Category Archive : अंतरराष्ट्रीय खबर

WHO की चेतावनी- इन चीजों के सेवन से हो सकती हैं ये बड़ी बीमारियां…

218 Views -

 

क्या आप कोल्ड ड्रिंक के शौकीन हैं और एक दिन में कई-कई बोतल कोल्ड ड्रिंक पी जाते हैं, तो कृपया सावधान हो जाइए, क्योंकि कोल्ड ड्रिंक भी अब आपको कैंसर का रोग लगा सकती है.अगर आप भी डाइट सॉफ्ट ड्रिंक्स, आइसक्रीम और च्युइंग गम के आदी हैं तो अब वक्त आ गया है इन चीजों से दूरी बना ली जाए. क्योंकि एक रिसर्च में इनको लेकर एक चौंकाने वाला खुलासा किया गया है. रिसर्च में दावा किया गया है कि इन चीजों का सेवन करने से कैंसर जैसी खतरनाक बीमारी का जोखिम पैदा हो सकता है. आज की भाग दौड़ भरी जिंदगी में हम इतना व्यस्त रहते हैं कि अपनी सेहत के बारे में कुछ सोच ही नहीं पाते,और अपने व्यस्त समय में ही कुछ ऐसा खा लेते हैं जो हमारी सेहत पर बहुत बुरा असर डालती हैं,अधिकतर नौकरीपेशा लोग  समय की कमी के चलते अपने खाने पीने में ऐसी चीजों का उपयोग करते हैं जो आसानी से उपलब्ध हो जाती है और यहीं हम लोग बड़ी गलती करते हैं,,, अधिकतर लोग अपने जीवन में सॉफ्ट ड्रिंक्स का लगातार इस्तेमाल करते हैं,घर हो या ऑफिस या कोई पार्टी सभी जगह  सॉफ्ट ड्रिंक्स का इस्तेमाल किया जाता है लेकिन क्या आप जानते हैं इससे आपको कैंसर जैसी भयानक और जानलेवा बीमारी हो सकती है? शायद आपको नहीं पता होगा कि  जिन सॉफ्ट ड्रिंक्स को हम मजे से पीते हैं दरअसल वो सॉफ्ट ड्रिंक भी दो तरह की होती हैं. एक नॉर्मल और दूसरी डाइट यानी शुगर फ्री. नॉर्मल कोल्ड ड्रिंक में मिठास के लिए चीनी का इस्तेमाल होता है. लेकिन डायट कोल्ड ड्रिंक में चीनी की बजाय आर्टिफिशियल स्वीटनर का इस्तेमाल होता है.  कोल्ड ड्रिंक्स और च्यूइंगम में जो आर्टिफिशियल स्वीटनर इस्तेमाल होता है उसका नाम है एस्पार्टेम….  एस्पार्टेम, असल में मिथाइल एस्टर नामक एक कार्बनिक कंपाउंड है.और यही आर्टिफिशियल स्वीटनर कैंसर का कारण बन सकते हैं।

 

WHO की रिसर्च में बड़ा खुलासा- 

अगर आप भी डाइट कोक, आइसक्रीम और च्युइंग गम के आदी हैं तो अब वक्त आ गया है इन चीजों से दूरी बना ली जाए. क्योंकि एक रिसर्च में इनको लेकर एक चौंकाने वाला खुलासा किया गया है. रिसर्च में दावा किया गया है कि इन चीजों का सेवन करने से कैंसर जैसी खतरनाक बीमारी का जोखिम पैदा हो सकता है. विश्व स्वास्थ्य संगठन की इस रिसर्च के मुताबिक, एस्पार्टेम एक कार्सिनोजेनिक है, जिसका मतलब है कि ये बॉडी में कैंसर सेल्स को ट्रिगर करने का काम कर सकता है. अगर आप किसी भी ऐसी चीज का सेवन कर रहे हैं, जिसमें एस्पार्टेम मौजूद है तो इसका साफ-सीधा मतलब यह है कि आप खुद कैंसर जैसी घातक बीमारी को निमंत्रण दे रहे हैं. डाइट ड्रिंक्स , डाइट सोडा और च्युइंग गम में एस्पार्टेम का भरपूर इस्तेमाल किया जाता है. एस्पार्टेम एक तरह का आर्टिफिशियल स्वीटनर है, जिसका इस्तेमाल मिठास लाने के लिए किया जाता है।

