Author: Pravesh Rana

संकट में हिमाचल की कांग्रेस सरकार, क्या महाराष्ट्र की तरह अब हिमाचल में भी गिरेगी सुक्खू सरकार !

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तीन राज्यों की 15 राज्यसभा सीटों के लिए मंगलवार को मतदान कराए गए जिसमें हिमाचल प्रदेश भी शामिल हैं। प्रदेश की एक सीट के लिए दो उम्मीदवार थे। इसके कारण यहां मतदान कराना पड़ा। कांग्रेस ने अभिषेक मनु सिंघवी को उम्मीदवार बनाया तो भाजपा ने हर्ष महाजन को टिकट दिया। नामांकन के साथ ही राज्य में क्रॉस वोटिंग की आशंकाएं जाहिर की जाने लगी थीं जो सच हुईं। 

इस दौरान सत्ताधारी कांग्रेस के कम से कम कम छह विधायकों ने क्रॉस वोटिंग की। दोनों उम्मीदवारों को 34-34 वोट मिले। इसके बाद फैसला पर्ची से हुआ। इसमें हर्ष महाजन जीत गए। तीन निर्दलीय विधायकों ने भी भाजपा उम्मीदवार के पक्ष में मतदान किया। इसके बाद नेता प्रतिपक्ष जयराम ठाकुर ने मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू के इस्तीफे के मांग की। उन्होंने कहा कि राज्य सरकार अल्पमत में है। ऐसे में अब राज्य में सियासी संकट खड़ा हो गया है। जून 2022 में महाराष्ट्र में भी ऐसे ही कुछ स्थितियां उत्पन्न हुई थीं जब एमएलसी चुनाव में क्रॉस वोटिंग के बाद उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली महा विकास आघाडी सरकार गिर गई थी।

हिमाचल प्रदेश में कितनी सीट के लिए मतदान हुए और क्यों? 

दरअसल, भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा का कार्यकाल खत्म हो रहा है। नड्डा इस बार गुजरात से निर्विरोध निर्वाचित हो चुके हैं। हिमाचल में इस वक्त कांग्रेस सत्ता में है। कांग्रेस ने अभिषेक मनु सिंघवी को अपना उम्मीदवार बनाया। सिंघवी के सामने भाजपा ने हर्ष महाजन को उतारा। हर्ष कांग्रेस से ही भाजपा में आए हैं। 68 सदस्यों वाली राज्य विधानसभा में कांग्रेस के 40 विधायक हैं। भाजपा के 25 विधायक हैं। वहीं, तीन निर्दलीय विधायकों का भी सरकार को समर्थन दे रखा है।राज्यसभा चुनाव में उम्मीदवार की जीत के लिए 35 वोट की जरूरत थी। संख्या बल के हिसाब से कांग्रेस के लिए यह लड़ाई बहुत आसान दिख रही थी। इसके बाद भी भाजपा ने यहां पास पलट दिया। मतदान के नतीजे आए तो दोनों उम्मीदवारों को 34-34 वोट मिले हैं। यानी कांग्रेस और निर्दलीय समेत कुल नौ विधायकों ने क्रॉस वोटिंग की है।

क्रॉस वोटिंग करने वाले विधायकों का क्या होगा?

क्रॉस वोटिंग के दावे को लेकर राज्य में सियासी उठापटक शुरू हो चुकी है। अब यह देखना दिलचस्प होगा कि सरकार के अल्पमत में होने का दावा करने वाली भाजपा क्या सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाएगी। दूसरी ओर नजर कांग्रेस पर भी होगी जिसने कहा है कि राज्यसभा चुनाव से पहले उसने व्हिप जारी किया था।हिमाचल सरकार का सियासी भविष्य क्या है? इस पर हमने लोकसभा के पूर्व महासचिव पीटीडी अचारी से बात की। अचारी ने कहा, ‘राज्यसभा चुनाव के लिए कोई व्हिप नहीं होती है। व्हिप से कोई फायदा नहीं होता। कांग्रेस के विधायकों ने भाजपा के लिए मतदान किया है तो यह मुसीबत है। यदि कांग्रेस के विधायक भाजपा की तरफ चले गए और उसके लिए मतदान किया है तो कांग्रेस का बहुमत कम हो रहा है। यदि ये विधायक भाजपा में शामिल होते हैं तो अयोग्य हो जाएंगे। ऐसे में अभी तो स्थिति अस्थिर है।’

 

क्या क्रॉस वोटिंग करने वाले विधायक अयोग्य हो सकते हैं?

अचारी ने कहा, ‘यदि नमूने के तौर पर दो-तीन विधायकों को अयोग्य करते हैं तो उसके लिए आधार अलग होता है। जैसे कि विधायक ने अपनी इच्छा से पार्टी छोड़ दी है। इस आधार पर विधायकों को अयोग्य घोषित किया जा सकता है। दूसरी स्थिति में यदि सभी विधायकों के खिलाफ याचिका दाखिल करें तो ऐसा होगा कि कांग्रेस खुद कह रही है कि उसका बहुमत नहीं है। ऐसा कोई भी दल नहीं करेगा। लेकिन अभी मुसीबत है। उप-चुनाव बाद की बात है।’

 

 क्या हिमाचल में सरकार गिर सकती है?

2022 में हुए एमएलसी चुनाव के दौरान कुछ इसी तरह की स्थिति महाराष्ट्र में बनी थी। दरअसल, जून 2022 में महाराष्ट्र में एमएलसी की 10 सीटों पर चुनाव हुए। इसके लिए 11 उम्मीदवार मैदान में थे। महाराष्ट्र विकास अघाड़ी (एमवीए) यानी शिवसेना, कांग्रेस और एनसीपी के गठबंधन ने छह उम्मीदवार उतारे थे तो भाजपा ने पांच। खास बात ये है कि शिवसेना गठबंधन के पास सभी छह उम्मीदवारों को जिताने के लिए पर्याप्त संख्या बल था, लेकिन वह एक सीट हार गई। इन पांच में कांग्रेस को केवल एक सीट मिली और एनसीपी-शिवसेना के खाते में दो-दो सीटें आईं।वहीं, भाजपा के पास केवल चार सीटें जीतने भर की संख्या बल थी, लेकिन पांचवीं सीट भी निकालने में पार्टी सफल रही। एमएलसी चुनाव में बड़े पैमाने पर क्रॉस वोटिंग हुई है। इसके बाद महाराष्ट्र के कैबिनेट मंत्री एकनाथ शिंदे के साथ कई विधायक पहले गुजरात फिर असम चले गए। कई दिन चले सियासी ड्रामे के बाद उद्धव ठाकरे ने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया। बागी विधायकों के नेता एकनाथ शिंदे भाजपा के समर्थन से मुख्यमंत्री बन गए। अब यह देखना होगा कि हिमाचल के बागी विधायक क्या करते हैं।

 

Uttarakhand: अब जेल में मृतक बंदियों के आश्रितों को मिलेगा मुआवजा, 1 करोड़ रुपये का बजट हुआ मंजूर। 

