कतर के साथ भारत के रिश्ते अच्छे माने जाते हैं. हालांकि, इसके बाद भी कतर ने आठों भारतीयों को मौत की सजा सुना दी है. कतर की अदालत ने भारतीय नौसेना के आठ पूर्व अफसरों को मौत की सजा सुनाई है। इन आठों भारतीयों को पिछले साल जासूसी के कथित आरोप में गिरफ्तार किया गया था. भारत सरकार ने इस फैसले पर हैरानी जताई है। हालांकि, भारत सरकार ने साफ कर दिया है कि वह इस मामले में सभी कानूनी विकल्पों पर विचार कर रहा है। तो आईये जानते हैं क्या है वो मामला और कौन हैं ये आठों नेवीअफसर?
कौन हैं ये 8 नेवी अफसर ?
नौसेना के जिन आठ पूर्व अफसरों को मौत की सजा सुनाई गई है, उनके नाम –कैप्टन सौरभ वशिष्ठ, कमांडर पूर्णेंदु तिवारी, कैप्टन बीरेंद्र कुमार वर्मा, कमांडर सुगुणाकर पकाला, कमांडर संजीव गुप्ता, कमांडर अमित नागपाल और राजेशहैं।
इन सभी पूर्व अफसरों ने भारतीय नौसेना में 20 साल तक सेवा दी थी। नौसेना में रहते हुए उनका कार्यकाल बेदाग रहा है और अहम पदों पर रहे हैं। साल 2019 में, कमांडर पूर्णेंदु तिवारी को प्रवासी भारतीय सम्मान से सम्मानित किया गया था, जो प्रवासी भारतीयों को दिया जाने वाला सर्वोच्च सम्मान है।
कतर में कर क्या रहे थे ये सभी अफसर ?
नौसेना से रिटायर्ड ये सभी अफसर दोहा स्थित अल-दहरा कंपनी में काम करते थे। ये कंपनी टेक्नोलॉजी और कंसल्टेंसी सर्विस प्रोवाइड करती थी। साथ ही कतर की नौसेना को ट्रेनिंग और सामान भी मुहैया कराती थी। इस कंपनी को ओमान की वायुसेना से रिटायर्ड स्क्वाड्रन लीडर खमीस अल आजमी चलाते थे। पिछले साल उन्हें भी इन भारतीयों के साथ गिरफ्तार कर लिया गया था। हालांकि, नवंबर में उन्हें रिहा कर दिया गया था। ये कंपनी इस साल 31 मई को बंद हो गई है। इस कंपनी में लगभग 75 भारतीय नागरिक काम करते थे, जिनमें ज्यादातर नौसेना के पूर्व अफसर थे। कंपनी बंद होने के बाद इन सभी भारतीयों को नौकरी से निकाल दिया गया।
पूरा मामला क्या है?
ये सभी आठ भारतीयों को पिछले साल जासूसी के कथित मामले में हिरासत में ले लिया गया था। हालांकि कतर प्रशासन की ओर से इन लोगों के खिलाफ आरोपों को सार्वजनिक नहीं किया गया है लेकिन माना गया कि गिरफ्तारियां सुरक्षा संबंधी मामले में की गई थीं। वहीं पिछले साल 25 अक्टूबर को मीतू भार्गव नाम की महिला ने ट्वीट कर बताया था कि भारतीय नौसेना के आठ पूर्व अफसर 57 दिन से कतर की राजधानी दोहा में गैर-कानूनी तरीके से हिरासत में हैं। मीतू भार्गव कमांडर पूर्णेदु तिवारी की बहन हैं।उन्होंने भारत सरकार से इस मसले पर जल्द कार्रवाई की मांग की थी।
कब हुआ था ट्रायल?
आठों पूर्व अधिकारियों को पिछले साल 30 अगस्त की रात हिरासत में ले लिया गया था। इन सभी का ट्रायल इसी साल 29 मार्च को शुरू हुआ था। विदेश मंत्रालय ने 6 अप्रैल को एक प्रेस कॉन्फ्रेंस के जरिए इस बात जानकारी दी थी कि इन सब लोगों को भारत की ओर से कानूनी मदद मिलनी शुरू हो गई है। विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अरिंदम बागची ने कहा था कि इस मामले की सबसे पहली सुनवाई 29 मार्च को हुई थी। ये सुनवाई उस वकील ने भी अटेंड की थी जिन्हें केस के लिए नियुक्त किया गया है। तीन अक्टूबर को मामले में सातवीं सुनवाई हुई थी और कोर्ट ऑफ फर्स्ट इंस्टेंस ने गुरुवार को उनके खिलाफ फैसला सुनाया।
क्या कर रही है भारत सरकार ?
भारत के विदेश मंत्रालय ने गुरुवार को कहा कि वह इस फैसले से स्तब्ध है और फैसले के विस्तृत ब्योरे की प्रतीक्षा कर रहे हैं। हम हर परिवार के सदस्यों और कानूनी टीम के संपर्क में हैं।भारतीय नागरिकों की रिहाई के लिए सभी कानूनी विकल्पों की तलाश की जा रही है। विदेश मंत्रालय ने ये भी कहा कि कतर की जेल में बंद भारतीय नागरिकों को कॉन्सुलर एक्सेस और कानूनी मदद दी जाती रहेगी और फैसले को कतर के अधिकारियों के समक्ष भी उठाएंगे।
भारत विश्व भर में अंतरिक्ष के क्षेत्र में लगातार इतिहास रच रहा है। देश की राष्ट्रीय अंतरिक्ष एजेंसी इसरो ने हाल ही में चंद्रयान-3 को चन्द्रमा की सतह पर उतारा था। इसके बाद देश के पहले सौर मिशन आदित्य-एल 1 की लॉन्चिंग भी चर्चा का विषय बनी। इस सिलसिले को आगे बढ़ाते हुए अब निजी क्षेत्र की कंपनी स्काई रूट भी विक्रम-1 रॉकेट को लॉन्च करने की तैयारी कर रही है।
विक्रम-1 क्यों है चर्चा में ?
भारतीय स्टार्टअप स्काईरूट ने पिछले दिनों दक्षिण हैदराबाद में जीएमआर एयरोस्पेस और औद्योगिक पार्क में विक्रम-1 रॉकेट का अनावरण किया। इस दौरान विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्री जितेंद्र सिंह ने स्काईरूट के नए मुख्यालय ‘द मैक्स-क्यू कैंपस’ का भी उद्घाटन किया।
इस मौके पर जितेंद्र सिंह ने कहा कि भारत अब अंतरिक्ष क्षेत्र में अन्य देशों का नेतृत्व करने की स्थिति में है। अपने संबोधन में उन्होंने उम्मीद जताई कि स्काईरूट संस्था जल्द ही विक्रम-1 ऑर्बिटल लॉन्च व्हीकल का प्रक्षेपण भी करेगी।
क्या है विक्रम-1 रॉकेट ?
विक्रम-1 एक छोटा लॉन्च व्हीकल है जो 480 किलोग्राम तक के पेलोड को अंतरिक्ष में 500 किलोमीटर की ऊंचाई तक ले जा सकेगा। इसका उद्देश्य छोटे सैटेलाइट को लॉन्च करना है। इसका नाम भारतीय अंतरिक्ष अभियान के जनक कहे जाने वाले विक्रम साराभाई के नाम पर रखा गया है। यह देश का पहला निजी तौर पर निर्मित सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल है। कंपनी विक्रम सीरीज के तीन लॉन्च व्हीकल बना रही है। विक्रम-2 रॉकेट का पेलोड 595 किलोग्राम और विक्रम-3 का पेलोड 815 किलोग्राम होगा।
क्या है इस रॉकेट की खासियत ?
स्काईरूट के अनुसार, विक्रम-1 के प्रणोदन चरण पूरी तरह से विश्वसनीय हैं। यान में इस्तेमाल किए गए इलेक्ट्रॉनिक सिस्टम आधुनिक और आकार में छोटे हैं। यह बेहद हल्के झटके में हवा में अलग होने की क्षमता रखता है।यह कई मायनों में लचीला है। विक्रम-1 दोबारा स्टार्ट होने की क्षमता रखता है जिसके जरिए रॉकेट का एक साथ कई कक्षाओं में प्रवेश कराया जा सकता है। आर्थिक दृष्टि से भी यह कम लागत में पेलोड भेज सकता है। रॉकेट न्यूनतम श्रेणी के बुनियादी ढांचे में भी काम कर सकता है। इसे किसी भी लॉन्च साइट से 24 घंटे के भीतर असेंबल और लॉन्च किया जा सकता है।
मिशन को कब किया जाएगा लॉन्च ?
