम, चिनाब जो पश्चिमी नदियाँ हैं  और रावी, ब्यास, सतलुज जो पूर्वी नदियाँ हैं उनके  पानी का बँटवारा किया गया था । पाकिस्तान को पश्चिमी नदियों का 80% पानी मिलता है, जबकि भारत को पूर्वी नदियों का नियंत्रण और पश्चिमी नदियों पर सीमित उपयोग  का अधिकार है।अब ये समझौता रद्द होने से पाकितान पर इसके प्रभाव बहुत घातक साबित हो सकते हैं,,,पाकिस्तान की लगभग 80% कृषि भूमि और 21 करोड़ से अधिक आबादी सिंधु और उसकी सहायक नदियों पर निर्भर है। यदि भारत पानी का प्रवाह रोकता या कम करता है, तो पाकिस्तान में पीने के पानी और स्वच्छता के लिए गंभीर संकट उत्पन्न हो सकता है,,,पाकिस्तान की 16 मिलियन हेक्टेयर कृषि भूमि सिंधु नदी प्रणाली पर निर्भर है, जो 90% सिंचाई के लिए इसका उपयोग करती है। पानी की कमी से गेहूं, चावल, और कपास जैसी प्रमुख फसलों की पैदावार घट सकती है, जिससे खाद्य सुरक्षा खतरे में पड़ सकती है,,,गेहूं की बुवाई जैसे महत्वपूर्ण समय पर पानी की कमी से फसल चक्र बाधित हो सकता है, जिससे खाद्य कीमतों में वृद्धि और किसानों की आजीविका पर असर पड़ेगा,,कृषि पाकिस्तान की जीडीपी में 25% योगदान देती है। पानी की कमी से खाद्य उत्पादन में कमी, बेरोजगारी, और आर्थिक अस्थिरता बढ़ सकती है।जलविद्युत परियोजनाएँ जैसे तरबेला और मंगला बाँध प्रभावित होंगी, जिससे ऊर्जा संकट गहरा सकता है,,,समझौते को निलंबित करना भारत के लिए एक रणनीतिक कदम है, विशेष रूप से आतंकवाद के खिलाफ जवाबी कार्रवाई के रूप में। यह पाकिस्तान पर दबाव डालने का एक प्रभावी तरीका हो सकता है,,,
 
What is the Indus Waters Treaty put on hold by India after Pahalgam attack?
 
हालाँकि भारत ये करने में कितना कामयाब हो पायेगा ये देखना होगा क्योंकि समझौते को एकतरफा निलंबित करना अंतरराष्ट्रीय कानून के तहत विवादास्पद हो सकता है। वियना संधि  की धारा 62 के तहत, भारत यह तर्क दे सकता है कि पाकिस्तान द्वारा समर्थित आतंकवाद मूलभूत परिस्थितियों में बदलाव है, लेकिन विश्व बैंक या अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता न्यायालय में चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है,,,पाकिस्तान विश्व बैंक या संयुक्त राष्ट्र में इस मुद्दे को उठा सकता है, जिससे भारत पर कूटनीतिक दबाव बढ़ सकता है,,,पाकिस्तान हेग के मध्यस्थता न्यायालय में भारत के फैसले को चुनौती दे सकता है, जैसा कि उसने किशनगंगा परियोजना के मामले में किया था,,,
Pak writes to Ind for dialogue on water issues next month - sources
 
