Author: Dilip Singh Rathod

गावं में एक भी ओबीसी नहीं,फिर भी प्रधान की सीट कर दी आरक्षित,नहीं भर पाया कोई पर्चा 

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पौड़ी। कल्जीखाल ब्लॉक की ग्राम पंचायत डांगी में ग्राम प्रधान पद ओबीसी महिला के लिए आरक्षित होने पर ग्रामीणों ने चुनाव का बहिष्कार करने का ऐलान किया है। मंगलवार को निवर्तमान प्रधान भगवान सिंह चौहान के नेतृत्व में शिष्टमंडल ने जिलाधिकारी स्वाति एस भदौरिया को ज्ञापन सौंपा।

डांगी में प्रधान पद को इस बार ओबीसी महिला आरक्षण के अंतर्गत रखा गया है, लेकिन समस्या ये है कि ग्राम डांगी में पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के कोई भी मतदाता या नागरिक मौजूद नहीं हैं. इस विसंगति के कारण ग्राम प्रधान पद के लिए एक भी नामांकन दाखिल नहीं हो पाया है. वहीं अब नाराज ग्रामीणों ने जिलाधिकारी को ज्ञापन सौंपते हुए आरक्षण में सुधार की मांग की है.साथ ही ग्राणीणों ने चेतावनी दी है कि यदि इस मुद्दे का समाधान नहीं किया गया, तो वे आगामी पंचायत चुनावों में क्षेत्र पंचायत और जिला पंचायत के लिए होने वाले मतदान का बहिष्कार करेंगे. ग्रामीणों का कहना है कि प्रशासन द्वारा क्षेत्रीय सामाजिक संरचना को नज़रअंदाज़ कर आरक्षण लागू किया गया है, जो ग्रामवासियों के लोकतांत्रिक अधिकारों का उल्लंघन है. ग्रामीणों ने मांग की है कि ग्राम प्रधान पद का आरक्षण तत्काल प्रभाव से बदला जाए, ताकि योग्य उम्मीदवारों को चुनाव लड़ने का अवसर मिल सके.

 

ग्रामीणों ने कहा कि गांव में कोई प्रमाणित ओबीसी व्यक्ति नहीं है और 2015 से अब तक किसी को ओबीसी प्रमाण पत्र जारी नहीं हुआ। ऐसे में आरक्षण नियमों के विरुद्ध है। सामाजिक कार्यकर्ता जगमोहन डांगी ने बताया कि शिकायतों के बावजूद समाधान नहीं हुआ और कोई नामांकन दाखिल नहीं हो सका। ग्रामीणों ने आंगनबाड़ी के रिक्त पदों का भी मुद्दा उठाया। जिलाधिकारी ने मामले को शासन को भेजने और निर्देशानुसार कार्रवाई का आश्वासन दिया।

धामी का दावा और भाजपा की अंदरूनी ‘भविष्यवाणी’

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कहते हैं उत्तराखंड की राजनीति में एक अजीब सी चुप्पी हमेशा एक सनसनी मचाये रखती है ,, मगर इस बार गर्मी चुप्पी से नहीं बल्कि दो बयानों से पैदा हुई है ,,,वो भी सत्ता पक्ष की तरफ से आये बयानों से  ,,, और उस पर तेज़ और तीखी मिर्च की माफिक तड़का लगा दिया है विपक्षी नेता हरीश रावत ने,,,
शुरुआत होती है शांत से दिखने वाले प्रदेश उत्तराखंड में सत्ता सीन भाजपा के अध्यक्ष को चुनने के साथ ,, मगर अध्यक्ष के बहाने चर्चा शुरू हो जाती है मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी की जिनके बारे में अब कहा जाने लगा है की वो इसिहास लिखने की और बढ़ रहे हैं क्या ? क्या भाजपा आलाकमान ने धामी पर भरोसा कर एक सियासी बिसात भविष्य को लेकर बिछा दी है या फिर परदे के पीछे से एक नयी स्क्रिप्ट लिखी जा रही है ?
चलिए, तर्कों, बयानों और पॉलिटिकल इंटेलिजेंस के ज़रिए इस पूरे खेल को समझते हैं… विस्तार से, निष्पक्ष रूप से और फैक्ट्स के साथ।

 

ये जगजाहिर है की उत्तराखंड की राजनीती अन्य राज्यों की तरह न तो शांत है और न ही स्थिर ,,,,जहाँ मुख्यमंत्री बदलने की न केवल चर्चा चलती हैं बल्कि अमलीजामा पहना कर उन चर्चाओं को हकीकत में भी बदल दिया जाता है ,,,लेकिन इस बार इन चर्चाओं पर विराम सा लग गया है ,, तमाम अटकलें लगाई जा रहीं थी की प्रदेश में मुख्यमंत्री जल्द ही बदला जाना है ,, लेकिन पुष्कर सिंह धामी ने न केवल अपने चार वर्ष पुरे कर लिए हैं बल्कि भाजपा के सबसे ज्यादा वक़्त तक मुख्यमंत्री रहने का कीर्तिमान भी बना लिया है ,, अब उत्तराखंड में तो ये कीर्तिमान ही कहा जाएगा जहाँ रात को सोने वाले मुख्यमंत्री को यही पता नहीं रहता की वो सुबह उठकर मुख्यमंत्री की कुर्सी पर विराजमान होगा भी या नहीं

 
 
 
यहाँ ये समझना जरूरी है कि उत्तराखंड भाजपा की राजनीति में मुख्यमंत्री बदलना कोई नई बात नहीं,,,,खंडूरी, निशंक, त्रिवेंद्र, तीरथ… हर चुनाव से पहले या बीच में चेहरा बदलकर पार्टी सत्ता बचाती रही है,,,,लेकिन इस बार तस्वीर बदलती दिख रही है। पुष्कर सिंह धामी, जिन्हें पहली बार मात्र 45 साल की उम्र में सीएम बनाकर भाजपा ने युवाओं को संदेश दिया,,,,उनके नेतृत्व में पार्टी ने 2022 में सत्ता दोबारा हासिल की,,2022  के चुनाव में खुद मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी अपना चुनाव अपनी परंपरागत सीट खटीमा से हार गए थे ,, बावजूद इसके ,दिल्ली में बैठे आलाकमान ने धामी पर भरोसा जताया और एक बार फिर हाव के बावजूद उनको प्रदेश का मुखिया बना दिया ,,,अब सवाल यह है कि क्या भाजपा आलाकमान ने इस बार भी मुख्यमंत्री की कुर्सी पर पुष्कर सिंह धामी को लंबी पारी देने का फैसला कर लिया है?

