उत्तराखंड की सियासत इन दिनों एक अनोखे ‘प्रेम प्रसंग’ को लेकर गर्म है, जिसमें अभिनय, सियासत, महिला सम्मान और नैतिकता के तमाम आयाम एक साथ उलझे हुए हैं। चर्चित भाजपा नेता और हरिद्वार जिले के ज्वालापुर से पूर्व विधायक सुरेश राठौर हाल ही में उर्मिला सनावर (फिल्म अभिनेत्री) के साथ मंच साझा करते हुए उसे “अपने जीवन की साथी” बता बैठे। कैमरे और माइक के सामने रिश्तों का यह सार्वजनिक ऐलान कुछ ही घंटों में सोशल मीडिया पर वायरल हो गया।
लेकिन हंगामा बढ़ते ही राठौर पलट गए। सफाई दी कि “यह तो बस एक फिल्म का सीन था”। इस सफाई ने आग में घी डालने का काम किया। सवाल उठने लगे कि क्या अब भाजपा नेताओं की सार्वजनिक घोषणाएं भी किसी स्क्रिप्ट का हिस्सा हैं? और अगर यह अभिनय था तो मंच, माला और सार्वजनिक संवाद किसलिए?
प्रकरण गरमाया तो भाजपा ने भी पैंतरा बदला। पहले चुप्पी साधे रही, फिर जनदबाव बढ़ने पर राठौर को पार्टी की छवि धूमिल करने और अनुशासनहीनता के आरोप में नोटिस थमा दिया गया। राठौर ने प्रदेश अध्यक्ष महेंद्र भट्ट से भेंट कर अपना पक्ष रखा है, जिस पर पार्टी विचार कर रही है।
लेकिन इस पूरे घटनाक्रम ने कांग्रेस को हमलावर होने का मौका दे दिया।
पार्टी की मुख्य प्रवक्ता गरिमा मेहरा दसौनी ने भाजपा पर हमला बोलते हुए कहा, “नाटक, झूठ और पाखंड की शैली से जनता को भ्रमित नहीं किया जा सकता।” उन्होंने तंज कसते हुए पूछा, “तू इधर-उधर की बात न कर, ये बता कारवां लुटा कैसे?”
गरिमा ने भाजपा से पूछा कि क्या यह पहला मामला है जब पार्टी के नेता महिलाओं से जुड़े विवादों में फंसे हों? क्या हर बार कार्रवाई तब होती है जब जनता का गुस्सा उबाल पर आ जाता है? और क्या UCC जैसे कानूनों का हवाला सिर्फ जनता को उलझाने के लिए दिया जाता है?
भाजपा की ओर से प्रदेश मीडिया प्रभारी मनवीर चौहान ने स्पष्ट किया कि पार्टी किसी भी प्रकार के अमर्यादित आचरण को स्वीकार नहीं करती। उन्होंने बताया कि अनुशासन समिति में राठौर के मामले पर गंभीरता से विचार किया जाएगा।
सियासत और व्यक्तिगत जीवन की यह जटिल गाथा एक ओर राजनीति के चरित्र पर सवाल खड़े कर रही है, तो दूसरी ओर दर्शा रही है कि अब जनता केवल भाषणों से नहीं, आचरण से भी जवाब मांगती है।
उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने राज्य में त्रिस्तरीय पंचायत चुनावों पर लगी अंतरिम रोक को फिलहाल बरकरार रखा है। राज्य सरकार की ओर से आज मुख्य न्यायाधीश की खंडपीठ के समक्ष स्टे वेकेशन (रोक हटाने) का अनुरोध किया गया, जिसे खंडपीठ ने बुधवार दोपहर सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया है।
गौरतलब है कि राज्य निर्वाचन आयुक्त ने 21 जून को प्रदेश के 12 जिलों में त्रिस्तरीय पंचायत चुनावों का कार्यक्रम जारी कर चुके हैं। लेकिन बीते सोमवार को हाईकोर्ट ने पंचायत आरक्षण के मुद्दे को लेकर चुनावों पर रोक लगा दी। इससे सरकार को बैकफुट पर आना पड़ा। इस मसले पर नौकरशाही की ढिलाई भी सामने आ रही है।
इधऱ, मामले में अब तक दायर की गई सभी याचिकाओं को एक साथ क्लब कर बुधवार को सुनवाई की जाएगी। हाईकोर्ट ने सरकार को सुनवाई में अपना पक्ष स्पष्ट करने के निर्देश दिए हैं।
गौरतलब है कि पिछले सप्ताह कोर्ट ने पंचायत चुनावों में आरक्षण प्रक्रिया को लेकर दायर याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए चुनावी प्रक्रिया पर अंतरिम रोक लगा दी थी। याचिकाओं में आरोप लगाया गया था कि सरकार ने आरक्षण रोस्टर और अधिसूचना प्रक्रिया में नियमों की अनदेखी की है, जिससे संवैधानिक प्रक्रिया पर प्रश्नचिन्ह लग गया है।
अब बुधवार की सुनवाई से यह तय होगा कि क्या अदालत पंचायत चुनावों पर लगी रोक हटाती है या मामले में कोई अंतरिम व्यवस्था जारी रखती है।
बहरहाल, प्रत्याशी 25 जून से भरे जाने वाले नामांकन की तैयारी कर रहे थे। अब भारी असमंजस का मंजर देखने को मिल रहा है।
उत्तराखंड में प्रस्तावित त्रिस्तरीय पंचायत चुनावों पर नैनीताल हाईकोर्ट ने फिलहाल रोक लगा दी है। यह रोक आरक्षण व्यवस्था को लेकर राज्य सरकार द्वारा स्थिति स्पष्ट न कर पाने के चलते लगाई गई है। कोर्ट ने साफ कहा कि जब तक पंचायत चुनावों में आरक्षण की स्थिति स्पष्ट नहीं होती, तब तक चुनाव प्रक्रिया को आगे नहीं बढ़ाया जा सकता।
सोमवार को मामले की सुनवाई के दौरान कोर्ट ने पाया कि राज्य सरकार पंचायत चुनावों में आरक्षण को लेकर न तो स्पष्ट नीति प्रस्तुत कर सकी और न ही न्यायालय को भरोसेमंद विवरण दे सकी। इस पर कोर्ट ने गहरी नाराजगी जताते हुए सरकार को निर्देश दिए कि वह जल्द से जल्द आरक्षण संबंधी नीति स्पष्ट करे।
