दिल्ली ने तय किये उत्तराखंड कांग्रेस के रेस के घोड़े !

दिल्ली ने तय किये उत्तराखंड कांग्रेस के रेस के घोड़े !

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राहुल गांधी के रेस, बारात और लंगड़े घोड़े के बाबत दिए गए ताजा बयान के ठीक बाद उत्तराखण्ड कांग्रेस के नेता दिल्ली में जुटे ,,जहां उत्तराखंड के सभी बड़े नेता मौजूद रहे,,,इस बैठक में उत्तराखण्ड कांग्रेस का कायाकल्प को लेकर मंथन हुआ ,,,सवाल यही है कि बैठक तो हो गयी पर क्या कुछ बड़ा भी होगा या फिर ये बैठक बैठक का खेल युहीं चलता रहेगा ,,वैसे ,राहुल गांधी के लंगड़े घोड़ों को किनारे बैठाने सम्बन्धी बयान के बाद उत्तराखण्ड कांग्रेस में हलचल मची है।

राहुल गांधी के बयान और दिल्ली बैठक के बाद अब प्रदेश संगठन के विस्तार या बदलाव की सम्भावना बनने लगी है ,, इसको देखते हुए  कुछ नेताओं की जिम्मेदारी बढ़ेगी और कुछ का साइज घटेगा और कुछ की छुट्टी की जा सकती है। अगर ऐसा सही मायने में हुआ तो  उत्तराखंड कांग्रेस नये कलेवर में दिखेगी,,जानकारी के मुताबिक कांग्रेस नेतृत्व ने तीनों प्रकार के नेताओं के चिह्नीकरण का काम शुरू कर दिया है,,, मतलब साफ़ है,,,दिल्ली बैठक के बाद लंगड़े घोड़े अस्तबल में बंधेंगे,,,,और रेस के घोड़ों को आगे किया जायेगा और उनके पीछे सपोर्ट के लिए  बारात के घोड़ों को नयी जगह मिलेगी,,,,कुल मिलाकर उत्तराखंड कांग्रेस का कायाकल्प करने की शुरुआत दिल्ली में बैठा कांग्रेस का आलाकमान कर चुका है,,,,देखना ये है कि अब इसमें वो कौन से घोड़े होंगे जिनको अस्तबल में बाँध दिया जायेगा,,, वो कौन से घोड़े होंगे जो बरात  में शामिल किये जायेंगे,,,और सबसे बड़ी बात रेस में दौड़ने वाले घोड़े कौन होंगे,,,ये देखना सबसे महत्वपूर्ण होगा,,,क्योंकि इन्ही रेस के घोड़ों पर कांग्रेस के भविष्य की जिम्मेदारी होगी,,,वैसे जिस तरह से कई राज्यों में कांग्रेस आलकमान युवाओं को आगे कर चुका है ,,,उससे ये संकेत तो साफ़ हैं कि अब कांग्रेस शायद युवा टीम के भरोसे ही आगे की राजनीती करेगी,,,,ऐसे में ये सम्भावना भी बन रही है कि बीजेपी की तरह बुजुर्ग और उम्रदराज लोगों को आराम दिया जायेगा

 

यहां थोड़ा संछिप्त रूप से इन तीनों घोड़ों पर भी बात कर लेते हैं,,,सबसे पहले, ये घोड़ा गेम क्या है? राहुल गांधी ने गुजरात में कहा था—कांग्रेस में रेस के घोड़े हैं, जो तेज दौड़ सकते हैं; बारात के घोड़े, जो शोभा बढ़ाते हैं; और लंगड़े घोड़े, जो अब रिटायर होने चाहिए,,,लंगड़े घोड़े,,,ये वो नेता हैं, जो अब कांग्रेस के लिए बोझ बन चुके हैं,,,भूपेंद्र सिंह हुड्डा, 77 साल, हरियाणा के पूर्व सीएम। 8 महीने बाद भी सीएलपी नहीं चुन पाए। कमलनाथ और दिग्विजय सिंह, दोनों 78 साल,,,,, मध्य प्रदेश में समय पूरा। पी. चिदंबरम, 79 साल; सलमान खुर्शीद, 72 साल; मधुसूदन मिस्त्री, 80 साल; आनंद शर्मा, 72 साल; अंबिका सोनी, 82 साल; एके एंटनी, 84 साल; मीरा कुमार, 80 साल; पृथ्वीराज चौहान, 79 साल,,,इनमें से कोई हाल में चुनाव नहीं जीता,,,,ये लोग ना चुनाव लड़ सकते हैं, ना जितवा सकते हैं। ऐसा पूर्व के चुनाव नतीजे भी बता रहे हैं ,,,

 

