Category Archive : राज्य

मणिपुर में बीते कई दिनों की शांति के बाद एक बार फिर भड़की हिंसा, गोलीबारी में 3 लोगों की मौत…

243 Minutes Read -

मणिपुर में पिछले तीन महीनो से जारी हिंसा रुकने का नाम नहीं ले रही है. आए दिन वहां पर हिंसा की घटनाएं सामने आती रहती हैं.  कुछ दिनों की शांति के बाद एक बार फिर तनावग्रस्त मणिपुर में शुक्रवार सुबह फिर से हिंसा भड़क गई। सूत्रों के मुताबिक, सुबह करीब 5.30 बजे उखरुल जिले के लिटन पुलिस स्टेशन के अंतर्गत थवई कुकी गांव में संदिग्ध मैतेई सशस्त्र बदमाशों और कुकी स्वयंसेवकों के बीच गोलीबारी हुई। जिसमे सूत्रों के मुताबिक तीन कुकी लोगों के मारे जाने की खबर है। इस घटना के बाद सुरक्षाबलों ने पूरे इलाके को घेर कर तलाशी अभियान शुरू कर दिया है। क्षेत्र में स्थिति तनावपूर्ण बताई गई है।

 

मीडिया रिपोर्ट्स की मानें तो कुछ अराजकतत्वों ने सबसे पहले गांव के ड्यूटी पोस्ट पर हमला किया, जहां कई स्वयंसेवक गांव की सुरक्षा के लिए ड्यूटी कर रहे थे। इस गोलीबारी में कुकी स्वयंसेवकों के तीन लोगों के मारे जाने की खबर सामने आयी है। मारे गए लोगों की पहचान जामखोगिन हाओकिप, थांग खोकाई हाओकिप और होलेनसोन बाइते के रूप में हुई है।इस घटना के बाद एक बार फिर से तनाव की स्थिति बन गयी है।

उल्लेखनीय है कि ये गांव मैतेई आबादी क्षेत्र से काफी दूर स्थित है। निकटतम मेइतेइ निवास यिंगांगपोकपी में है जो घटना स्थल से 10 किलोमीटर से अधिक दूर है। बताया जा रहा है कि घटनास्थल से 37 बीएन बीएसएफ करीब 5 से 6 किलोमीटर दूर है। घटना के बाद बीएसएफ सहित अन्य सुरक्षा बल मौके पर पहुंच गए हैं। सुरक्षाबलों ने पूरे क्षेत्र को घेरकर तलाशी अभियान शुरू कर दिया है। 
 
 
आखिर क्या मांग कर रहा है मैतई समुदाय-


आपको बता दें कि मणिपुर में बहुसंख्यक मैतई समुदाय जनजातीय आरक्षण देने की मांग कर रहा है। इसकी वजह ये है कि मैतई समुदाय की आबादी करीब 53 प्रतिशत है लेकिन ये लोग राज्य के सिर्फ 10 प्रतिशत मैदानी इलाके में रहते हैं। वहीं कुकी और नगा समुदाय राज्य के पहाड़ी इलाकों में रहते हैं जो की राज्य का करीब 90 फीसदी है। जमीन सुधार कानून के तहत मैतई समुदाय के लोग पहाड़ों पर जमीन नहीं खरीद सकते, जबकि कुकी और नगा समुदाय पर ऐसी कोई पाबंदी नहीं है। यही वजह है, जिसकी वजह से हिंसा शुरू हुई और अब तक इस हिंसा में 100 से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है।  

 

सीबीआई कर रही है मणिपुर हिंसा की जांच-


केंद्रीय जांच एजेंसी सीबीआई ने मणिपुर हिंसा की जांच शुरू कर दी है। इसके लिए 53 अफसरों की टीम बनाई गई है, जिसमें 29 महिला अफसरों को शामिल किया गया है। सीबीआई की टीम में तीन डीआईजी लवली कटियार, निर्मला देवी और मोहित गुप्ता और सुपरीटेंडेंट ऑफ पुलिस राजवीर सिंह भी शामिल हैं। ये अधिकारी सीबीआई के जॉइंट डायरेक्टर घनश्याम उपाध्याय को अपनी रिपोर्ट देंगे। बता दें कि यह पहली बार है कि इतनी बड़ी संख्या में महिला जांच अधिकारियों को जांच टीम में शामिल किया गया है।  

नरेंद्र मोदी का गिरता और योगी आदित्यनाथ का बढ़ता ग्राफ…

362 Minutes Read -

भारतीय जनता पार्टी को साल 2017 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में बहुमत मिला. करीब 15 साल बाद बीजेपी ने सत्ता में वापसी की थी.. सरकार का मुखिया कौन होगा यानी मुख्यमंत्री कौन बनेगा,, इस सवाल के जवाब में कई नाम सामने थे. लेकिन, फ़ाइनल मुहर लगी योगी आदित्यनाथ के नाम पर.. बहुत से लोगों के लिए ये फैसला एक ‘सरप्राइज़’ था. योगी आदित्यनाथ ने मुख्यमंत्री पद की रेस कैसे जीती,, ये सवाल आज तक पूछा जाता है,,,  तब बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष रहे अमित शाह ने भी कुछ साल पहले इसका ज़िक्र किया था, अमित शाह ने तब कहा था कि “जब योगी जी को मुख्यमंत्री बनाया तो किसी ने कल्पना नहीं की थी कि योगी जी मुख्यमंत्री बनेंगे. कई सारे लोगों के फोन आए कि योगी जी ने कभी म्युनिसिपलिटी भी नहीं चलाई. वास्तविकता भी यही थी. कि नहीं चलाई थी. योगी जी कभी किसी सरकार में मंत्री तक नहीं रहे.” अमित शाह के मुताबिक उस वक्त उनसे और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को कुछ अलग सलाह दी गई थी, “योगी जी संन्यासी हैं, पीठाधीश हैं और इतने बड़े प्रदेश का आप उनको मुख्यमंत्री बना रहे हो.

क्या कहती हैं राधिका रामाशेषन- 

7 साल बाद स्थिति पूरी तरह बदल गई है. अब योगी आदित्यनाथ में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का उत्तराधिकारी तलाशने वालों की संख्या बढ़ती नज़र आ रही है,, ऐसे लोगों में सिर्फ़ योगी आदित्यनाथ के उत्साही समर्थक नहीं हैं. बीजेपी के कई कार्यकर्ता और राजनीतिक विश्लेषक भी दावा करते हैं कि उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री का कद पार्टी में अपने समकालीन नेताओं से काफी ऊंचा हो गया है… भारतीय जनता पार्टी की राजनीति पर वर्षों से करीबी नज़र रखने वाली वरिष्ठ पत्रकार राधिका रामा शेषन कहती हैं, “दिल्ली में अक्सर हमें दोनों का पोस्टर देखने को मिलता है, मोदी और योगी. योगी जी का स्टेटस  पार्टी में दूसरे नंबर का हो गया है. उन्होंने सबको पीछे छोड़ दिया है.

सवाल ये भी-


ऐसे में ये भी सवाल उठता है कि क्या योगी आदित्यनाथ को अब नरेंद्र मोदी की ज़रूरत नहीं है? इस सवाल का जवाब कई बातों से भी मिलता दिखाई देता है, योगी आदित्यनाथ का  असर ज़मीन पर भी दिखता है. मुख्यमंत्री की कुर्सी संभालने के पहले योगी आदित्यनाथ पांच बार लोकसभा के सांसद चुने जा चुके थे लेकिन कई विश्लेषक ये भी मानते हैं कि तब उनका प्रभाव क्षेत्र सीमित था… मुख्यमंत्री बनने के बाद योगी आदित्यनाथ के कामकाज ने जिस यूपी मॉडल को खड़ा किया, उसकी चर्चा अब उसी तरह होती है जैसे साल 2014 के पहले बीजेपी शासित राज्यों के मुख्यमंत्री और पार्टी के कार्यकर्ता नरेंद्र मोदी के गुजरात मॉडल का ज़िक्र करते थे.. योगी आदित्यनाथ ने अपना काफी प्रभाव छोड़ा है. मध्य प्रदेश और कर्नाटक में जब बीजेपी की सरकार थी तब वहां के नेता भी यूपी मॉडल का काफी ज़िक्र करते रहते थे.”

क्या कहते हैं ये राजनीतिक विश्लेषक-

राजनीतिक विश्लेषकों की राय है कि उत्तर प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी को चुनाव दर चुनाव मिलने वाली कामयाबी की वजह से हर तरफ योगी आदित्यनाथ के ‘यूपी मॉडल’ की बात हो रही है… उत्तर प्रदेश की राजनीति पर करीबी नजर रखने वाले कहते हैं कि योगी आदित्यनाथ की अगुवाई में प्रदेश में बीजेपी को मिले चुनाव नतीजों के जरिए उनका मूल्यांकन हो रहा है,, किसी भी व्यक्ति का मूल्यांकन रिजल्ट से होता है. योगी आदित्यनाथ के साथ भी यही बात है. वो 2017 में सत्ता में आए. साल 2019 के लोकसभा चुनाव में अच्छा रिजल्ट दिया. तब सपा, बसपा और आरएलडी का गठबंधन था… उस गठबंधन के मुक़ाबले 64 सीट जीतना  बड़ी उपलब्धि थी.. जबकि तब लोगों को लग रहा था कि बीजेपी का सफाया हो जाएगा. उसके बाद आया 2022 का विधानसभा चुनाव… दूसरी बार पूर्ण बहुमत की सरकार बनाना निश्चित तौर पर एक बड़ी बात थी… फिर अभी निकाय चुनाव हुए,, बीजेपी ने सारे बड़े शहरों में क्लीन स्वीप किया. ये रिपोर्ट कार्ड है योगी आदित्यनाथ का, जिसने उनको राष्ट्रीय नेताओं की कतार में मोदी के समकक्ष खड़ा कर दिया।
काबिले तारीफ़ हैं योगी-


‘योगी आदित्यनाथ. रिलीजन, राजनीतिक और पावर, द अनटोल्ड स्टोरी ‘ किताब के लेखक और उत्तर प्रदेश की राजनीति को कई दशक से कवर कर रहे वरिष्ठ पत्रकार शरत प्रधान दावा करते हैं कि आज की तारीख में प्रदेश में योगी आदित्यनाथ दूसरे सभी नेताओं से आगे हैं.. वो कहते हैं, “जहां तक यूपी का सवाल है यहां नरेंद्र मोदी से भी ज्यादा योगी आदित्यनाथ का असर है. नरेंद्र मोदी 2024 में जहां फिर से पहुंचना चाहते हैं, उसके लिए यूपी ज़रूरी है और योगी भी. इसमें कोई शक नहीं है कि योगी आदित्यनाथ ने अपने आपको जिस तरह से आगे बढ़ाया है, वो काबिले तारीफ है.”

गुजरात मॉडल  की तर्ज पर है यूपी मॉडल-


योगी आदित्यनाथ और यूपी मॉडल एक दूसरे के पर्याय बन चुके हैं.. लेकिन ‘यूपी मॉडल’ है क्या ? योगी जी का यूपी मॉडल है कानून व्यवस्था और विकास.. साथ में हिंदुत्व का तड़का. यानी हिंदुत्व के तड़के के साथ विकास और कानून व्यवस्था पर फोकस करना… नरेंद्र मोदी के ‘गुजरात मॉडल’ की ही तरह योगी आदित्यनाथ के ‘यूपी मॉडल’ में भी सबसे मुख्य बात हिंदुत्व है… जैसे गुजरात मॉडल का मेन फ़ीचर विकास, इन्फ्रा स्ट्रक्चर और आर्थिक उन्नति थी, तो यहां यूपी मॉडल में कानून व्यवस्था मुख्य स्तंभ है… विकास की बात उसके बाद आती है.. कानून  व्यवस्था के मामले में योगी  ने काफी प्रभाव छोड़ा है. मध्य प्रदेश और कर्नाटक भी यूपी मॉडल का काफी ज़िक्र कर रहे थे… वो कह रहे थे कि कोई क़ानून हाथ में ले या उल्लंघन करे तो एक ही उपाय है, ‘बुलडोजर चलना’…  बुलडोज़र योगी आदित्यनाथ की सरकार का एक सिंबल बन गया है. हालांकि, योगी आदित्यनाथ के इस ‘यूपी मॉडल’ को लेकर आलोचक लगातार सवाल उठाते रहे हैं.. योगी आदित्यनाथ की अभी मेन USP  क्या है, जिसे दूसरे लोग भी कॉपी कर रहे हैं, खासकर बीजेपी शासित राज्य चाहे मध्य प्रदेश हो या असम वाले मुख्यमंत्री,, किसी ने कुछ गड़बड़ की, भले ही वो प्रूफ नहीं हुआ हो, केस चल रहा हो, ये कहते हैं कि उसे बुलडोज़ कर दो. बकायदा ऐसी भाषा बोलते हैं. ये क़ानून के मुताबिक नहीं है.. अगर आप देश के कानून को ताक पर रखकर अपना क़ानून चलाएंगे तो कुछ दिन तो अच्छा लगेगा लेकिन जब गाज आम आदमी पर गिरने लगेगी तो फिर लोग इस पर भी सवाल उठाने शुरू करेंगे। योगी आदित्यनाथ ने अपना एक प्रोफ़ाइल बना लिया है कि भई ये है सॉलिड आदमी, ये तुरंत तय करता है,  योगी आदित्यनाथ ने प्रचार के जरिए तरक्की की है. मोदी का मॉडल फोलो किया है,