 

कब और किसने खोजा एस्पार्टेम को- 

 

एस्पार्टेम को लैब में बनाया जाता है. ये चीनी से 200 गुना ज्यादा मीठा होता है. 1965 में जेम्स एम. श्लैटर नाम के एक केमिस्ट ने एस्पार्टेम को खोजा था. साल 1981 में अमेरिका के फ़ूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन डिपार्टमेंट यानी FDA ने कुछ ड्राई फ्रूट्स में इसके इस्तेमाल को मंजूरी दी और फिर साल 1983 से पेय पदार्थों में भी इसका इस्तेमाल शुरू हो गया।

 

क्या कहता है IARC –

इंटरनेशनल एजेंसी फॉर रिसर्च ऑन कैंसर’ (IARC) का कहना है कि इससे फर्क नहीं पड़ता कि आप कितनी मात्रा में एस्पार्टेम से भरपूर चीजों का सेवन कर रहे हैं. अगर आप थोड़ी मात्रा में भी इस आर्टिफिशियल स्वीटनर का सेवन कर रहे हैं तो मतलब अपनी जिंदगी को खतरे में डाल रहे हैं. एस्पार्टेम सेहत के लिए कितना खतरनाक है, इसका अंदाजा आप इस बात से लगा सकते हैं कि दानेदार चीनी की तुलना में एस्पार्टेम में 200 गुना मिठास ज्यादा होती है. आज 95 प्रतिशत Sugar Free Soft Drink industry में Aspartame का ही प्रयोग किया जाता है. इतना ही नहीं बाजार में उपलब्ध 97 प्रतिशत तक Sugar Free टेबलेट और पाउडर में एस्पार्टेम का ही इस्तेमाल होता है. इसी तरह शुगर फ्री Chewing Gum Industry में भी एस्पार्टेम का ही प्रयोग किया जाता है. यानी भले ही आप शुगर फ्री या डायट देखकर कोल्ड ड्रिंक पी रहे हैं और सोच रहे हैं कि इससे आपकी सेहत को कोई नुकसान नहीं होगा तो आप ये समझ लीजिये कि ऐसा करके आप खुद को ही धोखा दे रहे हैं।

 

सिर्फ कैंसर ही नहीं, कई बीमारियां पैदा कर सकता है एस्पार्टेम-

अब तक आर्टिफिशियल स्वीटनर एस्पार्टेम को फूड कैटेगरी में रखा गया था. इसलिए WHO भी इसके इस्तेमाल को खतरनाक नहीं मानता था. हालांकि एस्पार्टेम पर सवाल तो काफी पहले से उठते रहे हैं. कई इंटरनेशनल स्टडीज में ये बात सामने आ चुकी है कि एस्पार्टेम स्वीटनर का लगातार इस्तेमाल शरीर के कई अंगों में करीब 92 तरह के दुष्प्रभाव पैदा करते हैं. जिनमें से कुछ हम आपको  बताते हैं.स्टडी के मुताबिक एस्पार्टेम का लंबे समय तक सेवन करने की वजह से आंखों में धुंधलेपन की शिकायत हो सकती है. गंभीर स्थिति में ये अंधेपन की वजह भी बन सकता है. लंबे वक्त तक एस्पार्टेम के सेवन से कान में भिनभिनाने और तेज आवाज में परेशानी आना शामिल है. ये बहरेपन की वजह भी बन सकता है. एस्पार्टेम के लगातार सेवन से हाई ब्लड प्रेशर और सांस लेने में कठिनाई की समस्या हो सकती है.इतना ही नहीं माइग्रेन, कमजोर याददाश्त और मिर्गी के दौरे जैसी बीमारियों की वजह भी लंबे समय तक एस्पार्टेम का इस्तेमाल हो सकता है.एस्पार्टेम के सेवन की वजह करने की वजह से मरीज डिप्रेशन का शिकार भी हो सकता है. चिड़चिड़ापन और नींद ना आने की समस्या हो सकती है. एस्पार्टेम के इस्तेमाल के चलते, डायबिटीज के नियंत्रण में परेशानी, बालों का झड़ने, वजन घटने या बढने जैसी चीजें भी हो सकती हैं।

 

