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बीच बाजार में भी सुरक्षित नहीं हैं उत्तराखंड की बेटियां, मणिपुर जैसे हालात अब यहां भी…

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क्या उत्तराखंड ने अंकिता भंडारी केस से कुछ सीख ली ? क्या मणिपुर बनने की राह पर है उत्तराखंड? उत्तराखंड की कानून व्यवस्था और सरकार के खोखले दावे तो यहीं दर्शाते हैं, ऐसा कहने को हम तब मजबूर हो जाते हैं जब ये सामने आता है कि देहरादून जिसे राजधानी भी कहते हैं और वहां के व्यस्ततम चौराहे से एक खबर आती है कि भरे बाजार में अपनी दुकान पर काम कर रही लड़की के साथ सरेआम एक ऐसी घटना हो जाती है जो न केवल हमे डराती है बल्कि आसपास के जितने भी लोग इस घटना को देखते हैं डर से सिहर उठते हैं और हमें  ये सोचने को मजबूर करती है कि क्या लडकिया इस प्रदेश में सुरक्षित हैं, और कानून व्यवस्था की बात करने वाला पुलिस  प्रशासन कहाँ सोया है, बेटी बचाओ ,बेटी पढ़ाओ वाली डबल इंजन सरकार कहाँ सोई है?

देहरादून जिसे इस प्रदेश की  राजधानी भी कहा जाता है, जहां इस प्रदेश के मुखिया से लेकर उनके मंत्री और पूरी सरकार सहित सभी विभाग और अधिकारी बैठते हैं,कानून से जुड़े बड़े-बड़े अधिकारी भी यहीं रहते हैं अगर वहां पर दिन दहाड़े एक बेटी के साथ ऐसा होता है तो सीधा सवाल यहां की सरकार और पुलिस की कानून व्यवस्था पर उठते हैं ।
दुकानदार भी दहशत में- 
दरसल पूरा मामला कुछ इस तरह है कि देहरादून के डीबीएस कालेज के सामने टिहरी जिले की एक युवती एक साइबर कैफे की दुकान चलाती है, अचानक दिन में 20 से 25 लड़के मुहँ ढक कर वहां पर आते हैं और दुकान के अंदर घुस जाते हैं,उस युवती के गल्ले से पैसे निकालते हैं और उस युवती को घसीटते है, और ये घटना कोई रात को नहीं भरी दोपहरी में होती है, दूर गाँव से आकर अपना स्वरोजगार कर रही युवती इस घटना के बाद इतने ख़ौफ़ में है और न केवल युवती बल्कि आसपास के दुकानदार भी दहशत में है,अब आप सोचिए अगर भरी दोपहरी में इतनी भीड़ भाड़ वाले इलाके में भी अगर एक पाहड़ कि बेटी सुरक्षित नहीं हैं तो फिर अंदाजा लगाया जा सकता है कि बेटियां उत्तराखंड में कितनी सुरक्षित है,,और हमारी मित्र पुलिस शिकायत के बाद भी कई घण्टो तक घटना स्थल पर तक आने की जहमत नहीं उठाती, जबकि पास ही ssp ऑफिस से लेकर थाना चौकी मौजूद हो, जो दिखाता है कि हमारी पुलिस कितनी एक्टिव है। जब जाकर ये मामला मीडिया में उछला तब जाकर पुलिस ने इस पर रिपोर्ट लिखी।

 

कब तक महिलाएं सुरक्षित नहीं- 

 

अब सवाल ये उठता है कि क्या पुलिस ये इंतजार कर रही थी कि मणिपुर या अंकिता भंडारी जैसी घटना इस युवती के साथ हो जाती तो क्या तब जाकर पुलिस यहां कोई कारवाही करती,और क्या इस तरह बेटी बचेगी और बेटी पढ़ेगी,जब राजधानी और बीच बाजार में एक युवती जो अपने परिवार का सहारा बनने की कोशिश कर रही हो उसके साथ ये सब हो जाता है तो क्या इस तरह के माहौल में कोई और बेटी घर से बाहर आकर स्वरोजगार कर सकती है, इस तरह के माहौल में क्या कोई आत्म निर्भर और स्वरोजगार करने की हिम्मत करेगा.

इतना ही नहीं आज सुबह ही खबर आयी है कि राजधानी देहरादून के VVIP  इलाकों में शुमार कैंट रोड में एक महिला का शव मिला है. महिला के साथ दुराचार के बाद हत्या की आशंका व्यक्त की जा रही है. हालांकि पुलिस ने  महिला का शव बरामद करते हुए एक संदिग्ध युवक को भी हिरासत में ले लिया है, और मामले की जांच की जा रही है. आपको बता दें कि  सेंटीरियो मॉल के सामने महिला का शव मिलने से आस-पास के लोगों में सनसनी फैल गयी। महिला के सिर और पैर में गहरी चोट के निशान है। सूचना मिलने पर पुलिस ने मौके पर पहुंचकर शव को बरामद किया। जिसके बाद पुलिस ने बॉडी मोर्चरी में रखवाई। आशंका जताई जा रही है कि महिला के साथ दुराचार के बाद हत्या कर दी गई।