अपने तौर पर ही करेंगे काम- योगी 


वरिष्ठ पत्रकार राजेंद्र सिंह कहते हैं कि आलोचक भले ही कुछ भी कहें. योगी आदित्यनाथ का मॉडल एक ख़ास तरह से ही काम करता है.. राधिका रामाशेषन कहती हैं कि योगी आदित्यनाथ के यूपी मॉडल में एक और ख़ास बात है जो बीजेपी शासित किसी और राज्य में दिखाई नहीं देती… और वो है कि योगी आदित्यनाथ अन्य बीजेपी नेताओं की तरह केंद्र  की हर बात आंख मूंदकर नहीं मानते.. 2017 में मुख्यमंत्री पद के लिए मोदी जी की पहली पसंद मनोज सिन्हा माने जाते  थे. केशव प्रसाद मौर्य जैसे कुछ और नाम चल रहे थे.. लेकिन अंत में योगी सबसे बड़े नेता के रूप में उभरे.. नोट करने वाली बात है कि पहले दिन से उन्होंने ये सिग्नल भेजा कि वो दिल्ली से निर्देश और आदेश नहीं लेने वाले हैं.. वो खुद अपने तौर पर ही राज चलाएंगे.. भले ही ये दिल्ली को पसंद न आया हो.. कई ऐसे उदाहरण हैं जब दिल्ली और लखनऊ के बीच में टेंशन हुई है.. ” उसका नजारा इस बात से दिखाई देता है, जब  “अरविंद शर्मा गुजरात में मोदी जी के पसंदीदा अधिकारी थे. उन्होंने इस्तीफा दिया और उन्हें MLC बनाया गया.. बहुत प्रयास हुआ कि 2022 विधानसभा चुनाव के पहले उन्हें मंत्री बनाया जाए.. ख़बर यहाँ तक आयी  कि उनके लिए एक बंग्ला भी कालिदास मार्ग पर देखा गया था, लेकिन योगी जी अड़े रहे और उन्हें अपने मंत्रिमंडल में नहीं लिया. अभी वो मंत्री हैं लेकिन उनकी ज़्यादा चर्चा नहीं है. केशव प्रसाद मौर्या भी समानांतर खड़ा करने का प्रयास हुआ लेकिन वो भी सफल नहीं हो पाए हैं. “

 

एक बड़ा वर्ग बीजेपी के साथ जुड़ा है-

 

वरिष्ठ पत्रकार शरत प्रधान दावा करते हैं कि योगी आदित्यनाथ ने आज “ऐसी पोजिशनिंग कर ली है कि वो अपनी ही पार्टी में कई लोगों की आंख का कांटा बन गए हैं.. राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि योगी आदित्यनाथ के मॉडल में एक और बात है जो उन्हें मौजूदा दौर के दूसरे नेताओं से अलग करती है…योगी आदित्यनाथ के आलोचक उन्हें एक ख़ास जाति का समर्थक बताते हैं लेकिन ये आरोप का उनके राजनीतिक ग्राफ पर असर होता नहीं दिखता.. इसकी वजह है,, उनका भगवा परिधान.. वो गोरक्षनाथ पीठ के पीठाधीश्वर हैं. वो भले ही सवर्ण हैं लेकिन उस पीठ की Following पिछड़ों में काफी है. दूसरे भगवा वेश की वजह से पिछड़े नेतृत्व की बात डाइल्यूट हो जाती है.. फिर यूपी में अब मुलायम सिंह यादव और कल्याण सिंह के कद का कोई पिछड़ा नेता भी नहीं है. मायावती का दलितों में आधार घट रहा है.”यूपी में राम जन्मभूमि आंदोलन के दौरान से ही ओबीसी और पिछड़ों का एक बड़ा वर्ग बीजेपी के साथ जुड़ा हुआ है. बीजेपी उन्हें पद भी देती है, जैसे केशव मौर्या उपमुख्यमंत्री हैं. वो योगी आदित्यनाथ के भी साथ है.

योगी की अगली परीक्षा 2024 चुनाव में-


उत्तर प्रदेश के निकाय चुनाव में विपक्ष को हाशिए पर धकेलने वाले योगी आदित्यनाथ की अगली परीक्षा साल 2024 में लोकसभा के आम चुनाव के दौरान होगी.. तब नरेंद्र मोदी और बीजेपी के साथ विपक्षी दलों के लिए बहुत कुछ दांव पर होगा.. उस वक्त योगी आदित्यनाथ और उनका मॉडल बीजेपी के लिए कितना अहम होगा? इस सवाल पर पत्रकार शरत प्रधान कहते हैं, “कि योगी आदित्यनाथ ने  support base सॉलिड बना लिया है. विपक्ष बिल्कुल कमज़ोर है.. अखिलेश यादव सॉफ्ट हिंदुत्व प्ले करने लगे हैं. ये भी योगी के हक में जाता है, जब आप दूसरे की पिच पर खेलेंगे तो कैसे जीतेंगे.”

योगी का सबसे बड़ा एडवांटेज

 

वहीं, राजेंद्र सिंह कहते हैं कि उत्तर प्रदेश में आगे भी बीजेपी मौजूदा रास्ते पर ही चलेगी… यूपी में कोई बड़ी चुनौती बीजेपी के सामने नहीं है..  2019 का आपको ध्यान है, तब सपा बसपा और आरएलडी का गठबंधन था लेकिन बीजेपी बहुत आगे रही.” राजेंद्र सिंह कहते हैं, “सरकार बनी तो मोदी पीएम होंगे. योगी आदित्यनाथ भी उनका गुणगान करते हैं. जब कभी मोदी हटेंगे तब सवाल भले उठ सकता है..
यूपी के अंदर विधानसभा में योगी नंबर वन हैं, लेकिन लोकसभा के लिहाज से अभी भी शायद मोदी नंबर वन हैं.. 2024 में अगर बीजेपी को पहले से ज्यादा सीटें मिली तो मोदी ही प्रधानमंत्री होंगे, थोड़ा कम भी हो तो भी मोदी होंगे. योगी आदित्यनाथ अगर अपना दावा पेश भी करते हैं तो किन परिस्थितियों में करेंगे,, ये देखना होगा,, योगी आदित्यनाथ अभी सिर्फ़ 51 साल के हैं और ये उनका एडवांटेज है.

 

सन्नी पाजी की ‘गदर 2’ ने मचाया गदर, लोगों में ऐसा क्रेज आज तक नहीं देखा होगा…

200 Minutes Read -
 

सिनेमाघरों में पिछले कुछ सालों से मंदी का दौर चल रहा था। दर्शकों की संख्या कम थी। लेकिन गदर 2 ने आते की गदर मचा दिया। पहले शो के लिए सुबह आठ बजे से सिनेमाघरों में दर्शकों की लाइन लगने लगी है। हिंदुस्तान जिंदाबाद था, जिंदाबाद है और जिंदाबाद रहेगा। सनी देओल के इस डायलॉग को लोग 22 साल बाद भी नहीं भूले हैं। 22 साल बाद फिर से बड़े पर्दे पर गदर मचाने आए सनी देओल ने अपने दर्शकों को निराश नहीं किया है। गदर में हैंडपंप उखाड़ने वाले सनी देओल गदर 2 में भी पाकिस्तान जाकर कुछ उखाड़ते हैं, जो फिल्म देखने पर ही पता चलेगा। दर्शक टिकट बुक कराने के लिए बेताब थे। सिनेमाघर मालिक दर्शकों के उत्साह से काफी खुश थे। लंबे समय बाद किसी फिल्म के लिए इतनी बेसब्री दर्शकों ने दिखाई है। गदर में तारा सिंह अपनी सकीना को बचाने पाकिस्तान गए थे तो इस फिल्म में वो अपने बेटे जीते को लेने जाएंगे। फिल्म में नाना पाटेकर की आवाज में पहली फिल्म की कहानी भी सुनाई देती है। बेटे के रूप में उत्कर्ष शर्मा के काम को पसंद किया जा रहा है।

 छोटे-छोटे थिएटर भी फुल- 

 

 सुशांत सिंह राजपूत की मौत के बाद वॉलीवुड इंड्रस्ट्री पर ऐसा असर पड़ा कि उसका देश के एक बड़े तबके ने विरोध करना शुरू कर दिया, धीरे-धीरे इसका असर ये हुआ कि कई फिल्मों का भी बायकाट तक देश में ट्रेंड करने लगा  जिसका असर सीधे तौर पर पूरी फिल्म इंड्रस्ट्री पर पड़ा था, कई फ़िल्में जो अच्छी कमाई कर सकती थी, उनका कलेक्शन उम्मीद से काफी कम रहा, जिसका असर पूरे  वालीवुड पर देखने को मिल रहा था ,ऐसा नहीं है इस बीच फ़िल्में नहीं चली पठान और आदिपुरुष जैसी फ़िल्में विवादों के बाद भी अच्छी कमाई करने में कामयाब रही. लेकिन जो गदर इस बार सनी देओल की गदर 2 ने मचाया है. उसने पुरे वालीवुड इंडस्ट्री में एक नई जान फूक दी है, कुछ सालों से बड़े बड़े मल्टीप्लेक्स में ही फिल्मों का क्रेज देखा जा रहा था, छोटे थियेटर मानों बंद होने के कगार पर आ गए थे, लेकिन गदर टू ने एक बार फिर लोगों में वो क्रेज बनाया है कि अब सुने पड़े छोटे-छोटे थियटरों में भी लम्बी-लम्बी लाइने लगी है।

सारे रिकॉर्ड तोड़ रही है फिल्म- 

 

इसकी सक्सेस को फिर भुनाता दिखाई दे रहा है.’गदर 2′ का क्रेज ऐसा है कि लोग इसे देखने ट्रैक्टर पर चढ़कर पहुंच रहे हैं. हिंदुस्तान जिंदाबाद के नारे सिनेमाघरों के अंदर लग रहे हैं,लोग इस फिल्म के गानों पर सिनेमा हाल के अंदर ही नाचते नजर आ रहे हैं, बड़े बड़े मल्टीफ्लेक्स के अलावा छोटे -छोटे सिनेमाघरों में उमड़ी भीड़ इस फिल्म को लेकर लोगों के क्रेज को दर्शा रही है,कई सालों बाद ऐसा क्रेज देखने को मिला है,ये फिल्म हो सकता है कमाई के मामले में आज शाहरुख़ की पठान को पीछे छोड़ दे लेकिन इसका क्रेज बता रहा है कि सनी देओल को लेकर लोगों में कितना क्रेज है खासकर उनके एंग्री और एक्शन रोल को लेकर।

पहले ही दिन 40 करोड़ की कमाई- 

 

हर दिन फिल्म की कमाई में भी इजाफा हो रहा है. जहां पहले दिन इस फिल्म ने 40 करोड़ का बिजनेस किया था. वहीं दूसरे दिन इस फिल्म ने 43 करोड़ की दमदार कमाई की. गदर 2 को लेकर फैंस का क्रेज इतना जबरदस्त है कि ‘गदर 2’ ने रिलीज के पहले तीन दिन में ही 135.18 करोड़ रुपये की शानदार कमाई करते हुए न सिर्फ सनी देओल का करियर पटरी पर ला दिया है. बल्कि इस फ्रेंचाइजी की तीसरी फिल्म ‘गदर 3’ का रास्ता भी मजबूत कर दिया है। फिल्म का कलेक्शन स्वतंत्रता दिवस यानी 15 अगस्त की छुट्टी के दिन नई ऊंचाइयां छूने की पूरी उम्मीद है।

OMG-2 को कड़ी टक्कर-

 

दिलचस्प बात ये है कि यदि ये प्रीडिक्शन सही साबित होता है तो ‘गदर 2’ शाहरुख खान स्टारर इस साल की सबसे बड़ी बॉलीवुड फिल्म ‘पठान’ को भी तीसरे दिन के कलेक्शन में पीछे छोड़ सकती है. आपको बता दें, पठान ने रिलीज के तीसरे दिन 39.25 करोड़ रुपए की कमाई की थी. तारा सिंह बनकर लौटे सनी देओल अक्षय कुमार स्टारर फिल्म ओएमजी 2 को कड़ी टक्कर दे रहे हैं. जहां गदर 2 का बॉक्स ऑफिस ग्राफ बढ़ता ही जा रहा है. वहीं ये फिल्म बॉक्स ऑफिस आंकड़ों में ओएमजी 2 को लगातार पछाड़ती नजर आ रही है। 

फिल्म जगत में एक नई उम्मीद- 

 

बॉक्स ऑफिस पर फिल्म का सूखा खत्म हो रहा है. कोरोना के बाद यानी 2022 में दर्शकों ने एक तरह से सिनेमाघरों  और बॉलीवुड फिल्म से मुंह मोड़ लिया था, लेकिन 2023 बॉलीवुड के लिए अच्छा साबित हो रहा है. उत्तराखंड के भी बड़े से लेकर छोटे सिनेमाघरों में इस फिल्म को देखने भारी भीड़ उमड़ रही है,,सड़कों में जाम लग रहा है,,रुड़की में हरिद्वार हाईवे किनारे स्थित सिनेमाघर  में बड़ी संख्या में लोग ‘गदर-2’ को देखने के लिए सिनेमा हाल का रुख कर रहे हैं। सिनेमा हाल पर टिकट के लिए मारामारी मची है। पहले से ही लोगों ने आनलाइन टिकट बुकिंग कर रखी है, जिसके चलते खिड़की पर टिकट नहीं मिल रहे हैं। यही हाल देहरादून के सिनेमाघरों में हैं,जहां बड़े- बड़े मल्टीफ्लेक्स से लेकर छोटे-छोटे सिनेमाघरों में भी भारी भीड़ देखने को मिल रही  है. अब देखना होगा कि आने वाले दिनों में ये फिल्म और कौन से रिकार्ड तोड़ती है, बहरहाल इस फिल्म ने एक बार फिर सिनेमाघरों का सूखा तोडा है साथ ही फिल्म जगत में  एक नई उम्मीद पैदा की है। 

विकास की भेंट चढ़ा उत्तराखंड, केंद्र सरकार की रिपोर्ट में बड़ा खुलासा…

195 Minutes Read -

जल, जंगल और जमीन उत्तराखंड की यही पहचान मानी जाती है, इन्ही तीनों चीजों से बचने के लिए एक पृथक राज्य की मांग की गयी थी, जल,जंगल और जमीन पर उत्तराखंड के लोगों का हक हो और इन संसाधनों से प्रदेश तरक्की की तरफ बढ़े, इसको लेकर अनेकों लोगों ने बलिदान भी दिए और काफी समय तक उत्तराखंड बनने को लेकर जबरदस्त आंदोलन भी किए. आखिरकार उत्तराखंड का निर्माण हुआ और विकास का जन्म भी हुआ, ऐसा ना केवल तमाम मुख्यमंत्रियों के भाषणों में भी आया और एसी कमरों में बैठकर विकास को बड़ा करने की बड़ी-बड़ी बातें भी उन उत्तराखंडियों के सामने की जो स्वभाव से सरल और सौम्या की मिसाल के तौर पर पूरे देश में पहचान रखते हैं. मगर इसका मतलब ये नहीं की वो झूटे वादों की हकीकत से रुबरु नहीं है,,, बाकी रही-सही कसर भारत के लोकतंत्र के मंदिर लोकसभा में खुलकर सामने आ गयी. जब उत्तराखंडियों को उत्तराखंड की हकीकत सामने दिखाई देने लगी।

 

हिल चुकी है पहाड़ों की नींव- 

संसद में रखी एक रिपोर्ट के मुताबिक हिमालयी राज्यों में सबसे अधिक उत्तराखंड के जंगल विकास की भेंट चढ़ गए हैं, यही कारण है कि जिस प्रदेश को देवभूमि कहा जाता है, अब उसे आपदा प्रदेश के रूप में भी जाना जाता है, जिसमें गर्मी में धधकती आग जंगल जला देती है, सर्दी में बर्फीली चोटियां नदियों के आवेग को अचानक बड़ा देती है, और तेज बारिश, फटते बादल जिंदगियों को तबाह कर देती हैं. ये तीनों ही मुश्किल हालात विकास की सीमा को पार कर भोले-भाले मासूम लोगों की जिंदगी को असमय लील लेती हैं.. और काल के गाल में समाते लोग इन मुश्किल हालातों में कुछ नहीं कर पाते हैं.. घर तबाह, खेत तबाह, जिंदगी तबाह। उत्तराखंड में जिस तरह विकास के नाम पर जंगलों से लेकर जल विधुत परियोजनाओं और सड़कों के निर्माण में भूमि का कटान हो रहा है उससे इस प्रदेश के मजबूत पहाड़ों की नीवं इस कदर हिल चुकी हैं कि जरा सा झटका भी यहां के पहाड़ झेल नहीं पाते हैं और भरभरा कर जमीदोज हो जाते हैं. जगह-जगह भूस्खलन से लोगों की जान जा रही है. पूरे प्रदेश में जो सबसे बड़ा उदाहरण है वो इस समय जोशीमठ और उत्तरकाशी है. जहां भूस्ख्लन की वजह से सालों साल से रह रहे लोग अब घर छोड़ने को मजबूर हैं।

 

सरकारों से ये कुछ सवाल- 

सवाल ये उठता है कि क्या उत्तराखंड की स्थापना का उद्देश्य पूरा हो गया है ?