राज्य निर्वाचन आयोग ने हाल ही में पंचायत चुनावों की तैयारी शुरू कर दी थी और 12 जिलों में पंचायत चुनाव कार्यक्रम की घोषणा कर दी थी, लेकिन अब हाईकोर्ट के आदेश के बाद यह प्रक्रिया रोक दी गई है।
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यह फैसला राज्य की सियासत और पंचायत स्तर पर प्रतिनिधित्व के समीकरणों को प्रभावित कर सकता है। विपक्ष पहले से ही सरकार पर पंचायतों में आरक्षण को लेकर मनमानी और अनियमितता के आरोप लगा रहा था, जिसे अब न्यायालय की टिप्पणी से बल मिल सकता है।
अब सबकी निगाहें सरकार की अगली रणनीति और अदालत में उसकी प्रस्तुति पर टिकी हैं।
इस बार उत्तराखंड के पंचायत चुनाव में 4.56 लाख नए मतदाता शामिल होंगे। वर्ष 2019 के चुनाव के मुकाबले मतदाताओं की संख्या में 10.57 प्रतिशत का इजाफा दर्ज किया गया है। निर्वाचन आयोग चुनाव में 67 पर्यवेक्षक भी तैनात करेगा।इस बार चुनाव में 67 प्रेक्षकों को तैनात किया जाएगा। इनमें 55 सामान्य प्रेक्षक और 12 आरक्षित प्रेक्षक शामिल हैं। राज्य निर्वाचन आयुक्त सुशील कुमार ने बताया कि जिला स्तर पर तीन प्रवर्तन टीमें गठित की जाएंगी। इनमें एक टीम जिला प्रशासन, दूसरी पुलिस विभाग और तीसरी टीम आबकारी विभाग की होगी। ये चुनाव के दौरान अवैध मदिरा, मादक पदार्थ, नकदी एवं अन्य प्रलोभन को जब्त करेगी और कार्रवाई करेगी।
व्यय की निगरानी के लिए जिला स्तर पर अधिकारी
चुनाव खर्च के लिए राज्य निर्वाचन आयोग ने अलग से व्यय प्रेक्षक तो तैनात नहीं किए लेकिन खर्च की निगरानी के लिए जिलास्तर पर अधिकारी नामित किए जाएंगे। यह पंचायत चुनाव में खर्च पर प्रशासनिक टीम की मदद से निगाह रखेंगे और समय-समय पर प्रत्याशियों से खर्च मिलान भी करा सकते हैं।
प्रधान, बीडीसी, जिला पंचायत सदस्य की खर्च सीमा बढ़ी
पिछले चुनाव के मुकाबले इस बार प्रधान, बीडीसी और जिला पंचायत सदस्य के खर्च की सीमा बढ़ाई गई है। इस बार पंचायत चुनाव में सदस्य ग्राम पंचायत के लिए 10,000 रुपये की सीमा रहेगी। प्रधान के लिए खर्च की सीमा 50,000 से बढ़ाकर 75,000 रुपये, सदस्य क्षेत्र पंचायत के खर्च की सीमा 50,000 से बढ़ाकर 75,000 रुपये और सदस्य जिला पंचायत के खर्च की सीमा 1,40,000 से बढ़ाकर 2,00,000 रुपये की गई है।
प्रदेश की 670 बहुउद्देश्यीय सहकारी समितियों के कामकाज का अब विभागीय स्तर पर ऑडिट होगा। इसके लिए प्रदेश मंत्रिमंडल ने विभाग में उप निबंधक (ऑडिट) की तैनाती के लिए एक नया निसंवर्गीय पद सृजित करने को मंजूरी दे दी है। यह पांच साल के लिए निसंवर्गीय पद होगा और प्रतिनियुक्ति से भरा जाएगा।
मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी की अध्यक्षता में हुई बैठक में चार महत्वपूर्ण फैसले हुए। सूचना महानिदेशक बंशीधर तिवारी ने कैबिनेट के फैसलों की जानकारी दी। उन्होंने कहा कि कैबिनेट ने पशुपालन व्यवसाय से आजीविका बढ़ाने के लिए पशुपालन विभाग और दुग्ध विकास विभाग की योजनाओं का एकीकरण के प्रस्ताव को मंजूरी दी है।
पशुपालन विभाग में अनुसूचित जाति व अनुसूचित जनजाति वर्ग के लिए संचालित हो रही योजना में दुधारू गाय खरीदने के लिए 90 प्रतिशत तक अनुदान का प्रावधान है। दूसरी गंगा गाय योजना दुग्ध विकास विभाग संचालित कर रहा है। इस योजना में अनुसूचित जाति व अनुसूचित जाति वर्ग व महिला के लिए 75 प्रतिशत और सामान्य वर्ग के लिए 50 प्रतिशत अनुदान की व्यवस्था है।
इन दोनों योजनाओं के एकीकरण से ज्यादा पात्र लोग लाभान्वित हो सकेंगे। इस योजना में सभी वर्गों के लोगों को दुधारू गाय पालने के लिए अनुदान मिलेगा। अनुदान की दरें विभाग जल्द तय करेगा और जिसे अगली कैबिनेट बैठक में मंजूरी दी जाएगी। इसके अलावा कैबिनेट ने पशुपालन विभाग के तहत पशुधन प्रसार अधिकारियों के चयन के बाद उनके प्रशिक्षण की अवधि को घटाकर एक वर्ष करने को मंजूरी दी। विभाग में 429 पद रिक्त हैं। प्रशिक्षण की अवधि कम होने से विभाग को पशुधन प्रसार अधिकारियों की उपलब्धता सुनिश्चित हो सकेगी।
बदरीनाथ में दीवारों पर बनेंगी कलाकृतियां
बदरीनाथ में अंतरराज्यीय बस अड्डे की दीवारों पर धार्मिक, सांस्कृतिक और लोक कला से संबंधित कलाकृतियां बनाई जाएंगी। प्रदेश मंत्रिमंडल ने इस प्रस्ताव को मंजूरी दी।
चारधाम यात्रा, हेली सेवाएं और मानसून की तैयारी पर भी हुई चर्चा
