Category Archive : राज्य

कांवड़ियों के चरण धोकर मुख्यमंत्री ने किया सम्मान

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मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने ओम पुल के निकट गंगा घाट पर आयोजित कार्यक्रम में देशभर से आए शिव भक्त कांवड़ियों के पांव धोकर उनका स्वागत और सम्मान किया। उन्होंने भजन संध्या में भी भाग लिया और कहा कि यह उनका सौभाग्य है कि उन्हें शिव भक्तों का चरण प्रक्षालन कर आशीर्वाद लेने का अवसर मिला। इस दौरान हरिद्वार पहुंचे कांवड़ियों और शिव भक्तों पर हेलीकॉप्टर से पुष्पवर्षा भी कराई गई।

मुख्यमंत्री ने घोषणा की कि हरिद्वार में गंगा तट पर गंगा सभा और भारतीय नदी परिषद के तत्वावधान में दुनिया का सबसे ऊंचा, 251 फीट का भगवा ध्वज स्थापित किया जाएगा। उन्होंने कहा कि कांवड़ यात्रा केवल भक्ति नहीं, बल्कि सेवा, अनुशासन और सनातन संस्कृति का प्रतीक है।

मुख्यमंत्री ने बताया कि इस बार अब तक एक करोड़ से ज्यादा शिव भक्त अपनी यात्रा पूरी कर चुके हैं। उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में हो रहे धार्मिक स्थलों के पुनरोद्धार कार्यों — जैसे काशी कॉरिडोर, राम मंदिर, महाकाल लोक, केदारनाथ पुनर्निर्माण — का भी उल्लेख किया और कहा कि हरिद्वार-ऋषिकेश कॉरिडोर का निर्माण भी प्रस्तावित है।

मुख्यमंत्री ने कहा कि यात्रियों के लिए स्वास्थ्य केंद्र, शौचालय, पार्किंग, विश्राम स्थल, वाटर एंबुलेंस, सीसीटीवी और ड्रोन कैमरों के जरिये सुरक्षा व सुविधा सुनिश्चित की गई है। उन्होंने अपील की कि कांवड़ यात्रा के दौरान श्रद्धालु अनुशासन और मर्यादा बनाए रखें। उन्होंने कहा कि कुछ लोग यात्रा के उद्देश्य को भुलाकर अशांति फैलाने का प्रयास करते हैं, जो अनुचित है।

मुख्यमंत्री ने बताया कि राज्य में नकल विरोधी कानून, धर्मांतरण विरोधी कानून, दंगा विरोधी कानून और समान नागरिक संहिता लागू की गई है। ‘ऑपरेशन कालनेमि’ के जरिए सनातन धर्म के नाम पर धोखा देने वालों पर सख्त कार्रवाई की जा रही है।

मुख्यमंत्री ने सभी श्रद्धालुओं, संतों, स्वयंसेवी संगठनों और प्रशासन के सहयोग के लिए आभार जताया और अपील की कि यात्रा को सफल बनाने के लिए नियमों का पालन करें।

इस दौरान अखाड़ा परिषद अध्यक्ष महंत रविंद्र पुरी,राज्यसभा सासंद कल्पना सैनी,राज्यमंत्री ओमप्रकाश जमदग्नि,शोभाराम प्रजापति,देशराज कर्णवाल, हरिद्वार मेयर किरण जैसल,रुड़की मेयर अनीता देवी,जिला पंचायत अध्यक्ष किरण चौधरी ,विधायक प्रदीप बत्रा ,आदेश चौहान, मदन कौशिक,जिलाध्यक्ष हरिद्वार आशुतोष शर्मा, जिलाध्यक्ष रुड़की मधु,श्रीगंगा सभा अध्यक्ष नितिन गौतम,महामंत्री तन्मय वशिष्ठ,सभापति कृष्ण कुमार ठेकेदार,पूर्व विधायक संजय गुप्ता,प्रणव सिंह चैंपियन, जिलाधिकारी मयूर दीक्षित,आईजी राजीव स्वरूप,वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक प्रमेंद्र सिंह डोभाल, महामंडलेश्वर ललितानंद गिरि  आदि सहित बड़ी संख्या में श्रद्धालु उपस्थित थे |

 

 

केदारनाथ में खच्चर चलाने से लेकर देश के शीर्ष संस्थान तक पहुंचने वाला साधारण मेहनती लड़का।

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उत्तराखंड के एक छोटे से गांव से निकलकर देश के शीर्ष संस्थान तक पहुंचने वाला साधारण लेकिन बेहद मेहनती लड़का।