स्काईरूट के सीओओ भरत ढाका ने कहा कि विक्रम-1 अंतरिक्ष प्रक्षेपण यान का अनावरण बहुत गर्व का क्षण है। उन्होंने कहा कि विक्रम-1 के निर्माण में हमारी डिजाइन क्षमता और अत्याधुनिक घरेलू तकनीक अभिन्न अंग रही है। हम 2024 की शुरुआत में लॉन्च के लिए इसकी तैयारी कर रहे हैं।
आखिर क्या है स्काई रूट ?
इसरो के पूर्व इंजीनियरों पवन कुमार चंदाना और भरत ढाका ने 2018 में स्काईरूट एयरोस्पेस प्राइवेट लिमिटेड नामक स्टार्टअप बनाया था। चंदाना आईआईटी खड़गपुर और ढाका आईआईटी मद्रास से पढ़े हैं। इसरो में चंदाना ने देश के सबसे बड़े रॉकेट जीएसएलवी एमके-3 जैसे अहम प्रोजेक्ट पर काम किया जबकि ढाका ने इसरो में फ्लाइट कंप्यूटर इंजीनियर के तौर पर तमाम अहम हार्डवेयर और सॉफ्टवेयरों पर काम किया। स्काईरूट पहला ऐसा स्टार्टअप है जिसने भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के साथ रॉकेट बनाने के लिए एमओयू पर हस्ताक्षर किए हैं।
10 कंपनियां बना रही हैं सैटेलाइट और रॉकेट-
इसरो के अध्यक्ष एस. सोमनाथ के मुताबिक, अंतरिक्ष तकनीक और नवोन्मेष के क्षेत्र में इसरो के साथ काम करने के लिए 100 स्टार्ट-अप समझौता कर चुके हैं। उन्होंने बताया कि 100 में से करीब 10 ऐसी कंपनियां हैं, जो सैटेलाइट और रॉकेट विकसित करने में जुटी हैं।
अंतरिक्ष के रहस्यों को जानने के लिए वैज्ञानिक लंबे समय से शोध कर रहे हैं। अब वैज्ञानिकों ने एक रिसर्च के आधार पर चौंकाने वाला खुलासा किया है। उन्होंने दावा किया है कि मंगल ग्रह पर चूहे जिंदा रह सकते हैं।
धरती से कई मायनों में समानता के चलते मंगल ग्रह पर जीवन की संभावनाएं तलाशी जा रही हैं। मंगल ग्रह पर वायुमंडल होने के साथ ही पानी की भी पुष्टि हो चुकी है। इसी बीच अमेरिकामेंविवि के वैज्ञानिकों ने शोध में दावा किया कि मंगल ग्रह के वातावरण में चूहे रह सकते हैं।
लंबे समय से वैज्ञानिक धरती के अलावा सौरमंडल के दूसरे ग्रहों पर जीवन की संभावना तलाशने के लिए शोध करते आ रहे हैं. इसी बीचमंगल ग्रहपर जीवन की संभावनाओं को लेकर बड़ी खबर आई है। वैज्ञानिकों के अनुसार इस ग्रह पर चूहे जिंदा रह सकते हैं।
ज्वालामुखियों के शिखर पर चूहों की जिंदगी के सबूत मिले
वैज्ञानिकों को इसके लिए दक्षिण अमेरिकी देश चिली और अर्जेंटीना के अटाकामा के पठार में ज्वालामुखियों के बेहद शुष्क और हवा से बहने वाले शिखरों में कुछ चूहे मिले हैं। अटाकामा के पठार का वातावरण और कम तापमान की कंडीशन मंगल ग्रह से सबसे ज्यादा मिलती जुलती धरती की जगह है। इस स्टडी के आधार पर वैज्ञानिकों ने कहा है कि ज्वालामुखियों के शिखर पर रहने वाले चूहों की खोज के बाद पता चलता है कि स्तनधारी मंगल ग्रह पर रह सकते हैं।
नेब्रास्का विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने की रिसर्च
जब अमेरिका के नेब्रास्का विवि के अनुसार प्रोफेसर स्टॉर्ज और उनकी टीम ने इन चट्टानों की खोज शुरू की तो चूहों की ममियां मिलीं। 21 ज्वालामुखियों की जांच की गई। 6 हजार से अधिक हाइट वाले ज्वालामखियों में 13 चूहों के कंकाल मिले। कार्बन डेटिंग से पता चला कि इनमें से कुछ चूहों के अवशेष दशक पुराने थे। इससे ये सवाल सामने आया कि स्तनधारी चट्टान और बर्फ की बंजर दुनिया में कैसे रह सकते हैं, जहां तापमान शून्य से ऊपर नहीं होता है और ऑक्सीजन भी बेहद कम होता है।
शोधकर्ताओं ने बदली मंगल पर जीवन की पुरानी थ्योरी
समुद्र तल से 6 हजार मीटर से ज्यादा की ऊंचाई के बारे में विशेषज्ञों ने निष्कर्ष निकाला था कि ऐसी जगहों पर स्तनधारी जीवन संभव नहीं है। अब शोधकर्ताओं का कहना है कि मुश्किल वातावरण में चूहों के कंकाल मिलने से इस पुरानी थ्योरी को बदल दिया है। अमेरिका के प्रोफेसर जे स्टोर्ज और उनके साथी पर्वतारोही मारियो पेरेज ममानी ने 2020 की शुरुआत में चिली-अर्जेंटीना सीमा पर फैले ज्वालामुखी लुल्ला इलाकों की 22000 फीट ऊंची चोटी के ऊपर एक पत्ती-कान वाले चूहे के जिंदा होने का सबूत पाया था। इससे पहले इतनी ज्यादा ऊंचाई पर कभी कोई स्तनपायी जीव नहीं पाया गया था
मुश्किल वातावरण में भी जिंदा रह सकते हैं चूहे
स्टडी लिखने वाले प्रोफेसर स्टोर्ज ने कहा, हमारी खोज के बारे में सबसे आश्चर्यजनक बात यह है कि स्तनधारी ऐसे दुर्गम, मंगल जैसे वातावरण में ज्वालामुखियों के शिखर पर रह सकते हैं। प्रशिक्षित पर्वतारोही यहां जाते हैं तो अपनी ट्रेनिंग के चलते एक दिन इतनी ऊंचाई को सहन कर लेते हैं। ये चूहे अपना जीवन इसी वातावरण में गुजरा देते हैं, यह इस बात को दर्शाता है कि छोटे स्तनधारियों की सहनशीलता को अब तक कम करके आंका गया है।
वैज्ञानिकों ने धरती पर की आश्चर्यजनक खोज
प्रोफेसर स्टोर्ज ने कहा कि ये तो स्पष्ट लगता है कि चूहे अपनी मर्जी से वहां पहुंचे थे। अटाकामा की दुर्गम जलवायु में इन चूहों की मौजूदगी से यह स्पष्ट हो रहा है कि इसी तरह की मिलते जुलते वातावरण के कारण चूहों के मंगल ग्रह के वातावरण में जीवित रह सकते हैं।
क्यों है मंगल ग्रह पर जीवन की संभावना
मंगल ग्रह सूर्य से दूरी के क्रम में हमारी धरती के ठीक बाद चौथे स्थान पर है। हमारे ग्रह की तरह ही मंगल ग्रह भी अपने अक्ष पर झुका हुआ है। मंगल ग्रह पर वायुमंडल होने के साथ ही पानी की भी पुष्टि हो चुकी है। इसके धरती से कई मायनों में समानता के चलते भी यहां जीवन के लिए संभावनाएं तलाशी जा रही हैं।
मंगल पर पाया जाता है वायुमंडल
मंगल ग्रह पर वायुमंडल मौजूद है। इसमें सबसे ज्यादा लगभग 95 प्रतिशत कार्बन-डाइऑक्साइड, 2.7 प्रतिशत नाइट्रोजन, 1.6 प्रतिशत ऑर्गन और 0.13 प्रतिशत ऑक्सीजन है। इस तरह से धरती की तरह ही वहां भी अलग-अलग गैसें पाई जाती हैं। मंगल ग्रह पर वायुमंडल बहुत ही विरल है।
यूरोप के ऑस्ट्रिया से साइकिल से 14 हजार किमी की यात्रा करना शायद ही किसी के बस की बात है। लेकिन ऐसा कर दिखाया है ऑस्ट्रिया के 31 वर्षीय फिलिक्स ने। आप भी ये पढ़कर हैरान रह गए होंगे। लेकिन फिलिक्स इन दिनों साइकिल से यात्रा कर उत्तरकाशी पहुंचे हैं।
