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Dehradun: दून अस्पताल की इमरजेंसी का बुरा हाल, कंधे पर उठाकर ले जा रहे मरीज.

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उत्तराखंड की राजधानी देहरादून के सबसे बड़े अस्पताल दून अस्पताल की इमरजेंसी और ओपीडी में आ रहे मरीजों के तीमारदारों को स्ट्रेचर, व्हीलचेयर के लिए परेशान होना पड़ता है। अस्पताल में मरीज आते हैं तो उन्हें तुरंत उपचार की जरूरत होती है, लेकिन अस्पताल के गेट पर कभी स्ट्रेचर और कभी व्हीलचेयर नहीं मिल पाती है। स्थिति यह है कि अस्पताल के गेट से मरीजों को गोद में उठाकर ट्रायज एरिया तक ले जाना पड़ता है।

दून अस्पताल की इमरजेंसी में रोजाना 200 से 300 मरीज और ओपीडी में 2000 से 2500 मरीज तक इलाज के लिए आते हैं। इसमें 50 फीसदी मरीज गंभीर अवस्था में होते हैं। मरीज को एंबुलेंस से लाने के बाद तीमारदार सबसे पहले गेट पर स्ट्रेचर और व्हीलचेयर ही खोजते हैं। लेकिन दून अस्पताल के गेट पर स्ट्रेचर और व्हीलचेयर कभी नहीं मिलती है। मरीज की गंभीर हालत देखते हुए तीमारदार मरीज को गोद में उठाकर ही ट्रायज एरिया तक ले जाते हैं। सोमवार को भी यही स्थिति देखने को मिली। एक मरीज के तीमारदार एंबुलेंस के स्ट्रेचर से मरीज को उठाकर अस्पताल के अंदर ले जा रहे थे। वहीं, दूसरी ओर ओपीडी में बुजुर्ग मरीज को कंधे पर उठाकर तीमारदार ले जा रहे थे। अस्पताल में यह भी देखने को मिला व्हीलचेयर पर सामान ढोया जा रहा है।

 

अस्पताल में जमा है 400 आधार कार्ड, वापस नहीं की व्हीलचेयर-

अस्पताल प्रशासन के मुताबिक इमरजेंसी के गेट पर स्ट्रेचर और व्हीलचेयर रखे जाते हैं। कोई एक मरीज आता है तो उसको स्ट्रेचर दे दिया जाता है। स्ट्रेचर और व्हीलचेयर देने पर मरीज के तीमारदार से आधार कार्ड जमा करवाया जाता है। यह भी कहा जाता है कि मरीज आधार कार्ड वापस लेने आए तो व्हीलचेयर और स्ट्रेचर वापस कर दे। फिलहाल स्थिति यह है कि तीमारदार न व्हीलचेयर, स्ट्रेचर वापस करने आते हैं और न ही अपना आधार कार्ड ले जाते हैं। अस्पताल प्रशासन के मुताबिक इमरजेंसी में करीब 400 तीमारदारों के आधार कार्ड जमा हो गए हैं। 

इमरजेंसी के गेट पर मरीजों के लिए पांच व्हीलचेयर, पांच स्ट्रेचर और ओपीडी में दो स्ट्रेचर, दो व्हीलचेयर लगाने के स्पष्ट निर्देश दिए गए हैं। स्ट्रेचर और व्हीलचेयर पर सामान ढोते थे, इसलिए ट्राली मंगाई गई। इन व्यवस्थाओं को बेहतर बनाने के लिए गार्ड को भी स्पष्ट निर्देश दिए गए हैं। 

Uttarakhand- कोरोना काल में बंद रहा काम, बिजली विभाग ने भेजा लाखों का बिल, हैरान हुआ कारोबारी

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उत्तराखंड में बिजली विभाग के अफसर उपभोक्ताओं को मनमर्जी से बिजली बिल थमा रहे हैं। धरातल पर मीटर नहीं बदलते, लेकिन कागजी खानापूरी करके रीडिंग बढ़ा देते हैं। उपभोक्ता जितना विरोध करते हैं, तो बिजली का बिल उतना हीं बढ़ता जाता है।

उत्तराखंड विद्युत लोकपाल सुभाष कुमार ने ऐसे तीन मामलों में उपभोक्ता फोरम के आदेश को रद्द कर दिया। यूपीसीएल के बिजली बिलों को भी निरस्त करते हुए उपभोक्ताओं को राहत दी है। रुद्रपुर निवासी थान सिंह का छोटा कारोबार है, जिसके लिए 10 किलोवाट का कनेक्शन लिया हुआ है।

मार्च में उन्हें 1,14,969 का बिल आया। साथ ही कहा गया कि कनेक्शन न कटे इसके लिए 75 हजार तत्काल जमा कराएं। इसके बाद उन्हें 28 मार्च को यूपीसीएल से एक पत्र आया, जिसमें कहा गया कि उनका फरवरी 2017 से नवंबर 2022 का 29,35,681 रुपये का बकाया है। 

वह उपभोक्ता फोरम गए, जहां से राहत नहीं मिली। विद्युत लोकपाल सुभाष कुमार ने माना कि यूपीसीएल ने गलत बिल थमाया है। उन्होंने इसे निरस्त करते हुए पिछले छह बिलिंग साइकिल के हिसाब से बिल देने को कहा है। उन्होंने फोरम का आदेश निरस्त कर दिया।

मीटर बदले बिना बिल बढ़ाकर 2 लाख पहुंचाया-


रुड़की के सिकंदरपुर निवासी किसान अय्यूब ने अपनी 30 बीघा जमीन पर निजी ट्यूबवेल लगाया। उन्हें बिजली विभाग ने पिछले साल 15 मार्च को 2,94,499 रुपये का बिल थमाया। जिस पर उन्होंने शिकायत की तो विभाग ने मीटर की गड़बड़ी मानते हुए इसमें से 91,704 रुपये की छूट करते हुए 2,02,795 रुपये जमा कराने को कहा। उपभोक्ता फोरम ने भी इसे सही ठहराया। अपील पर विद्युत लोकपाल सुभाष कुमार ने माना कि यूपीसीएल ने वहां बिजली का नया मीटर लगाया ही नहीं था। मनमाने तरीके से बिल थमा दिया। उस बिल व फोरम के आदेश को रद्द कर दिया। उन्होंने यूपीसीएल को आदेश दिया कि पुराने मीटर की रीडिंग के औसत के हिसाब से नया बिल दिया जाए।

इंजीनियरों की खींचतान में आठ लाख का बिल-


काशीपुर निवासी आशीष कुमार अरोड़ा की बिजली बिल की रीडिंग ठीक नहीं आ रहीं थीं। उन्होंने विभाग को शिकायत की तो चेक मीटर लगाया गया। इसके बावजूद बिजली विभाग ने नवंबर 2022 में आठ लाख 81 हजार 244 रुपये का बिल थमा दिया। उन्होंने विरोध करते हुए उपभोक्ता फोरम का दरवाजा खटखटाया। बिजली कनेक्शन न कटे, इसके लिए उन्होंने दो लाख रुपये एडवांस भी जमा करा दिया। फोरम से राहत न मिलने पर वह विद्युत लोकपाल पहुंचे। लोकपाल सुभाष कुमार ने पाया कि यूपीसीएल के दो इंजीनियरों की आपसी खींचतान से उपभोक्ता को आठ लाख का बिल दिया गया। उन्होंने तत्काल फोरम के आदेश व इस बिल को निरस्त कर दिया। पूर्व से जमा दो लाख की राशि भी उपभोक्ता को लौटाने के आदेश दिए।

नीतीश कुमार का मास्टरस्ट्रोक, बिहार में जातिगत जनगणना के आंकड़े जारी,

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बिहार की नीतीश सरकार ने जाति गणना के आंकड़े किए जारी.
 

