Author: Pravesh Rana

जोशीमठ-औली रोपवे परियोजना के लिए डीपीआर तैयार,राज्य में पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए महत्वपूर्ण

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उत्तराखंड में जोशीमठ-औली रोपवे परियोजना आगे बढ़ रही है। राज्य की निर्माण एजेंसी ब्रिडकुल ने नए रोपवे के लिए विस्तृत परियोजना रिपोर्ट (डीपीआर) का मसौदा तैयार कर लिया है, जो 3.917 किलोमीटर की दूरी तय करेगी। अंतिम डीपीआर जल्द ही सरकार को भेजी जाएगी। मंजूरी मिलते ही निर्माण शुरू हो जाएगा। रोपवे से क्षेत्र में पर्यटन को बढ़ावा मिलने की उम्मीद है। सुरक्षा चिंताओं के कारण पुराने रोपवे को जनवरी 2023 से बंद कर दिया गया है।

ब्रिडकुल ने मसौदा योजना तैयार की

ब्रिडकुल के प्रबंध निदेशक एनपी सिंह ने पुष्टि की कि रोपवे के लिए डीपीआर लगभग पूरी हो चुकी है। पुराने रोपवे के असुरक्षित हो जाने के बाद इस परियोजना को पूरी तरह से ब्रिडकुल द्वारा ही संभाला जा रहा है।

उन्होंने कहा कि पहले रोपवे के पहले और दूसरे टावर की नींव में कुछ समस्या थी, जिसके कारण इसे बंद करना पड़ा। तब से, BRIDCUL नए सर्वेक्षण करने और नए रोपवे की योजना बनाने का काम संभाल रहा है।

नींव और सर्वेक्षण सहित सभी औपचारिकताएं पूरी कर ली गई हैं।

परियोजना का निर्माण 2 चरणों में किया जाएगा

रोपवे का निर्माण दो चरणों में किया जाएगा।

  • प्रथम चरण : 11 टावरों और 21 केबिनों के साथ 2.76 किलोमीटर की दूरी तय करेगा।
  • द्वितीय चरण : 1.157 किलोमीटर, गौरसौ बुग्याल तक विस्तारित, 7 टावर और 9 केबिन।

परियोजना की कुल लागत 426 करोड़ रुपये आंकी गई है। सिंह ने बताया कि डीपीआर का अंतिम संस्करण एक सप्ताह के भीतर सरकार को सौंप दिया जाएगा।

ऐसे तैयार होगा रोपवे

प्रतिदिन 500 यात्रियों की क्षमता

एक बार चालू होने के बाद, रोपवे प्रति घंटे प्रति दिशा (पीपीएचपीडी) लगभग 500 यात्रियों को ले जाने में सक्षम होगा। प्रत्येक ट्रॉली 10 लोगों को ले जा सकेगी।

कुल मिलाकर, 3.917 किलोमीटर लंबे मार्ग में दोनों चरणों में 18 टावर और 30 केबिन शामिल होंगे।

 

इंदिरा गांधी ने रखी थी पुराने रोपवे की नींव

मूल रोपवे परियोजना 1983 में शुरू हुई थी जब तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने इसकी आधारशिला रखी थी। इसे 1984-85 में ज़िगज़ैग तकनीक का उपयोग करके पूरा किया गया था। तब से, जोशीमठ और औली के बीच पर्यटकों की यात्रा के लिए रोपवे का उपयोग किया जाता रहा है, जब तक कि इसे सुरक्षा चिंताओं के कारण जनवरी 2023 में बंद नहीं कर दिया गया।

अब, राज्य इस क्षेत्र में पर्यटन को एक बार फिर बढ़ावा देने के लिए एक सुरक्षित और उन्नत संस्करण बनाने की योजना बना रहा है।

1983 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने रखी थी आधारशिला

 

कश्मीरी छात्रों पर बयान के बाद देहरादून में अलर्ट, हिंदू रक्षा दल के अध्यक्ष पर मुकदमा दर्ज

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हिंदू रक्षा दल की ओर से कश्मीरी छात्रों पर दिए गए बयान के बाद बृहस्पतिवार को पुलिस अलर्ट रही। पुलिस ने हिंदू रक्षा दल के अध्यक्ष के खिलाफ मुकदमा दर्ज किया है। साथ ही सुबह से दोपहर तक दल के नेताओं को घर पर ही नजरबंद किया।

हिंदू रक्षा दल के प्रदेश अध्यक्ष ललित शर्मा ने बुधवार को कश्मीरी छात्रों पर विवादित बयान दिया था। सोशल मीडिया पर भी इसका वीडियो वायरल हुआ तो पुलिस हरकत में आई। अलर्ट जारी करने के साथ ही कश्मीरी छात्रों की सुरक्षा भी बढ़ा दी गई। बृहस्पतिवार को सुबह 10 बजे से ही पुलिस हिंदू रक्षा दल के लोगों के घरों पर पहुंच गई और उन्हें घरों से निकलने नहीं दिया।दोपहर तक उनके घरों पर पुलिस का कड़ा पहरा रहा।

एसएसपी अजय सिंह ने बताया कि कश्मीरी छात्रों पर दिए गए बयान के बाद आरोपी के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर लिया गया है। कश्मीरी छात्रों की सुरक्षा के लिए पुलिस गंभीर है। यदि कोई शांतिभंग का प्रयास करेगा तो सख्त कार्रवाई की जाएगी।

देहरादून के शिक्षण संस्थानों में 1201 कश्मीरी छात्र पढ़ाई कर रहे हैं। इनकी सुरक्षा को लेकर एसएसपी अजय सिंह ने बृहस्पतिवार को बैठक की। जिन जगहों पर कश्मीरी छात्र रह रहे हैं, वहां के संचालकों को एसएसपी ने सुरक्षा के निर्देश दिए। साथ ही ऐसे क्षेत्रों में पीएसी तैनात की गई है। पीएसी लगातार इन क्षेत्रों में भ्रमण करेगी।

स्कूलों में बैग फ्री डे,महीने के अंतिम शनिवार अब मस्ती की पाठशाला

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प्रदेश के सरकारी और निजी सभी स्कूलों में महीने के अंतिम शनिवार को बस्ते की छुट्टी रहेगी। उत्तराखंड बोर्ड के स्कूल हों या फिर सीबीएसई, आईसीएससी, संस्कृत और भारतीय शिक्षा परिषद के स्कूल सभी में बच्चों के कंधों पर बस्ते नहीं होंगे। सरकार ने हर महीने के अंतिम शनिवार को बस्ता मुक्त दिवस मनाने का निर्णय लिया है।

In The Government Schools The Fourth Saturday Of The Month Will Be Bag Free Day - Amar Ujala Hindi News Live - सरकारी स्कूलों में महीने का चौथा शनिवार होगा बैग फ्री
शिक्षा मंत्री डॉ.धन सिंह रावत के मुताबिक इसी शनिवार से इस व्यवस्था को लागू किया जाएगा। एससीईआरटी सभागार में आयोजित कार्यशाला में शिक्षा मंत्री डॉ. रावत ने बस्ता रहित दिवस की शुरुआत की और गतिविधि पुस्तिका का विमोचन किया। उन्होंने कहा कि बच्चों को पढ़ाई के साथ ही खेल, व्यावसायिक शिक्षा, कृषि, चित्रकला सहित विभिन्न गतिविधियों में दक्ष बनाया जाना है।
No bags, it's masti time at govt schools - The Tribune
इसके लिए सभी स्कूलों में बच्चे महीने में एक दिन बिना बस्ते के आएंगे। विदेशों में बच्चे खुशनुमा माहौल में पढ़ते हैं। उनके लिए इसी तरह का माहौल होना चाहिए। कार्यक्रम में शिक्षा सचिव रविनाथ रामन, महानिदेशक झरना कमठान, मिशन निदेशक एनएचएम स्वाति भदौरिया, डाॅ. मुकुल सती, विभिन्न निजी स्कूलों के प्रबंधक व बोर्ड के अधिकारी मौजूद रहे।

‘सिंधु जल समझौता’ रद्द होने से पाकिस्तान पर क्या असर पड़ेगा,क्या भारत सच में रोक सकता है पानी ?

