Author: Pravesh Rana

Lok Sabha Election: जल्द उत्तराखंड दौरे पर आ सकते हैं नड्डा, 2 सीटों पर इस दिन उम्मीदवार घोषित करेगी भाजपा।

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भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा 10 मार्च के बाद उत्तराखंड का राजनीतिक दौरा कर सकते हैं। उनके नौ या 10 मार्च तक आने की संभावना जताई जा रही थी, लेकिन उनकी राजनीतिक व्यस्तता के चलते समय तय नहीं हो पाया है।
माना जा रहा कि केंद्रीय चुनाव समिति 10 मार्च तक लोस चुनाव के प्रत्याशियों के चयन की प्रक्रिया में व्यस्त रहेगी, इसलिए नड्डा प्रत्याशियों की सूची फाइनल करने के बाद उत्तराखंड आएंगे। सूत्रों के मुताबिक, पार्टी चाहती है कि राष्ट्रीय अध्यक्ष लोस चुनाव की आचार संहिता लागू होने से पहले एक दौरा कर लें।

प्रदेश में पार्टी ने नड्डा के तीन कार्यक्रम तय किए हैं। पहला कार्यक्रम हल्द्वानी में होना है, जहां बूथ स्तर तक के पदाधिकारियों का सम्मेलन होगा। इसके बाद दूसरा कार्यक्रम हरिद्वार में होगा, जहां चुनाव प्रबंधन समिति की बैठक रखी गई है। तीसरा कार्यक्रम देहरादून में प्रबुद्ध वर्ग सम्मेलन के तौर पर होगा।

10 मार्च तक उम्मीदवार घोषित होने की संभावना-

पार्टी से जुड़े सूत्रों के मुताबिक, भाजपा हरिद्वार और गढ़वाल लोस सीट पर 10 मार्च तक उम्मीदवार घोषित कर सकती है। इस बीच केंद्रीय नेतृत्व ने प्रदेश नेतृत्व से फीड बैक लिया है। साथ ही एक एजेंसी भी दावेदारों का दमखम टटोल रही है।

गढ़वाल और हरिद्वार लोकसभा सीट पर अभी पेच फंसा-

गढ़वाल और हरिद्वार लोकसभा सीट पर अभी पेच फंसा है। इन दोनों सीटों पर उम्मीदवार बदले जा सकते हैं। केंद्रीय नेतृत्व ने टिहरी लोस सीट पर राजशाही परिवार पर भरोसा जताते हुए माला राज्य लक्ष्मी शाह पर फिर से भरोसा जताया है। हालांकि, प्रत्याशियों की घोषणा से पहले तक माला राज्य लक्ष्मी शाह के टिकट को लेकर तमाम तरह की अटकलें लगाई जा रही थीं।

इस सीट पर कई दावेदारों के नाम भी सामने आ रहे थे, लेकिन अंततः माला राज्य लक्ष्मी को पार्टी ने लगातार तीसरे चुनाव अपना उम्मीदवार बनाया है। अल्मोड़ा-पिथौरागढ़ लोकसभा सीट पर पार्टी ने अजय टम्टा पर फिर से विश्वास जताया है। इस सीट को लेकर अटकलों का बाजार खासा गर्म था

Lok Sabha Chunav 2024: उत्तराखंड में गठबंधन के बीच हरिद्वार लोस सीट पर सपा की निगाहें, जानिए कैसा है वोटों का गणित।

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आगामी लोकसभा चुनाव के लिए उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी और कांग्रेस गठबंधन के बीच अब समाजवादी पार्टी उत्तराखंड की टीम को हरिद्वार सीट पर टिकट का इंतजार है। इस सीट पर लोकसभा चुनाव में पार्टी का प्रत्याशी एक बार जीत दर्ज कर चुका है। वहीं, एक बार विधानसभा चुनाव में भी प्रत्याशी ने यहां जीत दर्ज की थी। आलाकमान ने अभी 10 मार्च तक का समय दिया है।

वोटों के गणित के हिसाब से समाजवादी पार्टी अपने लिए हरिद्वार सीट को मुफीद मानती है। 1996 के विधानसभा चुनाव में पार्टी प्रत्याशी अमरीश कुमार और 2004 लोकसभा चुनाव में उनके प्रत्याशी राजेंद्र कुमार के चुनाव जीतने के बाद से हर चुनाव में सपा इस सीट पर अपनी जीत की जुगत भिड़ाती आई है। इस बार भी राज्य के सपा नेताओं की निगाहें इस सीट पर हैं, जिसकी तैयारी भी अंदरखाने चल रही है।

हरिद्वार सीट पर ही दावा पेश किया-

इस बीच यूपी में सपा और कांग्रेस का गठबंधन हो गया है। ऐसे में मुश्किल ये है कि कांग्रेस के हाथों से उत्तराखंड की पांचों लोकसभा सीटों में से कोई सपा के हाथ आएगी या नहीं, इस पर पार्टी आलाकमान को निर्णय लेना है। सपा के प्रदेश अध्यक्ष शंभूनाथ पोखरियाल का कहना है कि आलाकमान ने अभी 10 मार्च तक इंतजार करने को कहा है।

इसके बाद तय होगा कि उनका प्रत्याशी उत्तराखंड के चुनावी मैदान में दम दिखाएगा या नहीं। पार्टी के राष्ट्रीय सचिव डॉ. सत्यनारायण सचान का कहना है कि अभी आलाकमान को इस पर निर्णय लेना है। बताया, राज्य की ओर से हरिद्वार सीट पर ही दावा पेश किया गया है।

सीट न मिली तो कांग्रेस को समर्थन-

यूपी के गठबंधन के हिसाब से देखें तो अगर सपा को उत्तराखंड में कोई सीट नहीं मिली तो पार्टी पांचों सीटों पर कांग्रेस को समर्थन दे सकती है। पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव को इस पर निर्णय लेना है।

चुनाव आयोग: सरकार ने बदला नियम, अब 80 के बजाय 85 वर्ष से अधिक आयु वालों को घर से ही मतदान करने की मिलेगी सुविधा।

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लोकसभा चुनाव में इस बार 80 के बजाए 85 से अधिक आयु वाले मतदाताओं को घर से वोट डालने की सुविधा मिली है। चुनाव आयोग ने नियम में बदलाव कर दिया है। अब निर्वाचन कार्यालय की ओर से 85 से अधिक आयु वर्ग के मतदाताओं का चिन्हीकरण किया जा रहा है।