 

आरोपियों की तलाश जारी- 
एक ऐसी ही खबर हरिद्वार श्यामपुर थाना क्षेत्र से आयी है, जहां एक किशोरी को रुड़की में तीन दिन तक बंधक बनाकर उससे सामूहिक दुष्कर्म का मामला भी सामने आया है। बहादराबाद क्षेत्र में श्यामपुर क्षेत्र के एक गांव निवासी किशोरी दो महीने से दिहाड़ी मजदूरी करने के लिए आ रही थी। दिहाड़ी पर आने के बाद चार दिन पहले उसका नंबर बंद हो गया। संपर्क न होने पर परिजन बहाराबाद पहुंचे तो किशोरी उन्हें नहीं मिली। परिजनों ने पुलिस को शिकायत दी। श्यामपुर पुलिस ने गुमशुदगी दर्ज कर तलाश शुरू की। दिहाड़ी मजदूरी करने वाली किशोरी को उसकी परिचित युवती ने तीन युवकों के हवाले किया था। जबकि आरोपी युवक और युवती की तलाश शुरू कर दी गई है। पुलिस ने शिकायत मिलने के बाद किशोरी को रुड़की से बरामद कर लिया है। पुलिस ने बताया कि आरोपियों की तलाश की जा रही है. जल्द ही उन्हें गिरफ्तार कर लिया जाएगा.  ये पता चलते ही परिजनों के होश उड़ गए। इस घटना ने सरकार और कानून व्यवस्था की  महिला सुरक्षा को लेकर  पोल खोल कर रख दी है. ऐसा ही चलता रहा तो वो दिन भी दूर नहीं जब उत्तराखंड की बेटियों का घर से बाहर आना मुश्किल हो जाएगा।

केदारनाथ में पैदा हो रहा नया खतरा, जल्द नहीं दिया ध्यान तो सकती है बड़ी मुश्किलें…

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केदारनाथ मंदिर  में अब कोई रील्स नहीं बना पाएंगे , केदारनाथ में पैदा हो रहा है एक बार फिर बड़ा संकट, खुद भगवान ही अब खतरे में आ गए हैं,केदारनाथ भगवान शिव का वो धाम जो हिमालय की गोद में स्थित है,पहले केदारनाथ की यात्रा काफी कठिन मानी जाती थी लेकिन आज के समय में सभी लोग वह पहुंच रहे हैं. एक समय था जब केदारनाथ जाने का रास्ता काफी कठिन था,और लोग यहां अपने अंत समय में जाया करते थे, क्योकि उस वक्त  यहां पहुंचने के लिए न सड़क थी और ना ही आज की तरह कोई हैली या अन्य सुविधाएं थी. कहते हैं पुराने समय में हरिद्वार के बाद पूरा रास्ता काफी मुश्किल भरा हुआ करता था, इसलिए श्रद्धालु अपने अंत समय में यहां जाया करते थे, और जाने के बाद ये भी उम्मीद कम ही रहती थी कि इंसान लौट कर आएगा या नही, इसलिए कई लोग यात्रा पर जाने से पहले अपना पिंड दान कर दिया करते थे। लेकिन आज धाम की स्तिथि कुछ और ही बयां करती  है।

2013 की आपदा के बाद लोगो की भीड़ बढ़ने लगी-

2013 की आयी भीषण आपदा के बाद केदारनाथ धाम सिर्फ मंदिर को छोड़कर पूरी तरह तहस नहस हो गया था,जिसके बाद सबसे पहले उस समय के उत्तराखंड के मुख्यमंत्री हरीश रावत ने केदारनाथ यात्रा को सुचारु और मंदिर परिसर को फिर से खड़ा करने की काफी कोशिश की, लेकिन 2014 के बाद प्रधानमंत्री मोदी ने जिस तरह केदारनाथ को पुनः सवार कर खड़ा किया उसके बाद से ही केदारनाथ जाने के लिए लोगों में उत्सुकता बढ़ी,,,और श्रद्धालुओं की संख्या में यहां बहुत इजाफा होने लगा,,, लेकिन आज के समय में केदारनाथ धाम में श्रद्धालुओं के साथ-साथ मनोरंजन के लिए पहुंचने वाले लोगों की संख्या भी बढ़ रही है,सोशल मीडिया के इस दौर में कई वीडियो केदारनाथ से वायरल हुए जिससे केदारनाथ धाम ज्यादा चर्चा में बना है,ऐसे वीडियो से लगातार धार्मिक भावनाएं आहत होने का आरोप लगते रहे हैं, जिसके लिए मंदिर समिति पर एक्शन लेने का दबाव भी बन रहा थ।

