Category Archive : राजनीति

हाईकोर्ट का बड़ा आदेश: दो जगह वोटर लिस्ट में नाम वालों पर रोक

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नैनीताल। हाईकोर्ट ने राज्य निर्वाचन आयोग को तगड़ा झटका दिया है। उत्तराखंड हाईकोर्ट ने राज्य में होने वाले पंचायत चुनाव को लेकर अहम आदेश दिया है।
अदालत ने स्पष्ट किया कि जिन उम्मीदवारों के नाम शहर और गाँव — दोनों जगह की वोटर लिस्ट में दर्ज हैं, वे पंचायत चुनाव नहीं लड़ सकेंगे। ऐसे मामलों में तुरंत रोक लगाने के निर्देश देते हुए कोर्ट ने कहा कि यह आदेश चुनाव प्रक्रिया को बाधित नहीं करता, बल्कि चुनावी नियमों का पालन सुनिश्चित करने के लिए है।पंचायत चुनाव नाम वापसी के आखिरी दिन हाईकोर्ट के आदेश से  खलबली मची है।

 

गौरतलब है कि 6 जुलाई को राज्य निर्वाचन आयोग के सचिव के आदेश में नगर निकाय क्व मतदाताओं का पंचायत चुनाव लड़ने का रास्ता साफ ही गया था।

हालांकि, बाद में सचिव ने एक और आदेश जारी कर कहा कि पंचायती राज एक्ट के हिसाब से होंगे चुनाव।

इधऱ, इन आदेशों के खिलाफ दायर याचिका पर सुनवाई के बाद हाईकोर्ट ने 6 जुलाई के आदेश पर रोक लगा दी।

इधऱ, यह भी काबिलेगौर है कि 11 जुलाई ,शुक्रवार को नाम वापसी का अंतिम दिन है। ऐसे में हाईकोर्ट के स्टे के बाद राज्य निर्वाचन आयोग प्रतिबंधित दावेदारों को अब चुनाव लड़ने से कैसे रोक पायेगा?

नैनीताल के बुडलकोट क्षेत्र में 51 बाहरी लोगों के नाम वोटर लिस्ट में शामिल करने के मामले में भी सरकार से जवाब मांगा गया है। अदालत के इस आदेश से कई प्रत्याशियों की दावेदारी पर असर पड़ सकता है।

पंचायत चुनाव पर फिर मंडराया खतरा ! हाईकोर्ट में बहस 

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नैनीताल। हाईकोर्ट ने पंचायत चुनाव की तारीख को आगे खिसकाने सम्बन्धी याचिका को लेकर दायर जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए पंचायती राज सचिव व डीजीपी को सुरक्षात्मक उपायों के बाबत कोर्ट के समक्ष तथ्य पेश करने को कहा।

शुक्रवार को हुई सुनवाई में हाईकोर्ट ने कहा कि दोनों अधिकारी इस बाबत सरकार की आकस्मिक योजना पेश करें। संकट के समय कैसे स्थिति को कैसे संभाला जाएगा।

याचिकाकर्ता डॉ बैजनाथ शर्मा ने अपनी याचिका में विभिन्न कारणों का उल्लेख करते हुए पंचायत चुनाव की तिथि आगे खिसकाने की मांग की है।

गौरतलब है कि प्रदेश के पंचायत चुनाव में 24 व जुलाई को दो चरणों में मत डाले जाएंगे।

याचिका कर्ता ने कहा कि राज्य में गम्भीर आपदा व बरसात के मौसम में पंचायत चुनाव का कार्यक्रम जारी किया गया।

आपदा की वजह से प्रदेश की दर्जनों सड़कें बन्द होने से ग्रामीण इलाकों में आवाजाही ठप हो गयी है। ऐसे में चुनाव प्रचार व मतदान पर विपरीत असर लड़ेगा।

इसी महीने में कांवड़ यात्रा शुरू हो गयी है। लाखों की संख्या में कांवड़िए उत्तराखण्ड की ओर कूच कर रहे हैं। प्रदेश के कई पर्वतीय जिलों में कांवड़िए पहुंच रहे हैं।

यही नहीं, चारधाम यात्रा के चलने से प्रतिदिन हजारों तीर्थयात्री उत्तराखण्ड पहुंच रहे हैं। कुल मिलाकर उत्तराखण्ड के हरिद्वार से लेकर पर्वतीय जिलों में भारी जनसैलाब उमड़ रहा है।

कांवड़ यात्रा, आपदा प्रभावित इलाके और चारधाम यात्रा के लिए आवश्यक सुरक्षा बलों पर भी भारी बोझ देखा जा रहा है।

पुलिस-प्रशासन की सीमित टीम आपदा व पंचायत चुनाव के अलावा कांवड़ियों के लिए व्यवस्था बनाने में जुटी है। इससे अन्य जिलों में सुरक्षा बलों की कमी भी देखी जा रही है।

याचिकाकर्ता ने चारधाम यात्रा,आपदा, पंचायत चुनाव, कांवड़ यात्रा एक ही समय पर हो रही है। ऐसे में सभी मोर्चों पर जूझना काफी कठिन माना जा रहा है। लिहाजा, त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव जुलाई महीने के बजाय अन्य महीने में आयोजित किये जायें।

सुनवाई के दौरान राज्य सरकार की लीगल टीम ने अपना पक्ष भी रखा। सुनवाई के बाद हाईकोर्ट ने किसी भी संकट की घड़ी से निपटने के लिए डीजीपी व पंचायत सचिव को आकस्मिक योजना पेश करने को कहा है। मंगलवार को राज्य सरकार समूची व्यवस्था को लेकर कोर्ट में तथ्य पेश करेंगे।

गावं में एक भी ओबीसी नहीं,फिर भी प्रधान की सीट कर दी आरक्षित,नहीं भर पाया कोई पर्चा 

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पौड़ी। कल्जीखाल ब्लॉक की ग्राम पंचायत डांगी में ग्राम प्रधान पद ओबीसी महिला के लिए आरक्षित होने पर ग्रामीणों ने चुनाव का बहिष्कार करने का ऐलान किया है। मंगलवार को निवर्तमान प्रधान भगवान सिंह चौहान के नेतृत्व में शिष्टमंडल ने जिलाधिकारी स्वाति एस भदौरिया को ज्ञापन सौंपा।