इसी हिसाब से उन्हें घर से वोट की सुविधा दी जाएगी। मुख्य निर्वाचन अधिकारी डॉ. बीवीआरसी पुरुषोत्तम ने बताया, प्रदेश में 80 से अधिक आयु वर्ग के एक लाख 54 हजार 259 मतदाता हैं। इनमें से उन्हीं मतदाताओं को घर से वोट डालने की सुविधा मिलेगी, जिनकी आयु 85 वर्ष से अधिक है। ऐसे मतदाताओं को निर्वाचन कार्यालय तक अपना अनुरोध भेजना पड़ता है।

ऐसे वोटरों को बीएलओ से 12-डी फार्म भरना होता है। अनुमति मिलने पर मतदानकर्मी उनके घर जाकर मतदान कराते हैं। मतदान दल में करीब सात लोग होते हैं, जिसमें एक सेक्टर अधिकारी, दो मतदान अधिकारी, एक माइक्रो ऑब्जर्वर, एक पुलिसकर्मी, एक वाहन चालक शामिल है। खास बात ये है कि घर से होने वाले मतदान की जानकारी संबंधित क्षेत्र के राजनीतिक दलों को भी दी जाती है, ताकि मतदान प्रक्रिया को देख सकें।

मतदाता और मतदेय स्थल बढ़े

प्रदेश में विधानसभा चुनाव के मुकाबले लोकसभा चुनाव के मतदेय स्थल बढ़ गए हैं। 2022 के विस चुनाव में प्रदेश में कुल 11,697 मतदेय स्थल थे, जिनकी संख्या लोकसभा चुनाव में बढ़कर 11,729 हो गई है। इसी प्रकार, विस चुनाव में प्रदेश में 81 लाख 72 हजार 173 मतदाता थे, जिनकी संख्या लोकसभा चुनाव में अब तक 82 लाख 43 हजार 423 पर पहुंच चुकी है।

 

हल्द्वानी के इन 5 जगहों पर जल संकट, हालात नहीं सुधरे तो मचेगी तबाही,  1500 परिवार पेयजल को तरसे।

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हल्द्वानी में गर्मी शुरू होने से पहले ही जगह-जगह पानी और बिजली की किल्लत शुरू हो गई है। बिजली-पानी नहीं आने से न केवल लोगों के कामकाज प्रभावित हो रहे हैं बल्कि लोगों को जरूरी कामकाज छोड़कर आधा दिन पानी की व्यवस्था करने में ही बिताना पड़ रहा है। जीजीआईसी का नलकूप पंप संचालन रुकने से सोमवार को 1500 परिवारों को पेयजल किल्लत का सामना करना पड़ा। वहीं फॉरेस्ट चौकी के नलकूप की मरम्मत का काम भी बीते पांच दिनों से जारी है।

पानी की किल्लत झेल रहे फॉरेस्ट चौकी दमुवाढूंगा, लोहरिया मल्ला, बजुनिया हल्दु, साईं मंदिर हिम्मतपुर मल्ला और जीजीआईसी क्षेत्र के निवासियों को जल संस्थान की ओर से नौ टैंकरों के माध्यम से पानी की आपूर्ति कराई गई। इधर जल संस्थान के अधिकारियों का कहना है नलकूप की मरम्मत का काम तेजी से चल रहा है। जल्द प्रभावित क्षेत्रों में आपूर्ति सुचारु कर दी जाएगी।

ऊंचापुल और पंचायतघर में गुल रही बिजली-

ऊंचापुल में नहर कवरिंग कार्य के चलते सोमवार को सुबह नौ बजे से शाम छह बजे तक पांच हजार की आबादी को बिजली के लिए परेशान रहना पड़ा। दूसरी ओर ट्रांसपोर्ट नगर से लगे बेलबाबा फिटर से भी सोमवार को रामपुर रोड और पंचायत घर क्षेत्र में सुबह 11 से शाम पांच बजे तक लाइन शिफ्टिंग के कार्य के चलते बिजली आपूर्ति प्रभावित रही। विद्युत वितरण खंड ग्रामीण के अधिशासी अभियंता डीडी पांगती ने बताया की विभिन्न क्षेत्रों में लाइन शिफ्टिंग और सड़क चौड़ीकरण का कार्य किया जा रहा है जिसके चलते रोस्टर जारी कर सप्लाई को बंद किया गया था। उन्होंने बताया कि शाम के समय आपूर्ति को बहाल कर दिया गया।

Uttarakhand Education: उत्तराखंड में ऐसा विकास, पर्वतीय जिलों में स्थायी शिक्षकों के 10 हजार से अधिक पद खाली, शिक्षक नहीं चढ़ रहे पहाड़।

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उत्तराखंड  प्रदेश के भाग्य निर्माण की जिम्मेदारी सबसे अधिक इस प्रदेश की सरकार की होती है सरकार की नीति ही प्रदेश का भविष्य तय करती है लेकिन जब इस पहाडी प्रदेश की दो मूलभूत सुविधाएं ही यहां से गायब दिखाई दें तो फिर किस विकास की आशा हम रख सकते हैं. प्रदेश के पर्वतीय जिलों में स्थायी शिक्षकों के 10,946 पद खाली हैं। इसमें 6,632 पद माध्यमिक और 4,314 बेसिक शिक्षा के हैं। पारदर्शी तबादलों के लिए तबादला एक्ट बनने के बाद भी शिक्षकों के पहाड़ न चढ़ने और राज्य लोक सेवा एवं अधीनस्थ सेवा चयन आयोग से भर्ती में देरी इसकी वजह बताई जा रही है।

विधानसभा में प्रश्नकाल में विधायक संजय डोभाल के प्रदेश के पर्वतीय जिलों में शिक्षकों की कमी के सवाल पर शिक्षा मंत्री डाॅ. धन सिंह रावत ने बताया, पर्वतीय जिलों में प्रवक्ताओं के 4,253 और सहायक अध्यापक एलटी के 2,379 पद खाली हैं। इन खाली पदों के विपरीत प्रवक्ता पद पर 2,594 और सहायक अध्यापक एलटी के पद पर 1,123 अतिथि शिक्षक कार्यरत हैं।