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जेल में बंदियों की मौत के बाद उनके आश्रितों को अब मुआवजा दिया जाएगा। इसके लिए बजट में नए मद के तहत एक करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया है। प्रदेश में यह व्यवस्था पहली बार की गई है। पिछले दिनों इस संबंध में नीति बनाई गई थी। मृतक बंदियों के आश्रितों को नियमानुसार श्रेणीवार मुआवजे की धनराशि दी जाएगी।

बता दें कि जेल में तमाम कारणों से हर साल बंदियों की मौत हो जाती है। इसमें कुछ आपराधिक घटनाओं के कारण और कुछ सामान्य व बीमारियों के कारण होने वाली मौतें शामिल हैं। लेकिन, अभी तक प्रदेश में ऐसी कोई व्यवस्था नहीं थी कि इन बंदियों के आश्रितों को किसी प्रकार का मुआवजा दिया जाए। मसलन, यदि जेल में बंद कैदी घर में अकेला कमाने वाला था और उसकी जेल में मौत हो जाती है तो उसके आश्रितों के प्रतिपूर्ति की व्यवस्था नहीं थी। ऐसे में पिछले दिनों सरकार ने इसके लिए नई नीति बनाई थी।

अब बजट में नई मदों में इस मद को भी शामिल किया गया है। जेलों में इस प्रकार की मौत होने पर उनके आश्रितों को मुआवजे के लिए एक करोड़ रुपये का बजट दिया गया है। इस बजट को कैदी की श्रेणी के आधार पर नियमानुसार दिया जाएगा। यानी विचाराधीन कैदी, सजायाफ्ता कैदी, आपराधिक मौत, सामान्य मौत, बीमारी के कारण हुई मौत आदि को अलग-अलग श्रेणियों में रखा जाएगा। इसके आधार पर ही उन्हें एक लाख रुपये से लेकर पांच या उससे अधिक दिया जाएगा। हालांकि, इससे पहले मौत किस कारण से और किन परिस्थितियों में हुई इस बात की जांच की जाएगी।

जम्मू-कश्मीर के पूर्व राज्यपाल सत्यपाल मालिक के आवास पर CBI का छापा, 30 से ज्यादा ठिकानों पर छापेमारी।

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जम्मू-कश्मीर के पूर्व राज्यपाल सत्यपाल मलिक के खिलाफ सीबीआई ने कार्रवाई की है। सीबीआई ने उनके परिसरों समेत 30 से अधिक स्थानों पर छापेमारी की है। न्यूज एजेंसी  एएनआई सूत्रों के मुताबिक, दिल्ली में गुरुवार सुबह से मलिक के यहां कार्रवाई चल रही है।

जानकारी मिली है कि जम्मू कश्मीर के पूर्व राज्यपाल सत्यपाल मलिक के दिल्ली स्थित घर पर CBI ने छापेमारी की है। दरअसल, सीबीआई ने हाइड्रो पावर प्रोजेक्ट मामले में यह छापा मारा है। बीमा घोटाले में सीबीआई मलिक के खिलाफ कार्रवाई कर चुकी है। बीमा घोटाले के मामले में सीबीआई सत्यपाल मलिक और उनके करीबियों के ठिकानों पर छापा मार चुकी है।
 

मुझे 300 करोड़ रुपये की रिश्वत की पेशकश की गई थी: सत्यपाल मलिक

23 अगस्त 2018 से 30 अक्टूबर 2019 के बीच जम्मू-कश्मीर के राज्यपाल रहे सत्यपाल मलिक ने दावा किया था कि उन्हें दो फाइलों को मंजूरी देने के लिए 300 करोड़ रुपये की रिश्वत की पेशकश की गई थी। इसके बाद सीबीआई ने पिछले साल अप्रैल में एक मामला दर्ज किया था।

इस मामले में जांच एजेंसी ने कई अधिकारियों और व्यक्तियों से जुड़े परिसरों पर पिछले तीन मौकों पर तलाशी ली थी। मामला दर्ज करने के बाद सीबीआई ने पिछले साल अप्रैल में 10 स्थानों पर और जून 2022 में 16 स्थानों पर तलाशी ली। इस साल मई में भी 12 स्थानों पर तलाशी ली गई थी।

कई अधिकारियों के खिलाफ मामला दर्ज किया- 

सीबीआई ने पहले कहा था, “2019 में किरू हाइड्रो इलेक्ट्रिक पावर प्रोजेक्ट (एचईपी) के लगभग 2,200 करोड़ रुपये के सिविल कार्यों का ठेका एक निजी कंपनी को देने में कदाचार के आरोप में मामला दर्ज किया गया था।”

एजेंसी ने चिनाब वैली पावर प्रोजेक्ट्स (पी) लिमिटेड के पूर्व अध्यक्ष नवीन कुमार चौधरी और अन्य पूर्व अधिकारियों एम एस बाबू, एम के मित्तल और अरुण कुमार मिश्रा और पटेल इंजीनियरिंग लिमिटेड के खिलाफ मामला दर्ज किया है।

पूर्व राज्यपाल सत्यपाल मलिक ने सोशल मीडिया एक्स पर पोस्ट करते हुए लिखा कि पिछले 3-4 दिनों से मैं बीमार हूं और अस्पताल में भर्ती हूं। इसके वावजूद मेरे मकान में तानाशाह द्वारा सरकारी एजेंसियों से छापे डलवाए जा रहे हैं। मेरे ड्राइवर, मेरे साहयक के ऊपर भी छापे मारकर उनको बेवजह परेशान किया जा रहा है। में किसान का बेटा हूं, इन छापों से घबराऊंगा नहीं। मैं किसानों के साथ हूं। सत्यपाल मलिक (पूर्व गवर्नर)

मनमोहन सिंह या नरेंद्र मोदी, 10 साल किसके बेहतर ?

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2024 का लोकसभा चुनाव देश की दहलीज पर खड़ा है,  सत्ताधारी पार्टी और विपक्ष एक दूसरे पर आरोप प्रत्यारोप की झाड़ियां लगा रहे हैं इसमें कोई संदेह नहीं कि आरोप और प्रत्यारोप भारतीय लोकतंत्र के चुनावों में ब्रह्मास्त्र से भी बड़े अस्त्र है लोकसभा के चुनाव से पहले जनता को अपने पक्ष में करने के लिए सत्ता पक्ष और विपक्ष आरोप -प्रत्यारोपों के साथ-साथ अपने कार्यकाल की उपलब्धियां भी गिना रहे हैं चलो उपलब्धियां गिनाने तक तो ठीक है मगर ये एक- दूसरे के कार्यकाल को  अपशब्दों से  भी  अलंकृत  कर रहे हैं बीजेपी के नेतृत्व वाली नेशनल डेमोक्रेटिक अलायंस यानी NDA ने कांग्रेस के 2004 से 2014 तक के कार्यकाल को अर्थव्यवस्था की बदहाली के आधार पर विनाश काल कहा जबकि कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूनाइटेड प्रोग्रेसिव एलाइंस  यानी UPA ने बीजेपी के 2014 से 2024 तक के कार्यकाल को अन्याय काल की संज्ञा दी. अब प्रश्न यह उठता है कि किसका कार्यकाल सबसे बेहतर रहा बीजेपी के नेतृत्व वाले एनडीए का या कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए का। 