डीजी सूचना के मुताबिक, कैबिनेट ने चारधाम यात्रा की अब तक प्रगति पर चर्चा की। बैठक में बताया गया कि यात्रा अच्छी चल रही है। चारधाम हेली सेवाओं को लेकर कैबिनेट ने मानकों का कड़ाई से पालन कराने पर जोर दिया। मानसून की तैयारियों को लेकर कैबिनेट मंत्रियों से चर्चा की।
राहुल गांधी के रेस, बारात और लंगड़े घोड़े के बाबत दिए गए ताजा बयान के ठीक बाद उत्तराखण्ड कांग्रेस के नेता दिल्ली में जुटे ,,जहां उत्तराखंड के सभी बड़े नेता मौजूद रहे,,,इस बैठक में उत्तराखण्ड कांग्रेस का कायाकल्प को लेकर मंथन हुआ ,,,सवाल यही है कि बैठक तो हो गयी पर क्या कुछ बड़ा भी होगा या फिर ये बैठक बैठक का खेल युहीं चलता रहेगा ,,वैसे ,राहुल गांधी के लंगड़े घोड़ों को किनारे बैठाने सम्बन्धी बयान के बाद उत्तराखण्ड कांग्रेस में हलचल मची है।
राहुल गांधी के बयान और दिल्ली बैठक के बाद अब प्रदेश संगठन के विस्तार या बदलाव की सम्भावना बनने लगी है ,, इसको देखते हुए कुछ नेताओं की जिम्मेदारी बढ़ेगी और कुछ का साइज घटेगा और कुछ की छुट्टी की जा सकती है। अगर ऐसा सही मायने में हुआ तो उत्तराखंड कांग्रेस नये कलेवर में दिखेगी,,जानकारी के मुताबिक कांग्रेस नेतृत्व ने तीनों प्रकार के नेताओं के चिह्नीकरण का काम शुरू कर दिया है,,, मतलब साफ़ है,,,दिल्ली बैठक के बाद लंगड़े घोड़े अस्तबल में बंधेंगे,,,,और रेस के घोड़ों को आगे किया जायेगा और उनके पीछे सपोर्ट के लिए बारात के घोड़ों को नयी जगह मिलेगी,,,,कुल मिलाकर उत्तराखंड कांग्रेस का कायाकल्प करने की शुरुआत दिल्ली में बैठा कांग्रेस का आलाकमान कर चुका है,,,,देखना ये है कि अब इसमें वो कौन से घोड़े होंगे जिनको अस्तबल में बाँध दिया जायेगा,,, वो कौन से घोड़े होंगे जो बरात में शामिल किये जायेंगे,,,और सबसे बड़ी बात रेस में दौड़ने वाले घोड़े कौन होंगे,,,ये देखना सबसे महत्वपूर्ण होगा,,,क्योंकि इन्ही रेस के घोड़ों पर कांग्रेस के भविष्य की जिम्मेदारी होगी,,,वैसे जिस तरह से कई राज्यों में कांग्रेस आलकमान युवाओं को आगे कर चुका है ,,,उससे ये संकेत तो साफ़ हैं कि अब कांग्रेस शायद युवा टीम के भरोसे ही आगे की राजनीती करेगी,,,,ऐसे में ये सम्भावना भी बन रही है कि बीजेपी की तरह बुजुर्ग और उम्रदराज लोगों को आराम दिया जायेगा
यहां थोड़ा संछिप्त रूप से इन तीनों घोड़ों पर भी बात कर लेते हैं,,,सबसे पहले, ये घोड़ा गेम क्या है? राहुल गांधी ने गुजरात में कहा था—कांग्रेस में रेस के घोड़े हैं, जो तेज दौड़ सकते हैं; बारात के घोड़े, जो शोभा बढ़ाते हैं; और लंगड़े घोड़े, जो अब रिटायर होने चाहिए,,,लंगड़े घोड़े,,,ये वो नेता हैं, जो अब कांग्रेस के लिए बोझ बन चुके हैं,,,भूपेंद्र सिंह हुड्डा, 77 साल, हरियाणा के पूर्व सीएम। 8 महीने बाद भी सीएलपी नहीं चुन पाए। कमलनाथ और दिग्विजय सिंह, दोनों 78 साल,,,,, मध्य प्रदेश में समय पूरा। पी. चिदंबरम, 79 साल; सलमान खुर्शीद, 72 साल; मधुसूदन मिस्त्री, 80 साल; आनंद शर्मा, 72 साल; अंबिका सोनी, 82 साल; एके एंटनी, 84 साल; मीरा कुमार, 80 साल; पृथ्वीराज चौहान, 79 साल,,,इनमें से कोई हाल में चुनाव नहीं जीता,,,,ये लोग ना चुनाव लड़ सकते हैं, ना जितवा सकते हैं। ऐसा पूर्व के चुनाव नतीजे भी बता रहे हैं ,,,
अब हैं बारात के घोड़े,,,,,ये वो हैं, जो दफ्तरी काम कर सकते हैं, ,,,जैसे कुमारी शैलजा, हरियाणा में सांसद हैं ,,, पर विधानसभा में प्रदर्शन निराशाजनक है ,,, शशि थरूर, 69 साल के हैं , महत्वाकांक्षा बुलंद हैं , पर बीजेपी की वाशिंग मशीन की तरफ निगाहें जमाये प्रतीत हो रहे हैं ,,,, जयराम रमेश,,,,, कम्युनिकेशन डिपार्टमेंट में लगातार फजीहत ,,,, तारिक अनवर,,,,,,74 साल; प्रतिभा सिंह,,,,, मनीष तिवारी,, रणदीप सुरजेवाला,,,,, राजीव शुक्ला,,,,शक्ति सिंह गोहिल,,,इनमें से कईयों का जीत का रिकॉर्ड शून्य,,,, इसलिए डिसीजन मेकिंग में इनको कोई रोल मिले तो मुश्किल कांग्रेस को होगी ही ,, हाँ जैसे क्लास में मॉनिटर होता है वैसे ही इनको प्रदेश का मॉनिटर बनाकर डिसीज़न लेने की
शक्ति खुद कांग्रेस आलाकमान को ही लेनी होगी ,, आखिर सवाल प्रदेश में जीत की पताका फहराने का है ,,