डांगी में प्रधान पद को इस बार ओबीसी महिला आरक्षण के अंतर्गत रखा गया है, लेकिन समस्या ये है कि ग्राम डांगी में पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के कोई भी मतदाता या नागरिक मौजूद नहीं हैं. इस विसंगति के कारण ग्राम प्रधान पद के लिए एक भी नामांकन दाखिल नहीं हो पाया है. वहीं अब नाराज ग्रामीणों ने जिलाधिकारी को ज्ञापन सौंपते हुए आरक्षण में सुधार की मांग की है.साथ ही ग्राणीणों ने चेतावनी दी है कि यदि इस मुद्दे का समाधान नहीं किया गया, तो वे आगामी पंचायत चुनावों में क्षेत्र पंचायत और जिला पंचायत के लिए होने वाले मतदान का बहिष्कार करेंगे. ग्रामीणों का कहना है कि प्रशासन द्वारा क्षेत्रीय सामाजिक संरचना को नज़रअंदाज़ कर आरक्षण लागू किया गया है, जो ग्रामवासियों के लोकतांत्रिक अधिकारों का उल्लंघन है. ग्रामीणों ने मांग की है कि ग्राम प्रधान पद का आरक्षण तत्काल प्रभाव से बदला जाए, ताकि योग्य उम्मीदवारों को चुनाव लड़ने का अवसर मिल सके.

 

ग्रामीणों ने कहा कि गांव में कोई प्रमाणित ओबीसी व्यक्ति नहीं है और 2015 से अब तक किसी को ओबीसी प्रमाण पत्र जारी नहीं हुआ। ऐसे में आरक्षण नियमों के विरुद्ध है। सामाजिक कार्यकर्ता जगमोहन डांगी ने बताया कि शिकायतों के बावजूद समाधान नहीं हुआ और कोई नामांकन दाखिल नहीं हो सका। ग्रामीणों ने आंगनबाड़ी के रिक्त पदों का भी मुद्दा उठाया। जिलाधिकारी ने मामले को शासन को भेजने और निर्देशानुसार कार्रवाई का आश्वासन दिया।

पंचायत चुनाव में महिलाएं: नाम की मुखिया या असली नेता?

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क्या महिलाओं की राजनीति में भूमिका सिर्फ नाम भर की है? क्या महिलाएं सच में राजनीति में आगे बढ़ रही हैं,या फिर उन्हें सिर्फ ‘मोहरा’ बनाकर रखा जा रहा है? 2027 चुनाव से पहले उत्तराखंड में पंचायत चुनाव की सरगर्मी तेज़ हो चुकी है,,,गाँवों में चाय की दुकानों से लेकर चौपालों तक,हर जगह चर्चा का माहौल है। हर पार्टी और निर्दलीय उम्मीदवार प्रचार में जुटे हुए हैं,,,हर जगह बैनर-पोस्टर लग रहे हैं, वादों की बौछार हो रही है,,,और हर चुनाव की तरह, इस बार भी नेता कह रहे हैं,महिलाओं को सशक्त बनाएंगे, महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाएंगे, महिलाओं को सुरक्षा देंगे।” लेकिन क्या हर बार की तरह यह सिर्फ वादा ही रह जाएगा? क्या पंचायत चुनाव में महिलाएं सिर्फ सीट भरने का साधन हैं? या सच में उन्हें नेतृत्व का अवसर दिया जा रहा है?


यहाँ पर हमें दो बातें देखने की ज़रूरत है,,,पहला  प्रतिनिधित्व का आंकड़ा बढ़ा है,,,,दूसरा  असल में सिर्फ आंकड़ा बढ़ा है या फिर फैसले लेने की शक्ति भी बढ़ी है? पंचायतों में महिलाएं सीट पर तो आ गईं,लेकिन क्या वह मुखिया, सरपंच या ग्राम प्रधान बनकर ,सच में अपनी मर्जी से फैसले ले पा रही हैं? कई गाँवों में यह देखा गया है कि महिला प्रधान के नाम पर,उनके पति, भाई या पिता पंचायत चला रहे होते हैं। इसे ‘प्रधान  पति’ कल्चर कहा जाता है, जहाँ महिला नाम की मुखिया होती है,और सत्ता उनके परिवार के पुरुषों के हाथ में रहती है। उत्तराखंड के कुमाऊं और गढ़वाल के कई ब्लॉकों में यह आम बात है।अल्मोड़ा के छेत्र से एक महिला प्रधान चुनी गई,लेकिन पंचायत के हर फैसले में उनके पति और देवर ही बैठकों में आगे दिखाई दिए । पौड़ी के एक गाँव में महिला प्रधान की जगह उनके बेटे ने सरकारी अधिकारियों के साथ बैठकर योजनाओं की फाइल पर निपटारा किया भले हस्ताक्षर महिला प्रधान ने ही किये । 
ऐसे में सवाल उठता है कि   —क्या महिलाओं को ‘नाम की मुखिया’ बनाकर ही रखा जा रहा है? क्या हम सच में महिलाओं को सशक्त कर रहे हैं, या बस दिखावा कर रहे हैं?
आगे बढ़ें उससे पहले थोड़ा आरक्षण की स्थिति स्पष्ट कर दें… भारत में संविधान ने पंचायतों में महिलाओं के लिए 33% आरक्षण दिया है ,जिसे कई राज्यों ने बढ़ाकर 50% कर दिया।राजस्थान में पंचायतों में 56% महिला प्रतिनिधित्व है, महाराष्ट्र में 54%, बिहार में 50%। उत्तराखंड में भी पंचायत चुनाव में 50% सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित हैं,,,जो कागज़ों पर बड़ा सुकून महिलाओं के प्रति देता है , लेकिन असल में क्या महिलाएं खुद फैसले ले रही हैं? भले कोई सीधे तौर पर ये न माने पर सच यही है की मुख्य रूप से प्रधान पति, प्रधान पिता या प्रधान भाई ही फैसला लेते हैं ,,
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अब विधानसभा और संसद में महिलाओं की स्थिति पर आते हैं,,,पंचायतों में 50% आरक्षण है,लेकिन विधानसभा में उत्तराखंड में महिलाओं का प्रतिनिधित्व 7% है। देशभर में औसतन 10-12% महिलाएं ही विधानसभा में हैं। उत्तर प्रदेश — 11%,,,,,बिहार — 12%,,,,,,मध्यप्रदेश — 10%,,,,,,हरियाणा — 8%,,,,छत्तीसगढ़ सबसे ज़्यादा 18%  …. अब लोकसभा को देख लीजिये,,,,लोकसभा में महिलाओं का प्रतिनिधित्व सिर्फ 15% और राज्यसभा में 13% है,,,मतलब महिलाओ की आधी आबादी, लेकिन असल फैसलों में भागीदारी 10-15%… सवाल उठता है क्यों?