IARC ने किया ये ऐलान-

इंटरनेशनल एजेंसी फॉर रिसर्च ऑन कैंसर यानी IARC ने ऐलान किया है कि वो जल्द ही एस्पार्टेम को कार्सिनोजेनिक (carcinogenic) कैटेगरी में शामिल करने वाली है. दरअसल कार्सिनोजेंस वो पदार्थ होते हैं जो इंसानों में किसी ना किसी तरीके से कैंसर की वजह बन सकते हैं.  WHO की रिपोर्ट में साफ-साफ लिखा है कि एस्पार्टेम से तैयार कोल्ड ड्रिंक और अन्य चीजें कैंसर करवा सकती हैं. और अब बाजार में शुगर फ्री के नाम पर जो कुछ भी चीजें आएंगी. उन पर वॉर्निंग लिखी होगी कि – इससे कैंसर होता है. वैसे ही जैसे सिगरेट के पैकेट पर लिखा होता है. बता दें कि पिछले साल फ्रांस में एस्पार्टेम के प्रभावों को लेकर एक लाख से अधिक लोगों पर एक रिसर्च की गई थी. इस रिसर्च में सामने आया था कि जो लोग आर्टिफिशियल स्वीटनर का इस्तेमाल करते हैं, उनमें कैंसर का रिस्क ज्यादा रहता है. तो सोचिये इतने खतरनाक आर्टिफिशियल स्वीटनर का इस्तेमाल कोल्ड ड्रिंक को मीठा बनाने में हो रहा है. इंग्लैंड में न्यू हार्वर्ड स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ की एक रिपोर्ट के मुताबिक हर साल लगभग दो लाख मौतों के लिए आर्टिफिशियल स्वीटनर से तैयार ड्रिंक्स ही सीधे तौर पर जिम्मेदार हैं।

 

इन बातों पर जरूर गौर करें-

गौर करने वाली बात तो ये भी है कि इतने नुकसानों के बारे में पता होने के बावजूद कोल्ड ड्रिंक इंडस्ट्री दिन दूनी रात चौगुनी तरक्की कर रही है. रिपोर्ट के मुताबिक. वर्ष 2016 में भारत में एक व्यक्ति सालाना औसतन 44 बोतल कोल्ड ड्रिंक पीता था. इसके बाद वर्ष 2021 में एक व्यक्ति सालाना औसतन 84 बोतल कोल्ड ड्रिंक पीने लगा.यानी लगभग डबल ,,,,,,लेकिन अगर आप सोच रहे हैं कि भारत के लोग ही सबसे ज्यादा कोल्ड ड्रिंक पी रहे हैं तो गलत सोच रहे हैं. अमेरिका जैसे देशों की तुलना में ये खपत बहुत कम है.अमेरिका में एक व्यक्ति सालभर में औसतन 1496 बोतल कोल्ड ड्रिंक पी जाता है. मेक्सिको में 1489, जर्मनी में 1221 और ब्राजील में एक व्यक्ति सालाना औसतन 537 बोतल कोल्ड ड्रिंक पीता है. और ये तो तब है जब सबको पता है कि जितना ज्यादा कोल्ड ड्रिंक का सेवन उतना ज्यादा बीमारियों को निमंत्रण,,,लेकिन आज भी इन चीजों की इतनी बड़ी संख्या में हो रहा उपयोग ये बताता है कि लोग अपनी सेहत के प्रति कितने गंभीर है,,अगर आप भी स्वस्थ रहना चाहते हैं तो इन बातों पर जरूर गौर करिये।

यूनिफॉर्म सिविल कोड,असल मुद्दा या चुनावी चिंता

105,854 Views -

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक बार फिर समान नागरिक संहिता  पर टिप्पणी की है। पीएम मोदी के इस टिप्पणी के बाद राजनीतिक बहस फिर से शुरू हो गई है। प्रधानमंत्री मोदी ने मंगलवार को कहा कि भारत दो कानूनों पर नहीं चल सकता और समान नागरिक संहिता संविधान का हिस्सा है। पीएम के बयान से देश भर में बहस छिड़ गई है क्योंकि कई विपक्षी नेताओं ने पीएम मोदी पर कई राज्यों में चुनाव नजदीक आने पर राजनीतिक लाभ के लिए यूसीसी मुद्दा उठाने का आरोप लगाया है।