 

मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने हाल ही में महेंद्र भट्ट के अध्यक्ष बनने के बाद पार्टी की बड़ी बैठक में कहा,,,,“झूठी खबरें और अफवाहें ज्यादा दिन नहीं चलतीं। पार्टी नेतृत्व सब जानता है, और काम के आधार पर मौका देता है। धामी का यह बयान आत्मविश्वास से भरा था, और इशारा भी था,,,,इशारा उन अफवाहों की तरफ,जो उनके खिलाफ पार्टी के भीतर उड़ाई जाती रही हैं।इशारा उन चेहरों की तरफ,जो पर्दे के पीछे से उत्तराखंड में नेतृत्व बदलने की बिसात बिछाने में लगे थे।धामी का कहना,,, कि ,,पार्टी नेतृत्व सब जानता है, साफ करता है कि हाईकमान उनके पीछे खड़ा है,,,इसी बीच महेंद्र भट्ट का 36 सेकंड का एक वीडियो वायरल हुआ, जिसमें वह कहते हैं,,,,सीएम धामी नारायण दत्त तिवारी का रिकॉर्ड तोड़ेंगे। 2027 में चुनाव भी धामी के नेतृत्व में लड़ा जाएगा, और फिर से धामी ही सीएम बनेंगे।

 

 

महेंद्र भट्ट का यह बयान साधारण नहीं है। प्रदेश अध्यक्ष की दोबारा ताजपोशी के बीच यह बयान पार्टी के अंदरूनी खेल पर पानी की बौछार जैसा था,,,,भाजपा में पिछले दिनों प्रदेश अध्यक्ष के पद के लिए कई नाम चर्चा में थे, गुटबाजी थी, अंदरूनी घमासान था, लेकिन आखिरकार महेंद्र भट्ट की ताजपोशी हुई, और वह भी धामी के समर्थन से,,,,यानी अब उत्तराखंड भाजपा में धामी-भट्ट की जोड़ी एक नयी स्क्रिप्ट लिख रही है।
वैसे भी उत्तराखंड की राजनीति में गढ़वाल-कुमाऊं समीकरण हमेशा अहम रहा है,,,महेंद्र भट्ट गढ़वाल से आते हैं, और धामी कुमाऊं से,,,,,,इस जोड़ी को बनाए रखने में भाजपा आलाकमान ने रणनीतिक सोच दिखाई है।भट्ट की दोबारा ताजपोशी और धामी का आत्मविश्वास, दोनों ने एक साथ भाजपा के कार्यकर्ताओं और नेताओं को सीधा संदेश दे दिया,,,,कि “पार्टी में अगर आगे बढ़ना है, तो काम करना होगा। हाईकमान सब देख रहा है।”

उत्तराखंड में भाजपा ने चुनाव जीतने के लिए चेहरा बदलने की परंपरा निभाई है,,,खंडूरी इज़ बैक नारा याद होगा,,,त्रिवेंद्र सिंह रावत से तीरथ सिंह रावत और फिर तीरथ से पुष्कर सिंह धामी तक का सफर भी आपने देखा है…. लेकिन इस बार धामी खुद कह रहे हैं कि अफवाहें टिकती नहीं,और महेंद्र भट्ट कह रहे हैं कि धामी रिकॉर्ड तोड़ेंगे।क्या इसका मतलब यही है कि भाजपा अब मुख्यमंत्री बदलने की परंपरा तोड़ने जा रही है? क्या भाजपा अब मोदी के चेहरे के साथ-साथ धामी के चेहरे पर भी वोट मांगेगी? इन सवालों के जवाब आने वाले महीनों में दिखने लगेंगे। सियासी  भी चर्चा है की धामी संभवतः सिर्फ उत्तराखंड तक ही सीमित नहीं रहेंगे ,, गुजरात से मोदी जिस तरह दिल्ली की राजनीती का हिस्सा बने आने वाले वक़्त में उत्तराखंड से धामी भी दिल्ली की ओर कदम बढ़ा सकते हैं ,, खैर ये वक़्त के हाथ है ,, फिलहाल थोड़ा चर्चा धामी कृपा से अध्यक्ष की कुर्सी पर दूसरी बार विराजमान हुए महेंद्र भट्ट की कर लेते हैं ,,