क्या हमारे शहीदों ने इसी विकास के लिए राज्य मांगा था ?

हमारी सरकारें इस प्रदेश को किस दिशा की तरफ ले जा रही है ?

हमारी सरकारों और यहां के नेताओं में कोई भी एक नेता ऐसा नहीं दिखाई देता जिसके पास इस प्रदेश के विकास के लिए यहां के अनुकूल कोई विजन हो, जिससे इस प्रदेश के यहां की परिस्थितियों के हिसाब से विकास हो सके. आखिर कैसे सिर्फ एक अंधी विकास की दौड़ में इस प्रदेश को जो क्षती पहुंच रही है उससे प्रदेश को बचाया जा सके. उत्तराखंड को विकास की दरकार है लेकिन जिस तरह से अनियोजित तरिके से ये काम चल रहे हैं उससे आने वाले भविष्य में इस प्रदेश के लोगों को इस विकास की बड़ी कीमत चुकानी पड़ेगी और शायद कीमत वो चुका भी रहे हैं. बड़ी-बड़ी जल विधुत परियोजनाओं के लिए पहाड़ों को अंदर से खोखला किया जा रहा है, नदियों के प्रवाह  को पूरी तरह से रोका जा रहा है, आल वेदर रोड हो या फिर रेल प्रोजेक्ट जिस तरह से पहाड़ों में अंधाधुंध कटान हो रहा है वो कहीं न कहीं इन पहाड़ों की नीव को कमजोर कर  रहा है।

 

क्या कहते हैं भूपेंद्र यादव- 

केंद्रीय पर्यावरण वन और जलवायु परिवर्तन मंत्री भूपेंद्र यादव ने लोकसभा में एक प्रश्न के जवाब में जो आंकड़े रखे वो कही न कहीं इस प्रदेश की उस जनता को रास नहीं आएंगे,जो इस मुद्दे पर गंभीरता से सोचते हैं,,,संसद में रखें इन आंकड़ों के मुताबिक पिछले डेढ़ दशक के दौरान हिमालयी राज्यों में सबसे अधिक जंगल उत्तराखंड राज्य में गैर वानिकी उपयोग यानी विकास की भेंट चढ़े हैं। केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय की रिपोर्ट के अनुसार, राज्य में 15 वर्षों में 14 हजार 141 हेक्टेयर वन भूमि अन्य उपयोग के लिए ट्रांसफर की गई।

 

उत्तराखंड देश के 10 राज्यों में शामिल- 

आंकड़ों के मुताबिक, वन भूमि डायवर्सन मामले में उत्तराखंड देश के प्रमुख 10 राज्यों में शामिल है। राज्य में औसतन प्रत्येक वर्ष 943 हेक्टेयर भूमि दी जा रही है। वर्ष 2008 से लेकर 2009…वर्ष 2022 से लेकर 2023 के दौरान सभी राज्यों में 30 लाख 5 हजार 945.38 हेक्टेयर भूमि वन संरक्षण अधिनियम 1980 के तहत गैर वानिकी उपयोग के लिए लाई गई। अरुणाचल प्रदेश को छोड़कर बाकी कोई हिमालयी राज्य उत्तराखंड के आसपास नहीं है। पड़ोसी राज्य हिमाचल में 6 हजार 696 हेक्टेयर वन भूमि दूसरे उपयोग के लिए इस्तेमाल हुई। जो उत्तराखंड के मुकाबले आधी से भी कम है,, ये सभी भूमि सड़क.. रेलवे..पुनर्वास.. शिक्षा.. उद्योग.. सिंचाई.. ऑप्टिकल फाइबर.. नहर.. पेयजल.. पाइपलाइन.. उत्खनन..जल.. ऊर्जा.. सौर ऊर्जा जैसे कार्यों के लिए दी गयी है, हालाकि प्रदेश के विकास के लिए ये सभी चीजें जरूरी भी हैं, लेकिन इसके कुछ मानक तय नहीं किए गए हैं,,, मसलन इन सबके लिए बेहिसाब तरिके से पहाड़ों का दोहन किया जाता है,,, पर्यावरण विद कई बार सरकार को इस पर चेता चुके हैं कि इस प्रदेश में बड़ी जल विधुत परियोजनाओं को मंजूरी नहीं मिलनी चाहिए बल्कि छोटी-छोटी परियोजनाओं को बनाया जाना चाहिए लेकिन सरकारें इन पर गौर करने को शायद तैयार ही नहीं है. जिसका नतीजा ये हैं कि प्रदेश में बड़ी-बड़ी जल विधुत परियोजनाओं को ह्री हरी झंडी मिलती रही है।

 

पहले भी दी जा चुकी है चेतावनी- 

जोशीमठ भू धसाव के बाद स्थानीय लोगों ने जिस तरह वहां बन रही जल विधुत परियोजना को भू-धसाव का कारण माना वो अनायास ही नहीं बल्कि उसके पीछे ये परियोजना भी एक बड़ा कारण बनी है ऐसा पर्यावरण विद मानकर चलते हैं. इसके नतीजे अब देखने को भी मिल रहे हैं. चमोली जिले में सबसे ज्यादा पहाड़ हिल रहे हैं, भूस्खलन हो रहा है. हालात आज के दौर के ये हो चले हैं कि अपराध को रोकने के लिए बनी पुलिस खासकर चमोली पुलिस मानसून सीजन में सभी काम छोड़ कर सिर्फ यही बताने में लगी रहती है कि यहां रास्ता बंद है और यहां खुला है. जब से आल वेदर सड़क का काम शुरू हुआ है तब से नए नए भूस्खलन जोन बन चुके हैं, जिससे लगातार कटाव बढ़ रहे हैं. जिसकी चेतावनी भी  पहले दी जा चुकी है. याद कीजिए जब सुप्रीम कोर्ट की एक हाइ पावर कमेटी ने सिफारिश की थी कि ये प्रोजेक्ट पहाड़ के लिए बेहद खतरनाक है, लेकिन इस कमेटी की भी सलाह को नजरअंदाज कर दिया गया।

 

इस कारण बेमौत मर रहे हैं लोग- 

2018 में  इस प्रोजेक्ट को एक NGO ने सुप्रीम कोर्ट में चेलेंज किया था, इस याचिका में कहा गया कि सड़क के लिए पहाड़ो को जरूरत से अधिक काटना पहाड़ के ईको सिस्टम को तबाह कर रहा है… और इससे आपदाएं भी लगातार बढ़ रही हैं… कोर्ट ने इस पर फैसला देते हुए सड़क की चौड़ाई साढ़े पांच मीटर तक रखने का आदेश दिया था, लेकिन केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में ही चेलेंज कर दिया…. सरकार ने चीन सीमा,,, सैनिकों को सुविधाएं पहुंचाने जैसे अनेक तथ्य रखे, जिसके बाद कोर्ट ने केंद्र की सलाह को माना और सड़क को 10 मीटर तक चौड़ा करने का फैसला दे दिया,,, अब पहाड़ पर हो रहे इस अंधाधुंध कटाव और सड़क चौड़ीकरण के लिए कट रहे पेड़ों का ही नतीजा है कि पूरे यात्रा मार्ग में नए-नए भूस्खलन जोन लगातार बनते चले जा रहे हैं। जिसका खामीयाजा आखिरकार भुगतना तो पड़ेगा ही.. और मासूम लोग भुगत भी रहे हैं…हालांकि सुप्रीम कोर्ट के दिए किसी भी फैसले पर टिप्पणी करना हमारे अधिकार क्षेत्र से बाहर है मगर शायद बेमौत मर रहे लोग, तबाह होते घर हमें जुबान देने को मजबूर कर देते हैं।

 

क्या कहते हैं सामाजिक कार्यकर्ता- 

सामाजिक कार्यकर्ता और उत्तराखंड की सटीक जानकारी रखने वाले अनूप नौटियाल मानते हैं कि उत्तराखंड राज्य की संवेदनशीलता को देखते हुए ये आंकड़े चिंता में डालने वाले हैं। हर साल राज्य आपदाओं और जलवायु परिवर्तन के दुष्परिणामों का सामना कर रहा है। नीति नियंताओं को गंभीरता से पर्यावरण संतुलन के बारे में सोचना होगा। ऐसा ना हो की देर हो जाए…ऐसा नहीं है कि प्रदेश की जनता ये सब नहीं समझ रही है बल्कि अब वो अपने जल,जंगल और जमीन को बचाने के लिए आंदोलन भी कर रही है,यही कारण है कि प्रदेश में अब एक शसक्त भू कानून की मांग को लेकर भी एक बड़ा आंदोलन पनप रहा है,सशक्त भू-कानून  लागू करने की मांग को लेकर राज्य आंदोलनकारियों, संगठनों और दलों ने मुख्यमंत्री आवास कूच किया।आंदोलनकारियों ने  मुख्यमंत्री को ज्ञापन भेजा और मांगों पर कार्रवाई न होने पर बड़े से बड़े आंदोलन की चेतावनी दी।

 

एक दिन बड़ी त्रासदी झेल सकता है प्रदेश- 

कुल मिलाकर अपने प्रदेश के जल जंगल और जमीन बचाने के लिए अब प्रदेश की जनता भी आवाज उठा रही है. ऐसा नहीं है कि प्रदेश में विकास नहीं हुआ. लेकिन सवाल ये उठता है कि क्या जिस तरह के उत्तराखंड की कल्पना  की गई थी हम उसी ओर बढ़ रहे हैं. क्या इस तरह के विकास से हम इस हिमालयी राज्य का संतुलन बिगाड़ रहे हैं. ये एक बड़ा सवाल है. जिसका जवाब मिलना बाकी है? अगर जल्दी ही इस विषय पर इस प्रदेश की प्रबुद्ध जनता और राजनेताओं ने नहीं सोचा तो एक दिन ये प्रदेश एक बड़ी त्रासदी झेलने को मजबूर हो जाएगा। याद रहे 2013 की वो 16 और 17 जून की याद जो अभी तक भी हमे झकझोर कर रख देती है. यकीन है की उस काली रात की कल्पना एक बार फिर से ना तो उत्तराखंड की सरकार करेगी और ना ही केंद्र में बैठी मोदी सरकार करेगी।

 

दिल्ली सर्विस बिल पर हारे केजरीवाल, गठबंधन ने दिखाई एकता…

275 Minutes Read -

दिल्ली सर्विस बिल लोकसभा और राजयसभा में पास हो गया है,आप के लिए ये एक बड़ा झटका है लेकिन जिस तरह से आप के समर्थन में इंडिया गठबंधन ने एकजुटता दिखाई उससे सभी विपक्षी दल खुश जरूर होंगें,केजरीवाल सरकार के लिए ये बिल पास होना जहां एक बड़ा झटका है. लेकिन 10 सांसदों  की संख्या वाली आप पार्टी पार्टी ने जिस तरह 102 वोट राजयसभा में इस बिल के विरोध में हासिल किये उससे केजरीवाल जरूर खुश होंगें

 
समर्थन में 131 वोट और विरोध में 102 वोट- 

 सोमवार को राज्यसभा में इस बिल के समर्थन और विरोध में मतदान हुआ तो समर्थन में 131 वोट पड़े और विरोध में 102 वोट .   राज्यसभा में बीजेपी के पास अकेले बहुमत नहीं है. उसके एनडीए सहयोगियों को भी मिला दें तब भी बहुमत का आंकड़ा दूर रहता है.लेकिन ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक की पार्टी बीजू जनता दल और आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री जगन मोहन रेड्डी की पार्टी वाईएसआरसीपी के बीजेपी के साथ आने से समीकरण बदल गए. राज्यसभा में जब बिल पास करने के लिए मतदान हो रहा था तो एक तस्वीर ने सबका ध्यान खींचा. राज्यसभा में पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह भी व्हील चेयर पर मौजूद थे.90 साल के मनमोहन सिंह काफ़ी कमजोर दिख रहे थे. इस तस्वीर को सोशल मीडिया पर ट्वीट कर लोगों ने आम आदमी पार्टी के मुखिया अरविंद केजरीवाल को भी निशाने पर लिया.कई लोगों ने लिखा कि जिस अरविंद केजरीवाल ने राजनीति में अपनी जगह बनाने के दौरान मनमोहन सिंह को क्या-क्या नहीं कहा, वही मनमोहन सिंह उनके समर्थन में 90 साल की उम्र में अच्छी सेहत नहीं होने के बावजूद मौजूद रहे