प्रधानमंत्री का यह बयान 22वें विधि आयोग द्वारा 30 दिनों के भीतर यूसीसी पर जनता और “मान्यता प्राप्त” धार्मिक संगठनों के विचार आमंत्रित करने के एक सप्ताह बाद आया है। कांग्रेस नेताओं ने पीएम मोदी पर महंगाई, बेरोजगारी और मणिपुर की स्थिति जैसी वास्तविक समस्याओं से ध्यान भटकाने के लिए यूसीसी मुद्दे का इस्तेमाल करने का आरोप भी लगाया।
   AIMIM  के प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने मंगलवार को प्रधानमंत्री की आलोचना करते हुए कहा, “भारत के प्रधानमंत्री भारत की विविधता और इसके बहुलवाद को एक समस्या मानते हैं। इसलिए, वह ऐसी बातें कहते हैं…कई पार्टियों के अलावा 30 से अधिक आदिवासी संगठनों ने भी आशंका व्यक्त की है कि समान नागरिक संहिता आदिवासी प्रथागत कानूनों को कमजोर कर देगी।कई मुस्लिम संगठन UCC को लेकर आशंकित हैं जिसको लेकर उनकी बैठकों का दौर भी चल रहा है.
अब आपको ये समझना होगा कि  UCC में आखिर ऐसा है क्या जो इसको लेकर इतना विवाद हो रहा है,,,,,, यूसीसी सभी धर्मों के लोगों के लिए व्यक्तिगत कानूनों की एक समान संहिता रखने का विचार है। व्यक्तिगत कानून में विरासत, विवाह, तलाक, चाइल्ड कस्टडी और गुजारा भत्ता जैसे कई पहलू शामिल हैं। हालांकि, वर्तमान में भारत के व्यक्तिगत कानून काफी जटिल और विविध हैं, प्रत्येक धर्म अपने विशिष्ट नियमों का पालन करता है।
भारतीय संविधान की मसौदा समिति के अध्यक्ष डॉ. बाबासाहेब अम्बेडकर का विचार था कि यूसीसी वांछनीय है, लेकिन संविधान सभा में महत्वपूर्ण विभाजन के बाद उन्होंने इसे फिलहाल स्वैच्छिक बने रहने का प्रस्ताव दिया। अंबेडकर ने कहा था कि , “शुरुआत करने के तरीके के रूप में, भविष्य की संसद यह प्रावधान कर सकती है कि संहिता केवल उन लोगों पर लागू होगी जो घोषणा करते हैं कि वे इसका पालन करने के इच्छुक हैं। दूसरे शब्दों में, प्रारंभ में, “संहिता का अनुप्रयोग विशुद्ध रूप से स्वैच्छिक हो सकता है।” अंबेडकर का  मानना था कि, यूसीसी को शुरू में एक स्वैच्छिक संहिता के रूप में पेश किया जा सकता है, और संसद निश्चित रूप से नागरिकों को इसका पालन करने के लिए बाध्य नहीं करेगी।
इसके पक्ष में दलील दी जाती है कि धार्मिक आधार पर पर्सनल लॉ होने की वजह से संविधान के पंथनिरपेक्ष की भावना का उल्लंघन होता है। संहिता के हिमायती यह मानते हैं कि हर नागरिक को अनुच्छेद 14 के तहत कानून के समक्ष समानता का अधिकार,अनुच्छेद 15 में धर्म, जाति, लिंग के आधार पर भेदभाव की मनाही और अनुच्छेद 21 के तहत जीवन और निजता के संरक्षण का अधिकार मिला हुआ है।इसके पक्षकारों की दलील है कि यूनिफॉर्म सिविल कोड के अभाव में महिलाओं के मूल अधिकार का हनन हो रहा है। शादी, तलाक, उत्तराधिकार जैसे मुद्दों पर एक समान कानून नहीं होने से महिलाओं के प्रति भेदभाव किया जा रहा है। पक्षकारों का तर्क है कि लैंगिक समानता और सामाजिक समानता के लिए समान नागरिक संहिता होनी ही चाहिए।
अल्पसंख्यक समुदाय के लोग यूनिफॉर्म सिविल कोड का खुलकर विरोध करते आए हैं। विरोध में तर्क देने वाले लोगों का कहना है कि संविधान के मौलिक अधिकार के तहत अनुच्छेद 25 से 28 के बीच हर शख्स को धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार मिला हुआ है। इसलिए हर धर्म के लोगों पर एक समान पर्सनल लॉ थोपना संविधान के साथ खिलवाड़ करना है।मुस्लिम इसे उनके धार्मिक मामलों में दखल मानते हैं। ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड  हमेशा से यूनिफॉर्म सिविल कोड को असंवैधानिक और अल्पसंख्यक विरोधी बताता रहा है। ये बोर्ड दलील देता है कि संविधान हर नागरिक को अपने धर्म के मुताबिक जीने की अनुमति देता है। इसी अधिकार की वजह से अल्पसंख्यकों और आदिवासी वर्गों को अपने रीति-रिवाज, आस्था और परंपरा के मुताबिक अलग पर्सनल लॉ के पालन करने की छूट है।