साइकिल से 14 देशों की 14 हजार किमी की यात्रा, ऐसा करना हर किसी के बस की बात नहीं है। लेकिन, यह कारनामा किया है यूरोपीय देश ऑस्ट्रिया के फिलिक्स ने। 31 वर्षीय फिलिक्स इन दिनों भारत की यात्रा पर उत्तरकाशी पहुंचे हुए हैं। वे पेशे से योग शिक्षक हैं और साइकिलिंग के जरिये लोगों को योग को अपनाने का संदेश दे रहे हैं।
फिलिक्स ने एक साल पहले जर्मनी से अपनी साइकिल यात्रा शुरू की थी। इसके बाद वह स्विट्जरलैंड, ऑस्ट्रिया, स्लोवेनिया, क्रोएशिया, बोस्निया, माँटेनीग्रो, अल्बानिया, ग्रीस, तुर्की, अरमेनिया, ईरान से पाकिस्तान होते हुए वाघा बॉर्डर के रास्ते भारत पहुंचे हैं। उत्तरकाशी पहुंचे फिलिक्स ने बताया कि उन्होंने योगाभ्यास की शुरुआत भले पश्चिम देशों से की हो, लेकिन भारत योग की जन्मभूमि है। ऐसे में लंबे समय से उनकी भारत आने की इच्छा थी जो अब जाकर पूरी हुई।
सीखना चाहते हैं योग और ध्यान के तरीके-
फिलिक्स भारत में योगाभ्यास व ध्यान आदि के तौर-तरीकों को सीखना चाहते हैं। इसके लिए वह ऋषिकेश गए थे, लेकिन वहां पर्यटकों की भारी भीड़ देखकर उन्होंने उत्तरकाशी के शिवानंद आश्रम पहुंचने का मन बनाया।
उन्होंने बताया कि वह साइकिल यात्रा के दौरान जगह-जगह लोगों से मिलकर उन्हें योग व ध्यान का महत्व बताते हैं। वे साइकिल पर खाना बनाने के सभी जरूरी संसाधनों से लेकर कैंपिंग टैंप भी लेकर चलते हैं। ऐसे में रात में कैंपिंग करने में भी उन्हें दिक्कत नहीं होती। एक दिन में वह 50 से 70 किमी तक का सफर तय कर लेते हैं।
इजरायल से भारतीयों को निकालने के लिए भारत सरकार का ऑपरेशन अजय शुरू हो चुका है। इस ऑपरेशन के तहत भारतीयों का पहला जत्था शुक्रवार सुबह विशेष विमान से नई दिल्ली पहुंच गया है। पहले जत्थे में महिलाओं, बुजुर्गों और बच्चों को मिलाकार कुल 212 लोग भारत पहुंचे। एयरपोर्ट पर केंद्रीय मंत्री राजीव चंद्रशेखर ने लोगों का स्वागत किया और उनका हाल-चाल जाना। लोगों ने भी भारत सरकार को धन्यवाद दिया। उनका कहना है कि हम अब अपने देश में हैं, बहुत खुशी हो रही है।
ऑपरेशन अजय-
विदेश मंत्रालय ने कहा कि हमारी प्राथमिकता इजरायल में फंसे सभी भारतीयों को सकुशल वापस लाने की है। जो लोग वतन लौटना चाहते हैं। जैसे-जैसे भारतीयों का लौटने का आग्रह मिलता रहेगा उसी हिसाब से फ्लाइट शेड्यूल कर दी जाएगी। मंत्रालय ने कहा कि भारतीयों की वापसी को सुविधाजनक बनाने के लिए ‘ऑपरेशन अजय’ शुरू किया गया है जो स्वदेश लौटना चाहते हैं।
ऑपरेशन अजय पर बोले केंद्रीय मंत्री-
ऑपरेशन अजय पर केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर ने कहा कि चाहे वह कोरोना का समय हो या यूक्रेन-रूस युद्ध का समय हो या अरब स्प्रिंग के दौरान, भारत ने एक के बाद एक ऑपरेशन किए हैं और भारतीयों को बचाया है। पिछले साढ़े 9 साल से यही हो रहा है। सिर्फ अपने नागरिकों को ही नहीं, हमने दूसरे देशों के नागरिकों को भी बचाया है। आज भारत मदद मांगता नहीं, मदद देता है।
इजरायल में भारत के कितने लोग-
विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अरिंदम बागची ने कहा कि अभी एयर इंडिया का विमान 212 भारतीयों के पहले जत्थे को लेकर दिल्ली पहुंचा है। हम स्थिति पर करीब से नजर बनाए हुए हैं।’ उन्होंने कहा कि लगभग 18,000 भारतीय वर्तमान में इजराइल में रह रहे हैं, जबकि लगभग 12 लोग वेस्ट बैंक में और तीन-चार लोग गाजा में हैं।
1300 लोगों की मौत-
इजरायल और हमास के बीच चल रहे युद्ध के छठे दिन इजरायली सेना ने कहा कि इजराइल में 222 सैनिकों सहित 1,300 से अधिक लोग मारे गए हैं। मिस्र और सीरिया के साथ 1973 में हफ्तों तक चले युद्ध के बाद इतनी बड़ी संख्या में लोगों की मौत नहीं देखी गई। वहां के अधिकारियों के अनुसार, हमास शासित गाजा पट्टी में महिलाओं और बच्चों सहित कम से कम 1,417 लोग मारे गए हैं।
क्या आप जानते हैं एक जगह ऐसी भी है, जहां इतना सोना है कि अगर वो सोना धरती पर आ जाय तो यहां सोने की वैल्यू ही खत्म हो जाएगी, ये इतना सोना है कि इस दुनिया में मौजूद हर शख्स करोड़पति बन सकता है,दो जगह ऐसी भी है जहां हीरों यानी डायमंड की बारिश होती है,ये सुनकर आप जरूर चौंक गए होंगे,लेकिन ये सौ प्रतिशत सच है।
क्या है 16 साइकी-
स्पेस यानी अंतरिक्ष जहां हमारे वैज्ञानिक लगातार खोज कर रहे हैं, यहां इतने रहस्य छिपे हैं जिनका इंसानों को पता नहीं है,इंसान की जिज्ञासा लगातार स्पेस में मौजूद चीजों को जानने की रही है. इसी सौरमंडल में एक लघु ग्रह है जो लगातार सूर्य के चक्कर लगाता है. वैज्ञानिकों को कई साल पहले ये ग्रह मिला इसका आकार प्रकार आलू की तरह है लेकिन इसकी खास बात ये है कि इसमें सोने की धातु प्रचुर मात्रा में भरी हुई है. इसका नाम 16साइके है. इसे लघु ग्रह भी कहा जा सकता है. वैज्ञानिकों ने पिछले कुछ वर्षों में कई क्षुद्र ग्रह खोजे हैं, ये उसी कतार में 16वां लघु ग्रह है।
इस लघुग्रह को 17 मार्च 1852 को इतालवी खगोलशास्त्री एनाबेल डी गैस्पारिस ने खोजा था. लेकिन इस पर इतना सोना भरा हुआ है. इसका पता बाद के बरसों में पता लगा, जब इस ग्रह आधुनिक अंतरिक्ष उपकरणों और मिशन के जरिए अध्ययन किया गया. 16 साइके नाम का ये लघुग्रह मंगल और बृहस्पति के बीच सूर्य की परिक्रमा करता है. इसका कोर निकल और लोहे से बना है. इसके अलावा इसमें बड़ी मात्रा में प्लैटिनम, सोना और अन्य धातुएं हैं.क्षुद्रग्रह 16 साइकी में मौजूद खनिजों की कीमत खरबों से भी कहीं अधिक बताई गई है. माना जाता है कि अगर इसका पूरा सोना धरती पर आ जाए तो वह हर शख्स $93 बिलियन यानी 763 अरब रुपए का धनवान बना देगा।
नासा ने 2013 में बनाई थी मिशन की योजना-