अब हैं बारात के घोड़े,,,,,ये वो हैं, जो दफ्तरी काम कर सकते हैं, ,,,जैसे कुमारी शैलजा, हरियाणा में सांसद हैं ,,, पर विधानसभा में  प्रदर्शन निराशाजनक है ,,,  शशि थरूर, 69 साल के हैं , महत्वाकांक्षा बुलंद हैं , पर बीजेपी की वाशिंग मशीन की तरफ निगाहें जमाये प्रतीत हो रहे हैं ,,,, जयराम रमेश,,,,, कम्युनिकेशन डिपार्टमेंट में लगातार फजीहत ,,,, तारिक अनवर,,,,,,74 साल; प्रतिभा सिंह,,,,, मनीष तिवारी,, रणदीप सुरजेवाला,,,,, राजीव शुक्ला,,,,शक्ति सिंह गोहिल,,,इनमें से कईयों का जीत का रिकॉर्ड शून्य,,,, इसलिए  डिसीजन मेकिंग में इनको  कोई रोल मिले तो मुश्किल कांग्रेस को होगी ही ,, हाँ जैसे क्लास में मॉनिटर होता है वैसे ही इनको प्रदेश का मॉनिटर बनाकर डिसीज़न लेने की
शक्ति खुद कांग्रेस आलाकमान को ही लेनी होगी ,, आखिर सवाल प्रदेश में जीत की पताका फहराने का है ,,

और अंत में हैं रेस के घोड़े,,,,यहाँ कांग्रेस को  फ्रेश ब्लड चाहिए,,, युवा, जोशीले चेहरे, जो बीजेपी को टक्कर दे सकें,,,यहां राहुल गाँधी  की स्ट्रैटेजी शानदार लगती है,,,, जिला अध्यक्षों को पावर देना, वोट बढ़ाने की जिम्मेदारी, विचारधारा की रक्षा, नई लीडरशिप को बढ़ावा देना —ये गेम चेंजर साबित हो सकते है,,,,लेकिन अगर स्टाफ लॉयल नहीं, अगर लंगड़े और बारात के घोड़े ही टॉप पर रहेंगे, तो ये सारी मेहनत बेकार है,,,,मतलब जिस कायाकल्प का सपना कांग्रेस आलाकमान देख रहा है वो तभी सफल होगा जब लंगड़े घोड़ों को रिटायर किया जाएगा ,,,,, बारात के घोड़ों को दफ्तर भेजा जायेगा और रेस के घोड़ों को मैदान में उतारा जायेगा,,,,पर सवाल यही है कि क्या कांग्रेस आलाकमान ऐसा कर पायेगा ?? ,,,या फिर बड़े नेताओं के दबाव के आगे फिर वही होगा जो होता आया है,,,,क्योंकि कांग्रेस को अगर जमीन पर सूरत बदलनी है तो सख्त निर्णय लेने ही पड़ेंगे,,,,

 

 

 

चलिए घोड़ों के गणित से अब उत्तराखंड की कांग्रेसी सियासत की तरफ रुख कर लेते हैं ,,, क्यूंकि मुद्दा तो
एक तरफ कांग्रेस आलाकमान नए सिरे से पार्टी को एकजुट करने में जुटा हुआ है,,,दूसरी तरफ कांग्रेस में अंदरूनी कलह थम नहीं रही है,,,एक तरफ मयूख महर बगावत का झंडा बुलंद किये हुए हैं,,,तो अब दो पुराने दोस्त और वर्तमान में एक दूसरे के विरोधी खुले मंच पर एक दूसरे पर हमला कर रहे हैं,,। पार्टी के अंदरूनी मतभेद अब खुलकर सामने आ रहे हैं। हाल ही में रणजीत रावत, जो उत्तराखंड कांग्रेस के बड़े नेताओं में शुमार हैं, उन्होंने एक बयान दिया, जिसमें उन्होंने साफ कहा कि प्रेस कॉन्फ्रेंस, सोशल मीडिया पोस्ट, या काफल पार्टी जैसे इवेंट्स से कुछ नहीं होने वाला,,,, असल बदलाव चाहिए, तो सड़क पर उतरकर संघर्ष करना होगा। और इस बयान में उनके निशाने पर थे  पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत , जिन्हें वो काफल पार्टी और सोशल मीडिया पर एक्टिव रहने  का तंज कस रहे थे। ये वही हरीश रावत हैं जिन्होंने रंजीत रावत की राजनीती को चमकाने में सबसे बड़ी और महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है

 

 