यह कहानी है केदारनाथ में खच्चर से सामान ढोने वाले अतुल कुमार की — उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग ज़िले के छोटे से गांव बीरों देवल से निकलकर IIT मद्रास तक का सफर तय करने वाले उस युवा की, जिसने साबित कर दिया कि हालात चाहे कितने भी कठिन क्यों न हों, मेहनत और हौसला कभी हार नहीं मानते।

अतुल का बचपन बेहद सामान्य रहा। उसके माता-पिता आज भी केदारनाथ धाम में खच्चर और घोड़े चलाकर यात्रियों का सामान ढोते हैं। परिवार की आर्थिक स्थिति कमजोर थी, इसलिए स्कूल की पढ़ाई के साथ-साथ अतुल भी हर साल केदारनाथ में खच्चर से सामान ढोने का काम करता था ताकि अपनी पढ़ाई का खर्च निकाल सके।लेकिन मुश्किलें कभी उसके सपनों के आड़े नहीं आईं।

पहाड़ की चढ़ाई और सपनों की उड़ान

अतुल शुरू से ही पढ़ाई में होशियार था। उसने 10वीं में 94.8%, 12वीं में 92.8% अंक हासिल किए और जिले में टॉप रैंक पाई। आज वह हेमवती नंदन बहुगुणा गढ़वाल विश्वविद्यालय, श्रीनगर से B.Sc. अंतिम वर्ष का छात्र है।

गांव में न कोचिंग थी और न ही अच्छी किताबें। उसने केदारनाथ यात्रा में जो पैसे कमाए, उनसे किताबें और मोबाइल डेटा रिचार्ज किया। नेटवर्क और बिजली की दिक्कतों के बावजूद वह रात-दिन जुटा रहा। सुबह से शाम तक यात्रियों का सामान ढोने के बाद वह रात को टॉर्च और स्टडी लैंप की रोशनी में पढ़ता। कई बार पहाड़ के किसी ऊंचे कोने में खड़े होकर मोबाइल नेटवर्क पकड़कर ऑनलाइन लेक्चर सुनता।

IIT JAM में बड़ी सफलता

इन्हीं संघर्षों के बीच उसने IIT JAM 2025 की परीक्षा दी और All India Rank 649 हासिल की। अब उसे M.Sc. Mathematics के लिए IIT मद्रास में दाख़िला मिल रहा है।

यह उपलब्धि सिर्फ अतुल की नहीं, बल्कि हर उस युवा की है, जो सीमित संसाधनों के बावजूद बड़े सपने देखने की हिम्मत रखता है।

गांव में जश्न, पूरे प्रदेश को गर्व

अतुल अपने गांव से IIT में चयनित होने वाला पहला छात्र है। गांव वालों ने ढोल-नगाड़ों और फूल-मालाओं से उसका स्वागत किया। उसके शिक्षकों और दोस्तों ने भी उसकी मेहनत को सलाम किया। मुख्यमंत्री और शिक्षा मंत्री ने भी सोशल मीडिया पर उसे बधाई दी और कहा कि अतुल उत्तराखंड के युवाओं के लिए प्रेरणा है।

माता-पिता ही सबसे बड़ी प्रेरणा

अतुल ने कहा —
“मेरे माता-पिता ने हमेशा कहा कि कोई काम छोटा नहीं होता, लेकिन पढ़ाई से जिंदगी बदल सकती है। मैंने वही किया। अब मेरा सपना है कि गणित में रिसर्च करूं और पहाड़ के बच्चों के लिए एक कोचिंग सेंटर खोलूं, ताकि वे भी बड़े सपने देख सकें।”

सर्कुलर पर रोक से बिगड़ गया प्रत्याशियों का चुनावी गणित, मतदाताओं को गांव तक लाना हुआ मुश्किल

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पंचायत मतदाता सूची के आधार पर मतदान के अधिकार संबंधी सर्कुलर पर हाईकोर्ट की रोक लगने के बाद प्रत्याशियों का चुनाव गणित गड़बड़ा गया है। अब उन मतदाताओं को गांव तक लाना मुश्किल हो गया है, जिनका नाम निकाय की मतदाता सूची में भी है।दरअसल, हाईकोर्ट ने ये स्पष्ट कर दिया है कि पंचायती राज एक्ट के हिसाब से जिनका नातम निकायों की मतदाता सूची में है, उन्हें पंचायत की मतदाता सूची में शामिल नहीं किया जा सकता है। ऐसे में मतदान करने, चुनाव लड़ने का सर्कुलर बेमतलब है। तमाम ऐसे प्रत्याशी हैं, जिनकी जीत का दारोमदार इन शहरी ग्रामीण मतदाताओं पर होता है। पंचायत चुनाव के समय वे आसपास के निकायों से ग्रामीणों को वोट डालने के लिए वापस लाते हैं।