 
यहां सवाल ये भी है कि क्या भारत पाकिस्तान का पानी सच में रोक सकता है,,,तो जवाब है हाँ, भारत तकनीकी और भौगोलिक दृष्टि से पाकिस्तान को जाने वाली कुछ नदियों का पानी रोक सकता है, लेकिन यह प्रक्रिया जटिल है और इसके कई कानूनी, राजनीतिक, और व्यावहारिक पहलू हैं,,,रावी, ब्यास, सतलज इन पर भारत का पूरा नियंत्रण है, और भारत इनका पानी बिना किसी प्रतिबंध के उपयोग कर सकता है,,,भारत पहले से ही रावी नदी का पानी रोकने के लिए कदम उठा चुका है। उदाहरण के लिए, 2024 में शाहपुर कंडी बैराज के पूरा होने के बाद रावी का पानी पाकिस्तान की ओर जाने के बजाय जम्मू-कश्मीर और पंजाब में उपयोग हो रहा है। इससे जम्मू-कश्मीर को 1150 क्यूसेक अतिरिक्त पानी मिल रहा है,,,सिंधु, झेलम, और चिनाब नदियाँ भारत से होकर पाकिस्तान जाती हैं। भारत इन नदियों पर बांध बनाकर या जलाशयों का निर्माण करके पानी के प्रवाह को नियंत्रित कर सकता है। हालांकि, पूरी तरह रोकना मुश्किल है क्योंकि भारत के पास अभी इतनी बड़ी जल भंडारण क्षमता नहीं है कि वह इन नदियों के पूरे प्रवाह को रोक सके। बड़े बांध बनाने में समय और संसाधन लगते हैं,,इन नदियों का प्रवाह इतना विशाल है कि इसे पूरी तरह रोकना तकनीकी रूप से चुनौतीपूर्ण है,,,
 
 
 
कुल मिलाकर सिंधु जल समझौते का निलंबन पाकिस्तान के लिए तत्काल और दीर्घकालिक संकट पैदा कर सकता है, विशेष रूप से जल, कृषि, और आर्थिक क्षेत्रों में। भारत के लिए यह एक शक्तिशाली रणनीतिक कदम है, लेकिन इसके साथ अंतरराष्ट्रीय और क्षेत्रीय जोखिम भी जुड़े हैं। दोनों देशों के बीच तनाव बढ़ने की संभावना है,,सरकार को अपना काम करना है लेकिन इस त्रासदी में जान गंवाने वाले 26 लोगों की याद में और कश्मीर की शांति के लिए,राजनैतिक दलों को  राजनीतिक मतभेदों से ऊपर उठकर एकजुटता दिखानी होगी। आतंकियों को करारा जवाब देना और कश्मीर को फिर से स्वर्ग बनाना सिर्फ सरकार की ही नहीं बल्कि सभी पार्टियों के साथ साथ हम  सभी की भी  साझा जिम्मेदारी है।

उत्तराखंड का नया रेल नेटवर्क: हिमालय की चुनौतियों पर विजय,भविष्य में होने वाले साइड इफेक्ट !

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हिमालय की दुर्गम चट्टानों और भूस्खलन के खतरों को पार करते हुए उत्तराखंड में एक आधुनिक रेल नेटवर्क का निर्माण तेजी से हो रहा है। ऋषिकेश-कर्णप्रयाग रेल परियोजना इस दिशा में मील का पत्थर साबित हो रही है, जो न केवल कनेक्टिविटी बढ़ाएगी, बल्कि चार धाम यात्रा और पर्यटन को भी नई ऊंचाइयों तक ले जाएगी।

 इस महत्वाकांक्षी परियोजना के तहत अब तक 11 मुख्य सुरंगों और 8 बड़े पुलों का निर्माण पूरा हो चुका है,,,इस महत्वाकांक्षी परियोजना की शुरुआत 1996 में तत्कालीन रेल मंत्री सतपाल महाराज द्वारा सर्वेक्षण के साथ हुई थी,,, 2011 में यूपीए सरकार के दौरान  अध्यक्ष सोनिया गांधी द्वारा आधारशिला रखी गई थी,,, लेकिन राजनीतिक मतभेदों के कारण कार्य में देरी हुई,,,जिसके बाद NDA सरकार में इसका काम शुरू किया गया था,,,

