Author: Manisha Rana

नीतीश का जातीय वार, सवर्णो पर कड़ा प्रहार, इसी चुनाव में निपट जाएंगी ये पार्टियां !

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नीतीश कुमार की सरकार ने जिस तरह जातिगत गणना के आंकड़े पेश किये उसे कई लोग मास्टर स्ट्रोक बता रहे हैं और 2024 की लड़ाई से पहले बीजेपी को होता ये बड़ा नुकसान माना जा रहा है. राजनीतिक जानकारों का मानना है कि इस गणना के सामने आने के बाद बीजेपी का हिंदुत्व का मुद्दा हाशिए पर चला जायेगा और 2024 की लड़ाई जातीय आधार पर लड़ी जाएगी,, तो क्या सच में इस गणना के बाद भाजपा को नुकसान और इंडिया गठबंधन को फायदा होगा ?

क्या कहते हैं जातिगत आंकड़े-

बिहार में जातिगत सर्वे के आंकड़े सामने आने के बाद पूरे देश में इसको लेकर बहस जारी है. जहां एक ओर राजनीतिक उठापटक देखने को मिल रही है वहीं आने वाले चुनावों में भी इसका खासा असर देखा जा सकता है. गांधी जयंती पर जारी किए गए आंकड़ों के अनुसार बिहार में पिछड़ा वर्ग 27.12%, अति पिछड़ा वर्ग 36.12%,  मुसलमान 17.52%,  अनुसूचित जाति 19% और अनुसूचित जनजाति 1.68% हैं. इस संख्या के आधार पर ये अनुमान लगाया जा रहा है कि आंकड़ों के सामने आने के बाद पिछड़ों की राजनीति करने वाले नेताओं को तो आने वाले चुनाव में फायदा मिल ही सकता है लेकिन दूसरी पार्टियों को इसका नुकसान भी उठाना पड़ सकता है. साथ ही इस सर्वे के जारी होने के बाद देश की राजनीति ‘धर्म बनाम राजनीति’ के दो धड़ों में विभाजित हो गई है. साथ ही राजनीतिक आकलन करने वाले आम लोग ये अंदाजा लगाने में जुट गए हैं कि इन आंकड़ों के सामने आने के बाद इसका चुनावी फायदा किसे मिलने वाला है, इंडिया गठबंधन को या एनडीए को.

1990 के बाद बिहार में दलित-पिछड़ों की ही सरकार-

बिहार में आरक्षण और जाति का सवाल बड़ा ही संवेदनशील मुद्दा रहा है. यह इस बात से समझा जा सकता है कि साल 2015 के बिहार विधानसभा चुनाव में कैसे RSS प्रमुख मोहन भागवत के आरक्षण की समीक्षा किए जाने के एक बयान पर पूरी चुनावी फिजा ही बदल गई थी. बिहार में 1990 के बाद से लगातार दलित-पिछड़ों की ही सरकार बनती आ रही है. बीच-बीच में बीजेपी भी सत्ता में आई लेकिन वो भी जनता दल यूनाइटेड के गठबंधन के साथ. आज भी बिहार में अकेले अपने दम पर बीजेपी के सत्ता में आने की उम्मीदें कम ही दिखती हैं. कांग्रेस के कमजोर पड़ते ही सवर्ण और वैश्य वोटर बीजेपी के साथ चला गया, जिसे इस पार्टी का कोर वोटर कहा जाता है. ओबीसी जातियों को भी बीजेपी तोड़ने में सफल रही. बीजेपी ने इन वोटर्स में सेंधमारी के लिए उपेंद्र कुशवाहा, मुकेश साहनी, चिराग पासवान, नित्यानंद राय, रामकृपाल यादव, जीतन राम मांझी जैसे दलित-पिछड़ी जाति के नेताओं को अपनी पार्टी से जोड़ा. हालांकि पिछले चुनाव के मुकाबले अब माहौल बदल गया है.

बिहार में जातीय सर्वे को अगड़ा बनाम पिछड़ा के बीच एक सियासी जंग के रूप में भी देखा जा रहा है. हालांकि ये सियासी जंग पिछड़ी और अति पिछड़ी जातियों के बीच भी हो सकती है. पिछले कुछ समय में बिहार में पिछड़ा वर्ग की अगुवाई में यादव पिछड़ों के नेता बनकर उभरे हैं. आरजेडी का राजनीतिक आधार यादव-मुस्लिम समीकरण रहा है. शुरूआती दौर में ‘अत्यंत पिछड़ी जातियां’ और दलित समुदाय मजबूती के साथ लालू यादव के साथ जुड़ा था, लेकिन इनमें से बहुत सारी जातियां खिसक कर बीजेपी के साथ चली गईं. इसका एक बहुत बड़ा कारण यादव जाति के लोगों का दलित-पिछड़ी जातियों पर बढ़ता जातीय वर्चस्व रहा है. ‘लव-कुश’ यानी कुर्मी-कुशवाहा पर नीतीश कुमार का दावा मजबूत रहा है, लेकिन पिछले चुनाव में धर्म की राजनीति करने वाली बीजेपी का इस समाज ने साथ दिया. हालांकि अब जब अति पिछड़ा वर्ग बिहार में ज्यादा है ऐसे में यदि ईसीटी गोलबंद होता है तो सवर्ण, ओबीसी वोट बैंक को साधने वाली पार्टियों को नुकसान हो सकता है.

209 जातियों का आंकड़ा हुआ जारी-

बिहार में पिछड़ों की राजनीति करने वाली सरकार ने बिहार की कुल 209 जातियों का डेटा जारी किया है. इससे पहले, इन जातियों के आंकड़ों का अनुमान 1931 में हुई आखिरी जाति जनगणना में किया गया था. अब उपलब्ध जाति समूहों के नए आंकड़ों के साथ, राजनीतिक दलों से उन समुदायों को लुभाने और उन्हें साधने के अपने प्रयासों को और तेज करने की उम्मीद है जो उनका बड़ा वोट बैंक बन सकते हैं. राजनीतिक विश्लेषक नवल किशोर चौधरी ने द वायर से हुई बातचीत में बताया कि, ”जाति जनगणना इसलिए कराई गई है ताकि पिछड़ी जातियों को एकजुट किया जा सके. अब इन आंकड़ों के आधार पर अलग-अलग जातियों का प्रतिनिधित्व करने वाली पार्टियां आरक्षण की मांग करेंगी. जाति गणना पूरी तरह से एक राजनीतिक कदम है.”

कितनी है मुसलमानों की आबादी-

ओबीसी समूह और ईबीसी समूह की कुल जनसंख्या 63% है, जो चुनाव की दृष्टि से काफी जरूरी है. ओबीसी में भी 14.26 प्रतिशत आबादी के साथ यादव आगे हैं. वहीं, मुसलमानों की आबादी लगभग 17.70% है. कुल मिलाकर ये आंकड़ा 31 प्रतिशत सामने आता है और दोनों ही राजद के कोर वोट बैंक माने जाते हैं, इसलिए चुनावी तौर पर राजद मजबूत स्थिति में नजर आ रही है. इसके अलावा ईबीसी जातियों के वोट छोटे-छोटे राजनीतिक दलों में बिखरे हुए हैं, इसलिए राजनीतिक दल अब इन्हें गोलबंद करने की कोशिशों में भी जुट जाएंगे. पहले नाई जाति की आबादी तय नहीं थी, लेकिन जनगणना से पता चला है कि उनकी आबादी 1.56% है. इसी तरह, दुसाध, धारी और धाराही जातियों का कोई अनुमानित आंकड़ा नहीं था, लेकिन वर्तमान आंकड़ों से पता चला कि उनकी आबादी 5.31% है जबकि चमार जाति की आबादी 5.25% है. ऐसे में अब इन जातियों के आंकड़े सामने आने के बाद आगामी चुनावों में ये भी सीटों को लेकर मोलभाव कर सकते हैं.

क्यों दोधारी तलवार बन गया है बिहार में जातीय सर्वे?