खैर रणजीत रावत भले ये कह रहे हैं कि सड़क पर उत्तर कर संघर्ष करना होगा ,,,,जनता के मुद्दों को उठाना होगा,,,,लेकिन खुद वो कब सड़क पर जनता के मुद्दों के लिए उतरते हुए दिखाई दिए ,,,ये बड़ा सवाल है,,हाँ आखिरी बार तब जरूर वो सड़क पर उतरे थे,,जब उनके तथाकथित कार्यलय से जुड़ा मामला  सामने आया था ,,,उस कार्यालय को लेकर भी उन पर कब्जा करने का आरोप एक पक्ष ने लगाया था,,,इसके अलावा रणजीत रावत शायद ही कभी जनता के मुद्दे पर पुलिस से इस तरह भिड़ते नजर आये हो,,,हरीश रावत पर निशाना साधते वक्त शायद वो भूल गए कि हरीश रावत उम्र के इस पड़ाव में भी पुरे प्रदेश की यात्रा कर रहे हैं,,,भले इस यात्रा का मकसद उनका वक्तिगत हो सकता है,,, लेकिन इसी यात्रा के दौरान वो पुराने कॉंग्रेस्सिओं को जोड़ने की कोशिश में भी लगे दिखाई दे रहे हैं ,,  ,,,जनता के मुद्दों पर भी हरीश रावत इसी यात्रा के दौरान सवाल उठाते दिखाई दिए  हैं,,,इसलिए भले पूर्व विधायक रंजीत रावत जनता के मुद्दों पर सड़क पर उतरने की लाख बातें कहें,,,लेकिन खुद जनता के मुद्दों को लेकर वो कितना संघर्ष करते हैं वो जग जाहिर हैं,,, । ,,, रणजीत रावत का इस तरह भरे मंच पर सैकड़ों कार्यकर्ताओं के सामने अपने ही बड़े नेता पर तंज कसना इनके रिश्ते की खटास को दिखा रहा है,,,,साथ ही इसका कार्यकर्ताओं में भी मेसेज गया,,,कि भले आलाकमान  कुछ भी कर के लेकिन  बड़े नेता आपस में लड़ते रहेंगे,,,2027 से पहले एक बार फिर ये लड़ाई तेज होती दिखाई दे रही है,,, इसी आपसी लड़ाई और गुटबाजी ने पहले 2022 में भी कांग्रेस के हाथ आयी सत्ता को लगभग लात मार कर दूर कर दिया था,,
वैसे रंजीत रावत के इस बयां के जवाब में ,,हरीश रावत ने भी जवाब बड़े अलग अंदाज में दिया,,,हरीश रावत ने कहा, मैं जो भी अभियान चलाता हूं, वह व्यक्तिगत है। इसमें किसी तरह की राजनीति नहीं है। काफल व पहाड़ी ककड़ी हमारी जड़ें हैं। इन्हें बढ़ावा देने के लिए हमेशा आगे रहता हूं और आने वाले समय में भी मरते दम तक आगे रहूंगा,,, जिन लोगों को इस पर कोई आपत्ति है, उनसे क्षमा मांगता हूं।

 

 

रणजीत रावत का कहना है कि कांग्रेस का हर कार्यकर्ता संघर्ष के लिए तैयार है। लेकिन नेतृत्व को अगुवाई करनी होगी। तो क्या रणजीत रावत ये भी  कहना चाहते हैं कि प्रदेश अध्यक्ष कारन म्हारा संघर्ष नहीं कर रहे हैं ,,,रंजीत रावत के बयान से तो यही लगता है कि वो करन महारा के नेतृत्व पर उतना भरोसा नहीं कर रहे हैं, मतलब प्रदेश अध्यक्ष करण माहरा को भी साबित करनी होगी अपनी योग्यता पूर्व विधायक राजनजित रावत के समक्ष ,,दूसरी तरफ हरीश रावत और हरक सिंह रावत में भी बयानबाजी हुई है,,,जिसमें हरक सिहं ने साफ़ कहा है कि 2016 में जो कुछ हुआ उसका उनको कोई दुःख नहीं है,,पूर्व मंत्री हरक सिंह रावत ने कहा  कि 2022 में हरीश रावत चुनाव नहीं लड़ते तो कांग्रेस सत्ता में होती,,,हरीश रावत लालकुआं व हरिद्वार ग्रामीण विधानसभा को छोड़कर कहीं भी प्रचार करने नहीं गए।

 

 

 