हालांकि इसका एक तर्क ये भी है कि अगर इस लघुग्रह का पूरा सोना धरती पर आ जाए तो सोने की कीमत बहुत गिर जाएगी और ये कीमती नहीं रह जाएगा. लेकिन ये सच्चाई है कि अब तक जितने ग्रहों या लघु ग्रहों का पता चला है, उसमें 16 साइके ऐसा लघुग्रह है जो सोने के अयस्क से लबालब है.ये वहां मध्यम आकार की बड़ी चट्टान के तौर पर घूम रहा है. डिस्कवरी के अनुसार , 16 साइकी में इतना सोना और अन्य कीमती धातुएं हैं कि धरती के हर शख्स को 100 अरब डॉलर मिल सकते हैं. नासा ने अक्टूबर 2013 में क्षुद्रग्रह पर एक मिशन भेजने की योजना बनाई थी, लेकिन ये अभियान टल गया. हालांकि इस मिशन का उद्देश्य लघुग्रह के खजाने को इकट्ठा करने की बजाए इसका अध्ययन करना था. यहां बहुत ही कीमती खजाना और हीरे, जवाहरात मिलने की संभावना जताई गई है।
यहां पर हैं सभी धातुएं मौजूद-
आपको बताते चले की इस जगह पर इतनी ज्यादा मात्रा में हीरे जवाहरात और कीमती रत्न मौजूद हैं, आलू के आकार में दिखाई दिखने वाला ये ग्रह सोने सहित कई और बहुमूल्य धातुओं जैसे प्लेटिनम, आयरन से बना हुआ है. नासा के मुताबिक इस क्षुद्रग्रह का व्यास लगभग सवा दो सौ किलोमीटर है. इस ग्रह पर सोने और लोहे की मात्रा बहुतायत है. अंतरिक्ष विशेषज्ञों के मुताबिक 16-साइकी पर लगभग 8000 क्वॉड्रिलियन पाउंड कीमत के बराबर लोहा मौजूद है. इस ग्रह की खोज के बाद वैज्ञानिक और खनन विशेषज्ञ स्कॉट मूर ने बताया कि यहां यहां पर इतना सोना हो सकता है कि अगर ये धरती पर आ जाए तो दुनियाभर की सोने की इंडस्ट्री के लिए खतरा बन जाएगा. धरती पर अचानक से इतनी अधिक मात्रा में आए सोने की वजह से सोने की कीमत गिर जाएगी और ये कौड़ियों के भाव आ जाएगा।
एलन मस्क करेगा मदद-
आपको बता दें अब नासा स्पेस एक्स के मालिक एलन मस्क की मदद से इस एस्टेरॉयड के बारे में और पता लगाने की कोशिश कर रहा है. स्पेस एक्स अपने अंतरिक्षयान से रोबोटिक मिशन इस एस्टेरॉयड पर भेजे सकता है। हालांकि इसे वहां जाने और स्टडी करके वापस आने में सात साल का समय लग जाएगा.उसकी वजह ये भी है कि अधिकांश क्षुद्रग्रह चट्टान, बर्फ या दोनों के संयोजन से बने होते हैं, लेकिन ये क्षुद्रग्रह धातु का एक विशाल टुकड़ा है जो बताता है कि यह एक प्रोटोप्लैनेट का खुला कोर हो सकता है. क्षुद्रग्रह पर कोई यान या मिशन भेजने पर खगोलविदों को ये देखने का मौका मिलेगा कि यहां पर वास्तव में क्या क्या है. ये संभव है कि इसी साल अक्टूबर में नासा का एक मिशन 16 साइकी के लिए रवाना किया जाए, जो 2030 तक इस क्षुद्रग्रह पर पहुंचेगा।
कई ग्रहों पर हो सकती है सोने की बड़ी मात्रा-
दशकों पहले किए गए अपोलो मिशनों के जरिए भी चंद्रमा पर सोना और चांदी होने का अनुमान लगाया गया था. वैसे तो कहा ये भी जाता है कि बुध ग्रह में हीरे भरे हुए हैं, जो पृथ्वी की तुलना में 17 गुना अधिक हीरे हो सकते हैं. वैज्ञानिकों का ये भी आकलन है कि मंगल और बृहस्पति जैसे ग्रहों पर जो स्थितियां हैं, उसमें वहां भी सोने की बड़ी मात्रा हो सकती है. वैसे वैज्ञानिक शोध ये भी बताती हैं कि अध्ययन यूरेनस और नेपच्यून जैसे ग्रहों पर हीरे की बारिश होती है. आप सोचेंगे ये कैसे सम्भव है,पर ये भी सच है और इसके पीछे विज्ञान का एक नियम काम करता है।
कैसे बनते हैं ये हीरे-
हमारे सौर मंडल में आठ ग्रह हैं। इन आठ ग्रहों में से हमारा ज्यादातर फोकस मंगल, बृहस्पति और शनि ग्रह पर होता है। सौरमंडल के बाहर तमाम तरह के अजीबोगरीब ग्रह हैं। कई ग्रह ऐसे हैं जहां रात में आग की बारिश होती है। हमारे सौरमंडल में ही दो ऐसे ग्रह हैं जिन पर हीरे की बारिश होती है। ये ग्रह यूरेनस और नेपच्यून हैं। सुनने में भले ही ये आपको किसी फिल्म की तरह लगे लेकिन ये सच है। NASA के ग्रेविटी एसिस्ट शोधकर्ता नाओमी रोवे-गर्ने बताती है कि इन ग्रहों पर हीरे की बारिश होती है। हीरे की बारिश सुन कर आप इसे पृथ्वी पर होने वाली बारिश जैसा मत समझ लीजिएगा. जिसमें जलवाष्प वायुमंडल में इकट्ठा होकर ठंडे होते हैं और फिर से पानी के रूप में बरसते हैं। ये हीरे पहले से किसी बादल में मौजूद नहीं होते हैं, बल्कि एक वैज्ञानिक प्रक्रिया के कारण बनते हैं।
क्या कहती हैं NASA की शोधकर्ता नाओमी-
नाओमी रोवे-गर्नी बताती हैं कि ‘मीथेन गैस के कारण ये दोनों ग्रह नीले दिखाई देते हैं। जैसा कि हम जानते हैं कि मीथेन में कार्बन होता है। लेकिन इन ग्रहों पर वायुमंडलीय दबाव बहुत ज्यादा है। इस कारण मीथेन से कार्बन कई बार अलग हो जाता है और भारी दबाव के कारण ये क्रिस्टल बनने लगते हैं जो एक हीरा होता है। ये हीरे लगातार जमा होते रहतें हैं और भारी होकर ये सतह पर गिरते हैं। अगर हम ग्रह पर मौजूद रहें तो ये देखने में हीरे की बारिश जैसा ही लगेगा।
नाओमी ने आगे बताती हैं कि ये एक ऐसी बारिश है जिसे हम देख नहीं सकते हैं, क्योंकि यहां के वायुमंडल में भारी दबाव है। इंसान यहां इसी कारण कभी नहीं जा सकता। उन्होंने कहा कि अगर ये हीरे हैं भी तो हम कभी इन्हें ला नहीं सकते हैं। बता दें कि मीथेन का रासायनिक नाम CH4 है। वातावरण के दबाव के चलते इससे कार्बन यानी C अलग हो जाता हे। अगर पृथ्वी के हिसाब से देखें तो जिस तरह वायुमंडलीय दबाव के कारण बारिश की बूंदें ओला बनती हैं वैसे ही इन हीरों का निर्माण होता है। पृथ्वी और नेपच्यून की दूरी 4.4 अरब किमी दूर है। वहीं यूरेनस की दूरी 3 अरब किमी है।
जब शोधकर्ताओं ने पहली बार देखी हीरे की बारिश-
2017 में शोधकर्ताओं ने पहली बार “हीरे की बारिश” देखी, क्योंकि यह उच्च दबाव की स्थिति में हुई थी, जैसा कि यूरेनस और नेपच्यून पर अनुभव किया गया था। यह अत्यंत उच्च दबाव है, जो इन ग्रहों के आंतरिक भाग में पाए जाने वाले हाइड्रोजन और कार्बन को निचोड़ कर ठोस हीरे बनाता है जो धीरे-धीरे आंतरिक भाग में डूब जाते हैं।शोधकर्ताओं ने इन ग्रहों की संरचना को अधिक सटीक रूप से पुन: पेश करने के लिए पीईटी प्लास्टिक का उपयोग किया, जिसका उपयोग नियमित रूप से खाद्य पैकेजिंग और प्लास्टिक की बोतलों में किया जाता है। उन्होंने एस.एल.एसी के लीनाक कोहेरेंट लाइट सोर्स में मैटर इन एक्सट्रीम कंडीशन उपकरण पर उच्च शक्ति वाले ऑप्टिकल लेजर की ओर रुख किया और प्लास्टिक में शॉकवेव्स बनाई. एक्स-रे पल्स का उपयोग करते हुए. उन्होंने शॉकवेव्स से प्लास्टिक में होने वाले परिवर्तनों का विश्लेषण किया और देखा कि सामग्री के परमाणु छोटे हीरे के क्षेत्रों में पुनर्व्यवस्थित हो गए।