इन आंकड़ों का यदि विश्लेषण किया जाए तो 36 फीसदी यानी सबसे ज्यादा आबादी अत्यंत पिछड़ों की है, जिनमें लगभग 100 से अधिक जातियां आती हैं. इनमें से बहुत सारी जातियां ऐसी हैं, जिनका न तो किसी पार्टी के संगठनों में और न विधानसभा या विधान परिषद में प्रतिनिधित्व है. सबसे ज्यादा जातीय सर्वे कराने वाली पार्टियों के लिए ही आगामी चुनाव लिटमस टेस्ट की तरह साबित हो सकता है. जिसमें आरजेडी और जनता दल यूनाइटेड का टिकट बंटवारा सभी जाति और कोटी को ध्यान में रखकर करना होगा. बिहार में लोकसभा की 40 सीटें हैं. वहीं अत्यंत पिछड़ी जातियों की संख्या 36 प्रतिशत है. 40 सीटों पर 36 फीसदी का अनुमान लगाया जाए तो वो लगभग 14 होता है. ऐसे में क्या इंडिया गठबंधन लोकसभा चुनाव में अत्यंत पिछड़ी जातियों को 14 सीटें दे पाएगा? इसी अनुसार बिहार में यादवों की जनसंख्या 14 प्रतिशत है. ऐसे में लोकसभा चुनाव में उनकी दावेदारी सिर्फ 5 या 6 सीटों की ही बनती है. वहीं ब्राह्मण, भूमिहार, राजपूत व कायस्थ की कुल आबादी 10.56 प्रतिशत है. ऐसे में बिहार की 40 लोकसभा सीटों पर सवर्णों की दावेदारी का आंकड़ा सिर्फ चार सीटों पर सिमट जाता है,  इसका साफ अर्थ ये है कि चार सवर्णों को ही लोकसभा चुनाव में टिकट मिलने की उम्मीद है.

क्या कहते हैं वरिष्ठ पत्रकार-

इस मुद्दे पर जब वरिष्ठ पत्रकार ओमप्रकाश अश्क ABP न्यूज़ को बताते हैं कि, “इसके तीन साइड इफेक्ट सामने आ रहे हैं. एक तो जिस तरह से जातियों का प्रतिनिधित्व दिखाया गया है उस हिसाब से जातीय नेतृत्व उभरेगा. संभव है कि जिन जातियों से अब तक कोई नेतृत्व नहीं है उनसे नई पार्टियां भी बन जाएं. जैसे मुसलमानों की आबादी बिहार में 17 प्रतिशत है तो तमाम जातियों पर ये भारी पड़ती है ऐसे में बिहार में उसी हिसाब से मंत्रिमंडल में हिस्सेदारी की मांग भी उठ सकती है.” उन्होंने आगे कहा, “क्योंकि अभी की स्थिति में देखें तो बिहार के मंत्रिमंडल में मुसलमानों की संख्या सबसे ज्यादा है. वहीं दूसरा खतरा ये है कि इसमें उन तत्वों को भी हाथ सेंकने का मौका मिल जाएगा जो धर्म के आधार पर समाज का विभाजन करना चाहते हैं. इसमें बीजेपी सबसे आगे है.”

आरजेडी और जनता दल यूनाइटेड की तुलना करते हुए ओमप्रकाश अश्क बताते हैं, “आरजेडी और जनता दल यूनाइटेड की अगर तुलना करें तो दोनों में आरजेडी की ताकत ज्यादा दिखती रही है. ये अलग बात है गठजोड़ के हिसाब से स्थितियां बदलती रहती हैं.” गोलबंदी पर अश्क बताते हैं, “इससे गैरबराबरी की भावना पनपेगी,  दलित और पिछड़े एक हो जाएं तो उनकी आबादी बहुत ज्यादा हो जाएगी और अति पिछड़ी जातियों की गोलबंदी भी दिख सकती है. हालांकि आम आदमी इस पर कुछ रिएक्ट नहीं कर रहा है उन्हें कुछ नफा नुकसान नहीं दिख रहा है. इसलिए लग रहा है जातीय गोलबंदी उस तरह से नहीं हो पाएगी जो पहले देखी जाती रही है, “ये एक सिर्फ सामाजिक टूल है जो आरजेडी ये बोलकर इस्तेमाल करेगी कि हमने वो करके दिखा दिया जो अब तक कोई नहीं कर पाया.”

अब  इस आंकड़े के सामने आने के बाद आकलन किया जा रहा है कि देश के कई राज्यों में अति पिछड़ा वर्ग की संख्या ज्यादा है ऐसे में अब राजनेताओं की नजर उन पर ज्यादा टिक सकती है. फिलहाल नीतीश का ये वार भाजपा के हिंदुत्व का तोड़ माना जा रहा है, भाजपा के सामने सबसे बड़ी समस्या ये है कि अब वो इस आंकड़े को नकार भी नहीं सकती,, क्योकि ऐसा करने पर विपक्ष को एक बड़ा हथियार मिल जाएगा,, ये भी हकीकत है कि अब जो भी पार्टी इन जातीय समीकरणों को देखते हुए तालमेल बढ़ाने में कामयाब होगी, वो 2024 में भी कामयाब हो सकती हैं और जो पार्टी इसमें चूक गयी तो वो निपट भी सकती है,, अब ये देखना दिलचस्प होगा कि आने वाले समय में ये जातीय समीकरण किस पार्टी को फायदा और किसको नुकसान पहुंचाते हैं, लेकिन फिलहाल नितीश का ये वार एक मास्टर स्ट्रोक के तौर पर ही देखा जा रहा है और जिसे समूचा विपक्ष खूब बढ़ा चढ़ा कर उठा रहा है.

महाराष्ट्र में फिर सियासी हलचल- अजित पवार नाराज, अमित शाह से मिले शिंदे, फडणवीस

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महाराष्ट्र की राजनीति में फिर भूचाल आने वाला है, महाराष्ट्र की राजनीति फिर करवट लेने वाली है,लेकिन इस बार किसी और की नहीं बल्कि खुद बीजेपी की मुश्किलें बढ़ गई है, हालत क्या हैं इसका अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि आनन-फानन में दिल्ली में महाराष्ट्र को लेकर तीन घंटे तक एक गहन मीटिंग चली, इस मीटिंग में अमित शाह, देवेंद्र फडणवीस और मुख़्यमंत्री एकनाथ शिंदे मौजूद रहे, लेकिन इस बैठक से उप मुख्यमंत्री अजित पवार गायब रहे, यही नहीं अजित पवार कैबिनेट की बैठक से भी गायब रहे.

महाराष्ट्र में सियासी बवाल-

सवाल तब उठने शुरू हुए जब अजित पवार कैबिनेट बैठक से तो गायब रहे लेकिन अपने समर्थकों और नेताओं के साथ उन्होंने एक सीक्रेट मीटिंग की उसके बाद से महाराष्ट्र में सियासी बवाल मचा हुआ है,कई सवाल उठ रहे हैं कि क्या अजित पवार एक बार फिर पलटी मारने वाले हैं, तो क्या एक बार फिर महाराष्ट्र सरकार खतरे में पड़ गयी है.

महाराष्ट्र में शिंदे-फडणवीस-पवार की ट्रिपल इंजन सरकार में खराबी की खबरें आ रही हैं। चर्चा है कि उप मुख्यमंत्री अजित पवार नाराज हैं। इन खबरों के बीच मंगलवार की शाम को इंजन में दुरुस्ती की गुहार लेकर मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे और उप मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस अचानक दिल्ली रवाना हो गए हैं। शिंदे-फडणवीस दिल्ली में बीजेपी अध्यक्ष जे.पी. नड्डा और केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह से मिले.

 

अजित पवार और शिंदे के बीच खींचतान-

 

सत्ता के गलियारों में यह चर्चा है कि मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे और अजित पवार के बीच पिछले कई दिनों से खींचतान चल रही है। अजित पवार बुधवार को मंत्रिमंडल की बैठक में भी नहीं गए। मंत्रिमंडल की बैठक के बाद मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने कहा कि अजित पवार की तबीयत ठीक नहीं है। हालांकि शिंदे और फडणवीस के दिल्ली रवाना होने के बाद अपने सरकारी बंगले ‘देवगिरी’ पर अपने मंत्रियों के साथ बैठक की। इससे पहले गणेश उत्सव के दौरान मुख्यमंत्री के सरकारी बंगले पर गणपति दर्शन के लिए अमित शाह, जे.पी. नड्डा समेत तमाम देसी-विदेशी लोग पहुंचे, लेकिन अजित पवार वहां नहीं गए थे।

गणेश उत्सव की समाप्ति पर पिछले शनिवार की रात को दोनों उप मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस और अजित पवार अचानक मुख्यमंत्री के बंगले पर पहुंचे। करीब डेढ़ घंटे तक तीनों के बीच बंद कमरे में बातचीत होती रही। पता चला कि तीनों ‘इंजनों’ की बैठक में कई मुद्दों पर बातचीत हुई.