बिहार की नीतीश कुमार सरकार ने जाति गणना के आंकड़े जारी कर दिए हैं. आंकड़ों के मुताबिक बिहार में सबसे ज्यादा 36 फीसदी अति पिछड़ा वर्ग, 27 फीसदी पिछड़ा वर्ग, 19 फीसदी से ज्यादा अनुसूचित जाति, 15.52 फीसदी सवर्ण अनारक्षित वर्ग, और 1.68 फीसदी अनुसूचित जनजाति की जनसंख्या है.. 

 

 

आज मुख्य सचिव समेत अन्य अधिकारियों ने इसकी रिपोर्ट जारी की. बिहार सरकार की ओर से विकास आयुक्त विवेक सिंह ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा कि बिहार सरकार ने जातीय जनगणना का काम पूरा कर लिया है.  बिहार सरकार ने राज्य में जातिगत जनसंख्या 13 करोड़ से ज्यादा बताई है. अधिकारियों के मुताबिक जाति आधारित गणना में कुल आबादी 13 करोड़ 7 लाख 25 हजार 310 है.

2024 के आम चुनाव से पहले भाजपा को घेरने की कोशिश-

रिपोर्ट के मुताबिक अत्यंत पिछड़ा वर्ग की आबादी 36 फीसदी है और पिछड़ा वर्ग की संख्या 27 परसेंट है, साफ है की सबसे बड़े सामाजिक समूह ओबीसी वर्ग का है जिनकी संख्या 63 फीसदी है, इस रिपोर्ट के जारी होने के बाद नीतीश कुमार और लालू यादव की पार्टी आरजेडी दोनों ही मिलकर इसका श्रेय ले रहे हैं वहीं भाजपा भी समर्थन की बात करके ओबीसी को सबसे ज्यादा महत्व देने वाली पार्टी का दावा कर रही है साफ है कि 2024 के आम चुनाव से पहले ओबीसी पॉलिटिक्स केंद्रीय भूमिका में आ गई है.

साफ है की ओबीसी की राजनीति को बिहार से आए 63 के आंकड़े से ताकत मिलने वाली है राजनीतिक विश्लेषक संजय कुमार इस रिपोर्ट को लेकर कहते हैं यह आंकड़े हैरान करने वाले नहीं है पहले ही बिहार को लेकर ऐसा ही अनुमान रहा है लेकिन अब सरकारी आंकड़ा है तो तस्वीर ज्यादा साफ है इस रिपोर्ट के बाद नीतीश कुमार और लालू यादव जैसे नेता यह प्रचार करेंगे कि ओबीसी की आबादी 60% से ज्यादा है जबकि आरक्षण 27 फीसदी मिलता है इसे बढ़ाना चाहिए और सरकार अन्याय कर रही है इस तरह भाजपा को ओबीसी पर घेरने की कोशिश होगी एक तरफ से 2024 से पहले विपक्ष को एक हथियार मिल गया है.

 

बिहार में किस धर्म के कितने लोग? 

 

आबादी के अनुसार आरक्षण की मांग उठने लगी-

इसका अर्थ हुआ कि आने वाले दिनों में आबादी के मुताबिक आरक्षण की डिमांड तेज हो सकती है जेडीयू के सीनियर नेता केसी त्यागी ने तो नीतीश कुमार की तुलना कर्पूरी ठाकुर और वीपी सिंह से कर दी है उन्होंने कहा कि यह मंडल पार्ट 2 है और पिछड़ों को नीतीश कुमार न्याय दिला रहे हैं वहीं जीतन राम मांझी ने तो आंकड़े आते ही नौकरियों में आबादी के अनुसार आरक्षण की मांग रख दी. लालू यादव, नीतीश कुमार, अखिलेश यादव जैसे नेता लगातार यह मांग दोहराते रहे हैं अखिलेश यादव भी यूपी में जाति गणना की मांग करते रहे हैं.


बिहार से आई रिपोर्ट का उत्तर प्रदेश पर भी होगा असर ?

अब बिहार में आई रिपोर्ट के बाद वह इस पर और मुखर हो सकते हैं यही नहीं 2022 के उप चुनाव में तो स्वामी प्रसाद मौर्य जैसे नेताओं के जरिए उन्होंने 15 बनाम 85 का नारा दे ही दिया अब एक बार फिर से 2024 में यूपी बिहार जैसे हिंदी पट्टी के राज्यों में ओबीसी कार्ड तेज हो सकता है इसका असर उत्तर प्रदेश बिहार से आगे राजस्थान मध्य प्रदेश हरियाणा जैसे प्रदेश में भी दिख सकता है यानी 2024 के लिए विपक्ष को हथियार मिल चुका है देखना होगा कि वह इसका इस्तेमाल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मुकाबले कैसे कर पता है जो खुद ओबीसी चेहरे के तौर पर प्रोजेक्ट किए जाते हैं.
 

सीएम नीतीश ने क्या संदेश दिया?

आंकड़े जारी होने के बाद बिहार के सीएम नीतीश कुमार ने ट्वीट कर जनगणना करने वाली पूरी टीम को बधाई दी है. उन्होंने कहा है,जाति आधारित गणना के लिए सर्वसम्मति से विधानमंडल में प्रस्ताव पारित किया गया था. बिहार विधानसभा के सभी 9 दलों की सहमति से निर्णय लिया गया था कि राज्य सरकार अपने संसाधनों से जाति आधारित गणना कराएगी. 02-06-2022 को मंत्रिपरिषद से इसकी स्वीकृति दी गई थी. इसके आधार पर राज्य सरकार ने अपने संसाधनों से जाति आधारित गणना कराई है. जाति आधारित गणना से न सिर्फ जातियों के बारे में पता चला है, बल्कि सभी की आर्थिक स्थिति की जानकारी भी मिली है.

 

बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के मुताबिक जाति गणना को आधार बनाकर आने वाले समय में सभी वर्गों के विकास एवं उत्थान के लिए काम किया जाएगा. उन्होंने ट्वीट में ये भी लिखा है कि बिहार में कराई गई जाति आधारित गणना को लेकर जल्द ही बिहार विधानसभा के सभी 9 दलों की बैठक बुलाई जाएगी. और जाति आधारित गणना के नतीजों के बारे में उन्हें बताया जाएगा.

Election 2024: लोकसभा चुनाव की तैयारियों में जुटी भाजपा, उत्तराखंड पर है केंद्रीय नेतृत्व की सीधी नजर.