भाजपा प्रदेश अध्यक्ष महेंद्र भट्ट का राजनीतिक सफर भी कम दिलचस्प नहीं है,,,,प्रदेश अध्यक्ष रहते हुए वह खुद बद्रीनाथ सीट से चुनाव हार चुके हैं,,,उन पर एक नहीं कई बार विवादित बयान देने के आरोप लगे हैं,,,,जोशीमठ आपदा,, जिस समय तमाम स्थानीय निवासी सड़कों पर थे ,,उनकी अगुवाई कर रहे कुछ लोगों को महेंद्र भट्ट ने  माओवादी तक कह दिया था ,,,
गैरसैंण आंदोलनकारियों को “सड़क छाप” कह दिया,और प्रेमचंद अग्रवाल प्रकरण में पार्टी की फजीहत करवा दी,,,,फिर भी पार्टी ने उन पर दोबारा भरोसा जताया है।अब पंचायत चुनाव और फिर 2027 का चुनाव महेंद्र भट्ट के लिए अग्निपरीक्षा जैसा होगा।उनकी जिम्मेदारी है कि भाजपा को सत्ता में वापस लाएं, और धामी को दोबारा मुख्यमंत्री बनवाएं।मगर यहाँ ये भी याद रखने की जरूरत है की प्रदेश में हुए बद्रीनाथ उपचुनाव और हरिद्वार के मंगलौर उपचुनाव में महेंद्र भट्ट करारी हार का सामना कर चुके हैं ,, निकाय चुनाव के दौरान भी उनके नेतृत्व में कोई बहुत अच्छा रिजल्ट मेयर की अधिकतर सीटें जीतकर भी नहीं आया ,,कमसकम आंकड़े तो यही तस्दीक कर रहे हैं ,,,उन्हीं के अध्यक्ष रहते हुए कई भाजपा नेताओं पर गंभीर आरोप लगे हैं ,, जिससे कई बार उनके सही तरीके से संगठन को चलाने को लेकर सवाल उठे हैं ,,खैर धामी भक्ति में लीन कइयों की नैय्या पार लगी है

 

अब वापिस से बस यही सवाल खड़ा होता है कि ,,,क्या धामी सच में नारायण दत्त तिवारी का रिकॉर्ड तोड़ पाएंगे? क्या वह 5 साल का कार्यकाल पूरा कर पाएंगे?क्या भाजपा आलाकमान उन पर इतना भरोसा कर चुका है कि 2027 में भी उन्हें मुख्यमंत्री का चेहरा बनाया जाए? धामी का आत्मविश्वास और भट्ट की भविष्यवाणी तो यही कहती है कि इस बार धामी लंबी पारी खेलने की तैयारी में हैं,,,,लेकिन भाजपा की राजनीति में कब कौन सा चेहरा बदल जाए, किसके खिलाफ अंदरूनी हवा बन जाए,इसका अंदाजा कोई नहीं लगा सकता।

 

 

उत्तराखंड की राजनीति में पिछले दो साल से जो धामी बनाम बदलाव का सस्पेंस बना था,फिलहाल उस पर ब्रेक लगता दिख रहा है।उस पर कांग्रेस के वरिष्ठ नेता पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने अपने सोशल मीडिया पर एक कार्टून से राजनीतिक हवा को थोड़ा और गर्म कर दिया है ,,,वैसे भी व्यंजनों के ब्रांड अम्बेसडर कब इसको व्यंग में तब्दील कर देते हैं इसके बारे में तो खुद कांग्रेसी भी अंदाज़ा नहीं लगा सकते ,, जिस तरह से उन्होंने धामी विरोधिओं को अंगूर से तुलना कर शॉट मारा है उससे उनके मन में पुष्कर सिंह धामी के प्रति प्रेम को साफ़ महसूस किया जा सकता है ,,, वैसे भी वो कई बार कई मंचों पर ब्यान दे भी चुके हैं की धामी पुरे पांच साल तक रहने चाहिए ,, अगर ऐसा होता है तो कभी उनके  हाथ आयी कुर्सी को छीनने वाले उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री ,, दिवंगत नारायणदत्त तिवारी का रिकॉर्ड तो फिलहाल बराबर हो ही सकता है ,,

 

खैर गेंद अब भाजपा के पाले में है,,,अगर धामी और भट्ट की जोड़ी 2027 तक सत्ता और संगठन दोनों संभाले रख पाती है,तो उत्तराखंड की राजनीति में यह एक नया अध्याय होगा। आपका क्या मानना है? क्या धामी 2027 तक मुख्यमंत्री बने रह पाएंगे? क्या भाजपा की मुख्यमंत्री बदलने की परंपरा इस बार टूट जाएगी? या फिर पर्दे के पीछे एक नई पटकथा लिखी जा रही है?

पंचायत चुनाव में महिलाएं: नाम की मुखिया या असली नेता?

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क्या महिलाओं की राजनीति में भूमिका सिर्फ नाम भर की है? क्या महिलाएं सच में राजनीति में आगे बढ़ रही हैं,या फिर उन्हें सिर्फ ‘मोहरा’ बनाकर रखा जा रहा है? 2027 चुनाव से पहले उत्तराखंड में पंचायत चुनाव की सरगर्मी तेज़ हो चुकी है,,,गाँवों में चाय की दुकानों से लेकर चौपालों तक,हर जगह चर्चा का माहौल है। हर पार्टी और निर्दलीय उम्मीदवार प्रचार में जुटे हुए हैं,,,हर जगह बैनर-पोस्टर लग रहे हैं, वादों की बौछार हो रही है,,,और हर चुनाव की तरह, इस बार भी नेता कह रहे हैं,महिलाओं को सशक्त बनाएंगे, महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाएंगे, महिलाओं को सुरक्षा देंगे।” लेकिन क्या हर बार की तरह यह सिर्फ वादा ही रह जाएगा? क्या पंचायत चुनाव में महिलाएं सिर्फ सीट भरने का साधन हैं? या सच में उन्हें नेतृत्व का अवसर दिया जा रहा है?