2022 विधानसभा चुनाव में उत्तराखंड में महिला मतदाता पुरुषों से अधिक थीं। फिर भी तीनों बड़ी पार्टियों ने 10% से भी कम टिकट महिलाओं को दिए।बीजेपी ने 8, कांग्रेस ने 5, आम आदमी पार्टी ने 7 महिलाओं को टिकट दिए, यानि 210 सीटों में सिर्फ 20 महिलाएं मैदान में उतरीं। इनमें से भी आधी महिलाएं किसी नेता की बेटी, पत्नी या बहू थीं। जिनको अपने परिवार की राजनीतिक विरासत संभालने के लिए टिकट मिला,,,,लेकिन आम घर की महिलाओं को टिकट क्यों नहीं? इस पर राजनीतिक दल कहते हैं,,,,“चुनाव जीतने के लिए जिताऊ उम्मीदवार चाहिए,,,जबकि राजनीतिक जानकार  मानते हैं कि हमारी राजनीति धनबल और बाहुबल पर चलती है। शराब, पैसे और माफिया का खेल चलता है।ऐसे माहौल में महिलाएं चुनाव लड़ने में खुद को असहज पाती हैं।
 
 

जानकारों की माने तो उत्तराखंड की राजनीति में खनन और शराब माफिया का भी प्रभाव है,,,,राजनीति एक सिंडिकेट की तरह काम करती है, जिसमें सत्ता पक्ष, विपक्ष, अफसर, माफिया और मीडिया का गठजोड़ है। यही 5-7 हज़ार लोग, सवा करोड़ की आबादी की राजनीति तय कर रहे हैं।,,,,,
लेकिन दोष केवल सिस्टम का ही नहीं है,राजनीतिक दलों का रवैया भी दोषी है। हर बार चुनाव में कहते हैं, “महिलाओं को टिकट देंगे,”लेकिन देने में कंजूसी करते हैं और मज़े की बात देखिए…जो महिलाएं चुनाव लड़ती हैं, उनका जीतने का प्रतिशत भी पुरुषों से अधिक होता है। महिलाओं के जीतने की दर 16.5% है,जबकि पुरुषों की 11.8%। यानी महिलाएं बेहतर परफॉर्म कर रही हैं.. फिर टिकट देने में कंजूसी क्यों? सवाल ये  नहीं है कि महिलाएं राजनीति में क्यों नहीं हैं,सवाल यह है कि उन्हें आने से रोका क्यों जा रहा है? देश आधा उनका है,तो फैसलों में हिस्सा आधा क्यों नहीं?
 

 

एक बात और ,,,महिलाओं की सुरक्षा हर चुनाव में मुद्दा बनती है।‘महिला हेल्पलाइन’, ‘पिंक पेट्रोलिंग’, ‘महिला सुरक्षा ऐप’ जैसे नाम गिनाए जाते हैं।लेकिन क्या महिलाएं सच में सुरक्षित हैं?उत्तराखंड के पहाड़ी इलाकों में महिलाओं को रोज़ 5-10 किलोमीटर पैदल चलकर पानी और लकड़ी लानी पड़ती है।रास्ते में छेड़छाड़ और यौन हिंसा की घटनाएं होती हैं।कई मामलों में शिकायत करने पर पुलिस भी गंभीरता से नहीं लेती।जब महिलाओं की सुरक्षा ही नहीं हो पा रही,तो राजनीति में आने पर भी वह कैसे सुरक्षित महसूस करेंगी?क्योंकि राजनीती में तो इससे बढ़कर  उन्हें ट्रोलिंग, गाली-गलौज, चरित्र हनन का सामना करना पड़ता है जो आम महिला नेता के लिए किसी यातना से कम नहीं



महिलाओं के नाम पर कई योजनाएं भी बनी हैं।महिला उद्यमिता योजना’, ‘महिला स्टार्टअप फंड’, ‘मुख्यमंत्री महिला सशक्तिकरण योजना’…लेकिन 2024 में केवल 18% सरकारी फंडिंग महिला उद्यमियों को मिली।महिला स्टार्टअप में 60% प्रोजेक्ट फंड की कमी से बंद हो गए।ज्यादातर योजनाएं कागज तक सीमित रह गईं।सरकारी आंकड़ों में जो महिला आत्मनिर्भर दिखाई जाती है,ज़मीन पर हालात अलग हैं।हमारे समाज में महिलाओं को देवी का दर्जा दिया गया है।लेकिन क्या राजनीति में उन्हें वही दर्जा दिया गया? क्या हम महिलाओं को सिर्फ त्योहारों में पूजने के लिए देवी मानते हैं,या उन्हें फैसलों की मेज़ पर भी बराबरी का दर्जा देना चाहते हैं?
अगर हम एक सशक्त और निष्पक्ष लोकतंत्र चाहते हैं,तो पंचायतों में उन्हें फैसले लेने का अधिकार देना होगा न की उनके पति ,पिता या भाई को  ,,, विधानसभा और संसद में भी महिलाओं की भागीदारी बढ़ानी होगी।वो भी नाम मात्र की नहीं, असल नेतृत्व के साथ। महिलाओं को सिर्फ घोषणा पत्रों और पोस्टरों की शोभा नहीं बल्कि उन्हें असली सत्ता और फैसलों में बराबरी का हिस्सा देना होगा ।
जब महिलाएं असलियत में आगे आएंगी,तो राजनीति में भी ईमानदारी, संवेदनशीलता और पारदर्शिता आएगी। उत्तराखंड की महिलाएं पहाड़ की चट्टानों सी मजबूत हैं। वो खेत संभाल सकती हैं, जंगल से लकड़ी ला सकती हैं, बच्चों की परवरिश कर सकती हैं,तो राजनीति भी संभाल सकती हैं,जरूरत है, उन्हें सिर्फ मौका देने की।

‘यह सिर्फ एक सीन था’ कहकर फंसे राठौर, कांग्रेस ने पूछा– कारवां लुटा कैसे?