टीम ने तब मापा कि वे क्षेत्र कितनी तेजी से और बड़े हुए और पाया कि ये हीरे के क्षेत्र कुछ नैनोमीटर चौड़े तक बढ़ गए। विश्लेषण से पता चला कि यह सामग्री में ऑक्सीजन की उपस्थिति थी. जिसने नैनोडायमंड को पहले की तुलना में कम दबाव और तापमान पर बढ़ने के लिए प्रेरित किया और अनुमान लगाया कि नेपच्यून और यूरेनस पर हीरे इन प्रयोगों में उत्पादित नैनोडायमंड की तुलना में बहुत बड़े हो जाएंगे।
चंद्रयान की सफलता से भारत की स्पेस एजेंसी इसरो की तारीफ विश्व के हर देश में हो रही है, भारत की इस कामयाबी के पीछे हमारे वैज्ञानिकों का अथक परिश्रम है, तभी जाकर भारत वो कारनामा करने में कामयाब हो पाया जो विश्व का कोई देश नहीं कर पाया, चंद्रयान-3 मिशन की सफलता के बाद ISRO ने अब सूरज के राज खोलने की भी तैयारी कर ली है. और इस मिशन का नाम होगा आदित्य L1 मिशन, सूरज में चल रही उथल-पुथल और स्पेस क्लाइमेट का अध्ययन करने के लिए भारत के आदित्य L1 मिशन 2 सितंबर को सुबह 11 बजकर 50 मिनट पर आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा में सतीश धवन स्पेस सेंटर से मिशन को लॉन्च किया जाएगा. पृथ्वी से सूरज की दूरी 15 करोड़ किलोमीटर है यानी चांद की तुलना में 4 गुना ज्यादा दूर है. पहले भी कई मिशन लॉन्च किए जा चुके हैं. सूरज पर इतनी ज्यादा गर्मी है. इससे ये तो साफ है कि मिशन सन मिशन मून की तुलना में ज्यादा मुश्किल भरा होने वाला है।
2 सितंबर को रवाना होगा आदित्य L1 मिशन-
विज्ञान के साथ ही हमारे और आपके जीवन के लिए भी ये अभियान बेहद महत्व रखता है। सूरज में चल रही उथल-पुथल और स्पेस क्लाइमेट का अध्ययन करने के लिए भारत का आदित्य L-1 मिशन 2 सितंबर को रवाना होगा। आदित्य-एल-1 अंतरिक्ष में एक स्पेस स्टेशन की तरह काम करेगा। भारत में अब तक वैज्ञानिक सूरज का अध्ययन ऑब्सर्वेटरी में लगी दूरबीनों के जरिए कर रहे हैं। इसकी कई सारी सीमाएं हैं। सूरज का आकार इतना बड़ा है कि लाखों पृथ्वी इसमें समा सकती हैं. स्पेस डॉट कॉम की रिपोर्ट के मुताबिक, सूर्य का व्यास पृथ्वी से करीब 109 गुना ज्यादा है. करीब 13 लाख पृथ्वी सूर्य में समा सकती है।
नासा ने सूर्य के अध्ययन के लिए किए कई शोध-
हमारा ब्रह्मांड असंख्य तारों से बना है. वैज्ञानिक ब्रह्मांड का भविष्य जानने में जुटे हैं. इसी क्रम में जिस सौर मंडल में हम रहते हैं उसे समझने के लिए सूर्य को जानना बेहद जरूरी है.. सूर्य से जितनी मात्रा में ऊर्जा और तापमान निकलता है उसका अध्ययन धरती पर नहीं किया जा सकता. लिहाजा दुनिया भर की अंतरिक्ष एजेंसियां जितना संभव है उतना सूर्य के पास जाकर अध्ययन करना चाहती हैं. नासा और यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी ने सूर्य का अध्ययन करने के लिए कई शोध किए हैं. इसरो भी आदित्य एल-1 के जरिए सूर्य का विस्तृत अध्ययन करना चाहता है।
आदित्य एल-1 को पृथ्वी से सूर्य की ओर क़रीब 15 लाख किलोमीटर पर स्थित लैंग्रेंज-1 पॉइंट तक पहुंचना है. यह वो कक्षा में स्थापित हो जाएगा और वहीं से सूर्य पर नज़र बनाते हुए उसका चक्कर लगाएगा.
4 अरब साल पहले हुआ था सूर्य का जन्म-
सूर्य पर तापमान की बात करें तो यह 10 हजार फारेन हाइट यानी 5,500 डिग्री सेल्सियस के लगभग है. यहां पर हो रही न्यूक्लियर रिएक्शन की वजह से सूर्य के कोर का तापमान 7 मिलियन फारेनहाइट या 15 मिलियन सेल्सियस तक पहुंच जाता है. नासा के मुताबिक, 100 बिलियन टन डायनामाइट के विस्फोट से जितनी गर्मी पैदा होती है, ये तापमान उसके बराबर है. वैज्ञानिकों के मुताबिक, सूर्य का जन्म लगभग 4.6 अरब साल पहले हुआ था. उनका ऐसा मानना है कि सूर्य और सौर मंडल का बाकी हिस्सा गैस और धूल के एक विशाल गोले से बना है, जिसे सोलर नेब्यूला के तौर पर जाना जाता है. रिपोर्ट के मुताबिक, सूर्य के पास इतना न्यूक्लियर फ्युअल है कि वह इसी अवस्था में अगले 50 लाख सालों तक रह सकता है. इसके बाद वह एक लाल गोले में तब्दील हो जाएगा और आखिर में इसका बाहरी सतहें खत्म हो जाएंगी और इसका छोटा सा बस सफेद कोर रह जाएगा. धीरे-धीरे यह कोर फीका पड़ना शुरू होगा और अपने अंतिम चरण की तरफ बढ़ना शुरू होगा।
भारत के इस मिशन का सबको इंतजार-
ये तो थी सूर्य के बारे में कुछ जानकारियां जो विश्व के वैज्ञानिकों ने अब तक जुटाई है, अब बात भारत के उस मिशन की जिसका इन्तजार न केवल देश के लोगों बल्कि पूरे विश्व को है. चांद को तो भारत ने मुट्ठी में कर लिया है.. आदित्य L-1 के जरिये अब सूरज की बारी है. ये काफी मुश्किल टास्क है लेकिन जिस तरह भारत ने चंद्रयान मिशन को कामयाब बनाया इससे अब एक बार फिर पूरे विश्व को भारत से उम्मीद जग गई है और हमारे देश के वैज्ञानिकों का इरादा और दृढ़ संकल्प यही दर्शाता है।
आदित्य L1 को लॉन्च करने का मकसद आखिर है क्या?
आदित्य एल-1 भारत का पहला सूर्य मिशन है। इसे लॉन्च करके भारत सौर वायुमंडल यानी क्रोमोस्फेयर और कोरोना की गतिशीलता का अध्ययन करना चाहता है। इसके साथ ही, वह कोरोना से बड़े पैमाने पर निकलने वाली ऊर्जा के रहस्यों से भी पर्दा उठाना चाहता है। इसके अलावा, आदित्य एल-1 के जरिए इसरो आंशिक रूप से आयनित प्लाज्मा की भौतिकी और अंतरिक्ष के मौसम की गतिशीलता के बारे में जानकारी इकट्ठा करना चाहता है। इसके साथ ही, वह सौर वातावरण से प्लाज्मा और चुंबकीय क्षेत्रों के बड़े पैमाने पर विस्फोट का अध्ययन करना चाहता है।
क्या है मिशन का बजट?