 

प्रभारी मंत्रियों की नियुक्ति और विवाद –

बैठक में सबसे अहम मुद्दा जिलों के  प्रभारी मंत्रियों की नियुक्ति का था। जब से शिंदे सरकार अस्तित्व में आई है तब से ही  प्रभारी मंत्रियों की नियुक्ति नहीं हो पाई हैं। अपनी-अपनी मूल पार्टियों से बगावत कर सत्ता में शामिल हुए शिंदे-गुट और अजित गुट के मंत्रियों के बीच अपने-अपने जिलों का प्रभारी मंत्री बनने की होड़ मची है। खुद अजित पवार पुणे जिले का  प्रभारी मंत्री पद चाहते हैं। लेकिन इस पद पर पहले से ही बीजेपी के चंद्रकांत पाटील विराजमान हैं। ज्यादातर विवाद उन जिलों में है जहां एनसीपी और शिवसेना के बीच हमेशा से ही गलाकाट लड़ाई रही है।

शिंदे गुट शुरुआत से ही अजित पवार के सरकार में शामिल होने को लेकर नाखुश रहा है। अजित पवार सरकार में शामिल हुए और 9 मंत्री पद ले उड़े। शिंदे गुट को सत्ता की यह हिस्सेदारी रास नहीं आई। उन्हें लगता है कि उनका हिस्सा मारा गया है। अजीत गुट के सत्ता में आने के बाद मंत्रिमंडल विस्तार का इंतजार कर रहे विधायकों में भी असंतोष है।इस साल जुलाई में अजित पवार एनसीपी के 40 से अधिक विधायकों के साथ सरकार में शामिल हो गए थे, जिसके चलते एनसीपी दो गुटों (अजित पवार गुट) और (शरद पवार गुट) में विभाजित हो गई थी. इस बीच अजित पवार ने महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली.

 

क्या है दिल्ली दौरे का मकसद-



शिंदे-फडणवीस के दिल्ली दौरे का असली मकसद अगले कुछ दिनों में सुप्रीम कोर्ट से शिवसेना बनाम चुनाव आयोग के बीच चल रहे पार्टी के नाम और चुनाव चिन्ह शिंदे गुट को दिए जाने के खिलाफ दायर केस का फैसला आने की संभावना है। सुप्रीम कोर्ट ने अपने पहले फैसले में जो रुख दिखाया है, उसे देखते हुए आने वाला फैसला शिंदे गुट की मुश्किलें बढ़ा सकता है। इसको लेकर सरकार के भीतर एक तरह का डर है। शिंदे-फडणवीस के दिल्ली दौरे का असली मकसद यही हो सकता है।

इस घटना के बाद विपक्ष को टारगेट करने का मौका मिल गया और विपक्ष ने उनकी अनुपस्थिति को एक ‘राजनीतिक बीमारी’ बताया है, जो सरकार को हिला सकती है.एनसीपी सांसद सुप्रिया सुले ने कहा कि ‘ट्रिपल इंजन सरकार को सत्ता में आए अभी तीन महीने ही हुए है और मैंने सुना है कि एक गुट नाराज है.’ तीन महीने में अभी हनीमून खत्म नहीं हुआ और समस्याएं अभी से सामने आने लगी है. महज तीन महीने में ऐसी खबरें सामने आ रही है.

कुल मिलाकर महाराष्ट्र में राजनीतिक माहौल फिर गरमा गया है,लेकिन इस बार मुश्किल में भाजपा और शिंदे सरकार दिखाई दे रही है ये तो साफ़ है कि सब कुछ ठीक नहीं चल रहा, सवाल  उठ रहें है कि क्या अजीत एक बार फिर कोई नई चाल चल रहे हैं या फिर किसी बगावत की तैयारी महाराष्ट्र में चल रही है पर जैसे हालात अभी बने हुए हैं उससे अजीत की नाराजगी तो साफ़ दिखाई दे रही है. आगे अजीत क्या रुख अपनाएंगे इस पर सबकी नजर बनी रहेगी।

इस बार पता चलेगा वसुंधरा बीजेपी के लिए जरूरी या मजबूरी.

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राजस्थान में सियासी गर्मी इस कदर बढ़ी हुई हैं कि इसकी तपिश दिल्ली तक पहुंच रही है. जैसे कि आपको पता है कि बीजेपी जिस तरह से राजस्थान में कद्दावर नेत्री और दो बार की मुख़्यमंत्री वसुंधरा राजे को किनारे करने में लगी है उससे भाजपा में दो धड़े होते नजर आ रहे हैं. वसुंधरा जिस तरह से एक सख्त रुख अपनाये हुए है उससे राजस्थान में भाजपा मुश्किल में खड़ी दिखाई दे रही है. वसुंधरा और दिल्ली के रिश्तों में इस समय तल्खी साफ़ देखी जा सकती है.
क्या वसुंधरा राजस्थान में कोई बड़ा खेल करने की तैयारी में हैं ?
जब वसुंधरा राजे ने भरे मंच पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को नमस्कार किया तो मोदी जी बिना देखे चलते बने. अभी इससे पहले जयपुर रैली में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वसुंधरा से आँखे तक मिलाकर बात नहीं की और अब चित्तौड़गढ़ में तो इससे ज्यादा हो गया. खबरे यहां तक सामने आयी कि वसुंधरा नमस्कार करती रही और प्रधानमंत्री ने पलट कर तक नहीं देखा. जिसके वीडियो निकल कर सामने आये हैं खबरे भी इस पर बनी हैं,
वसुंधरा दिग्गज नेता हैं वो राजस्थान में अच्छी पकड़ रखती हैं, दो बार राजे मुख़्यमंत्री भी रह चुकी हैं, इस तरह बार-बार उनको अनदेखा करना अब राजस्थान चुनाव उनको भारी पड़ सकता है. क्योकि खबर निकलकर सामने आयी है कि प्रधानमंत्री की रैली खत्म होते ही वसुंधरा ने शक्ति प्रदर्शन करके आलाकमान को अपनी ताकत दिखाई है,, इतना ही नहीं इस दौरान कांग्रेस के विधायक भी वसुंधरा के पैर छूते दिखाई दिए.
एक खबर में दिखाया गया है कि किस तरह प्रधानमंत्री और वसुंधरा के बीच दूरी है जो मंच पर भी दिखाई दे रही है. इस तरह से वसुंधरा को नकारना क्या उनका अपमान नहीं है, ऐसे में क्या वसुंधरा अपना अपमान सहन करेंगी और कोई बगावत करेगी, लेकिन वसुंधरा और आलाकमान के बीच की दूरी अब खुल कर सामने दिखाई दे रही है और प्रधानमंत्री की रैली के बाद वसुंधरा का शक्ति प्रदर्शन बताता है कि वसुंधरा आर-पार के मूड में हैं और वो कर्नाटक के येदियुरप्पा नहीं बनना चाहती.
राजस्थान में ये नारे क्यों- 
पीएम मोदी ने राजस्थान की एक रैली में कहा कि राजस्थान में सिर्फ कमल निशान चेहरा है और आप उसे वोट करें. कमल निशान मतलब साफ़ है कि मोदी के चेहरे पर ही राजस्थान में चुनाव लड़ा जायेगा. लेकिन रैली खत्म होते ही वसुंधरा पहुंची बाड़मेर और वहां उन्होने शक्ति प्रदर्शन कर अपना जवाब दे दिया.
अब राजस्थान में ये नारे लग रहे हैं ”वसुंधरा राजे कमल निशान, मांग रहा है राजस्थान” तो आप समझे वसुंधरा ने आलाकमान को साफ़ कर दिया है की राजस्थान में क्या चलेगा.  इसके बाद एक सभा में महिलाओं के साथ बीच में बैठी वसुंधरा कुछ मीटिंग कर रही थी कि तभी वहां कांग्रेस विधायक  पहुंच जाते हैं और उनके पैर छूकर उनका आशीर्वाद लेते. इसके बाद अटकलों का बाजार गर्म हो जाता है.
क्या वसुंधरा बगावत करने वाली हैं ?
जो वसुंधरा राजे के पैर छू रहे हैं वो कोई और नहीं कांग्रेस के विधायक हैं मेवाराम जैन. जहां एक तरफ भाजपा में वसुंधरा को तवज्जो नहीं दी जा रही है वहीं कांग्रेस ने वसुंधरा को ऐसा सम्मान देकर तगड़ा दावं खेला है, एक तरफ इस सभा से भाजपा के पदाधिकारी गायब रहे तो दूसरी तरफ यहां कांग्रेस विधायक पहुंच जाते हैं. अब इस सब का क्या मतलब निकलता है,, क्या वसुंधरा राजस्थान में कोई बड़ा खेल करने की तैयारी में हैं,, या फिर कुछ और ही रणनीति चलाई जा रही है,, कुल मिलाकर जो भी हो भाजपा के लिए वसुंधरा को राजस्थान से हटाना कोई आसान नहीं है और वसुंधरा भी इसको लेकर रुख साफ़ कर चुकी हैं कि वो राजस्थान छोड़कर कहीं नहीं जाने वाली.