45 उच्च प्राथमिक विद्यालयों में प्रधानाध्यापक ही नहीं- 


बेसिक शिक्षा में 516 प्राथमिक विद्यालयों और 45 उच्च प्राथमिक विद्यालयों में प्रधानाध्यापक नहीं हैं। प्राथमिक विद्यालयों में सहायक अध्यापक के 3,253 और उच्च प्राथमिक विद्यालयों में सहायक अध्यापक के 500 पद खाली हैं। शिक्षा मंत्री डाॅ. धन सिंह रावत ने कहा, जिलों में शिक्षकों की समय-समय पर सेवानिवृत्ति, पदोन्नति, तबादले आदि से शिक्षकों के खाली पदों की संख्या बदलती रहती है।

कहा, सभी खाली पदों पर शिक्षकों की उपलब्धता की आदर्श स्थिति कभी संभव नहीं है। खाली पदों को स्थानांतरण, समायोजन, पदोन्नति और सीधी भर्ती आदि के माध्यम से भरे जाने का यथासंभव लगातार प्रयास किया जाता रहा, ताकि छात्र-छात्राओं की पढ़ाई प्रभावित न हो।

 

सीआरपी, बीआरपी भर्ती में एससी को मिलेगा 19 प्रतिशत आरक्षण-

विधानसभा में विधायक ममता राकेश की ओर से पूछे गए प्रश्न के जवाब में शिक्षा मंत्री धन सिंह रावत ने कहा, सीआरपी, बीआरपी के पदों पर आउटसोर्स के माध्यम से तैनाती की जाएगी। अनुसूचित जाति के लिए 19, अनुसूचित जनजाति के लिए चार और अन्य पिछड़ा वर्ग में 14 प्रतिशत के आरक्षण की व्यवस्था है। मंत्री ने यह भी बताया कि इन पदों को भरने के लिए आउटसोर्सिंग एजेंसी का चयन कौशल विकास एवं सेवायोजन विभाग के शासनादेश के अनुसार किया जाएगा।

डायटों के लिए अलग से होगी शिक्षकों की भर्ती-

प्रदेश के सरकारी विद्यालयों में शिक्षकों की कमी की एक वजह राज्य के जिला शिक्षा एवं प्रशिक्षण संस्थानों में विद्यालयों से शिक्षकों को तैनात किया जाना है। शिक्षा मंत्री ने अमर उजाला से बातचीत में बताया, प्रदेश में जो डायट हैं, उनका अलग कैडर व नियमावली नहीं है। सरकार इसके लिए अलग कैडर व नियमावली बनाने जा रही है। वर्तमान में विद्यालयों से डायटों में शिक्षकों की तैनाती की जा रही, जिससे स्कूल खाली हो रहे हैं। इनके लिए कैडर व नियमावली बनने से इनमें अलग से नए शिक्षकों की भर्ती की जाएगी, जबकि इनमें तैनात शिक्षक मूल तैनाती पर जाएंगे।

 

Uttarakhand News: राज्य में अस्पताल चलाना है तो आयुष्मान में इलाज करना होगा जरूरी… सरकार ने दी चेतावनी।

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आयुष्मान कार्ड पर मुफ्त इलाज कराने से बच रहे निजी अस्पतालों को लेकर सरकार सख्त है। स्वास्थ्य मंत्री डॉ. धन सिंह रावत ने कहा कि राज्य में अस्पताल चलाना है तो आयुष्मान में इलाज करना होगा। अस्पताल प्रबंधकों के साथ बैठक हो चुकी है। जल्द ही विभाग की ओर से इस संबंध में आदेश जारी किए जाएंगे।

कांग्रेस विधायक ममता राकेश के सवाल के जवाब में स्वास्थ्य मंत्री ने कहा कि प्रदेश में चल रहे सभी छोटे-बड़े अस्पतालों को आयुष्मान कार्ड धारकों को इलाज सुविधा देनी होगी।

कई बड़े अस्पताल कार्ड धारकों को इलाज की सुविधा नहीं दे रहे हैं। इस पर सरकार ने साफ निर्देश दिए कि राज्य में अस्पताल चलाना है तो आयुष्मान में इलाज करना होगा।

 

 

अब तक 4.87 लाख कर्मचारियों के कार्ड बन चुके हैं। इसमें 1.15 लाख कर्मचारियों ने विभिन्न बीमारियों का कैशलेस इलाज कराया। इस पर 349 करोड़ राशि खर्च हुई है। कर्मचारियों को ओपीडी में कैशलेस इलाज की सुविधा नहीं है। इसका कर्मचारियों को चिकित्सा प्रतिपूर्ति की जाती है। भर्ती होने पर असीमित व्यय पर कैशलेस इलाज किया जा रहा है।

संकट में हिमाचल की कांग्रेस सरकार, क्या महाराष्ट्र की तरह अब हिमाचल में भी गिरेगी सुक्खू सरकार !

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तीन राज्यों की 15 राज्यसभा सीटों के लिए मंगलवार को मतदान कराए गए जिसमें हिमाचल प्रदेश भी शामिल हैं। प्रदेश की एक सीट के लिए दो उम्मीदवार थे। इसके कारण यहां मतदान कराना पड़ा। कांग्रेस ने अभिषेक मनु सिंघवी को उम्मीदवार बनाया तो भाजपा ने हर्ष महाजन को टिकट दिया। नामांकन के साथ ही राज्य में क्रॉस वोटिंग की आशंकाएं जाहिर की जाने लगी थीं जो सच हुईं। 

इस दौरान सत्ताधारी कांग्रेस के कम से कम कम छह विधायकों ने क्रॉस वोटिंग की। दोनों उम्मीदवारों को 34-34 वोट मिले। इसके बाद फैसला पर्ची से हुआ। इसमें हर्ष महाजन जीत गए। तीन निर्दलीय विधायकों ने भी भाजपा उम्मीदवार के पक्ष में मतदान किया। इसके बाद नेता प्रतिपक्ष जयराम ठाकुर ने मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू के इस्तीफे के मांग की। उन्होंने कहा कि राज्य सरकार अल्पमत में है। ऐसे में अब राज्य में सियासी संकट खड़ा हो गया है। जून 2022 में महाराष्ट्र में भी ऐसे ही कुछ स्थितियां उत्पन्न हुई थीं जब एमएलसी चुनाव में क्रॉस वोटिंग के बाद उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली महा विकास आघाडी सरकार गिर गई थी।

हिमाचल प्रदेश में कितनी सीट के लिए मतदान हुए और क्यों? 