केजरीवाल को मिला गठबंधन का पूरा समर्थन- 

आम आदमी पार्टी के राज्यसभा में महज़ 10 सांसद हैं लेकिन दिल्ली सर्विस बिल के विरोध में उसे 102 सांसदों का समर्थन मिला.मनमोहन सिंह की मौजूदगी को कांग्रेस के बीजेपी से दो-दो हाथ करने की प्रतिबद्धता से भी जोड़ा जा रहा है.इस बिल के समर्थन में इंडिया गठबंधन एकजुट रहा. इंडिया गठबंधन यानी इंडियन नेशनल डेवलपमेंट इन्क्लूसिव अलायंस पिछले महीने ही बना था.इंडिया गठबंधन में शामिल किसी भी पार्टी ने क्रॉस वोटिंग नहीं किया.अरविंद केजरीवाल को भले इंडिया गठबंधन का पूरा समर्थन मिला लेकिन उनकी पार्टी को गठबंधन के साथियों से तंज़ का भी सामना करना पड़ा

क्या कहा सांसद मनोज झा ने- 

राज्यसभा में बिल का विरोध करते हुए राष्ट्रीय जनता दल के सांसद मनोज झा ने कहा कि आम आदमी पार्टी ने जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाने का समर्थन किया था और अब उन्हें सोचना चाहिए कि केंद्र सरकार दिल्ली सरकार के अधिकारों में सेंधमारी कर रही है, तो उन्हें कैसा लग रहा है.मनोज झा ने कहा, ”आम आदमी पार्टी को सोचना चाहिए कि उन्होंने जम्मू-कश्मीर में किसका साथ दिया था. अब उन्हें खुद ही भुगतना पड़ रहा है. जो इस बिल का समर्थन कर रहे हैं, उनकी वफादारी को भी हम समझते हैं. चूहे की पूँछ हाथी के पैर से दबा हो तो वफ़ादारी और मजबूरी में फ़र्क़ करना मुश्किल हो जाता है

कानून बनते ही दिल्ली सरकार के क्या-क्या अधिकार होंगे सीमित – 

लोकसभा और राज्यसभा में दिल्ली सर्विस बिल पास होने के बाद अब राष्ट्रपति के पास जाएगा और उनके हस्ताक्षर के बाद यह कानून बन जाएगा. इस कानून का असर दिल्ली के प्रशासन पर व्यापक रूप से पड़ेगा. इस बिल के कानून बनते ही दिल्ली सरकार के अधिकार सीमित हो जाएंगे और उपराज्यपाल के अधिकार और बढ़ जाएंगे.इस बिल से नेशनल कैपिटल सिविल सर्विस अथॉरिटी बनेगी और इसी के पास नौकरशाहों की पोस्टिंग और तबादले का अधिकार होगा. हालांकि इस कमेटी के मुखिया मुख्यमंत्री होंगे लेकिन इसमें मुख्य सचिव और दिल्ली के गृह सचिव भी होंगे. फैसला बहुमत से लिया जाएगा. मुख्य सचिव और गृह सचिव दोनों केंद्र के अधिकारी होंगे ऐसे में डर बना रहेगा कि बहुमत से फैसले की स्थिति में दोनों केंद्र की बात सुनेंगे. कमेटी के फैसले के बाद भी आखिरी मुहर उपराज्यपाल को लगानी होगी. ऐसे में एक चुनी हुई सरकार के अधिकार ज़ाहिर तौर पर कम होंगे

पार्टी के एक भी सांसद ने नहीं की क्रॉस वोटिंग-

दिल्ली सर्विस बिल पास होने से दिल्ली में आम आदमी पार्टी के अधिकार भले सीमित हो गए हैं लेकिन राजनीतिक रूप से इंडिया गठबंधन यह संदेश देने में कामयाब रहा है कि वह बीजेपी को चुनौती देने के लिए एकजुट है. इंडिया गठबंधन के बने मुश्किल से एक महीना हुआ है और संसद के दोनों सदनों में यह गठबंधन पूरी तरह से एकजुट रहा. संसद के दोनों सदनों में आप की मौजूदगी बहुत अच्छी नहीं है, इसके बावजूद उसे अच्छा ख़ासा समर्थन मिला.कांग्रेस, डीएमके, एनसीपी, शिवसेना (उद्धव ठाकरे), आरजेडी, जेडीयू और इंडिया के बाकी साथियों का समर्थन मिला. राज्यसभा में बिल के विरोध में 102 वोट पड़ने का मतलब है कि इंडिया गठबंधन में शामिल किसी भी पार्टी के एक भी सांसद ने क्रॉस वोटिंग नहीं कीकई पार्टियों ने किया बिल का विरोध- 

कुछ पार्टियों का रुख न तो एनडीए के पक्ष में था और न ही इंडिया के पक्ष में, आखिर ये पार्टियां किस ओर जाएंगी इस पर सबकी नज़र थी.इनमें सबसे बड़ा नाम था बीजू जनता दल और वाईएसआर कांग्रेस पार्टी. जिन्होंने लोकसभा में ये बिल पेश होने के एक दिन पहले अपना रुख साफ़ किया और एनडीए को अपना समर्थन दिया.वहीं दूसरी ओर भारतीय राष्ट्र समिति और हनुमान बेनीवाल की पार्टी राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी, दोनों ने इस बिल का विरोध किया. इसका मुख्य कारण यह था कि दोनों पार्टियां आम आदमी पार्टी के साथ बेहतर रिश्ते रखती हैं.बहुजन समाज पार्टी इस विधेयक पर वोटिंग में शामिल ही नहीं हुई और शिरोमणि अकाली दल ने विधेयक को ‘तमाशा’ बताया

अब केवल सुप्रीम कोर्ट से उम्मीद-

अब केजरीवाल सरकार के पास जो उम्मीद बची है, वो है सुप्रीम कोर्ट, जहाँ ये मामला विचाराधीन है.अगर सुप्रीम कोर्ट का फ़ैसला भी आप के पक्ष में नहीं आता है तो ये पार्टी के लिए एक बड़ी दुविधा पैदा कर देगा.इंडिया गठबंधन के नजरिए से देखें तो इससे विपक्ष का आत्मविश्वास बढ़ा है.विपक्ष में पार्टियों के बीच मजबूत एकता दिखी, ये आने वाले अविश्वास प्रस्ताव पर विपक्ष की एकता रिहर्सल था. इस संशोधन पर चर्चा के दौरान विपक्ष की पार्टियां और क़रीब आई हैं.ख़ास कर आम आदमी पार्टी और कांग्रेस जो एक दूसरे के आमने-सामने होती थी, उनमें विश्वास गहराया है. कई आम आदमी पार्टी के नेताओं ने ये माना है कि कांग्रेस ने सदन में उन्हें पूरी मजबूती के साथ समर्थन दिया,मणिपुर को लेकर लाए गए अविश्वास प्रस्ताव पर 8 से 10 अगस्त तक चर्चा होगी और संभव है कि विपक्ष इस चर्चा में और मजबूत नजर आएगा

इस कारण आ रही केदारघाटी में आपदाएं, विशेषज्ञों की सलाह दरकिनार…

200 Minutes Read -

 

केदारनाथ के गौरीकुंड में हुए हादसे ने एक बार फिर कई सवालों को जन्म दे दिया है,केदारघाटी में जिस तरह लगातार गतिविधियां बढ़ रही है वो कहीं न कहीं इस पूरी घाटी के लिए एक बड़ा खतरा पैदा कर रही हैं,वैज्ञानिकों और वाडिया संस्थान के शोध बताते हैं कि पूरी केदारघाटी एक सेंसटिव जॉन में बसी है, यहां  अत्यधिक मानवीय गतिविधियां इस पूरी घाटी के लिए एक बड़ा खतरा पैदा कर रही हैं ?

 
 
आज भी कई गांव मौत के मुहाने पर खड़े- 

मैं केदारनाथ बोल रहा हूं… आज से 10 साल पहले मेरे आंगन में एक आपदा आई थी. जिसका जिम्मेदार भी मुझे ही ठहराया गया था. लेकिन ये मेरी मर्जी नहीं थी. मुझे तो एकांत चाहिए. सालों से मेरे दिल पर पत्थर तोड़े जा रहे हैं. मेरा घर हिमालय है. जिसे इंसान अपने फायदे के लिए लगातार तोड़ रहा है. मैं चुप हूं. कुछ कर नहीं पा रहा हूं, लेकिन मेरे घर को तोड़कर इसे कमाई का जरिया बनाने वाले इन इंसानों को जरा भी आभास नहीं है कि ऐसा करना न सिर्फ मेरे लिए बल्कि मेरे अंदर रह रहे लाखों लोगों के लिए विनाशकारी हो सकता है. गौरीकुंड में मंदाकिनी नदी किनारे मलबे के बीच बिखरी पड़ी 10 से अधिक कंड़ियां भूस्खलन हादसे की विभीषिका को बयां कर रही हैं। कमाई का साधन तो रह गया लेकिन कमाने वाले मजदूर लापता है, जिनकी खोज की जा रही है। दो वक्त की रोटी के लिए ये लोग 16 किमी पैदल मार्ग पर कंडी के सहारे यात्री को पीठ पर लादकर केदारनाथ पहुंचाते थे।गौरीकुंड में हुए इस भूस्खलन से तीन लोगों की मौत हो गई है, जबकि 17 लोग लापता हैं। केदारघाटी के गौरीकुंड में हुए इस हादसे ने दस साल पहले वर्ष 2013 में आई केदारनाथ आपदा की यादों को ताजा कर दिया है। जबकि बीते चार दशक में ऊखीमठ ब्लॉक क्षेत्र में यह तीसरी बड़ी आपदा है। इसके बाद भी आज तक केदारघाटी से लेकर केदारनाथ पैदल मार्ग पर सुरक्षा के नाम पर ठोस इंतजाम तो दूर, कार्ययोजना तक नहीं बन पाई है।सरकार सिर्फ केदारनाथ में पुनर्निर्माण कार्यों तक ही सिमटी रही। वर्ष 1976 से रुद्रप्रयाग व केदारघाटी के गांव प्राकृतिक आपदाओं का दंश झेलते आ रहे हैं। यहां आज भी कई गांव मौत के मुहाने पर खड़े हैं। बीते चार दशक में यहां 14 प्राकृतिक आपदाएं आ चुकी हैं जिसमें से 16-17 जून 2013 की केदारनाथ की आपदा सबसे विकराल रही।

 
 
केदारघाटी में आई आपदाओं के आंकड़े- 

2013 की आपदा ने केदारघाटी से लेकर केदारनाथ का भूगोल बदल दिया था। गौरीकुंड से रुद्रप्रयाग के बीच मुनकटिया, रामपुर, खाट, सेमी, भैंसारी, रामपुर, बांसवाड़ा, विजयनगर कई क्षेत्र हादसों का सबब बने हुए हैं लेकिन सरकारें, प्राकृतिक आपदा कम हो इसके प्रयास कम करने की योजना बनाने के बजाय केदारनाथ पुनर्निर्माण में ही घिरकर रह गई। केदारनाथ पैदल मार्ग पर यहां न तो भूस्खलन जोन का ट्रीटमेंट हो पाया न ही पैदल रास्ते का विकल्प ढूंढा गया। जबकि रुद्रप्रयाग जिला भूकंप व अन्य प्राकृतिक आपदाओं की दृष्टि से पांचवें जोन में है। इस पूरी घाटी में आयी अब तक की इन आपदाओं के आंकड़े देखें तो साफ़ हो जायेगा कि सरकारों का रुख इस घाटी के प्रति क्या रहा है,,,इस घाटी में 1976 भूस्खलन से ऊपरी क्षेत्रों में मंदाकिनी का प्रवाह अवरुद्ध हो गया था ।1979 में क्यूंजा गाड़ में बाढ़ से कोंथा, चंद्रनगर और अजयपुर क्षेत्र में भारी तबाही से 29 लोग काल के गाल में समा गए थे ।1986 जखोली तहसील के सिरवाड़ी में भूस्खलन हुआ जिसमें 32 लोगों की जान गयी थी, 1998 भूस्खलन से भेंटी और पौंडार गांव ध्वस्त हो गया था । साथ ही 34 गांवों में इससे  नुकसान पहुंचा जबकि  103 लोगों की मौत हुई थी ।

2001 से 2013 तक आई आपदा की घटनाएं- 

2001 ऊखीमठ के फाटा में बादल फटा जिसमें  28 की मौत हुई थी,जबकि 2002 बड़ासू और रैल गांव में भूस्खलन,,,2003 स्वारीग्वांस मेंं भूस्खलन,,,2004 घंघासू बांगर में भूस्खलन,,,2005 बादल फटने से विजयनगर में तबाही से  चार की मौत,,2006 डांडाखाल क्षेत्र में बादल फटने की घटना, 2008 चौमासी-चिलौंड गांव में भूस्खलन से  एक युवक की मौत  और कई मवेशी मलबे मेंं दबे थे,इतना ही नहीं 2009 गौरीकुंड घोड़ा पड़ाव मेंं भूस्खलन से  दो श्रमिक की मौत ,,,2010 में भी रुद्रप्रयाग जनपद में कई स्थानों पर बादल फटे, 2012 ऊखीमठ के कई गांवों में बादल फटने से  64 लोग मरे थे ।जबकि 2013 केदारनाथ आपदा में हजारों मौतों से  पूरी केदारघाटी प्रभावित हुई थी,और अब 2023 में गौरीकुंड में भूस्खलन 19 लोग लापता होने की घटना,,, ये सब वो घटनाएं हैं जिनमें कई लोगों ने अपनी जान गवाई पर आज तक हमारी किसी भी सरकार ने इस घाटी को लेकर कोई ठोस नीति नहीं बनाई,,,