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पहलगाम आतंकी हमला निश्चित रूप से सुरक्षा व्यवस्था में कुछ कमियों को उजागर करता है, और यह सरकार के लिए एक चेतावनी है कि खुफिया तंत्र, सीमा सुरक्षा, और पर्यटन स्थलों की निगरानी को और मजबूत करने की जरूरत है। लेकिन इसे केवल सरकार की नाकामी का सबूत कहना अतिशयोक्ति होगी,क्योंकि  आतंकी हमले जटिल सुरक्षा चुनौतियाँ हैं, जिनके पीछे कई कारक होते हैं, जैसे सीमा पार से आतंकवाद का समर्थन, स्थानीय परिस्थितियाँ, और वैश्विक आतंकी नेटवर्क। सरकार की नीतियों और सुरक्षा व्यवस्थाओं में कमियाँ हो सकती हैं, लेकिन इस तरह की घटनाओं को पूरी तरह से एक पक्ष की विफलता के रूप में देखना सही नहीं है।भारत सरकार ने त्वरित प्रतिक्रिया दी, जिसमें सर्च ऑपरेशन, सुरक्षा समीक्षा बैठकें, और पाकिस्तान के खिलाफ कड़े कदम जैसे सिंधु जल संधि को स्थगित करना और अटारी बॉर्डर बंद करना शामिल हैं। इसके अलावा, जम्मू-कश्मीर सरकार ने पीड़ितों के लिए मुआवजे की घोषणा की,,,इससे पहले भी सरकार ने कई ऐसे एक्शन लिए हैं जो आतंकवादियों की कमर तोड़ने में कारगर साबित हुए हैं,,,कई बार आतंकी हमले होने से पहले ही उन पर एक्शन भी हुआ है,,,क्योंकि आतंकवाद एक बहुआयामी चुनौती है, जिसमें बाहरी ताकतों की बड़ी भूमिका है,,, सिर्फ ये कहना कि सरकार की नाकामी से ये घटना हुई ये भी सही नहीं होगा,,,हाँ चूक जरूर कुछ मामलों में सरकार से हो चुकी है,,,लेकिन भारत ने भी कूटनीतिक तरिके से पाकिस्तान को जवाब देना शुरू कर दिया है,,,,इनमें सबसे प्रमुख है सिंधु  जल समझौता रद्द करना,,,
 
 
यहां ये जानना भी जरूरी  हो जाता है कि आखिर  सिंधु  जल   समझौता रद्द होने से पाकिस्तान पर क्या प्रभाव पड़ सकते हैं,,,भारत द्वारा पाकिस्तान के साथ सिंधु जल समझौता  रद्द करने या निलंबित करने के कई दूरगामी परिणाम हो सकते हैं। यह समझौता 1960 में विश्व बैंक की मध्यस्थता से हुआ था, जिसके तहत सिंधु नदी प्रणाली की छह नदियों—सिंधु, झेलम, चिनाब जो पश्चिमी नदियाँ हैं  और रावी, ब्यास, सतलुज जो पूर्वी नदियाँ हैं उनके  पानी का बँटवारा किया गया था । पाकिस्तान को पश्चिमी नदियों का 80% पानी मिलता है, जबकि भारत को पूर्वी नदियों का नियंत्रण और पश्चिमी नदियों पर सीमित उपयोग  का अधिकार है।अब ये समझौता रद्द होने से पाकितान पर इसके प्रभाव बहुत घातक साबित हो सकते हैं,,,पाकिस्तान की लगभग 80% कृषि भूमि और 21 करोड़ से अधिक आबादी सिंधु और उसकी सहायक नदियों पर निर्भर है। यदि भारत पानी का प्रवाह रोकता या कम करता है, तो पाकिस्तान में पीने के पानी और स्वच्छता के लिए गंभीर संकट उत्पन्न हो सकता है,,,पाकिस्तान की 16 मिलियन हेक्टेयर कृषि भूमि सिंधु नदी प्रणाली पर निर्भर है, जो 90% सिंचाई के लिए इसका उपयोग करती है। पानी की कमी से गेहूं, चावल, और कपास जैसी प्रमुख फसलों की पैदावार घट सकती है, जिससे खाद्य सुरक्षा खतरे में पड़ सकती है,,,गेहूं की बुवाई जैसे महत्वपूर्ण समय पर पानी की कमी से फसल चक्र बाधित हो सकता है, जिससे खाद्य कीमतों में वृद्धि और किसानों की आजीविका पर असर पड़ेगा,,कृषि पाकिस्तान की जीडीपी में 25% योगदान देती है। पानी की कमी से खाद्य उत्पादन में कमी, बेरोजगारी, और आर्थिक अस्थिरता बढ़ सकती है।जलविद्युत परियोजनाएँ जैसे तरबेला और मंगला बाँध प्रभावित होंगी, जिससे ऊर्जा संकट गहरा सकता है,,,समझौते को निलंबित करना भारत के लिए एक रणनीतिक कदम है, विशेष रूप से आतंकवाद के खिलाफ जवाबी कार्रवाई के रूप में। यह पाकिस्तान पर दबाव डालने का एक प्रभावी तरीका हो सकता है,,,
 
What is the Indus Waters Treaty put on hold by India after Pahalgam attack?
 