दिल्ली-NCR समेत देश के कई राज्यों में आए तेज भूकंप के झटके, नेपाल से आईं तबाही की तस्वीरें.

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दिल्ली-एनसीआर में भूकंप के तेज झटके महसूस किए गए। मंगलवार यानी आज दोपहर को 2 बजकर 51 मिनट पर आए भूकंप के झटकों के बाद दहशत में लोग दफ्तर और घरों से बाहर निकल गए और खुले मैदानों में आ गए। नेशनल सेंटर फॉर सिस्मोलॉजी के मुताबिक, भूकंप की तीव्रता 6.2 मापी गई। जिसका केंद्र नेपाल के दिपायल से 38 किलोमीटर दूर जमीन के अंदर 5 किलोमीटर गहराई में था। झटके यूपी-दिल्ली समेत कई अन्य राज्यों में भी महसूस किए गए।

 

इससे पहले दोपहर दो बजकर 25 मिनट पर भी भूकंप के झटके महसूस हुए थे। इसका केंद्र भी नेपाल था। उस वक्त इसकी तीव्रता 4.6 मापी गई थी। इसके झटके उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश के कुछ हिस्सों में महसूस किए गए थे। अचानक ही धरती कांपने से लोग दहशत में आ गए। भूकंप के तीव्रता इतनी तेज थी की दिल्ली-एनसीआर, उत्तराखंड के आलाव नेपाल में भी भूकंप के झटके महसूस किए गए.

देश में आज 4 बार लगे तेज भूकंप के झटके- 

भूकंप की जानकारी देने वाले नेशनल सेंटर फॉर सिस्मोलॉजी के मुताबिक भूकंप के झटके पहली बार सुबह 11 बजकर 6 मिनट पर महसूस किए गए जिसकी तीव्रता रिक्टर स्केल पर 2.7 मापी गई. इस भूकंप का केंद्र हरियाणा के सोनीपत में था.  इसके बाद दूसरा भूकंप 1 बजकर 18 मिनट पर महसूस किया गया.  इसकी तीव्रता 3.1 मापी गई  इसका केंद्र भारत के असम का कार्बी अंगलोंग था. वही तीसरा भूकंप 2 बजकर 25 मिनट और चौथा भूकंप 2 बजकर 51 मिनट पर महसूस किया गया. तीसरे भूकंप की तीव्रता 4.6 तो वहीं चौथा भूकंप सबसे खतरनाथ था जिसकी तीव्रता 6.2 मापी गयी दोनो ही भूकंप का केंद्र नेपाल रहा.  उत्तर भारत के कई राज्यों में भूकंप के झटके महसूस किए गए। दिल्ली के अलावा गाजियाबाद, नोएडा और फरीदाबाद में भी भूकंप के झटके महसूस किए गए।

                                                              नेपाल में भूकंप के झटके- फोटो
नोएडा में आए भूकंप के तेज झटकों के बाद कई सोसायटी में लोग बाहर निकल आए। भूकंप आने के बाद सोसाइटी के बाहर निकले लोगों में दहशत का माहौल नजर आया। नोएडा के सेक्टर 73 की सोसायटी में लोग बाहर निकल आए।
दिल्ली एनसीआर में भूकंप के झटके इतने तेज थे कि सोसायटी में रह रहे लोग अपने बच्चों को लेकर बाहर परिसर में आ गए।
आखिर क्यों आता है भूकंप?

पृथ्वी के अंदर 7 प्लेट्स हैं, जो लगातार घूमती रहती हैं। जहां ये प्लेट्स ज्यादा टकराती हैं, वह जोन फॉल्ट लाइन कहलाता है। बार-बार टकराने से प्लेट्स के कोने मुड़ते हैं। जब ज्यादा दबाव बनता है तो प्लेट्स टूटने लगती हैं। नीचे की ऊर्जा बाहर आने का रास्ता खोजती हैं और डिस्टर्बेंस के बाद भूकंप आता है।

जाने भूकंप के केंद्र और तीव्रता का क्या है मतलब?

भूकंप का केंद्र उस स्थान को कहते हैं जिसके ठीक नीचे प्लेटों में हलचल से भूगर्भीय ऊर्जा निकलती है। इस स्थान पर भूकंप का कंपन ज्यादा होता है। कंपन की आवृत्ति ज्यों-ज्यों दूर होती जाती हैं, इसका प्रभाव कम होता जाता है। फिर भी यदि रिक्टर स्केल पर 7 या इससे अधिक की तीव्रता वाला भूकंप है तो आसपास के 40 किमी के दायरे में झटका तेज होता है। लेकिन यह इस बात पर भी निर्भर करता है कि भूकंपीय आवृत्ति ऊपर की तरफ है या दायरे में। यदि कंपन की आवृत्ति ऊपर को है तो कम क्षेत्र प्रभावित होगा।

कैसे मापी जाती है भूकंप की तीव्रता और क्या है मापने का पैमाना?

भूकंप की जांच रिक्टर स्केल से होती है। इसे रिक्टर मैग्नीट्यूड टेस्ट स्केल कहा जाता है। रिक्टर स्केल पर भूकंप को 1 से 9 तक के आधार पर मापा जाता है। भूकंप को इसके केंद्र यानी एपीसेंटर से मापा जाता है। भूकंप के दौरान धरती के भीतर से जो ऊर्जा निकलती है, उसकी तीव्रता को इससे मापा जाता है। इसी तीव्रता से भूकंप के झटके की भयावहता का अंदाजा होता है।

नीतीश कुमार का मास्टरस्ट्रोक, बिहार में जातिगत जनगणना के आंकड़े जारी,

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बिहार की नीतीश सरकार ने जाति गणना के आंकड़े किए जारी.
 

बिहार की नीतीश कुमार सरकार ने जाति गणना के आंकड़े जारी कर दिए हैं. आंकड़ों के मुताबिक बिहार में सबसे ज्यादा 36 फीसदी अति पिछड़ा वर्ग, 27 फीसदी पिछड़ा वर्ग, 19 फीसदी से ज्यादा अनुसूचित जाति, 15.52 फीसदी सवर्ण अनारक्षित वर्ग, और 1.68 फीसदी अनुसूचित जनजाति की जनसंख्या है.. 

 

 

आज मुख्य सचिव समेत अन्य अधिकारियों ने इसकी रिपोर्ट जारी की. बिहार सरकार की ओर से विकास आयुक्त विवेक सिंह ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा कि बिहार सरकार ने जातीय जनगणना का काम पूरा कर लिया है.  बिहार सरकार ने राज्य में जातिगत जनसंख्या 13 करोड़ से ज्यादा बताई है. अधिकारियों के मुताबिक जाति आधारित गणना में कुल आबादी 13 करोड़ 7 लाख 25 हजार 310 है.

2024 के आम चुनाव से पहले भाजपा को घेरने की कोशिश-

रिपोर्ट के मुताबिक अत्यंत पिछड़ा वर्ग की आबादी 36 फीसदी है और पिछड़ा वर्ग की संख्या 27 परसेंट है, साफ है की सबसे बड़े सामाजिक समूह ओबीसी वर्ग का है जिनकी संख्या 63 फीसदी है, इस रिपोर्ट के जारी होने के बाद नीतीश कुमार और लालू यादव की पार्टी आरजेडी दोनों ही मिलकर इसका श्रेय ले रहे हैं वहीं भाजपा भी समर्थन की बात करके ओबीसी को सबसे ज्यादा महत्व देने वाली पार्टी का दावा कर रही है साफ है कि 2024 के आम चुनाव से पहले ओबीसी पॉलिटिक्स केंद्रीय भूमिका में आ गई है.

साफ है की ओबीसी की राजनीति को बिहार से आए 63 के आंकड़े से ताकत मिलने वाली है राजनीतिक विश्लेषक संजय कुमार इस रिपोर्ट को लेकर कहते हैं यह आंकड़े हैरान करने वाले नहीं है पहले ही बिहार को लेकर ऐसा ही अनुमान रहा है लेकिन अब सरकारी आंकड़ा है तो तस्वीर ज्यादा साफ है इस रिपोर्ट के बाद नीतीश कुमार और लालू यादव जैसे नेता यह प्रचार करेंगे कि ओबीसी की आबादी 60% से ज्यादा है जबकि आरक्षण 27 फीसदी मिलता है इसे बढ़ाना चाहिए और सरकार अन्याय कर रही है इस तरह भाजपा को ओबीसी पर घेरने की कोशिश होगी एक तरफ से 2024 से पहले विपक्ष को एक हथियार मिल गया है.