और अंत में हैं रेस के घोड़े,,,,यहाँ कांग्रेस को फ्रेश ब्लड चाहिए,,, युवा, जोशीले चेहरे, जो बीजेपी को टक्कर दे सकें,,,यहां राहुल गाँधी की स्ट्रैटेजी शानदार लगती है,,,, जिला अध्यक्षों को पावर देना, वोट बढ़ाने की जिम्मेदारी, विचारधारा की रक्षा, नई लीडरशिप को बढ़ावा देना —ये गेम चेंजर साबित हो सकते है,,,,लेकिन अगर स्टाफ लॉयल नहीं, अगर लंगड़े और बारात के घोड़े ही टॉप पर रहेंगे, तो ये सारी मेहनत बेकार है,,,,मतलब जिस कायाकल्प का सपना कांग्रेस आलाकमान देख रहा है वो तभी सफल होगा जब लंगड़े घोड़ों को रिटायर किया जाएगा ,,,,, बारात के घोड़ों को दफ्तर भेजा जायेगा और रेस के घोड़ों को मैदान में उतारा जायेगा,,,,पर सवाल यही है कि क्या कांग्रेस आलाकमान ऐसा कर पायेगा ?? ,,,या फिर बड़े नेताओं के दबाव के आगे फिर वही होगा जो होता आया है,,,,क्योंकि कांग्रेस को अगर जमीन पर सूरत बदलनी है तो सख्त निर्णय लेने ही पड़ेंगे,,,,
चलिए घोड़ों के गणित से अब उत्तराखंड की कांग्रेसी सियासत की तरफ रुख कर लेते हैं ,,, क्यूंकि मुद्दा तो
एक तरफ कांग्रेस आलाकमान नए सिरे से पार्टी को एकजुट करने में जुटा हुआ है,,,दूसरी तरफ कांग्रेस में अंदरूनी कलह थम नहीं रही है,,,एक तरफ मयूख महर बगावत का झंडा बुलंद किये हुए हैं,,,तो अब दो पुराने दोस्त और वर्तमान में एक दूसरे के विरोधी खुले मंच पर एक दूसरे पर हमला कर रहे हैं,,। पार्टी के अंदरूनी मतभेद अब खुलकर सामने आ रहे हैं। हाल ही में रणजीत रावत, जो उत्तराखंड कांग्रेस के बड़े नेताओं में शुमार हैं, उन्होंने एक बयान दिया, जिसमें उन्होंने साफ कहा कि प्रेस कॉन्फ्रेंस, सोशल मीडिया पोस्ट, या काफल पार्टी जैसे इवेंट्स से कुछ नहीं होने वाला,,,, असल बदलाव चाहिए, तो सड़क पर उतरकर संघर्ष करना होगा। और इस बयान में उनके निशाने पर थे पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत , जिन्हें वो काफल पार्टी और सोशल मीडिया पर एक्टिव रहने का तंज कस रहे थे। ये वही हरीश रावत हैं जिन्होंने रंजीत रावत की राजनीती को चमकाने में सबसे बड़ी और महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है
खैर रणजीत रावत भले ये कह रहे हैं कि सड़क पर उत्तर कर संघर्ष करना होगा ,,,,जनता के मुद्दों को उठाना होगा,,,,लेकिन खुद वो कब सड़क पर जनता के मुद्दों के लिए उतरते हुए दिखाई दिए ,,,ये बड़ा सवाल है,,हाँ आखिरी बार तब जरूर वो सड़क पर उतरे थे,,जब उनके तथाकथित कार्यलय से जुड़ा मामला सामने आया था ,,,उस कार्यालय को लेकर भी उन पर कब्जा करने का आरोप एक पक्ष ने लगाया था,,,इसके अलावा रणजीत रावत शायद ही कभी जनता के मुद्दे पर पुलिस से इस तरह भिड़ते नजर आये हो,,,हरीश रावत पर निशाना साधते वक्त शायद वो भूल गए कि हरीश रावत उम्र के इस पड़ाव में भी पुरे प्रदेश की यात्रा कर रहे हैं,,,भले इस यात्रा का मकसद उनका वक्तिगत हो सकता है,,, लेकिन इसी यात्रा के दौरान वो पुराने कॉंग्रेस्सिओं को जोड़ने की कोशिश में भी लगे दिखाई दे रहे हैं ,, ,,,जनता के मुद्दों पर भी हरीश रावत इसी यात्रा के दौरान सवाल उठाते दिखाई दिए हैं,,,इसलिए भले पूर्व विधायक रंजीत रावत जनता के मुद्दों पर सड़क पर उतरने की लाख बातें कहें,,,लेकिन खुद जनता के मुद्दों को लेकर वो कितना संघर्ष करते हैं वो जग जाहिर हैं,,, । ,,, रणजीत रावत का इस तरह भरे मंच पर सैकड़ों कार्यकर्ताओं के सामने अपने ही बड़े नेता पर तंज कसना इनके रिश्ते की खटास को दिखा रहा है,,,,साथ ही इसका कार्यकर्ताओं में भी मेसेज गया,,,कि भले आलाकमान कुछ भी कर के लेकिन बड़े नेता आपस में लड़ते रहेंगे,,,2027 से पहले एक बार फिर ये लड़ाई तेज होती दिखाई दे रही है,,, इसी आपसी लड़ाई और गुटबाजी ने पहले 2022 में भी कांग्रेस के हाथ आयी सत्ता को लगभग लात मार कर दूर कर दिया था,,
वैसे रंजीत रावत के इस बयां के जवाब में ,,हरीश रावत ने भी जवाब बड़े अलग अंदाज में दिया,,,हरीश रावत ने कहा, मैं जो भी अभियान चलाता हूं, वह व्यक्तिगत है। इसमें किसी तरह की राजनीति नहीं है। काफल व पहाड़ी ककड़ी हमारी जड़ें हैं। इन्हें बढ़ावा देने के लिए हमेशा आगे रहता हूं और आने वाले समय में भी मरते दम तक आगे रहूंगा,,, जिन लोगों को इस पर कोई आपत्ति है, उनसे क्षमा मांगता हूं।
रणजीत रावत का कहना है कि कांग्रेस का हर कार्यकर्ता संघर्ष के लिए तैयार है। लेकिन नेतृत्व को अगुवाई करनी होगी। तो क्या रणजीत रावत ये भी कहना चाहते हैं कि प्रदेश अध्यक्ष कारन म्हारा संघर्ष नहीं कर रहे हैं ,,,रंजीत रावत के बयान से तो यही लगता है कि वो करन महारा के नेतृत्व पर उतना भरोसा नहीं कर रहे हैं, मतलब प्रदेश अध्यक्ष करण माहरा को भी साबित करनी होगी अपनी योग्यता पूर्व विधायक राजनजित रावत के समक्ष ,,दूसरी तरफ हरीश रावत और हरक सिंह रावत में भी बयानबाजी हुई है,,,जिसमें हरक सिहं ने साफ़ कहा है कि 2016 में जो कुछ हुआ उसका उनको कोई दुःख नहीं है,,पूर्व मंत्री हरक सिंह रावत ने कहा कि 2022 में हरीश रावत चुनाव नहीं लड़ते तो कांग्रेस सत्ता में होती,,,हरीश रावत लालकुआं व हरिद्वार ग्रामीण विधानसभा को छोड़कर कहीं भी प्रचार करने नहीं गए।