हालाँकि भारत ये करने में कितना कामयाब हो पायेगा ये देखना होगा क्योंकि समझौते को एकतरफा निलंबित करना अंतरराष्ट्रीय कानून के तहत विवादास्पद हो सकता है। वियना संधि  की धारा 62 के तहत, भारत यह तर्क दे सकता है कि पाकिस्तान द्वारा समर्थित आतंकवाद मूलभूत परिस्थितियों में बदलाव है, लेकिन विश्व बैंक या अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता न्यायालय में चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है,,,पाकिस्तान विश्व बैंक या संयुक्त राष्ट्र में इस मुद्दे को उठा सकता है, जिससे भारत पर कूटनीतिक दबाव बढ़ सकता है,,,पाकिस्तान हेग के मध्यस्थता न्यायालय में भारत के फैसले को चुनौती दे सकता है, जैसा कि उसने किशनगंगा परियोजना के मामले में किया था,,,
Pak writes to Ind for dialogue on water issues next month - sources
 
 
यहां सवाल ये भी है कि क्या भारत पाकिस्तान का पानी सच में रोक सकता है,,,तो जवाब है हाँ, भारत तकनीकी और भौगोलिक दृष्टि से पाकिस्तान को जाने वाली कुछ नदियों का पानी रोक सकता है, लेकिन यह प्रक्रिया जटिल है और इसके कई कानूनी, राजनीतिक, और व्यावहारिक पहलू हैं,,,रावी, ब्यास, सतलज इन पर भारत का पूरा नियंत्रण है, और भारत इनका पानी बिना किसी प्रतिबंध के उपयोग कर सकता है,,,भारत पहले से ही रावी नदी का पानी रोकने के लिए कदम उठा चुका है। उदाहरण के लिए, 2024 में शाहपुर कंडी बैराज के पूरा होने के बाद रावी का पानी पाकिस्तान की ओर जाने के बजाय जम्मू-कश्मीर और पंजाब में उपयोग हो रहा है। इससे जम्मू-कश्मीर को 1150 क्यूसेक अतिरिक्त पानी मिल रहा है,,,सिंधु, झेलम, और चिनाब नदियाँ भारत से होकर पाकिस्तान जाती हैं। भारत इन नदियों पर बांध बनाकर या जलाशयों का निर्माण करके पानी के प्रवाह को नियंत्रित कर सकता है। हालांकि, पूरी तरह रोकना मुश्किल है क्योंकि भारत के पास अभी इतनी बड़ी जल भंडारण क्षमता नहीं है कि वह इन नदियों के पूरे प्रवाह को रोक सके। बड़े बांध बनाने में समय और संसाधन लगते हैं,,इन नदियों का प्रवाह इतना विशाल है कि इसे पूरी तरह रोकना तकनीकी रूप से चुनौतीपूर्ण है,,,
 
 
 
कुल मिलाकर सिंधु जल समझौते का निलंबन पाकिस्तान के लिए तत्काल और दीर्घकालिक संकट पैदा कर सकता है, विशेष रूप से जल, कृषि, और आर्थिक क्षेत्रों में। भारत के लिए यह एक शक्तिशाली रणनीतिक कदम है, लेकिन इसके साथ अंतरराष्ट्रीय और क्षेत्रीय जोखिम भी जुड़े हैं। दोनों देशों के बीच तनाव बढ़ने की संभावना है,,सरकार को अपना काम करना है लेकिन इस त्रासदी में जान गंवाने वाले 26 लोगों की याद में और कश्मीर की शांति के लिए,राजनैतिक दलों को  राजनीतिक मतभेदों से ऊपर उठकर एकजुटता दिखानी होगी। आतंकियों को करारा जवाब देना और कश्मीर को फिर से स्वर्ग बनाना सिर्फ सरकार की ही नहीं बल्कि सभी पार्टियों के साथ साथ हम  सभी की भी  साझा जिम्मेदारी है।

उत्तराखंड का नया रेल नेटवर्क: हिमालय की चुनौतियों पर विजय,भविष्य में होने वाले साइड इफेक्ट !

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हिमालय की दुर्गम चट्टानों और भूस्खलन के खतरों को पार करते हुए उत्तराखंड में एक आधुनिक रेल नेटवर्क का निर्माण तेजी से हो रहा है। ऋषिकेश-कर्णप्रयाग रेल परियोजना इस दिशा में मील का पत्थर साबित हो रही है, जो न केवल कनेक्टिविटी बढ़ाएगी, बल्कि चार धाम यात्रा और पर्यटन को भी नई ऊंचाइयों तक ले जाएगी।

 इस महत्वाकांक्षी परियोजना के तहत अब तक 11 मुख्य सुरंगों और 8 बड़े पुलों का निर्माण पूरा हो चुका है,,,इस महत्वाकांक्षी परियोजना की शुरुआत 1996 में तत्कालीन रेल मंत्री सतपाल महाराज द्वारा सर्वेक्षण के साथ हुई थी,,, 2011 में यूपीए सरकार के दौरान  अध्यक्ष सोनिया गांधी द्वारा आधारशिला रखी गई थी,,, लेकिन राजनीतिक मतभेदों के कारण कार्य में देरी हुई,,,जिसके बाद NDA सरकार में इसका काम शुरू किया गया था,,,

इस 125 किलोमीटर लंबी रेल लाइन में 105 किलोमीटर हिस्सा सुरंगों से होकर गुजरता है, जिसमें हाल ही में जानसू सुरंग जो लगभग 15 किलोमीटर है उसका  ब्रेकथ्रू हुआ है, जो हिमालय में बोरिंग मशीन से बनी सबसे लंबी परिवहन सुरंग है,,,,इस रेल लाइन में 17 सुरंगें और कई पुल शामिल हैं,,,

Rishikesh Karnaprayag Rail: Status, Route Map & Stations [2024]

परियोजना की मुख्य विशेषताएं

  • लंबाई और संरचना: 125 किमी की यह रेल लाइन, जिसमें 105 किमी हिस्सा 17 सुरंगों से होकर गुजरता है, हिमालय की जटिल भौगोलिक चुनौतियों का सामना कर रही है।

  • जानसू सुरंग: हाल ही में 15 किमी लंबी जानसू सुरंग का ब्रेकथ्रू हुआ, जो हिमालय में बोरिंग मशीन से बनी सबसे लंबी परिवहन सुरंग है।

  • हिमालयन टनलिंग तकनीक: यह तकनीक भूस्खलन और नई चट्टानों जैसी समस्याओं से निपटने में कारगर है और भविष्य की परियोजनाओं के लिए मॉडल बनेगी।

उत्तराखंड के लिए लाभ

  • बेहतर कनेक्टिविटी: गढ़वाल और कुमाऊं क्षेत्रों को जोड़कर यात्रा समय में कमी आएगी।

  • आर्थिक विकास: स्थानीय व्यवसायों और पर्यटन को बढ़ावा मिलेगा।

  • चार धाम यात्रा: यह परियोजना तीर्थयात्रियों के लिए सुगम और सुरक्षित यात्रा सुनिश्चित करेगी।

अन्य महत्वपूर्ण परियोजनाएं

टनकपुर-बागेश्वर रेल लाइन (170 किमी, लागत 49,000 करोड़ रुपये) का अंतिम सर्वे पूरा हो चुका है। यह परियोजना उत्तराखंड के सुदूर क्षेत्रों को रेल नेटवर्क से जोड़ेगी, जिससे आर्थिक और सामाजिक विकास को गति मिलेगी।

rishikesh-karnprayag railway line line project tunnel built in record 26 days जल्‍द पूरा होगा ऋषिकेश-कर्णप्रयाग रेलवे लाइन का सपना, रेकॉर्ड 26 दिन में बनी सुरंग

चुनौतियां और प्रगति

आजादी के बाद उत्तराखंड में रेल नेटवर्क का विस्तार केवल 344.9 किमी तक सीमित रहा, जो मुख्य रूप से हरिद्वार, देहरादून और कुमाऊं क्षेत्रों तक है। हिमालय का जटिल भूगोल और पर्यावरणीय संवेदनशीलता इस विस्तार में बड़ी बाधाएं रही हैं। फिर भी, नई तकनीकों और समर्पित प्रयासों से ये परियोजनाएं दिसंबर 2026 तक पूर्ण होने की दिशा में अग्रसर हैं।