रुद्रप्रयाग जिले को देश में भूस्खलन से सबसे अधिक खतरा- 

2013 में केदारनाथ में हुए भूस्खलन और बाढ़ में 4500 लोग मौत के आगोश में सो गए थे और कई स्थानों का  नामो-निशान मिट गया।ये सिर्फ सरकारी आंकड़े हैं जबकि कहा जाता है कि मरने वालों की संख्या इससे भी कहीं  अधिक है , बीते दिन गौरीकुंड भूस्खलन हादसे ने भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन इसरो के राष्ट्रीय सुदूर संवेदी केंद्र (एनआरएससी) की उस भूस्खलन मानचित्र रिपोर्ट पर मुहर लगाई है। उपग्रह से लिए गए चित्रों के आधार पर तैयार की गई रिपोर्ट बताती है कि रुद्रप्रयाग जिले को देश में भूस्खलन से सबसे अधिक खतरा है। भूस्खलन जोखिम के मामले में देश के 10 सबसे अधिक संवेदनशील जिलों में टिहरी दूसरे स्थान पर है।पर्वतीय जनमानस के लिए चिंताजनक बात यह है कि सर्वाधिक भूस्खलन प्रभावित 147 जिलों में उत्तराखंड के सभी 13 जिले शामिल हैं। इनमें चमोली जिला भूस्खलन जोखिम के मामले में देश में उन्नीसवें स्थान पर है। चमोली जिले का जोशीमठ शहर भूस्खलन के खतरे की चपेट में पहले से है।
क्या कहते हैं पर्यावरण विशेषज्ञ-

पर्यावरण विशेषज्ञों और जानकारों का मानना है कि 2013 की वो आपदा सरकार के लिए एक सबक थी। लेकिन जिस तरह पहाड़ों में जरूरत से ज्यादा निर्माण, बहुत अधिक संख्या में पर्यटकों की आवाजाही भी आपदा के कारण हैं। खनन, पर्यावरण को प्रदूषित करने वाले पदार्थों की अधिकता से पारिस्थितिकी तंत्र को अधिक नुकसान हुआ है। जो अभी वर्तमान स्थिति का प्रमुख कारण है।केदारनाथ में उमड़ती भीड़,यहां मार्गों में होते निर्माण  को कंट्रोल न करना भी इस घाटी पर अधिक दबाव बना रहे हैं,जिससे वहां का क्लाइमेट भी तेजी से बदल रहा है,इससे ग्लेशियरों पर भी प्रभाव पड़ रहा है जिससे वो तेजी से पिघल रहे हैं,अत्यधिक मानव गतिविधियां भी यहां कई परिवर्तन ला रहा है,घाटी में हेली सेवाओं का अत्यधिक आवाज से भी यहां काफी प्रभाव पद रहा है,कई जंलि पशु पक्षी इस कारण यहां से विलुप्त हो रहे हैं ,जो यहां हो रहे बदलावों का एक बड़ा प्रमाण हैं,,


भूविज्ञानी एवं पर्यावरणविद् एसपी सती ने कहा कि चार धाम जाने के लिए सड़कें चौड़ी कर दी गई हैं। वहां हजारों गाड़ियां पहुंच रही हैं, जिससे हालात बिगड़ रहे हैं। गाड़ियां खड़ी करने के लिए पार्किंग तक नहीं हैं। इस वजह से सड़कों पर जाम लगा रहता है। इसके अलावा पहाड़ों पर वीकेंड टूरिज्म को बढ़ावा दिया जा रहा है, जिससे हिमालय की इकोलॉजी को नुकसान पहुंच रहा है। दूसरा इसके बदले स्थानीय लोगों को कोई फायदा भी नहीं मिल रहा। कुछ गिने-चुने लोगों की लॉबी न केवल कमाई कर रही है, बल्कि, जब पर्यटकों की संख्या सीमित करने की बात होती है तो प्रशासन पर दबाव बनाकर इसका विरोध करती है।
वैज्ञानिकों ने पहले भी दी थी चेतावनी- कई पहाड़ी क्षेत्रों में भू-धंसाव, दरारें आना, पहाड़ों का कटाव, नदियों में बढ़ता अवैध खनन, चमोली में हाइड्रो पावर प्लांट के नाम पर ऋषिगंगा में 2016 में आई बाढ़ हो या जोशीमठ में एनटीपीसी के द्वारा बनाई जा रही टनल ही क्यों न हो ? उच्च हिमालयी क्षेत्र में सीधे 12 महीने आवागमन संभव नहीं है. वैज्ञानिकों ने इस बारे में 2013 में आई आपदा से पहले ही चेतावनी दे दी थी, लेकिन सरकार ने इस पर ध्यान नहीं दिया था,,विशेषज्ञ कहते हैं, ‘सरकार के पास सड़कें बनाने के लिए तो बजट है, लेकिन कटाव के कारण पहाड़ पर बनी ढलान को स्थिर करने के लिए कोई बजट नहीं है. यही कारण है कि ऐसी सड़कों पर साल भर भूस्खलन होता रहता है.’कुछ वैज्ञानिकों ने चार धाम मार्ग पर एक सर्वे किया था. जिसमें पाया गया कि इन हाईवे पर कई नए भूस्खलन क्षेत्र बने थे और कई आगे भी बन सकते हैं. रिपोर्ट सरकार को सौंपी गई लेकिन सरकार ने इस पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी. केदारनाथ के इलाक़े में दशकों से शोध कार्य कर रहे ‘वाडिया इंस्टिट्यूट ऑफ़ हिमालयन जीयोलॉजी’ ने दिसंबर 2013 में, इस आपदा पर एक विस्तृत रिपोर्ट तैयार की थी. क्योंकि संस्थान के पास पिछले कई सालों से जुटाए गए विभिन्न वैज्ञानिक आंकड़े मौजूद थे तो इस रिपोर्ट में आपदा की वजहों की वैज्ञानिक पड़ताल भी थी. साथ ही कुछ महत्वपूर्ण सुझाव भी दिए गए थे. उनके अनुसार  केदारनाथ चौराबाड़ी ग्लेशियर द्वारा बनाए गए ढीले और छिछले मलबे से बने मैदान में बसा है,बाढ़ के जरिए पहुंचे ग्लेसियो—फ्ल्यूवियल मलबे को छेड़ा नहीं जाना चाहिए. इस इलाके में ना ही इतनी जगह है और ना ही ऐसी कोई तकनीक है जिससे कि इतने अधिक मलबे को यहां से कहीं हटाया जा सके और निस्तारित किया जा सके. इसलिए, निकट भविष्य में इसे छेड़ने की कोई भी कोशिश नहीं की जानी चाहिए।

 

क्या कहते हैं वैज्ञानिक डॉ डोभाल-

वैज्ञानिक डॉ. डीपी डोभाल  बताते हैं, कि “हमने अपनी रिपोर्ट में हिमालयन जियोलॉजी के अनुसार कई सुझाव दिए थे, जिन्हें ध्यान में रखना बेहद महत्वपूर्ण था.”डॉ. डोभाल आगे कहते हैं, “इसमें कोई शक नहीं है कि एनआईएम की टीम ने इतनी ऊंचाई पर बड़ी बहादुरी से काम किया है. लेकिन जो काम हुआ है उसमें दूरदर्शिता और प्लानिंग की कमी है. जिस तरह से कंक्रीट और अन्य भारी निर्माण सामग्री का इस्तेमाल, निर्माण कार्य में किया गया है वह ग्लेशियर के मलबे से बने इस भू-भाग में इस्तेमाल नहीं की जानी चाहिए थी.”हिमालय के ऊंचाई वाले जिस भूगोल में केदारनाथ का मंदिर बना हुआ है, भूगर्भवेत्ताओं और ग्लेशियरों का अध्ययन करने वाले वैज्ञानिकों के लिए यह  ग्लेशियर के मलबे का अस्थिर ढेर है जहां किसी भी किस्म के भारी निर्माण कार्य को वे अवैज्ञानिक मानते हैं। 

कई जियोलॉजिस्ट की भी है यही राय-

हिमालयी ग्लेशियर्स पर लम्बे समय से काम कर रहे ‘फिजिकल रिसर्च लैब, अहमदाबाद’ से जुड़े वरिष्ठ जियोलॉजिस्ट डॉ. नवीन जुयाल की भी यही राय है. वे कहते हैं, “केदारनाथ में आई बाढ़ अपने साथ इतना मलबा लाई थी कि उसने इस कस्बे को कई फीट तक ढक दिया. इस मलबे को स्थिर होने तक यहां कोई भी निर्माण करना विज्ञान संगत बात नहीं थी. अब जब वहां नई इमारतें बनाई जा रही हैं तो यह बहुत महत्वपूर्ण है कि इन इमारतों की नींव को उस नए मलबे की गहराई से भी बहुत नीचे तक डालना होगा. डॉ. जुयाल उच्च हिमालयी इलाकों में वैज्ञानिक ढंग से निर्माण कार्यों के बारे में बताते हुए आगे कहते हैं, “इस ऊंचाई वाले भू-भाग में, ग्लेशियर के मलबे के ऊपर भारी इमारतें नहीं बनाई जा सकती. अगर आप इतनी ऊंचाई पर बसे पारंपरिक समाजों के स्थापत्य को देखेंगे तो हमेशा नज़र आएगा कि लकड़ी आदि, हल्की निर्माण सामग्री का इस्तेमाल किया जाता रहा है.”डॉ. जुयाल आगे कहते हैं, ”केदारनाथ में जब प्रकृति ने हमें तमाचा मारते हुए संभलने का एक मौक़ा दिया था तो हमें अपने स्थानीय पारंपरिक ज्ञान से सबक लेना चाहिए था. लकड़ी और पत्थरों की ढालूदार छतों वाली हल्की इमारतें वहां बनाई जानी चाहिए थी. लेकिन शायद हम ये मौका चूक गए हैं।”

कई एजेंसियों ने किया था पुन: निर्माण कार्य करने से मना- 

केदारनाथ कस्बे की दाहिनी ओर की पहाड़ी पर कुछ ऊंचाई पर बने भैरव मंदिर से पूरा केदारनाथ कस्बा दिखाई देता है. आपदा के निशान चारों ओर पसरे हुए हैं. आपदा के बाद फिर से, सुनहरी ढालदार छत और करीने से तराशे गए पत्थरों से बना केदारनाथ मंदिर, कंक्रीट से बनी घिचपिच, तंग, बहुमंजिला इमारतों से घिर गया है. पुनर्निमाण के नाम पर सौंदर्य को एकदम नज़रअंदाज कर सीमेंट और कंक्रीट की सपाट छतों वाली बहुमंजिला इमारतें बना दी गई हैं जो कि इस उच्च हिमालय के भूगोल से एकदम साम्य बनाती नहीं दिखती.एनआईएम बुनियादी तौर पर निर्माण कार्यों से जुड़ी एजेंसी नहीं है. लेकिन 2013 की आपदा के बाद, निर्माण के क्षेत्र में कोई विशेषज्ञता या अनुभव नहीं होने के बावजूद केदारनाथ कस्बे में पुनर्निर्माण का कार्य उसे इसलिए सौंप दिया गया, क्योंकि वह पर्वतारोहण में महारत रखती थी. आपदा ने इस उच्च हिमालयी क्षेत्र में जिस तरह के हालात पैदा कर दिए थे ऐसे में निर्माण कार्य में दक्षता रखने वाली सभी एजेंसियों ने तत्काल निर्माण कार्य करने से मना कर दिया था।

पीएम मोदी ने अपने संबोधन में कही थी ये बातें- 

विशेषज्ञ समितियों की सलाह को नज़रअंदाज कर प्रधानमंत्री मोदी ने केदारनाथ के अपने संबोधन में अगले साल 10 लाख लोगों के केदारनाथ मंदिर में आने का दावा किया है. लेकिन साथ ही उन्होंने विरोधाभासी बयान देते हुए, वहां होने वाले निर्माण कार्यों के दौरान पर्यावरण का ध्यान रखे जाने की भी बात कही है. उन्होंने कहा, ”जब यहां इतना सारा पैसा लगेगा, इतना सारा इंफ्रास्ट्रक्चर बनेगा तो उसमें पर्यावरण के सारे नियमों का ख्याल रखा जाएगा. यहां की रुचि, प्रकृति, प्रवृति के अनुसार ही इसका पुनर्निर्माण किया जाएगा. उसमें आधुनिकता होगी मगर उसकी आत्मा वही होगी जो सदियों से केदारनाथ की धरती ने अपने भीतर संजोए रखी है.” यह समझ से परे है कि कैसे 10 लाख लोगों को इतने संवेदनशील भौगोलिक इलाके में ले जाकर पर्यावरण का ख़याल रखा जा सकता है. केदारनाथ में अब तक हुए नए निर्माण कार्य में पर्यावरण और भूगर्भशास्त्र की विशेषज्ञ एजेंसियों के सुझावों को पूरी तरह अनदेखा किया गया है. जो कुछ अब तक हुआ है उसका परिणाम, फिर से वही अनियोजित और अदूरदर्शी तरीके से कंक्रीट की इमारतों की घिचपिच है. एक विशेषज्ञ के तौर पर पर्यावरणीय और भूगर्भीय चिंताओं के अलावा डॉ. नवीन जुयाल हिमालय के शीर्ष पर बसे कैलाश पर्वत का उदाहरण देते हुए चिंता ज़ाहिर करते  हैं, ”चीन जैसे देश ने भी, जहां एक नास्तिक और तानाशाह सरकार है, जिसने सांस्कृतिक क्रांति के दौरान धर्मों से जुड़े कई प्रतीकों को तोड़ा, ऐसी सरकार ने भी कैलाश पर्वत की चढ़ाई करने पर इस कारण प्रतिबंध लगाया हुआ है क्योंकि वह हिमालय के आस-पास जन्मे सारे ही धर्मों के लिए पवित्र पर्वत है. लेकिन हम अपने संवेदनशील पवित्र स्थानों को लेकर कितने लापरवाह हैं।

न विशेषज्ञों और न ही वैज्ञानिकों की राय पर ध्यान दे रही सरकार- 

ये वो तमाम कारण और शोध से निकले निष्कर्ष है, जिसको लेकर सरकार को भी आगाह किया गया था लेकिन लगता है केदारघाटी की चिंता न  केंद्र सरकार को है और न राज्य सरकार को,, बस सरकार केदार घाटी को एक पर्यटन क्षेत्र के रूप में विकसित करने में जुटी है और सिर्फ और सिर्फ राजस्व बटोरना ही सरकार का मकसद रह गया है, यही कारण है कि इतनी संवेदनशील घाटी होने के बावजूद सरकार तमाम विशेषज्ञों और वैज्ञानिकों की राय पर ध्यान ही नहीं दे रही,और इसका नतीजा आज सबके सामने हैं,,चाहे वो 2013 की आपदा हो या कल का गौरीकुंड हादसा।