उधर, पूर्व सीएम हरीश रावत ने पलटवार करते हुए कहा, यदि मैं बड़े नेताओं के समक्ष ना कर देता तो हरक सिंह कांग्रेस में शामिल नहीं हो पाते। मैंने उनके आग्रह का सम्मान किया। हरक सिंह एक सीट जीता कर अपनी क्षमता को साबित तो करें, जिससे 2016 की कट़ुता दूर हाे सके ,,,इतना ही नहीं हरीश रावत ने एक बड़ी बात कह डाली कि केदारनाथ उपचुनाव में भी हरक सिंह रावत और उनके करीबियों ने पार्टी के लिए काम नहीं किया,,, इस सारी अंदरूनी जंग के किस्से 5 जून को दिल्ली में हुई कांग्रेस की एक अहम बैठक में भी पहुंचे ,,,,, इस बैठक में राहुल गांधी, मल्लिकार्जुन खरगे जैसे टॉप लीडर्स ने हिस्सा लिया था । नेताओं की बयानबाजी को लेकर पार्टी हाईकमान ने सख्त रुख अपनाया,,,शीर्ष नेतृत्व ने हिदायत दी कि अनुशासनहीनता करने वाले नेताओं पर पार्टी सख्त कार्रवाई करेगी। कोई भी नेता एक-दूसरे के खिलाफ बयानबाजी न करे। 2027 के लिए सभी नेता एकजुट होकर पार्टी के लिए काम करें। राष्ट्रीय व प्रदेश स्तर पर पार्टी की ओर से जो कार्यक्रम तय किए जाते हैं। उसमें सभी नेताओं की भागीदारी जरूरी है।
माना जा रहा है कि कुछ नेताओं ने गढ़वाल और कुमाऊं में पदों में सामंजस्य बढ़ाने की बात कहि,,,,अभी वर्तमान में नेता प्रतिपक्ष और प्रदेश अध्यक्ष दोनों कुमाऊं से हैं,,,प्रदेश अध्यक्ष पद को लेकर भी बात उठी,,, इस पर राहुल गांधी ने तर्क दिया कि इससे पहले भी कुमाऊं से ही मुख्यमंत्री, नेता प्रतिपक्ष व अध्यक्ष रहे हैं,,,,,, कारन महारा जो अभी वर्तमान में प्रदेश अध्यक्ष हैं उन्होंने पार्टी हित में एक कदम आगे बढ़कर जो कहा वो तारीफ के काबिल है,,,जानकारी के मुताबिक करन महारा ने साफ़ कहा कि अगर उनको हटाना है तो हटा दीजिये,,,,और जल्दी ही नया अध्यक्ष चुन लीजिये,,,,क्योंकि रोज रोज के कयासों से पार्टी को नुकसान हो रहा है,,
अब आखिर में सवाल ये है कि क्या इस बैठक में उत्तराखंड कांग्रेस के लिए कोई ठोस रणनीति बन चुकी है? या फिर ये भी बस एक औपचारिकता बनकर रह जाएगी,,,और सबसे बड़ा सवाल—क्या कांग्रेस इस अंदरूनी कलह से बाहर निकलकर बीजेपी को टक्कर दे पाएगी? ,,कांग्रेस कौन सा रास्ता चुनेगी? ,,,,,,क्या कांग्रेस आपस में लड़ रहे नेताओं से आगे बढ़कर भविष्य की राजनीती के मध्येनजर युवा और जोशीले चेहरे ,,,जैसे तेज़ तर्रार नेता गणेश गोदियाल,,,cm धामी को हराकर विधानसभा पहुंचे उपनेता प्रतिपक्ष भुवन कापड़ी,,,कांग्रेस में महिलाओं को नए कलेवर में खड़ा करने वाली ,, हर जनहित के मुद्दों पर आगे रहने वाली कांग्रेस महिला अध्यक्ष ज्योति रौतेला ,बद्रीनाथ जैसी हिंदुत्व की सीट पर पूरी सरकार को घुटनों पर लाकर जीत हासिल करने वाले बद्रीनाथ विधायक लखपत बुटोला जैसे तेज तर्रार नेताओं को कोई बड़ी भूमिका दे पाएगी ?? ,,,ये देखना होगा ?क्योंकि कुछ नेता आपसी खींचतान में इतना व्यस्त हो चुके हैं कि इससे पार्टी को क्या नुकसान हो रहा है उसकी शायद उनको फ़िक्र नहीं है,,,कुछ नेता जिनका उत्तराखंड में कोई ख़ास प्रभाव नहीं है,,,जो अपनी विधानसभा के भीतर भी कुछ ख़ास कांग्रेस पार्टी के लिए नहीं कर पाए,,,वो दिल्ली दरबार के कुछ नेताओं से अपने संबंधों के चलते राजनीती हाँक रहे हैं,,,,क्या कांग्रेस आलाकमान उत्तराखंड में उन घोड़ों की सही पहचान कर पायेगा जो रेस में तेज दौड़ने की छमता रखते हैं,,,, यही नसब सवालों के जवाब कांग्रेस का भविष्य उत्तराखंड में तय कर पाएंगे ,, मगर इन सभी सवालों के जवाब सिर्फ दिल्ली में बैठे कांग्रेस आलाकमान के पास ही हैं ,,
उत्तराखंड भाजपा की डबल इंजन की सरकार लगभग चार साल पुरे करने वाली है,,,अभी वर्तमान में भाजपा के कई मंत्री पद खाली हैं,,,पूर्व में वित्त मंत्री रहे प्रेमचंद अग्रवाल विवाद के चलते अपना पद गवां चुके हैं,,,कई और मंत्री हैं जिनके विभागों के कामकाज को लेकर सवाल उठ रहे हैं,,, ऐसे में पहले से ही मंत्रियों का टोटा झेल रही भाजपा सरकार के एक और मंत्री गणेश जोशी फिर से चर्चाओं में आ गए हैं,,,अभी उनके विभाग की टेंडर प्रक्रिया में भी उन पर सवाल उठे हैं ,,जिस पर काफी बवाल हुआ ही है ,,,लेकिन जिस मुद्दे ने उनकी मुश्किलें सबसे ज्यादा बढ़ा दी हैं पहले उस पर बात कर लेते हैं.