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2024 में होने वाले लोकसभा चुनाव को मध्यनजर रखते हुए भाजपा का केंद्रीय नेतृत्व उत्तराखंड पर सीधी नजर बनाए हुए है।इसी को देखते हुए संगठन और सरकार से फीडबैक लेने के लिए पार्टी के राष्ट्रीय संगठक वी सतीश तीन दिवसीय दौरे पर उत्तराखंड पहुंचे हैं। शुक्रवार को उन्होंने प्रदेश भाजपा मुख्यालय में पार्टी के सभी मोर्चों के पदाधिकारियों के साथ बैठक में चुनावी दृष्टि से कई बिंदुओं पर जानकारी ली। 

  1. 2024 में होने वाले लोकसभा चुनाव की तैयारियों में जुटी बीजेपी
  2. बीजेपी का केंद्रीय नेतृत्व उत्तराखंड पर बनाए हुए है सीधी नजर
  3. उत्तराखंड के दौरे पर हैं भाजपा के राष्ट्रीय संगठक वी सतीश
इसके बाद धामी मंत्रिमंडल के सदस्यों से राष्ट्रीय संगठक वी सतीश ने अलग-अलग मुलाकात की। देर शाम को उन्होंने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के पदाधिकारियों से भेंट कर सरकार और संगठन के कामकाज को लेकर फीडबैक लिया। उत्तराखंड में वर्ष 2014 से लेकर अब तक के लोकसभा चुनाव से भाजपा अजेय बनी हुई है। तब से वह राज्य में लोकसभा की सभी पांचों सीटें जीतती हुई आई है। अब पार्टी के सामने हैट्रिक बनाने की चुनौती है।

बीजेपी ने बनाई रणनीति-

लोकसभा चुनाव में चूंकि बीजेपी पिछले लगातार 2014 के बाद से उत्तराखंड में पांचों सीटें जीतती आयी है, पार्टी ने इतिहास रचने की दृष्टि से रणनीति बनाई है और वह तैयारियों में जुट चुकी है, लेकिन केंद्रीय नेतृत्व फिर भी इसे किसी भी दशा में हल्के में लेने के मूड में तो बिलकुल भी नहीं है। और यही कारण है कि केंद्रीय नेतृत्व निरंतर ही चुनावी तैयारियों पर नजर रखने के साथ ही फीडबैक भी ले रहा है। इस दृष्टिकोण से बीजेपी के राष्ट्रीय संगठक वी सतीश के उत्तराखंड दौरे को महत्वपूर्ण माना जा रहा है।

चुनावी रणनीतियों को लेकर तैयारियां

शुक्रवार को देहरादून पहुंचकर वी सतीश ने प्रदेश कार्यालय में पार्टी के सभी 7 मोर्चों के प्रभारियों व अध्यक्षों के साथ बैठक की। सूत्रों के मुताबिक उन्होंने चुनावी तैयारियों की जानकारी ली। साथ ही जिन क्षेत्रों में पार्टी कमजोर है, वहां पर क्या और कैसी रणनीति अपनाई जा सकती है, इस बारे में सुझाव भी लिए। इसके बाद राष्ट्रीय संगठक ने राज्य सरकार के मंत्रियों से भी प्रदेश कार्यालय में अलग-अलग भेंट की। इस दौरान उन्होंने भावी रणनीति पर चर्चा करने के साथ ही केंद्रीय नेतृत्व की अपेक्षाओं से अवगत कराया। 

प्रदेश महामंत्रियों के साथ की बैठक-

वी सतीश ने पार्टी के तीनों प्रदेश महामंत्रियों के साथ भी बातचीत की। देर शाम उन्होंने तिलक रोड स्थित संघ कार्यालय जाकर प्रांत प्रचारक डॉ शैलेंद्र समेत अन्य पदाधिकारियों के साथ मंथन किया। उधर, भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष महेंद्र भट्ट ने बताया कि राष्ट्रीय संगठक शनिवार को पार्टी के प्रांतीय पदाधिकारियों और विधायकों के साथ अलग-अलग बैठकें कर स्थानीय मुद्दों, सामाजिक व राजनीतिक घटनाक्रमों के दृष्टिगत संगठनात्मक गतिविधियों पर चर्चा करेंगे।वहीँ आज वह मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी से भी मुलाकात करेंगे।

निर्वस्त्र मदद के लिए घूमती रही नाबालिग, मणिपुर की तरह मध्य प्रदेश में शर्मसार करने वाली घटना.

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मणिपुर जैसे हालात अब MP में भी-

मणिपुर का मामला अभी शांत भी नहीं हुआ था कि एक बार फिर इस देश को शर्मसार करने वाली तस्वीरें सामने आयी है,इस बार मध्य प्रदेश के उज्जैन जो शिव की नगरी मानी जाती है, वहां से मणिपुर जैसी ही घटना सामने आयी है. मध्य प्रदेश के उज्जैन में 12 साल की मासूम से दरिंदगी हुई. बेसुध और लहूलुहान हालत में मासूम ने 8 किलोमीटर का रास्ता पैदल तय किया. इस दौरान उसने कई लोगों से मदद की गुहार भी लगाई. इस घटना की जो तस्वीर सामने आई उसने उज्जैन शहर ही नहीं पूरे देश के लोगों को झकझोर कर रख दिया है.

बाबा महाकाल की नगरी उज्जैन में इंसानियत को शर्मसार कर देने वाला मामला सामने आया है, जिसने पूरे देश को हिलाकर रख दिया। यहां एक 12 साल की नाबालिग लड़की का दुष्कर्म किया जाता है। वो लड़की मदद के लिए दर-दर भटकती है, लेकिन कोई उसकी मदद करने के लिए आगे नहीं आया।

 

25 सितंबर को पुलिस को मिली जानकारी-

उज्जैन के एसपी सचिन शर्मा ने बताया कि 25 सितंबर की सुबह 10 बजकर 15 मिनट पर महाकाल पुलिस स्टेशन में सूचना मिली कि एक बच्ची बड़नगर रोड पर मुरलीपुरा से आगे दांडी आश्रम के नजदीक लावरिस और घायल अवस्था में पड़ी मिली। इस सूचना पर जब पुलिस मौके पर पहुंची तो बच्ची के कपड़े खून से सने हुए थे। वह ठीक से बोल भी नहीं पा रही थी।

बच्ची को चरक अस्पताल में कराया गया भर्ती-

एसपी ने बताया कि बच्ची को आनन-फानन में चरक अस्पताल में भर्ती कराया गया, जहां पांच डॉक्टरों ने उसका इलाज किया। इस दौरान जांच में बच्ची के साथ दुष्कर्म होने की पुष्टि हुई।

 

बच्ची को किया गया रेफर-

एसपी सचिन शर्मा ने बताया कि बच्ची को अंदरूनी चोट आई थी। उसकी गंभीर हालात को देखते हुए उसे इंदौर रेफर कर दिया गया है। हालांकि, इलाज के बाद अब उसकी हालत ठीक है।

 

एसआईटी को सौंपी गई जांच-

एसपी के मुताबिक, दुष्कर्म की पुष्टि के बाद मामले की जांच एसआइटी को सौंपी गई। एसआइटी ने उन तमाम जगहों के सीसीटीवी फुटेज को खंगाला, जहां किशोरी गई हुई थी। आरोपी को पकड़ने के लिए एसआईटी ने करीब एक हजार फुटेज देखे। इस दौरान उसने कई लोगों से पूछताछ भी की।