RVNL Rıshıkesh Package-4 - ALTINOK Consulting Engineering

इसके अलावा अन्य रेल परियोजना टनकपुर-बागेश्वर रेल लाइन जो 170 किमी की है और इसकी लागत  49,000 करोड़ रुपये की अनुमानित है,,उसका भी   अंतिम सर्वे पूरा हो चुका है, चूँकि उत्तराखंड में रेल नेटवर्क का विस्तार आजादी के बाद सीमित रहा है, और वर्तमान में केवल 344.9 किमी रेल लाइनें हैं, जो मुख्य रूप से हरिद्वार, देहरादून, और कुमाऊं क्षेत्र तक सीमित हैं। इन नई परियोजनाओं से राज्य में रेल कनेक्टिविटी और आर्थिक विकास को नई दिशा मिलेगी,,,

 

निर्माण से पहाड़ों में भविष्य में होने वाले साइड इफेक्ट

 

1. पर्यावरणीय प्रभाव

  • भूस्खलन का खतरा: हिमालय का भूगोल पहले से ही भूस्खलन-प्रवण है। सुरंग निर्माण और पहाड़ों की कटाई से मिट्टी और चट्टानों की स्थिरता प्रभावित हो सकती है, जिससे भूस्खलन की घटनाएं बढ़ सकती हैं।
  • जंगल और जैव-विविधता पर असर: परियोजना के लिए वन क्षेत्रों की कटाई और भूमि अधिग्रहण से स्थानीय वनस्पतियों और जीव-जंतुओं का आवास नष्ट हो सकता है। हिमालय में कई दुर्लभ प्रजातियां पाई जाती हैं, जिन पर खतरा मंडरा सकता है।
  • जल स्रोतों पर प्रभाव: सुरंग निर्माण से भूजल स्तर और प्राकृतिक जल स्रोत (जैसे झरने) प्रभावित हो सकते हैं, जिसका असर स्थानीय समुदायों और कृषि पर पड़ सकता है।
  • मलबे का निपटान: निर्माण के दौरान निकलने वाला मलबा नदियों और घाटियों में प्रदूषण का कारण बन सकता है, खासकर गंगा और उसकी सहायक नदियों के लिए।

India's longest transport tunnel takes shape in Rishikesh-Karnaprayag rail project - India Today

2. सामाजिक और सांस्कृतिक प्रभाव

  • स्थानीय समुदायों का विस्थापन: परियोजना के लिए भूमि अधिग्रहण से कई गांवों के लोग विस्थापित हो सकते हैं। इससे उनकी आजीविका और सांस्कृतिक पहचान पर असर पड़ सकता है।
  • पर्यटन का दबाव: बेहतर कनेक्टिविटी से चार धाम यात्रा और पर्यटन बढ़ेगा, लेकिन अनियंत्रित पर्यटन से स्थानीय संस्कृति और पर्यावरण पर दबाव बढ़ सकता है।
  • शहरीकरण और जनसंख्या दबाव: रेल लाइन के साथ नए शहरों और बाजारों का विकास हो सकता है, जिससे पहाड़ी क्षेत्रों में अनियोजित शहरीकरण और संसाधनों पर दबाव बढ़ेगा।

3. आर्थिक और बुनियादी ढांचे पर प्रभाव

  • रखरखाव की चुनौतियां: हिमालय में बारिश, बर्फबारी और भूकंपीय गतिविधियों के कारण रेल लाइन और सुरंगों का रखरखाव महंगा और जटिल हो सकता है।
  • आर्थिक असंतुलन: रेल नेटवर्क से कुछ क्षेत्रों को अधिक लाभ होगा, जबकि दूरस्थ गांव उपेक्षित रह सकते हैं, जिससे क्षेत्रीय असमानता बढ़ सकती है।

4. जलवायु परिवर्तन और दीर्घकालिक जोखिम

  • हिमनदों पर प्रभाव: हिमालय में ग्लेशियर पहले से ही जलवायु परिवर्तन के कारण पिघल रहे हैं। निर्माण कार्य और बढ़ता मानवीय हस्तक्षेप इस प्रक्रिया को तेज कर सकता है।
  • प्राकृतिक आपदाओं का जोखिम: हिमालय में भूकंप और बाढ़ जैसी आपदाएं आम हैं। रेल लाइन और सुरंगों को इन जोखिमों के लिए डिज़ाइन किया गया है, लेकिन दीर्घकालिक स्थिरता सुनिश्चित करना चुनौतीपूर्ण होगा।

L&T Begins TBM Shakti's Assembly for Rishikesh – Karnaprayag Rail - The Metro Rail Guy

5. सकारात्मक प्रभावों के साथ संतुलन की आवश्यकता

  • हालांकि परियोजना से कनेक्टिविटी, पर्यटन और आर्थिक विकास को बढ़ावा मिलेगा, लेकिन इन साइड इफेक्ट्स को कम करने के लिए सख्त पर्यावरणीय नियम, टिकाऊ निर्माण प्रथाएं, और स्थानीय समुदायों की भागीदारी जरूरी है।
  • उपाय: मलबे का उचित निपटान, वनरोपण, भूस्खलन रोकथाम के लिए इंजीनियरिंग समाधान, और स्थानीय लोगों के लिए पुनर्वास और रोजगार के अवसर जैसे कदम प्रभावों को कम कर सकते हैं।

निष्कर्ष

ऋषिकेश-कर्णप्रयाग रेल परियोजना उत्तराखंड के विकास के लिए महत्वपूर्ण है,उत्तराखंड का नया रेल नेटवर्क न केवल हिमालय की चुनौतियों पर विजय का प्रतीक है, बल्कि यह राज्य के आर्थिक और सामाजिक विकास का आधार भी बनेगा। यह परियोजना उत्तराखंड को आधुनिक भारत के नक्शे पर और मजबूती से स्थापित करेगी, लेकिन इसके दीर्घकालिक साइड इफेक्ट्स को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। पर्यावरण, सामाजिक और आर्थिक प्रभावों को कम करने के लिए टिकाऊ और समावेशी दृष्टिकोण अपनाना जरूरी है, ताकि हिमालय की नाजुक पारिस्थितिकी और स्थानीय समुदायों की सुरक्षा सुनिश्चित हो।

 

तबादला एक्ट दरकिनार…तय समय पर पात्र कर्मियों की सूची जारी नहीं कर पा रहे विभाग

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प्रदेश में तबादलों के लिए एक्ट बना है। एक्ट के तहत जारी समय-सारणी के मुताबिक सभी विभागों को 15 अप्रैल तक तबादलों के लिए पात्र शिक्षकों और कर्मचारियों की सूची जारी करनी है, लेकिन कुछ विभाग इस सूची को तय समय पर जारी नहीं कर पा रहे हैं।