अब चूँकि पहले से ही भाजपा की डबल इंजन की सरकार के कई मंत्री सवालों के घेरे में हैं,,,और उस पर गणेश जोशी जो भाजपा सरकार में कई अहम मंत्रालय संभाल रहे हैं,, उनकी मुश्किलों में इजाफा होना तो चिंता का विषय सरकार के लिए है ही ,,,और इस बार तो किसी विपक्षी ने नहीं बल्कि माननीय कोर्ट ने उनकी मुश्किलों को बढ़ा दिया है,,,,दरअसल भाजपा मंत्री आय से अधिक सम्पति के मामले में घिरे हुए हैं,,,,और अब कोर्ट के आदेश ने उनकी मुश्किलें बढ़ा दी हैं.
दरअसल कुछ समय पूर्व देहरादून के आरटीआई कार्यकर्ता और पेशे से वकील ,,विकेश सिंह नेगी ने नैनीताल हाई कोर्ट में याचिका दायर कर दावा किया था कि मंत्री गणेश जोशी ने 2022 के विधानसभा चुनाव में अपने शपथ पत्र में 9 करोड़ रुपये की संपत्ति घोषित की थी। नेगी का आरोप है कि यह संपत्ति जोशी की आय के ज्ञात स्रोतों से मेल नहीं खाती,,,,याचिकाकर्ता ने मंत्री गणेश जोशी की संपत्ति की विजिलेंस जांच की मांग की,,,, तत्पश्चात विशेष विजिलेंस कोर्ट ने उत्तराखंड सरकार को 8 अक्टूबर 2024 तक इस पर निर्णय लेने का निर्देश दिया था,,,,, हालांकि, सरकार ने इस समय सीमा का पालन नहीं किया,,,, जिसके बाद मामला फिर से हाई कोर्ट पहुंचा,,,नैनीताल हाई कोर्ट ने गणेश जोशी को 23 जुलाई 2025 तक जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया है,,,, कोर्ट ने सरकार से ये भी पूछा है कि क्या उनकी संपत्ति की जांच विजिलेंस को सौंपी जाएगी ?
ऐसे में गणेश जोशी का मामला न केवल उनके लिए बल्कि सरकार के लिए भी एक बड़ी उलझन बन गया है,,,,अब एक सवाल ये भी खड़ा हो गया है कि क्या मुख़्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी इस मामले में कोई ठोस फैसला लेकर विजिलेंस जांच की संस्तुति देंगे,,,जैसा की कोर्ट ने भी पूछा है,,,,दरअसल ये धामी सरकार की जीरो टोरलेंस निति की भी परीक्षा होगी,,,क्योंकि जिस तरह का एक्शन सरकार ने हरिद्वार नगर निगम घोटाले में लिया उससे धामी सरकार से उम्मीदें बढ़ी हैं,,,लेकिन सवाल इस बार मुख्यम्नत्री पुष्कर सिहं धामी के खुद के ही मंत्री के खिलाफ निर्णय लेने का है ,,,,,,सवाल ये भी है कि कोर्ट में सरकार क्या जवाब दाखिल करेगी ,,,,? दोस्तों अगर आपको भी लगता है की जीरो टॉलरेंस की नीति को अपनाते हुए क्या जवाब दाखिल करना चाहिए माननीय कोर्ट के समक्ष तो कमेंट बॉक्स में अपनी राय जरूर रखें
मंत्री गणेश जोशी पर याचिकाकर्ता विकेश नेगी ने आरोप लगाया है कि जोशी ने बागवानी, जैविक खेती, विदेशी दौरों और निर्माणाधीन सैन्य धाम के निर्माण में गड़बड़ी और अनियमितताएं कीं, जिससे उनकी संपत्ति में असामान्य वृद्धि हुई,,, गणेश जोशी ने 2022 के विधानसभा चुनाव में अपने शपथ पत्र में लगभग 9 करोड़ रुपये की संपत्ति घोषित की थी। इसमें चल और अचल संपत्ति दोनों शामिल हैं। 2018 में उनकी घोषित संपत्ति 3.19 करोड़ रुपये थी, जो 2022 में 9 करोड़ रुपये हो गई। यह वृद्धि आय से अधिक संपत्ति के आरोपों का आधार बनी,,,याचिकाकर्ता ने आरोप लगाया कि जोशी ने बागवानी विभाग, जैविक खेती, और सैन्य धाम जैसे क्षेत्रों में सरकारी धन का दुरुपयोग कर संपत्ति अर्जित की है.
याचिका के समर्थन में विकेश नेगी ने कैबिनेट मंत्री गणेश जोशी और उनके परिवार की संपत्तियों के ब्योरे उपलब्ध कराये हैं ,, इन आंकड़ों का आधार याचिकाकर्ता ने 2022 के चुनावी हलफनामे को बनाया है ,, एक्टिविस्ट विकेश नेगी की माने तो 15 वर्ष में मंत्री गणेश जोशी की कुल कमाई 35 लाख होनी चाहिए ,, क्यूंकि उन्होंने न तो अपना व्यवसाय है और न ही खेती है .