 

आठ किमी तक पैदल चली बच्ची-

पुलिस ने बताया कि बच्ची सतना ने सोमवार तड़के तीन बजकर 15 मिनट पर उज्जैन पहुंची थी। यहां रेलवे स्टेशन के बाहर देवास गेट पर उसने कुछ ऑटो वालों से बात की। वह कुल छह आटो चालकों के संपर्क में आई थी। इस दौरान एक ऑटो चालक उसे घुमाते रहे। बाद में ऑटो चालक भरत उसे सुनसान जगह पर ले गया और उसके साथ दुष्कर्म किया। दुष्कर्म के बाद नाबालिग लड़की करीब आठ किमी तक पैदल चली। इस दौरान उसने लोगों से मदद की गुहार भी लगाई, लेकिन किसी ने भी उसकी मदद नहीं की। आखिरकार, सुबह 10 बजे बड़नगर रोड पर दांडी आश्रम पर संचालक राहुल शर्मा ने उससे बात की, जिसके बाद उन्होंने मामले की जानकारी महाकाल थाने और डायल 100 को दी।

 

 

आरोपी ऑटो ड्राइवर ने कुबूला अपना जुर्म-

पुलिस को जांच के दौरान पता चला कि नानाखेड़ा क्षेत्र के रहने वाले एक ऑटो चालक भरत सोनी बच्ची को अपने साथ लेकर कहीं गया हुआ था। इस जानकारी पर पुलिस ने गुरुवार को भरत को हिरासत में लेकर कड़ाई से पूछताछ की, जिसमें उसने अपना जुर्म कुबूल कर लिया।

 

 

किशोरी की हालत में पहले से सुधार-

इंदौर के एमटीएच अस्पताल में पीड़िता को भर्ती किया गया था, जहां 26 सितंबर को स्त्री रोग विशेषज्ञ, पीडियाट्रिक सर्जन, सर्जन और निश्चेतना विशेषज्ञ की टीम ने उसका ऑपरेशन किया। ऑपरेशन के दो दिन बाद अब उसकी हालत में सुधार है। डॉक्टरों ने अभी भी पीड़िता को निगरानी के तहत रखा है। उसकी हालत स्थिर है।

 

जोशीमठ के बाद अब नैनीताल भी भूस्खलन की चपेट में, खतरे की जद में आए मकानों पर लगे लाल निशान…

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जोशीमठ के बाद अब नैनीताल में भूस्खलन ने लोगों के नींदे उड़ा दी है, भूस्खलन के खतरे को देखते हुए प्रशासन ने चार्टन लॉन्ज क्षेत्र में 24 घरों पर लाल निशान लगाकर मकान खाली करवा दिए अचानक हुई इस कार्रवाई से लोगों में गुस्सा है.

कल तक अपने घरों में रह रहे लोग कुछ ही घंटे में आपदा प्रभावित बन गए उनका आरोप है कि प्रशासन सुरक्षा कार्यों के बजाय लोगों के घर तोड़ने की योजना बना रहा है. इसलिए कई घरों को जबरदस्ती खतरे की जद में डाल दिया गया है, रविवार को अयरपट्टा में रह रहे परिवारों को विकास प्राधिकरण एवं प्रशासन की ओर से नोटिस जारी कर दिए गए,

इसके बाद कुछ परिवारों को प्रशासन ने होटल में रुकवाया है जबकि कुछ परिवार अपने रिश्तेदारों के यहां शरण लेने चले गए हैं इस कार्रवाई से लोगों में नाराजगी है आप है कि प्रशासन ने यहां पर सुरक्षा उपाय नहीं किए हैं अचानक से घरों पर लाल निशान लगाए जा रहे हैं ऐसे में लोगों को आशंका है प्रशासन खतरा बात कर कई दूसरे घरों को तोड़ सकता है.

 

नैनीताल में खतरा बढ़ा, 24 परिवारों में घर छोड़े-

नैनीताल के शनिवार को चार्ट लोन क्षेत्र में एक दो मंजिला भवन के भरभरा कर जमींदोज होने के बाद आसपास के इलाके में भूस्खलन का खतरा बढ़ गया है रविवार को भूस्खलन प्रभावित क्षेत्र में दशकों से रह रहे 24 परिवारों ने गम और गुस्से के बीच अपने-अपने घरों को खाली कर दिया।

वहीं जिला प्रशासन और नैनीताल विकास प्राधिकरण ने भी इन सभी चिन्हित परिवारों को नोटिस थमा कर तीन दिन के भीतर अपना पूरा सामान घरों से हटाने को कह दिया है क्षेत्र में दिन भर अपराध अफ्रीका माहौल बना हुआ है नैनीताल में प्रकृति की चेतावनी को अनदेखा करना अब लोगों पर भारी पड़ने लगा है.

शनिवार को चार्ट आंदोलन क्षेत्र में भूस्खलन से एक दो मंजिला भवन भर भर कर गिर गया था जिसकी चपेट में आने से तीन अन्य घर भी दब गए थे एसडीएम प्रमोद कुमार ने बताया कि प्रशासन विकास प्राधिकरण और आपदा प्रबंधन की टीमों ने इलाके में सर्वे कर संवेदन सील घरों पर लाल निशान लगाने के साथ ही प्रभावितों को नोटिस दे दिए हैं.

भू-कटाव रोकने के लिए रेत के कट्टे-तिरपाल का सहारा-
 

भूस्खलन प्रभावित इलाके में मिट्टी के कटाव को रोकने के लिए तारपाल डाल दिया गया बारिश होने पर इसे मिट्टी के कटाव को रोकने में मदद मिलेगी साथ ही जिन घरों के बुनियादी पर असर आ रहा है वहां पर रेत के कट्टे डालकर अस्थाई रूप से सुरक्षा उपाय किए जा रहे उपाय किए जा रहे हैं पर प्रशासन बारिश होने से आशंकित है बारिश हुई तो यहां मिट्टी कटाव होने की आशंका बनी रहेगी।

खाना बनाने के लिए घर आने की इजाजत-
 

प्रशासन ने लोगों को भोजन बनाने के लिए अपने घर आने की इजाजत दी है पर अंधेरा होने से पहले ही घर छोड़ने को कहा है ऐसे में लोग अपने घरों की सफाई और भोजन बनाने के लिए कुछ ही देर तक अपने घरों में जा रहे हैं उसके बाद चले जा रहे हैं।

यहां रह रहे निवासियों ने क्या कहा-

अचानक से घरों पर लाल निशान लगाया दिए गए हैं हमें 3 दिन में घर खाली करने को कह दिया है आखिर यह कैसे संभव है कि हम अपना सारा घर खाली करके चले जाएं अचानक से हमारे घरों पर लाल निशान लगा दिए गए हैं हमें घर छोड़ने को कह दिया है प्रशासन यहां सुरक्षा कार्य करवाए हम सहयोग कर रहे हैं पर घर नहीं छोड़ सकते हैं.