तबादला एक्ट के तहत हर संवर्ग के लिए सुगम, दुर्गम क्षेत्र के कार्यस्थल, तबादलों के लिए पात्र कर्मचारियों एवं उपलब्ध और संभावित खाली पदों की सूची विभाग की वेबसाइट पर 15 अप्रैल तक प्रदर्शित की जानी है। इसके बाद 20 अप्रैल तक अनिवार्य तबादलों के लिए पात्र कर्मचारियों से अधिकतम 10 इच्छित स्थानों के लिए विकल्प मांगे जाने हैं, लेकिन कुछ विभाग सूची जारी नहीं कर पा रहे हैं।

 

अब तक कोई निर्देश नहीं मिला
शिक्षा विभाग के एक अधिकारी के मुताबिक तबादलों के लिए हर साल शासन से निर्देश जारी किया जाता है। इस पर अब तक कोई निर्देश नहीं मिला। मुख्य सचिव की अध्यक्षता में हुई बैठक में लिए गए निर्णयों पर भी कोई दिशा निर्देश नहीं मिला। यही वजह है कि कितने प्रतिशत शिक्षकों व कर्मचारियों के तबादले किए जाने हैं इस पर असमंजस बना है।

 

जूनियर हाईस्कूल शिक्षक संघ के प्रदेश अध्यक्ष विनोद थापा के मुताबिक खाली शत प्रतिशत पदों पर तबादले किए जाएं। इसके लिए 10 या 15 प्रतिशत का कोई सीमा तय नहीं होनी चाहिए। उन्होंने यह भी कहा कि विभाग ने इस बार नए सिरे से सुगम, दुर्गम क्षेत्र का भी निर्धारण नहीं किया। पिछले साल जो स्थिति थी उसके आधार पर सुगम, दुर्गम क्षेत्र तय किए गए हैं।

 

तबादलों के लिए मुख्य सचिव की अध्यक्षता में जो प्रस्ताव तैयार किया गया उसे मंजूरी मिल गई है, जल्द ही इस पर निर्देश जारी कर दिया जाएगा। -ललित मोहन रयाल, अपर सचिव कार्मिक

पंचायत एक्ट में संशोधन के लिए आज अध्यादेश ला सकती है सरकार, इन प्रस्तावों पर लगेगी मुहर

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पंचायत एक्ट में संशोधन के लिए प्रदेश सरकार आज अध्यादेश ला सकती है। ओबीसी आरक्षण के लिए पंचायत एक्ट में संशोधन होना है। एकल सदस्यीय समर्पित आयोग आरक्षण के लिए सरकार को अपनी रिपोर्ट सौंप चुका है।सुप्रीम कोर्ट के एक आदेश के मुताबिक 50 प्रतिशत से अधिक पद आरक्षित नहीं किए जा सकते। ऐसे में एससी, एसटी और ओबीसी का आरक्षण 50 प्रतिशत से अधिक नहीं होगा। राज्य में पंचायत चुनाव से पहले ओबीसी के आरक्षण के लिए एक्ट में संशोधन किया जाना है।

 

पूर्व आईएएस एसएस पांगती बताते हैं कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश के मुताबिक किसी भी संदर्भ में 50 प्रतिशत से अधिक पद आरक्षित नहीं किए जा सकते, लेकिन वोट बैंक को खुश करने के लिए इसकी अनदेखी होती रही है। धामी कैबिनेट की बैठक आज मंगलवार को होगी।

शाम को छह बजे सीएम की अध्यक्षता में होगी बैठक 
बैठक में राज्य की महिला नीति समेत कई प्रस्ताव आ सकते हैं। शाम को छह बजे मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी की अध्यक्षता में बैठक शुरू होगी। प्रदेश में कृषि से संबंधित योजनाओं को लेकर कई फैसले हो सकते हैं। इसमें ड्रैगन फ्रूट खेती की नीति, कीवी, मोटे अनाज को बढ़ावा देने की नीति शामिल है।

 

 

इसके अलावा ऊधमसिंह नगर जिले में ग्राम पंचायत सिरौली कलां को नगर पंचायत बनाने का प्रस्ताव भी कैबिनेट में आ सकता है। स्ट्रीट चिल्ड्रन नीति भी कैबिनेट में रखी जा सकती है। वहीं, वेडिंग डेस्टिनेशन पॉलिसी और होम स्टे सेवायोजन को लेकर भी प्रस्ताव आ सकता है

चारधाम यात्रा -बीकेटीसी अध्यक्ष की ताजपोशी को लेकर संशय बरकरार

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सीएम से लेकर मंत्री व अधिकारी चारधाम यात्रा की व्यवस्थाओं को लेकर दिन रात चिंतित नजर आ रहे हैं।

हर दिन चारधाम यात्रा को लेकर कोई न कोई व्यवस्था की बात हो रही है।
शासन के अधिकारी आईएएस राजेश कुमार,युगल किशोर पंत,खैरवाल व पुरुषोत्तम चारधाम यात्रा रूट का हाल देख लौट चुके हैं।

एक पखवाड़े बाद चारधाम यात्रा शुरू हो जाएगी। लेकिन अभी तक बद्री-केदार मन्दिर समिति की रिक्त अध्यक्ष पद की सीट पर किसी योग्य व्यक्ति की ताजपोशी नहीं हो पाई है।

हालांकि, इस बीच सीएम धामी लगभग तीन दर्जन पार्टी नेताओं को अहम दायित्व सौंप चुके हैं। साथ ही राज्य मुख्य सूचना आयुक्त से लेकर सूचना आयुक्त के पदों पर भी ताजपोशी हो चुकी है।

लेकिन अजेंद्र अजय का कार्यकाल पूरा होने व लम्बा समय बीतने के बाद किसी निर्विवाद चेहरे की अभी तक तलाश पूरी नहीं हो पाई है।

बीते सालों में बद्री केदार मन्दिर समिति को लेकर काफी विवाद देखने को मिले। केदारनाथ मन्दिर में सोने की परत का पीतल में तब्दील होने, मन्दिर परिसर में क्यू आर कोड समेत कई अन्य मामले मीडिया की सुर्खियां बने।

बीकेटीसी के अंदर चल रहे विवाद भी सीएम दरबार तक पहुंचे। लिहाजा, सीएम धामी स्वच्छ छवि के अध्यक्ष की तलाश में है।

पार्टी के कई नेताओं ने अपने अपने क्षत्रप पकड़ कर बीकेटीसी अध्यक्ष की कुर्सी के लिए जोड़ तोड़ लगा रहे हैं।

चारधाम यात्रा सिर पर खड़ी है। बिना अध्यक्ष के बीकेटीसी बोर्ड में बजट व वेतन सम्बन्धी कई फैसले अटके पड़े हैं।

बहरहाल, एक सीईओ ही मौजूदा व्यबस्था देख रहे हैं। अध्यक्ष के अलावा उपाध्यक्ष की कुर्सी के लिए राजनीति तेज हो गयी है।

धर्मस्व व संस्कृति मंत्री सतपाल महाराज की मौजूदगी में कुछ दिन पहले हुई बैठक में सब कुछ तय होने का दावा किया गया था। लेकिन अभी तक बीकेटीसी अध्यक्ष व अन्य पदाधिकारियों की ताजपोशी को लेकर ऊहापोह की स्थिति बनी हुई है।