यहाँ पर हमें दो बातें देखने की ज़रूरत है,,,पहला  प्रतिनिधित्व का आंकड़ा बढ़ा है,,,,दूसरा  असल में सिर्फ आंकड़ा बढ़ा है या फिर फैसले लेने की शक्ति भी बढ़ी है? पंचायतों में महिलाएं सीट पर तो आ गईं,लेकिन क्या वह मुखिया, सरपंच या ग्राम प्रधान बनकर ,सच में अपनी मर्जी से फैसले ले पा रही हैं? कई गाँवों में यह देखा गया है कि महिला प्रधान के नाम पर,उनके पति, भाई या पिता पंचायत चला रहे होते हैं। इसे ‘प्रधान  पति’ कल्चर कहा जाता है, जहाँ महिला नाम की मुखिया होती है,और सत्ता उनके परिवार के पुरुषों के हाथ में रहती है। उत्तराखंड के कुमाऊं और गढ़वाल के कई ब्लॉकों में यह आम बात है।अल्मोड़ा के छेत्र से एक महिला प्रधान चुनी गई,लेकिन पंचायत के हर फैसले में उनके पति और देवर ही बैठकों में आगे दिखाई दिए । पौड़ी के एक गाँव में महिला प्रधान की जगह उनके बेटे ने सरकारी अधिकारियों के साथ बैठकर योजनाओं की फाइल पर निपटारा किया भले हस्ताक्षर महिला प्रधान ने ही किये । 
ऐसे में सवाल उठता है कि   —क्या महिलाओं को ‘नाम की मुखिया’ बनाकर ही रखा जा रहा है? क्या हम सच में महिलाओं को सशक्त कर रहे हैं, या बस दिखावा कर रहे हैं?
आगे बढ़ें उससे पहले थोड़ा आरक्षण की स्थिति स्पष्ट कर दें… भारत में संविधान ने पंचायतों में महिलाओं के लिए 33% आरक्षण दिया है ,जिसे कई राज्यों ने बढ़ाकर 50% कर दिया।राजस्थान में पंचायतों में 56% महिला प्रतिनिधित्व है, महाराष्ट्र में 54%, बिहार में 50%। उत्तराखंड में भी पंचायत चुनाव में 50% सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित हैं,,,जो कागज़ों पर बड़ा सुकून महिलाओं के प्रति देता है , लेकिन असल में क्या महिलाएं खुद फैसले ले रही हैं? भले कोई सीधे तौर पर ये न माने पर सच यही है की मुख्य रूप से प्रधान पति, प्रधान पिता या प्रधान भाई ही फैसला लेते हैं ,,
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अब विधानसभा और संसद में महिलाओं की स्थिति पर आते हैं,,,पंचायतों में 50% आरक्षण है,लेकिन विधानसभा में उत्तराखंड में महिलाओं का प्रतिनिधित्व 7% है। देशभर में औसतन 10-12% महिलाएं ही विधानसभा में हैं। उत्तर प्रदेश — 11%,,,,,बिहार — 12%,,,,,,मध्यप्रदेश — 10%,,,,,,हरियाणा — 8%,,,,छत्तीसगढ़ सबसे ज़्यादा 18%  …. अब लोकसभा को देख लीजिये,,,,लोकसभा में महिलाओं का प्रतिनिधित्व सिर्फ 15% और राज्यसभा में 13% है,,,मतलब महिलाओ की आधी आबादी, लेकिन असल फैसलों में भागीदारी 10-15%… सवाल उठता है क्यों?

2022 विधानसभा चुनाव में उत्तराखंड में महिला मतदाता पुरुषों से अधिक थीं। फिर भी तीनों बड़ी पार्टियों ने 10% से भी कम टिकट महिलाओं को दिए।बीजेपी ने 8, कांग्रेस ने 5, आम आदमी पार्टी ने 7 महिलाओं को टिकट दिए, यानि 210 सीटों में सिर्फ 20 महिलाएं मैदान में उतरीं। इनमें से भी आधी महिलाएं किसी नेता की बेटी, पत्नी या बहू थीं। जिनको अपने परिवार की राजनीतिक विरासत संभालने के लिए टिकट मिला,,,,लेकिन आम घर की महिलाओं को टिकट क्यों नहीं? इस पर राजनीतिक दल कहते हैं,,,,“चुनाव जीतने के लिए जिताऊ उम्मीदवार चाहिए,,,जबकि राजनीतिक जानकार  मानते हैं कि हमारी राजनीति धनबल और बाहुबल पर चलती है। शराब, पैसे और माफिया का खेल चलता है।ऐसे माहौल में महिलाएं चुनाव लड़ने में खुद को असहज पाती हैं।
 
 

जानकारों की माने तो उत्तराखंड की राजनीति में खनन और शराब माफिया का भी प्रभाव है,,,,राजनीति एक सिंडिकेट की तरह काम करती है, जिसमें सत्ता पक्ष, विपक्ष, अफसर, माफिया और मीडिया का गठजोड़ है। यही 5-7 हज़ार लोग, सवा करोड़ की आबादी की राजनीति तय कर रहे हैं।,,,,,
लेकिन दोष केवल सिस्टम का ही नहीं है,राजनीतिक दलों का रवैया भी दोषी है। हर बार चुनाव में कहते हैं, “महिलाओं को टिकट देंगे,”लेकिन देने में कंजूसी करते हैं और मज़े की बात देखिए…जो महिलाएं चुनाव लड़ती हैं, उनका जीतने का प्रतिशत भी पुरुषों से अधिक होता है। महिलाओं के जीतने की दर 16.5% है,जबकि पुरुषों की 11.8%। यानी महिलाएं बेहतर परफॉर्म कर रही हैं.. फिर टिकट देने में कंजूसी क्यों? सवाल ये  नहीं है कि महिलाएं राजनीति में क्यों नहीं हैं,सवाल यह है कि उन्हें आने से रोका क्यों जा रहा है? देश आधा उनका है,तो फैसलों में हिस्सा आधा क्यों नहीं?
 