हाल ही में बीजेपी के नेतृत्व वाली एनडीए ने अपने और कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए के कार्यकाल के दौरान की आर्थिक नीतियों की तुलना के लिए एक श्वेत पत्र जारी किया इस श्वेत पत्र में एनडीए ने 2004 से 2014 तक की यूपीए के कार्यकाल को विनाश काल की संज्ञा दी तथा 2014 से 24 तक के स्वयं के कार्यकाल को अमृत काल कहा वहीं एनडीए के इस फैसले के जवाब में कांग्रेस ने एक ब्लैक पेपर जारी किया और 2014 से 24 तक के एनडीए के कार्यकाल को 10 साल अन्याय काल  की संज्ञा दी इस बेहतर दिखने की प्रतियोगिता पर मुझे एक शेर याद आता है “खुद को ऊंचा दिखाने के लिए, दूसरे को नीचा दिखाओ. कोई तुम्हें ऊंचा माने या ना माने, खुद से ही मनवाओ”. दोनों ही दस्तावेज़ 50 से 60 पन्ने के हैं और इनमें आंकड़े और चार्ट की मदद से आरोप और दावे किए गए हैं। 

बीजेपी ने कांग्रेस पर क्या क्या आरोप लगाए-

खैर बीजेपी ने अपने श्वेत पत्र में कांग्रेस पर बजट घाटे से भागने, कोल ब्लॉक आवंटन घोटाला, 2G स्पेक्ट्रम घोटाला, राष्ट्रमंडल खेल घोटाला, जैसे कई घोटालों की एक श्रृंखला बनाने का आरोप लगाया, और कहा कि  इन घोटालों के कारण देश में निवेश की गति धीमी हुई , फलस्वरूप आर्थिक विकास पिछड़ता चला गया वहीं दूसरी तरफ कांग्रेस ने भी  जवाब  देते हुए , एनडीए के कार्यकाल में बेरोजगारी बढ़ने नोटबंदी करने और  आधे अधूरे तरीके से जीएसटी व्यवस्था लागू करने, जैसे विनाशकारी आर्थिक फैसले लेने का आरोप लगाया और कहा कि इन फैसलों से अमीर और गरीब के बीच खाई बढ़ती जा रही है। 

कांग्रेस के अनुसार उसका दस्तावेज़ सत्ताधारी बीजेपी के आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक ‘अन्यायों’ पर केंद्रित है जबकि सरकार का जारी श्वेत पत्र यूपीए सरकार की आर्थिक गलतियों पर रोशनी डालने तक सीमित है अर्थव्यवस्था को लेकर कांग्रेस का कहना है कि पीएम मोदी का कार्यकाल भारी बेरोजगारी, नोटबंदी और आधे-अधूरे तरीके से गुड्स एंड सर्विस टैक्स (जीएसटी) व्यवस्था लागू करने जैसे विनाशकारी आर्थिक फ़ैसलों, अमीरों-गरीबों के बीच बढ़ती खाई और निजी निवेश के कम होने का गवाह रहा है दूसरी तरफ बीजेपी ने बैड बैंक लोन में उछाल, बजट घाटे से भागना, कोयला से लेकर 2जी स्पेक्ट्रम तक हर चीज़ के आवंटन में घोटालों की एक श्रृंखला और फैसला लेने में अक्षमता जैसे कई आरोप कांग्रेस पर लगाए हैं बीजेपी का कहना है कि इसकी वजह से देश में निवेश की गति धीमी हुई है। 

विभिन्न विश्लेषणों से शायद ये पता चले कि दोनों ही पार्टियां एक-दूसरे के बारे में जो दावे कर रही हैं, कुछ हद तक वो सही बातें भी हैं दोनों ओर के आरोपों में कुछ सच्चाई है. दोनों ने बुरे फैसले लिए,, कांग्रेस ने टेलीकॉम और कोयला में और बीजेपी ने नोटबंदी में,, यूपीए और एनडीए के एक दूसरे पर लगाए गए आरोप सत्य है या भ्रामक इसके लिए हमने सबसे पहले दोनों पार्टियों के पिछले 10-10 वर्षों के दौरान लिए गए आर्थिक फैसलों का आंकड़ों सहित अध्ययन किया, और आज हम इन आंकड़ों का विस्तृत विवरण आपके सामने रख रहे हैं, जिससे आप स्वयं यह फैसला ले सके कि किसका 10 वर्ष का कार्यकाल बेहतर रहा, यूपीए का 2004 से 2014 तक का या फिर एनडीए का 2014 से 2024 तक का। 

अब बात जीडीपी की-

सबसे पहले बात करते हैं आर्थिक विकास के मुख्य संकेतक जीडीपी यानी ग्रास डोमेस्टिक प्रोडक्ट की,  आईएमएफ के अनुसार -यूपीए के  10 वर्षों के कार्यकाल के दौरान 2008-09 के बीच के वैश्विक आर्थिक संकट को छोड़ दिया जाए तो  औसत जीडीपी दर 8.1% रही, आपको बता दे 2008- 9  के दौरान पूरे विश्व में आर्थिक मंदी छाई हुई थी और लगभग आर्थिक गतिविधियां स्थिर हो गई थी, जबकि एनडीए के 10 वर्षों के कार्यकाल में  2020-21 में कोविड महामारी को छोड़ दिया जाए तो  औसत जीडीपी दर 7.1% रही,,  जो कि यूपीए के कार्यकाल की जीडीपी से एक प्रतिशत कम रही लेकिन सच ये है कि भारत की अर्थव्यवस्था पर वैश्विक आर्थिक संकट के मुकाबले कोविड महामारी के कहर का असर अधिक था इसलिए ताज्जुब नहीं कि एनडीए सरकार के दौरान एक दशक का जीडीपी औसत कम रहा कोविड ने अर्थव्यवस्था के सामने जो बाधा पैदा की वो बहुत बड़ी थी  इस महामारी ने इस दशक के दौरान कुछ सालों के लिए अर्थव्यवस्था की गति को धीमा कर दिया। 

अब बात करते हैं भारतीय युवाओं की मुख्य आवश्यकता रोजगार की विश्लेषकों का मानना है कि रोजगार देने के मामले में बीजेपी सरकारों का अभी तक का इतिहास बहुत काला रहा,,, सच क्या है / इसकी वास्तविकता जानने के लिए हमने “सेंटर फॉर मॉनेटरी इंडियन इकॉनमी के Prowess IQ ” डेटाबेस का अध्ययन किया और पाया कि यूपीए के कार्यकाल के अंतिम वर्ष जनवरी 2014 में बेरोजगारी दर 5.42 पर्सेंट थी जबकि एनडीए के कार्यकाल के अंतिम वर्ष जनवरी 2024 में बेरोजगारी दर बढ़कर 6.57 % हो गई,

 