इस 125 किलोमीटर लंबी रेल लाइन में 105 किलोमीटर हिस्सा सुरंगों से होकर गुजरता है, जिसमें हाल ही में जानसू सुरंग जो लगभग 15 किलोमीटर है उसका  ब्रेकथ्रू हुआ है, जो हिमालय में बोरिंग मशीन से बनी सबसे लंबी परिवहन सुरंग है,,,,इस रेल लाइन में 17 सुरंगें और कई पुल शामिल हैं,,,

Rishikesh Karnaprayag Rail: Status, Route Map & Stations [2024]

परियोजना की मुख्य विशेषताएं

  • लंबाई और संरचना: 125 किमी की यह रेल लाइन, जिसमें 105 किमी हिस्सा 17 सुरंगों से होकर गुजरता है, हिमालय की जटिल भौगोलिक चुनौतियों का सामना कर रही है।

  • जानसू सुरंग: हाल ही में 15 किमी लंबी जानसू सुरंग का ब्रेकथ्रू हुआ, जो हिमालय में बोरिंग मशीन से बनी सबसे लंबी परिवहन सुरंग है।

  • हिमालयन टनलिंग तकनीक: यह तकनीक भूस्खलन और नई चट्टानों जैसी समस्याओं से निपटने में कारगर है और भविष्य की परियोजनाओं के लिए मॉडल बनेगी।

उत्तराखंड के लिए लाभ

  • बेहतर कनेक्टिविटी: गढ़वाल और कुमाऊं क्षेत्रों को जोड़कर यात्रा समय में कमी आएगी।

  • आर्थिक विकास: स्थानीय व्यवसायों और पर्यटन को बढ़ावा मिलेगा।

  • चार धाम यात्रा: यह परियोजना तीर्थयात्रियों के लिए सुगम और सुरक्षित यात्रा सुनिश्चित करेगी।

अन्य महत्वपूर्ण परियोजनाएं

टनकपुर-बागेश्वर रेल लाइन (170 किमी, लागत 49,000 करोड़ रुपये) का अंतिम सर्वे पूरा हो चुका है। यह परियोजना उत्तराखंड के सुदूर क्षेत्रों को रेल नेटवर्क से जोड़ेगी, जिससे आर्थिक और सामाजिक विकास को गति मिलेगी।

rishikesh-karnprayag railway line line project tunnel built in record 26 days जल्‍द पूरा होगा ऋषिकेश-कर्णप्रयाग रेलवे लाइन का सपना, रेकॉर्ड 26 दिन में बनी सुरंग

चुनौतियां और प्रगति

आजादी के बाद उत्तराखंड में रेल नेटवर्क का विस्तार केवल 344.9 किमी तक सीमित रहा, जो मुख्य रूप से हरिद्वार, देहरादून और कुमाऊं क्षेत्रों तक है। हिमालय का जटिल भूगोल और पर्यावरणीय संवेदनशीलता इस विस्तार में बड़ी बाधाएं रही हैं। फिर भी, नई तकनीकों और समर्पित प्रयासों से ये परियोजनाएं दिसंबर 2026 तक पूर्ण होने की दिशा में अग्रसर हैं।

RVNL Rıshıkesh Package-4 - ALTINOK Consulting Engineering

इसके अलावा अन्य रेल परियोजना टनकपुर-बागेश्वर रेल लाइन जो 170 किमी की है और इसकी लागत  49,000 करोड़ रुपये की अनुमानित है,,उसका भी   अंतिम सर्वे पूरा हो चुका है, चूँकि उत्तराखंड में रेल नेटवर्क का विस्तार आजादी के बाद सीमित रहा है, और वर्तमान में केवल 344.9 किमी रेल लाइनें हैं, जो मुख्य रूप से हरिद्वार, देहरादून, और कुमाऊं क्षेत्र तक सीमित हैं। इन नई परियोजनाओं से राज्य में रेल कनेक्टिविटी और आर्थिक विकास को नई दिशा मिलेगी,,,

 

निर्माण से पहाड़ों में भविष्य में होने वाले साइड इफेक्ट

 