 

एक बात और ,,,महिलाओं की सुरक्षा हर चुनाव में मुद्दा बनती है।‘महिला हेल्पलाइन’, ‘पिंक पेट्रोलिंग’, ‘महिला सुरक्षा ऐप’ जैसे नाम गिनाए जाते हैं।लेकिन क्या महिलाएं सच में सुरक्षित हैं?उत्तराखंड के पहाड़ी इलाकों में महिलाओं को रोज़ 5-10 किलोमीटर पैदल चलकर पानी और लकड़ी लानी पड़ती है।रास्ते में छेड़छाड़ और यौन हिंसा की घटनाएं होती हैं।कई मामलों में शिकायत करने पर पुलिस भी गंभीरता से नहीं लेती।जब महिलाओं की सुरक्षा ही नहीं हो पा रही,तो राजनीति में आने पर भी वह कैसे सुरक्षित महसूस करेंगी?क्योंकि राजनीती में तो इससे बढ़कर  उन्हें ट्रोलिंग, गाली-गलौज, चरित्र हनन का सामना करना पड़ता है जो आम महिला नेता के लिए किसी यातना से कम नहीं



महिलाओं के नाम पर कई योजनाएं भी बनी हैं।महिला उद्यमिता योजना’, ‘महिला स्टार्टअप फंड’, ‘मुख्यमंत्री महिला सशक्तिकरण योजना’…लेकिन 2024 में केवल 18% सरकारी फंडिंग महिला उद्यमियों को मिली।महिला स्टार्टअप में 60% प्रोजेक्ट फंड की कमी से बंद हो गए।ज्यादातर योजनाएं कागज तक सीमित रह गईं।सरकारी आंकड़ों में जो महिला आत्मनिर्भर दिखाई जाती है,ज़मीन पर हालात अलग हैं।हमारे समाज में महिलाओं को देवी का दर्जा दिया गया है।लेकिन क्या राजनीति में उन्हें वही दर्जा दिया गया? क्या हम महिलाओं को सिर्फ त्योहारों में पूजने के लिए देवी मानते हैं,या उन्हें फैसलों की मेज़ पर भी बराबरी का दर्जा देना चाहते हैं?
अगर हम एक सशक्त और निष्पक्ष लोकतंत्र चाहते हैं,तो पंचायतों में उन्हें फैसले लेने का अधिकार देना होगा न की उनके पति ,पिता या भाई को  ,,, विधानसभा और संसद में भी महिलाओं की भागीदारी बढ़ानी होगी।वो भी नाम मात्र की नहीं, असल नेतृत्व के साथ। महिलाओं को सिर्फ घोषणा पत्रों और पोस्टरों की शोभा नहीं बल्कि उन्हें असली सत्ता और फैसलों में बराबरी का हिस्सा देना होगा ।
जब महिलाएं असलियत में आगे आएंगी,तो राजनीति में भी ईमानदारी, संवेदनशीलता और पारदर्शिता आएगी। उत्तराखंड की महिलाएं पहाड़ की चट्टानों सी मजबूत हैं। वो खेत संभाल सकती हैं, जंगल से लकड़ी ला सकती हैं, बच्चों की परवरिश कर सकती हैं,तो राजनीति भी संभाल सकती हैं,जरूरत है, उन्हें सिर्फ मौका देने की।

सांविधानिक संकट; पंचायती राज एक्ट में संशोधन के अध्यादेश को नहीं मिली मंजूरी, राजभवन ने लौटाया

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प्रदेश की पंचायतों में प्रशासकों की पुनर्नियुक्ति संबंधी अध्यादेश को राजभवन ने बिना मंजूरी लौटा दिया है। इस कारण 10760 त्रिस्तरीय पंचायतें अभी खाली रहेंगी। इससे पंचायतों में सांविधानिक संकट पैदा हो गया है।त्रिस्तरीय पंचायतों में प्रशासकों का छह महीने का कार्यकाल खत्म होने के बाद प्रशासकों की पुनर्नियुक्ति के लिए पंचायती राज विभाग ने आनन-फानन में प्रस्ताव तैयार किया। जिसे पहले विधायी विभाग यह कहते हुए लौटा चुका था कि कोई अध्यादेश यदि एक बार वापस आ गया तो उसे फिर से उसी रूप में नहीं लाया जाएगा। ऐसा किया जाना संविधान के साथ कपट होगा। विधायी विभाग की इस आपत्ति के बावजूद अध्यादेश को राजभवन भेज दिया गया।

 

राज्यपाल के सचिव रविनाथ रामन के मुताबिक विधायी विभाग की आपत्ति का निपटारा किए बिना इसे राजभवन भेजा गया। जिसे विधायी को वापस भेज दिया गया है। इसमें कुछ चीजें स्पष्ट नहीं हो रही थीं, इसके बारे में पूछा गया है। इसमें विधायी ने कुछ मसलों को उठाया था। राजभवन ने इसका विधिक परीक्षण किए जाने के बाद इसे लौटाया है।

10760 त्रिस्तरीय पंचायतें हुईं मुखिया विहीन

प्रदेश में हरिद्वार की 318 ग्राम पंचायतों को छोड़कर 7478 ग्राम पंचायतें, 2941 क्षेत्र पंचायतें और 341 जिला पंचायतें मुखिया विहीन हो गई हैं। राज्य में पहली बार इस तरह की स्थिति बनी है।उत्तराखंड पंचायती राज अधिनियम 2016 में संशोधन के लिए 2021 में अध्यादेश लाया गया था। राजभवन से मंजूरी के बाद इसे विधानसभा से पास होना था, लेकिन तब विधेयक को विधानसभा से पास नहीं किया गया। क्योंकि हरिद्वार में अध्यादेश जारी होने के बाद त्रिस्तरीय चुनाव करा दिए गए थे

हरिद्वार जमीन घोटाला; धामी सरकार की बड़ी कार्रवाई, दो IAS और एक PCS अफसर समेत 12 लोग सस्पेंड