दरअसल, भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा का कार्यकाल खत्म हो रहा है। नड्डा इस बार गुजरात से निर्विरोध निर्वाचित हो चुके हैं। हिमाचल में इस वक्त कांग्रेस सत्ता में है। कांग्रेस ने अभिषेक मनु सिंघवी को अपना उम्मीदवार बनाया। सिंघवी के सामने भाजपा ने हर्ष महाजन को उतारा। हर्ष कांग्रेस से ही भाजपा में आए हैं। 68 सदस्यों वाली राज्य विधानसभा में कांग्रेस के 40 विधायक हैं। भाजपा के 25 विधायक हैं। वहीं, तीन निर्दलीय विधायकों का भी सरकार को समर्थन दे रखा है।राज्यसभा चुनाव में उम्मीदवार की जीत के लिए 35 वोट की जरूरत थी। संख्या बल के हिसाब से कांग्रेस के लिए यह लड़ाई बहुत आसान दिख रही थी। इसके बाद भी भाजपा ने यहां पास पलट दिया। मतदान के नतीजे आए तो दोनों उम्मीदवारों को 34-34 वोट मिले हैं। यानी कांग्रेस और निर्दलीय समेत कुल नौ विधायकों ने क्रॉस वोटिंग की है।

क्रॉस वोटिंग करने वाले विधायकों का क्या होगा?

क्रॉस वोटिंग के दावे को लेकर राज्य में सियासी उठापटक शुरू हो चुकी है। अब यह देखना दिलचस्प होगा कि सरकार के अल्पमत में होने का दावा करने वाली भाजपा क्या सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाएगी। दूसरी ओर नजर कांग्रेस पर भी होगी जिसने कहा है कि राज्यसभा चुनाव से पहले उसने व्हिप जारी किया था।हिमाचल सरकार का सियासी भविष्य क्या है? इस पर हमने लोकसभा के पूर्व महासचिव पीटीडी अचारी से बात की। अचारी ने कहा, ‘राज्यसभा चुनाव के लिए कोई व्हिप नहीं होती है। व्हिप से कोई फायदा नहीं होता। कांग्रेस के विधायकों ने भाजपा के लिए मतदान किया है तो यह मुसीबत है। यदि कांग्रेस के विधायक भाजपा की तरफ चले गए और उसके लिए मतदान किया है तो कांग्रेस का बहुमत कम हो रहा है। यदि ये विधायक भाजपा में शामिल होते हैं तो अयोग्य हो जाएंगे। ऐसे में अभी तो स्थिति अस्थिर है।’

 

क्या क्रॉस वोटिंग करने वाले विधायक अयोग्य हो सकते हैं?

अचारी ने कहा, ‘यदि नमूने के तौर पर दो-तीन विधायकों को अयोग्य करते हैं तो उसके लिए आधार अलग होता है। जैसे कि विधायक ने अपनी इच्छा से पार्टी छोड़ दी है। इस आधार पर विधायकों को अयोग्य घोषित किया जा सकता है। दूसरी स्थिति में यदि सभी विधायकों के खिलाफ याचिका दाखिल करें तो ऐसा होगा कि कांग्रेस खुद कह रही है कि उसका बहुमत नहीं है। ऐसा कोई भी दल नहीं करेगा। लेकिन अभी मुसीबत है। उप-चुनाव बाद की बात है।’

 

 क्या हिमाचल में सरकार गिर सकती है?

2022 में हुए एमएलसी चुनाव के दौरान कुछ इसी तरह की स्थिति महाराष्ट्र में बनी थी। दरअसल, जून 2022 में महाराष्ट्र में एमएलसी की 10 सीटों पर चुनाव हुए। इसके लिए 11 उम्मीदवार मैदान में थे। महाराष्ट्र विकास अघाड़ी (एमवीए) यानी शिवसेना, कांग्रेस और एनसीपी के गठबंधन ने छह उम्मीदवार उतारे थे तो भाजपा ने पांच। खास बात ये है कि शिवसेना गठबंधन के पास सभी छह उम्मीदवारों को जिताने के लिए पर्याप्त संख्या बल था, लेकिन वह एक सीट हार गई। इन पांच में कांग्रेस को केवल एक सीट मिली और एनसीपी-शिवसेना के खाते में दो-दो सीटें आईं।वहीं, भाजपा के पास केवल चार सीटें जीतने भर की संख्या बल थी, लेकिन पांचवीं सीट भी निकालने में पार्टी सफल रही। एमएलसी चुनाव में बड़े पैमाने पर क्रॉस वोटिंग हुई है। इसके बाद महाराष्ट्र के कैबिनेट मंत्री एकनाथ शिंदे के साथ कई विधायक पहले गुजरात फिर असम चले गए। कई दिन चले सियासी ड्रामे के बाद उद्धव ठाकरे ने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया। बागी विधायकों के नेता एकनाथ शिंदे भाजपा के समर्थन से मुख्यमंत्री बन गए। अब यह देखना होगा कि हिमाचल के बागी विधायक क्या करते हैं।

 

Uttarakhand: अब जेल में मृतक बंदियों के आश्रितों को मिलेगा मुआवजा, 1 करोड़ रुपये का बजट हुआ मंजूर। 

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जेल में बंदियों की मौत के बाद उनके आश्रितों को अब मुआवजा दिया जाएगा। इसके लिए बजट में नए मद के तहत एक करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया है। प्रदेश में यह व्यवस्था पहली बार की गई है। पिछले दिनों इस संबंध में नीति बनाई गई थी। मृतक बंदियों के आश्रितों को नियमानुसार श्रेणीवार मुआवजे की धनराशि दी जाएगी।

बता दें कि जेल में तमाम कारणों से हर साल बंदियों की मौत हो जाती है। इसमें कुछ आपराधिक घटनाओं के कारण और कुछ सामान्य व बीमारियों के कारण होने वाली मौतें शामिल हैं। लेकिन, अभी तक प्रदेश में ऐसी कोई व्यवस्था नहीं थी कि इन बंदियों के आश्रितों को किसी प्रकार का मुआवजा दिया जाए। मसलन, यदि जेल में बंद कैदी घर में अकेला कमाने वाला था और उसकी जेल में मौत हो जाती है तो उसके आश्रितों के प्रतिपूर्ति की व्यवस्था नहीं थी। ऐसे में पिछले दिनों सरकार ने इसके लिए नई नीति बनाई थी।