 

कई मतदाता तो रिश्तेदारी की लिहाज में वोट डालने आ जाते हैं। कई अन्य कारणों से भी गांव में वोट डालने आते हैं। लेकिन दोहरे नामों के नियम के कारण अब प्रत्याशियों को उन्हें गांव तक लाने में पसीने छूट रहे हैं। इसका असर कई प्रत्याशियों की जीत पर भी नजर आ सकता है।

हाईकोर्ट का बड़ा आदेश: दो जगह वोटर लिस्ट में नाम वालों पर रोक

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नैनीताल। हाईकोर्ट ने राज्य निर्वाचन आयोग को तगड़ा झटका दिया है। उत्तराखंड हाईकोर्ट ने राज्य में होने वाले पंचायत चुनाव को लेकर अहम आदेश दिया है।
अदालत ने स्पष्ट किया कि जिन उम्मीदवारों के नाम शहर और गाँव — दोनों जगह की वोटर लिस्ट में दर्ज हैं, वे पंचायत चुनाव नहीं लड़ सकेंगे। ऐसे मामलों में तुरंत रोक लगाने के निर्देश देते हुए कोर्ट ने कहा कि यह आदेश चुनाव प्रक्रिया को बाधित नहीं करता, बल्कि चुनावी नियमों का पालन सुनिश्चित करने के लिए है।पंचायत चुनाव नाम वापसी के आखिरी दिन हाईकोर्ट के आदेश से  खलबली मची है।

 

गौरतलब है कि 6 जुलाई को राज्य निर्वाचन आयोग के सचिव के आदेश में नगर निकाय क्व मतदाताओं का पंचायत चुनाव लड़ने का रास्ता साफ ही गया था।

हालांकि, बाद में सचिव ने एक और आदेश जारी कर कहा कि पंचायती राज एक्ट के हिसाब से होंगे चुनाव।

इधऱ, इन आदेशों के खिलाफ दायर याचिका पर सुनवाई के बाद हाईकोर्ट ने 6 जुलाई के आदेश पर रोक लगा दी।

इधऱ, यह भी काबिलेगौर है कि 11 जुलाई ,शुक्रवार को नाम वापसी का अंतिम दिन है। ऐसे में हाईकोर्ट के स्टे के बाद राज्य निर्वाचन आयोग प्रतिबंधित दावेदारों को अब चुनाव लड़ने से कैसे रोक पायेगा?

नैनीताल के बुडलकोट क्षेत्र में 51 बाहरी लोगों के नाम वोटर लिस्ट में शामिल करने के मामले में भी सरकार से जवाब मांगा गया है। अदालत के इस आदेश से कई प्रत्याशियों की दावेदारी पर असर पड़ सकता है।

ऑपरेशन कालनेमि- पुलिस ने 25 ढोंगी बाबा किये गिरफ्तार

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देहरादून। मुख्यमंत्री के निर्देश पर चलाए जा रहे “ऑपरेशन कालनेमि” के तहत दून पुलिस ने शुक्रवार को बड़ी कार्रवाई करते हुए साधु-संतों का भेष धरकर लोगों को ठगने वाले 25 ढोंगी बाबाओं को गिरफ्तार किया। इनमें एक बांग्लादेशी नागरिक भी शामिल है, जिस पर विदेशी अधिनियम के तहत मामला दर्ज किया गया है।

एसएसपी खुद नेहरू कॉलोनी क्षेत्र में पहुंचे और सड़क किनारे बैठे बाबाओं से पूछताछ की। ज्योतिष विद्या और साधु परंपरा का कोई प्रमाण न देने पर उन्होंने मौके पर ही पुलिस को कार्यवाही के निर्देश दिए।
विभिन्न थाना क्षेत्रों में पुलिस ने फर्जी बाबाओं को गिरफ्तार किया, जिनमें 20 से अधिक अन्य राज्यों के हैं।

गिरफ्तारियां:

बांग्लादेशी नागरिक रूकन रकम उर्फ शाह आलम (26), प्रदीप (सहारनपुर), अजय चौहान (सहारनपुर), अनिल गिरी (हिमाचल), मंगल सिंह और रोझा सिंह (देहरादून), कोमल कुमार व अश्वनी कुमार (हाथरस), राजानाथ (देहरादून), रामकृष्ण और शौकीनाथ (यमुनानगर), मदन सिंह (चंपावत/हरिद्वार), राहुल जोशी (बिजनौर/देहरादून), मोहम्मद सलीम (हरिद्वार), और अन्य राजस्थान, असम, उत्तर प्रदेश व हरिद्वार के निवासी शामिल हैं।