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हरिद्वार जमीन घोटाले में धामी सरकार ने बड़ी कार्रवाई की है। मामले में दो आईएस और एक पीसीएस अफसर समेत कुल 12 लोगों को सस्पेंड कर दिया गया है। मामले में डीएम, एसडीएम और पूर्व नगर आयुक्त पर भी गाज गिरी। अब विजिलेन्स जमीन घोटाले की जांच करेगी।

मामला 15 करोड़ की जमीन को 54 करोड़ में खरीदने का है, जिसमें हरिद्वार नगर निगम ने एक अनुपयुक्त और बेकार भूमि को अत्यधिक दाम में खरीदा। न भूमि की कोई तात्कालिक आवश्यकता थी, न ही खरीद प्रक्रिया में पारदर्शिता बरती गई। शासन के नियमों को दरकिनार कर यह घोटाला अंजाम दिया गया।

 

15 करोड़ की ज़मीन 54 करोड़ में खरीदी
जांच के बाद रिपोर्ट मिलते ही बड़ी कार्रवाई करते हुए हरिद्वार के जिलाधिकारी कर्मेन्द्र सिंह, पूर्व नगर आयुक्त वरुण चौधरी और एसडीएम अजयवीर सिंह को सस्पेंड कर दिया। साथ ही वरिष्ठ वित्त अधिकारी निकिता बिष्ट, कानूनगों राजेश कुमार, तहसील प्रशासनिक अधिकारी कमलदास, और वरिष्ठ वैयक्तिक सहायक विक्की को भी निलंबित किया गया।

उत्तराखंड में पहली बार ऐसा हुआ है कि सत्ता में बैठी सरकार ने अपने ही सिस्टम में बैठे शीर्ष अधिकारियों पर सीधा और कड़ा प्रहार किया है। हरिद्वार ज़मीन घोटाले में मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी द्वारा लिए गए निर्णय केवल एक घोटाले के पर्दाफाश की कार्रवाई नहीं, बल्कि उत्तराखंड की प्रशासनिक और राजनीतिक संस्कृति में एक निर्णायक बदलाव का संकेत हैं।

पहले चरण में नगर निगम के प्रभारी सहायक नगर आयुक्त रविंद्र कुमार दयाल, अधिशासी अभियंता आनंद सिंह मिश्रवाण, कर एवं राजस्व अधीक्षक लक्ष्मीकांत भट्ट और अवर अभियंता दिनेश चंद्र कांडपाल को भी सस्पेंड किया गया था। संपत्ति लिपिक वेदवाल का सेवा विस्तार समाप्त कर दिया गया है और उनके खिलाफ अनुशासनिक कार्यवाही के निर्देश दिए गए हैं।

चाय की चुस्कियों के बीच भाजपा विधायकों का ‘मुद्दों पर गुप्त मंथन’

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नीति आयोग की बैठक से लौटने के बाद  सीएम धामी टिहरी जिले के गजा घंटाकर्ण महोत्सव का मंत्री सुबोध उनियाल के साथ शुभारम्भ कर रहे थे।

इधर, दून में पूर्व मंत्री व भाजपा विधायक चाय की चुस्की के बीच अपने मुद्दों को लेकर मंथन में जुटे हुए थे।
मंगलवार की शाम को गदरपुर से भाजपा विधायक अरविंद पांडे के विधायक हॉस्टल स्थित आवास में पार्टी जनप्रतिनिधियों के विकास को लेकर दर्द झलका।

विधायकों की सबसे बड़ी चिंता 2027 के विधानसभा चुनाव को लेकर रही। बैठक में 2027 के विधानसभा चुनाव से पूर्व लंबित विकास कार्यों के जल्द बजट आवंटन पर भी चर्चा हुई। विधायकों ने कहा कि प्रत्येक पार्टी विधायक के क्षेत्र में स्वीकृत योजनाओं  के बजट स्वीकृति में  अड़ंगा लगाने वाले बेलगाम अधिकारियों के बारे में भी चर्चा की जाएगी।

मौजूद विधायकों ने सीएम धामी के फैसलों की सराहना करने के साथ कुछ अधिकारियों के रवैये पर नाराजगी जताई।
इन विधायकों का कहना था कि शासन से लेकर जिले में मौजूद ये अधिकारी जनप्रतिनिधियों की नहीं सुन रहे हैं।

चाय की बैठकी में उठे सभी मुद्दों पर सीएम धामी से मिलकर चर्चा करने पर भी सहमति बनी।

कुछ भाजपा विधायकों ने इकोलॉजी संतुलन कायम रखते हुए खनन कार्य करने पर भी बल दिया। इसके अलावा जिला व मंडल के सांगठनिक चुनाव को लेकर भी नाराजगी जताई। यह बात भी उभरी कि इन चुनावों में कुछ जगह स्थानीय भाजपा विधायको की नहीं सुनी गई।

भाजपा विधायक अरविंद पांडे के विधायक हॉस्टल स्थित आवास में विधायक भरत चौधरी, भोपाल राम टम्टा, सविता कपूर, बिशन सिंह चुफाल, बृजभूषण गैरोला, दुर्गेश्वर लाल की मौजूदगी की खबर सामने आ रही है।

कुछ अन्य विधायको के बैठक के बाद पहुंचने की बात भी कही जा रही है। लेकिन इन नाम की पुष्टि नहीं हो सकी। अलबत्ता, लगभग एक दर्जन से अधिक विधायकों के किस्तों में अरविंद पांडेय के आवास में पहुंचने की चर्चा है। खास पहलु यह रहा कि, मंगलवार की बैठक में जल्द ही एक और बैठक करने का फैसला किया गया।