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 उत्तराखंड की सियासत इन दिनों एक अनोखे ‘प्रेम प्रसंग’ को लेकर गर्म है, जिसमें अभिनय, सियासत, महिला सम्मान और नैतिकता के तमाम आयाम एक साथ उलझे हुए हैं। चर्चित भाजपा नेता और हरिद्वार जिले के ज्वालापुर से पूर्व विधायक सुरेश राठौर हाल ही में उर्मिला सनावर (फिल्म अभिनेत्री) के साथ मंच साझा करते हुए उसे “अपने जीवन की साथी” बता बैठे। कैमरे और माइक के सामने रिश्तों का यह सार्वजनिक ऐलान कुछ ही घंटों में सोशल मीडिया पर वायरल हो गया।

लेकिन हंगामा बढ़ते ही राठौर पलट गए। सफाई दी कि “यह तो बस एक फिल्म का सीन था”। इस सफाई ने आग में घी डालने का काम किया। सवाल उठने लगे कि क्या अब भाजपा नेताओं की सार्वजनिक घोषणाएं भी किसी स्क्रिप्ट का हिस्सा हैं? और अगर यह अभिनय था तो मंच, माला और सार्वजनिक संवाद किसलिए?

 

 

प्रकरण गरमाया तो भाजपा ने भी पैंतरा बदला। पहले चुप्पी साधे रही, फिर जनदबाव बढ़ने पर राठौर को पार्टी की छवि धूमिल करने और अनुशासनहीनता के आरोप में नोटिस थमा दिया गया। राठौर ने प्रदेश अध्यक्ष महेंद्र भट्ट से भेंट कर अपना पक्ष रखा है, जिस पर पार्टी विचार कर रही है।

लेकिन इस पूरे घटनाक्रम ने कांग्रेस को हमलावर होने का मौका दे दिया।
पार्टी की मुख्य प्रवक्ता गरिमा मेहरा दसौनी ने भाजपा पर हमला बोलते हुए कहा, “नाटक, झूठ और पाखंड की शैली से जनता को भ्रमित नहीं किया जा सकता।” उन्होंने तंज कसते हुए पूछा, “तू इधर-उधर की बात न कर, ये बता कारवां लुटा कैसे?”

गरिमा ने भाजपा से पूछा कि क्या यह पहला मामला है जब पार्टी के नेता महिलाओं से जुड़े विवादों में फंसे हों? क्या हर बार कार्रवाई तब होती है जब जनता का गुस्सा उबाल पर आ जाता है? और क्या UCC जैसे कानूनों का हवाला सिर्फ जनता को उलझाने के लिए दिया जाता है?

भाजपा की ओर से प्रदेश मीडिया प्रभारी मनवीर चौहान ने स्पष्ट किया कि पार्टी किसी भी प्रकार के अमर्यादित आचरण को स्वीकार नहीं करती। उन्होंने बताया कि अनुशासन समिति में राठौर के मामले पर गंभीरता से विचार किया जाएगा।

सियासत और व्यक्तिगत जीवन की यह जटिल गाथा एक ओर राजनीति के चरित्र पर सवाल खड़े कर रही है, तो दूसरी ओर दर्शा रही है कि अब जनता केवल भाषणों से नहीं, आचरण से भी जवाब मांगती है।

पंचायत चुनाव पर हाईकोर्ट की रोक बरकरार,सभी याचिकाओं को किया गया क्लब

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उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने राज्य में त्रिस्तरीय पंचायत चुनावों पर लगी अंतरिम रोक को फिलहाल बरकरार रखा है। राज्य सरकार की ओर से आज मुख्य न्यायाधीश की खंडपीठ के समक्ष स्टे वेकेशन (रोक हटाने) का अनुरोध किया गया, जिसे खंडपीठ ने बुधवार दोपहर सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया है।

गौरतलब है कि राज्य निर्वाचन आयुक्त ने 21 जून को प्रदेश के 12 जिलों में त्रिस्तरीय पंचायत चुनावों का कार्यक्रम जारी कर चुके हैं। लेकिन बीते सोमवार को हाईकोर्ट ने पंचायत आरक्षण के मुद्दे को लेकर चुनावों पर रोक लगा दी। इससे सरकार को बैकफुट पर आना पड़ा। इस मसले पर नौकरशाही की ढिलाई भी सामने आ रही है।

इधऱ, मामले में अब तक दायर की गई सभी याचिकाओं को एक साथ क्लब कर बुधवार को सुनवाई की जाएगी। हाईकोर्ट ने सरकार को सुनवाई में अपना पक्ष स्पष्ट करने के निर्देश दिए हैं।

गौरतलब है कि पिछले सप्ताह कोर्ट ने पंचायत चुनावों में आरक्षण प्रक्रिया को लेकर दायर याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए चुनावी प्रक्रिया पर अंतरिम रोक लगा दी थी। याचिकाओं में आरोप लगाया गया था कि सरकार ने आरक्षण रोस्टर और अधिसूचना प्रक्रिया में नियमों की अनदेखी की है, जिससे संवैधानिक प्रक्रिया पर प्रश्नचिन्ह लग गया है।

अब बुधवार की सुनवाई से यह तय होगा कि क्या अदालत पंचायत चुनावों पर लगी रोक हटाती है या मामले में कोई अंतरिम व्यवस्था जारी रखती है।
बहरहाल, प्रत्याशी 25 जून से भरे जाने वाले नामांकन की तैयारी कर रहे थे। अब भारी असमंजस का मंजर देखने को मिल रहा है।

Uttarakhand News: पंचायत चुनावों पर हाईकोर्ट की रोक, आरक्षण को लेकर सख्त रुख

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उत्तराखंड में प्रस्तावित त्रिस्तरीय पंचायत चुनावों पर नैनीताल हाईकोर्ट ने फिलहाल रोक लगा दी है। यह रोक आरक्षण व्यवस्था को लेकर राज्य सरकार द्वारा स्थिति स्पष्ट न कर पाने के चलते लगाई गई है। कोर्ट ने साफ कहा कि जब तक पंचायत चुनावों में आरक्षण की स्थिति स्पष्ट नहीं होती, तब तक चुनाव प्रक्रिया को आगे नहीं बढ़ाया जा सकता।

सोमवार को मामले की सुनवाई के दौरान कोर्ट ने पाया कि राज्य सरकार पंचायत चुनावों में आरक्षण को लेकर न तो स्पष्ट नीति प्रस्तुत कर सकी और न ही न्यायालय को भरोसेमंद विवरण दे सकी। इस पर कोर्ट ने गहरी नाराजगी जताते हुए सरकार को निर्देश दिए कि वह जल्द से जल्द आरक्षण संबंधी नीति स्पष्ट करे।