 

बिहार में किस धर्म के कितने लोग? 

 

आबादी के अनुसार आरक्षण की मांग उठने लगी-

इसका अर्थ हुआ कि आने वाले दिनों में आबादी के मुताबिक आरक्षण की डिमांड तेज हो सकती है जेडीयू के सीनियर नेता केसी त्यागी ने तो नीतीश कुमार की तुलना कर्पूरी ठाकुर और वीपी सिंह से कर दी है उन्होंने कहा कि यह मंडल पार्ट 2 है और पिछड़ों को नीतीश कुमार न्याय दिला रहे हैं वहीं जीतन राम मांझी ने तो आंकड़े आते ही नौकरियों में आबादी के अनुसार आरक्षण की मांग रख दी. लालू यादव, नीतीश कुमार, अखिलेश यादव जैसे नेता लगातार यह मांग दोहराते रहे हैं अखिलेश यादव भी यूपी में जाति गणना की मांग करते रहे हैं.


बिहार से आई रिपोर्ट का उत्तर प्रदेश पर भी होगा असर ?

अब बिहार में आई रिपोर्ट के बाद वह इस पर और मुखर हो सकते हैं यही नहीं 2022 के उप चुनाव में तो स्वामी प्रसाद मौर्य जैसे नेताओं के जरिए उन्होंने 15 बनाम 85 का नारा दे ही दिया अब एक बार फिर से 2024 में यूपी बिहार जैसे हिंदी पट्टी के राज्यों में ओबीसी कार्ड तेज हो सकता है इसका असर उत्तर प्रदेश बिहार से आगे राजस्थान मध्य प्रदेश हरियाणा जैसे प्रदेश में भी दिख सकता है यानी 2024 के लिए विपक्ष को हथियार मिल चुका है देखना होगा कि वह इसका इस्तेमाल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मुकाबले कैसे कर पता है जो खुद ओबीसी चेहरे के तौर पर प्रोजेक्ट किए जाते हैं.
 

सीएम नीतीश ने क्या संदेश दिया?

आंकड़े जारी होने के बाद बिहार के सीएम नीतीश कुमार ने ट्वीट कर जनगणना करने वाली पूरी टीम को बधाई दी है. उन्होंने कहा है,जाति आधारित गणना के लिए सर्वसम्मति से विधानमंडल में प्रस्ताव पारित किया गया था. बिहार विधानसभा के सभी 9 दलों की सहमति से निर्णय लिया गया था कि राज्य सरकार अपने संसाधनों से जाति आधारित गणना कराएगी. 02-06-2022 को मंत्रिपरिषद से इसकी स्वीकृति दी गई थी. इसके आधार पर राज्य सरकार ने अपने संसाधनों से जाति आधारित गणना कराई है. जाति आधारित गणना से न सिर्फ जातियों के बारे में पता चला है, बल्कि सभी की आर्थिक स्थिति की जानकारी भी मिली है.

 

बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के मुताबिक जाति गणना को आधार बनाकर आने वाले समय में सभी वर्गों के विकास एवं उत्थान के लिए काम किया जाएगा. उन्होंने ट्वीट में ये भी लिखा है कि बिहार में कराई गई जाति आधारित गणना को लेकर जल्द ही बिहार विधानसभा के सभी 9 दलों की बैठक बुलाई जाएगी. और जाति आधारित गणना के नतीजों के बारे में उन्हें बताया जाएगा.

Election 2024: लोकसभा चुनाव की तैयारियों में जुटी भाजपा, उत्तराखंड पर है केंद्रीय नेतृत्व की सीधी नजर.

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2024 में होने वाले लोकसभा चुनाव को मध्यनजर रखते हुए भाजपा का केंद्रीय नेतृत्व उत्तराखंड पर सीधी नजर बनाए हुए है।इसी को देखते हुए संगठन और सरकार से फीडबैक लेने के लिए पार्टी के राष्ट्रीय संगठक वी सतीश तीन दिवसीय दौरे पर उत्तराखंड पहुंचे हैं। शुक्रवार को उन्होंने प्रदेश भाजपा मुख्यालय में पार्टी के सभी मोर्चों के पदाधिकारियों के साथ बैठक में चुनावी दृष्टि से कई बिंदुओं पर जानकारी ली। 

  1. 2024 में होने वाले लोकसभा चुनाव की तैयारियों में जुटी बीजेपी
  2. बीजेपी का केंद्रीय नेतृत्व उत्तराखंड पर बनाए हुए है सीधी नजर
  3. उत्तराखंड के दौरे पर हैं भाजपा के राष्ट्रीय संगठक वी सतीश
इसके बाद धामी मंत्रिमंडल के सदस्यों से राष्ट्रीय संगठक वी सतीश ने अलग-अलग मुलाकात की। देर शाम को उन्होंने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के पदाधिकारियों से भेंट कर सरकार और संगठन के कामकाज को लेकर फीडबैक लिया। उत्तराखंड में वर्ष 2014 से लेकर अब तक के लोकसभा चुनाव से भाजपा अजेय बनी हुई है। तब से वह राज्य में लोकसभा की सभी पांचों सीटें जीतती हुई आई है। अब पार्टी के सामने हैट्रिक बनाने की चुनौती है।

बीजेपी ने बनाई रणनीति-

लोकसभा चुनाव में चूंकि बीजेपी पिछले लगातार 2014 के बाद से उत्तराखंड में पांचों सीटें जीतती आयी है, पार्टी ने इतिहास रचने की दृष्टि से रणनीति बनाई है और वह तैयारियों में जुट चुकी है, लेकिन केंद्रीय नेतृत्व फिर भी इसे किसी भी दशा में हल्के में लेने के मूड में तो बिलकुल भी नहीं है। और यही कारण है कि केंद्रीय नेतृत्व निरंतर ही चुनावी तैयारियों पर नजर रखने के साथ ही फीडबैक भी ले रहा है। इस दृष्टिकोण से बीजेपी के राष्ट्रीय संगठक वी सतीश के उत्तराखंड दौरे को महत्वपूर्ण माना जा रहा है।

चुनावी रणनीतियों को लेकर तैयारियां

शुक्रवार को देहरादून पहुंचकर वी सतीश ने प्रदेश कार्यालय में पार्टी के सभी 7 मोर्चों के प्रभारियों व अध्यक्षों के साथ बैठक की। सूत्रों के मुताबिक उन्होंने चुनावी तैयारियों की जानकारी ली। साथ ही जिन क्षेत्रों में पार्टी कमजोर है, वहां पर क्या और कैसी रणनीति अपनाई जा सकती है, इस बारे में सुझाव भी लिए। इसके बाद राष्ट्रीय संगठक ने राज्य सरकार के मंत्रियों से भी प्रदेश कार्यालय में अलग-अलग भेंट की। इस दौरान उन्होंने भावी रणनीति पर चर्चा करने के साथ ही केंद्रीय नेतृत्व की अपेक्षाओं से अवगत कराया। 

प्रदेश महामंत्रियों के साथ की बैठक-

वी सतीश ने पार्टी के तीनों प्रदेश महामंत्रियों के साथ भी बातचीत की। देर शाम उन्होंने तिलक रोड स्थित संघ कार्यालय जाकर प्रांत प्रचारक डॉ शैलेंद्र समेत अन्य पदाधिकारियों के साथ मंथन किया। उधर, भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष महेंद्र भट्ट ने बताया कि राष्ट्रीय संगठक शनिवार को पार्टी के प्रांतीय पदाधिकारियों और विधायकों के साथ अलग-अलग बैठकें कर स्थानीय मुद्दों, सामाजिक व राजनीतिक घटनाक्रमों के दृष्टिगत संगठनात्मक गतिविधियों पर चर्चा करेंगे।वहीँ आज वह मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी से भी मुलाकात करेंगे।

निर्वस्त्र मदद के लिए घूमती रही नाबालिग, मणिपुर की तरह मध्य प्रदेश में शर्मसार करने वाली घटना.

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मणिपुर जैसे हालात अब MP में भी-

मणिपुर का मामला अभी शांत भी नहीं हुआ था कि एक बार फिर इस देश को शर्मसार करने वाली तस्वीरें सामने आयी है,इस बार मध्य प्रदेश के उज्जैन जो शिव की नगरी मानी जाती है, वहां से मणिपुर जैसी ही घटना सामने आयी है. मध्य प्रदेश के उज्जैन में 12 साल की मासूम से दरिंदगी हुई. बेसुध और लहूलुहान हालत में मासूम ने 8 किलोमीटर का रास्ता पैदल तय किया. इस दौरान उसने कई लोगों से मदद की गुहार भी लगाई. इस घटना की जो तस्वीर सामने आई उसने उज्जैन शहर ही नहीं पूरे देश के लोगों को झकझोर कर रख दिया है.