देखा जाए तो यह बेरोजगारी दर अब भी लगातार बढ़ती जा रही है, ,,जबकि एनडीए सरकार ने 2019 के अपने घोषणा पत्र में लाखों लोगों को रोजगार देने की बात कही थी सेंटर फ़ॉर मॉनिटरिंग द इंडियन इकोनॉमी (CMIE) के आँकड़ों के अनुसार, 2017-18 में बेरोज़गारी बीते 45 सालों में सबसे अधिक यानी 6.1% पर थी,, प्यू रिसर्च के अनुसार, 2021 की शुरुआत से अब तक 2.5 करोड़ से अधिक लोग अपनी नौकरी गँवा चुके हैं और 7.5 करोड़ लोग ग़रीबी रेखा पर पहुँच चुके हैं, जिनमें 10 करोड़ मध्यम वर्ग का एक तिहाई शामिल है हालाँकि यहाँ एक बात और confusion पैदा करती है की ,गरीबी के आंकड़े विभिन्न माध्यमों से देखा जाए तो कई बार अलग अलग दिखाई देते हैं,, उसका आंकलन इस बात से भी लगाया जा सकता है की भारत में मोदी सरकार के द्वारा 60 करोड़ से ज्यादा  लोगों को मुफ्त राशन दिया जा रहा है खैर, हर साल देश की अर्थव्यवस्था को 2 करोड़ नौकरियाँ चाहिए लेकिन भारत में बीते दशक में हर साल केवल 43 लाख नौकरियाँ ही पैदा हुईं। इन आंकड़ों को देखकर पता चलता है कि वर्तमान मोदी सरकार पूर्व की मनमोहन सरकार से रोजगार देने के मामले में काफी पीछे रही। 

अब बात देश की अर्थव्यवस्था के मुख्य आधार निर्यात की- 

कहते हैं जिस देश में निर्यात अधिक और आयात कम होते हैं वहां की अर्थव्यवस्था संपन्न अर्थव्यवस्था मानी जाती है,  चलो देखते हैं यूपीए और एनडीए के कार्यकालों में किसके समय निर्यात अधिक रहा,, “प्रेस इनफार्मेशन ब्यूरो के अनुसार” जहां 2004 में भारत से निर्यात 80 अरब डॉलर का होता था वह 10 सालों में  साढ़े तीन गुना बढ़कर 2014 तक 300 अरब डॉलर का हो गया,,, फिर 2014 में एनडीए का कार्यकाल आया और उसके 10 सालों के दौरान निर्यात  300 अरब डॉलर से से बढ़कर 437 अरब डालर तक ही पहुंच  पाया यानी निर्यात में मात्र डेढ़ गुना की वृद्धि हुई अर्थात यूपीए के समय के आधे, ये दोनों ही कई कारकों की वजह से हैं, जैसे भूमि अधिग्रहण और फैक्ट्रियों के लिए पर्यावरण की मंजूरी मिलने में मुश्किलें. साथ ही एक सच्चाई ये भी है कि भारत उस तरह वैश्विक व्यापार से नहीं जुड़ा है जैसा उसे होना चाहिए। लंबे समय से ये कारक देश के मैन्युफ़ैक्चरिंग और निर्यात वृद्धि को कम रखने का कारण रहे हैं देखा जाए तो यूपीए की तुलना में एनडीए इस मोर्चे पर भी असफल रही। 

अब बात करते हैं अर्थव्यवस्था की रीढ़ देश के नागरिकों की,, किसी देश के समृद्ध नागरिक वहां के लिए संसाधन माने जाते हैं संयुक्त राष्ट्र का अभिकरण यूएनडीपी विभिन्न देशों के लिए मानव विकास सूचकांक जारी करता है. यह सूचकांक किसी देश के नागरिकों के स्वास्थ्य , शिक्षा तथा जीवन स्तर पर आधारित होता है इस सूचकांक में देशो को रैंक दी जाती है  यूएनडीपी के मानव विकास सूचकांक में जहां 2004 में भारत विश्व के 191 देश में 131 वे  स्थान पर था,, वही आज 20 साल गुजरने पर भी हम एक स्थान नीचे गिरकर 2023 में 132 में स्थान पर आ गए है  जो कि देश के लिए बहुत ही चिंताजनक है।  इस पर आरबीआई के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन ने अपनी चिंता व्यक्त करते हुए कहा था  ” कि फिजिकल कैपिटल बनाने में बहुत ध्यान दिया जा रहा है लेकिन ह्यूमन कैपिटल बनाने में और शिक्षा स्वास्थ्य जैसे क्षेत्रों में सुधार पर अधिक ध्यान नहीं दिया जा रहा है” उन्होंने कहा कि सच्चाई ये है कि भारत में कुपोषण अफ़्रीकी देशों के कुछ हिस्सों से भी अधिक था यह ऐसे देश के लिए  ‘अस्वीकार्य’ है जिसकी विकास दर दुनिया के अधिकांश हिस्से को पीछे छोड़ रही है। 

2004 से 2013 के बीच भारत के एचडीआई मूल्य में 15 फीसदी का सुधार-
 

मानव विकास सूचकांक (एचडीआई) के मामले में भी एनडीए का प्रदर्शन यूपीए के मुकाबले बुरा रहा है यह सूचकांक, स्वास्थ्य क्षेत्र में प्रगति, शिक्षा तक पहुंच और व्यक्ति के जीवन स्तर में प्रगति का मानक है 2004 से 2013 के बीच भारत के एचडीआई मूल्य में 15 फीसदी का सुधार हुआ,  हालांकि यूएनडीपी के ताज़ा उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार 2014 और 2021 के बीच इसमें केवल 2 फीसदी का सुधार हुआ. अगर कोविड महामारी के दो सालों को छोड़ भी दिया जाए तो भी 2019 तक एचडीआई में, यूपीए के पांच सालों के 7 फीसदी के मुकाबले केवल 4 फीसदी का सुधार रहा है। 

अब बात पूंजीगत निर्माण को लेकर,,, मोदी  सरकार ने पूर्व की मनमोहन सरकार से सड़क निर्माण जैसे पूंजीगत व्यय पर अधिक ख़र्च किया, बात करें यूपीए सरकार के 10 सालों की तो इस दौरान 10 सालों में सिर्फ 27 हजार किलोमीटर सड़कों का निर्माण हुआ जबकि इस मामले में मोदी सरकार के 10 साल बेहतर साबित हुए,,,मोदी सरकार के 10 सालों में 54 हजार किलोमीटर के राष्ट्रिय राजमार्गो का निर्माण हुआ है. जीडीपी में मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर की बात करें तो एनडीए के शासनकाल में जीडीपी में मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर का जो हिस्सा होता है उसमें कमी आई है विश्व बैंक के आंकड़ों के अनुसार जिन 10 सालों में यूपीए सरकार सत्ता में थी, उन सालों में मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर का औसत 15 से 17 फीसदी के बीच था, वहीं मोदी सरकार के कार्यकाल में ‘मेक इन इंडिया’ जैसी मुहिम और उत्पादन से जुड़ी छूट पर अरबों डॉलर खर्च करने के बावजूद, 2022 के लिए उपलब्ध ताज़ा आंकड़ों के अनुसार मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर का जीडीपी में हिस्सा गिरकर 13 फीसदी आ गया। 

 
NDA vs UPA में आर्थिक प्रदर्शन में कौन आगे है ? 