1. पर्यावरणीय प्रभाव

  • भूस्खलन का खतरा: हिमालय का भूगोल पहले से ही भूस्खलन-प्रवण है। सुरंग निर्माण और पहाड़ों की कटाई से मिट्टी और चट्टानों की स्थिरता प्रभावित हो सकती है, जिससे भूस्खलन की घटनाएं बढ़ सकती हैं।
  • जंगल और जैव-विविधता पर असर: परियोजना के लिए वन क्षेत्रों की कटाई और भूमि अधिग्रहण से स्थानीय वनस्पतियों और जीव-जंतुओं का आवास नष्ट हो सकता है। हिमालय में कई दुर्लभ प्रजातियां पाई जाती हैं, जिन पर खतरा मंडरा सकता है।
  • जल स्रोतों पर प्रभाव: सुरंग निर्माण से भूजल स्तर और प्राकृतिक जल स्रोत (जैसे झरने) प्रभावित हो सकते हैं, जिसका असर स्थानीय समुदायों और कृषि पर पड़ सकता है।
  • मलबे का निपटान: निर्माण के दौरान निकलने वाला मलबा नदियों और घाटियों में प्रदूषण का कारण बन सकता है, खासकर गंगा और उसकी सहायक नदियों के लिए।

India's longest transport tunnel takes shape in Rishikesh-Karnaprayag rail project - India Today

2. सामाजिक और सांस्कृतिक प्रभाव

  • स्थानीय समुदायों का विस्थापन: परियोजना के लिए भूमि अधिग्रहण से कई गांवों के लोग विस्थापित हो सकते हैं। इससे उनकी आजीविका और सांस्कृतिक पहचान पर असर पड़ सकता है।
  • पर्यटन का दबाव: बेहतर कनेक्टिविटी से चार धाम यात्रा और पर्यटन बढ़ेगा, लेकिन अनियंत्रित पर्यटन से स्थानीय संस्कृति और पर्यावरण पर दबाव बढ़ सकता है।
  • शहरीकरण और जनसंख्या दबाव: रेल लाइन के साथ नए शहरों और बाजारों का विकास हो सकता है, जिससे पहाड़ी क्षेत्रों में अनियोजित शहरीकरण और संसाधनों पर दबाव बढ़ेगा।

3. आर्थिक और बुनियादी ढांचे पर प्रभाव

  • रखरखाव की चुनौतियां: हिमालय में बारिश, बर्फबारी और भूकंपीय गतिविधियों के कारण रेल लाइन और सुरंगों का रखरखाव महंगा और जटिल हो सकता है।
  • आर्थिक असंतुलन: रेल नेटवर्क से कुछ क्षेत्रों को अधिक लाभ होगा, जबकि दूरस्थ गांव उपेक्षित रह सकते हैं, जिससे क्षेत्रीय असमानता बढ़ सकती है।

4. जलवायु परिवर्तन और दीर्घकालिक जोखिम

  • हिमनदों पर प्रभाव: हिमालय में ग्लेशियर पहले से ही जलवायु परिवर्तन के कारण पिघल रहे हैं। निर्माण कार्य और बढ़ता मानवीय हस्तक्षेप इस प्रक्रिया को तेज कर सकता है।
  • प्राकृतिक आपदाओं का जोखिम: हिमालय में भूकंप और बाढ़ जैसी आपदाएं आम हैं। रेल लाइन और सुरंगों को इन जोखिमों के लिए डिज़ाइन किया गया है, लेकिन दीर्घकालिक स्थिरता सुनिश्चित करना चुनौतीपूर्ण होगा।

L&T Begins TBM Shakti's Assembly for Rishikesh – Karnaprayag Rail - The Metro Rail Guy

5. सकारात्मक प्रभावों के साथ संतुलन की आवश्यकता

  • हालांकि परियोजना से कनेक्टिविटी, पर्यटन और आर्थिक विकास को बढ़ावा मिलेगा, लेकिन इन साइड इफेक्ट्स को कम करने के लिए सख्त पर्यावरणीय नियम, टिकाऊ निर्माण प्रथाएं, और स्थानीय समुदायों की भागीदारी जरूरी है।
  • उपाय: मलबे का उचित निपटान, वनरोपण, भूस्खलन रोकथाम के लिए इंजीनियरिंग समाधान, और स्थानीय लोगों के लिए पुनर्वास और रोजगार के अवसर जैसे कदम प्रभावों को कम कर सकते हैं।