मंदिर में फ़ोन और फोटोग्राफी पर प्रतिबंध-

लगातार ऐसे मामलों के सुर्ख़ियों में आने के बाद केदारनाथ मंदिर समिति ने अब बड़ा फैसला किया है,,, मंदिर समिति ने केदारनाथ मंदिर में अब मोबाइल फोन से फोटोग्राफी करने पर प्रतिबंध लगा दिया है। बदरीनाथ-केदारनाथ मंदिर समिति की और से इस संबंध में धाम में जगह-जगह साइन बोर्ड भी लगाए गए हैं। बदरीनाथ केदारनाथ मंदिर समिति के अध्यक्ष अजेंद्र अजय ने बताया कि केदारनाथ मंदिर के अंदर यदि कोई श्रद्धालु फोटो खींचता है तो उसके खिलाफ कानूनी कार्रवाई भी की जाएगी। केदारनाथ मंदिर में आने वाले कई श्रद्धालु रील्स बनाकर सोशल मीडिया पर वायरल कर रहे हैं। जिससे धार्मिक भावनाओं को भी ठेस पहुंच रही है। हाल ही में केदारनाथ धाम में एक महिला द्वारा गर्भ ग्रह में नोट बरसाने का वीडियो भी सोशल मीडिया पर खूब वायरल हुआ था। जबकि गर्भगृह में फोटो खिंचवाना वर्जित है, हालांकि सरकार ने कई बार खुद ही इस नियम की अनदेखी की है, बीकेटीसी के अध्यक्ष ने कहा कि धाम में अभी तक क्लॉक रूम की व्यवस्था नहीं है। श्रद्धालु मोबाइल फोन लेकर दर्शन कर सकते हैं। लेकिन मंदिर के अंदर फोटो और वीडियो नहीं खींच सकते हैं। इस पर प्रतिबंध है। यदि कोई श्रद्धालु आदेशों का उल्लंघन करता है तो उसके खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जाएगी।

भविष्या के लिए एक बड़ा डर-
केदारनाथ धाम की सिर्फ यही चिंता नहीं है, बल्कि यहां उमड़ रही भारी भीड़ भी एक बड़ा डर भविष्य के लिए खड़ा हो रहा है, केदारनाथ हिमालय के सेंसिटिव जोन  में बसा है यहां पर इतनी भीड़ पहुंचने से भी कई तरह का प्रभाव पड़ रहा हैं,भारी भीड़ से यहां दबाव भी बढ़ता है,केदार वैली में हेलीकॉप्टर से बढ़ रहे शोर से भी यहां के पर्यावरण को बहुत नुकसान हो रहा है, कई बार शोधकर्ता इस विषय पर भी सरकार को चेता चुके हैं, लेकिन उनकी बात पर कोई गौर करने को तैयार नहीं है।
आपदा के बाद तापमान में बड़ा बदलाव-
केदारनाथ धाम में आई आपदा के बाद से यहां के तापमान में भारी परिवर्तन देखने को मिल रहा हैं. पहले जहां धाम में बर्फबारी और बारिश समय पर होने से तापमान सही रहता था. ग्लेशियर टूटने की घटनाएं सामने नहीं आती थीं. वहीं अब कुछ सालों से धाम में ग्लेशियर चटकने की घटनाएं बार-बार सामने आ रही हैं. इसके साथ ही यहां के बुग्यालों को नुकसान पहुंचने से वनस्पति और जीव जंतु भी विलुप्ति के कगार पर हैं. आपदा के बाद से केदारनाथ धाम में पर्यावरण को लेकर कोई कार्य नहीं किये जाने से पर्यावरण विशेषज्ञ भी भविष्य के लिए चिंतित नजर आ रहे है।

पुनर्निर्माण कार्य जोरों पर-

केदारनाथ आपदा को नौ साल का समय बीत चुका है. तब से लेकर आज तक धाम में पुनर्निर्माण कार्य जोरों पर चल रहे हैं. धाम को सुंदर और दिव्य बनाने की दिशा में निरंतर काम किया जा रहा है, लेकिन इन पुनर्निर्माण कार्यों और बढ़ती मानव गतिविधियों के साथ ही हेली सेवाओं ने धाम के स्वास्थ्य को बिगाड़ कर रख दिया है. यहां के पर्यावरण को बचाने की दिशा में कोई कार्य नहीं किया जा रहा है, जिससे आज केदारनाथ की पहाड़ियां धीरे-धीरे खिसकनी शुरू हो गई है।