 केंद्र सरकार द्वारा हाल ही में प्रस्तुत श्वेत पत्र में इस बात पर जोर दिया गया है कि राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) सरकार के कार्यकाल के 10 वर्षों में देश का आर्थिक प्रदर्शन संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (UPA) सरकार के 10 वर्षों  की तुलना में बेहतर रहा है,,,,इसमें कोई दो राय नहीं है कि बीते 10 वर्षों में हालात में उल्लेखनीय सुधार हुआ है लेकिन सरकारी ऋण और आम सरकारी घाटा ऊंचे स्तर पर बना हुआ है,,, राजकोषीय घाटे की बात करें तो 2023-24 में सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के प्रतिशत के रूप में इसका संशोधित अनुमान 5.8 के स्तर पर रहा जबकि 2013-14 में यह 4.4 के स्तर पर था।

ऐसा मोटे तौर पर इसलिए हुआ कि कोविड-19 ने कई तरह की बाधाएं पैदा की थीं। बहरहाल एक तथ्य यह भी है कि UPA सरकार को भी 2008 के वैश्विक वित्तीय संकट से जूझना पड़ा था जिसकी वजह से राजकोषीय घाटे में काफी इजाफा हुआ था। पर सच ये भी है की कोविड-19 महामारी का आर्थिक प्रभाव कहीं अधिक गहरा था केंद्र सरकार का पूंजीगत व्यय 2024-25 में जीडीपी के 3.4 फीसदी के स्तर पर है। इससे न केवल अर्थव्यवस्था को मदद मिलेगी बल्कि सरकार को समय के साथ व्यय को सीमित करने का अवसर भी  मिलेगा। एक बार निजी निवेश के गति पकड़ने के बाद सरकार पूंजीगत व्यय कम कर सकती है और अपनी वित्तीय स्थिति मजबूत करने पर विचार कर सकती है। पूंजीगत व्यय की बात करें तो 2023-24 में यह कुल व्यय का 28 फीसदी था जबकि 2013-14 में यह उसका केवल 16 फीसदी था इस बीच NDA सरकार का राजस्व व्यय UPA की तुलना में धीमी गति से बढ़ा है, राजस्व व्यय में NDA के कार्यकाल में सालाना 9.9 फीसदी की दर से वृद्धि हुई जबकि उससे पहले के 10 वर्षों में यह 14.2 फीसदी की दर से बढ़ा था ।

अब कुछ और मुख्य बिंदु-
पहला मुद्रास्फीति-  जो तब  FY 2004 – FY 2014 के बीच मुद्रास्फीति का  सीएजीआर  8.2% रहा  जबकि वित्त वर्ष 2014 – वित्तीय वर्ष 23 के बीच मुद्रास्फीति का सीएजीआर  5.0% रहा है।
प्रति व्यक्ति सकल घरेलू उत्पाद  यानी GDP Per Capita वित्त वर्ष 2005 से वित्त वर्ष 2014 के बीच तब  :3,889 $   जबकि वित्त वर्ष 2015-वित्त वर्ष 23 के बीच: $6,016 रही।
वित्त वर्ष 2014 के लिए सकल घरेलू उत्पाद के प्रतिशत के रूप में पूंजीगत व्यय तब 1.7% था,जबकि वित्त वर्ष 2024 के लिए सकल घरेलू उत्पाद के प्रतिशत के रूप में पूंजीगत व्यय अब 3.2% है।
प्रत्यक्ष विदेशी निवेश तब $305 बिलियन था जबकि अब $596.5 बिलियन है बहुआयामी गरीबी 2013-14 के अंत तक  तब 29.2% थी, जबकि अब 2023 के अंत तक अनुमानित 11.3% है।
अप्रत्यक्ष कर की दर तब 15%  अब 12.2% तक है,स्टार्ट-अप की संख्या 2014 तक,, तब मात्र 350 थी, जबकि 31 दिसंबर 2023 तक इनकी संख्या अब जबरदस्त तरीके से बढ़ कर  1,17,257 हो गयी है।

मेट्रो रेल वाले शहरों की संख्या 2014 के अंत तक सिर्फ 5 थी,जबकि 2023 के अंत तक यह संख्या 20 हो गयी है, राजमार्ग निर्माण की गति 2013-14 में  तब 12 किलोमीटर प्रतिदिन थी जबकि 2022-23 में गति  28 किलोमीटर प्रतिदिन है. वित्तीय वर्ष 2005 और वित्तीय वर्ष 2014 के बीच देश में रेल दुर्घटनाओं की औसत संख्या 233 थी जो अब वित्त वर्ष 2015 और वित्तीय वर्ष 23 के बीच दुर्घटनाओं की औसत घटकर संख्या 34 हो गयी है,,,2014 तक विद्युतीकृत ब्रॉड-गेज रेल नेटवर्क 21.8 हजार किमी थी जो अब 60.8 हजार किमी है,,,हवाई अड्डों की संख्या 2014 के अंत तक 74 थी जबकि 2024 तक ये संख्या 149 है. कुल स्थापित बिजली क्षमता मार्च 2014 तक 249 गीगा वाट थी, जो अब  दिसंबर 2023 तक  429 गीगावाट है ।

ये कुछ ऐसे बिंदु है जिसमें आप दोनों सरकारों के कामकाज का आकलन कर सकते हैं। इस तरह हमने एनडीए और यूपीए के कार्यकाल के 10-10 सालों की आर्थिक नीतियों का विवरण आपके सामने आंकड़ों तथा तथ्यों के साथ रखा है अब आप खुद ही फैसला कीजिये कि किसका कार्यकाल बेहतर रहा, 2004 से 2014 यूपीए का या फिर 2014 से 2024 एनडीए का ?

Uttarakhand Weather: DGRE ने जारी की प्रदेश के कई जिलों में हिमस्खलन की चेतावनी, जानिए आज कैसा रहेगा मौसम.

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Uttarakhand Weather: उत्तराखंड में मौसम का मिजाज बदला रहेगा डीआरडीओ के रक्षा भू-सूचना विज्ञान अनुसंधान प्रतिष्ठान ने प्रदेश के कई जिलों उत्तरकाशी सहित रुद्रप्रयाग, चमोली, पिथौरागढ़ और बागेश्वर में हिमस्खलन की भी चेतावनी दी है। 

 

हालांकि देहरादून में आज हलकी धूप खिली हुई है लेकिन ऊंचाई वाले इलाकों में मौसम विभाग ने आज बर्फ़बारी के आसार बताये हैं, वहीँ मैदानी इलाकों में भी मौसम शुष्क बना रहेगा।  

जानिए आज कहां कैसा रहेगा मौसम-
  • मसूरी, धनोल्टी और कैम्पटी में मौसम साफ, चटक धूप खिली।
  • उत्तरकाशी में मौसम साफ, खिली चटक धूप।
  • बदरीनाथ धाम में बर्फबारी जारी।
  • यमुनोत्री धाम सहित यमुना घाटी में चटख धूप खिली।

Farmers Protest: MSP पर सरकार का प्रस्ताव या ‘खेल’, क्यों नहीं माने किसान ?