राज्य निर्वाचन आयोग ने हाल ही में पंचायत चुनावों की तैयारी शुरू कर दी थी और 12 जिलों में पंचायत चुनाव कार्यक्रम की घोषणा कर दी थी, लेकिन अब हाईकोर्ट के आदेश के बाद यह प्रक्रिया रोक दी गई है।

राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यह फैसला राज्य की सियासत और पंचायत स्तर पर प्रतिनिधित्व के समीकरणों को प्रभावित कर सकता है। विपक्ष पहले से ही सरकार पर पंचायतों में आरक्षण को लेकर मनमानी और अनियमितता के आरोप लगा रहा था, जिसे अब न्यायालय की टिप्पणी से बल मिल सकता है।

अब सबकी निगाहें सरकार की अगली रणनीति और अदालत में उसकी प्रस्तुति पर टिकी हैं।

प्रदेश में मतदाताओं की संख्या बढ़ी…इस बार 4.56 लाख नए मतदाता देंगे वोट

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इस बार उत्तराखंड के पंचायत चुनाव में 4.56 लाख नए मतदाता शामिल होंगे। वर्ष 2019 के चुनाव के मुकाबले मतदाताओं की संख्या में 10.57 प्रतिशत का इजाफा दर्ज किया गया है। निर्वाचन आयोग चुनाव में 67 पर्यवेक्षक भी तैनात करेगा।इस बार चुनाव में 67 प्रेक्षकों को तैनात किया जाएगा। इनमें 55 सामान्य प्रेक्षक और 12 आरक्षित प्रेक्षक शामिल हैं। राज्य निर्वाचन आयुक्त सुशील कुमार ने बताया कि जिला स्तर पर तीन प्रवर्तन टीमें गठित की जाएंगी। इनमें एक टीम जिला प्रशासन, दूसरी पुलिस विभाग और तीसरी टीम आबकारी विभाग की होगी। ये चुनाव के दौरान अवैध मदिरा, मादक पदार्थ, नकदी एवं अन्य प्रलोभन को जब्त करेगी और कार्रवाई करेगी।

व्यय की निगरानी के लिए जिला स्तर पर अधिकारी
चुनाव खर्च के लिए राज्य निर्वाचन आयोग ने अलग से व्यय प्रेक्षक तो तैनात नहीं किए लेकिन खर्च की निगरानी के लिए जिलास्तर पर अधिकारी नामित किए जाएंगे। यह पंचायत चुनाव में खर्च पर प्रशासनिक टीम की मदद से निगाह रखेंगे और समय-समय पर प्रत्याशियों से खर्च मिलान भी करा सकते हैं।

प्रधान, बीडीसी, जिला पंचायत सदस्य की खर्च सीमा बढ़ी
पिछले चुनाव के मुकाबले इस बार प्रधान, बीडीसी और जिला पंचायत सदस्य के खर्च की सीमा बढ़ाई गई है। इस बार पंचायत चुनाव में सदस्य ग्राम पंचायत के लिए 10,000 रुपये की सीमा रहेगी। प्रधान के लिए खर्च की सीमा 50,000 से बढ़ाकर 75,000 रुपये, सदस्य क्षेत्र पंचायत के खर्च की सीमा 50,000 से बढ़ाकर 75,000 रुपये और सदस्य जिला पंचायत के खर्च की सीमा 1,40,000 से बढ़ाकर 2,00,000 रुपये की गई है।

पांच साल में 10.57 फीसदी बढ़े मतदाता

वर्ष  कुल मतदाता पुरुष मतदाता महिला मतदाता अन्य
2019 43,20,279 22,07,347 21,12,932 00
2025 47,77,072 24,65,702 23,10,996 374
बढ़ोतरी 4,56,793 2,58,355 1,98,064 374

Uttarakhand Cabinet: प्रदेश मंत्रिमंडल की बैठक, सहकारिता से लेकर बदरीनाथ मास्टर प्लान तक कई महत्वपूर्ण फैसले

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प्रदेश की 670 बहुउद्देश्यीय सहकारी समितियों के कामकाज का अब विभागीय स्तर पर ऑडिट होगा। इसके लिए प्रदेश मंत्रिमंडल ने विभाग में उप निबंधक (ऑडिट) की तैनाती के लिए एक नया निसंवर्गीय पद सृजित करने को मंजूरी दे दी है। यह पांच साल के लिए निसंवर्गीय पद होगा और प्रतिनियुक्ति से भरा जाएगा।

 

मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी की अध्यक्षता में हुई बैठक में चार महत्वपूर्ण फैसले हुए। सूचना महानिदेशक बंशीधर तिवारी ने कैबिनेट के फैसलों की जानकारी दी। उन्होंने कहा कि कैबिनेट ने पशुपालन व्यवसाय से आजीविका बढ़ाने के लिए पशुपालन विभाग और दुग्ध विकास विभाग की योजनाओं का एकीकरण के प्रस्ताव को मंजूरी दी है।

 

पशुपालन विभाग में अनुसूचित जाति व अनुसूचित जनजाति वर्ग के लिए संचालित हो रही योजना में दुधारू गाय खरीदने के लिए 90 प्रतिशत तक अनुदान का प्रावधान है। दूसरी गंगा गाय योजना दुग्ध विकास विभाग संचालित कर रहा है। इस योजना में अनुसूचित जाति व अनुसूचित जाति वर्ग व महिला के लिए 75 प्रतिशत और सामान्य वर्ग के लिए 50 प्रतिशत अनुदान की व्यवस्था है।

इन दोनों योजनाओं के एकीकरण से ज्यादा पात्र लोग लाभान्वित हो सकेंगे। इस योजना में सभी वर्गों के लोगों को दुधारू गाय पालने के लिए अनुदान मिलेगा। अनुदान की दरें विभाग जल्द तय करेगा और जिसे अगली कैबिनेट बैठक में मंजूरी दी जाएगी। इसके अलावा कैबिनेट ने पशुपालन विभाग के तहत पशुधन प्रसार अधिकारियों के चयन के बाद उनके प्रशिक्षण की अवधि को घटाकर एक वर्ष करने को मंजूरी दी। विभाग में 429 पद रिक्त हैं। प्रशिक्षण की अवधि कम होने से विभाग को पशुधन प्रसार अधिकारियों की उपलब्धता सुनिश्चित हो सकेगी।

 

बदरीनाथ में दीवारों पर बनेंगी कलाकृतियां

बदरीनाथ में अंतरराज्यीय बस अड्डे की दीवारों पर धार्मिक, सांस्कृतिक और लोक कला से संबंधित कलाकृतियां बनाई जाएंगी। प्रदेश मंत्रिमंडल ने इस प्रस्ताव को मंजूरी दी।

चारधाम यात्रा, हेली सेवाएं और मानसून की तैयारी पर भी हुई चर्चा

डीजी सूचना के मुताबिक, कैबिनेट ने चारधाम यात्रा की अब तक प्रगति पर चर्चा की। बैठक में बताया गया कि यात्रा अच्छी चल रही है। चारधाम हेली सेवाओं को लेकर कैबिनेट ने मानकों का कड़ाई से पालन कराने पर जोर दिया। मानसून की तैयारियों को लेकर कैबिनेट मंत्रियों से चर्चा की।

दिल्ली ने तय किये उत्तराखंड कांग्रेस के रेस के घोड़े !