मै कहीं जाने वाली नहीं हूं- वसुंधरा राजे

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राजस्थान चुनाव से पहले एक तस्वीर सामने आयी है. जिसने वहां की राजनीतिक हलचल बढ़ा दी है. एक कार्यक्रम के मौके पर सीएम गहलोत और बीजेपी नेता वसुंधरा राजे दोनों एक साथ दिखे. तस्वीर सामने आने के बाद वहां अटकलों का दौर भी शुरू हो गया है. आपको बता दें कि वसुंधरा राजे इस बार बीजेपी के चुनाव प्रचार से भी दूर हैं और उन्होंने परिवर्तन यात्रा में भी हिस्सा नहीं लिया…

क्या बीजेपी को भारी पड़ सकती है वसुंधरा की बेरुखी-


 
क्या वसुंधरा और बीजेपी हाईकमान के बीच की दूरी लगातार बढ़ रही है, वसुंधरा के एक ऐलान के बाद प्रधानमन्त्री को आनन -फानन में चार साल से अधिक समय बाद जयपुर जाना पड़ा. और तो और बीजेपी आलाकमान ये भी फैसला कर चुका है कि राजस्थान चुनाव में वसुंधरा का करना क्या है ? और इस फैसले का ऐलान प्रधानमंत्री के राजस्थान दौरे के बाद किया जा सकता है. आखिर क्यों राजस्थान में बीजेपी के अंदर सियासी पारा चढ़ा हुआ है और क्या प्रधानमंत्री मोदी जयपुर वसुंधरा राजे को मनाने गए थे.
राजस्थान में चुनाव से पहले वसुंधरा बीजेपी के लिए एक बड़ी मुसीबत बन गयी है. कुल मिलाकर राजस्थान को लेकर बीजेपी और हाईकमान में रार जारी है, इसकी एक वजह है वसुंधरा राजे का एक वीडियो जो की खूब वायरल हो रहा है. कुल मिलाकर वसुंधरा राजे ने राजस्थान में बीजेपी की मुश्किलें बढ़ा दी है. पहले वो बयान सुनिए जिसमें वसुंधरा बीजेपी हाईकमान को सीधा संदेश देती दिखाई दे रही है.

 

क्यों कहा वसुंधरा ने ऐसा ?

अब ये सवाल उठ रहे हैं कि आखिर वसुंधरा राजे ऐसा क्यों कह रही हैं कि वो राजस्थान छोड़ कर नहीं जाएगी. दरअसल  जिस तरह से वसुंधरा राजे को चुनाव समिति में जगह नहीं दी गयी उसके बाद ये खबरें सामने आयी कि वसुंधरा की राजनीतिक पारी समाप्त हो चुकी है, उनको भाजपा ने साइडलाइन कर दिया है. लेकिन राजे राजस्थान में अच्छी खासी पकड़ और मजबूत जनाधार रखने वाली नेता है,,और वो ये भी अच्छे से  जानती हैं कि जिसको साइड लाइन कर दिया गया है उसको लाइमलाइट में कैसे लाना है ? तो वसुंधरा ने कैसे खेल किया उसके लिए आपको हम कुछ तस्वीरें दिखाते हैं.


कल हुई पीएम की रैली में वसुंधरा राजे मौजूद रही. लेकिन गहलोत सरकार के खिलाफ परिवर्तन रैली से वसुंधरा राजे गायब रहीं.  जिसका साफ़ संदेश था कि वसुंधरा चुनाव समिति में न रखे जाने से काफी नाराज थी.
एक तरफ अशोक  गहलोत के खिलाफ परिवर्तन रैली से वसुंधरा लगातार गायब रहीं तो दूसरी तरफ अशोक गहलोत के साथ उनकी तस्वीरें निकल कर सामने आ गयी.  21 सितंबर को ये तस्वीरें सामने आयीं और वायरल हो गयी, उसके बाद कहा जाने लगा कि राजस्थान में बीजेपी की मुश्किलें बढ़ने जा रही हैं,,वसुंधरा राजे भारतीय जनता पार्टी से इस्तीफा देने जा रही हैं,, बस इन तस्वीरों के तुरंत बाद प्रधानमंत्री मोदी का जयपुर का प्लान सामने आ गया..

 

क्या बीजेपी ने खुद मार दी अपने पैर पर कुल्हाड़ी-

 

खबरें चल रही हैं कि वसुंधरा राजे ने बीजेपी आलाकमान को अपनी ताकत दिखाई है, वसुंधरा ये दिखाना चाहती है कि किस तरह से बीजेपी ने उनको चुनाव समिति से बाहर करके कथित तौर पर अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मार दी है,,आप देख सकते हैं कि किस तरह वसुंधरा महिलाओं के हुजूम के बीच कह रही हैं कि राजस्थान में 60 प्रतिशत महिलाएं हैं,,मतलब जो महिलाएं है वो वोटर भी हैं,,,दूसरी तरफ वसुंधरा कहती हैं कि वो राजस्थान छोड़ कर कहीं नहीं जाएगी और यहीं रहकर यहां के लोगों के मुद्दे उठायेंगी,,,ये बात इसलिए भी महत्वपूर्ण हो जाती है क्योंकि वसुंधरा को केंद्रीय राजनीती में भेजे जाने के कयास लगाए जा रहे थे,,,इस बयान से वसुंधरा ने ये तो साफ़ कर दिया है कि वो राजस्थान से कहीं नहीं जाने वाली,, उनका ये बयान हाईकमान को भी साफ़ संदेश है, हालांकि इसके बाद वो पीएम मोदी की रैली में शामिल हुई,,

जल्द हो सकती है उम्मीदवारों की पहली सूची जारी-

कुल मिलाकर वसुंधरा इतने बगावती तेवर दिखा रही हैं कि जब परिवर्तन यात्रा उनके क्षेत्र से गुजरती हैं तब भी वो उसमें शामिल नहीं होती उलटा उनकी फोटो गहलोत के साथ सामने आ जाती है. वसुंधरा इस समय राजस्थान में हाट टॉपिक बनी हुई हैं,, ऐसे में क्या बीजेपी आलाकमान वसुंधरा को शीर्ष नेतृत्व में भेजने की तैयारी में है ? इसको लेकर भी खबरें सामने आ रही हैं, खबरों के मुताबिक, अगले सप्ताह दिल्ली में राजस्थान को लेकर बीजेपी की केंद्रीय चुनाव समिति की बैठक संभावित है। इसके बाद पार्टी राज्‍य के लगभग 50 उम्मीदवारों की पहली सूची जारी कर सकती है। पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे लगातार अपनी भूमिका स्पष्ट करने की मांग करती रही हैं। बावजूद इसके पार्टी आलाकमान की तरफ से उन्हें विधानसभा चुनाव के मद्देनजर कोई अहम भूमिका नहीं दी गई। इससे ऐसा लगता है कि पार्टी नेतृत्व ने उनके बारे में अपना मन बना लिया है।