आदित्य एल-1 करीब 15 लाख किलोमीटर दूर स्थित सूर्य के रहस्यों से पर्दा उठाएगा। इसे लैंग्रेज बिंदु यानी एल-1 तक पहुंचने में 4 महीने लगेंगे। आदित्य एल-1 को लैंग्रेज बिंदु की पास की कक्षा में स्थापित किया जाएगा। लैंग्रेज बिंदु का मतलब अंतरिक्ष में मौजूद उस प्वाइंट से होता है, जहां दो अंतरिक्ष निकायों जैसे सूर्य और पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण बल के कारण आकर्षण और प्रतिकर्षण का क्षेत्र उत्पन्न होता है। इतालवी-फ्रांसीसी गणितज्ञ जोसेफ-लुइस लैंग्रेंज के नाम पर इसका नामकरण किया गया है। आदित्य एल-1 सात पेलोड लेकर अपनी मंजिल तक पहुंचेगा। इन पेलोड के जरिए इसरो को फोटो स्फेयर यानी प्रकाश मंडल, और क्रोमोस्फेयर यानी सूर्य की दिखाई देने वाली सतह से ठीक ऊपर की सतह और कोरोना यानी सूर्य की सबसे बाहरी परत के अध्ययन में मदद मिलेगी। आदित्य एल-1 को आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा स्थित सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से PSLV-सी – 57 के जरिए लॉन्च किया जाएगा। इससे पहले चंद्रयान-3 को भी यहां से लॉन्च किया गया था। आदित्य एल-1 मिशन का बजट करीब 400 करोड़ रुपये हैं। आदित्य एल-1 को दिसंबर 2019 से बनाना शुरू किया गया था।
कहां से होगी मिशन सन की लैंडिंग-
चंद्रयान-3 को 14 जुलाई को दोपहर दो बजकर 35 मिनट पर श्रीहरिकोटा स्थित स्पेस सेंटर से LVM-3 के जरिए लॉन्च किया गया था। यह 23 अगस्त को शाम 6 बजकर चार मिनट पर चांद की सतह पर लैंड किया। साथ ही भारत चौथा देश बन गया, जिसने चांद पर सॉफ्ट लैंडिंग की हो। इसी के साथ भारत के नाम एक और बड़ी उपलब्धि दर्ज हुई। भारत चांद के दक्षिणी ध्रुव पर सॉफ्ट लैंडिंग करने वाला दुनिया का पहला देश बन गया है। चंद्रयान-3 जहां चांद के रहस्यों से पर्दा उठाएगा, वहीं आदित्य एल-1 सूर्य के राज को दुनिया के सामने खोलेगा। सूर्य के उन रहस्यों से पर्दा उठेगा, जिससे दुनिया अब तक अनजान है। इसरो के मुताबिक, इस मिशन को सूर्य की तरफ लगभग 15 लाख किलोमीटर तक भेजा जाएगा. जिस जगह पर आदित्य एल-1 अंतरिक्ष यान जाएगा उसे एल-1.. यानी लाग्रेंज प्वाइंट वन कहते हैं. ये दूरी पृथ्वी और सूर्य की दूरी का महज 1 प्रतिशत है।
इन वजह से सूर्य को देखा जा सकता है-
धरती और सूर्य के बीच की दूरी लगभग 15 करोड़ किलोमीटर है. इस दूरी के बीच में कई ऐसे बिंदु हैं जहां से सूर्य को स्पष्ट देखा जाता है. धरती और सूर्य के बीच लैग्रेंज प्वाइंट ही वो जगह है जहां से सूर्य को बिना किसी ग्रहण या अवरोध के देखा जा सकता है. धरती और सूर्य के बीच पांच लैग्रेंज प्वाइंट है. इस पर किसी अंतरिक्ष यान का गुरुत्वाकर्षण सेंट्रिपेटल फोर्स के बराबर हो जाता है. जिसकी वजह से यहां कोई भी यान लंबे समय तक रुक कर शोध कर सकता है. इस जगह को ‘अंतरिक्ष का पार्किंग’ भी कहा जाता है, क्योंकि बेहद कम ईंधन के साथ इस जगह पर अंतरिक्ष यान को स्थिर किया जा सकता है. एल 1, एल 2 और एल 3 प्वाइंट स्थिर नहीं है. इसकी स्थिति बदलती रहती है. जबकि एल 4 और एल 5 स्थिर है और अपनी स्थिति नहीं बदलते हैं।
आंध्र-प्रदेश के श्रीहरिकोटा से होगा लॉन्च-
आदित्य-एल-1 मिशन को इसरो के PSLV-XL रॉकेट में सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र श्रीहरिकोटा से लॉन्च किया जाएगा. शुरुआत में अंतरिक्ष यान को पृथ्वी की लोअर आर्बिट में रखा जाएगा इसके बाद इस कक्षा को कई राउंड में पृथ्वी की कक्षा से बाहर ले जाने के लायक बनाया जाएगा उसके बाद स्पेस क्राफ्ट में ऑनबोर्ड इग्निशन का उपयोग करके लैग्रेंज बिंदु (एल1) की ओर प्रक्षेपित कर दिया जाएगा।
ये है आदित्य L1 मिशन का लक्ष्य-
सूर्य और उसके अस्तित्व के बारे में मानव मन की जिज्ञासाओं को शांत करने में इसरो इस मिशन पर 400 करोड़ रुपये खर्च कर रहा है, वहीं अगर इस पर लगने वाले समय की बात करें तो आदित्य एल-1 को दिसंबर 2019 से बनाने पर काम चल रहा है. जो कि इसके प्रक्षेपण के बाद ही पूरा होगा. आदित्य-एल1 मिशन का लक्ष्य एल1 के पास की कक्षा से सूर्य का अध्ययन करना है.. यह मिशन सात पेलोड लेकर जाएगा, जो अलग-अलग वेव बैंड में फोटोस्फेयर, क्रोमोस्फेयर और सूर्य की सबसे बाहरी परत पर रिसर्च करने में मदद करेंगे।
इसरो के अनुसार, एल1 रिसर्च मिशन में आदित्य-1 यह पता लगाएगा कि सूर्य की बाहरी सतह का तापमान लगभग दस लाख डिग्री तक कैसे पहुंच सकता है, जबकि सूर्य की सतह का तापमान 6000 डिग्री सेंटीग्रेड से थोड़ा अधिक रहता है. आदित्य-एल1 यूवी पेलोड का उपयोग करके कोरोना और सौर क्रोमोस्फीयर पर एक्स-रे पेलोड का उपयोग करके लपटों का अवलोकन कर सकता है. कण संसूचक और मैग्नेटो मीटर पेलोड आवेशित कणों और एल1 के चारों ओर प्रभामंडल कक्षा तक पहुंचने वाले चुंबकीय क्षेत्र के बारे में जानकारी प्रदान कर सकते हैं।
क्या है इन प्वाइंट्स का काम-
L-3 प्वाइंट सूर्य के पीछे के हिस्से में है. जबकि एल 1 और एल 2 प्वाइंट सूर्य के सीध में सामने हैं. एल 2 प्वाइंट पृथ्वी के पीछे के हिस्से में हैं, मतलब एल 2 प्वाइंट के सामने पृथ्वी और सूर्य दोनों आते हैं. यह प्वाइंट भी रिसर्च के लिहाज से काफी मुफीद माना जाता है, क्योंकि यह पृथ्वी के नजदीक है और यहां से संचार में काफी आसानी होती है. दरअसल इसरो उन सौर गतिविधियों की स्टडी करना चाहता है जो उसकी सतह से बाहर निकल कर अंतरिक्ष में फैल जाते हैं और कई बार धरती की तरफ भी आ जाते हैं, जैसे कोरोनल मास इजेक्शन, सोलर फ्लेयर्स, सौर तूफान आदि. इसलिए लाग्रेंज प्वाइंट 1 इस लिहाज से खास जगह है, क्योंकि सूर्य से निकलने वाले कोरोनल मास इजेक्शन और सौर तूफान इसी रास्ते से होकर धरती की ओर जाते हैं।
अगर भारत इस मिशन में कामयाब हुआ तो-
सूर्य के वातावरण से निकलकर अंतरिक्ष में फैलने वाले कोरोनल मास इजेक्शन और सौर तूफानों में कई तरह के रेडियोएक्टिव तत्व होते हैं, जो पृथ्वी के लिहाज से नुकसानदेह होते हैं. सौर तूफान और कोरोनल मास इजेक्शन की वजह से पृथ्वी के बाहरी वायुमंडल में चक्कर काट रही सैटेलाइट में खराबी आ सकती है. इसके अलावा अगर कोरोनल मास इजेक्शन और सौर तूफान धरती के वातावरण में दाखिल हो जाए तब पृथ्वी पर शार्ट वेब कम्यूनिकेशन, मोबाइल सिग्नल, इलेक्ट्रिक पॉवर ग्रिड सिस्टम पूरी तरह से ठप पड़ जाएगा।
अगर भारत इस मिशन में सक्सेज होता है तो भारत की स्पेस एजेंसी का लोहा पूरा विश्व मानेगा,, जैसा की उम्मीद भी है कि इसरो इस मुश्किल काम में जीत हासिल करेगा,,, सूर्य से मिलने वाली जानकारी से न केवल इसरो और भारत बल्कि पुरे विश्व को काफी फायदा पहुंचेगा, फिलहाल इसरो के इस मिशन की कामयाबी को लेकर सारा देश प्रार्थना कर रहा है।
चांद के साउथ पोल पर चंद्रयान-3 की सॉफ्ट लैंडिंग के साथ ही भारत ने अंतरिक्ष में इतिहास रच दिया है. इसरो (ISRO) के मुताबिक तय समय पर ये मिशन पूरा हुआ है. चंद्रयान-3 की सफल लैंडिंग के साथ ही देश भर में खुशी का माहौल है. चंद्रयान-3 के चांद के पास पहुंचने के साथ ही भारत का नाम भी इतिहास के पन्नों में कैद हो गया है. इंडियन स्पेस रिसर्च ऑर्गेनाइजेशन (ISRO) का सपना भी इसी के साथ पूरा हो गया. 14 जुलाई को चंद्रयान-3 के लॉन्च होने के बाद से ही ये यात्रा जारी थी. पूरी दुनिया को इस दिन का बेसब्री से इंतजार था.