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राहुल गांधी के रेस, बारात और लंगड़े घोड़े के बाबत दिए गए ताजा बयान के ठीक बाद उत्तराखण्ड कांग्रेस के नेता दिल्ली में जुटे ,,जहां उत्तराखंड के सभी बड़े नेता मौजूद रहे,,,इस बैठक में उत्तराखण्ड कांग्रेस का कायाकल्प को लेकर मंथन हुआ ,,,सवाल यही है कि बैठक तो हो गयी पर क्या कुछ बड़ा भी होगा या फिर ये बैठक बैठक का खेल युहीं चलता रहेगा ,,वैसे ,राहुल गांधी के लंगड़े घोड़ों को किनारे बैठाने सम्बन्धी बयान के बाद उत्तराखण्ड कांग्रेस में हलचल मची है।

राहुल गांधी के बयान और दिल्ली बैठक के बाद अब प्रदेश संगठन के विस्तार या बदलाव की सम्भावना बनने लगी है ,, इसको देखते हुए  कुछ नेताओं की जिम्मेदारी बढ़ेगी और कुछ का साइज घटेगा और कुछ की छुट्टी की जा सकती है। अगर ऐसा सही मायने में हुआ तो  उत्तराखंड कांग्रेस नये कलेवर में दिखेगी,,जानकारी के मुताबिक कांग्रेस नेतृत्व ने तीनों प्रकार के नेताओं के चिह्नीकरण का काम शुरू कर दिया है,,, मतलब साफ़ है,,,दिल्ली बैठक के बाद लंगड़े घोड़े अस्तबल में बंधेंगे,,,,और रेस के घोड़ों को आगे किया जायेगा और उनके पीछे सपोर्ट के लिए  बारात के घोड़ों को नयी जगह मिलेगी,,,,कुल मिलाकर उत्तराखंड कांग्रेस का कायाकल्प करने की शुरुआत दिल्ली में बैठा कांग्रेस का आलाकमान कर चुका है,,,,देखना ये है कि अब इसमें वो कौन से घोड़े होंगे जिनको अस्तबल में बाँध दिया जायेगा,,, वो कौन से घोड़े होंगे जो बरात  में शामिल किये जायेंगे,,,और सबसे बड़ी बात रेस में दौड़ने वाले घोड़े कौन होंगे,,,ये देखना सबसे महत्वपूर्ण होगा,,,क्योंकि इन्ही रेस के घोड़ों पर कांग्रेस के भविष्य की जिम्मेदारी होगी,,,वैसे जिस तरह से कई राज्यों में कांग्रेस आलकमान युवाओं को आगे कर चुका है ,,,उससे ये संकेत तो साफ़ हैं कि अब कांग्रेस शायद युवा टीम के भरोसे ही आगे की राजनीती करेगी,,,,ऐसे में ये सम्भावना भी बन रही है कि बीजेपी की तरह बुजुर्ग और उम्रदराज लोगों को आराम दिया जायेगा

 

यहां थोड़ा संछिप्त रूप से इन तीनों घोड़ों पर भी बात कर लेते हैं,,,सबसे पहले, ये घोड़ा गेम क्या है? राहुल गांधी ने गुजरात में कहा था—कांग्रेस में रेस के घोड़े हैं, जो तेज दौड़ सकते हैं; बारात के घोड़े, जो शोभा बढ़ाते हैं; और लंगड़े घोड़े, जो अब रिटायर होने चाहिए,,,लंगड़े घोड़े,,,ये वो नेता हैं, जो अब कांग्रेस के लिए बोझ बन चुके हैं,,,भूपेंद्र सिंह हुड्डा, 77 साल, हरियाणा के पूर्व सीएम। 8 महीने बाद भी सीएलपी नहीं चुन पाए। कमलनाथ और दिग्विजय सिंह, दोनों 78 साल,,,,, मध्य प्रदेश में समय पूरा। पी. चिदंबरम, 79 साल; सलमान खुर्शीद, 72 साल; मधुसूदन मिस्त्री, 80 साल; आनंद शर्मा, 72 साल; अंबिका सोनी, 82 साल; एके एंटनी, 84 साल; मीरा कुमार, 80 साल; पृथ्वीराज चौहान, 79 साल,,,इनमें से कोई हाल में चुनाव नहीं जीता,,,,ये लोग ना चुनाव लड़ सकते हैं, ना जितवा सकते हैं। ऐसा पूर्व के चुनाव नतीजे भी बता रहे हैं ,,,

 

अब हैं बारात के घोड़े,,,,,ये वो हैं, जो दफ्तरी काम कर सकते हैं, ,,,जैसे कुमारी शैलजा, हरियाणा में सांसद हैं ,,, पर विधानसभा में  प्रदर्शन निराशाजनक है ,,,  शशि थरूर, 69 साल के हैं , महत्वाकांक्षा बुलंद हैं , पर बीजेपी की वाशिंग मशीन की तरफ निगाहें जमाये प्रतीत हो रहे हैं ,,,, जयराम रमेश,,,,, कम्युनिकेशन डिपार्टमेंट में लगातार फजीहत ,,,, तारिक अनवर,,,,,,74 साल; प्रतिभा सिंह,,,,, मनीष तिवारी,, रणदीप सुरजेवाला,,,,, राजीव शुक्ला,,,,शक्ति सिंह गोहिल,,,इनमें से कईयों का जीत का रिकॉर्ड शून्य,,,, इसलिए  डिसीजन मेकिंग में इनको  कोई रोल मिले तो मुश्किल कांग्रेस को होगी ही ,, हाँ जैसे क्लास में मॉनिटर होता है वैसे ही इनको प्रदेश का मॉनिटर बनाकर डिसीज़न लेने की
शक्ति खुद कांग्रेस आलाकमान को ही लेनी होगी ,, आखिर सवाल प्रदेश में जीत की पताका फहराने का है ,,