एसएसपी ने बताया कि ऐसे फर्जी बाबाओं के खिलाफ कार्रवाई आगे भी जारी रहेगी ताकि देवभूमि में धर्म के नाम पर ठगी और आस्था से खिलवाड़ करने वालों पर सख्त शिकंजा कसा जा सके।

पंचायत चुनाव पर फिर मंडराया खतरा ! हाईकोर्ट में बहस 

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नैनीताल। हाईकोर्ट ने पंचायत चुनाव की तारीख को आगे खिसकाने सम्बन्धी याचिका को लेकर दायर जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए पंचायती राज सचिव व डीजीपी को सुरक्षात्मक उपायों के बाबत कोर्ट के समक्ष तथ्य पेश करने को कहा।

शुक्रवार को हुई सुनवाई में हाईकोर्ट ने कहा कि दोनों अधिकारी इस बाबत सरकार की आकस्मिक योजना पेश करें। संकट के समय कैसे स्थिति को कैसे संभाला जाएगा।

याचिकाकर्ता डॉ बैजनाथ शर्मा ने अपनी याचिका में विभिन्न कारणों का उल्लेख करते हुए पंचायत चुनाव की तिथि आगे खिसकाने की मांग की है।

गौरतलब है कि प्रदेश के पंचायत चुनाव में 24 व जुलाई को दो चरणों में मत डाले जाएंगे।

याचिका कर्ता ने कहा कि राज्य में गम्भीर आपदा व बरसात के मौसम में पंचायत चुनाव का कार्यक्रम जारी किया गया।

आपदा की वजह से प्रदेश की दर्जनों सड़कें बन्द होने से ग्रामीण इलाकों में आवाजाही ठप हो गयी है। ऐसे में चुनाव प्रचार व मतदान पर विपरीत असर लड़ेगा।

इसी महीने में कांवड़ यात्रा शुरू हो गयी है। लाखों की संख्या में कांवड़िए उत्तराखण्ड की ओर कूच कर रहे हैं। प्रदेश के कई पर्वतीय जिलों में कांवड़िए पहुंच रहे हैं।

यही नहीं, चारधाम यात्रा के चलने से प्रतिदिन हजारों तीर्थयात्री उत्तराखण्ड पहुंच रहे हैं। कुल मिलाकर उत्तराखण्ड के हरिद्वार से लेकर पर्वतीय जिलों में भारी जनसैलाब उमड़ रहा है।

कांवड़ यात्रा, आपदा प्रभावित इलाके और चारधाम यात्रा के लिए आवश्यक सुरक्षा बलों पर भी भारी बोझ देखा जा रहा है।

पुलिस-प्रशासन की सीमित टीम आपदा व पंचायत चुनाव के अलावा कांवड़ियों के लिए व्यवस्था बनाने में जुटी है। इससे अन्य जिलों में सुरक्षा बलों की कमी भी देखी जा रही है।

याचिकाकर्ता ने चारधाम यात्रा,आपदा, पंचायत चुनाव, कांवड़ यात्रा एक ही समय पर हो रही है। ऐसे में सभी मोर्चों पर जूझना काफी कठिन माना जा रहा है। लिहाजा, त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव जुलाई महीने के बजाय अन्य महीने में आयोजित किये जायें।

सुनवाई के दौरान राज्य सरकार की लीगल टीम ने अपना पक्ष भी रखा। सुनवाई के बाद हाईकोर्ट ने किसी भी संकट की घड़ी से निपटने के लिए डीजीपी व पंचायत सचिव को आकस्मिक योजना पेश करने को कहा है। मंगलवार को राज्य सरकार समूची व्यवस्था को लेकर कोर्ट में तथ्य पेश करेंगे।

गावं में एक भी ओबीसी नहीं,फिर भी प्रधान की सीट कर दी आरक्षित,नहीं भर पाया कोई पर्चा 

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पौड़ी। कल्जीखाल ब्लॉक की ग्राम पंचायत डांगी में ग्राम प्रधान पद ओबीसी महिला के लिए आरक्षित होने पर ग्रामीणों ने चुनाव का बहिष्कार करने का ऐलान किया है। मंगलवार को निवर्तमान प्रधान भगवान सिंह चौहान के नेतृत्व में शिष्टमंडल ने जिलाधिकारी स्वाति एस भदौरिया को ज्ञापन सौंपा।