चुनाव प्रचार से गायब हैं राजे-

बीजेपी ने राज्य में ‘परिवर्तन संकल्प’ यात्रा निकाली। इस यात्रा में ज्यादातर पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे गायब रहीं। बीजेपी की यात्रा से गायब रहने वाली वसुंधरा राजे ने मुख्यमंत्री अशोक गहलोत से मुलाकात की। इस मुलाकात के बाद राज्य में राजनीतिक हलचल बढ़ गई। लोगों के मन में वसुंधरा राजे को लेकर सवाल उठने लगे, क्या राजस्थान में कोई नई खिचड़ी पक रही है? क्या वसुंधरा राजे प्रेशर पॉलिटिक्स कर रही हैं? सामने आई तस्वीर में बीजेपी नेता राजेंद्र राठौड़ और सीएम अशोक गहलोत एक सोफे पर बैठे हुए हैं। वहीं दूसरे सोफे पर विधानसभा अध्यक्ष सीपी जोशी और पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे बैठी हुई हैं। इस मुलाकात को लेकर सोशल मीडिया पर तरह-तरह के कयास लगाए जा रहे हैं। कुछ लोगों का मानना है कि यह मुलाकात दोनों नेताओं के बीच किसी समझौते की ओर इशारा करती है। वहीं, कुछ लोग इसे केवल एक औपचारिक मुलाकात बता रहे हैं।

वसुंधरा राजे ने बीते  10 दिनों से दिल्ली में डेरा डाल रखा था.  इसके बाद अब उनकी तस्वीर सीएम गहलोत के साथ नजर आई हैं । राजस्थान में विधानसभा चुनाव 2023 में होने हैं। ऐसे में यह मुलाकात राजनीतिक रूप से काफी महत्वपूर्ण है। यह देखना दिलचस्प होगा कि इस मुलाकात के बाद दोनों दलों के बीच क्या होता है,, क्या वसुंधरा राजस्थान में अपनी बात पूरी न होने पर कोई बगावत कर सकती हैं, ये देखना होगा.

हाई कोर्ट के निर्देश पर कार्बेट में पेड़ कटान व अवैध निर्माण मामले में सीबीआई ने शुरू की जांच

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सीबीआई ने जिम कार्बेट नेशनल पार्क के पाखरो रेंज में टाइगर सफारी के नाम पर हुए अवैध निर्माण तथा छह हजार पेड़ काटने के मामले की जांच शुरू कर दी है। राज्य सतर्कता निदेशक वी मुर्गेशन के मुताबिक, राज्य सतर्कता ने कार्बेट मामले से संबंधित सभी दस्तावेज सीबीआई को सौंप दिए हैं।नैनीताल हाईकोर्ट के निर्देश पर सीबीआइ कार्बेट पार्क मामले की जांच सीबीआई कर रही है। इस मामले में सबसे पहले पाखरो सफारी मामले से जुड़े तीन सेवानिवृत्त प्रधान मुख्य वन संरक्षक (पीसीसीएफ) और एक मौजूदा पीसीसीएफ समेत रेंज में काम करने वाले करीब एक दर्जन वन अधिकारियों, कर्मचारियों व ठेकेदारों से सीबीआई पूछताछ करेगी।

 

जांच का प्रमुख केंद्र होंगे तत्कालीन वन मंत्री हरक सिंह रावत

सीबीआई की जांच का मुख्य केंद्र बिंदु तत्कालीन वन मंत्री हरक सिंह रावत होंगे। विजिलेंस और अन्य जांचों से पता चला है कि हरक सिंह के दबाव में कार्बेट टाइगर सफारी में वित्तीय और अन्य स्वीकृतियां लिए बिना ही काम शुरू कर दिया गया था।

बता दें है कि 21 अगस्त को मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति विपिन सांघी व न्यायमूर्ति आलोक कुमार वर्मा की खंडपीठ में देहरादून के अनु पंत की जनहित याचिका पर सुनवाई हुई थी। इसमें कहा गया था कि  बिना अनुमति के निर्माण कार्य किए गए। छह जनवरी, 2023 को हाई कोर्ट ने मुख्य सचिव से पेड़ों के कटान के प्रकरण पर जांच रिपोर्ट कोर्ट में पेश करने और यह बताने को कहा था कि किन लोगों की लापरवाही और संलिप्तता से यह अवैध कार्य हुए।

न्यायिक सेवा की परीक्षा में एक सवाल पर विवाद पहुंचा कोर्ट,मामला देख जज भी हैरान !

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अगर आपसे सवाल पूछा जाय कि बम धमाके से मारना हत्या है या कुछ और ? तो आपका जवाब क्या होगा ? शायद अधिकतर लोग इसको हत्या ही कहेंगे,लेकिन अगर इस सवाल को थोड़ा और घुमा कर कुछ इस तरह पूछा जाय जैसे जैसे की  “‘A ‘ एक मेडिकल स्टोर में बम रख देता है और विस्फोट से पहले लोगों को बाहर निकलने के लिए 3 मिनट का समय देता है। ‘B ‘ जो गठिया का मरीज है, वह भागने में विफल रहता है और मारा जाता है। ऐसे में ‘A ‘ के खिलाफ आईपीसी की किस धारा के तहत केस दर्ज किया जा सकता है?”  इस सवाल पर अब आपका जवाब क्या होगा ? निश्चित रूप से आप का सर घूम जायेगा और आप सोच रहे होंगे ये कैसा सवाल है ? तो आप बिलकुल सही सोच रहे हैं,,, ये कोई कल्पना या सिर्फ बोलने भर की बात नहीं है बल्कि ये सवाल सच में एक परीक्षा के दौरान पूछा गया,,कई छात्र इस सवाल से इतने परेशान हो गए कि उनकी समझ में कुछ आया ही नहीं,कि इसका जवाब क्या हो सकता है,,,इस सवाल से हैरान और असंतुष्ट छात्र कोर्ट पहुंच गए,कोर्ट में मामला सुनकर जज भी हैरान रह गए,आगे जो हुआ वो आपको चौंका देगा,,,

 

 

सवाल पर विवाद पहुंचा हाईकोर्ट 

दरअसल , उत्तराखंड न्यायिक सेवा सिविल जज प्रारंभिक परीक्षा में तीन सवालों को लेकर असफल आवेदकों ने आपत्ति जताई और  इससे संबंधित याचिका भी नैनीताल हाई कोर्ट में दायर की है। इस पर सुनवाई करते हुए उत्तराखंड हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश विपिन सांघी और न्यायमूर्ति राकेश थपलियाल की खंडपीठ के समक्ष विकट समस्या खड़ी हो गई, कि आखिर इस पर क्या फैसला दिया जाय,,,जिस सवाल पर आपत्ति जताई गई थी, उसने हाई कोर्ट के जजों को भी सोचने पर मजबूर कर दिया।

हुआ कुछ यूँ कि उत्तराखंड न्यायिक सेवा की परीक्षा में एक सवाल पर विवाद सामने आया है। परीक्षा में पूछा गया था कि एक मेडिकल स्टोर में बम रखने वाले और विस्फोट से पहले लोगों को बाहर निकलने के लिए 3 मिनट का समय देने वाले एक व्यक्ति के खिलाफ आईपीसी की किस धारा के तहत केस दर्ज किया जा सकता है? सवाल उत्तराखंड की न्यायिक सेवा की परीक्षा में पूछा गया था, जिसे लेकर विवाद अदालत की चौखट तक पहुंच गया । परीक्षा में असफल रहने वाले छात्रों ने विषय-विशेषज्ञों द्वारा बताए गए इस सवाल के जवाब पर असंतोष जताया है और दो अन्य सवालों पर आपत्ति के साथ कोर्ट में याचिका दाखिल कर दी। कोर्ट ने आयोग को दो सवालों पर फिर से विचार करने का सुझाव भी दे दिया है।