40 दिन का भारत का इंतजार आखिरकार खत्म हुआ। पृथ्वी से चंद्रमा तक 3.84 लाख किलोमीटर का सफर तय करने के बाद चंद्रयान-3 का लैंडर विक्रम चंद्रमा की धरती पर कामयाबी के साथ उतर गया। इसी के साथ भारत चांद पर सॉफ्ट लैंडिंग करने वाला रूस, अमेरिका और चीन के बाद दुनिया का तीसरा देश बन गया है। वहीं, चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर सॉफ्ट लैंडिंग करने वाला दुनिया का पहला देश बन गया है।
अब नजरें प्रज्ञान रोवर पर है, जो स्थितियां सामान्य होने के बाद चांद की सतह पर चलेगा। इसके एक पहिये पर इसरो का चिह्न और दूसरे पहिये पर अशोक स्तंभ उकेरा हुआ है। जैसे ही प्रज्ञान रोवर चलना शुरू करेगा, इसरो का चिह्न और अशोक स्तंभ चंद्रमा की सतह पर अंकित हो जाएगा।
चंद्रयान-3 ने कैसे रच दिया इतिहास?
इसरो के अधिकारियों के मुताबिक, चंद्रयान-3 मिशन चंद्रयान-2 का ही अगला चरण है, जो चंद्रमा की सतह पर उतरेगा और परीक्षण करेगा। यह चंद्रयान-2 की तरह ही दिखता है, जिसमें एक लैंडर और एक रोवर शामिल किए गए हैं। चंद्रयान-3 का फोकस चंद्रमा की सतह पर सुरक्षित लैंड करने पर है। मिशन की सफलता के लिए नए उपकरण बनाए गए हैं। एल्गोरिदम को बेहतर किया गया है। जिन वजहों से चंद्रयान-2 मिशन चंद्रमा की सतह नहीं उतर पाया था, उन पर फोकस किया गया है।
मिशन ने 14 जुलाई को दोपहर 2:35 बजे श्रीहरिकोटा केन्द्र से उड़ान भरी और योजना के अनुसार आज चंद्रमा पर उतरा। यह मिशन भारत को अमेरिका, रूस और चीन के बाद चंद्रमा पर सॉफ्ट लैंडिंग करने वाला दुनिया का चौथा देश बन गया।
पिछले दो मिशन-
चंद्रयान-1
यह अक्तूबर 2008 में भेजा गया था। चंद्रमा पर पानी की संभावना की खोज कर यह इतिहास रच चुका है। इसी के बाद विश्व की तमाम अंतरिक्ष एजेंसियों की चंद्रमा को लेकर उत्सुकता बढ़ गई।
चंद्रयान-2
जुलाई 2019: यह यान आज भी चंद्रमा की सौ किलोमीटर की कक्षा में घूम रहा है। इसे एक साल तक ही चलना था, लेकिन अब तक यह हमें जानकारी भेज रहा है। इसमें विश्व का सबसे बेहतरीन कैमरा लगा है, जो चंद्रमा के लगभग हर हिस्से की तस्वीरें ले चुका है।
अभिनेता अक्षय कुमार ने आज सोशल मीडिया पोस्ट साझा कर उन्होंने ये जानकारी दी कि उन्हें भारत की नागरिकता मिल गई है। अब तक अक्षय के पास कनाडा की नागरिकता थी।अभिनेता अक्षय कुमार को नागरिकता अधिनियम, 1955 की धारा 5(1)(जी) के तहत भारतीय नागरिकता दी गई है।
स्वतंत्रता दिवस के खास मौके पर अभिनेता अक्षय कुमार ने अपने प्रशंसकों को एक खुशखबरी दी। दरअसल, अक्षय कुमार को भारतीय नागरिकता मिल गई है। उन्होंने सोशल मीडिया पोस्ट साझा कर खुद ये जानकारी साझा की है। चलिए आपको बताते हैं की अक्षय को नागरिकता किस नियम के तहत मिली?
बेहद खुश हूँ-
अभिनेता अक्षय कुमार ने मंगलवार को सोशल मीडिया पोस्ट साझा कर ये जानकारी सांझा की उन्होंने कहा कि उन्हें भारत की नागरिकता मिल गई है। अब तक अक्षय कुमार के पास कनाडा की ही नागरिकता थी। अब वो वापस भारत की नागरिकता पाकर बेहद खुश हैं। एक्टर ने नागरिकता दस्तावेज की एक फोटो भी साझा की है। इसके साथ उन्होंने लिखा है, ‘दिल और सिटीजनशिप दोनों हिंदुस्तानी। स्वतंत्रता दिवस की शुभकामनाएं। जय हिंद।’
अक्षय कुमार को भारत सरकार के अधीन गृह मंत्रालय द्वारा पंजीकरण प्रमाण पत्र दिया गया है। दस्तावेज के मुताबिक, अभिनेता को नागरिकता अधिनियम, 1955 की धारा 5(1)(जी) के तहत भारतीय नागरिकता दी गई है।
नागरिकता अधिनियम, 1955 की धारा 5(1)(जी) क्या है-
नागरिकता अधिनियम, 1955 की धारा 5(1)(जी) उन व्यक्तियों की नागरिकता का उल्लेख करती है जो की 5 साल से भारत के विदेशी नागरिक (ओवरसीज इंडियन सिटीजन) के रूप में पंजीकृत है। इसके साथ ही वो व्यक्ति भारतीय नागरिकता के लिए आवेदन करने से ठीक पहले एक साल तक भारत में रहा हो और एक साल की इस अवधि से ठीक पहले के आठ वर्षों के दौरान कम से कम छह साल तक भारत में रहा हो।
क्या-क्या दस्तावेज हैं जरुरी-
ओवरसीज इंडियन को नागरिकता पाने के लिए कुछ अहम दस्तावेजों को अपलोड करना होता है। ये कागजात हैं वैध विदेशी पासपोर्ट की एक प्रति और धारा 7ए के तहत भारत के विदेशी नागरिक के रूप में पंजीकरण प्रमाण पत्र की एक प्रति।
कौन होते हैं ओवरसीज इंडियन?