बाबा महाकाल की नगरी उज्जैन में इंसानियत को शर्मसार कर देने वाला मामला सामने आया है, जिसने पूरे देश को हिलाकर रख दिया। यहां एक 12 साल की नाबालिग लड़की का दुष्कर्म किया जाता है। वो लड़की मदद के लिए दर-दर भटकती है, लेकिन कोई उसकी मदद करने के लिए आगे नहीं आया।

 

25 सितंबर को पुलिस को मिली जानकारी-

उज्जैन के एसपी सचिन शर्मा ने बताया कि 25 सितंबर की सुबह 10 बजकर 15 मिनट पर महाकाल पुलिस स्टेशन में सूचना मिली कि एक बच्ची बड़नगर रोड पर मुरलीपुरा से आगे दांडी आश्रम के नजदीक लावरिस और घायल अवस्था में पड़ी मिली। इस सूचना पर जब पुलिस मौके पर पहुंची तो बच्ची के कपड़े खून से सने हुए थे। वह ठीक से बोल भी नहीं पा रही थी।

बच्ची को चरक अस्पताल में कराया गया भर्ती-

एसपी ने बताया कि बच्ची को आनन-फानन में चरक अस्पताल में भर्ती कराया गया, जहां पांच डॉक्टरों ने उसका इलाज किया। इस दौरान जांच में बच्ची के साथ दुष्कर्म होने की पुष्टि हुई।

 

बच्ची को किया गया रेफर-

एसपी सचिन शर्मा ने बताया कि बच्ची को अंदरूनी चोट आई थी। उसकी गंभीर हालात को देखते हुए उसे इंदौर रेफर कर दिया गया है। हालांकि, इलाज के बाद अब उसकी हालत ठीक है।

 

एसआईटी को सौंपी गई जांच-

एसपी के मुताबिक, दुष्कर्म की पुष्टि के बाद मामले की जांच एसआइटी को सौंपी गई। एसआइटी ने उन तमाम जगहों के सीसीटीवी फुटेज को खंगाला, जहां किशोरी गई हुई थी। आरोपी को पकड़ने के लिए एसआईटी ने करीब एक हजार फुटेज देखे। इस दौरान उसने कई लोगों से पूछताछ भी की।

 

आठ किमी तक पैदल चली बच्ची-

पुलिस ने बताया कि बच्ची सतना ने सोमवार तड़के तीन बजकर 15 मिनट पर उज्जैन पहुंची थी। यहां रेलवे स्टेशन के बाहर देवास गेट पर उसने कुछ ऑटो वालों से बात की। वह कुल छह आटो चालकों के संपर्क में आई थी। इस दौरान एक ऑटो चालक उसे घुमाते रहे। बाद में ऑटो चालक भरत उसे सुनसान जगह पर ले गया और उसके साथ दुष्कर्म किया। दुष्कर्म के बाद नाबालिग लड़की करीब आठ किमी तक पैदल चली। इस दौरान उसने लोगों से मदद की गुहार भी लगाई, लेकिन किसी ने भी उसकी मदद नहीं की। आखिरकार, सुबह 10 बजे बड़नगर रोड पर दांडी आश्रम पर संचालक राहुल शर्मा ने उससे बात की, जिसके बाद उन्होंने मामले की जानकारी महाकाल थाने और डायल 100 को दी।

 

 

आरोपी ऑटो ड्राइवर ने कुबूला अपना जुर्म-

पुलिस को जांच के दौरान पता चला कि नानाखेड़ा क्षेत्र के रहने वाले एक ऑटो चालक भरत सोनी बच्ची को अपने साथ लेकर कहीं गया हुआ था। इस जानकारी पर पुलिस ने गुरुवार को भरत को हिरासत में लेकर कड़ाई से पूछताछ की, जिसमें उसने अपना जुर्म कुबूल कर लिया।

 

 

किशोरी की हालत में पहले से सुधार-

इंदौर के एमटीएच अस्पताल में पीड़िता को भर्ती किया गया था, जहां 26 सितंबर को स्त्री रोग विशेषज्ञ, पीडियाट्रिक सर्जन, सर्जन और निश्चेतना विशेषज्ञ की टीम ने उसका ऑपरेशन किया। ऑपरेशन के दो दिन बाद अब उसकी हालत में सुधार है। डॉक्टरों ने अभी भी पीड़िता को निगरानी के तहत रखा है। उसकी हालत स्थिर है।

 

जोशीमठ के बाद अब नैनीताल भी भूस्खलन की चपेट में, खतरे की जद में आए मकानों पर लगे लाल निशान…

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जोशीमठ के बाद अब नैनीताल में भूस्खलन ने लोगों के नींदे उड़ा दी है, भूस्खलन के खतरे को देखते हुए प्रशासन ने चार्टन लॉन्ज क्षेत्र में 24 घरों पर लाल निशान लगाकर मकान खाली करवा दिए अचानक हुई इस कार्रवाई से लोगों में गुस्सा है.

कल तक अपने घरों में रह रहे लोग कुछ ही घंटे में आपदा प्रभावित बन गए उनका आरोप है कि प्रशासन सुरक्षा कार्यों के बजाय लोगों के घर तोड़ने की योजना बना रहा है. इसलिए कई घरों को जबरदस्ती खतरे की जद में डाल दिया गया है, रविवार को अयरपट्टा में रह रहे परिवारों को विकास प्राधिकरण एवं प्रशासन की ओर से नोटिस जारी कर दिए गए,

इसके बाद कुछ परिवारों को प्रशासन ने होटल में रुकवाया है जबकि कुछ परिवार अपने रिश्तेदारों के यहां शरण लेने चले गए हैं इस कार्रवाई से लोगों में नाराजगी है आप है कि प्रशासन ने यहां पर सुरक्षा उपाय नहीं किए हैं अचानक से घरों पर लाल निशान लगाए जा रहे हैं ऐसे में लोगों को आशंका है प्रशासन खतरा बात कर कई दूसरे घरों को तोड़ सकता है.

 

नैनीताल में खतरा बढ़ा, 24 परिवारों में घर छोड़े-

नैनीताल के शनिवार को चार्ट लोन क्षेत्र में एक दो मंजिला भवन के भरभरा कर जमींदोज होने के बाद आसपास के इलाके में भूस्खलन का खतरा बढ़ गया है रविवार को भूस्खलन प्रभावित क्षेत्र में दशकों से रह रहे 24 परिवारों ने गम और गुस्से के बीच अपने-अपने घरों को खाली कर दिया।

वहीं जिला प्रशासन और नैनीताल विकास प्राधिकरण ने भी इन सभी चिन्हित परिवारों को नोटिस थमा कर तीन दिन के भीतर अपना पूरा सामान घरों से हटाने को कह दिया है क्षेत्र में दिन भर अपराध अफ्रीका माहौल बना हुआ है नैनीताल में प्रकृति की चेतावनी को अनदेखा करना अब लोगों पर भारी पड़ने लगा है.

शनिवार को चार्ट आंदोलन क्षेत्र में भूस्खलन से एक दो मंजिला भवन भर भर कर गिर गया था जिसकी चपेट में आने से तीन अन्य घर भी दब गए थे एसडीएम प्रमोद कुमार ने बताया कि प्रशासन विकास प्राधिकरण और आपदा प्रबंधन की टीमों ने इलाके में सर्वे कर संवेदन सील घरों पर लाल निशान लगाने के साथ ही प्रभावितों को नोटिस दे दिए हैं.

भू-कटाव रोकने के लिए रेत के कट्टे-तिरपाल का सहारा-
 

भूस्खलन प्रभावित इलाके में मिट्टी के कटाव को रोकने के लिए तारपाल डाल दिया गया बारिश होने पर इसे मिट्टी के कटाव को रोकने में मदद मिलेगी साथ ही जिन घरों के बुनियादी पर असर आ रहा है वहां पर रेत के कट्टे डालकर अस्थाई रूप से सुरक्षा उपाय किए जा रहे उपाय किए जा रहे हैं पर प्रशासन बारिश होने से आशंकित है बारिश हुई तो यहां मिट्टी कटाव होने की आशंका बनी रहेगी।

खाना बनाने के लिए घर आने की इजाजत-
 

प्रशासन ने लोगों को भोजन बनाने के लिए अपने घर आने की इजाजत दी है पर अंधेरा होने से पहले ही घर छोड़ने को कहा है ऐसे में लोग अपने घरों की सफाई और भोजन बनाने के लिए कुछ ही देर तक अपने घरों में जा रहे हैं उसके बाद चले जा रहे हैं।

यहां रह रहे निवासियों ने क्या कहा-

अचानक से घरों पर लाल निशान लगाया दिए गए हैं हमें 3 दिन में घर खाली करने को कह दिया है आखिर यह कैसे संभव है कि हम अपना सारा घर खाली करके चले जाएं अचानक से हमारे घरों पर लाल निशान लगा दिए गए हैं हमें घर छोड़ने को कह दिया है प्रशासन यहां सुरक्षा कार्य करवाए हम सहयोग कर रहे हैं पर घर नहीं छोड़ सकते हैं.