वादों और दावों का उत्तराखंड, जमीनी हकीकत से मुंह छुपाती सरकारें…

221 Minutes Read -

हर देश में रहने वाले लोग पहले अपना राजा चुनते हैं,,, ताकि उसे किसी भी समस्या से जूझना ना पड़े, और राजा का भी यही कर्तव्य होता है  कि वो अपनी  प्रजा को  होने वाली हर समस्या और परेशानियों से  बाहर निकाले. लेकिन जब उसी जनता की जरूरत और बढ़ती परेशानियों को उसे खुद ही झेलना पड़े तो राजा का कर्तव्य और उसकी प्रजा के लिए उसके मायने वहीं पर खत्म हो जाते हैं


उत्तराखंड प्रदेश में दम तोड़ती सभी सेवाएं-

सभी जानते हैं कि वादों और दावों में गठन के समय से ही उत्तराखंड में विकास तेजी से भाग रहा है. भले ही वो कागजों तक ही हुआ हो, क्योकि धरातल पर जमीनी हकीकत कुछ और ही कहानी को बयां करती है. और ये सिर्फ आज ही नहीं बल्कि हमेशा से होता आया है. उत्तराखंड जैसा राज्य आज किसी भी चीज में पीछे नहीं रह गया  है,,, फिर चाहे वो अपराध हो, पलायन को मजबूर वो लोग हों जो ना चाहते हुए भी सब कुछ त्याग कर चले गए… ‘एक नई जगह अपनी दुनिया बसाने,  फिर चाहे वो बेरोजगारी हो, या फिर दम तोड़ती हुई स्वास्थ्य सेवाएं हो, चाहे वो बेहतर शिक्षा का विषय ही क्यो न हो.  ये सभी चीजें धरातल पर दावों और वादों की हकीकत को पूरी बदलकर रख देती है और सोचने को मजबूर करती है उन सभी लोगों को. जो अब तब बड़ी  संख्या में पलायन कर चुके हैं, बेरोजगारी के नारे लगा रहे हैं, और आज भी कई जगह सड़कों के ना होने के चलते लोगों को डंडी और कंडी का सहारा देना पड़ रहा है, कई लोग आज भी खराब सड़कों के कारण रास्ते में ही दम तोड़ देते हैं,,तो वहीं अस्पताल में कभी लिफ्ट के पास तो कभी फर्श पर महिलाओं का प्रसव हो रहा है

 

सबसे पहले बात उत्तराखंड की शिक्षा व्यवस्था की- 

एक बच्चे के लिए स्कूल, घर और दुनिया को जोड़ने वाले पुल की तरह काम करता है,,, जिसे अब हर कोई पार करना चाहता है. लेकिन दावों और वादों की पहली हकीकत यही सामने आ जाती हैं.  प्रदेश में 12 जुलाई 2022 को नई शिक्षा नीति  लागू की गयी  थी, उत्तराखंड नई शिक्षा नीति लागू करने वाला देश का पहला राज्य तो  बन गया. लेकिन आज कई उच्च प्राथमिक और माध्यमिक विद्यालयों में कठिन विषयों के शिक्षक नहीं हैं। विशेषकर दूरस्थ और ग्रामीण क्षेत्रों के प्राथमिक से लेकर माध्यमिक विद्यालयों को छोटी-छोटी सुविधाओं के लिए भी वर्षों तक प्रतीक्षा करनी पड़ती है। तंत्र की इस लापरवाही का परिणाम ये हुआ है कि दूरस्थ क्षेत्रों में शिक्षा की रोशनी पहुंचाने के लिए खोले गए विद्यालयों में भी छात्र संख्या घट रही है। और यदि कहीं छात्र है भी तो वहां शिक्षक ही नहीं हैं. हाल ये हैं कि बेटी पढ़ाओ अभियान का नारा दे रही  सरकार के ये नारे दम तोड़ रहे हैं। 

10 हजार से अधिक बेटियों का भविष्य संकट में-

जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मन की बात में शिक्षा के महत्व को बताते हैं तो मानो लगता है कि ये सिर्फ उन पर लागू होता है जो उसे सुन रहे हैं. क्योकि उस पर अमल करने और उसे पूरा करने में शायद सत्ता में बैठे मंत्री और मुख्यमंत्री फेल हो गए हैं. इसका एक उदाहरण अल्मोड़ा जिले में देखने को मिलता है, जहां बेटियों के लिए संचालित 21 जीजीआईसी में शिक्षिकाओं के 117 पद लंबे समय से खाली हैं। शिक्षिकाएं न होने से इन विद्यालयों में पढ़ने वाली 10 हजार से अधिक बेटियों का भविष्य संकट में हैं। अभिभावक काफी समय से शिक्षिकाओं के रिक्त पदों को भरने की मांग कर रहे हैं पर कोई सुनवाई नहीं हुई। बेटियों को बेहतर शिक्षा देकर उन्हें सफल और आत्मनिर्भर बनाने के दावों के बीच उन्हें पढ़ाने के लिए विद्यालयों में शिक्षिकाएं ही नहीं हैं।


एक ही शिक्षक कई विषयों को पढाने को मजबूर- 

अल्मोड़ा जिले में बेटियों के लिए खोले गए विद्यालय इसकी बानगी हैं। जिले में 21 जीजीआईसी संचालित हैं जिनमें 10 हजार से अधिक बेटियां पढ़ रही हैं। इन विद्यालयों में प्रवक्ताओं के 193 और एलटी संवर्ग में शिक्षिकाओं के 289 (नवासी) पद सृजित हैं। आश्चर्य की बात ये है कि इनमें प्रवक्ताओं के 68 और एलटी संवर्ग में शिक्षिकाओं के 49 पद सालों से रिक्त हैं। ऐसे में बेटियां बगैर शिक्षकों के पढ़ने के लिए मजबूर हैं और उनके भविष्य को लेकर अभिभावक चिंतित हैं। अब इस पर कई टॉपर्स बच्चों ने भी उत्तराखंड  सीएम के सामने  ये मांग उठायी है. ये कोई एकलौता मामला नहीं है,, उत्तराखंड के कई जूनियर हाईस्कूलों ऐसे है जहां पर सामाजिक विषय के शिक्षक बच्चों को हिंदी, अंग्रेजी और गणित पढ़ा रहे हैं। खासकर एकल शिक्षक वाले जूनियर स्कूलों में ये हालात  है। इस तरह के राज्य में इक्का दुक्का नहीं बल्कि 170 स्कूल हैं।  तीन हजार प्राथमिक विद्यालयों में एक से पांचवीं कक्षा तक के बच्चे एक ही क्लास  में पढ़ रहे हैं। अब आप सोच रहे होंगे कि 1 से 5 तक के बच्चे कैसे एक ही क्लास में पढ़ रहे हैं.. क्या ये  शिक्षा विभाग का कोई मिक्स लर्निंग का अभिनव प्रयोग तो नहीं ?  ऐसा नहीं है बल्कि स्कूलों में घट रही छात्र संख्या और शिक्षकों की कमी की वजह से ऐसा किया जा रहा है। बता दें कि राज्य सेक्टर के जूनियर हाईस्कूलों में मानक के अनुसार चार सहायक अध्यापक और एक प्रधानाध्यापक होना चाहिए। जबकि सर्व शिक्षा के जूनियर हाई स्कूलों में तीन सहायक अध्यापक के पद हैं, लेकिन स्कूलों में मानक के अनुसार शिक्षक न होने से 170 एकल शिक्षकों वाले इन स्कूलों में एक शिक्षक को 21 विषयों को पढ़ाना पड़ रहा है।  इसमें कुछ स्कूल देहरादून जिले के हैं। जहां पूरी सरकार रहती है , जिले के जूनियर हाईस्कूल रावना विकासखंड चकराता में पिछले तीन साल से मात्र एक शिक्षक है। सामाजिक विषय के शिक्षक  को हिंदी, अंग्रेजी, गणित, विज्ञान, सामाजिक विज्ञान, संस्कृत व कला सभी विषय पढ़ाने पड़ रहे हैं। यही स्थिति इसी ब्लॉक के जूनियर हाईस्कूल बिसऊ घणता की है। स्कूल एकल शिक्षक के भरोसे है, स्कूल के एकल शिक्षक  का भी वर्ष 2016 में चकराता ब्लॉक से विकासनगर ब्लॉक के मदरसा स्कूल में तबादले का आदेश हुआ था, लेकिन रिलीवर न मिलने की वजह से शिक्षक नई तैनाती पर नहीं जा सके।

एक ही कक्षा में पढ़ने को मजबूर हैं कई कक्षाओं के छात्र-छात्राएं-  

राजकीय प्राथमिक विद्यालय मन टाड के शिक्षक  के मुताबिक स्कूल में मात्र सात छात्र-छात्राएं हैं। कम छात्र होने की वजह से कक्षा एक से पांचवीं तक के सभी छात्र-छात्राएं एक कक्षा में पढ़ते हैं। विभाग की एक रिपोर्ट के मुताबिक देहरादून जिले में इस तरह के 72 स्कूल हैं। इतने स्कूलों में छात्र एक ही कक्षा में पढ़ते हैं,  प्रदेश का पिथौरागढ़ ऐसा जिला है, जिसमें एकल शिक्षक वाले सबसे अधिक प्राथमिक विद्यालय हैं। स्कूल में कम छात्र संख्या की वजह से एक से पांचवीं तक के छात्र एक ही कक्षा में पढ़ते हैं। जिले में इस तरह के 486 स्कूल हैं। जबकि अल्मोड़ा में 442, बागेश्वर में 293, चमोली में 396, चंपावत में 135, हरिद्वार में 36, नैनीताल में 228, पौड़ी में 273, रुद्रप्रयाग में 221, टिहरी में 302, ऊधमसिंह नगर में 98 एवं प्राथमिक विद्यालय उत्तरकाशी में 208 स्कूल हैं।


बच्चों ने मुख्यमंत्री को गिनाई पहाड़ की कई समस्याएं- 

अभी एक कार्यक्रम में  उत्तराखंड सरकार ने 10वीं और 12वीं के टॉपर बच्चों के प्रोत्साहन के लिए उन्हें सम्मानित किया.. वहां  पर भी कई बच्चों ने मुख्यमंत्री और शिक्षा मंत्री को अपनी कई परेशानियां गिनाई बच्चों ने मुख्यमंत्री से संवाद करते हुए ये भी कहा कि 12वीं के बाद फिर से वही समस्या होती है। छात्रों ने कहा कि सिविल सेवा या प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारियों के लिए मैदानी जनपदों में जाना उनकी मजबूरी बन जाता है। इसलिए ऐसा कुछ इंतजाम किए जाए की शिक्षा पाने के लिए पहाड़ की प्रतिभाओं को घर न छोड़ना पडे। अभी कई मेधावी मैदानी जनपदों में आने में सक्षम नहीं होते और पिछड़ जाते हैं। ये पीड़ा पहाड़ी क्षेत्रों के बच्चों ने शिक्षा मंत्री डाॅ. धन सिंह रावत से कही।

अब बात स्वास्थ्य सेवाओं की- 

गांव-गांव तक सड़कों का जाल बिछाने के दावों के बीच कई गांव ऐसे हैं जहां मोटर मार्ग तो दूर. ठीक से चलने के लिए पैदल मार्ग तक नहीं है। उत्तराखंड में सड़क, स्वास्थ्य और शिक्षा को लेकर लगातार सरकारों पर सवाल उठते रहे हैं. इसके बाद भी आज तक सभी सेवाओं का हाल बेहाल है. सरकारें लगातार सड़कों का जाल गांव-गांव तक पहुंचाने की बातें कहती हैं और अपने दावों को मजबूत भी करती हैं. लेकिन इस बीच दावे और हकीकत में लगातार अंतर सामने आते रहते है. ऐसा ही एक मामला बागेश्वर जिले के गांव लीती डांगती से सामने आता है. यहां गांव के एक बीमार व्यक्ति को ग्रामीण डोली में लेकर अस्पताल जाते हैं। पुरुषों की संख्या कम होने पर महिलाओं ने बारी-बारी से डोली को कंधा दिया। इसके बाद मरीज को अस्पताल पहुंचाया. डांगती से लीती गांव की पैदल दूरी सात किमी है। गांव में किसी के बीमार होने पर उसे डोली के सहारे सड़क तक लाना मजबूरी है। यहां से 108 की मदद से मरीज को अस्पताल पहुंचाया जाता है। हालात ये है कि युवाओं के रोजगार की तलाश में महानगरों की ओर जाने से गांव में पुरुषों की संख्या कम है। वहीं इस पर गांव के पूर्व जिला पंचायत अध्यक्ष हरीश ऐठानी ने कहा कि सरकार को इन जमीनी मुद्दों को समझना बहुत जरूरी है. उन्होंने कहा कि जिस तरीके से गांव की महिलाओं को मरीजों को ले जाने के लिए आगे आना पड़ रहा है, इससे साफ पता चलता है कि रोजगार, सड़क, शिक्षा और स्वास्थ्य के दावे पूरी तरह से झूठे हैं, जनप्रतिनिधियों को उन्हें पूरा करने के लिए आगे आना होगा. लिहाजा, महिलाओं को डोली को कांधा देना पड़ता है। 

 
 
राजधानी देहरादून के सबसे बड़े अस्पताल का भी यही हाल-

देहरादून के सबसे बड़े अस्पताल दून अस्पताल का भी यही हाल है,जहां दूर दराज से लोग इस आस में आते हैं कि वहां अच्छी व्यवस्था उनको मिलेगी और उनका इजाल अच्छे से होगा। अभी हाल ही में एक ऐसा नजारा यहां देखने को मिला जब दून अस्पताल के महिला वार्ड में एक ही बेड पर दो- दो प्रसूताएं भर्ती दिखाई दी। उसी पर नवजात को भी लिटाना पड़ रहा है . इस मामले का वीडियो सोशल मीडिया पर खूब वायरल हुआ. कांग्रेस  ने स्वास्थ्य सेवाओं पर सवाल उठाते हुए कहा, मंत्री और नेता दिल्ली दरबार में हाजिरी लगाने में व्यस्त हैं. यहां स्वास्थ्य सेवा पटरी से उतर गई है। दून मेडिकल कॉलेज अस्पताल में कभी लिफ्ट के पास तो कभी फर्श पर महिलाओं का प्रसव हो रहा है। जच्चा-बच्चा वार्ड में एक ही बेड पर दो महिलाएं और दो नवजात भर्ती हो रहे हैं। ऋषिकेश एम्स में स्ट्रेचर नहीं मिलने पर गाड़ी में ही प्रसव कराना पड़ रहा है। 