चारधाम यात्रा-बैठकों का सिलसिला जारी

मुख्य सचिव आनन्द बर्द्धन ने शनिवार को सुरक्षित, सुगम और सुव्यवस्थित चारधाम यात्रा की तैयारियों को लेकर सचिवालय स्थित अपने सभागार में अधिकारियों के साथ बैठक ली। उन्होंने चारधाम यात्रा मार्ग की पुख्ता व्यवस्थाओं को लेकर सभी विभागों को अभी से अपनी तैयारियां समयबद्धता से पूरी करने के निर्देश दिए हैं।

यात्रामार्गों को चारधाम यात्रा से पहले किया जाए दुरूस्तः मुख्य सचिव

पूर्व में जारी अपने निर्देशों के क्रम में मुख्य सचिव ने सचिव युगल किशोर पंत को देहरादून से केदारनाथ, सचिव डा. आर राजेश कुमार को बद्रीनाथ यात्रा मार्ग, सचिव डॉ. बी.वी.आर.सी. पुरुषोत्तम को गंगोत्री धाम तथा डॉ. नीरज खैरवाल से यमुनोत्री धाम की तैयारियों के सम्बन्ध में फीडबैक लिया।

उन्होंने जिलाधिकारियों को निर्देश दिए कि सभी सचिवों से प्राप्त सुझावों का अनुपालन करते अथवा कमियों को दुरूस्त किया जाए। यात्रा मार्ग पर सभी जरूरतों का अभी से आंकलन करते हुए सभी व्यवस्थाएं यात्रा आरम्भ से पहले दुरूस्त करने के निर्देश दिए हैं। उन्होंने कार्यदायी संस्थाओं को संवेदनशीलता के साथ एवं कार्य निर्धारित समय पर पूर्ण करने को गम्भीरता से लेने के निर्देश दिए। उन्होंने प्रत्येक धाम एवं उनके यात्रामार्गों पर मूलभूत सुविधाओं की व्यवस्था सुनिश्चित किए जाने के निर्देश दिए। उन्होंने यूपीसीएल को धामों में लॉ-वॉल्टेज की समस्या को शीघ्र दुरूस्त किए जाने के भी निर्देश दिए।

यात्रा पंजीकरण स्थलों में स्वास्थ्य जांच केन्द्रों की संख्या बढ़ायी जाए

मुख्य सचिव ने केदारनाथ में बन रहे अस्पताल को या़त्रा शुरू होने से पहले सुचारू किए जाने के निर्देश दिए। इसके साथ ही उन्होंने सुरक्षित या़त्रा के लिए निवारक उपायों की अत्यधिक आवश्यकता पर बल देते हुए स्वास्थ्य जांच केन्द्रों को बढाए जाने के भी निर्देश दिए। उन्होंने कहा कि यात्रा की शुरूवात में ही स्वास्थ्य परीक्षण हो सके इसके लिए हरिद्वार, ऋषिकेश एवं विकासनगर में हेल्थ स्क्रीनिंग केन्द्रों की संख्या बढ़ाई जाए। मुख्य सचिव ने मल्टी लेवल पार्किंग की व्यवस्था पर बल देते हुए अधिक से अधिक पार्किंग स्थलों को चिन्हित किए जाने की बात कही। कहा कि पार्किंग स्थलों के आस-पास रहने खाने एवं स्वास्थ्य जांच आदि की व्यवस्था सुनिश्चित की जाए। उन्होंने कहा कि सभी यात्रा मार्गों पर स्थानीय स्तर परिस्थितियों एवं विकल्प मार्गों के अनुरूप यातायात प्रबंधन योजना तैयार की जाए।

यात्रा मार्गों पर श्रद्धालुओं द्वारा वृक्षारोपण हेतु ‘स्मृति वन‘ किए जाएं चिन्हित

मुख्य सचिव ने श्रद्धालुओं द्वारा यात्रा मार्गों पर वृक्षारोपण करने हेतु स्मृति वन के लिए स्थान चिन्हित किए जाने की भी बात कही। उन्होंने कहा कि इच्छित श्रद्धालु इन पलों को यादगार बनाने के लिए पौधारोपण कर सकते हैं।

जाम आदि की जानकारी हेतु डिजीटल डिस्प्ले बोर्ड की की जाए व्यवस्था

मुख्य सचिव ने कहा कि यात्रा मार्गों में दृर्घटनाओं या लैंड स्लाईड से लगने वाले जाम के कारण पीछे लगी लम्बी लाईनों में यात्रियों को जाम के कारणों की उचित जानकारी मिल सके इसके लिए मैकेनिज्म तैयार किया जाए। उन्होंने कहा कि इसके लिए यात्रा मार्गों पर डिजीटल डिस्प्ले बोर्ड लगाए जा सकते हैं, जो यह जानकारी उपलब्ध कराएंगे कि किस स्थान पर कौन सी घटना घटी है, जिसके कारण जाम लगा है। उन्होंने इसके लिए सचिव लोक निर्माण विभाग को व्यवस्थाएं सुनिश्चित किए जाने के निर्देश दिए। उन्होंने कहा जब तक यह व्यवस्था धरातल पर उतरती है तब तक बल्क एसएमएस और बल्क व्हॉट्सअप मैसेज के माध्यम से यह जानकारी उपलब्ध करायी जाए। उन्होंने संभावित भूस्खलन क्षेत्रों का ट्रीटमेंट शीघ्र किए जाने के निर्देश दिए। कहा कि इन भूस्खलन क्षेत्रों के लिए दीर्घावधि उपचार पर भी शीघ्र कार्यवाही सुनिश्चित की जाए।

सर्विस प्रोवाइडर की आरएफआईडी टैग बनाए जाएंः मुख्य सचिव

मुख्य सचिव ने यात्रा मार्गों पर स्वच्छता पर विशेष ध्यान दिए जाने के भी निर्देश दिए। उन्होंने ‘सुलभ‘ को नियमित सफाई एवं पानी की व्यवस्था सुनिश्चित किए जाने के भी निर्देश दिए। उन्होंने कहा कि सफाई व्यवस्था के लिए पूरे प्रदेश में यह व्यवस्था सुनिश्चित किए जाने की बात कही। उन्होंने इसके लिए उत्तराखण्ड प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड एवं 15वें वित्त आयोग की स्वच्छता हेतु टाईड फंड से भी फंड्स उपलब्ध कराए जाने की बात कही। उन्होंने चारों धामों में दुकानदार एवं घोड़ा/कंडी संचालक सहित सभी प्रकार केे सर्विस प्रोवाईडर की आरएफआईडी टैग बनाए जाने के निर्देश दिए। उन्होंने जिलाधिकारियों को निर्देश दिए कि धामों में श्रद्धालुओं के रूकने के लिए लगाए गए टैन्ट आदि को सुव्यस्थित ढंग से लगाए जाने हेतु व्यवस्थाएं सुनिश्चित की जाएं।

इस अवसर पर सचिव शैलेश बगोली, नितेश कुमार झा, सचिन कुर्वे, डॉ. बी.वी.आर.सी. पुरूषोत्तम, डॉ. पंकज कुमार पाण्डेय, चंद्रेश कुमार यादव, डॉ. आर. राजेश कुमार, डॉ. नीरज खैरवाल, कमिश्नर गढ़वाल विनय शंकर पाण्डेय, सचिव युगल किशोर पंत, महानिदेशक सूचना बंशीधर तिवारी सहित वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से चारधाम एवं यात्रामार्गों से सम्बन्धित जनपदों के जिलाधिकारी एवं अन्य वरिष्ठ अधिकारी उपस्थित थे।