डांगी में प्रधान पद को इस बार ओबीसी महिला आरक्षण के अंतर्गत रखा गया है, लेकिन समस्या ये है कि ग्राम डांगी में पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के कोई भी मतदाता या नागरिक मौजूद नहीं हैं. इस विसंगति के कारण ग्राम प्रधान पद के लिए एक भी नामांकन दाखिल नहीं हो पाया है. वहीं अब नाराज ग्रामीणों ने जिलाधिकारी को ज्ञापन सौंपते हुए आरक्षण में सुधार की मांग की है.साथ ही ग्राणीणों ने चेतावनी दी है कि यदि इस मुद्दे का समाधान नहीं किया गया, तो वे आगामी पंचायत चुनावों में क्षेत्र पंचायत और जिला पंचायत के लिए होने वाले मतदान का बहिष्कार करेंगे. ग्रामीणों का कहना है कि प्रशासन द्वारा क्षेत्रीय सामाजिक संरचना को नज़रअंदाज़ कर आरक्षण लागू किया गया है, जो ग्रामवासियों के लोकतांत्रिक अधिकारों का उल्लंघन है. ग्रामीणों ने मांग की है कि ग्राम प्रधान पद का आरक्षण तत्काल प्रभाव से बदला जाए, ताकि योग्य उम्मीदवारों को चुनाव लड़ने का अवसर मिल सके.

 

ग्रामीणों ने कहा कि गांव में कोई प्रमाणित ओबीसी व्यक्ति नहीं है और 2015 से अब तक किसी को ओबीसी प्रमाण पत्र जारी नहीं हुआ। ऐसे में आरक्षण नियमों के विरुद्ध है। सामाजिक कार्यकर्ता जगमोहन डांगी ने बताया कि शिकायतों के बावजूद समाधान नहीं हुआ और कोई नामांकन दाखिल नहीं हो सका। ग्रामीणों ने आंगनबाड़ी के रिक्त पदों का भी मुद्दा उठाया। जिलाधिकारी ने मामले को शासन को भेजने और निर्देशानुसार कार्रवाई का आश्वासन दिया।

पंचायत चुनाव में महिलाएं: नाम की मुखिया या असली नेता?

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क्या महिलाओं की राजनीति में भूमिका सिर्फ नाम भर की है? क्या महिलाएं सच में राजनीति में आगे बढ़ रही हैं,या फिर उन्हें सिर्फ ‘मोहरा’ बनाकर रखा जा रहा है? 2027 चुनाव से पहले उत्तराखंड में पंचायत चुनाव की सरगर्मी तेज़ हो चुकी है,,,गाँवों में चाय की दुकानों से लेकर चौपालों तक,हर जगह चर्चा का माहौल है। हर पार्टी और निर्दलीय उम्मीदवार प्रचार में जुटे हुए हैं,,,हर जगह बैनर-पोस्टर लग रहे हैं, वादों की बौछार हो रही है,,,और हर चुनाव की तरह, इस बार भी नेता कह रहे हैं,महिलाओं को सशक्त बनाएंगे, महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाएंगे, महिलाओं को सुरक्षा देंगे।” लेकिन क्या हर बार की तरह यह सिर्फ वादा ही रह जाएगा? क्या पंचायत चुनाव में महिलाएं सिर्फ सीट भरने का साधन हैं? या सच में उन्हें नेतृत्व का अवसर दिया जा रहा है?