वैसे इस मामले में माननीय जोशी जी को अपने सहयोगी मंत्रिओं से कुछ सीख लेना चाहिए था ,, जो मंत्री विधायक होने के साथ साथ उत्तराखंड के किसान भी हैं ,, मतलब ऐसा उन्होंने अपनी आय के स्रोतों में ज़ाहिर किया है ,, व्यक्तिगत रूप से हम उन सभी मंत्रिओं से भी दरख्वास्त करेंगे की वो अपने सहयोगी मंत्री को खेती का ज्ञान दें ,, और इसी ज्ञान की गंगा को उत्तराखंड के किसानों तक भी पहुंचाएं ताकि उत्तराखंड का हर किसान इन सभी मंत्रिओं की तरह ही करोड़ों में खेल सके
नैनीताल हाई कोर्ट ने जोशी को 23 जुलाई 2025 तक जवाब दाखिल करने के निर्देश दिए हैं । कोर्ट ने याचिकाकर्ता से भी प्रति उत्तर मांगा है,,,इन सभी मामलों पर मंत्री गणेश जोशी ने इन आरोपों को “राजनीतिक साजिश” करार दिया और कहा कि यह उनकी छवि खराब करने की कोशिश है,,,,वैसे सिर्फ ऐसा नहीं है कि गणेश जोशी आय से अधिक सम्पति के मामले में विवादों में रहे हैं,,,बल्कि कई अन्य विवाद भी उनसे जुड़े हुए हैं,,,जोशी पर कई बार विवादास्पद बयान देने का आरोप लगा है। उदाहरण के लिए, 2022 में उन्होंने कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी और राहुल गांधी पर अमर्यादित टिप्पणी की थी ,,,,जिस पर उनका खूब विरोध हुआ,,,इसके आलावा 2022 में चारधाम यात्रा के लिए आरटीपीसीआर टेस्ट अनिवार्य करने का उनका बयान विवादों में रहा, जिसे बाद में सीएम पुष्कर सिंह धामी के निर्देश पर खारिज कर दिया गया था ,,,
एक और मामला है जो गणेश जोशी को विवादों में लेकर जाता है ,, वो है उद्यान विभाग का घोटाला जो मुख्य रूप से 15 लाख पौधों की खरीद से जुड़ा है , इस मामले में आरोप है कि इन पौधों के खरीद करते समय कीमत से ज्यादा रकम अदा की गयी है ,,जो की 70 करोड़ बताई जाती है ,, करोड़ों रुपए के भुगतान में सीधे तौर पर फर्जीवाड़ा पकड़ा गया है. इस घोटाले में शासन की जांच के साथ ही हाई कोर्ट के समक्ष दायर याचिका में घोटाले से संबंधित तमाम आरोपों को पुष्ट किया जा चुका है. हाईकोर्ट ने ही इस घोटाले की सीबीआई जांच के आदेश दिए थे .वर्ष 2023 में चर्चित फल पौध खरीद घोटाले में सीबीआई ने जिस नर्सरी के खिलाफ एफआईआर कराई है।विभाग ने उसी नर्सरी को दोबारा फल पौध आवंटन का काम दिया।
इसके अलावा 2023 में जोशी के सामने एक युवक की पिटाई का वीडियो वायरल हुआ, जिसके बाद कांग्रेस ने उन पर कानून व्यवस्था बनाए रखने में निष्क्रियता का आरोप लगाया। 2024 में चुनाव प्रचार के दौरान जोशी को पूर्व सैनिकों और ग्रामीणों ने घेर लिया था , जिन्होंने उन पर पेयजल किल्लत जैसे स्थानीय मुद्दों को नजरअंदाज करने का आरोप लगाया,,,और वर्तमान में हाल ही में उन पर आरोप लगा कि जोशी के कृषि विभाग में टेंडर प्रक्रिया में अनियमितता हुई, जहां टेंडर खुलने से पहले ही एक ठेकेदार ने एग्री मित्र मेला का काम शुरू कर दिया था,,,,हालाँकि जब इस मामले ने तूल पकड़ा तो सरकार ने ये मेला ही रद्द करवा दिया,,,,मेला रद्द होने से गड़बड़ी के आरोप को और बल मिला,,, जिस पर भाजपा प्रदेश अध्यक्ष महेंद्र भट्ट ने गणेश जोशी का स्टैंड लेते हुए कहा कि ऐसे मेले रद्द या एक्सटेंड होते रहते हैं ,, पर भाजपा अध्यक्ष से न तो किसी सम्मानित मिडिया ने ये सवाल पूछा की आखिर कैसे जिस काम को लेकर टेंडर निकलने में दो दिन बाकी हैं उस पर आखिर क्यों किसी ठेकेदार की तरफ से पहले ही काम शुरू हो गया ,, यक़ीनन उनके पास जवाब होता नहीं ,,, वैसे अक्सर ही ये देखा गया है की अध्यक्ष महेंद्र भट्ट मंत्रिओं के बचाव के लिए ही जाने जाते हैं ,, खासकर उन मंत्रिओं के मामलों में ,,जिन मामलों में विवाद रहा है ,, खैर पहले मंत्री प्रेमचंद अग्रवाल थे और इस बार मंत्री गणेश जोशी हैं ,,
सवाल यही है कि भाजपा के एक के बाद एक मंत्री लगातार सवालों के घेरे में घिरते दिखाई दे रहे हैं,,,जिससे डबल इंजन की सरकार पर दबाव बढ़ रहा है,,,,2027 से पहले इस तरह के आरोप भाजपा सरकार को असहज कर रहे हैं,,,अगर समय रहते भाजपा सरकार इन सभी का जवाब नहीं दे पायी तो 2027 में कई नेताओं के साथ पार्टी की डगर जरूर मुश्किल हो सकती है,,,इसलिए अब ये मुख़्यमंत्री की जवाब देहि भी बन गयी है कि वो अपने मंत्रियों पर लग रहे आरोपों की निष्पक्ष जांच करवाएं ताकि सच सामने आये,,,,और अगर कोई इसमें लिप्त है तो उस पर कार्यवाही भी होनी चाहिए,,,बहरहाल अब गणेश जोशी मामले में कोर्ट में क्या होने वाला है इस पर देहरादून से लेकर दिल्ली तक सबकी नजरें हैं,, और उससे भी ज्यादा महत्वपूर्ण उत्तराखंड की जनता की नज़रें भी हैं ,, क्यूंकि संसाधन और पैसा आखिर हैं तो उत्तराखंड का ही…..