उल्लेखनीय है कि निकट भविष्य में धामी कैबिनेट का भी विस्तार होना है। पूर्व मंत्री अरविंद पांडे भी सम्भावित मंत्रियों की कतार में शामिल माने जा रहे हैं। आज की बैठक के मेजबान व सूत्रधार अरविंद पांडे को अभी तक धामी कैबिनेट का हिस्सा बनने का मौका नहीं मिला।

गौरतलब है कि इस बैठक से पहले सोमवार को मंत्री सतपाल महाराज और सुबोध उनियाल की मुलाकात भी सोशल मीडिया की सुर्खियां बनी थी।

अहिल्या स्मृति मैराथन – मुख्यमंत्री धामी ने युवाओं के साथ लगाई दौड़

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मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने बुधवार को यहां आयोजित “अहिल्या स्मृति मैराथन – एक विरासत, एक संकल्प” को हरी झंडी दिखाकर रवाना किया। सीएम ने स्वयं भी युवाओं के साथ दौड़ में शामिल होकर प्रतिभागियों का उत्साह बढ़ाया।

मुख्यमंत्री ने कहा कि इस तरह के आयोजन समाज में एकता और जागरूकता का संचार करते हैं तथा स्वस्थ समाज के निर्माण में योगदान देते हैं। उन्होंने युवाओं से नियमित रूप से खेल-कूद और शारीरिक गतिविधियों में भाग लेने की अपील की।

इस अवसर पर भाजपा प्रदेश अध्यक्ष महेंद्र भट्ट, महामंत्री (संगठन) अजेय कुमार, मेयर सौरभ थपलियाल, महानगर अध्यक्ष सिद्धार्थ अग्रवाल, विधायक भरत चौधरी, दायित्वधारी अनिल डब्बू, श्याम अग्रवाल, हेम बजरंगी, भाजपा युवा मोर्चा महानगर अध्यक्ष देवेंद्र सिंह बिष्ट सहित अनेक जनप्रतिनिधि और कार्यकर्ता मौजूद रहे।

Chardham Yatra: तीर्थयात्रियों की सुरक्षा के लिए व्यापक इंतजाम, दस स्थानों पर तैनात रहेगा आतंकवाद निरोधक दस्ता.

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तीर्थयात्रियों की सुरक्षा के लिए व्यापक इंतजाम किए गए हैं। चप्पे-चप्पे पर आतंकवाद निरोधक दस्ता, अर्धसैनिक बल और पुलिस के जवानों की नजर रहेगी। यात्रियों की सुरक्षा के लिए 10 कंपनी पैरामिलिट्री, 17 कंपनी पीएसी के साथ ही 10 स्थानों पर आतंकवाद निरोधक दस्ता तैनात रहेगा। 65 स्थानों पर एसडीआरएफ की टीमें तैनात रहेंगी।

ट्रांजिट कैंप में सुबह 11 बजे डीजीपी दीपम सेठ ने मीडिया को चारधाम यात्रा को लेकर जानकारी दी। डीजीपी ने कहा कि 30 अप्रैल को गंगोत्री और यमुनोत्री के कपाट खुल रहे हैं। पिछले साल के अनुभव को ध्यान में रखते हुए इस बार उन पर काम किया गया है।

इस बार जनपद स्तर पर पुलिस मुख्यालयों में चारधाम यात्रा सेल का गठन किया गया है। साथ ही आईजी गढ़वाल के कार्यालय में चारधाम यात्रा का कंट्रोल रूम बनाया गया है। यातायात व्यवस्था को सुगम बनाने के लिए कार्ययोजना तैयार की गई है। जम्मू कश्मीर के पहलगाम की घटना के बाद यात्रा को सुरक्षित करने के लिए उसी दिन से उस पर काम किया गया।

आपदा से निपटने के लिए 65 स्थानों पर एसडीआरएफ की टीमें तैनात-

यात्रियों की सुरक्षा के लिए केंद्र सरकार की ओर से 10 कंपनी पैरामिलिट्री फोर्स उपलब्ध कराई जा रही है जो जल्द ही मिल जाएंगी। वहीं पीएसी की 17 कंपनी और छह हजार पुलिसकर्मियों की ड्यूटी चारधाम यात्रा में लगाई गई है। पूरे यात्रा रूट को ड्रोन से कवर किया जाएगा। 2000 सीसीटीवी कैमरे के माध्यम से यात्रा रूट पर सुरक्षा और यातायात की निगरानी की जाएगी। अलग-अलग क्षेत्रों से कंट्रोल रूम में फीड आ रहा है।

आपदा से निपटने के लिए 65 स्थानों पर एसडीआरएफ की टीमें तैनात की जाएंगी। इसके अलावा आतंकवाद निरोधक दस्ते को 10 स्थानों पर तैनात किया जाएगा। जो स्वचालित हथियारों से लैस रहेंगे।
पूरे यात्रा को 15 सुपर जोन और अन्य सेक्टर में बांटा गया है। यातायात को लेकर 156 पार्किंग स्थल और 56 होल्डिंग एरिया विकसित किए गए हैं।

चारधाम यात्रियों को सोशल मीडिया के माध्यम से जानकारी दी जाएगी। सोशल मीडिया पर गलत और भ्रामक जानकारी देने वालों के खिलाफ कार्रवाई की जाएगी। पहलगाम की घटना के बाद पूरे राज्य में रेड अलर्ट है। पुलिस किसी भी हालत से निपटने को तैयार है।

Uttarakhand: गंगोत्री और यमुनोत्री धाम के खुले कपाट, उमड़ी श्रद्धालुओं की भीड़; चारधाम यात्रा की हुई शुरुआत .