निष्कर्ष

ऋषिकेश-कर्णप्रयाग रेल परियोजना उत्तराखंड के विकास के लिए महत्वपूर्ण है,उत्तराखंड का नया रेल नेटवर्क न केवल हिमालय की चुनौतियों पर विजय का प्रतीक है, बल्कि यह राज्य के आर्थिक और सामाजिक विकास का आधार भी बनेगा। यह परियोजना उत्तराखंड को आधुनिक भारत के नक्शे पर और मजबूती से स्थापित करेगी, लेकिन इसके दीर्घकालिक साइड इफेक्ट्स को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। पर्यावरण, सामाजिक और आर्थिक प्रभावों को कम करने के लिए टिकाऊ और समावेशी दृष्टिकोण अपनाना जरूरी है, ताकि हिमालय की नाजुक पारिस्थितिकी और स्थानीय समुदायों की सुरक्षा सुनिश्चित हो।

 

तबादला एक्ट दरकिनार…तय समय पर पात्र कर्मियों की सूची जारी नहीं कर पा रहे विभाग

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प्रदेश में तबादलों के लिए एक्ट बना है। एक्ट के तहत जारी समय-सारणी के मुताबिक सभी विभागों को 15 अप्रैल तक तबादलों के लिए पात्र शिक्षकों और कर्मचारियों की सूची जारी करनी है, लेकिन कुछ विभाग इस सूची को तय समय पर जारी नहीं कर पा रहे हैं।

तबादला एक्ट के तहत हर संवर्ग के लिए सुगम, दुर्गम क्षेत्र के कार्यस्थल, तबादलों के लिए पात्र कर्मचारियों एवं उपलब्ध और संभावित खाली पदों की सूची विभाग की वेबसाइट पर 15 अप्रैल तक प्रदर्शित की जानी है। इसके बाद 20 अप्रैल तक अनिवार्य तबादलों के लिए पात्र कर्मचारियों से अधिकतम 10 इच्छित स्थानों के लिए विकल्प मांगे जाने हैं, लेकिन कुछ विभाग सूची जारी नहीं कर पा रहे हैं।

 

अब तक कोई निर्देश नहीं मिला
शिक्षा विभाग के एक अधिकारी के मुताबिक तबादलों के लिए हर साल शासन से निर्देश जारी किया जाता है। इस पर अब तक कोई निर्देश नहीं मिला। मुख्य सचिव की अध्यक्षता में हुई बैठक में लिए गए निर्णयों पर भी कोई दिशा निर्देश नहीं मिला। यही वजह है कि कितने प्रतिशत शिक्षकों व कर्मचारियों के तबादले किए जाने हैं इस पर असमंजस बना है।

 

जूनियर हाईस्कूल शिक्षक संघ के प्रदेश अध्यक्ष विनोद थापा के मुताबिक खाली शत प्रतिशत पदों पर तबादले किए जाएं। इसके लिए 10 या 15 प्रतिशत का कोई सीमा तय नहीं होनी चाहिए। उन्होंने यह भी कहा कि विभाग ने इस बार नए सिरे से सुगम, दुर्गम क्षेत्र का भी निर्धारण नहीं किया। पिछले साल जो स्थिति थी उसके आधार पर सुगम, दुर्गम क्षेत्र तय किए गए हैं।

 

तबादलों के लिए मुख्य सचिव की अध्यक्षता में जो प्रस्ताव तैयार किया गया उसे मंजूरी मिल गई है, जल्द ही इस पर निर्देश जारी कर दिया जाएगा। -ललित मोहन रयाल, अपर सचिव कार्मिक