समान नागरिक कानून का जिक्र 1835 में ब्रिटिश सरकार की एक रिपोर्ट में भी किया गया था. इसमें कहा गया था कि अपराधों, सबूतों और ठेके जैसे मुद्दों पर समान कानून लागू करने की जरूरत है. इस रिपोर्ट में हिंदू-मुसलमानों के धार्मिक कानूनों से छेड़छाड़ की बात नहीं की गई है. हालांकि, 1941 में हिंदू कानून पर संहिता बनाने के लिए बीएन राव समिति का गठन किया गया. राव समिति की सिफारिश पर 1956 में हिंदुओं, बौद्धों, जैनियों और सिखों के उत्तराधिकार मामलों को सुलझाने के लिए हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम विधेयक को अपनाया गया. हालांकि, मुस्लिम, ईसाई और पारसियों लोगों के लिये अलग कानून रखे गए थे.
भारतीय अनुबंध अधिनियम-1872, नागरिक प्रक्रिया संहिता, संपत्ति हस्तांतरण अधिनियम-1882, भागीदारी अधिनियम-1932, साक्ष्य अधिनियम-1872 में सभी नागरिकों के लिए समान नियम लागू हैं. वहीं, धार्मिक मामलों में सभी के लिए कानून अलग हैं. इनमें बहुत ज्‍यादा अंतर है. हालांकि, भारत जैसे विविधता वाले देश में इसको लागू करना इतना आसान नहीं है. देश का संविधान सभी को अपने-अपने धर्म के मुताबिक जीने की पूरी आजादी देता है. संविधान के अनुच्छेद-25 में कहा गया है कि कोई भी अपने हिसाब धर्म मानने और उसके प्रचार की स्वतंत्रता रखता है.
भारत का सामाजिक ढांचा विविधता से भरा हुआ है. हालात ये हैं कि एक ही घर के सदस्‍य अलग-अलग रीति-रिवाजों को मानते हैं. अगर आबादी के आधार पर देखें तो देश में हिंदू बहुसंख्‍यक हैं. लेकिन, अलग राज्‍यों के हिंदुओं में ही धार्मिक मान्‍यताएं और रीति-रिवाजों में काफी अंतर देखने को मिल जाएगा. इसी तरह मुसलमानों में शिया, सुन्‍नी, वहावी, अहमदिया समाज में रीति रिवाज और नियम अलग हैं. ईसाइयों के भी अलग धार्मिक कानून हैं. वहीं, किसी समुदाय में पुरुष कई शादी कर सकते हैं. कहीं विवाहित महिला को पिता की संपत्ति में हिस्सा नहीं मिल सकता तो कहीं बेटियों को भी संपत्ति में बराबर का अधिकार दिया गया है. समान नागरिक संहिता लागू होते ही ये सभी नियम खत्म हो जाएंगे. हालांकि, संविधान में नगालैंड, मेघालय और मिजोरम के स्‍थानीय रीति-रिवाजों को मान्यता व सुरक्षा देने की बात कही गई है.
कोर्ट भी समय समय पर इस पर कई बार अपनी बात कह चुका है,ट्रिपल तलाक से जुड़े 1985 के चर्चित शाह बानो मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि अनुच्छेद 44 एक ‘मृत पत्र’ जैसा हो गया है. साथ ही कोर्ट ने देश में समान नागरिक संहिता लागू करने की जरूरत पर जोर दिया था. गोवा के लोगों से जुड़े 2019 के उत्तराधिकार मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था, ‘राज्य के नीति निदेशक सिद्धांतों की चर्चा करने वाले भाग चार के अनुच्छेद-44 में संविधान के संस्थापकों ने अपेक्षा की थी कि राज्य भारत के सभी क्षेत्रों में नागरिकों के लिए समान नागरिक संहिता लागू करने की कोशिश करेगा. लेकिन, आज तक इस पर कोई कदम नहीं उठाया गया.
समान नागरिक संहिता के मामले में गोवा अपवाद है. गोवा में यूसीसी पहले से ही लागू है. बता दें कि संविधान में गोवा को विशेष राज्‍य का दर्जा दिया गया है. वहीं, गोवा को पुर्तगाली सिविल कोड लागू करने का अधिकार भी मिला हुआ है. राज्‍य में सभी धर्म और जातियों के लिए फैमिली लॉ लागू है. इसके मुताबिक, सभी धर्म, जाति, संप्रदाय और वर्ग से जुड़े लोगों के लिए शादी, तलाक, उत्‍तराधिकार के कानून समान हैं. गोवा में कोई भी ट्रिपल तलाक नहीं दे सकता है. रजिस्‍ट्रेशन कराए बिना शादी कानूनी तौर पर मान्‍य नहीं मानी जाती . संपत्ति पर पति-पत्‍नी का समान अधिकार है. हालांकि, यहां भी एक अपवाद है. जहां मुस्लिमों को गोवा में चार शादी का अधिकार नहीं है. वहीं, हिंदुओं को दो शादी करने की छूट है. हालांकि, इसकी कुछ शर्तें भी हैं.
दुनिया के कई देशों में समान नागरिक संहिता लागू है. इनमें हमारे पड़ोसी देश पाकिस्‍तान और बांग्‍लादेश भी शामिल हैं. इन दोनों देशों में सभी धर्म और संप्रदाय के लोगों पर शरिया पर आधारित एक समान कानून लागू होता है. इनके अलावा इजरायल, जापान, फ्रांस और रूस में भी समान नागरिक संहिता लागू है. हालांकि, कुछ मामलों के लिए समान दीवानी या आपराधिक कानून भी लागू हैं. यूरोपीय देशों और अमेरिका में धर्मनिरपेक्ष कानून है, जो सभी धर्म के लोगों पर समान रूप से लागू होता है. दुनिया के ज्‍यादातर इस्लामिक देशों में शरिया पर आधारित एक समान कानून है, जो वहां रहने वाले सभी धर्म के लोगों को समान रूप से लागू होता है.