प्रदेश सरकार पर कई सवाल- 

अब सवाल ये उठता है कि राज्य में फिर कौन सा विकास हो रहा है जिसका दावा हमारी सरकारें करती आ रही हैं,, दावों और वादों की हकीकत जब ऐसे दिखाई देती है तो हमारे प्रदेश की सरकारों पर कई सवाल खड़े उठते हैं, कि आखिर राज्य बनने के इतने साल बाद भी हम आज उन चीजों की मांग कर रहे हैं जो सभी की रोजमर्रा जिंदगी के लिए बेहद जरूरी है। 

13 नंबर वाला पास.. 80 नंबर वाला फेल, क्या ये है भाजपा सरकार का नया खेल…

376 Minutes Read -

 

भर्ती घोटालों पर बेरोजगार युवाओं ने सरकार के खिलाफ  मोर्चा खोला और साफ सुथरे तरीके से परीक्षा करवाने सहित सीबीआई जांच की मांग की,बेरोजगारों के हल्ला बोल से डरी सरकार ने सीबीआई जांच की बात तो की पर अभी तक पांच महिने बित जाने के बाद भी मानी नहीं.  लेकिन बेरोजगार युवाओं की बुलंद आवाज का ये असर जरूर पड़ा कि सरकार को भर्ती परीक्षाओं की जांच करनी पड़ी, उसमें वो सफल कितनी हो पायी ये कहना तो मुश्किल है मगर सरकार को एक नकल विरोधी कानून बनाना पड़ा,, हालांकि ये कानून कितना कारगर साबित होगा ये अभी भविष्य के गर्त में है.. लेकिन छात्रों के आंदोलन से ये फर्क जरूर पड़ा कि हाकम सिंह जैसे कई नकल माफिया जेल की सलाखों के पीछे पहुंचे और नकल माफियाओं की थोड़ी सी कमर जरुर टूटी और उसके बाद हुई परीक्षाओं में कई मेहनती छात्रों का चयन हुआ जो इससे पहले देखने को प्रदेश में कभी मिला नहीं था।

 

धामी सरकार पर खड़े हो रहे सीधे सवाल-

लेकिन क्या सिर्फ इतने भर से नियुक्तियों में धांधलियां रुक गयी ? जिस तरह विधानसभा भर्ती घोटाले में सामने आया कि इस उत्तराखंड राज्य के कई राजनेताओं ने अपने करीबियों को बिना किसी मानक के नियुक्ति दे दी,, अब ऐसा ही एक और मामला सामने आया है जिसमे फिर से प्रदेश की पुष्कर सिंह धामी सरकार पर सीधे सवाल खड़े हो रहे हैं, इस बार तो मामला ऐसा सामने आया है की जिसमे किसी नकल माफिया का हाथ नहीं दिखाई देता बल्कि सीधे तौर पर सरकार ही इसमें सम्मलित होती प्रतीत हो रही है और इस पर सीधा सवाल मुख़्यमंत्री पुष्कर सिहं धामी पर ही उठते दिखाई देते हैं,, इस बार मुख्यमंत्री के खुद के ही विभाग में ऐसी नियुक्तियां हुई है जिसमें 80 नंबर वाला छात्र को तो बाहर का रास्ता दिखा दिया जाता है और 13 नंबर प्राप्त करने वाले को 5400 सौ ग्रेड पे पर नियुक्ति दे दी जाती है,, आरोप तब और मजबूत हो जाता है जब उनमे से एक खुद मुख़्यमंत्री के करीबी रहे पूर्व में कैबिनेट मंत्री की बेटी हो ,,,हमारे कुछ और बताने से पहले जरा आप इस वीडियो को देखें इसे देखकर सरकार की करनी और कथनी में अंतर साफ़ दिखाई देगा ….. लेकिन ये बात जरुर साफ करनी होगी की बेरोजगार संघ के द्वारा लगाए गए इन आरोपों की पुष्टि हम नहीं करते लेकिन अगर ये आरोप सही साबित होते  हैं तो किसी भी राज्य के मुख्यमंत्री और उनकी सरकार के लिए ये एक बहुत बड़ा फेलियर माना जाएगा।

 

बेरोजगार संघ ने इंटरव्यू लेने के लिए बनाई कमेटी पर किए कई सवाल –

बॉबी पंवार जो की उत्तराखंड बेरोजगार संघ के अध्यक्ष हैं उन्होने सीधे तौर पर ये आरोप लगाए हैं कि कैबिनेट मंत्री चन्दनराम दास की बेटी को 13 नंबर रिटर्न में आने के बाद इंटरव्यू में उनको इतने नंबर मिल जाते हैं कि उनको नियुक्ति मिल जाती है, हालांकि चंदन राम दास अब इस दुनिया में नहीं हैं, उनकी कुछ समय पूर्व मृत्यु हो चुकी है, वो कैबिनेट मंत्री रहते हुए मुख़्यमंत्री धामी के काफी करीबी माने जाते थे यही कारण था कि उनको कैबिनेट में जगह दी गयी थी… बेरोजगार संघ ने इंटरव्यू लेने के लिए बनाई गयी कमेटी पर भी कई सवाल खड़े किये।

 

5 महीनों से धरना दे रहा है बेरोजगार छात्रों का संगठन- 

बेरोजगार संघ बेरोजगार छात्रों का वो संगठन जो हर अभाव में भारी बारिश और गर्मी के बीच पिछले 5 महीनों से देहरादून में टेंट में दिन-रात बैठकर धरना दे रहा है, और सिर्फ एक मांग कर रहा है कि भर्ती धांधलियों की सीबाई जांच की जाय, गौरतलब है कि इस आंदोलन में कई छात्रों को जेल भी जाना पड़ा है, ये सभी बेरोजगार अपने भविष्य की परवाह किये बगैर दिन- रात लगातार आंदोलनरत हैं लेकिन सरकार न तो उनकी मांग मान रही है और न कोई उनको मिलने आया है,और न मुख़्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने उनको मिलने का समय दिया है।
बेरोजगार संघ का आरोप हैं कि मुख़्यमंत्री ने खुद परीक्षा कैलेंडर खत्म होने के बाद सीबीआई की बात कही थी,अब परीक्षाएं निपट चुकी हैं तो अब क्यों सीबाई की जांच नहीं हो रही हैं,बेरोजगार संघ के अध्यक्ष बॉबी पंवार आरोप लगाते हैं कि सीबीआई जांच के न करवाने के कई कारण हैं,इनमे से एक उनके द्वारा उठाये अलग-अलग मुद्दे हैं,,  एक अधिकारी  जिन पर खुद मुख़्यमंत्री  ने जांच की बात की थी उनका खुद सरकार सेवा विस्तार कर रही है,जबकि दूसरे खुद मुख़्यमंत्री धामी के सयुक्त सचिव संजय टोलिया हैं जो जनजाति कल्याण विभाग के डारेक्टर पद पर आसीन हैं जबकि वो इस पद के कोई भी मानक पुरे नहीं करते,बॉबी पंवार का आरोप है कि मुख़्यमंत्री के ख़ास होने के कारण उन पर कोई कारवाही नहीं की जा रही है जबकि मुख़्यमंत्री ने खुद उन पर कारवाही का बात कही थी।

 

कंपनी में किसके शेयर हैं इसकी जांच होनी चाहिए- बेरोजगार संघ

सरकार अपने लोगों पर मेहरबानियाँ कैसे करती हैं इसका सीधा-सीधा और ताजा उदहारण ये हैं कि आउटसोर्स से नियुक्तियां करने का ठेका एक ऐसी कम्पनी को दिया जाता है जो कंस्ट्रक्शन यानी बिल्डिंगें बनाने का काम करती है,उनको अगर बिल्डिंग बनाने काम सरकार देती तो शायद लगता कि योग्यता के अनुसार काम दिया गया है,और इन नियुक्तियों का जिम्मा किसी आयोग को दिया जाता जो इस काम को हमेशा से करते आये हैं,लेकिन ये उत्तराखंड की सरकार है जनाब यहां कुछ भी मुमकिन है,,,बेरोजगार संघ का ये भी आरोप हैं कि इस कम्पनी में किसके शेयर हैं इसकी भी जांच होनी चाहिए।

 

बेरोजगार संघ का एक और बड़ा खुलासा-

बेरोजगार संघ ने एक और बड़ा खुलासा किया है,उनके मुताबिक़ 2015 की दरोगा भर्ती धांधली सामने आने के बाद 20 दरोगाओं को तो निलंबित कर दिया गया था जबकि 100 की जांच चल रही है,ये जांच कहाँ तक पहुंची ये भी स्पष्ट नहीं है बल्कि इस जांच को दबाने के लिए एक थ्री स्टार वाले दरोगा को लगाया गया है जिसको कहा गया है कि इन सभी दरोगाओं से 5 -5  लाख रूपये लेकर जांच को डंप किया जाय ? ये वो तमाम आरोप हैं जो बेरोजगार संघ ने सरकार पर लगाए हैं और यदि ये आरोप सच हैं तो निश्चित रूप से धामी सरकार पर गंभीर सवाल उठते हैं,बेरोजगार संघ के आरोपों के बाद अब सरकार का क्या रुख रहेगा, ये आने वाला वक्त बताएगा। मगर फिलवक्त इन आरोपों से धामी सरकार की मुश्किलें बढ़ती नजर आ रही है।

बीच बाजार में भी सुरक्षित नहीं हैं उत्तराखंड की बेटियां, मणिपुर जैसे हालात अब यहां भी…

240 Minutes Read -

क्या उत्तराखंड ने अंकिता भंडारी केस से कुछ सीख ली ? क्या मणिपुर बनने की राह पर है उत्तराखंड? उत्तराखंड की कानून व्यवस्था और सरकार के खोखले दावे तो यहीं दर्शाते हैं, ऐसा कहने को हम तब मजबूर हो जाते हैं जब ये सामने आता है कि देहरादून जिसे राजधानी भी कहते हैं और वहां के व्यस्ततम चौराहे से एक खबर आती है कि भरे बाजार में अपनी दुकान पर काम कर रही लड़की के साथ सरेआम एक ऐसी घटना हो जाती है जो न केवल हमे डराती है बल्कि आसपास के जितने भी लोग इस घटना को देखते हैं डर से सिहर उठते हैं और हमें  ये सोचने को मजबूर करती है कि क्या लडकिया इस प्रदेश में सुरक्षित हैं, और कानून व्यवस्था की बात करने वाला पुलिस  प्रशासन कहाँ सोया है, बेटी बचाओ ,बेटी पढ़ाओ वाली डबल इंजन सरकार कहाँ सोई है?

देहरादून जिसे इस प्रदेश की  राजधानी भी कहा जाता है, जहां इस प्रदेश के मुखिया से लेकर उनके मंत्री और पूरी सरकार सहित सभी विभाग और अधिकारी बैठते हैं,कानून से जुड़े बड़े-बड़े अधिकारी भी यहीं रहते हैं अगर वहां पर दिन दहाड़े एक बेटी के साथ ऐसा होता है तो सीधा सवाल यहां की सरकार और पुलिस की कानून व्यवस्था पर उठते हैं ।
दुकानदार भी दहशत में- 
दरसल पूरा मामला कुछ इस तरह है कि देहरादून के डीबीएस कालेज के सामने टिहरी जिले की एक युवती एक साइबर कैफे की दुकान चलाती है, अचानक दिन में 20 से 25 लड़के मुहँ ढक कर वहां पर आते हैं और दुकान के अंदर घुस जाते हैं,उस युवती के गल्ले से पैसे निकालते हैं और उस युवती को घसीटते है, और ये घटना कोई रात को नहीं भरी दोपहरी में होती है, दूर गाँव से आकर अपना स्वरोजगार कर रही युवती इस घटना के बाद इतने ख़ौफ़ में है और न केवल युवती बल्कि आसपास के दुकानदार भी दहशत में है,अब आप सोचिए अगर भरी दोपहरी में इतनी भीड़ भाड़ वाले इलाके में भी अगर एक पाहड़ कि बेटी सुरक्षित नहीं हैं तो फिर अंदाजा लगाया जा सकता है कि बेटियां उत्तराखंड में कितनी सुरक्षित है,,और हमारी मित्र पुलिस शिकायत के बाद भी कई घण्टो तक घटना स्थल पर तक आने की जहमत नहीं उठाती, जबकि पास ही ssp ऑफिस से लेकर थाना चौकी मौजूद हो, जो दिखाता है कि हमारी पुलिस कितनी एक्टिव है। जब जाकर ये मामला मीडिया में उछला तब जाकर पुलिस ने इस पर रिपोर्ट लिखी।

 

कब तक महिलाएं सुरक्षित नहीं- 

 

अब सवाल ये उठता है कि क्या पुलिस ये इंतजार कर रही थी कि मणिपुर या अंकिता भंडारी जैसी घटना इस युवती के साथ हो जाती तो क्या तब जाकर पुलिस यहां कोई कारवाही करती,और क्या इस तरह बेटी बचेगी और बेटी पढ़ेगी,जब राजधानी और बीच बाजार में एक युवती जो अपने परिवार का सहारा बनने की कोशिश कर रही हो उसके साथ ये सब हो जाता है तो क्या इस तरह के माहौल में कोई और बेटी घर से बाहर आकर स्वरोजगार कर सकती है, इस तरह के माहौल में क्या कोई आत्म निर्भर और स्वरोजगार करने की हिम्मत करेगा.