केदार घाटी के लिए हो रहा नया संकट खड़ा-

केदारनाथ घाटी के लिए एक बड़ी चिंता भी है- कंपन पैदा करता हेलिकॉप्टरों का शोर।  हर 5 मिनट में एक हेलिकॉप्टर केदारनाथ मंदिर क्षेत्र में गड़गड़ा रहा है ,यही है नया संकट। क्योंकि, विशेषज्ञ कह रहे हैं कि ये पवित्र मंदिर ग्लेशियर को काटकर बनाया गया है। इसलिए शोर से घाटी के दरकने और हेलिकॉप्टरों के धुंए के कार्बन से पूरा इलाका खतरे की जद में है। हमने भगवान तक पहुंचने के इतने सरल व अवैज्ञानिक रास्ते बना दिए हैं कि अब भगवान पर ही मुसीबत आ गई है। केदारनाथ के लिए 1997-98 तक एक ही हेलिपैड था। अब 9 हेलीपैड बन गए हैं। ये देहरादून से फाटा तक फैले हैं और 9 कंपनियों के लिए उड़ान सुविधा देते हैं। 8 साल पहले तक केदारनाथ के लिए कुल 10-15 उड़ानें थीं। अब केदारनाथ वैली में सुबह 6 से शाम 6 बजे तक हेलिकॉप्टर रोजाना 250 से ज्यादा राउंड लगाते हैं। इनका शोर और इनसे निकलने वाले कार्बन ने ग्लेशियर काटकर बनाए मंदिर और उसकी पूरी घाटी के लिए नया संकट खड़ा कर दिया है।

धीरे-धीरे धाम में हो रहा है भू धसाव-

 

केदारनाथ धाम में पाये जानी वाली घास विशेष प्रकार की है. वनस्पति विज्ञान में इसे माँस घास कहा जाता है. ये जमीन को बांधने का काम करती है. साथ ही यहां के ईको सिस्टम को भी सही रखती है. बताया जा रहा है कि यह माॅस घास जमीन में कटाव होने से रोकती है और हिमालय के तापमान को व्यवस्थित रखने में मददगार होती है. केदारनाथ धाम चारों ओर से पहाड़ियों से घिरा है. यहां धीरे-धीरे भू धसाव हो रहा है. यहां मानव का दबाव ज्यादा बढ़ गया है. भैरवनाथ मंदिर, वासुकी ताल और गरूड़चट्टी जाने के रास्ते से इस घास को रौंदा जाता है.  बुग्यालों में खुदाई करके टेंट लगाए गए हैं. जिन स्थानों पर टेंट लगाए गए हैं, वहां के बुग्यालों को पुनर्जीवित करने के लिए कोई कार्य नहीं किया जाता है, जिससे पानी का रिसाव होता जाता है और भूस्खलन की घटनाएं सामने आती है।

 

मंदिर की पहाड़ियों पर एवलांच की घटनाएं-
केदारनाथ धाम की पहाड़ियों में लगातार एवलांच की घटनाएं सामने आ रही हैं. इसके लिए पर्यावरणविद धाम में हो रहे तापमान बदलाव का कारण मानते हैं. पर्यावरणविद जगत सिंह जंगली की माने तो केदारनाथ धाम के तापमान में ग्लोबल वार्मिंग के कारण वृद्धि देखने को मिल रही है. ग्लेशियर खिसक रहे हैं. केदारनाथ धाम में अनियंत्रित लोगों के जाने से वातावरण को नुकसान पहुंच रहा है. हिमालय क्षेत्र में हेलीकॉप्टर सेवाएं टैक्सी की तरह कार्य कर रही हैं, जबकि इनकी उड़ानों को विशेष इमरजेंसी की सेवाओं में उपयोग किया जाना चाहिए।
खतरे में हैं कई पशु और जानवर-

केदारनाथ में नीचे उड़ते हेलीकाप्टर दुर्लभ प्रजातियों के कई जीवों का ब्रीडिंग साइकल बिगड़ा है। उत्तराखंड का राज्य पक्षी मोनाल और राजकीय पशु कस्तूरी मृग इस सेंचुरी में अब नहीं दिखते। तितलियों की कई दुर्लभ प्रजातियां तो गायब हो चुकी हैं। स्नो लैपर्ड, हिमालयन थार और ब्राउन बीयर्स भी खतरे में हैं।

NGT के नियमों की उड़ती धज्जियां-

NGT ने सुनिश्चित करने को कहा था कि हेलिकॉप्टर केदारनाथ सेंचुरी में 600 मीटर के नीचे न उड़ें। आवाज 50 डेसिबल हो। लेकिन फेरे जल्दी पूरे करने और फ्यूल बचाने के लिए हेलिकॉप्टर 250 मी. ऊंचाई तक उड़ते हैं। आवाज भी दोगुनी होती है। देहरादून स्थित वाडिया इंस्टीटूयट  में ग्लेशियर विभाग के पूर्व विभागाध्यक्ष डॉ डीबी डोभाल कहते हैं- सरकार को ये रिपोर्ट दे चुके हैं कि इससे मंदिर और घाटी को बड़ा खतरा हो सकता है।पद्मभूषण पर्यावरणविद् डॉ. अनिल जोशी बताते हैं कि हिमालय के इस सबसे संवेदनशील व शांत क्षेत्र में 100 डेसिबल शोर और कार्बन उत्सर्जन हर 5 मिनट में होगा तो मंदिर-पर्यावरण-वन्य जीवों के लिए खतरा तय है।

 