उत्तराखण्ड के दलित/अनुसूचित वर्ग/अनुसूचित जनजाति वर्ग के समाज सुधारकों के नाम पर बनेंगे बहुद्देशीय भवन

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हरिद्वार। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी को उत्तराखंड में समान नागरिक संहिता (UCC) लागू करने के लिए डॉ. बी.आर. अंबेडकर महामंच द्वारा हरिद्वार में आयोजित कार्यक्रम में सम्मानित किया गया।

संविधान निर्माता डॉ. भीमराव अंबेडकर की 135वीं जयंती पर हरिद्वार में बी.एच.ई.एल मैदान में यह कार्यक्रम आयोजित किया गया जिसमें कि चिलचिलाती धूप में बड़ी संख्या में स्थानीय जनता की जोशपूर्ण मौजूदगी रही।

सीएम पुष्कर सिंह धामी ने सम्मान के लिए आभार जताते हुए कहा कि इतनी बड़ी संख्या में उमड़ी जनता से जाहिर है कि जनता ने इस साहसिक फैसले पर अपना भरोसा जता दिया है।

उन्होंने कहा कि यह सम्मान सिर्फ एक व्यक्ति को नहीं, बल्कि उस विचारधारा को था जिसने वर्षों से भारतीय समाज में न्याय और समानता की आवाज़ बुलंद की है।

अपने संबोधन में मुख्यमंत्री धामी ने बाबा साहेब को एक युगदृष्टा बताया। उन्होंने कहा कि डॉ. अंबेडकर इस बात में विश्वास रखते थे कि जब तक देश के प्रत्येक नागरिक को समान अधिकार प्राप्त नहीं होते, तब तक समाज में सच्ची समानता संभव नहीं है। यही सोच थी, जिसने उन्हें समान नागरिक संहिता जैसी क्रांतिकारी अवधारणा को संविधान में स्थान देने के लिए प्रेरित किया। मुख्यमंत्री ने स्पष्ट किया कि उत्तराखंड सरकार ने सिर्फ एक कानून नहीं लागू किया, बल्कि सामाजिक न्याय और समानता की दिशा में एक बड़ा कदम उठाया है।

 

मुख्यमंत्री धामी ने कहा कि वर्षों तक बाबा साहेब की उपेक्षा की गई, उनके विचारों को हाशिए पर रखा गया, जबकि आज का भारत उनके सपनों को अपनाने की ओर अग्रसर है। यह नया भारत है — जो न सिर्फ अपनी विरासत को सम्मान देता है, बल्कि साहसिक निर्णय लेकर नए मानदंड भी स्थापित करता है।

सीएम ने कहा कि हरिद्वार में उमड़ी यह भीड़ केवल उपस्थित लोगों का जमावड़ा नहीं है— यह एक जनआवाज़ है, जो कह रही है कि मुख्यमंत्री धामी के फैसलों पर जनता का भरोसा है और अब यह गूंज उत्तराखंड से निकलकर पूरे देश में सुनाई दे रही है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मार्गदर्शन और हमारी दृढ़ इच्छाशक्ति ने मिलकर यह ऐतिहासिक निर्णय संभव किया है।

उत्तराखंड आज एक बार फिर देश को दिशा दिखा रहा है — जहां समानता अब सिर्फ किताबों में नहीं, बल्कि कानून की शक्ल में ज़मीन पर उतर चुकी है। यह सिर्फ एक कानून लागू करने की बात नहीं, यह एक नए भारत की ओर बढ़ाया गया निर्णायक कदम है।

मुख्यमंत्री धामी ने आने वाले पीढ़ी को अनुसूचित समाज का उद्धार करने वाले समाजसेवकों के जीवन चरित्र और इतिहास के साथ-साथ भारतीय संविधान के बारे में जानकारी देने के लिए हरिद्वार में बाबा साहब समरसता स्थल का निर्माण किए जाने। समाज कल्याण विभाग द्वारा संचालित की जाने वाली एससीपी/टीएसपी योजनाओं के अन्तर्गत अनुसूचित समाज की बाहुल्यता वाले क्षेत्रों में उत्तराखण्ड के दलित/अनुसूचित वर्ग/अनुसूचित जनजाति वर्ग के समाज सुधारकों के नाम पर बहुद्देशीय भवन बनाये जाने एवं अनुसूचित समाज के कल्याण संबंधी योजनाओं व अधिकारों के प्रति हमारी आने वाली पीढ़ी को जागरूक करने के उद्देश्य से विभिन्न स्कूलों और कॉलेजों में विशेष जन-जागरुकता कार्यक्रम अनुसूचित जाति आयोग के माध्यम से आयोजित किए जाने की घोषणा की।

कार्यक्रम से पूर्व बीएचईएल मैदान से केंद्रीय विद्यालय परिसर तक आयोजित रैली में हजारों की संख्या में लोगों ने मुख्यमंत्री पर पुष्प वर्षा कर उनका आभार व्यक्त किया।

मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने डॉ बी.आर अम्बेडकर को नमन करते हुए कहा कि डॉ बी.आर अम्बेडकर ने हमारे समाज को समानता, समरसता और न्याय का मार्ग दिखाया। आज भी बाबा साहेब हमारी सामूहिक चेतना का अभिन्न हिस्सा हैं। उनका संपूर्ण जीवन ही हमारे लिए एक संदेश है। उन्होंने गुलाम भारत में जन्म लेकर अपने ज्ञान और संकल्प से स्वयं के साथ करोड़ों लोगों के जीवन को भी बलदने का काम किया है। उन्होंने अन्य लोगों को न्याय की राह दिखाई। उन्होंने कहा समाज के वंचित वर्ग को मुख्य धारा में लाने के लिए बाबा साहेब का संघर्ष हम सभी के लिए प्रेरणा है।

मुख्यमंत्री ने कहा भारतीय संविधान के निर्माण में बाबा साहेब के योगदान के लिए हर देशवासी सदैव उनका आभारी रहेगा। उन्होंने संविधान की प्रस्तावना में न्याय, स्वतंत्रता, समानता भारतीय गणराज्य के मूल स्तंभ को रखा। बाबा साहब ने ऐसे भारत की परिकल्पना की जिसमें सभी वर्गों को समान अधिकार, समान अवसर और समान गरिमा प्राप्त हो। मुख्यमंत्री ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में राज्य सरकार ने आजादी के बाद उत्तराखंड में सबसे पहले समान नागरिक संहिता लागू कर बाबा साहेब के सपनों के भारत के निर्माण की दिशा में ऐतिहासिक कदम उठाया है और उन्हें सच्ची श्रद्धांजलि अर्पित की है।