इतना ही नहीं आज सुबह ही खबर आयी है कि राजधानी देहरादून के VVIP  इलाकों में शुमार कैंट रोड में एक महिला का शव मिला है. महिला के साथ दुराचार के बाद हत्या की आशंका व्यक्त की जा रही है. हालांकि पुलिस ने  महिला का शव बरामद करते हुए एक संदिग्ध युवक को भी हिरासत में ले लिया है, और मामले की जांच की जा रही है. आपको बता दें कि  सेंटीरियो मॉल के सामने महिला का शव मिलने से आस-पास के लोगों में सनसनी फैल गयी। महिला के सिर और पैर में गहरी चोट के निशान है। सूचना मिलने पर पुलिस ने मौके पर पहुंचकर शव को बरामद किया। जिसके बाद पुलिस ने बॉडी मोर्चरी में रखवाई। आशंका जताई जा रही है कि महिला के साथ दुराचार के बाद हत्या कर दी गई।

 

आरोपियों की तलाश जारी- 
एक ऐसी ही खबर हरिद्वार श्यामपुर थाना क्षेत्र से आयी है, जहां एक किशोरी को रुड़की में तीन दिन तक बंधक बनाकर उससे सामूहिक दुष्कर्म का मामला भी सामने आया है। बहादराबाद क्षेत्र में श्यामपुर क्षेत्र के एक गांव निवासी किशोरी दो महीने से दिहाड़ी मजदूरी करने के लिए आ रही थी। दिहाड़ी पर आने के बाद चार दिन पहले उसका नंबर बंद हो गया। संपर्क न होने पर परिजन बहाराबाद पहुंचे तो किशोरी उन्हें नहीं मिली। परिजनों ने पुलिस को शिकायत दी। श्यामपुर पुलिस ने गुमशुदगी दर्ज कर तलाश शुरू की। दिहाड़ी मजदूरी करने वाली किशोरी को उसकी परिचित युवती ने तीन युवकों के हवाले किया था। जबकि आरोपी युवक और युवती की तलाश शुरू कर दी गई है। पुलिस ने शिकायत मिलने के बाद किशोरी को रुड़की से बरामद कर लिया है। पुलिस ने बताया कि आरोपियों की तलाश की जा रही है. जल्द ही उन्हें गिरफ्तार कर लिया जाएगा.  ये पता चलते ही परिजनों के होश उड़ गए। इस घटना ने सरकार और कानून व्यवस्था की  महिला सुरक्षा को लेकर  पोल खोल कर रख दी है. ऐसा ही चलता रहा तो वो दिन भी दूर नहीं जब उत्तराखंड की बेटियों का घर से बाहर आना मुश्किल हो जाएगा।

केदारनाथ में पैदा हो रहा नया खतरा, जल्द नहीं दिया ध्यान तो सकती है बड़ी मुश्किलें…

249 Minutes Read -

 

केदारनाथ मंदिर  में अब कोई रील्स नहीं बना पाएंगे , केदारनाथ में पैदा हो रहा है एक बार फिर बड़ा संकट, खुद भगवान ही अब खतरे में आ गए हैं,केदारनाथ भगवान शिव का वो धाम जो हिमालय की गोद में स्थित है,पहले केदारनाथ की यात्रा काफी कठिन मानी जाती थी लेकिन आज के समय में सभी लोग वह पहुंच रहे हैं. एक समय था जब केदारनाथ जाने का रास्ता काफी कठिन था,और लोग यहां अपने अंत समय में जाया करते थे, क्योकि उस वक्त  यहां पहुंचने के लिए न सड़क थी और ना ही आज की तरह कोई हैली या अन्य सुविधाएं थी. कहते हैं पुराने समय में हरिद्वार के बाद पूरा रास्ता काफी मुश्किल भरा हुआ करता था, इसलिए श्रद्धालु अपने अंत समय में यहां जाया करते थे, और जाने के बाद ये भी उम्मीद कम ही रहती थी कि इंसान लौट कर आएगा या नही, इसलिए कई लोग यात्रा पर जाने से पहले अपना पिंड दान कर दिया करते थे। लेकिन आज धाम की स्तिथि कुछ और ही बयां करती  है।

2013 की आपदा के बाद लोगो की भीड़ बढ़ने लगी-

2013 की आयी भीषण आपदा के बाद केदारनाथ धाम सिर्फ मंदिर को छोड़कर पूरी तरह तहस नहस हो गया था,जिसके बाद सबसे पहले उस समय के उत्तराखंड के मुख्यमंत्री हरीश रावत ने केदारनाथ यात्रा को सुचारु और मंदिर परिसर को फिर से खड़ा करने की काफी कोशिश की, लेकिन 2014 के बाद प्रधानमंत्री मोदी ने जिस तरह केदारनाथ को पुनः सवार कर खड़ा किया उसके बाद से ही केदारनाथ जाने के लिए लोगों में उत्सुकता बढ़ी,,,और श्रद्धालुओं की संख्या में यहां बहुत इजाफा होने लगा,,, लेकिन आज के समय में केदारनाथ धाम में श्रद्धालुओं के साथ-साथ मनोरंजन के लिए पहुंचने वाले लोगों की संख्या भी बढ़ रही है,सोशल मीडिया के इस दौर में कई वीडियो केदारनाथ से वायरल हुए जिससे केदारनाथ धाम ज्यादा चर्चा में बना है,ऐसे वीडियो से लगातार धार्मिक भावनाएं आहत होने का आरोप लगते रहे हैं, जिसके लिए मंदिर समिति पर एक्शन लेने का दबाव भी बन रहा थ।

मंदिर में फ़ोन और फोटोग्राफी पर प्रतिबंध-

लगातार ऐसे मामलों के सुर्ख़ियों में आने के बाद केदारनाथ मंदिर समिति ने अब बड़ा फैसला किया है,,, मंदिर समिति ने केदारनाथ मंदिर में अब मोबाइल फोन से फोटोग्राफी करने पर प्रतिबंध लगा दिया है। बदरीनाथ-केदारनाथ मंदिर समिति की और से इस संबंध में धाम में जगह-जगह साइन बोर्ड भी लगाए गए हैं। बदरीनाथ केदारनाथ मंदिर समिति के अध्यक्ष अजेंद्र अजय ने बताया कि केदारनाथ मंदिर के अंदर यदि कोई श्रद्धालु फोटो खींचता है तो उसके खिलाफ कानूनी कार्रवाई भी की जाएगी। केदारनाथ मंदिर में आने वाले कई श्रद्धालु रील्स बनाकर सोशल मीडिया पर वायरल कर रहे हैं। जिससे धार्मिक भावनाओं को भी ठेस पहुंच रही है। हाल ही में केदारनाथ धाम में एक महिला द्वारा गर्भ ग्रह में नोट बरसाने का वीडियो भी सोशल मीडिया पर खूब वायरल हुआ था। जबकि गर्भगृह में फोटो खिंचवाना वर्जित है, हालांकि सरकार ने कई बार खुद ही इस नियम की अनदेखी की है, बीकेटीसी के अध्यक्ष ने कहा कि धाम में अभी तक क्लॉक रूम की व्यवस्था नहीं है। श्रद्धालु मोबाइल फोन लेकर दर्शन कर सकते हैं। लेकिन मंदिर के अंदर फोटो और वीडियो नहीं खींच सकते हैं। इस पर प्रतिबंध है। यदि कोई श्रद्धालु आदेशों का उल्लंघन करता है तो उसके खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जाएगी।

भविष्या के लिए एक बड़ा डर-
केदारनाथ धाम की सिर्फ यही चिंता नहीं है, बल्कि यहां उमड़ रही भारी भीड़ भी एक बड़ा डर भविष्य के लिए खड़ा हो रहा है, केदारनाथ हिमालय के सेंसिटिव जोन  में बसा है यहां पर इतनी भीड़ पहुंचने से भी कई तरह का प्रभाव पड़ रहा हैं,भारी भीड़ से यहां दबाव भी बढ़ता है,केदार वैली में हेलीकॉप्टर से बढ़ रहे शोर से भी यहां के पर्यावरण को बहुत नुकसान हो रहा है, कई बार शोधकर्ता इस विषय पर भी सरकार को चेता चुके हैं, लेकिन उनकी बात पर कोई गौर करने को तैयार नहीं है।
आपदा के बाद तापमान में बड़ा बदलाव-
केदारनाथ धाम में आई आपदा के बाद से यहां के तापमान में भारी परिवर्तन देखने को मिल रहा हैं. पहले जहां धाम में बर्फबारी और बारिश समय पर होने से तापमान सही रहता था. ग्लेशियर टूटने की घटनाएं सामने नहीं आती थीं. वहीं अब कुछ सालों से धाम में ग्लेशियर चटकने की घटनाएं बार-बार सामने आ रही हैं. इसके साथ ही यहां के बुग्यालों को नुकसान पहुंचने से वनस्पति और जीव जंतु भी विलुप्ति के कगार पर हैं. आपदा के बाद से केदारनाथ धाम में पर्यावरण को लेकर कोई कार्य नहीं किये जाने से पर्यावरण विशेषज्ञ भी भविष्य के लिए चिंतित नजर आ रहे है।

पुनर्निर्माण कार्य जोरों पर-

केदारनाथ आपदा को नौ साल का समय बीत चुका है. तब से लेकर आज तक धाम में पुनर्निर्माण कार्य जोरों पर चल रहे हैं. धाम को सुंदर और दिव्य बनाने की दिशा में निरंतर काम किया जा रहा है, लेकिन इन पुनर्निर्माण कार्यों और बढ़ती मानव गतिविधियों के साथ ही हेली सेवाओं ने धाम के स्वास्थ्य को बिगाड़ कर रख दिया है. यहां के पर्यावरण को बचाने की दिशा में कोई कार्य नहीं किया जा रहा है, जिससे आज केदारनाथ की पहाड़ियां धीरे-धीरे खिसकनी शुरू हो गई है।

केदार घाटी के लिए हो रहा नया संकट खड़ा-

केदारनाथ घाटी के लिए एक बड़ी चिंता भी है- कंपन पैदा करता हेलिकॉप्टरों का शोर।  हर 5 मिनट में एक हेलिकॉप्टर केदारनाथ मंदिर क्षेत्र में गड़गड़ा रहा है ,यही है नया संकट। क्योंकि, विशेषज्ञ कह रहे हैं कि ये पवित्र मंदिर ग्लेशियर को काटकर बनाया गया है। इसलिए शोर से घाटी के दरकने और हेलिकॉप्टरों के धुंए के कार्बन से पूरा इलाका खतरे की जद में है। हमने भगवान तक पहुंचने के इतने सरल व अवैज्ञानिक रास्ते बना दिए हैं कि अब भगवान पर ही मुसीबत आ गई है। केदारनाथ के लिए 1997-98 तक एक ही हेलिपैड था। अब 9 हेलीपैड बन गए हैं। ये देहरादून से फाटा तक फैले हैं और 9 कंपनियों के लिए उड़ान सुविधा देते हैं। 8 साल पहले तक केदारनाथ के लिए कुल 10-15 उड़ानें थीं। अब केदारनाथ वैली में सुबह 6 से शाम 6 बजे तक हेलिकॉप्टर रोजाना 250 से ज्यादा राउंड लगाते हैं। इनका शोर और इनसे निकलने वाले कार्बन ने ग्लेशियर काटकर बनाए मंदिर और उसकी पूरी घाटी के लिए नया संकट खड़ा कर दिया है।

धीरे-धीरे धाम में हो रहा है भू धसाव-

 

केदारनाथ धाम में पाये जानी वाली घास विशेष प्रकार की है. वनस्पति विज्ञान में इसे माँस घास कहा जाता है. ये जमीन को बांधने का काम करती है. साथ ही यहां के ईको सिस्टम को भी सही रखती है. बताया जा रहा है कि यह माॅस घास जमीन में कटाव होने से रोकती है और हिमालय के तापमान को व्यवस्थित रखने में मददगार होती है. केदारनाथ धाम चारों ओर से पहाड़ियों से घिरा है. यहां धीरे-धीरे भू धसाव हो रहा है. यहां मानव का दबाव ज्यादा बढ़ गया है. भैरवनाथ मंदिर, वासुकी ताल और गरूड़चट्टी जाने के रास्ते से इस घास को रौंदा जाता है.  बुग्यालों में खुदाई करके टेंट लगाए गए हैं. जिन स्थानों पर टेंट लगाए गए हैं, वहां के बुग्यालों को पुनर्जीवित करने के लिए कोई कार्य नहीं किया जाता है, जिससे पानी का रिसाव होता जाता है और भूस्खलन की घटनाएं सामने आती है।

 

मंदिर की पहाड़ियों पर एवलांच की घटनाएं-
केदारनाथ धाम की पहाड़ियों में लगातार एवलांच की घटनाएं सामने आ रही हैं. इसके लिए पर्यावरणविद धाम में हो रहे तापमान बदलाव का कारण मानते हैं. पर्यावरणविद जगत सिंह जंगली की माने तो केदारनाथ धाम के तापमान में ग्लोबल वार्मिंग के कारण वृद्धि देखने को मिल रही है. ग्लेशियर खिसक रहे हैं. केदारनाथ धाम में अनियंत्रित लोगों के जाने से वातावरण को नुकसान पहुंच रहा है. हिमालय क्षेत्र में हेलीकॉप्टर सेवाएं टैक्सी की तरह कार्य कर रही हैं, जबकि इनकी उड़ानों को विशेष इमरजेंसी की सेवाओं में उपयोग किया जाना चाहिए।
खतरे में हैं कई पशु और जानवर-

केदारनाथ में नीचे उड़ते हेलीकाप्टर दुर्लभ प्रजातियों के कई जीवों का ब्रीडिंग साइकल बिगड़ा है। उत्तराखंड का राज्य पक्षी मोनाल और राजकीय पशु कस्तूरी मृग इस सेंचुरी में अब नहीं दिखते। तितलियों की कई दुर्लभ प्रजातियां तो गायब हो चुकी हैं। स्नो लैपर्ड, हिमालयन थार और ब्राउन बीयर्स भी खतरे में हैं।

NGT के नियमों की उड़ती धज्जियां-

NGT ने सुनिश्चित करने को कहा था कि हेलिकॉप्टर केदारनाथ सेंचुरी में 600 मीटर के नीचे न उड़ें। आवाज 50 डेसिबल हो। लेकिन फेरे जल्दी पूरे करने और फ्यूल बचाने के लिए हेलिकॉप्टर 250 मी. ऊंचाई तक उड़ते हैं। आवाज भी दोगुनी होती है। देहरादून स्थित वाडिया इंस्टीटूयट  में ग्लेशियर विभाग के पूर्व विभागाध्यक्ष डॉ डीबी डोभाल कहते हैं- सरकार को ये रिपोर्ट दे चुके हैं कि इससे मंदिर और घाटी को बड़ा खतरा हो सकता है।पद्मभूषण पर्यावरणविद् डॉ. अनिल जोशी बताते हैं कि हिमालय के इस सबसे संवेदनशील व शांत क्षेत्र में 100 डेसिबल शोर और कार्बन उत्सर्जन हर 5 मिनट में होगा तो मंदिर-पर्यावरण-वन्य जीवों के लिए खतरा तय है।