उधर, पूर्व सीएम हरीश रावत ने पलटवार करते हुए कहा, यदि मैं बड़े नेताओं के समक्ष ना कर देता तो हरक सिंह कांग्रेस में शामिल नहीं हो पाते। मैंने उनके आग्रह का सम्मान किया। हरक सिंह एक सीट जीता कर अपनी क्षमता को साबित तो करें, जिससे 2016 की कट़ुता दूर हाे सके  ,,,इतना ही नहीं हरीश रावत ने एक बड़ी बात कह डाली कि केदारनाथ उपचुनाव में भी हरक सिंह रावत और उनके करीबियों ने पार्टी के लिए काम नहीं किया,,,  इस सारी अंदरूनी जंग के किस्से  5 जून को दिल्ली में हुई कांग्रेस की एक अहम बैठक में भी पहुंचे ,,,,, इस बैठक में राहुल गांधी, मल्लिकार्जुन खरगे जैसे टॉप लीडर्स ने हिस्सा लिया था  । नेताओं की बयानबाजी को लेकर पार्टी हाईकमान ने सख्त रुख अपनाया,,,शीर्ष नेतृत्व ने हिदायत दी कि अनुशासनहीनता करने वाले नेताओं पर पार्टी सख्त कार्रवाई करेगी। कोई भी नेता एक-दूसरे के खिलाफ बयानबाजी न करे। 2027 के लिए सभी नेता एकजुट होकर पार्टी के लिए काम करें। राष्ट्रीय व प्रदेश स्तर पर पार्टी की ओर से जो कार्यक्रम तय किए जाते हैं। उसमें सभी नेताओं की भागीदारी जरूरी है।

माना जा रहा है कि  कुछ नेताओं ने गढ़वाल और कुमाऊं में पदों में सामंजस्य बढ़ाने की बात कहि,,,,अभी वर्तमान में नेता प्रतिपक्ष और प्रदेश अध्यक्ष दोनों कुमाऊं से हैं,,,प्रदेश अध्यक्ष पद को लेकर भी बात उठी,,, इस पर राहुल गांधी ने तर्क दिया कि इससे पहले भी कुमाऊं से ही मुख्यमंत्री, नेता प्रतिपक्ष व अध्यक्ष रहे हैं,,,,,, कारन महारा जो अभी वर्तमान में प्रदेश अध्यक्ष हैं उन्होंने पार्टी हित में एक कदम आगे बढ़कर जो कहा वो तारीफ के काबिल है,,,जानकारी के मुताबिक करन महारा ने  साफ़ कहा कि अगर उनको हटाना है तो हटा दीजिये,,,,और जल्दी ही नया अध्यक्ष चुन लीजिये,,,,क्योंकि रोज रोज के कयासों से पार्टी को नुकसान हो रहा है,,

 

अब आखिर में सवाल ये है कि क्या इस बैठक में उत्तराखंड कांग्रेस के लिए कोई ठोस रणनीति बन चुकी है? या फिर ये भी बस एक औपचारिकता बनकर रह जाएगी,,,और सबसे बड़ा सवाल—क्या कांग्रेस इस अंदरूनी कलह से बाहर निकलकर बीजेपी को टक्कर दे पाएगी? ,,कांग्रेस कौन सा रास्ता चुनेगी? ,,,,,,क्या कांग्रेस आपस में लड़ रहे नेताओं से आगे बढ़कर भविष्य की राजनीती के मध्येनजर युवा और जोशीले चेहरे ,,,जैसे तेज़ तर्रार नेता गणेश गोदियाल,,,cm धामी को हराकर विधानसभा पहुंचे उपनेता प्रतिपक्ष भुवन कापड़ी,,,कांग्रेस में महिलाओं को नए कलेवर में खड़ा करने वाली ,, हर जनहित के मुद्दों पर आगे रहने वाली कांग्रेस महिला अध्यक्ष ज्योति रौतेला ,बद्रीनाथ जैसी हिंदुत्व की सीट पर पूरी सरकार को घुटनों पर लाकर जीत हासिल करने वाले बद्रीनाथ विधायक लखपत बुटोला जैसे तेज तर्रार नेताओं को कोई बड़ी भूमिका दे पाएगी ?? ,,,ये देखना होगा ?क्योंकि कुछ नेता आपसी खींचतान में इतना व्यस्त हो चुके हैं कि इससे पार्टी को क्या नुकसान हो रहा है उसकी शायद उनको फ़िक्र नहीं है,,,कुछ नेता जिनका उत्तराखंड में कोई ख़ास प्रभाव नहीं है,,,जो अपनी विधानसभा के भीतर भी कुछ ख़ास कांग्रेस पार्टी  के लिए नहीं कर पाए,,,वो दिल्ली दरबार के कुछ नेताओं से अपने संबंधों के चलते राजनीती हाँक रहे हैं,,,,क्या कांग्रेस आलाकमान उत्तराखंड में उन घोड़ों की सही पहचान कर पायेगा  जो रेस में तेज दौड़ने की छमता रखते हैं,,,, यही नसब सवालों के जवाब कांग्रेस का भविष्य उत्तराखंड में तय कर पाएंगे ,, मगर इन सभी सवालों के जवाब सिर्फ दिल्ली में बैठे कांग्रेस आलाकमान के पास ही हैं ,,

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