देश की संसद ने साल 2003 में नागरिकता संशोधन विधेयक पारित कर विदेशों में बसे भारतीय मूल के लोगों को भारत की नागरिकता प्रदान करने का प्रावधान किया है। इसे ओवरसीज सिटीजनशिप ऑफ इंडिया के नाम दिया गया है। इसके अनुसार, भारतीय मूल का कोई भी व्यक्ति जो संविधान लागू होने के बाद भारत या उसके किसी राज्य क्षेत्र का नागरिक रहा हो और जिसने पाकिस्तान और बांग्लादेश के अलावा किसी अन्य देश की नागरिकता ग्रहण कर ली है, नागरिकता अधिनियम 1955 के अधीन पंजीकरण करा सकता है। यदि उसके देश में दोहरी नागरिकता का प्रावधान है।
पंजीकरण के बाद अगर व्यक्ति पांच साल में से एक साल भारत में रहता है तो उसे भारत की नागरिकता मिल सकती है। वर्तमान में अमेरिका, ब्रिटेन, कनाडा, फ्रांस, ऑस्ट्रेलिया सहित 16 देशों में बसे भारतीय मूल के लोगों को दोहरी नागरिकता प्रदान की जा सकती है। क्योंकि, इन देशों के नागरिक दोहरी नागरिकता ले सकते हैं।
इन अभिनेता ने क्यों ली थी कनाडा की नागरिकता-
अक्षय कुमार ने वर्ष 2019 में कनाडा का पासपोर्ट रद्द करवाने और भारतीय पासपोर्ट फिर से हासिल करने की प्रक्रिया शुरू की थी।एक इंटरव्यू के दौरान अपनी नागरिकता पर बात करते हुए अक्षय कुमार ने कहा था कि मेरे लिए भारत सब कुछ है। मैंने जो कुछ भी हासिल किया है वो यही से किया है। मैं सौभाग्यशाली हूं कि मुझे देश के लिए कुछ करने का मौका मिला। अक्षय ने इस दौरान बताया था कि एक समय पर उनकी 15 से ज्यादा फिल्में फ्लॉप हो गई थीं, यही वो वजह थी जिसने उन्हें कनाडा की नागरिकता लेने के लिए प्रेरित किया था।
क्या कहा अभिनेता अक्षय कुमार ने-
अक्षय ने कहा था, ‘मैंने सोचा कि मेरी फिल्में नहीं चल रही हैं। मैं वहां काम के लिए गया था। मेरा दोस्त कनाडा में था और उसने कहा कि यहां आओ। जिसके बाद मैंने आवेदन कर दिया और मुझे नागरिकता मिल गई। मेरी बस दो फिल्में रिलीज होनी बाकी थी। किस्मत से दोनों ही सुपरहिट हो गईं। मेरे दोस्त ने कहा कि वापस जाओ और फिर से काम करना शुरू करो। इसके बाद मुझे काम मिलता चला गया। मैं भूल गया कि मेरे पास कनाडा का पासपोर्ट है। इस पासपोर्ट को बदलवाने का विचार कभी नहीं आया, लेकिन अब मैंने अपना पासपोर्ट बदलवाने के लिए आवेदन कर दिया है।’
पिछले कई सालों के अंदर यानी, (2011 से 2023 तक) 17.50 लाख से अधिक लोगों ने भारत की नागरिकता छोड़ दी है। ये लोग अब विदेशों में जाकर बस चुके हैं। इसको लेकर हेनली प्राइवेट वेल्थ माइग्रेशन रिपोर्ट 2023 भी आ चुकी है। इसमें भी भारत छोड़ने वाले नागरिकों का पूरा ब्योरा दिया गया है। यही नहीं, ये भी बताया गया है कि आखिर लोग भारत की नागरिकता छोड़कर विदेशों में क्यों बस रहे हैं? विदेश मंत्री एस जयशंकर ने भी लोकसभा में भारत से विदेश जाने वाले भारतीयों को लेकर ये जानकारी दी है. एस जयशंकर ने लोकसभा में बताया कि अब तक 87,000 से अधिक भारतीयों ने अपनी नागरिकता छोड़ दी है. एक सवाल का लिखित जवाब देते हुए विदेश मंत्री ने बताया कि ये संख्या जून 2023 तक दर्ज की गई है. एस जयशंकर ने बताया कि इन आकड़ों के साथ ही 2011 के बाद से 17.50 लाख से अधिक भारतीयों ने अपनी भारतीय नागरिकता छोड़ दी है. नागरिक छोड़ने वाले लोग अब उस देश के नागरिक बन गए हैं, जहां वे जाकर बसे हैं।
पाकिस्तान, बांग्लादेश तक की नागरिकता ले रहे लोग-
केंद्रीय विदेश मंत्रालय ने 135 देशों की सूची जारी की है, जहां 17.50 लाख से ज्यादा लोग गए हैं। हैरानी की बात है कि भारत की नागरिकता छोड़कर कई लोग पाकिस्तान, बांग्लादेश, म्यांमार, श्रीलंका, नेपाल और चीन तक की नागरिकता ले चुके हैं। भारत छोड़ने के बाद सबसे ज्यादा लोग अमेरिका में बसे हैं। इनकी संख्या करीब सात लाख बताई जा रही है। इसके अलावा ब्रिटेन, रूस, जापान, इस्राइल, इटली, फ्रांस, यूएई, यूक्रेन न्यूजीलैंड, कनाडा, जर्मनी जैसे देशों में भी बड़ी संख्या में लोग पहुंचे हैं। कुछ लोगों ने युगांडा, पापुआ न्यू गिनी, मोरक्को, नाइजीरिया, नॉर्वे, जाम्बिया, चिली जैसे देशों की नागरिकता भी ली है।
कोरोना के बाद सबसे ज्यादा लोग विदेश में बसे-
मानसून सत्र के दौरान सांसद कीर्ति चिदंबरम के सवाल का जवाब देते हुए केंद्रीय विदेश मंत्रालय ने बताया है कि कोरोना के बाद 2022 में सबसे ज्यादा 2.25 लाख लोगों ने भारत की नागरिकता छोड़ी है। कोरोना के दौरान यानी 2020 में सबसे कम 85 हजार और 2021 में 1.63 लाख लोग विदेश में जाकर बस गए।
भारत क्यों छोड़ रहे हैं लोग?
आंकड़ों पर नजर डालेंगे तो साफ पता चलता है कि भारत छोड़ने वाले ज्यादातर लोग नौकरीपेशा हैं। इनमें अमीरों की संख्या कम है। नागरिकता छोड़ने वाले करोड़पति भारतीयों की संख्या केवल 2.5 प्रतिशत है, जबकि बाकी 97.5 प्रतिशत लोग नौकरी पेशा से हैं।’ भारत की नागरिकता छोड़ने वाले 90 से 95 प्रतिशत लोग बेहतर करियर विकल्प के लिए विदेशों में बसते हैं। कई लोग छोटे देश इसलिए चुनते हैं, ताकि वहां जाकर वह व्यापार कर सकें। इन देशों में टैक्स का दायरा भी कम होता है। इससे उन्हें कारोबार बढ़ाने का अच्छा मौका मिल जाता है। इसके अलावा पाकिस्तान, बांग्लादेश, श्रीलंका जैसे देशों में जाने वाले ज्यादातर लोग अपने निजी कारणों से जाते हैं।
कितनों ने कब-कब छोड़ी नागरिकता?
विदेश मंत्री ने लोकसभा में कहा कि 2022 में 2,25,620 भारतीयों ने अपनी नागरिकता छोड़ दी जबकि 2021 में उनकी संख्या 1,63,370 और 2020 में 85,256 थी. वहीं 2019 में 1,44,017, 2018 में 1,34,561, 2017 में 1,33,049, 2016 में 1,41,603 भारतीयों ने अपनी नागरिकता छोड़ी. इसके अलावा 2015 में 1,31,489 और 2014 में 1,29,328 ने भारतीयों ने नागरिकता छोड़ दी।
क्या है नागरिकता छोड़ने की वजह?
जयशंकर ने कहा कि इनमें से कई ने व्यक्तिगत सुविधा की वजह से विदेशी नागरिकता लेने का विकल्प चुना है. इसके अलावा पिछले दो दशकों में वैश्विक कार्यस्थल की खोज करने वाले भारतीय नागरिकों की संख्या महत्वपूर्ण रही है. भारत दोहरी नागरिकता की पेशकश नहीं करता है. जिसके चलते जब भारतीय विदेश जाते है तो जिस देश में वे गए है, उसके लिए पीआर सुरक्षित करने के लिए उन्हें कभी-कभी अपनी भारतीय नागरिकता छोड़ने की आवश्यकता होती है।
किस देश को लोग कर रहे हैं पसंद?-
भारत छोड़कर विदेश में रहने वाले भारतीयों को कौन सा देश सबसे ज्यादा पंसद आ रहा है, इस बारे में विदेश मंत्रालय की आधिकारिक वेबसाइट पर दी गई जानकारी से अंदाजा लगता है. विदेश मंत्रालय की ऑफिशियल वेबसाइट के अनुसार, 2021 में कुल 78,284 लोगों को अमेरिकी नागरिकता मिल गई।
इसमें बताया गया कि दूसरे नंबर पर ऑस्ट्रेलिया को भारतीय पसंद कर रहे हैं. 2021 के डेटा के मुताबिक 23,533 लोगों को ऑस्ट्रेलिया की नागरिकता मिली. इसके अलावा तीसरे नंबर पर कनाडा है. जहां 2021 में 21,597 लोग कनाडा के नागरिक बने. चौथे और पांचवें नंबर पर लोगों की पसंद यूके और इटली हैं।
भारतीय लोगों को रोकने के लिए सरकार क्या कर रही है?
संसद में केंद्रीय विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने इस पर कहा की ‘ज्यादातर लोग काम के सिलसिले में विदेश जाते हैं और वहां व्यक्तिगत सुविधाओं के चलते रहने लगते हैं। ऐसे में भारतीयों के पलायन को रोकने के लिए सरकार कई तरह से कदम उठा रहा है। मेक इन इंडिया के जरिए भारत में ही नागरिकों को बेहतर कॅरियर का विकल्प देने की कोशिश हो रही है। जिस से साथ ही इसका असर भी हो रहा है।’