यहाँ पर हमें दो बातें देखने की ज़रूरत है,,,पहला  प्रतिनिधित्व का आंकड़ा बढ़ा है,,,,दूसरा  असल में सिर्फ आंकड़ा बढ़ा है या फिर फैसले लेने की शक्ति भी बढ़ी है? पंचायतों में महिलाएं सीट पर तो आ गईं,लेकिन क्या वह मुखिया, सरपंच या ग्राम प्रधान बनकर ,सच में अपनी मर्जी से फैसले ले पा रही हैं? कई गाँवों में यह देखा गया है कि महिला प्रधान के नाम पर,उनके पति, भाई या पिता पंचायत चला रहे होते हैं। इसे ‘प्रधान  पति’ कल्चर कहा जाता है, जहाँ महिला नाम की मुखिया होती है,और सत्ता उनके परिवार के पुरुषों के हाथ में रहती है। उत्तराखंड के कुमाऊं और गढ़वाल के कई ब्लॉकों में यह आम बात है।अल्मोड़ा के छेत्र से एक महिला प्रधान चुनी गई,लेकिन पंचायत के हर फैसले में उनके पति और देवर ही बैठकों में आगे दिखाई दिए । पौड़ी के एक गाँव में महिला प्रधान की जगह उनके बेटे ने सरकारी अधिकारियों के साथ बैठकर योजनाओं की फाइल पर निपटारा किया भले हस्ताक्षर महिला प्रधान ने ही किये । 
ऐसे में सवाल उठता है कि   —क्या महिलाओं को ‘नाम की मुखिया’ बनाकर ही रखा जा रहा है? क्या हम सच में महिलाओं को सशक्त कर रहे हैं, या बस दिखावा कर रहे हैं?
आगे बढ़ें उससे पहले थोड़ा आरक्षण की स्थिति स्पष्ट कर दें… भारत में संविधान ने पंचायतों में महिलाओं के लिए 33% आरक्षण दिया है ,जिसे कई राज्यों ने बढ़ाकर 50% कर दिया।राजस्थान में पंचायतों में 56% महिला प्रतिनिधित्व है, महाराष्ट्र में 54%, बिहार में 50%। उत्तराखंड में भी पंचायत चुनाव में 50% सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित हैं,,,जो कागज़ों पर बड़ा सुकून महिलाओं के प्रति देता है , लेकिन असल में क्या महिलाएं खुद फैसले ले रही हैं? भले कोई सीधे तौर पर ये न माने पर सच यही है की मुख्य रूप से प्रधान पति, प्रधान पिता या प्रधान भाई ही फैसला लेते हैं ,,
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अब विधानसभा और संसद में महिलाओं की स्थिति पर आते हैं,,,पंचायतों में 50% आरक्षण है,लेकिन विधानसभा में उत्तराखंड में महिलाओं का प्रतिनिधित्व 7% है। देशभर में औसतन 10-12% महिलाएं ही विधानसभा में हैं। उत्तर प्रदेश — 11%,,,,,बिहार — 12%,,,,,,मध्यप्रदेश — 10%,,,,,,हरियाणा — 8%,,,,छत्तीसगढ़ सबसे ज़्यादा 18%  …. अब लोकसभा को देख लीजिये,,,,लोकसभा में महिलाओं का प्रतिनिधित्व सिर्फ 15% और राज्यसभा में 13% है,,,मतलब महिलाओ की आधी आबादी, लेकिन असल फैसलों में भागीदारी 10-15%… सवाल उठता है क्यों?

2022 विधानसभा चुनाव में उत्तराखंड में महिला मतदाता पुरुषों से अधिक थीं। फिर भी तीनों बड़ी पार्टियों ने 10% से भी कम टिकट महिलाओं को दिए।बीजेपी ने 8, कांग्रेस ने 5, आम आदमी पार्टी ने 7 महिलाओं को टिकट दिए, यानि 210 सीटों में सिर्फ 20 महिलाएं मैदान में उतरीं। इनमें से भी आधी महिलाएं किसी नेता की बेटी, पत्नी या बहू थीं। जिनको अपने परिवार की राजनीतिक विरासत संभालने के लिए टिकट मिला,,,,लेकिन आम घर की महिलाओं को टिकट क्यों नहीं? इस पर राजनीतिक दल कहते हैं,,,,“चुनाव जीतने के लिए जिताऊ उम्मीदवार चाहिए,,,जबकि राजनीतिक जानकार  मानते हैं कि हमारी राजनीति धनबल और बाहुबल पर चलती है। शराब, पैसे और माफिया का खेल चलता है।ऐसे माहौल में महिलाएं चुनाव लड़ने में खुद को असहज पाती हैं।
 
 

जानकारों की माने तो उत्तराखंड की राजनीति में खनन और शराब माफिया का भी प्रभाव है,,,,राजनीति एक सिंडिकेट की तरह काम करती है, जिसमें सत्ता पक्ष, विपक्ष, अफसर, माफिया और मीडिया का गठजोड़ है। यही 5-7 हज़ार लोग, सवा करोड़ की आबादी की राजनीति तय कर रहे हैं।,,,,,
लेकिन दोष केवल सिस्टम का ही नहीं है,राजनीतिक दलों का रवैया भी दोषी है। हर बार चुनाव में कहते हैं, “महिलाओं को टिकट देंगे,”लेकिन देने में कंजूसी करते हैं और मज़े की बात देखिए…जो महिलाएं चुनाव लड़ती हैं, उनका जीतने का प्रतिशत भी पुरुषों से अधिक होता है। महिलाओं के जीतने की दर 16.5% है,जबकि पुरुषों की 11.8%। यानी महिलाएं बेहतर परफॉर्म कर रही हैं.. फिर टिकट देने में कंजूसी क्यों? सवाल ये  नहीं है कि महिलाएं राजनीति में क्यों नहीं हैं,सवाल यह है कि उन्हें आने से रोका क्यों जा रहा है? देश आधा उनका है,तो फैसलों में हिस्सा आधा क्यों नहीं?
 