अब बजट में नई मदों में इस मद को भी शामिल किया गया है। जेलों में इस प्रकार की मौत होने पर उनके आश्रितों को मुआवजे के लिए एक करोड़ रुपये का बजट दिया गया है। इस बजट को कैदी की श्रेणी के आधार पर नियमानुसार दिया जाएगा। यानी विचाराधीन कैदी, सजायाफ्ता कैदी, आपराधिक मौत, सामान्य मौत, बीमारी के कारण हुई मौत आदि को अलग-अलग श्रेणियों में रखा जाएगा। इसके आधार पर ही उन्हें एक लाख रुपये से लेकर पांच या उससे अधिक दिया जाएगा। हालांकि, इससे पहले मौत किस कारण से और किन परिस्थितियों में हुई इस बात की जांच की जाएगी।

जम्मू-कश्मीर के पूर्व राज्यपाल सत्यपाल मालिक के आवास पर CBI का छापा, 30 से ज्यादा ठिकानों पर छापेमारी।

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जम्मू-कश्मीर के पूर्व राज्यपाल सत्यपाल मलिक के खिलाफ सीबीआई ने कार्रवाई की है। सीबीआई ने उनके परिसरों समेत 30 से अधिक स्थानों पर छापेमारी की है। न्यूज एजेंसी  एएनआई सूत्रों के मुताबिक, दिल्ली में गुरुवार सुबह से मलिक के यहां कार्रवाई चल रही है।

जानकारी मिली है कि जम्मू कश्मीर के पूर्व राज्यपाल सत्यपाल मलिक के दिल्ली स्थित घर पर CBI ने छापेमारी की है। दरअसल, सीबीआई ने हाइड्रो पावर प्रोजेक्ट मामले में यह छापा मारा है। बीमा घोटाले में सीबीआई मलिक के खिलाफ कार्रवाई कर चुकी है। बीमा घोटाले के मामले में सीबीआई सत्यपाल मलिक और उनके करीबियों के ठिकानों पर छापा मार चुकी है।
 

मुझे 300 करोड़ रुपये की रिश्वत की पेशकश की गई थी: सत्यपाल मलिक

23 अगस्त 2018 से 30 अक्टूबर 2019 के बीच जम्मू-कश्मीर के राज्यपाल रहे सत्यपाल मलिक ने दावा किया था कि उन्हें दो फाइलों को मंजूरी देने के लिए 300 करोड़ रुपये की रिश्वत की पेशकश की गई थी। इसके बाद सीबीआई ने पिछले साल अप्रैल में एक मामला दर्ज किया था।

इस मामले में जांच एजेंसी ने कई अधिकारियों और व्यक्तियों से जुड़े परिसरों पर पिछले तीन मौकों पर तलाशी ली थी। मामला दर्ज करने के बाद सीबीआई ने पिछले साल अप्रैल में 10 स्थानों पर और जून 2022 में 16 स्थानों पर तलाशी ली। इस साल मई में भी 12 स्थानों पर तलाशी ली गई थी।

कई अधिकारियों के खिलाफ मामला दर्ज किया- 

सीबीआई ने पहले कहा था, “2019 में किरू हाइड्रो इलेक्ट्रिक पावर प्रोजेक्ट (एचईपी) के लगभग 2,200 करोड़ रुपये के सिविल कार्यों का ठेका एक निजी कंपनी को देने में कदाचार के आरोप में मामला दर्ज किया गया था।”

एजेंसी ने चिनाब वैली पावर प्रोजेक्ट्स (पी) लिमिटेड के पूर्व अध्यक्ष नवीन कुमार चौधरी और अन्य पूर्व अधिकारियों एम एस बाबू, एम के मित्तल और अरुण कुमार मिश्रा और पटेल इंजीनियरिंग लिमिटेड के खिलाफ मामला दर्ज किया है।

पूर्व राज्यपाल सत्यपाल मलिक ने सोशल मीडिया एक्स पर पोस्ट करते हुए लिखा कि पिछले 3-4 दिनों से मैं बीमार हूं और अस्पताल में भर्ती हूं। इसके वावजूद मेरे मकान में तानाशाह द्वारा सरकारी एजेंसियों से छापे डलवाए जा रहे हैं। मेरे ड्राइवर, मेरे साहयक के ऊपर भी छापे मारकर उनको बेवजह परेशान किया जा रहा है। में किसान का बेटा हूं, इन छापों से घबराऊंगा नहीं। मैं किसानों के साथ हूं। सत्यपाल मलिक (पूर्व गवर्नर)

मनमोहन सिंह या नरेंद्र मोदी, 10 साल किसके बेहतर ?

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2024 का लोकसभा चुनाव देश की दहलीज पर खड़ा है,  सत्ताधारी पार्टी और विपक्ष एक दूसरे पर आरोप प्रत्यारोप की झाड़ियां लगा रहे हैं इसमें कोई संदेह नहीं कि आरोप और प्रत्यारोप भारतीय लोकतंत्र के चुनावों में ब्रह्मास्त्र से भी बड़े अस्त्र है लोकसभा के चुनाव से पहले जनता को अपने पक्ष में करने के लिए सत्ता पक्ष और विपक्ष आरोप -प्रत्यारोपों के साथ-साथ अपने कार्यकाल की उपलब्धियां भी गिना रहे हैं चलो उपलब्धियां गिनाने तक तो ठीक है मगर ये एक- दूसरे के कार्यकाल को  अपशब्दों से  भी  अलंकृत  कर रहे हैं बीजेपी के नेतृत्व वाली नेशनल डेमोक्रेटिक अलायंस यानी NDA ने कांग्रेस के 2004 से 2014 तक के कार्यकाल को अर्थव्यवस्था की बदहाली के आधार पर विनाश काल कहा जबकि कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूनाइटेड प्रोग्रेसिव एलाइंस  यानी UPA ने बीजेपी के 2014 से 2024 तक के कार्यकाल को अन्याय काल की संज्ञा दी. अब प्रश्न यह उठता है कि किसका कार्यकाल सबसे बेहतर रहा बीजेपी के नेतृत्व वाले एनडीए का या कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए का। 