और अंत में हैं रेस के घोड़े,,,,यहाँ कांग्रेस को  फ्रेश ब्लड चाहिए,,, युवा, जोशीले चेहरे, जो बीजेपी को टक्कर दे सकें,,,यहां राहुल गाँधी  की स्ट्रैटेजी शानदार लगती है,,,, जिला अध्यक्षों को पावर देना, वोट बढ़ाने की जिम्मेदारी, विचारधारा की रक्षा, नई लीडरशिप को बढ़ावा देना —ये गेम चेंजर साबित हो सकते है,,,,लेकिन अगर स्टाफ लॉयल नहीं, अगर लंगड़े और बारात के घोड़े ही टॉप पर रहेंगे, तो ये सारी मेहनत बेकार है,,,,मतलब जिस कायाकल्प का सपना कांग्रेस आलाकमान देख रहा है वो तभी सफल होगा जब लंगड़े घोड़ों को रिटायर किया जाएगा ,,,,, बारात के घोड़ों को दफ्तर भेजा जायेगा और रेस के घोड़ों को मैदान में उतारा जायेगा,,,,पर सवाल यही है कि क्या कांग्रेस आलाकमान ऐसा कर पायेगा ?? ,,,या फिर बड़े नेताओं के दबाव के आगे फिर वही होगा जो होता आया है,,,,क्योंकि कांग्रेस को अगर जमीन पर सूरत बदलनी है तो सख्त निर्णय लेने ही पड़ेंगे,,,,

 

 

 

चलिए घोड़ों के गणित से अब उत्तराखंड की कांग्रेसी सियासत की तरफ रुख कर लेते हैं ,,, क्यूंकि मुद्दा तो
एक तरफ कांग्रेस आलाकमान नए सिरे से पार्टी को एकजुट करने में जुटा हुआ है,,,दूसरी तरफ कांग्रेस में अंदरूनी कलह थम नहीं रही है,,,एक तरफ मयूख महर बगावत का झंडा बुलंद किये हुए हैं,,,तो अब दो पुराने दोस्त और वर्तमान में एक दूसरे के विरोधी खुले मंच पर एक दूसरे पर हमला कर रहे हैं,,। पार्टी के अंदरूनी मतभेद अब खुलकर सामने आ रहे हैं। हाल ही में रणजीत रावत, जो उत्तराखंड कांग्रेस के बड़े नेताओं में शुमार हैं, उन्होंने एक बयान दिया, जिसमें उन्होंने साफ कहा कि प्रेस कॉन्फ्रेंस, सोशल मीडिया पोस्ट, या काफल पार्टी जैसे इवेंट्स से कुछ नहीं होने वाला,,,, असल बदलाव चाहिए, तो सड़क पर उतरकर संघर्ष करना होगा। और इस बयान में उनके निशाने पर थे  पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत , जिन्हें वो काफल पार्टी और सोशल मीडिया पर एक्टिव रहने  का तंज कस रहे थे। ये वही हरीश रावत हैं जिन्होंने रंजीत रावत की राजनीती को चमकाने में सबसे बड़ी और महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है

 

 

खैर रणजीत रावत भले ये कह रहे हैं कि सड़क पर उत्तर कर संघर्ष करना होगा ,,,,जनता के मुद्दों को उठाना होगा,,,,लेकिन खुद वो कब सड़क पर जनता के मुद्दों के लिए उतरते हुए दिखाई दिए ,,,ये बड़ा सवाल है,,हाँ आखिरी बार तब जरूर वो सड़क पर उतरे थे,,जब उनके तथाकथित कार्यलय से जुड़ा मामला  सामने आया था ,,,उस कार्यालय को लेकर भी उन पर कब्जा करने का आरोप एक पक्ष ने लगाया था,,,इसके अलावा रणजीत रावत शायद ही कभी जनता के मुद्दे पर पुलिस से इस तरह भिड़ते नजर आये हो,,,हरीश रावत पर निशाना साधते वक्त शायद वो भूल गए कि हरीश रावत उम्र के इस पड़ाव में भी पुरे प्रदेश की यात्रा कर रहे हैं,,,भले इस यात्रा का मकसद उनका वक्तिगत हो सकता है,,, लेकिन इसी यात्रा के दौरान वो पुराने कॉंग्रेस्सिओं को जोड़ने की कोशिश में भी लगे दिखाई दे रहे हैं ,,  ,,,जनता के मुद्दों पर भी हरीश रावत इसी यात्रा के दौरान सवाल उठाते दिखाई दिए  हैं,,,इसलिए भले पूर्व विधायक रंजीत रावत जनता के मुद्दों पर सड़क पर उतरने की लाख बातें कहें,,,लेकिन खुद जनता के मुद्दों को लेकर वो कितना संघर्ष करते हैं वो जग जाहिर हैं,,, । ,,, रणजीत रावत का इस तरह भरे मंच पर सैकड़ों कार्यकर्ताओं के सामने अपने ही बड़े नेता पर तंज कसना इनके रिश्ते की खटास को दिखा रहा है,,,,साथ ही इसका कार्यकर्ताओं में भी मेसेज गया,,,कि भले आलाकमान  कुछ भी कर के लेकिन  बड़े नेता आपस में लड़ते रहेंगे,,,2027 से पहले एक बार फिर ये लड़ाई तेज होती दिखाई दे रही है,,, इसी आपसी लड़ाई और गुटबाजी ने पहले 2022 में भी कांग्रेस के हाथ आयी सत्ता को लगभग लात मार कर दूर कर दिया था,,
वैसे रंजीत रावत के इस बयां के जवाब में ,,हरीश रावत ने भी जवाब बड़े अलग अंदाज में दिया,,,हरीश रावत ने कहा, मैं जो भी अभियान चलाता हूं, वह व्यक्तिगत है। इसमें किसी तरह की राजनीति नहीं है। काफल व पहाड़ी ककड़ी हमारी जड़ें हैं। इन्हें बढ़ावा देने के लिए हमेशा आगे रहता हूं और आने वाले समय में भी मरते दम तक आगे रहूंगा,,, जिन लोगों को इस पर कोई आपत्ति है, उनसे क्षमा मांगता हूं।

 

 