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प्रदर्शन कर रहे किसानों और केंद्र सरकार के बीच गतिरोध खत्म नहीं हो रहा. फसलों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य यानी (MSP) पर नरेंद्र मोदी सरकार ने जो प्रस्ताव रखा था,उसे किसानों ने खारिज कर दिया है और कहा कि वो 21 फरवरी की सुबह अपना ‘दिल्ली चलो’  मार्च फिर से शुरू करेंगे. किसान नेताओं का कहना है कि सरकारी प्रस्ताव में स्पष्टता नहीं है और वो उनके हित में भी नहीं है.

किसानों की दो प्रमुख मांगें हैं पहली कि सरकार MSP गारंटी पर कानून बनाए. भले ही सरकार उनकी पूरी फसल न ख़रीदे, पर अगर किसान खुले बाजार में भी अपनी उपज बेचता है, तो उसे न्यूनतम कीमत की गारंटी मिले. क़ानून बन जाने से सरकार, प्राइवेट कंपनियां या पब्लिक सेक्टर एजेंसियां, कोई भी मनमाने दाम पर फसल नहीं खरीद पाएगा.

दूसरी मांग- MSP गारंटी के साथ किसान स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशों को लागू करवाना चाहते हैं,, इसके अलावा किसानों और खेतिहर मजदूरों को पेंशन मिले, बिजली दरों में बढ़ोतरी न हो, किसानों का कर्ज माफ हो, भूमि अधिग्रहण अधिनियम (2013) बहाल किया जाए, लखीमपुर खीरी हिंसा मामले में न्याय मिले 2020-21 में हुए आंदोलन के दौरान मारे गए किसानों के परिवारों को मुआवजा दिया जाए और पुलिस ने जो मामले दर्ज किए थे, वो भी वापस लिए जाएं.

कृषि केंद्रीय मंत्रियों ने रखा सरकार की ओर से ये प्रस्ताव- 

वाणिज्य और उद्योग मंत्री पीयूष गोयल, कृषि व किसान कल्याण मंत्री अर्जुन मुंडा और गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय ने चंडीगढ़ में किसान नेताओं के साथ चौथे दौर की बातचीत की केंद्रीय मंत्रियों के पैनल ने सरकार की ओर से प्रस्ताव रखा. सरकार का कहना है कि मसूर, उड़द, तुअर, मक्का और कपास उगाने वाले किसानों के साथ दो सहकारी एजेंसियां राष्ट्रीय सहकारी उपभोक्ता संघ और  भारतीय राष्ट्रीय कृषि सहकारी विपणन संघ 5 साल का एग्रीमेंट करेंगी और इस एग्रीमेंट के ज़रिए सीधे किसानों से ये फसलें MSP पर खरीदा जाएंगी ख़रीद की मात्रा पर कोई सीमा नहीं होगी, और इसके लिए एक पोर्टल बनाया जाएगा.

इससे पहले, 18 फरवरी की रात केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल ने कहा कि साल 2004 से 2014 के बीच UPA सरकार ने केवल साढ़े 5 लाख करोड़ रुपये की फसलों की ख़रीद MSP पर की थी और मोदी सरकार ने बीते दस सालों में 18 लाख करोड़ रुपये से ज़्यादा की ख़रीद की है बैठक के बाद किसान नेताओं ने कहा था कि वो अपने संगठन के साथ सरकार के प्रस्ताव पर चर्चा करेंगे और दो दिनों में आगे की रणनीति तय करेंगे.

केंद्रीय मंत्री ने तो दावा कर दिया. मगर किसान इससे खुश नहीं हैं. उनका सीधा कहना है कि केवल पांच नहीं, सभी 23 फसलों पर MSP की गारंटी चाहिए किसान मजदूर मोर्चा के नेता सरवन सिंह ने शंभू सीमा पर मीडिया से कहा, कि हम सरकार से अपील करते हैं कि या तो हमारे मुद्दों का समाधान करें या बैरिकेड हटा दें और हमें शांतिपूर्वक विरोध करने के लिए दिल्ली जाने की अनुमति दें.

क्या कहते हैं इस पर विशेषज्ञ-
 

अब सवाल ये है कि आगे का रास्ता क्या हो सकता है विशेषज्ञ मानते हैं अब इसके दो तरीके हैं. पहला कि खरीदारों को MSP पर फसल खरीदने के लिए फोर्स किया जाए मसलन, क़ानून कहता है कि गन्ना उत्पादकों को चीनी मिलों की तरफ से खरीद के 14 दिनों के अंदर ‘उचित और लाभकारी’ या राज्य-सलाहित मूल्य मिलेगा लेकिन ये व्यावहारिक नजरिए से मुश्किल है हो सकता है MSP देने के ‘डर’ से फसल खरीदी ही न जाए दूसरा तरीका ये है कि सरकार ही किसानों की पूरी फसल MSP पर खरीद ले  मगर ये भी वित्तीय लिहाज़ से टिकाऊ प्लान नहीं है.

इन दोनों तरीकों के अलावा कृषि विशेषज्ञ एक तीसरे तरक़े की ओर इशारा करते हैं मूल्य कमी भुगतान यानी PDP इसमें सरकार को किसी भी फसल को खरीदने या स्टॉक करने की ज़रूरत नहीं है बस अगर बाजार मूल्य और MSP कम है, तो सरकार सुनिश्चित कर दे कि किसानों को इन दोनों के बीच का अंतर मिल जाए मगर राष्ट्र के स्तर पर इसे लागू करने के लिए बहुत सोचा-समझा एक  प्लान चाहिए. अब सरकार और किसानों के अगले रुख पर अब सबकी नजरें टिकी हुई हैं.

ये हैं किसानों की प्रमुख मांगें
  • स्वामीनाथन रिपोर्ट के अनुसार सभी फसलों की एमएसपी की कानूनी गारंटी की मांग
  • किसानों और खेत मजदूरों की कर्ज माफी की मांग
  • लखीमपुर खीरी में जान गंवाने वाले किसानों को इंसाफ और आशीष मिश्रा की जमानत रद्द कर सभी दोषियों को सजा की मांग
  • लखीमपुर खीरी कांड में घायल सभी किसानों को वादे के मुताबिक 10 लाख रुपये मुआवजे की मांग
  • किसान आंदोलन के दौरान दर्ज केस रद्द करने की मांग
  • पिछले आंदोलन में जान गंवाने वाले किसानों के आश्रितों को नौकरी
  • 200 दिन मनरेगा की दिहाड़ी मिले
  • 700 रुपये प्रतिदिन मजदूरी की मांग
  • फसल बीमा सरकार खुद करे
  • किसान और मजदूर को 60 साल होने पर 10 हजार रुपये महीना मिले
  • विश्व व्यापार संगठन से खेती को बाहर किया जाए

रक्षा मंत्रालय ने 29 हजार करोड़ के सौदों को दी मंजूरी, सर्विलांस एयरक्राफ्ट खरीदेगी नौसेना.