 

एक बात और ,,,महिलाओं की सुरक्षा हर चुनाव में मुद्दा बनती है।‘महिला हेल्पलाइन’, ‘पिंक पेट्रोलिंग’, ‘महिला सुरक्षा ऐप’ जैसे नाम गिनाए जाते हैं।लेकिन क्या महिलाएं सच में सुरक्षित हैं?उत्तराखंड के पहाड़ी इलाकों में महिलाओं को रोज़ 5-10 किलोमीटर पैदल चलकर पानी और लकड़ी लानी पड़ती है।रास्ते में छेड़छाड़ और यौन हिंसा की घटनाएं होती हैं।कई मामलों में शिकायत करने पर पुलिस भी गंभीरता से नहीं लेती।जब महिलाओं की सुरक्षा ही नहीं हो पा रही,तो राजनीति में आने पर भी वह कैसे सुरक्षित महसूस करेंगी?क्योंकि राजनीती में तो इससे बढ़कर  उन्हें ट्रोलिंग, गाली-गलौज, चरित्र हनन का सामना करना पड़ता है जो आम महिला नेता के लिए किसी यातना से कम नहीं



महिलाओं के नाम पर कई योजनाएं भी बनी हैं।महिला उद्यमिता योजना’, ‘महिला स्टार्टअप फंड’, ‘मुख्यमंत्री महिला सशक्तिकरण योजना’…लेकिन 2024 में केवल 18% सरकारी फंडिंग महिला उद्यमियों को मिली।महिला स्टार्टअप में 60% प्रोजेक्ट फंड की कमी से बंद हो गए।ज्यादातर योजनाएं कागज तक सीमित रह गईं।सरकारी आंकड़ों में जो महिला आत्मनिर्भर दिखाई जाती है,ज़मीन पर हालात अलग हैं।हमारे समाज में महिलाओं को देवी का दर्जा दिया गया है।लेकिन क्या राजनीति में उन्हें वही दर्जा दिया गया? क्या हम महिलाओं को सिर्फ त्योहारों में पूजने के लिए देवी मानते हैं,या उन्हें फैसलों की मेज़ पर भी बराबरी का दर्जा देना चाहते हैं?
अगर हम एक सशक्त और निष्पक्ष लोकतंत्र चाहते हैं,तो पंचायतों में उन्हें फैसले लेने का अधिकार देना होगा न की उनके पति ,पिता या भाई को  ,,, विधानसभा और संसद में भी महिलाओं की भागीदारी बढ़ानी होगी।वो भी नाम मात्र की नहीं, असल नेतृत्व के साथ। महिलाओं को सिर्फ घोषणा पत्रों और पोस्टरों की शोभा नहीं बल्कि उन्हें असली सत्ता और फैसलों में बराबरी का हिस्सा देना होगा ।
जब महिलाएं असलियत में आगे आएंगी,तो राजनीति में भी ईमानदारी, संवेदनशीलता और पारदर्शिता आएगी। उत्तराखंड की महिलाएं पहाड़ की चट्टानों सी मजबूत हैं। वो खेत संभाल सकती हैं, जंगल से लकड़ी ला सकती हैं, बच्चों की परवरिश कर सकती हैं,तो राजनीति भी संभाल सकती हैं,जरूरत है, उन्हें सिर्फ मौका देने की।

‘यह सिर्फ एक सीन था’ कहकर फंसे राठौर, कांग्रेस ने पूछा– कारवां लुटा कैसे?

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 उत्तराखंड की सियासत इन दिनों एक अनोखे ‘प्रेम प्रसंग’ को लेकर गर्म है, जिसमें अभिनय, सियासत, महिला सम्मान और नैतिकता के तमाम आयाम एक साथ उलझे हुए हैं। चर्चित भाजपा नेता और हरिद्वार जिले के ज्वालापुर से पूर्व विधायक सुरेश राठौर हाल ही में उर्मिला सनावर (फिल्म अभिनेत्री) के साथ मंच साझा करते हुए उसे “अपने जीवन की साथी” बता बैठे। कैमरे और माइक के सामने रिश्तों का यह सार्वजनिक ऐलान कुछ ही घंटों में सोशल मीडिया पर वायरल हो गया।

लेकिन हंगामा बढ़ते ही राठौर पलट गए। सफाई दी कि “यह तो बस एक फिल्म का सीन था”। इस सफाई ने आग में घी डालने का काम किया। सवाल उठने लगे कि क्या अब भाजपा नेताओं की सार्वजनिक घोषणाएं भी किसी स्क्रिप्ट का हिस्सा हैं? और अगर यह अभिनय था तो मंच, माला और सार्वजनिक संवाद किसलिए?