उत्तराखंड में बारिश का कहर जारी, बिगड़ेंगे अभी और हालात…

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उत्तराखंड में मानसून ने भयानक तबाही मचा रखी है. उत्तराखंड  में मानसून का सीजन हर साल आफत लेकर आता है. हर साल आपदा की वजह से सैकड़ों लोग अपनी जान से हाथ धो बैठते हैं. तो वहीं सैकड़ों मकान भी तबाह हो जाते हैं. इतना ही नहीं आपदा की वजह से मरने वाले मवेशियों की तो कोई गिनती ही नहीं होती है. क्योंकि हर साल प्रदेश के पर्वतीय क्षेत्रों में बारिश से तबाही मचती है  कई लोग बेघर हो जाते हैं और कई लोग अपनी जान तक गंवा देते हैं.  भारी बारिश के चलते आम जनजीवन भी अस्त-व्यस्त है. मौसम विभाग की मानें तो राज्य में अभी बारिश का ये सिलसिला जारी ही रहेगा. IMD ने कुछ इलाकों के लिए रेड अलर्ट भी जारी किया है. देश के कई राज्यों में मूसलाधार बारिश देखने को मिल रही है.  तो वहीं मैदान से लेकर पहाड़ी इलाकों तक भारी बारिश के चलते तबाही की तस्वीरें सामने आ रही हैं. सबसे ज्यादा तबाही उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश में देखने को मिल रही है. उत्तराखंड में लगातार हो रही बारिश के चलते नदियां उफान पर हैं.  इस बीच मौसम विभाग ने अभी आफत कम नहीं होने की संभावना जताई है. मौसम विभाग ने उत्तराखंड में अगले पांच दिनों तक बारिश की चेतावनी दी है.

 

अब तक आपदा की वजह से 36 लोगों की हुई मौत

उत्तराखंड आपदा के हिसाब से अति संवेदनशील राज्य है. यहां पर्वतीय क्षेत्रों में आपदा की कई घटनाएं हुई हैं, जिनमें सैकड़ों लोग जान गवा चुके हैं. बात 2013 केदारनाथ आपदा की हो या फिर रैणी गांव में आई आपदा की.  हर साल बरसात के सीजन में ऐसी तबाही मचती है कि सैकड़ों लोग अपनी जान गंवा देते हैं. इस साल ही अब तक आपदा की वजह से 36 लोग अपनी जान गंवा चुके हैं. यह आंकड़े आपदा परिचालन केंद्र के अनुसार हैं,, इसके अलावा 53 लोग ऐसे हैं जो घायल हुए हैं और 13 लोग अभी भी लापता बताए जा रहे हैं बात सिर्फ इंसानों की नहीं है बल्कि ढाई सौ से ज्यादा छोटे बड़े पशु भी काल के मुंह में समा गए. नुकसान की अगर बात की जाए तो कच्चे-पक्के भवनों को सैकड़ों की संख्या में नुकसान हुआ है.

 

इन जिलों में हुई इतने लोगों और पशुओं की मौतें

इसी के साथ अगर जिलों में मौतों की बात की जाए तो बागेश्वर में 1, चमोली में 5, चंपावत में 2, देहरादून में 2, हरिद्वार में 2, नैनीताल में 2,पौड़ी में 2, पिथौरागढ़ में 5, रुद्रप्रयाग में 4, टिहरी में 5, उधम सिंह नगर में 2 और उत्तरकाशी में 4 लोगों की मौत हुई है. साल 2021 की बात की जाए तो आपदा की वजह से कुल 303 लोग मारे गए थे, जबकि 87 लोग घायल हुए थे. 61 लोग आज भी लापता सूची में दर्ज है. आपदा में 412 बड़े पशु और 740 छोटे पशु आपदा की चपेट में आकर मारे गए हैं.

 

अब तक 1500 से अधिक सड़कें हुई बंद-

उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्रों में मानसून की बारिश हमेशा आफत लेकर आती है। सबसे अधिक कहर सड़कों पर बरसता है। बारिश में स्लिप आने और क्रॉनिक लैंडस्लाइड जोन (अति संवेदनशील) सड़कों के बंद होने का बड़ा कारण बनते हैं। पहले से चिह्नित भूस्खलन क्षेत्रों के अलावा हर साल नए क्रॉनिक जोन विकसित हो रहे हैं, जो सरकार के लिए बड़ी चिंता का विषय हैं। लोनिवि की ओर से जारी आंकड़ों के अनुसार, इस साल अब तक कुल 1,508 सड़कें बंद हो चुकी हैं। इनमें 1,120 सड़कें लोनिवि, 7 NH और 381 PMGSY यानि (प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना) की हैं। इनमें से अब तक 1,235 सड़कों को खोला जा चुका है, जबकि 273 अब भी बंद हैं। इन सड़कों को चालू हालत में लाने के लिए 1,776.24 लाख रुपये खर्च होंगे, जबकि पूर्व की हालत में लाने के लिए 3,560.66 लाख रुपये की जरूरत पड़ेगी। यह आकलन लोनिवि की ओर से अपनी रिपोर्ट में किया गया है।

 