हाल ही में बीजेपी के नेतृत्व वाली एनडीए ने अपने और कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए के कार्यकाल के दौरान की आर्थिक नीतियों की तुलना के लिए एक श्वेत पत्र जारी किया इस श्वेत पत्र में एनडीए ने 2004 से 2014 तक की यूपीए के कार्यकाल को विनाश काल की संज्ञा दी तथा 2014 से 24 तक के स्वयं के कार्यकाल को अमृत काल कहा वहीं एनडीए के इस फैसले के जवाब में कांग्रेस ने एक ब्लैक पेपर जारी किया और 2014 से 24 तक के एनडीए के कार्यकाल को 10 साल अन्याय काल  की संज्ञा दी इस बेहतर दिखने की प्रतियोगिता पर मुझे एक शेर याद आता है “खुद को ऊंचा दिखाने के लिए, दूसरे को नीचा दिखाओ. कोई तुम्हें ऊंचा माने या ना माने, खुद से ही मनवाओ”. दोनों ही दस्तावेज़ 50 से 60 पन्ने के हैं और इनमें आंकड़े और चार्ट की मदद से आरोप और दावे किए गए हैं। 

बीजेपी ने कांग्रेस पर क्या क्या आरोप लगाए-

खैर बीजेपी ने अपने श्वेत पत्र में कांग्रेस पर बजट घाटे से भागने, कोल ब्लॉक आवंटन घोटाला, 2G स्पेक्ट्रम घोटाला, राष्ट्रमंडल खेल घोटाला, जैसे कई घोटालों की एक श्रृंखला बनाने का आरोप लगाया, और कहा कि  इन घोटालों के कारण देश में निवेश की गति धीमी हुई , फलस्वरूप आर्थिक विकास पिछड़ता चला गया वहीं दूसरी तरफ कांग्रेस ने भी  जवाब  देते हुए , एनडीए के कार्यकाल में बेरोजगारी बढ़ने नोटबंदी करने और  आधे अधूरे तरीके से जीएसटी व्यवस्था लागू करने, जैसे विनाशकारी आर्थिक फैसले लेने का आरोप लगाया और कहा कि इन फैसलों से अमीर और गरीब के बीच खाई बढ़ती जा रही है। 

कांग्रेस के अनुसार उसका दस्तावेज़ सत्ताधारी बीजेपी के आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक ‘अन्यायों’ पर केंद्रित है जबकि सरकार का जारी श्वेत पत्र यूपीए सरकार की आर्थिक गलतियों पर रोशनी डालने तक सीमित है अर्थव्यवस्था को लेकर कांग्रेस का कहना है कि पीएम मोदी का कार्यकाल भारी बेरोजगारी, नोटबंदी और आधे-अधूरे तरीके से गुड्स एंड सर्विस टैक्स (जीएसटी) व्यवस्था लागू करने जैसे विनाशकारी आर्थिक फ़ैसलों, अमीरों-गरीबों के बीच बढ़ती खाई और निजी निवेश के कम होने का गवाह रहा है दूसरी तरफ बीजेपी ने बैड बैंक लोन में उछाल, बजट घाटे से भागना, कोयला से लेकर 2जी स्पेक्ट्रम तक हर चीज़ के आवंटन में घोटालों की एक श्रृंखला और फैसला लेने में अक्षमता जैसे कई आरोप कांग्रेस पर लगाए हैं बीजेपी का कहना है कि इसकी वजह से देश में निवेश की गति धीमी हुई है। 

विभिन्न विश्लेषणों से शायद ये पता चले कि दोनों ही पार्टियां एक-दूसरे के बारे में जो दावे कर रही हैं, कुछ हद तक वो सही बातें भी हैं दोनों ओर के आरोपों में कुछ सच्चाई है. दोनों ने बुरे फैसले लिए,, कांग्रेस ने टेलीकॉम और कोयला में और बीजेपी ने नोटबंदी में,, यूपीए और एनडीए के एक दूसरे पर लगाए गए आरोप सत्य है या भ्रामक इसके लिए हमने सबसे पहले दोनों पार्टियों के पिछले 10-10 वर्षों के दौरान लिए गए आर्थिक फैसलों का आंकड़ों सहित अध्ययन किया, और आज हम इन आंकड़ों का विस्तृत विवरण आपके सामने रख रहे हैं, जिससे आप स्वयं यह फैसला ले सके कि किसका 10 वर्ष का कार्यकाल बेहतर रहा, यूपीए का 2004 से 2014 तक का या फिर एनडीए का 2014 से 2024 तक का। 

अब बात जीडीपी की-

सबसे पहले बात करते हैं आर्थिक विकास के मुख्य संकेतक जीडीपी यानी ग्रास डोमेस्टिक प्रोडक्ट की,  आईएमएफ के अनुसार -यूपीए के  10 वर्षों के कार्यकाल के दौरान 2008-09 के बीच के वैश्विक आर्थिक संकट को छोड़ दिया जाए तो  औसत जीडीपी दर 8.1% रही, आपको बता दे 2008- 9  के दौरान पूरे विश्व में आर्थिक मंदी छाई हुई थी और लगभग आर्थिक गतिविधियां स्थिर हो गई थी, जबकि एनडीए के 10 वर्षों के कार्यकाल में  2020-21 में कोविड महामारी को छोड़ दिया जाए तो  औसत जीडीपी दर 7.1% रही,,  जो कि यूपीए के कार्यकाल की जीडीपी से एक प्रतिशत कम रही लेकिन सच ये है कि भारत की अर्थव्यवस्था पर वैश्विक आर्थिक संकट के मुकाबले कोविड महामारी के कहर का असर अधिक था इसलिए ताज्जुब नहीं कि एनडीए सरकार के दौरान एक दशक का जीडीपी औसत कम रहा कोविड ने अर्थव्यवस्था के सामने जो बाधा पैदा की वो बहुत बड़ी थी  इस महामारी ने इस दशक के दौरान कुछ सालों के लिए अर्थव्यवस्था की गति को धीमा कर दिया। 

अब बात करते हैं भारतीय युवाओं की मुख्य आवश्यकता रोजगार की विश्लेषकों का मानना है कि रोजगार देने के मामले में बीजेपी सरकारों का अभी तक का इतिहास बहुत काला रहा,,, सच क्या है / इसकी वास्तविकता जानने के लिए हमने “सेंटर फॉर मॉनेटरी इंडियन इकॉनमी के Prowess IQ ” डेटाबेस का अध्ययन किया और पाया कि यूपीए के कार्यकाल के अंतिम वर्ष जनवरी 2014 में बेरोजगारी दर 5.42 पर्सेंट थी जबकि एनडीए के कार्यकाल के अंतिम वर्ष जनवरी 2024 में बेरोजगारी दर बढ़कर 6.57 % हो गई,

 