 

 

प्रकरण गरमाया तो भाजपा ने भी पैंतरा बदला। पहले चुप्पी साधे रही, फिर जनदबाव बढ़ने पर राठौर को पार्टी की छवि धूमिल करने और अनुशासनहीनता के आरोप में नोटिस थमा दिया गया। राठौर ने प्रदेश अध्यक्ष महेंद्र भट्ट से भेंट कर अपना पक्ष रखा है, जिस पर पार्टी विचार कर रही है।

लेकिन इस पूरे घटनाक्रम ने कांग्रेस को हमलावर होने का मौका दे दिया।
पार्टी की मुख्य प्रवक्ता गरिमा मेहरा दसौनी ने भाजपा पर हमला बोलते हुए कहा, “नाटक, झूठ और पाखंड की शैली से जनता को भ्रमित नहीं किया जा सकता।” उन्होंने तंज कसते हुए पूछा, “तू इधर-उधर की बात न कर, ये बता कारवां लुटा कैसे?”

गरिमा ने भाजपा से पूछा कि क्या यह पहला मामला है जब पार्टी के नेता महिलाओं से जुड़े विवादों में फंसे हों? क्या हर बार कार्रवाई तब होती है जब जनता का गुस्सा उबाल पर आ जाता है? और क्या UCC जैसे कानूनों का हवाला सिर्फ जनता को उलझाने के लिए दिया जाता है?

भाजपा की ओर से प्रदेश मीडिया प्रभारी मनवीर चौहान ने स्पष्ट किया कि पार्टी किसी भी प्रकार के अमर्यादित आचरण को स्वीकार नहीं करती। उन्होंने बताया कि अनुशासन समिति में राठौर के मामले पर गंभीरता से विचार किया जाएगा।

सियासत और व्यक्तिगत जीवन की यह जटिल गाथा एक ओर राजनीति के चरित्र पर सवाल खड़े कर रही है, तो दूसरी ओर दर्शा रही है कि अब जनता केवल भाषणों से नहीं, आचरण से भी जवाब मांगती है।

पंचायत चुनाव पर हाईकोर्ट की रोक बरकरार,सभी याचिकाओं को किया गया क्लब

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उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने राज्य में त्रिस्तरीय पंचायत चुनावों पर लगी अंतरिम रोक को फिलहाल बरकरार रखा है। राज्य सरकार की ओर से आज मुख्य न्यायाधीश की खंडपीठ के समक्ष स्टे वेकेशन (रोक हटाने) का अनुरोध किया गया, जिसे खंडपीठ ने बुधवार दोपहर सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया है।

गौरतलब है कि राज्य निर्वाचन आयुक्त ने 21 जून को प्रदेश के 12 जिलों में त्रिस्तरीय पंचायत चुनावों का कार्यक्रम जारी कर चुके हैं। लेकिन बीते सोमवार को हाईकोर्ट ने पंचायत आरक्षण के मुद्दे को लेकर चुनावों पर रोक लगा दी। इससे सरकार को बैकफुट पर आना पड़ा। इस मसले पर नौकरशाही की ढिलाई भी सामने आ रही है।

इधऱ, मामले में अब तक दायर की गई सभी याचिकाओं को एक साथ क्लब कर बुधवार को सुनवाई की जाएगी। हाईकोर्ट ने सरकार को सुनवाई में अपना पक्ष स्पष्ट करने के निर्देश दिए हैं।

गौरतलब है कि पिछले सप्ताह कोर्ट ने पंचायत चुनावों में आरक्षण प्रक्रिया को लेकर दायर याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए चुनावी प्रक्रिया पर अंतरिम रोक लगा दी थी। याचिकाओं में आरोप लगाया गया था कि सरकार ने आरक्षण रोस्टर और अधिसूचना प्रक्रिया में नियमों की अनदेखी की है, जिससे संवैधानिक प्रक्रिया पर प्रश्नचिन्ह लग गया है।

अब बुधवार की सुनवाई से यह तय होगा कि क्या अदालत पंचायत चुनावों पर लगी रोक हटाती है या मामले में कोई अंतरिम व्यवस्था जारी रखती है।
बहरहाल, प्रत्याशी 25 जून से भरे जाने वाले नामांकन की तैयारी कर रहे थे। अब भारी असमंजस का मंजर देखने को मिल रहा है।