7 पुल भी हुए क्षतिग्रस्त-

प्रदेश में भारी बारिश के बाद उपजे हालात के कारण सात पुलों को भी नुकसान पहुंचा है। इनको चालू करने के लिए 14 लाख रुपये खर्च होंगे, जबकि पूर्व की हालत में लाने के लिए कुल 337.50 लाख रुपये खर्च होंगे। 

 

तेज बारिश से जन जीवन अस्त-व्यस्त-

उत्तराखंड में लगातार हो रही भारी बारिश के कारण जगह-जगह से तबाही के मंजर की तस्वीरें सामने आ रही हैं. ऋषिकेश में भी गंगा का पानी ऋषिकेश में स्थित परमार्थ निकेतन की शिव मूर्ति को छू कर बहने लगा है. शिव मूर्ति तक पहुंचने के लिए बनाई गई छोटी पुलिया भी पूरी तरह से नदी में डूब चुकी है. गंगा का बढ़ता जल स्तर अब डरा रहा है कि कहीं पानी का तेज बहाव एक बार फिर प्रतिमा को डूबो न दे. इसके साथ ही ऋषिकेश से गुजरने वाली चंद्रभागा नदी, सॉन्ग नदी, सुखवा नदी, बीन नदी के साथ-साथ नाले भी अपना रौद्र रूप दिखा रहे हैं. उत्तराखंड के नैनीताल जिले में भी अब भारी बारिश के कारण झीलों का जल स्तर तेजी से बढ़ता जा रहा है. तो वहीं, भारी बारिश के चलते नेशनल हाइवे में कटाव देखने को मिला. उत्तरकाशी में भी लगातार तेज बारिश के बाद गंगोत्री-यमुुनोत्री हाइवे पर कई जगह रास्ते बंद हो चुके हैं. जिसके कारण जगह-जगह फंसे कांवड़ियों का रेस्क्यू किया जा रहा है.

 

 

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प्रदेश में अभी टला नहीं बारिश का कहर. इन इलाकों में ऑरेंज अलर्ट-

IMD की ओर से मिली जानकारी के मुताबिक, कल यानी गुरुवार को नैनीताल, उधम सिंह नगर, पौड़ी, चंपावत  में बारिश का रेड अलर्ट जारी किया गया है. इसके अलावा पिथौरागढ़, बागेश्वर, चमोली, और अल्मोड़ा में बारिश का ऑरेंज अलर्ट जारी किया गया है. वहीं, रुद्रप्रयाग, उत्तरकाशी, देहरादून, टिहरी और हरिद्वार में भी बारिश का येलो अलर्ट जारी किया गया है.

 

क्या कहता है मौसम का रेड, ऑरेंज और येलो अलर्ट-

मौसम विभाग मौसम के बहुत खराब होने पर रेड अलर्ट जारी करता है. इसमें प्रशासन को तुरंत सक्रिय होने का संकेत मिलता है. ऑरेंज अलर्ट मौसम के खराब होने पर जारी होता है और इसमें प्रशासन को तैयार रहने का इशारा मिलता है. येलो अलर्ट प्रशासन को सतर्क रहने के लिए कहता है.

 

मदद के लिए सरकार ने जारी किए हेल्पलाइन नंबर-

उत्तराखंड के विभिन्न स्थानों एवं हिमाचल प्रदेश में फंसे उत्तराखंड के नागरिकों की सहायता के लिए सरकार ने आपदा राहत नंबर जारी किए हैं। किसी भी मदद के लिए लोग इन नंबरों 9411112985, 01352717380, 01352712685 पर संपर्क कर सकते हैं। साथ ही 9411112780 नंबर पर व्हाट्सएप मैसेज कर सकते हैं। सीएम धामी ने ट्वीट कर इसकी जानकारी दी है।

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उत्तराखंड में भारी बारिश के बीच लगातार भूस्खलन हो रहा है। कुमाऊं से लेकर गढ़वाल और पहाड़ से लेकर मैदान तक बारिश का दौर जारी है। कुमाऊं और गढ़वाल के सभी इलाकों में लगातार हो रही तेज बारिश आफत बनी हुई है। राजधानी देहरादून में लगातार 3 दिन से बारिश हो रही है। बारिश की वजह से देहरादून की सड़कों पर पानी भरा हुआ है, जिसके चलते लोगों को आने-जाने में परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। मौसम विभाग के अनुसार अभी अगले 5 दिन प्रदेश में बारिश का दौर जारी रहेगा। इसे देखते हुए कुमाऊं के सभी पहाड़ी जिलों में स्कूलों को बंद कर दिया गया है। प्रदेश में बारिश के दौरान भूस्खलन तथा अन्य संबंधित घटनाओं में 9 व्यक्तियों की मृत्यु हो गयी और छह अन्य घायल हुए हैं…. पिथौरागढ़, अल्मोड़ा बागेश्वर, नैनीताल और चंपावत में सभी स्कूल बंद रहेंगे। भारी बारिश के अलर्ट पर पांचों जिलों के डीएम ने यह अहम फैसला लिया है। तेज बारिश के चलते कुमाऊं की कई नदियां उफान पर हैं तो गढ़वाल और कुमाऊं में पहाड़ों से पत्थर गिर रहे हैं। इस कारण सड़कें भी अवरुद्ध हो रही हैं। मौसम विभाग ने नदियों के किनारे और पहाड़ी मार्गों पर सतर्कता बरतने के निर्देश दिए हैं। कई दिनों से प्रदेश भर के ज्यादातर इलाके बारिश में जलमग्न हैं। पहाड़ से लेकर मैदान और कुमाऊं से लेकर गढ़वाल तक सब जगह बारिश हो रही है। उत्तराखंड में लगातार हो रही बारिश के बाद पहाड़ से लेकर मैदान तक कुदरत का कहर बरप रहा है। पहाड़ी इलाकों में नदी नाले उफान पर आए हैं। गंगा, अलकनंदा, काली और बीन नदी उफान पर हैं। वहीं, भूस्खलन ने कई जिंदगियां लील लीं। उत्तरकाशी में पांच, रुद्रप्रयाग में एक और विकासनगर में दो लोगों की भूस्खलन के चलते मौत हो गई। उधर, मैदानी इलाके बारिश के बाद जलमग्न हो गए हैं।