अमेठी के संजय गांधी अस्पताल पर ताला, इलाज के दौरान हुई थी महिला की मौत…

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सवाल ये की आखिर बीजेपी पर ये आरोप क्यों लग रहे हैं ?
बीजेपी क्यों पहले से अस्पताल बंद करवाना चाहती थी ?
क्यों कांग्रेस ने इसे बदले की राजनीति का करार दिया ?
क्या ये बदले की राजनीति है ?

अमेठी से बीजेपी ने सिर्फ राहुल गांधी को ही नहीं हटाया बल्कि वहां से  पूरे गांधी परिवार का नामो निशान मिटाने में लगी है.. इसलिए लंबे समय से बीजेपी की नजर संजय गांधी अस्पताल पर थी. अस्पताल को ताला लगाने की हर संभव कोशिश हो रही थी और फिर आखिरकार बीजेपी ने वो मौका ढूंढ ही लिया और बेहद जल्दबाजी दिखाते हुए संजय गांधी अस्पताल का लाइसेंस निरस्त कर दिया. यहां तक की उसकी ओपीडी और सारी सेवाएं बंद कर दी. इस मामले ने पूरे राज्य की राजनीति का पारा गरमा दिया. कांग्रेस पहले से ही इसे बदले की राजनीति बता रही है।उसका कहना है कि अस्पताल इसलिए बंद किया गया क्योंकि ये उस ट्रस्ट द्वारा संचालित है जिसकी अध्यक्ष सोनिया गांधी हैं. कांग्रेस ने यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से अस्पताल का ताला खुलवाने की मांग की है.इस बीच वरुण गांधी ने भी अस्पताल बंद करने पर आपत्ति जताई। 

 

 

सीएम योगी को लिखा पत्र-

 

कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष अजय राय ने सीएम योगी आदित्यनाथ को इसके लिए एक पत्र भी लिखा है. इसमें उन्होंने संजय गांधी अस्पताल का लाइसेंस रद्द किए जाने के आदेश को वापस लेने की अपील की है. उन्होंने कहा है कि अस्पताल का रजिस्ट्रेशन रद्द करना उचित नहीं है. प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष ने पत्र में आगे कहा है कि संजय गांधी अस्पताल में लाखों लोगों का इलाज़ होता है. अस्पताल कम पैसे पर बड़ी स्वास्थ्य सेवाएं मुहैया कराता है. ये अस्पताल अमेठी क्षेत्र के स्वास्थ्य सेवाओं की लाइफ लाइन है. ऐसे में उन्हें विश्वास है कि सीएम के निर्देशों से अमेठी की जनता व संजय गांधी अस्पताल के साथ अन्याय नहीं होगा.

 

क्यों लगाया गया अस्पताल पर ताला ?

इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के मुताबिक 14 सितंबर की सुबह पेट दर्द की शिकायत के बाद एक 22 साल की महिला को संजय गांधी अस्पताल में भर्ती कराया गया था. लेकिन, पित्ताशय की सर्जरी से पहले उसकी हालत खराब होने पर उसे लखनऊ के एक निजी अस्पताल में रेफर कर दिया गया. जहां 16 सितंबर को महिला की मौत हो गई. महिला के परिवार ने आरोप लगाया कि संजय गांधी अस्पताल में एनेस्थीसिया के ओवरडोज के कारण महिला की मौत हुई. इसे लेकर 17 सितंबर को एक FIR दर्ज की गई. पुलिस ने महिला की मौत पर अस्पताल के मुख्य कार्यकारी अधिकारी सहित चार कर्मचारियों के खिलाफ इलाज के दौरान लापरवाही से मौत होने का मामला दर्ज किया. जैसे ही ये खबर आयी ताक में बैठी बीजेपी सरकार तुरंत एक्शन में आ गयी.. मामले का संज्ञान उत्तर प्रदेश के उपमुख्यमंत्री बृजेश पाठक ने लिया और तत्काल जिले के मुख्य चिकित्सा अधिकारी डॉ अंशुमान सिंह को निर्देशित करते हुए कार्रवाई करने को कहा, इधर सीएमओ ने तीन सदस्यीय जांच कमेटी का गठन किया जांच कमेटी ने अस्पताल पहुंचकर हर पहलू की जांच कर अपनी रिपोर्ट सीएमओ को भेज दी, जिसके बाद संजय गांधी अस्पताल को कारण बताओ नोटिस देते हुए स्पष्टीकरण देने के लिए 3 महीने का समय दिया गया. 

 

 

आखिर बीजेपी को इतनी जल्दी क्यों ?

लेकिन 24 घंटे के अंदर ही संजय गांधी अस्पताल का लाइसेंस निरस्त करते हुए उसकी ओपीडी और सारी सेवाएं बंद कर दी गयी.. अब यहां पर सवाल उठता है की जब 3 महीने का समय स्पष्टीकरण के लिए दिया गया था तो इस पर ताला लगाने की इतनी जल्दी क्या थी.. बीजेपी ने क्यों 24 घंटे के अंदर ही सारी सेवाएं बंद कर दी.. क्या इस पर गौर करने वाली बात नहीं है ? इतनी जल्दी एक्शन लेने से सरकार की मंशा पर सवाल खड़े हो रहे है.  क्या सरकार को आम जनता की कोई चिंता नहीं है ? 

 

 

400 कर्मचारियों पर संकट-

उधर, अमेठी के मुंशीगंज में स्थित संजय गांधी अस्पताल का लाइसेंस निलंबित करने के बाद अस्पताल के 400 से अधिक कर्मचारियों के सामने रोजी-रोटी का संकट खड़ा हो गया है. बुधवार (20 सितंबर) को अस्पताल में तैनात कर्मचारियों ने अस्पताल परिसर में प्रदर्शन करने के बाद डीएम को ज्ञापन सौंपा. उन्होंने अस्पताल के लाइसेंस को बहाल करने की मांग की. कर्मचारियों का कहना था कि अगर अस्पताल बंद हो गया तो उनके सामने रोजी-रोटी का संकट खड़ा हो जाएगा.

 

 

कांग्रेस ने कहा सब कुछ स्मृति ईरानी के इशारे पर हुआ-

आपको बता दें इस मामले ने इसलिए भी इतना तूल पकड़ा है क्योंकि ये दो राष्ट्रीय पार्टियों बीजेपी और कांग्रेस के बीच का विवाद है, दरअसल ये अस्पताल संजय गांधी ट्रस्ट की तरफ से संचालित किया जाता  है. इस ट्रस्ट की अध्यक्ष सोनिया गांधी हाँ, और ट्रस्ट के सदस्य प्रियंका गांधी और राहुल गांधी है, यही नहीं अमेठी और रायबरेली कांग्रेस का गढ़ मन जाता है, जिसकी एक वजह ये अस्पताल भी है, ये अस्पताल 1986 से अपनी सेवाएं दे रहा है, अमेठी जिले का 350 बेड का ये एकलौता अस्पताल है, जहाँ पर लड़भाग 400 कर्मचारी काम करते है , यहाँ पर ANM, और GNM के कोर्स भी संचालित है जिसमे 1200 छात्र छात्राएं ट्रेनिंग ले रहे हैं ,

 

अब ऐसे में बीजेपी सरकार की इस कारवाही को लेकर कुछ राजनीति के जानकार ये दवा कर रहे हैं की अमेठी और रायबरेली में कांग्रेस और गांधी परिवार की इतनी पूछ है, जिस से बीजेपी इतनी परेशान है, और कांग्रेस का नामो निशान मिटाना चाहती है. वही कांग्रेस ने इस पर खुलकर बोला  है की ये बदले की राजनीति है, कांग्रेस जिला अध्यक्ष और कांग्रेस के पूर्व एमएलसी दीपक सिंह के नेतृत्व में कांग्रेसियों ने भी विरोध प्रदर्शन किया. विरोध प्रदर्शन को लेकर कांग्रेस के पूर्व एमएलसी दीपक सिंह ने कहा कि अस्पताल को बंद करना बिल्कुल ठीक नहीं है. अगर कोई संस्थागत व्यक्ति हो और वह संविधान की शपथ ले तो उसे संविधान के दायरे में रहकर काम करना चाहिए. दीपक सिंह ने सांसद स्मृति ईरानी पर निशाना साधने के साथ स्वास्थ्य मंत्री बृजेश पाठक पर भी निशाना साधा. उन्होंने कहा कि जो व्यक्ति कई बार विधायक रहा हो, कानून मंत्री रहा हो, उसे तो अमेठी की सांसद स्मृति ईरानी के इशारे पर ये काम नहीं करना चाहिए.