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रक्षा मंत्रालय ने भारतीय नौसेना के लिए नौ मेरीटाइम सर्विलांस एयरक्राफ्ट और भारतीय तटरक्षक बल के लिए छह पेट्रोल एयरक्राफ्ट खरीदने के सौदे को मंजूरी दे दी है। इस सौदे के तहत 15 मेरिटाइम पेट्रोल एयरक्राफ्ट मेड इन इंडिया प्रोजेक्ट के तहत देश में ही बनाए जाएंगे। साथ ही सी-295 ट्रांसपोर्ट एयरक्राफ्ट भी बनाए जाएंगे। यह सौदा कुल 29 हजार करोड़ रुपये का होगा।

 

नौसेना की सर्विलांस क्षमताओं में होगा इजाफा-

बुधवार को रक्षा मंत्रालय ने कानपुर स्थित एक कंपनी से 1752.13 करोड़ रुपये के सौदे का भी करार किया है। इस सौदे के तहत 463, 12.7 एमएम की रिमोट कंट्रोल गन का निर्माण किया जाएगा। ये गन भी नौसेना और तटरक्षक बल के जवानों को मिलेंगी। रक्षा मंत्रालय के इन सौदों से ना सिर्फ भारत की समुद्री ताकत में इजाफा होगा बल्कि इससे आत्मनिर्भर भारत को भी बढ़ावा मिलेगा। सौदे के तहत टाटा एडवांस्ड सिस्टम और एयरबस मिलकर एयरक्राफ्ट का निर्माण करेंगे। इन एयरक्राफ्ट्स में आधुनिक रडार और सेंसर्स लगे होंगे। इस सौदे के पूरे होने के बाद नौसेना और भारतीय तटरक्षक बल की सर्विलांस की क्षमताओं में जबरदस्त इजाफा होगा। चीन जिस तरह से हिंद महासागर में अपनी ताकत बढ़ा रहा है और साथ ही अंतरराष्ट्रीय शिपिंग रूट पर हमले बढ़ रहे हैं।

चीन की बढ़ती चुनौती से निपटने में अहम साबित होगा ये सौदा-

चीन के हिंद महासागर में बढ़ते दखल और अंतरराष्ट्रीय शिपिंग रूट पर बढ़ते हमलों की चुनौती से निपटने के लिए भारतीय नौसेना लगातार अपनी क्षमताओं में इजाफा कर रही है। अब इस सौदे से नौसेना की तैयारियों में तेजी आने की उम्मीद है। भारतीय वायुसेना को मिला पहला सी-295 ट्रांसपोर्ट एयरक्राफ्ट स्पेन में बना था। सौदे के तहत 16 एयरक्राफ्ट स्पेन से बनकर आएंगे और बाकी के 40 एयरक्राफ्ट गुजरात के वडोदरा में टाटा द्वारा बनाए जाएंगे।   

 

कांग्रेस के खातों पर लगे प्रतिबंध के खिलाफ IT ट्रिब्यूनल पहुंची कांग्रेस, मिली राहत; आयकर विभाग ने किए थे फ्रीज.

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कांग्रेस को आयकर विभाग की तरफ से खातों पर लगाए प्रतिबंधों के मामले में ट्रिब्यूनल की तरफ से बड़ी राहत मिली है। पार्टी के नेता विवेक तन्खा ने बताया है कि इनकम टैक्स अपीलेट ट्रिब्यूनल ने कांग्रेस को अंतरिम राहत देते हुए उसे खातों को चलाने की छूट दी है। ट्रिब्यूनल इस मामले में अंतरिम राहत के लिए बुधवार को सुनवाई करेगा।

गौरतलब है कि इससे पहले पार्टी के प्रवक्ता अजय माकन ने शुक्रवार को ही प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा कि आयकर विभाग ने 2018-19 के आयकर रिटर्न के आधार पर कांग्रेस और यूथ कांग्रेस के खातों को फ्रीज कर दिया है। उन्होंने कहा कि आयकर विभाग ने इन दोनों खातों से 210 करोड़ रुपये की रिकवरी का भी आदेश दिया है। उन्होंने कहा कि हमारे अकाउंट में जो भी क्राउडफंडिंग से जुटाई गई राशि है, उसे हमारी पहुंच से दूर कर दिया गया है
माकन ने कहा कि चुनाव के एलान से महज दो हफ्ते पहले ही विपक्षी पार्टी का अकाउंट फ्रीज कर दिया गया। यह लोकतंत्र को फ्रीज करने जैसा है। माकन ने बताया कि इस खाते में एक महीने की सैलरी भी दी है। हमने आयकर विभाग को उन दानकर्ताओं के नाम भी दिए हैं।

माकन ने कहा, “हमें एक दिन पहले ही जानकारी मिली थी कि बैंकों को हम जो चेक भेज रहे थे, उनका निपटारा नहीं हो पा रहा था। जांच पर पता चला कि यूथ कांग्रेस का बैंक अकाउंट फ्रीज कर दिया गया है। इसके साथ ही कांग्रेस पार्टी के खाते भी बंद होने की बात सामने आई। कुल चार अकाउंट फ्रीज किए गए हैं। आयकर विभाग की तरफ से बैंकों को यह निर्देश दिया गया है कि हमारे कोई भी चेक स्वीकार न करें और हमारे खातों में जो भी राशि है उसे रिकवरी के लिए रखा जाए।”

भाजपा पर लगाए आरोप-
माकन ने कहा कि कांग्रेस ने इस मामले को लेकर आयकर अपीलीय अधिकरण का रुख किया है। उन्होंने उम्मीद जताई कि न्यायपालिका लोकतंत्र की रक्षा करेगी। कांग्रेस नेता ने भाजपा पर आरोप लगाते हुए कहा कि क्या वे यही चाहते हैं कि देश में सिर्फ एक ही पार्टी रहे। उन्होंने कहा कि अगर किसी के खाते सील होने चाहिए तो भारतीय जनता पार्टी के होने चाहिए क्योंकि उन्होंने ‘असंवैधानिक’ चुनावी बॉन्ड के जरिए कॉर्पोरेट जगत से पैसे लिए हैं।

‘हमारे पास बिजली का बिल भरने के पैसे भी नहीं’-
कांग्रेस के ट्रेजरर माकन ने कहा कि अभी कांग्रेस के पास खर्च करने के लिए पैसे तक नहीं हैं। उन्होंने कहा कि हमारे पास बिजली के बिल देने के लिए, अपने कर्मचारियों को सैलरी देने के लिए तक राशि नहीं बची है। उन्होंने कहा कि इससे हर चीज पर प्रभाव पड़ेगा। न सिर्फ न्याय यात्रा, बल्कि सभी तरह की राजनीतिक गतिविधियां प्रभावित होंगी।

Uttarakhand Cabinet: आबकारी नीति को मिली मंजूरी, पढ़िए धामी मंत्रिमंडल के ये अहम फैसले।