प्रदेश की पंचायतों में प्रशासकों की पुनर्नियुक्ति संबंधी अध्यादेश को राजभवन ने बिना मंजूरी लौटा दिया है। इस कारण 10760 त्रिस्तरीय पंचायतें अभी खाली रहेंगी। इससे पंचायतों में सांविधानिक संकट पैदा हो गया है।त्रिस्तरीय पंचायतों में प्रशासकों का छह महीने का कार्यकाल खत्म होने के बाद प्रशासकों की पुनर्नियुक्ति के लिए पंचायती राज विभाग ने आनन-फानन में प्रस्ताव तैयार किया। जिसे पहले विधायी विभाग यह कहते हुए लौटा चुका था कि कोई अध्यादेश यदि एक बार वापस आ गया तो उसे फिर से उसी रूप में नहीं लाया जाएगा। ऐसा किया जाना संविधान के साथ कपट होगा। विधायी विभाग की इस आपत्ति के बावजूद अध्यादेश को राजभवन भेज दिया गया।
राज्यपाल के सचिव रविनाथ रामन के मुताबिक विधायी विभाग की आपत्ति का निपटारा किए बिना इसे राजभवन भेजा गया। जिसे विधायी को वापस भेज दिया गया है। इसमें कुछ चीजें स्पष्ट नहीं हो रही थीं, इसके बारे में पूछा गया है। इसमें विधायी ने कुछ मसलों को उठाया था। राजभवन ने इसका विधिक परीक्षण किए जाने के बाद इसे लौटाया है।
10760 त्रिस्तरीय पंचायतें हुईं मुखिया विहीन
प्रदेश में हरिद्वार की 318 ग्राम पंचायतों को छोड़कर 7478 ग्राम पंचायतें, 2941 क्षेत्र पंचायतें और 341 जिला पंचायतें मुखिया विहीन हो गई हैं। राज्य में पहली बार इस तरह की स्थिति बनी है।उत्तराखंड पंचायती राज अधिनियम 2016 में संशोधन के लिए 2021 में अध्यादेश लाया गया था। राजभवन से मंजूरी के बाद इसे विधानसभा से पास होना था, लेकिन तब विधेयक को विधानसभा से पास नहीं किया गया। क्योंकि हरिद्वार में अध्यादेश जारी होने के बाद त्रिस्तरीय चुनाव करा दिए गए थे
हरिद्वार जमीन घोटाले में धामी सरकार ने बड़ी कार्रवाई की है। मामले में दो आईएस और एक पीसीएस अफसर समेत कुल 12 लोगों को सस्पेंड कर दिया गया है। मामले में डीएम, एसडीएम और पूर्व नगर आयुक्त पर भी गाज गिरी। अब विजिलेन्स जमीन घोटाले की जांच करेगी।
मामला 15 करोड़ की जमीन को 54 करोड़ में खरीदने का है, जिसमें हरिद्वार नगर निगम ने एक अनुपयुक्त और बेकार भूमि को अत्यधिक दाम में खरीदा। न भूमि की कोई तात्कालिक आवश्यकता थी, न ही खरीद प्रक्रिया में पारदर्शिता बरती गई। शासन के नियमों को दरकिनार कर यह घोटाला अंजाम दिया गया।
15 करोड़ की ज़मीन 54 करोड़ में खरीदी
जांच के बाद रिपोर्ट मिलते ही बड़ी कार्रवाई करते हुए हरिद्वार के जिलाधिकारी कर्मेन्द्र सिंह, पूर्व नगर आयुक्त वरुण चौधरी और एसडीएम अजयवीर सिंह को सस्पेंड कर दिया। साथ ही वरिष्ठ वित्त अधिकारी निकिता बिष्ट, कानूनगों राजेश कुमार, तहसील प्रशासनिक अधिकारी कमलदास, और वरिष्ठ वैयक्तिक सहायक विक्की को भी निलंबित किया गया।
उत्तराखंड में पहली बार ऐसा हुआ है कि सत्ता में बैठी सरकार ने अपने ही सिस्टम में बैठे शीर्ष अधिकारियों पर सीधा और कड़ा प्रहार किया है। हरिद्वार ज़मीन घोटाले में मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी द्वारा लिए गए निर्णय केवल एक घोटाले के पर्दाफाश की कार्रवाई नहीं, बल्कि उत्तराखंड की प्रशासनिक और राजनीतिक संस्कृति में एक निर्णायक बदलाव का संकेत हैं।
पहले चरण में नगर निगम के प्रभारी सहायक नगर आयुक्त रविंद्र कुमार दयाल, अधिशासी अभियंता आनंद सिंह मिश्रवाण, कर एवं राजस्व अधीक्षक लक्ष्मीकांत भट्ट और अवर अभियंता दिनेश चंद्र कांडपाल को भी सस्पेंड किया गया था। संपत्ति लिपिक वेदवाल का सेवा विस्तार समाप्त कर दिया गया है और उनके खिलाफ अनुशासनिक कार्यवाही के निर्देश दिए गए हैं।
नीति आयोग की बैठक से लौटने के बाद सीएम धामी टिहरी जिले के गजा घंटाकर्ण महोत्सव का मंत्री सुबोध उनियाल के साथ शुभारम्भ कर रहे थे।
इधर, दून में पूर्व मंत्री व भाजपा विधायक चाय की चुस्की के बीच अपने मुद्दों को लेकर मंथन में जुटे हुए थे।
मंगलवार की शाम को गदरपुर से भाजपा विधायक अरविंद पांडे के विधायक हॉस्टल स्थित आवास में पार्टी जनप्रतिनिधियों के विकास को लेकर दर्द झलका।
विधायकों की सबसे बड़ी चिंता 2027 के विधानसभा चुनाव को लेकर रही। बैठक में 2027 के विधानसभा चुनाव से पूर्व लंबित विकास कार्यों के जल्द बजट आवंटन पर भी चर्चा हुई। विधायकों ने कहा कि प्रत्येक पार्टी विधायक के क्षेत्र में स्वीकृत योजनाओं के बजट स्वीकृति में अड़ंगा लगाने वाले बेलगाम अधिकारियों के बारे में भी चर्चा की जाएगी।
मौजूद विधायकों ने सीएम धामी के फैसलों की सराहना करने के साथ कुछ अधिकारियों के रवैये पर नाराजगी जताई।
इन विधायकों का कहना था कि शासन से लेकर जिले में मौजूद ये अधिकारी जनप्रतिनिधियों की नहीं सुन रहे हैं।
चाय की बैठकी में उठे सभी मुद्दों पर सीएम धामी से मिलकर चर्चा करने पर भी सहमति बनी।
कुछ भाजपा विधायकों ने इकोलॉजी संतुलन कायम रखते हुए खनन कार्य करने पर भी बल दिया। इसके अलावा जिला व मंडल के सांगठनिक चुनाव को लेकर भी नाराजगी जताई। यह बात भी उभरी कि इन चुनावों में कुछ जगह स्थानीय भाजपा विधायको की नहीं सुनी गई।
भाजपा विधायक अरविंद पांडे के विधायक हॉस्टल स्थित आवास में विधायक भरत चौधरी, भोपाल राम टम्टा, सविता कपूर, बिशन सिंह चुफाल, बृजभूषण गैरोला, दुर्गेश्वर लाल की मौजूदगी की खबर सामने आ रही है।
कुछ अन्य विधायको के बैठक के बाद पहुंचने की बात भी कही जा रही है। लेकिन इन नाम की पुष्टि नहीं हो सकी। अलबत्ता, लगभग एक दर्जन से अधिक विधायकों के किस्तों में अरविंद पांडेय के आवास में पहुंचने की चर्चा है। खास पहलु यह रहा कि, मंगलवार की बैठक में जल्द ही एक और बैठक करने का फैसला किया गया।
उल्लेखनीय है कि निकट भविष्य में धामी कैबिनेट का भी विस्तार होना है। पूर्व मंत्री अरविंद पांडे भी सम्भावित मंत्रियों की कतार में शामिल माने जा रहे हैं। आज की बैठक के मेजबान व सूत्रधार अरविंद पांडे को अभी तक धामी कैबिनेट का हिस्सा बनने का मौका नहीं मिला।
गौरतलब है कि इस बैठक से पहले सोमवार को मंत्री सतपाल महाराज और सुबोध उनियाल की मुलाकात भी सोशल मीडिया की सुर्खियां बनी थी।