ऐसा सवाल जिस पर जज भी हो गए कन्फ्यूज 

जिस तीसरे सवाल को लेकर जज भी दुविधा में आ गए वो सवाल हम एक बार फिर हूबहू दोहराते हैं जो शायद आपको भी पूरी तरफ कन्फूज कर देगा, दरसल सवाल ये था कि अगर   ‘A ‘ एक मेडिकल स्टोर में बम रख देता है और विस्फोट से पहले लोगों को बाहर निकलने के लिए 3 मिनट का समय देता है। ऐसे में ‘बी’ जो गठिया का मरीज है, वह भागने में विफल रहता है और मारा जाता है। ऐसे में ‘ए’ के खिलाफ आईपीसी की किस धारा के तहत केस दर्ज किया जा सकता है?  जवाब के लिए जो विकल्प दिए गए थे, उनमें से एक ये था  कि आरोपी के खिलाफ धारा 302 के तहत केस दर्ज किया जाना चाहिए जो हत्या के आरोपियों पर लगायी जाती है।

याचिकाकर्ताओं ने उत्तर के रूप में इसी विकल्प को चुना था लेकिन आयोग की ओर से जो उत्तर उपलब्ध कराया गया था, उसमें इस विकल्प को सही नहीं माना गया था। आयोग के अनुसार सही जवाब धारा 304 था, जो हत्या की श्रेणी में नहीं बल्कि गैर-इरादतन हत्या के मामलों में लगाया जाता है। आयोग का तर्क है कि उपर्युक्त मामला आईपीसी की धारा 302 से संबंधित नहीं है बल्कि यह इरादे के अभाव में या फिर लापरवाही के कारण मौत से संबंधित है।  मामले पर प्रतिक्रिया देते हुए हाई कोर्ट ने कहा कि हमारे लिए यह कहना पर्याप्त है कि विषय विशेषज्ञ ने मोहम्मद रफीक के मामले में 2021 के सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर भरोसा किया है। यह अदालत द्वारा दी गई राय के संबंध में कोई भी विचार देने से बचती है।

बता दें कि मोहम्मद रफीक मामले में मध्य प्रदेश में एक पुलिस अधिकारी को एक तेज रफ्तार ट्रक ने कुचल दिया था, जब उन्होंने वाहन पर चढ़ने की कोशिश की थी। ड्राइवर रफीक ने अधिकारी को धक्का देकर गिरा दिया था।
इस बीच याचिका ने कानूनी हलकों में इस बात पर बहस छेड़ दी है कि क्या किसी आतंकवादी कृत्य को ‘हत्या’ की बजाय ‘लापरवाही के कारण मौत’ के रूप में देखा जा सकता है। हाई कोर्ट के वरिष्ठ वकील  बताते हैं  कि यह स्पष्ट रूप से लापरवाही का मामला नहीं है क्योंकि अधिनियम स्वयं इरादे को दर्शाता है। ‘ए’ द्वारा किया गया  काम ऐक्ट के परिणामों को जानता था। ऐसे में बिना किसी संदेह के यह मामला आईपीसी की धारा 302 यानी हत्या के दायरे में आता है।

 

आयोग के जवाब पर इस तरह उठे सवाल 

आयोग द्वारा उपलब्ध कराए गए जवाब जिसे आयोग की ओर से सही जवाब बताया गया है. उसको 
हाईकोर्ट के वकील की दलील गलत साबित करती दिखाई देती है. हाई कोर्ट ने आयोग को दोनों सवालों पर पुनर्विचार करने का निर्देश दिया है। जबकि तीसरे प्रश्न के संबंध में कोर्ट ने कहा कि इसे पूरी तरह से संवेदनहीन तरीके से तैयार किया गया था। अदालत ने कहा कि हमें यह देखकर दुख होता है कि प्रश्न को पूरी तरह से कैजुअल अप्रोच के साथ तैयार किया गया है। अदालत ने कहा कि पूरी प्रक्रिया चार सप्ताह के भीतर पूरी की जानी चाहिए और एक नई मेरिट सूची तैयार की जानी चाहिए जिसके आधार पर चयन प्रक्रिया जारी रहनी चाहिए।

अब इस सवाल के बाद एक नई बहस कानून के नियमों को लेकर भी शुरू हो गयी है तो दूसरी तरफ आयोग की काम करने सहित प्रश्नपत्र बनाने को लेकर उनकी गंभीरता पर भी सवाल खड़े हो गए हैं,,,कोर्ट ने भी आयोग की सवेंदनहीनता को माना है,,,आयोगों पर उत्तराखंड में सवाल उठना कोई नई बात नहीं है बल्कि उत्तराखंड में परीक्षा आयोजित करने वाले आयोग पिछले काफी समय से सवालों के घेरे में हैं, चाहे वो uksssc रहा हो या अब ukpsc हो, इन आयोगों की विश्वसनीयता पिछले काफी समय से  सवालों के घेरे में रही है, हाल ही में सामने आये भर्ती घोटालों ने तो वैसे भी उत्तराखंड का नाम पूरे देश में प्रसिद्ध कर  दिया है, इन भर्ती घोटालों के खिलाफ बेरोजगार छात्र कई बार प्रदर्शन कर चुके हैं,और आज भी उनका प्रदर्शन जारी है, बेरोजगारों की सिर्फ यही मांग है कि इन भर्ती घोटालों की  निष्पक्ष जांच सीबीआई से करवाई जाय,पर आज तक उत्तराखंड की सरकार उनकी मांगों को मानना तो दूर आंदोलन कर रहे बेरोजगारों से मिलने तक नहीं गयी,,,आयोगों की घटती निष्ठा इस प्रदेश के बेरोजगार छात्रों के भविष्य के लिए एक बड़ी चिंता है और प्रदेश सरकार पर लगता एक बड़ा प्रश्न चिन्ह,,,जो परीक्षाये एक पारदर्शी तरिके से कराने में नाकमयाब साबित हुई है,,, बाकी रही सही कसर इस तरह के सवाल पूरे कर रहे  है,,,    

एक साल पूरा ,न्याय अधूरा ! महिला आरक्षण बिल मुबारक हो…

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क्या बिल के बाद सुधरेगी महिलाओं की स्थिति-

 

चुनावी साल में तीन दशकों से लंबित महिला आरक्षण बिल को  मोदी कैबिनेट  ने मंजूरी दे दी, विपक्ष ने भी इस बिल के समर्थन में है. तो अब क्या ये माना जाय कि इस बिल के आने मात्र से  महिलाओं की स्तिथि में सुधार हो जायेगा, महिलाओ की कितनी स्थिति कितनी सुधरती है ये तो आने वाला वक्त बताएगा। बहरहाल  कई सवाल है, जिनका जवाब मिलना अभी बाकी है.