मुख्यमंत्री ने कहा बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर ने संविधान निर्माता के रूप में समान नागरिक संहिता को संविधान के अनुच्छेद 44 के तहत राज्य के नीति निदेशक सिद्धांतों में सम्मिलित किया था। वो भली भांति जानते थे कि भारत और भारतीय समाज के लिए समान नागरिक संहिता बेहद आवश्यक है। उन्होंने समान नागरिक संहिता को कानूनी, सामाजिक आवश्यकता के साथ नैतिक आवश्यकता भी माना। बाबा साहेब ने हमेशा सभी जाति, धर्म के लोगों के लिए एक समान कानून की बात को प्राथमिकता दी थी। मुख्यमंत्री ने कहा समान नागरिक संहिता का उद्देश्य समाज में समुदायों के लिए अलग-अलग व्यक्तिगत कानूनों के कारण भेदभाव, असमानता और अन्याय की स्थिति खत्म करना है।

मुख्यमंत्री ने कहा कि बाबा साहब ने हमेशा समाज की प्रगति में महिलाओं की भागीदारी पर जोर दिया। उन्होंने कहा राज्य में यूसीसी लागू होने के बाद महिला सशक्तिकरण के क्षेत्र में नए युग की शुरुआत हुई है। उन्होंने कहा यूसीसी के माध्यम से उत्तराखंड की मुस्लिम बहन-बेटियों को इद्दत, बहुविवाह, बाल विवाह और तीन तलाक जैसी कुरीतियों से मुक्ति मिली है। अब किसी भी महिला को उत्तराधिकार या संपत्ति के अधिकार में भेदभाव का सामना नहीं करना पड़ेगा।

मुख्यमंत्री ने कहा कि प्रधानमंत्री मोदी की नीतियों और कार्यशैली में बाबा साहब के विचार दिखाई देते हैं। बाबा साहेब की जयंती पर राष्ट्रीय अवकाश घोषित कर प्रधानमंत्री ने उन्हें सच्ची श्रद्धांजलि अर्पित की है। सरकार द्वारा बाबा साहेब की स्मृतियों से जुड़े प्रमुख स्थलों को राष्ट्र चेतना के पंच तीर्थ के रूप में विकसित किया जा रहा है। उन्होंने कहा आज़ादी के बाद पहली बार प्रधानमंत्री मोदी ने ही सच्चे मन से दलितों और वंचितों के उत्थान के साथ उन्हें समाज की मुख्यधारा में जोड़ने का कार्य किया है।

मुख्यमंत्री ने कहा कि सरकार ने अनुसूचित वर्ग के कल्याण हेतु आम बजट में वृद्धि की है। आर्थिक, शैक्षणिक और सामाजिक स्थिति को मजबूत करने के लिए कई महत्वपूर्ण निर्णय लिए गए हैं। दलित उत्पीड़न कानून 1989 को केंद्र सरकार ने संशोधित कर और सख्त बनाया है। स्टैंडअप इंडिया योजना, प्रधानमंत्री आवास योजना, उज्ज्वला योजना, हर घर नल से जल, आयुष्मान भारत जैसी अनेकों योजनाओं में भी गरीबों, शोषितों, वंचितों, आदिवासियों और दलितों को प्राथमिकता देते हुए उनका समग्र विकास सुनिश्चित किया जा रहा है।

मुख्यमंत्री ने कहा राज्य सरकार देवभूमि उत्तराखंड के सांस्कृतिक मूल्यों और डेमोग्राफी को संरक्षित रखने के प्रति भी पूर्ण रूप से संकल्पबद्ध है। प्रदेश के साथ खिलवाड़ करने वाले घृणित मानसिकताओं के खिलाफ कड़ी कार्रवाई सुनिश्चित की जा रही है। मुख्यमंत्री ने कहा हाल के दिनों में कुछ असामाजिक तत्व अपने राजनैतिक स्वार्थों के चलते समाज को क्षेत्रवाद और जातिवाद के नाम पर बांटने का प्रयास कर रहे हैं। उन्होंने कहा उत्तराखंड की एकता, अखंडता और सामाजिक समरसता पर किसी भी प्रकार की कोई आँच नहीं आएगी।

मुख्यमंत्री ने कहा कि प्रधानमंत्री के मार्गदर्शन में राज्य सरकार भी अनुसूचित समाज को सशक्त, शिक्षित और आत्मनिर्भर बनाने हेतु हरसंभव प्रयास कर रही है। राज्य सरकार द्वारा कक्षा 1 से 12वीं तक के बच्चों को छात्रवृत्ति एवं राज्य में निशुल्क 15 छात्रावास, 5 आवासीय विद्यालय और 3 आईटीआई का संचालन किया जा रहा है। प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी के लिए कोचिंग की निःशुल्क व्यवस्था भी की गई है। राज्य सरकार ने प्रदेश में जातीय भेदभाव को समाप्त करने और सामाजिक समरसता को बढ़ावा देने के उद्देश्य से अनुसूचित जाति के युवक या युवती से अंतर-जातीय विवाह करने पर 50 हजार रुपये की प्रोत्साहन राशि प्रदान की जा रही है।

Uttarakhand: पंचायत चुनाव…इसी सप्ताह जारी होगी ऑनलाइन मतदाता सूची, 9 जिलों के बैलेट पेपर भिजवाए गए.

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उत्तराखंड में त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव के लिए राज्य निर्वाचन आयोग इसी सप्ताह मतदाता सूची ऑनलाइन जारी करेगा। इस संबंध में आयोग के अफसरों के साथ मंगलवार को एनआईसी अफसरों की बैठक हुई। बैठक में पूरी प्रक्रिया पर अंतिम निर्णय लिया गया।

राज्य निर्वाचन आयोग इस बार पंचायत चुनाव से पूर्व मतदाताओं को जागरूक करने में जुटा है। पहली बार हर पंचायत तक मतदाता सूची पहुंचाकर ग्रामीणों को इसकी जानकारी दी गई थी ताकि वे अपने नाम जांच लें। प्रदेशभर की पंचायतों में मतदाता सूची के संशोधन का विशेष अभियान भी चलाया गया था। अब आयोग पहली बार पंचायतों की मतदाता सूची को ऑनलाइन अपलोड करने जा रहा है।

 

आयोग के सचिव राहुल गोयल ने बताया कि इस संबंध में एनआईसी के अधिकारियों के साथ बैठक हुई है। उन्होंने कहा कि आगामी दो से तीन दिन में आयोग की वेबसाइट पर मतदाता सूची उपलब्ध करा दी जाएगी। इसी हिसाब से ग्रामीण अपने वोट इस सूची में देख सकेंगे। दूसरी ओर, आयोग ने नौ जिलों में बैलेट पेपर प्रकाशित करा कर भेज दिए हैं। हरिद्वार में फिलहाल चुनाव नहीं होंगे। बाकी तीन जिलों के लिए भी प्रक्रिया गतिमान है।

 

सरकार लाएगी अध्यादेश-

पंचायत चुनाव में ओबीसी आरक्षण लागू करने के लिए एक्ट में संशोधन की जरूरत है। इसके लिए पंचायती राज विभाग अध्यादेश लाने की तैयारी कर रहा है। इसका प्रस्ताव शासन में तैयार हो रहा है, जिस पर कैबिनेट में मुहर लगेगी। इसके बाद अध्यादेश जारी होगा। अध्यादेश के बाद पंचायतों में एकल सदस्यीय समर्पित आयोग की रिपोर्ट के हिसाब से ओबीसी आरक्षण लागू किया जाएगा।