देखा जाए तो यह बेरोजगारी दर अब भी लगातार बढ़ती जा रही है, ,,जबकि एनडीए सरकार ने 2019 के अपने घोषणा पत्र में लाखों लोगों को रोजगार देने की बात कही थी सेंटर फ़ॉर मॉनिटरिंग द इंडियन इकोनॉमी (CMIE) के आँकड़ों के अनुसार, 2017-18 में बेरोज़गारी बीते 45 सालों में सबसे अधिक यानी 6.1% पर थी,, प्यू रिसर्च के अनुसार, 2021 की शुरुआत से अब तक 2.5 करोड़ से अधिक लोग अपनी नौकरी गँवा चुके हैं और 7.5 करोड़ लोग ग़रीबी रेखा पर पहुँच चुके हैं, जिनमें 10 करोड़ मध्यम वर्ग का एक तिहाई शामिल है हालाँकि यहाँ एक बात और confusion पैदा करती है की ,गरीबी के आंकड़े विभिन्न माध्यमों से देखा जाए तो कई बार अलग अलग दिखाई देते हैं,, उसका आंकलन इस बात से भी लगाया जा सकता है की भारत में मोदी सरकार के द्वारा 60 करोड़ से ज्यादा  लोगों को मुफ्त राशन दिया जा रहा है खैर, हर साल देश की अर्थव्यवस्था को 2 करोड़ नौकरियाँ चाहिए लेकिन भारत में बीते दशक में हर साल केवल 43 लाख नौकरियाँ ही पैदा हुईं। इन आंकड़ों को देखकर पता चलता है कि वर्तमान मोदी सरकार पूर्व की मनमोहन सरकार से रोजगार देने के मामले में काफी पीछे रही। 

अब बात देश की अर्थव्यवस्था के मुख्य आधार निर्यात की- 

कहते हैं जिस देश में निर्यात अधिक और आयात कम होते हैं वहां की अर्थव्यवस्था संपन्न अर्थव्यवस्था मानी जाती है,  चलो देखते हैं यूपीए और एनडीए के कार्यकालों में किसके समय निर्यात अधिक रहा,, “प्रेस इनफार्मेशन ब्यूरो के अनुसार” जहां 2004 में भारत से निर्यात 80 अरब डॉलर का होता था वह 10 सालों में  साढ़े तीन गुना बढ़कर 2014 तक 300 अरब डॉलर का हो गया,,, फिर 2014 में एनडीए का कार्यकाल आया और उसके 10 सालों के दौरान निर्यात  300 अरब डॉलर से से बढ़कर 437 अरब डालर तक ही पहुंच  पाया यानी निर्यात में मात्र डेढ़ गुना की वृद्धि हुई अर्थात यूपीए के समय के आधे, ये दोनों ही कई कारकों की वजह से हैं, जैसे भूमि अधिग्रहण और फैक्ट्रियों के लिए पर्यावरण की मंजूरी मिलने में मुश्किलें. साथ ही एक सच्चाई ये भी है कि भारत उस तरह वैश्विक व्यापार से नहीं जुड़ा है जैसा उसे होना चाहिए। लंबे समय से ये कारक देश के मैन्युफ़ैक्चरिंग और निर्यात वृद्धि को कम रखने का कारण रहे हैं देखा जाए तो यूपीए की तुलना में एनडीए इस मोर्चे पर भी असफल रही। 

अब बात करते हैं अर्थव्यवस्था की रीढ़ देश के नागरिकों की,, किसी देश के समृद्ध नागरिक वहां के लिए संसाधन माने जाते हैं संयुक्त राष्ट्र का अभिकरण यूएनडीपी विभिन्न देशों के लिए मानव विकास सूचकांक जारी करता है. यह सूचकांक किसी देश के नागरिकों के स्वास्थ्य , शिक्षा तथा जीवन स्तर पर आधारित होता है इस सूचकांक में देशो को रैंक दी जाती है  यूएनडीपी के मानव विकास सूचकांक में जहां 2004 में भारत विश्व के 191 देश में 131 वे  स्थान पर था,, वही आज 20 साल गुजरने पर भी हम एक स्थान नीचे गिरकर 2023 में 132 में स्थान पर आ गए है  जो कि देश के लिए बहुत ही चिंताजनक है।  इस पर आरबीआई के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन ने अपनी चिंता व्यक्त करते हुए कहा था  ” कि फिजिकल कैपिटल बनाने में बहुत ध्यान दिया जा रहा है लेकिन ह्यूमन कैपिटल बनाने में और शिक्षा स्वास्थ्य जैसे क्षेत्रों में सुधार पर अधिक ध्यान नहीं दिया जा रहा है” उन्होंने कहा कि सच्चाई ये है कि भारत में कुपोषण अफ़्रीकी देशों के कुछ हिस्सों से भी अधिक था यह ऐसे देश के लिए  ‘अस्वीकार्य’ है जिसकी विकास दर दुनिया के अधिकांश हिस्से को पीछे छोड़ रही है। 

2004 से 2013 के बीच भारत के एचडीआई मूल्य में 15 फीसदी का सुधार-
 

मानव विकास सूचकांक (एचडीआई) के मामले में भी एनडीए का प्रदर्शन यूपीए के मुकाबले बुरा रहा है यह सूचकांक, स्वास्थ्य क्षेत्र में प्रगति, शिक्षा तक पहुंच और व्यक्ति के जीवन स्तर में प्रगति का मानक है 2004 से 2013 के बीच भारत के एचडीआई मूल्य में 15 फीसदी का सुधार हुआ,  हालांकि यूएनडीपी के ताज़ा उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार 2014 और 2021 के बीच इसमें केवल 2 फीसदी का सुधार हुआ. अगर कोविड महामारी के दो सालों को छोड़ भी दिया जाए तो भी 2019 तक एचडीआई में, यूपीए के पांच सालों के 7 फीसदी के मुकाबले केवल 4 फीसदी का सुधार रहा है। 

अब बात पूंजीगत निर्माण को लेकर,,, मोदी  सरकार ने पूर्व की मनमोहन सरकार से सड़क निर्माण जैसे पूंजीगत व्यय पर अधिक ख़र्च किया, बात करें यूपीए सरकार के 10 सालों की तो इस दौरान 10 सालों में सिर्फ 27 हजार किलोमीटर सड़कों का निर्माण हुआ जबकि इस मामले में मोदी सरकार के 10 साल बेहतर साबित हुए,,,मोदी सरकार के 10 सालों में 54 हजार किलोमीटर के राष्ट्रिय राजमार्गो का निर्माण हुआ है. जीडीपी में मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर की बात करें तो एनडीए के शासनकाल में जीडीपी में मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर का जो हिस्सा होता है उसमें कमी आई है विश्व बैंक के आंकड़ों के अनुसार जिन 10 सालों में यूपीए सरकार सत्ता में थी, उन सालों में मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर का औसत 15 से 17 फीसदी के बीच था, वहीं मोदी सरकार के कार्यकाल में ‘मेक इन इंडिया’ जैसी मुहिम और उत्पादन से जुड़ी छूट पर अरबों डॉलर खर्च करने के बावजूद, 2022 के लिए उपलब्ध ताज़ा आंकड़ों के अनुसार मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर का जीडीपी में हिस्सा गिरकर 13 फीसदी आ गया। 

 
NDA vs UPA में आर्थिक प्रदर्शन में कौन आगे है ? 