 

महिला आरक्षण से पहले सबसे ज्यादा जरूरी है उनकी सुरक्षा। प्रधानमंत्री मोदी हमेशा ही महिलाओं की बात हर मंच से करते दिखाई देते हैं,बेटी बचाओ,बेटी पढ़ाओ का नारा भी प्रधानमंत्री मोदी ने ही दिया है. लेकिन उन्ही के एक  राज्य जहां की महिलाओं ने उनको वोट के रूप में दिल खोलकर आशीर्वाद दिया हो उस राज्य में  एक बहादुर  बेटी की हत्या कर दी जाती है.

आखिर कब मिलेगा न्याय-

वो लड़की जो अपने दम  पर कुछ काम करके अपने परिवार का सहारा बनना चाहती थी और उस बेटी की बेबस मां न्याय के लिए कोर्ट से लेकर सड़क तक दर-दर भटक कर एड़ियां रगड़ रही हो. एक साल से उस मां के आंसू रुक नहीं रहे हो  और मोदी जी के धाकड़ मुख्यमंत्री उनको न्याय नहीं दिला पा रहे हों.  तो महिला सुरक्षा की बात करना बेमानी प्रतीत होता है,, एक साल से बुजुर्ग माता पिता न्याय के लिए हर दरवाजे और चौखट को खटका रहे हैं लेकिन सरकार उस बदनसीब बेटी के नाम पर एक जगह का नामकरण करके अपनी जिम्मेदारी से मुक्त होना चाहती है.

एक साल बाद भी इंसाफ नहीं-

उत्तराखंड के बहुचर्चित अंकिता भंडारी हत्याकांड को  एक साल पूरा हो गया है। इस मर्डर केस की गूंज पूरे उत्तराखंड में सुनाई दी थी। 19 साल की अंकिता के साथ युवकों की हैवानियत की कहानी ने लोगों को हिलाकर रख दिया था। अंकिता एक रिजॉर्ट मे रिसेप्शनिस्ट थी। उसकी हत्या सिर्फ इसलिए कर दी गई थी, क्योंकि उस पर रिजॉट में आने वाले VIP गेस्ट को स्पेशल सर्विस देने का दबाव बनाया गया था.. जिसे उसने मना कर दिया,,ये रिजॉर्ट भी बीजेपी नेता के बेटे का था और अपराधी भी खुद बीजेपी नेता का बेटा,,,,केस में भाजपा नेता विनोद आर्य के बेटे पुलकित आर्य पर रेप और हत्या के आरोप लगे, जिसमें सौरभ भास्कर और अंकित गुप्ता ने उसकी मदद की।पुलिस ने आरोपियों को दबोच कर सख्ती से पूछताछ की तो उन्होंने गुनाह कबूल लिया था।

आखिर इतनी देरी क्यों-

सवाल ये खड़ा होता है कि जब अपराधी अपना गुनाह कबूल कर चुके हैं, जांच टीम  दावा कर रही थी  कि टीम के पास पुरे सबूत मौजूद हैं,तो फिर अंकिता को एक साल बाद भी न्याय क्यों नहीं मिल पाया,न्याय मिलने में इतनी देरी क्यों ? अंकिता के माता -पिता ये दावा करते हैं कि स्थानीय विधायक ने रातो रात रिजॉर्ट पर बुलडोजर चला कर सबूत नष्ट किये लेकिन आज भी धाकड़ मुख़्यमंत्री ने अपनी विधायक से इसको लेकर कोई स्पष्टीकरण नहीं मांगा,ऐसे में ये भी संशय पैदा होता है कि क्या बीजेपी नेता का बेटा होने की वजह से अंकिता को न्याय मिलने में देरी हो रही है,,पूरा प्रदेश उस VIP का नाम जानना चाहती है जिसको स्पेशल सर्विस के नाम पर अंकिता पर दबाव बनाया जा रहा था,आखिर क्यों सरकार उस VIP का नाम सार्वजनिक नहीं करना चाह रही.

कई बयानों में खुलासा फिर भी न्याय नहीं-

हत्या से पहले अंकिता पर जो बीती उसका खुलासा गवाहों के बयान में हुआ है। एक  रिपोर्ट के मुताबिक अंकिता भंडारी का लगातार सेक्सुअल हरासमेंट हो रहा था। इतना ही नहीं हत्या से पहले उसके साथ रेप भी हुआ। गवाहों के बयान के मुताबिक पुलकित आर्य की बर्थडे पार्टी के दिन अंकिता को कोल्ड ड्रिंक में शराब मिलाकर पिलाई गई। जब वो बेहोश हो गई तो उसके साथ दुष्कर्म किया गया। सौरभ भास्कर इस करतूत में शामिल था। 108 नंबर कमरे में अंकिता के साथ दुष्कर्म हुआ था, पुलकित ने भी उसके साथ गलत हरकते की। ये लोग उसका यौन शोषण कर रहे थे, बाद में उसे वीआईपी को सौंपने की भी प्लानिंग कर रहे थे।

क्या ये है सरकार का न्याय-

अब जब हत्याकांड को एक साल हो गया है तो मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने अंकिता भंडारी के नाम पर डोभ श्रीकोट स्थित राजकीय नर्सिंग कॉलेज का नाम रखने की घोषणा कर दी, लेकिन आरोपियों को अभी तक सजा नहीं हुई।

 

अभी कुछ दिन पहले ही उत्तराखंड में एक सूचना सामने आयी है कि किस तरह बीजेपी की डबल इंजन की सरकार में 2021 से 2023 तक 38 सौ  से अधिक महिलाएं गायब हो गयी है, क्या इस तरह  मोदी सरकार के धाकड़ मुख़्यमंत्री बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ का नारा सफल बनाएंगे,ऐसे हालातों को देख तो लगता है कि जब बेटी बचेगी ही नहीं तो पढ़ने का तो सवाल ही पैदा नहीं होता.

पूरे प्रदेश में आक्रोश- 

अंकिता भंडारी हत्याकांड से पुरे प्रदेश के लोगों में रोष व्याप्त है,पहाड़ की इस बेटी से यहां के सभी लोगों की भावनाएं जुड़ी हुई हैं,लोगों का गुस्सा सड़कों पर भी फूटता दिखाई देता है, लोग सरकार की मंशा पर ही सवाल उठा रहे हैं, विपक्ष भी लगातार इस मुद्दे पर सरकार को घेरता आ रहा है,लेकिन भाजपा उन पर राजनीति करने का आरोप जरूर लगाती है.

2024 में भाजपा के लिए बड़ी दिक्कत-

लेकिन ये तय है कि जितनी देर अंकिता को न्याय मिलने में हो रही है,उससे सरकार की छवि को धीरे धीरे नुकसान हो रहा है,क्योकि जब हत्याकांड सामने आया था तब भी किसी भाजपा नेता ने इस पर खुल कर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी, जिससे जनता में पहले ही एक मेसेज जा चुका है,,,अभी भी अंकिता को न्याय न मिलना 2024 में भाजपा के सामने एक बड़ा मुद्दा बनकर उठेगा,,,जो कम से कम भाजपा के सबसे मजबूत गढ़ माने जाने वाली पौड़ी लोकसभा सीट पर बड़ा असर डालेगा,क्योकि अंकिता इसी सीट से आती है,जहां के लोग इस घटना से आज भी बेहद आक्रोशित हैं.