Uttarakhand Nikay Chunav: नई सूची बनी, 5 लाख मतदाता जुड़े फिर भी वोट देने से वंचित हुए हजारों मतदाता.

Uttarakhand Nikay Chunav: नई सूची बनी, 5 लाख मतदाता जुड़े फिर भी वोट देने से वंचित हुए हजारों मतदाता.

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उत्तराखंड के निकाय चुनाव में मतदाताओं की संख्या पांच लाख बढ़ गई। इसके बावजूद हजारों लोग नाम कटने की वजह से मताधिकार से वंचित रह गए। आयोग हर पांच साल में नई मतदाता सूची बनाता है। बावजूद इसके इतने नाम छूटने पर सवाल खड़े हो रहे हैं।

राज्य में निकायों और विधानसभा-लोकसभा की मतदाता सूची अलग-अलग होती है। भारत निर्वाचन आयोग विधानसभा, लोकसभा की सूची बनाता है, जो कि सालभर अपडेट की जाती है। इसके उलट राज्य निर्वाचन आयोग नगर निगम, नगर पालिका, नगर पंचायतों की मतदाता सूची तैयार करता है, जो कि हर पांच साल में नए सिरे से बनाई जाती है। पिछले चुनाव में 84 निकायों में करीब 25 लाख मतदाता थे। इस बार नई सूची में 100 निकायों में 30 लाख से अधिक मतदाता हैं। यह सूची अब अपडेट नहीं होगी। पांच साल के बाद नए सिरे से नई सूची बनेगी।

सवाल उठ रहे हैं कि करीब पांच लाख मतदाता बढ़ने के बावजूद बड़ी संख्या में मतदाताओं के नाम वोटर लिस्ट से गायब हो गए। इसके पीछे कई कारण माने जा रहे हैं। एक तो राज्य निर्वाचन आयोग का पैटर्न व इंफ्रास्ट्रक्चर भारत निर्वाचन आयोग से कमतर है। यहां वार्डों के हिसाब से बीएलओ होते हैं जबकि भारत निर्वाचन आयोग के बूथवार बीएलओ होते हैं। इस कारण इतने बड़े वार्डों तक पहुंच बनाने में परेशानी होती है। दूसरा, निकायों की वोटर लिस्ट बनाते समय भारत निर्वाचन आयोग की वोटर लिस्ट को आधार नहीं बनाया जाता।

कई बार कवायद हुई लेकिन परवान न चढ़ी-

प्रदेश में कई बार भारत और राज्य निर्वाचन की एक जैसी मतदाता सूची बनाने की कवायद हुई लेकिन परवान नहीं चढ़ पाई। एक पूर्व अधिकारी ने बताया कि राज्य निर्वाचन आयोग ने आदेश जारी किया था कि वोटर लिस्ट बनाते समय भारत निर्वाचन आयोग की वोटर लिस्ट को भी आधार बनाया जाए लेकिन ऐसा न हो पाया। एक बार राज्य निर्वाचन आयोग ने भारत निर्वाचन आयोग को वोटर लिस्ट बनाने का प्रस्ताव भेजा था लेकिन भारत निर्वाचन आयोग ने शर्त लगाई थी कि पांच साल में कोई नया निकाय या वार्ड न बने। यह राज्य के स्तर पर संभव नहीं है। दिल्ली, हरियाणा समेत कुछ राज्यों में भारत निर्वाचन आयोग के डाटा को आधार बनाकर वोटर लिस्ट तैयार हुई है लेकिन उसके नतीजे बहुत बेहतर नहीं हैं। आपको बता दें कि इससे पहले विधि आयोग ने वर्ष 2015 में अपनी 255वीं रिपोर्ट में इसकी सिफारिश की थी। भारत निर्वाचन आयोग ने भी वर्ष 1999 और वर्ष 2004 में इस पर विचार किया था।

एक देश, एक चुनाव से हो सकता है समाधान-

प्रधानमंत्री कार्यालय ने बीते दिनों पंचायत, नगरपालिका, राज्य विधानसभा और लोकसभा के चुनावों के लिए एक आम मतदाता सूची की संभावना पर चर्चा के लिए भारत निर्वाचन आयोग और विधि एवं न्याय मंत्रालय के प्रतिनिधियों के साथ बैठक की थी। एक देश एक चुनाव के कांसेप्ट के तहत एक समान मतदाता सूची बनाने का काम हो सकता है। हालांकि, अभी इस पर कोई निर्णय नहीं हुआ है।

मतदाता सूची में कई के नाम न होने की शिकायत संज्ञान में है। भविष्य में और बेहतर तरीके से इस दिशा में काम होगा।
– सुशील कुमार, आयुक्त, राज्य निर्वाचन आयोग

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