 केंद्र सरकार द्वारा हाल ही में प्रस्तुत श्वेत पत्र में इस बात पर जोर दिया गया है कि राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) सरकार के कार्यकाल के 10 वर्षों में देश का आर्थिक प्रदर्शन संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (UPA) सरकार के 10 वर्षों  की तुलना में बेहतर रहा है,,,,इसमें कोई दो राय नहीं है कि बीते 10 वर्षों में हालात में उल्लेखनीय सुधार हुआ है लेकिन सरकारी ऋण और आम सरकारी घाटा ऊंचे स्तर पर बना हुआ है,,, राजकोषीय घाटे की बात करें तो 2023-24 में सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के प्रतिशत के रूप में इसका संशोधित अनुमान 5.8 के स्तर पर रहा जबकि 2013-14 में यह 4.4 के स्तर पर था।

ऐसा मोटे तौर पर इसलिए हुआ कि कोविड-19 ने कई तरह की बाधाएं पैदा की थीं। बहरहाल एक तथ्य यह भी है कि UPA सरकार को भी 2008 के वैश्विक वित्तीय संकट से जूझना पड़ा था जिसकी वजह से राजकोषीय घाटे में काफी इजाफा हुआ था। पर सच ये भी है की कोविड-19 महामारी का आर्थिक प्रभाव कहीं अधिक गहरा था केंद्र सरकार का पूंजीगत व्यय 2024-25 में जीडीपी के 3.4 फीसदी के स्तर पर है। इससे न केवल अर्थव्यवस्था को मदद मिलेगी बल्कि सरकार को समय के साथ व्यय को सीमित करने का अवसर भी  मिलेगा। एक बार निजी निवेश के गति पकड़ने के बाद सरकार पूंजीगत व्यय कम कर सकती है और अपनी वित्तीय स्थिति मजबूत करने पर विचार कर सकती है। पूंजीगत व्यय की बात करें तो 2023-24 में यह कुल व्यय का 28 फीसदी था जबकि 2013-14 में यह उसका केवल 16 फीसदी था इस बीच NDA सरकार का राजस्व व्यय UPA की तुलना में धीमी गति से बढ़ा है, राजस्व व्यय में NDA के कार्यकाल में सालाना 9.9 फीसदी की दर से वृद्धि हुई जबकि उससे पहले के 10 वर्षों में यह 14.2 फीसदी की दर से बढ़ा था ।

अब कुछ और मुख्य बिंदु-
पहला मुद्रास्फीति-  जो तब  FY 2004 – FY 2014 के बीच मुद्रास्फीति का  सीएजीआर  8.2% रहा  जबकि वित्त वर्ष 2014 – वित्तीय वर्ष 23 के बीच मुद्रास्फीति का सीएजीआर  5.0% रहा है।
प्रति व्यक्ति सकल घरेलू उत्पाद  यानी GDP Per Capita वित्त वर्ष 2005 से वित्त वर्ष 2014 के बीच तब  :3,889 $   जबकि वित्त वर्ष 2015-वित्त वर्ष 23 के बीच: $6,016 रही।
वित्त वर्ष 2014 के लिए सकल घरेलू उत्पाद के प्रतिशत के रूप में पूंजीगत व्यय तब 1.7% था,जबकि वित्त वर्ष 2024 के लिए सकल घरेलू उत्पाद के प्रतिशत के रूप में पूंजीगत व्यय अब 3.2% है।
प्रत्यक्ष विदेशी निवेश तब $305 बिलियन था जबकि अब $596.5 बिलियन है बहुआयामी गरीबी 2013-14 के अंत तक  तब 29.2% थी, जबकि अब 2023 के अंत तक अनुमानित 11.3% है।
अप्रत्यक्ष कर की दर तब 15%  अब 12.2% तक है,स्टार्ट-अप की संख्या 2014 तक,, तब मात्र 350 थी, जबकि 31 दिसंबर 2023 तक इनकी संख्या अब जबरदस्त तरीके से बढ़ कर  1,17,257 हो गयी है।

मेट्रो रेल वाले शहरों की संख्या 2014 के अंत तक सिर्फ 5 थी,जबकि 2023 के अंत तक यह संख्या 20 हो गयी है, राजमार्ग निर्माण की गति 2013-14 में  तब 12 किलोमीटर प्रतिदिन थी जबकि 2022-23 में गति  28 किलोमीटर प्रतिदिन है. वित्तीय वर्ष 2005 और वित्तीय वर्ष 2014 के बीच देश में रेल दुर्घटनाओं की औसत संख्या 233 थी जो अब वित्त वर्ष 2015 और वित्तीय वर्ष 23 के बीच दुर्घटनाओं की औसत घटकर संख्या 34 हो गयी है,,,2014 तक विद्युतीकृत ब्रॉड-गेज रेल नेटवर्क 21.8 हजार किमी थी जो अब 60.8 हजार किमी है,,,हवाई अड्डों की संख्या 2014 के अंत तक 74 थी जबकि 2024 तक ये संख्या 149 है. कुल स्थापित बिजली क्षमता मार्च 2014 तक 249 गीगा वाट थी, जो अब  दिसंबर 2023 तक  429 गीगावाट है ।

ये कुछ ऐसे बिंदु है जिसमें आप दोनों सरकारों के कामकाज का आकलन कर सकते हैं। इस तरह हमने एनडीए और यूपीए के कार्यकाल के 10-10 सालों की आर्थिक नीतियों का विवरण आपके सामने आंकड़ों तथा तथ्यों के साथ रखा है अब आप खुद ही फैसला कीजिये कि किसका कार्यकाल बेहतर रहा, 2004 से 2014 यूपीए का या फिर 2014 से 2024 एनडीए का ?