एक साल पूरा ,न्याय अधूरा ! महिला आरक्षण बिल मुबारक हो…

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क्या बिल के बाद सुधरेगी महिलाओं की स्थिति-

 

चुनावी साल में तीन दशकों से लंबित महिला आरक्षण बिल को  मोदी कैबिनेट  ने मंजूरी दे दी, विपक्ष ने भी इस बिल के समर्थन में है. तो अब क्या ये माना जाय कि इस बिल के आने मात्र से  महिलाओं की स्तिथि में सुधार हो जायेगा, महिलाओ की कितनी स्थिति कितनी सुधरती है ये तो आने वाला वक्त बताएगा। बहरहाल  कई सवाल है, जिनका जवाब मिलना अभी बाकी है.

 

महिला आरक्षण से पहले सबसे ज्यादा जरूरी है उनकी सुरक्षा। प्रधानमंत्री मोदी हमेशा ही महिलाओं की बात हर मंच से करते दिखाई देते हैं,बेटी बचाओ,बेटी पढ़ाओ का नारा भी प्रधानमंत्री मोदी ने ही दिया है. लेकिन उन्ही के एक  राज्य जहां की महिलाओं ने उनको वोट के रूप में दिल खोलकर आशीर्वाद दिया हो उस राज्य में  एक बहादुर  बेटी की हत्या कर दी जाती है.

आखिर कब मिलेगा न्याय-

वो लड़की जो अपने दम  पर कुछ काम करके अपने परिवार का सहारा बनना चाहती थी और उस बेटी की बेबस मां न्याय के लिए कोर्ट से लेकर सड़क तक दर-दर भटक कर एड़ियां रगड़ रही हो. एक साल से उस मां के आंसू रुक नहीं रहे हो  और मोदी जी के धाकड़ मुख्यमंत्री उनको न्याय नहीं दिला पा रहे हों.  तो महिला सुरक्षा की बात करना बेमानी प्रतीत होता है,, एक साल से बुजुर्ग माता पिता न्याय के लिए हर दरवाजे और चौखट को खटका रहे हैं लेकिन सरकार उस बदनसीब बेटी के नाम पर एक जगह का नामकरण करके अपनी जिम्मेदारी से मुक्त होना चाहती है.

एक साल बाद भी इंसाफ नहीं-

उत्तराखंड के बहुचर्चित अंकिता भंडारी हत्याकांड को  एक साल पूरा हो गया है। इस मर्डर केस की गूंज पूरे उत्तराखंड में सुनाई दी थी। 19 साल की अंकिता के साथ युवकों की हैवानियत की कहानी ने लोगों को हिलाकर रख दिया था। अंकिता एक रिजॉर्ट मे रिसेप्शनिस्ट थी। उसकी हत्या सिर्फ इसलिए कर दी गई थी, क्योंकि उस पर रिजॉट में आने वाले VIP गेस्ट को स्पेशल सर्विस देने का दबाव बनाया गया था.. जिसे उसने मना कर दिया,,ये रिजॉर्ट भी बीजेपी नेता के बेटे का था और अपराधी भी खुद बीजेपी नेता का बेटा,,,,केस में भाजपा नेता विनोद आर्य के बेटे पुलकित आर्य पर रेप और हत्या के आरोप लगे, जिसमें सौरभ भास्कर और अंकित गुप्ता ने उसकी मदद की।पुलिस ने आरोपियों को दबोच कर सख्ती से पूछताछ की तो उन्होंने गुनाह कबूल लिया था।

आखिर इतनी देरी क्यों-

सवाल ये खड़ा होता है कि जब अपराधी अपना गुनाह कबूल कर चुके हैं, जांच टीम  दावा कर रही थी  कि टीम के पास पुरे सबूत मौजूद हैं,तो फिर अंकिता को एक साल बाद भी न्याय क्यों नहीं मिल पाया,न्याय मिलने में इतनी देरी क्यों ? अंकिता के माता -पिता ये दावा करते हैं कि स्थानीय विधायक ने रातो रात रिजॉर्ट पर बुलडोजर चला कर सबूत नष्ट किये लेकिन आज भी धाकड़ मुख़्यमंत्री ने अपनी विधायक से इसको लेकर कोई स्पष्टीकरण नहीं मांगा,ऐसे में ये भी संशय पैदा होता है कि क्या बीजेपी नेता का बेटा होने की वजह से अंकिता को न्याय मिलने में देरी हो रही है,,पूरा प्रदेश उस VIP का नाम जानना चाहती है जिसको स्पेशल सर्विस के नाम पर अंकिता पर दबाव बनाया जा रहा था,आखिर क्यों सरकार उस VIP का नाम सार्वजनिक नहीं करना चाह रही.

कई बयानों में खुलासा फिर भी न्याय नहीं-

हत्या से पहले अंकिता पर जो बीती उसका खुलासा गवाहों के बयान में हुआ है। एक  रिपोर्ट के मुताबिक अंकिता भंडारी का लगातार सेक्सुअल हरासमेंट हो रहा था। इतना ही नहीं हत्या से पहले उसके साथ रेप भी हुआ। गवाहों के बयान के मुताबिक पुलकित आर्य की बर्थडे पार्टी के दिन अंकिता को कोल्ड ड्रिंक में शराब मिलाकर पिलाई गई। जब वो बेहोश हो गई तो उसके साथ दुष्कर्म किया गया। सौरभ भास्कर इस करतूत में शामिल था। 108 नंबर कमरे में अंकिता के साथ दुष्कर्म हुआ था, पुलकित ने भी उसके साथ गलत हरकते की। ये लोग उसका यौन शोषण कर रहे थे, बाद में उसे वीआईपी को सौंपने की भी प्लानिंग कर रहे थे।

क्या ये है सरकार का न्याय-

अब जब हत्याकांड को एक साल हो गया है तो मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने अंकिता भंडारी के नाम पर डोभ श्रीकोट स्थित राजकीय नर्सिंग कॉलेज का नाम रखने की घोषणा कर दी, लेकिन आरोपियों को अभी तक सजा नहीं हुई।

 

अभी कुछ दिन पहले ही उत्तराखंड में एक सूचना सामने आयी है कि किस तरह बीजेपी की डबल इंजन की सरकार में 2021 से 2023 तक 38 सौ  से अधिक महिलाएं गायब हो गयी है, क्या इस तरह  मोदी सरकार के धाकड़ मुख़्यमंत्री बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ का नारा सफल बनाएंगे,ऐसे हालातों को देख तो लगता है कि जब बेटी बचेगी ही नहीं तो पढ़ने का तो सवाल ही पैदा नहीं होता.

पूरे प्रदेश में आक्रोश- 

अंकिता भंडारी हत्याकांड से पुरे प्रदेश के लोगों में रोष व्याप्त है,पहाड़ की इस बेटी से यहां के सभी लोगों की भावनाएं जुड़ी हुई हैं,लोगों का गुस्सा सड़कों पर भी फूटता दिखाई देता है, लोग सरकार की मंशा पर ही सवाल उठा रहे हैं, विपक्ष भी लगातार इस मुद्दे पर सरकार को घेरता आ रहा है,लेकिन भाजपा उन पर राजनीति करने का आरोप जरूर लगाती है.

2024 में भाजपा के लिए बड़ी दिक्कत-

लेकिन ये तय है कि जितनी देर अंकिता को न्याय मिलने में हो रही है,उससे सरकार की छवि को धीरे धीरे नुकसान हो रहा है,क्योकि जब हत्याकांड सामने आया था तब भी किसी भाजपा नेता ने इस पर खुल कर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी, जिससे जनता में पहले ही एक मेसेज जा चुका है,,,अभी भी अंकिता को न्याय न मिलना 2024 में भाजपा के सामने एक बड़ा मुद्दा बनकर उठेगा,,,जो कम से कम भाजपा के सबसे मजबूत गढ़ माने जाने वाली पौड़ी लोकसभा सीट पर बड़ा असर डालेगा,क्योकि अंकिता इसी सीट से आती है,जहां के लोग इस घटना से आज भी बेहद आक्रोशित हैं.