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विश्वा प्रसिद्ध गंगोत्री और यमुनोत्री धाम के कपाट अक्षय तृतीय के पावन पर्व पर श्रद्धालुओं दर्शन के लिए खोल दिए गए। अब निरंतर छह माह तक गंगोत्री धाम मां गंगा के दर्शन करेंगे। बुधवार सुबह 10 बजकर 30 मिनट के अभिजीत मुहूर्त पर श्रद्धालुओं के दर्शन के लिए गंगोत्री धाम के कपाट खोले गए। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नाम से पहली पूजा की गई।

कपाटोद्धघाटन के मौके पर समूचा गंगोत्री धाम मां गंगे के जयकारो से गूंज उठा। इस मौके पर मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने गंगोत्री धाम पहुंचकर मां गंगा के दर्शन किए। यमुनोत्री और गंगोत्री धाम के कपाट खुलते ही उत्तराखंड में चार धाम यात्रा श्री गणेश हो गया है।

 

बुधवार को कपाट खुलने के मौके पर मां गंगा के दर्शन के लिए देश के विभिन्न प्रांतो से श्रद्धालु गंगोत्री धाम पहुंचे। यहां श्रद्धालु ने मां गंगा की विग्रह मूर्ति के  दर्शन कर पुण्य लाभ अर्जित किया। इस मौके पर गंगोत्री मंदिर परिसर को करीब 15 कुंटल फूलों से सजाया गया। अब श्रद्धालु छह माह तक गंगोत्री धाम में मां गंगा की दर्शन कर सकेंगे।

दस स्थानों पर तैनात रहेगा आतंकवाद निरोधक दस्ता-

तीर्थयात्रियों की सुरक्षा के लिए व्यापक इंतजाम किए गए हैं। चप्पे-चप्पे पर आतंकवाद निरोधक दस्ता, अर्धसैनिक बल और पुलिस के जवानों की नजर रहेगी। यात्रियों की सुरक्षा के लिए 10 कंपनी पैरामिलिट्री, 17 कंपनी पीएसी के साथ ही 10 स्थानों पर आतंकवाद निरोधक दस्ता तैनात रहेगा। 65 स्थानों पर एसडीआरएफ की टीमें तैनात रहेंगी। यात्रियों की सुरक्षा के लिए केंद्र सरकार की ओर से 10 कंपनी पैरामिलिट्री फोर्स उपलब्ध कराई जा रही है जो जल्द ही मिल जाएंगी। वहीं पीएसी की 17 कंपनी और छह हजार पुलिसकर्मियों की ड्यूटी चारधाम यात्रा में लगाई गई है। पूरे यात्रा रूट को ड्रोन से कवर किया जाएगा। 2000 सीसीटीवी कैमरे के माध्यम से यात्रा रूट पर सुरक्षा और यातायात की निगरानी की जाएगी। अलग-अलग क्षेत्रों से कंट्रोल रूम में फीड आ रहा है।

Badrinath Temple: श्रद्धालुओं को इस बार बदला नजर आएगा धाम, जानिए कैसी है धाम की नई तस्वीर, क्या हैं आकर्षण के केंद्र.

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इस बार बदरीनाथ धाम की तीर्थयात्रा पर आने वाले श्रद्धालुओं को बदरीनाथ मंदिर खुला-खुला नजर आएगा। बदरीनाथ धाम भी बदला दिखने लगा है। बदरीनाथ महायोजना मास्टर प्लान के तहत धाम में युद्धस्तर पर निर्माण और भवनों के ध्वस्तीकरण का काम चल रहा है। बदरीनाथ बाजार क्षेत्र में भी जगह-जगह निर्माण कार्य चल रहे हैं। जिससे धाम की तस्वीर एकदम बदली हुई है।

धाम में मास्टर प्लान के दूसरे चरण के कार्य चल रहे हैं। अराइवल प्लाजा का निर्माण अंतिम चरण में पहुंच गया है। इस पर नक्काशीदार पत्थर और लकड़ी लगाकर आकर्षक रूप दिया जा रहा है। बदरीश झील और शेषनेत्र झील के किनारे आकर्षक पत्थर बिछाए गए हैं और आकर्षक लाइट लगा दी गई है।

बदरीनाथ मंदिर के करीब 75 मीटर हिस्से में भवनों का ध्वस्तीकरण कार्य भी तेजी से चल रहा है। दूर से ही मंदिर खाली-खाली नजर आ रहा है। दर्शनों की लाइन के दोनों ओर के सभी भवनों को ध्वस्त कर दिया गया है। बदरीनाथ के शुरुआत देव दर्शनी में तीर्थयात्रियों के लिए व्यू प्वाइंट बनाया जा रहा है।

प्राकृतिक सौंदर्य को निहार सकेंगे-

यहां से यात्री दूर से ही बदरीनाथ मंदिर और यहां के प्राकृतिक सौंदर्य को निहार सकेंगे। यहां एक विशाल गेट भी बनाया जा रहा है। लोनिवि पीआईयू के अधिशासी अभियंता योगेश मनराल ने बताया कि मास्टर प्लान के कार्य तेजी से किए जा रहे हैं। बरसात से पहले अधिकांश काम पूर्ण कर लिए जाएंगे।

 

बदरीनाथ क्षेत्र में अलकनंदा के दोनों ओर से रिवर फ्रंट का काम भी तेजी से चल रहा है। कार्यदायी संस्था लोक निर्माण विभाग पीआईयू बरसात से पहले यहां अधिक से अधिक कार्यों को पूरा करने पर जोर दे रही है। इसके लिए यहां करीब 400 मजदूर लगाए गए हैं।

रिवर फ्रंट के कार्यों से अलकनंदा अस्त-व्यस्त नजर आ रही है। नदी में जगह-जगह मलबे के ढेर पड़े हैं। मलबे के कारण नदी का रुख गांधी घाट और ब्रह्मकपाल की ओर ओर हो गया है। यदि मलबे का जल्द निस्तारण नहीं किया गया तो बरसात में नदी का पानी ब्रह्मकपाल से तप्तकुंड तक घुस जाएगा।