भारत में अगर यूनिफॉर्म सिविल कोड लागू होता है तो लड़कियों की शादी की उम्र बढ़ा दी जाएगी. इससे वे कम से कम ग्रेजुएट तक की पढ़ाई पूरी कर सकेंगी. वहीं, गांव स्‍तर तक शादी के पंजीकरण की सुविधा पहुंचाई जाएगी. अगर किसी की शादी पंजीकृत नहीं होगी तो दंपति को सरकारी सुविधाओं का लाभ नहीं मिलेगा. पति और पत्‍नी को तलाक के समान अधिकार मिलेंगे. एक से ज्‍यादा शादी करने पर पूरी तरह से रोक लग जाएगी. नौकरी पेशा बेटे की मौत होने पर पत्‍नी को मिले मुआवजे में माता-पिता के भरण पोषण की जिम्‍मेदारी भी शामिल होगी. उत्‍तराधिकार में बेटा और बेटी को बराबर का हक होगा.

 

पत्नी की मौत के बाद उसके अकेले माता-पिता की देखभाल की जिम्‍मेदारी पति की होगी. वहीं, मुस्लिम महिलाओं को बच्‍चे गोद लेने का अधिकार मिल जाएगा. उन्‍हें हलाला और इद्दत से पूरी तरह से छुटकारा मिल जाएगा. लिव-इन रिलेशन में रहने वाले सभी लोगों को डिक्लेरेशन देना पड़ेगा. पति और पत्‍नी में अनबन होने पर उनके बच्‍चे की कस्‍टडी दादा-दादी या नाना-नानी में से किसी को दी जाएगी. बच्‍चे के अनाथ होने पर अभिभावक बनने की प्रक्रिया आसान हो जाएगी.इस तरह के कई प्रावधान इसमें हो सकते हैं….