 

चार-धाम यात्रा मार्ग भी हुए अवरुद्ध।

 

बद्रीनाथ राष्ट्रीय राजमार्ग शनिवार को पहाड़ी से बोल्डर गिरने के कारण एक बार फिर अवरुद्ध हो गया। बाजपुर चाडा के पास पहाड़ी से चट्टान टूटने के कारण बद्रीनाथ राष्ट्रीय राजमार्ग एक बार फिर बंद हो गया। मार्ग बंद होने की वजह से गाड़ियों को दूसरे रास्ते से निकालना पड़ रहा है। रविवार को देहरादून में तड़के से बारिश का दौर जारी रहा, चमोली जिले में मौसम खराब बना हुआ है। यहां भी बारिश हो रही है। केदारनाथ समेत पूरे रुद्रप्रयाग जिले में हल्की बारिश हो रही है। केदारनाथ यात्रा सुचारू है। लगातार बारिश के कारण जौनसार बावर में कई जगह पहाड़ दरक गए हैं। हरिद्वार में बाणगंगा (रायसी), पिथौरागढ़ में धौलीगंगा (कनज्योति) व नैनीताल में कोसी (बेतालघाट) में नदियों के जल स्तर में वृद्धि हो रही है। भूस्खलन की वजह से लोनिवि साहिया के स्टेट हाईवे समेत कई मोटर मार्ग बंद हैं। स्टेट हाईवे, मुख्य जिला मार्ग समेत 10 मोटर मार्ग बंद होने के कारण जौनसार बावर के करीब 100 गांवों, मजरों व खेड़ों में रहने वाली आबादी का जनजीवन प्रभावित हो गया है। सचिव आपदा प्रबंधन डा रंजीत कुमार सिन्हा के निर्देश पर राज्य आपातकालीन परिचालन केंद्र ने हरिद्वार, नैनीताल व पिथौरागढ़ के जिलाधिकारियों को पत्र भेजकर अपने-अपने क्षेत्रों में विशेष सावधानी बरतने के निर्देश दिए हैं। मौसम विभाग ने कहीं ऑरेंज तो कहीं येलो अलर्ट जारी किया है। कई जिलों में विद्यालयों की छुट्टी कर दी गई है। पहाड़ी मार्गों और नदियों के किनारे सतर्कता बरतने को कहा गया है।बीते दो दिनों से जिस तरीके की बारिश हो रही है, उससे अब देश के पहाड़ी इलाकों से लेकर मैदानी इलाकों में बहुत बड़े खतरे की आहट सुनाई देने लगी है। पहाड़ों पर नजर रखने वाली देश की प्रमुख सरकारी एजेंसियों ने आशंका जताई है कि मूसलाधार बारिश के बाद अब खोखले हो चुके पहाड़ों के दरकने का अंदेशा बढ़ गया है। दरअसल यह रिपोर्ट लगातार बारिश के बाद पहाड़ों के भीतर हो रहे तेज पानी के रिसाव और कमजोर हो रही चट्टानों के चलते आई है। लगातार तेज हो रही बारिश के चलते हिमाचल प्रदेश के कुछ पहाड़ी इलाके सबसे ज्यादा खतरे के निशान पर आ गए हैं और वहां पर पहाड़ियों के खिसकने की बड़ी सूचनाएं भी आने लगी हैं। फिलहाल सरकारी एजेंसियों की चेतावनी के बाद सरकार तो अलर्ट हो गई है। लेकिन विशेषज्ञों का मानना है अगर ऐसा होता है तो यह बहुत बड़ी तबाही होगी।

 

 

 

 हिमालयन रीजन के खतरनाक इलाकों को खाली करने का सुझाव। 

 