रणजीत रावत का कहना है कि कांग्रेस का हर कार्यकर्ता संघर्ष के लिए तैयार है। लेकिन नेतृत्व को अगुवाई करनी होगी। तो क्या रणजीत रावत ये भी  कहना चाहते हैं कि प्रदेश अध्यक्ष कारन म्हारा संघर्ष नहीं कर रहे हैं ,,,रंजीत रावत के बयान से तो यही लगता है कि वो करन महारा के नेतृत्व पर उतना भरोसा नहीं कर रहे हैं, मतलब प्रदेश अध्यक्ष करण माहरा को भी साबित करनी होगी अपनी योग्यता पूर्व विधायक राजनजित रावत के समक्ष ,,दूसरी तरफ हरीश रावत और हरक सिंह रावत में भी बयानबाजी हुई है,,,जिसमें हरक सिहं ने साफ़ कहा है कि 2016 में जो कुछ हुआ उसका उनको कोई दुःख नहीं है,,पूर्व मंत्री हरक सिंह रावत ने कहा  कि 2022 में हरीश रावत चुनाव नहीं लड़ते तो कांग्रेस सत्ता में होती,,,हरीश रावत लालकुआं व हरिद्वार ग्रामीण विधानसभा को छोड़कर कहीं भी प्रचार करने नहीं गए।

 

 

 

उधर, पूर्व सीएम हरीश रावत ने पलटवार करते हुए कहा, यदि मैं बड़े नेताओं के समक्ष ना कर देता तो हरक सिंह कांग्रेस में शामिल नहीं हो पाते। मैंने उनके आग्रह का सम्मान किया। हरक सिंह एक सीट जीता कर अपनी क्षमता को साबित तो करें, जिससे 2016 की कट़ुता दूर हाे सके  ,,,इतना ही नहीं हरीश रावत ने एक बड़ी बात कह डाली कि केदारनाथ उपचुनाव में भी हरक सिंह रावत और उनके करीबियों ने पार्टी के लिए काम नहीं किया,,,  इस सारी अंदरूनी जंग के किस्से  5 जून को दिल्ली में हुई कांग्रेस की एक अहम बैठक में भी पहुंचे ,,,,, इस बैठक में राहुल गांधी, मल्लिकार्जुन खरगे जैसे टॉप लीडर्स ने हिस्सा लिया था  । नेताओं की बयानबाजी को लेकर पार्टी हाईकमान ने सख्त रुख अपनाया,,,शीर्ष नेतृत्व ने हिदायत दी कि अनुशासनहीनता करने वाले नेताओं पर पार्टी सख्त कार्रवाई करेगी। कोई भी नेता एक-दूसरे के खिलाफ बयानबाजी न करे। 2027 के लिए सभी नेता एकजुट होकर पार्टी के लिए काम करें। राष्ट्रीय व प्रदेश स्तर पर पार्टी की ओर से जो कार्यक्रम तय किए जाते हैं। उसमें सभी नेताओं की भागीदारी जरूरी है।

माना जा रहा है कि  कुछ नेताओं ने गढ़वाल और कुमाऊं में पदों में सामंजस्य बढ़ाने की बात कहि,,,,अभी वर्तमान में नेता प्रतिपक्ष और प्रदेश अध्यक्ष दोनों कुमाऊं से हैं,,,प्रदेश अध्यक्ष पद को लेकर भी बात उठी,,, इस पर राहुल गांधी ने तर्क दिया कि इससे पहले भी कुमाऊं से ही मुख्यमंत्री, नेता प्रतिपक्ष व अध्यक्ष रहे हैं,,,,,, कारन महारा जो अभी वर्तमान में प्रदेश अध्यक्ष हैं उन्होंने पार्टी हित में एक कदम आगे बढ़कर जो कहा वो तारीफ के काबिल है,,,जानकारी के मुताबिक करन महारा ने  साफ़ कहा कि अगर उनको हटाना है तो हटा दीजिये,,,,और जल्दी ही नया अध्यक्ष चुन लीजिये,,,,क्योंकि रोज रोज के कयासों से पार्टी को नुकसान हो रहा है,,

 

अब आखिर में सवाल ये है कि क्या इस बैठक में उत्तराखंड कांग्रेस के लिए कोई ठोस रणनीति बन चुकी है? या फिर ये भी बस एक औपचारिकता बनकर रह जाएगी,,,और सबसे बड़ा सवाल—क्या कांग्रेस इस अंदरूनी कलह से बाहर निकलकर बीजेपी को टक्कर दे पाएगी? ,,कांग्रेस कौन सा रास्ता चुनेगी? ,,,,,,क्या कांग्रेस आपस में लड़ रहे नेताओं से आगे बढ़कर भविष्य की राजनीती के मध्येनजर युवा और जोशीले चेहरे ,,,जैसे तेज़ तर्रार नेता गणेश गोदियाल,,,cm धामी को हराकर विधानसभा पहुंचे उपनेता प्रतिपक्ष भुवन कापड़ी,,,कांग्रेस में महिलाओं को नए कलेवर में खड़ा करने वाली ,, हर जनहित के मुद्दों पर आगे रहने वाली कांग्रेस महिला अध्यक्ष ज्योति रौतेला ,बद्रीनाथ जैसी हिंदुत्व की सीट पर पूरी सरकार को घुटनों पर लाकर जीत हासिल करने वाले बद्रीनाथ विधायक लखपत बुटोला जैसे तेज तर्रार नेताओं को कोई बड़ी भूमिका दे पाएगी ?? ,,,ये देखना होगा ?क्योंकि कुछ नेता आपसी खींचतान में इतना व्यस्त हो चुके हैं कि इससे पार्टी को क्या नुकसान हो रहा है उसकी शायद उनको फ़िक्र नहीं है,,,कुछ नेता जिनका उत्तराखंड में कोई ख़ास प्रभाव नहीं है,,,जो अपनी विधानसभा के भीतर भी कुछ ख़ास कांग्रेस पार्टी  के लिए नहीं कर पाए,,,वो दिल्ली दरबार के कुछ नेताओं से अपने संबंधों के चलते राजनीती हाँक रहे हैं,,,,क्या कांग्रेस आलाकमान उत्तराखंड में उन घोड़ों की सही पहचान कर पायेगा  जो रेस में तेज दौड़ने की छमता रखते हैं,,,, यही नसब सवालों के जवाब कांग्रेस का भविष्य उत्तराखंड में तय कर पाएंगे ,, मगर इन सभी सवालों के जवाब सिर्फ दिल्ली में बैठे कांग्रेस आलाकमान के पास ही हैं ,,