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मंत्रिमंडल की बैठक आज विधानसभा में सीएम पुष्कर सिंह धामी की अध्यक्षता में हुई। बैठक में कई अहम फैसलों पर मुहर लगाई गई। बैठक में फैसला लिया गया कि विधानसभा का सत्र अब देहरादून में ही होगा। तिथियों पर निर्णय लेने का अधिकार अब मुख्यमंत्री को दिया गया है। ग्रीष्मकालीन सत्र गैरसैण में होगा। वहीं आबकारी नीति को मंजूरी मिल गई है। 4000 करोड़ के लक्ष्य को 4400 करोड़ किया गया है।

इन फैसलों पर लगी मुहर-

  1. -एनएच की जमीन एयरपोर्ट में आएगी। 103 एकड़ भूमि दी जाएगी। एनएच ने मांगा है। अनुमोदन कैबिनेट ने दिया।
  2. -आईटीआई में दाखिले लेने वालों को यूनिफॉर्म मिलेगी। शिक्षा विभाग की तरह खाते में पैसा जाएगा।
  3. -दृष्टि पत्र 2022 के तहत राज्य के मेधावी छात्र, जो टॉप 50 यूनिवर्सिटी में एडमिशन पाएंगे, उन्हें 50 हजार मिलेंगे। एनआईआरएफ के टॉप 50 संस्थान में 100 छात्रों को एडमिशन।
  4. -पंतनगर हवाई पट्टी के रनवे को 3000 मीटर तक विस्तारित किया गया था। राष्ट्रीय राजमार्ग की 7 किमी लंबी का दोबारा सर्वेक्षण किया जाना है।
  5. -चिकित्सा स्वास्थ्य : एक्सरे टेक्नीशियन संवर्ग के ढांचे में संशोधन। पदोन्नति मिल सकेगी।
  6. -सेतु के संगठनात्मक ढांचे में आंशिक संशोधन। पदों की योग्यता और भर्ती खुले बाजार से भी।
  7. -चिकित्सा प्रतिपूर्ति के दावों के लिए व्यवस्था। गोल्डन कार्ड से अलग होने वालों को प्रतिपूर्ति मिलेगी।
  8. -भाषा संस्थान में 21 नए पद सृजित।

ये फैसले भी लिए गए हैं- 

– अल्मोड़ा में योगदा आश्रम सोसाइटी ऑफ इंडिया द्वाराहाट को तीन हेक्टेयर वन भूमि 30 साल की लीज पर। यहां से पास होकर केंद्र को जाएगा।
-आरसीएस योजना, उड़ान के तहत पिथौरागढ़ की हवाई सेवा शुरू हुई, उसी तरह उत्तराखंड एयर कनेक्टिविटी स्कीम यूएसीएस लाई गई। किसी भी शहर या दूसरे राज्य के शहर से हवाई कनेक्टिविटी आसान होगी।
-एक समिति बनेगी, जो किराए व कनेक्टिविटी पर फैसला लेगी। पीएसयू को सीधे काम मिलेगी। इसके अलावा अन्य एजेंसी पायलट प्रोजेक्ट के तहत 12 माह के लिए मौका दे सकते हैं। कैबिनेट की सैद्धान्तिक योजना।
-आठ राजकीय आयुष चिकित्सालय में 82 पदों का सृजन

Uttarakhand: भाजपा में टिकट दावेदारों की है लंबी कतार, कई युवा भी हैं चुनाव में ताल ठोकने को बेताब

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लोकसभा चुनाव के टिकट के लिए  भाजपा में टिकट के दावेदारों की लंबी लाइन लगी हुई है। दिग्गज नेताओं से लेकर पार्टी के युवा तक सभी चुनाव में ताल ठोकने को बेताब हैं। जब से भाजपा के हलकों में कुछ सीटों पर प्रत्याशी बदलने की अटकलों ने जोर पकड़ा है, तभी से उनकी कोशिशें तेज हो रही हैं।

जैसे-जैसे लोकसभा चुनावों का समय नजदीक आ रहा है वैसे-वैसे टिकट की दावेदारी पूरी तरह से खुलकर सामने आने लगेगी। चर्चाएं ये भी हैं कि भाजपा केंद्रीय नेतृत्व लोकसभा चुनाव में प्रत्याशी चयन के मामले में भी पार्टी को एक बड़ा सरप्राइज कर सकता है। वर्तमान में राज्य की सभी पांचों लोकसभा सीटों पर भाजपा का कब्जा है। 2014 और 2019 लोक सभा चुनावों में भाजपा ने पांचों सीटों पर लगातार जीत दर्ज की है ।

अल्मोड़ा-पिथौरागढ़, टिहरी गढ़वाल और हरिद्वार लोकसभा सीट पर भाजपा ने अपने तीनों प्रत्याशियों को  रिपीट किया था। टिहरी गढ़वाल संसदीय सीट पर माला राज्य लक्ष्मी शाह, हरिद्वार में डॉ. रमेश पोखरियाल निशंक और अल्मोड़ा-पिथौरागढ़ लोस सीट पर अजय टम्टा सांसद हैं। 2014 में गढ़वाल लोस सीट पर मेजर जनरल बीसी खंडूरी  सांसद थे।

प्रत्याशियों में हो सकता है फेरबदल-


2019 में पार्टी ने खंडूड़ी के शिष्य तीरथ सिंह रावत को टिकट दिया और वह चुनाव जीते। नैनीताल-ऊधमसिंह नगर में 2014 में भगत सिंह कोश्यारी सांसद चुने गए थे। 2019 में उनकी इस सीट पर अजय भट्ट को उम्मीदवार बनाया गया, वह भी चुनाव जीते। अब भाजपा के राजनीतिक हलकों में यह कयास हैं कि पार्टी नेतृत्व प्रत्याशी चयन को लेकर चौंका सकता है।

ऐसे में पार्टी में यह सवाल गरमा रहा कि पार्टी नेतृत्व पांचों सीटों पर प्रत्याशी रिपीट करेगा या सभी को बदलेगा, या कुछ सीटों पर नए चेहरों को मैदान में उतारेगा। पांच में से तीन लोस सीटों पर वर्तमान सांसदों का टिकट काटे जाने की ज्यादा चर्चाएं हैं। इन चर्चाओं ने पार्टी के उन चेहरों के उम्मीदों को पंख लगाते हैं जो लोस चुनाव की दावेदारी कर रहे हैं। इनमें पार्टी के कुछ विधायक, पूर्व मुख्यमंत्री, पूर्व सांसद व पार्टी पदाधिकारी, युवा और महिला मोर्चा के पदाधिकारी भी शामिल हैं। टिहरी, अल्मोड़ा और हरिद्वार सीटों से तो प्रदेश संगठन को टिकट के लिए आवेदन तक मिल चुके हैं।
लोकसभा चुनाव में भाजपा जीत की हैट्रिक लगाएगी। पार्टी में उम्मीदवारों का निर्णय केंद्रीय संसदीय बोर्ड करता है। यह बात सही है कि कुछ कार्यकर्ताओं ने विभिन्न सीटों पर टिकट की दावेदारी के आवेदन दिए हैं। महेंद्र भट्ट, प्रदेश अध्यक्ष- भाजपा