बीते दो दिनों की बारिश ने सबसे ज्यादा तबाही हिमाचल प्रदेश के उन इलाकों में मचानी शुरू की है, जहां आबादी बसती है। पहाड़ों समेत मैदानी इलाकों पर नजर रखने वाली जियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया से जुड़े अधिकारियों के मुताबिक जहां पर सबसे ज्यादा बारिश हो रही है और पानी का बहाव तेज है उन पहाड़ी क्षेत्रों में अब सबसे ज्यादा खतरा नजर आने लगा है। ऐसे खतरे को भांपते हुए डिफेंस रिसर्च डेवलपमेंट ऑर्गेनाइजेशन की ओर से पहाड़ों और वहां पड़ने वाली बर्फ पर नजर रखने के लिए डिफेंस जियोइन्फोर्मेटिक्स एंड रिसर्च एस्टैब्लिशमेंट और जियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया समेत मौसम विभाग ने केंद्र सरकार को मौसम से होने वाली आपदा संबंधी रिपोर्ट सौंपी है। इस रिपोर्ट में अंदेशा जताया गया है कि अगर लगातार ऐसी बारिश होती रही, तो पहाड़ी इलाकों पर न सिर्फ पहाड़ों के खिसकने का खतरा बढ़ेगा, बल्कि मानव आबादी और जान माल की बड़ी क्षति भी हो सकती है। सूत्रों के मुताबिक रिपोर्ट में इस बात का दावा किया गया है कि कमजोर हो चुके पहाड़ों और बारिश के चलते क्षतिग्रस्त हुए इलाकों से अब वहां रहने वालों को किसी दूसरी जगह बसाया जाना जरूरी हो गया है।

 

 

 

यह बारिश सबसे खतरनाक साबित हो सकती है पहाड़ों के लिए…

 

जियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया के पूर्व उपनिदेशक डॉ. अरूप चक्रवर्ती कहते हैं कि बीते एक दशक में तैयार की गई उनकी रिपोर्ट बताती है कि पहाड़ के ज्यादातर आबादी वाले हिस्से के इलाके एक खोखले टीले पर बसे हुए हैं। वह कहते हैं कि जिस तरीके की मूसलाधार बारिश पहाड़ों पर जमकर हो रही है और तेजी से पिघलते ग्लेशियर से निकलता पानी तेजी से नदियों के माध्यम से उन पहाड़ों के भीतर जाकर उनकी जड़ों को और खोखला कर रहा है। चक्रवर्ती अंदेशा जताते हैं कि जिस तरीके से बीते दो दिनों में बारिश हुई है वह पहाड़ी इलाकों के लिए सबसे खतरनाक साबित हो सकती है। चक्रवर्ती कहते हैं कि सबसे बड़ा खतरा पहाड़ों के खिसकने का है। उनका उनका कहना है कि इस वक्त सबसे ज्यादा हिमाचल प्रदेश में बारिश का कहर बरप रहा है। खोखले हो चुके पहाड़ों पर बसी आबादी और खतरनाक पहाड़ों पर बने मकानों और उनके ठिकानों के खिसकने का खतरा बना हुआ है। वह कहते हैं कि जिस तरीके से बारिश हुई है अगर किसी तरीके की बारिश इस मानसून में एक दो बार और हो जाती है तो बेहद चिंता की बात होगी।

 

इसलिए जताया बारिश में पहाड़ों के ढह जाने का खतरा।

पहाड़ों पर बसी आबादी को लेकर एक बहुत बड़ा खतरा सामने आ रहा है। भूवैज्ञानिकों का कहना है पहाड़ों का गुरुत्वाकर्षण केंद्र अपनी जगह से खिसकने लगा है। लगातार हो रहे बेतरतीब तरीके के निर्माण कार्य से आबादी वाले पहाड़ खोखले भी होने लगे हैं। जियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया के वैज्ञानिक अरूप चक्रवर्ती कहते हैं कि आने वाले दिनों में पहाड़ों के खिसकने की घटनाएं न सिर्फ हिमाचल और उत्तराखंड में बढ़ेंगी, बल्कि पूर्वोत्तर भारत के राज्यों में बसे पहाड़ी इलाकों और नेपाल, भूटान, तिब्बत जैसे देशों में भी ऐसी घटनाओं के बढ़ने की संभावना ज्यादा है। इसमें बारिश की वजह से और बड़ी घटनाओं के होने की आशंका बनी हुई है। वह कहते हैं कि हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड में पहाड़ों के खिसकने का सिलसिला लगातार जारी है। डॉक्टर चक्रवर्ती का कहना है कि पहाड़ों पर लगातार हो रहे अतिक्रमण से पहाड़ों का पूरा गुरुत्वाकर्षण केंद्र अव्यवस्थित हो गया है। पहाड़ों की टो कटिंग और बेतरतीब तरीके से हो रहे निर्माण की वजह से ऐसे हालात बने हैं। उनका कहना है कोई भी पहाड़ तभी तक टिका रह सकता है जब उसका गुरुत्वाकर्षण केंद्र स्थिर हो। पहाड़ों की तोड़फोड़ और पहाड़ों पर बेवजह के बोझ से उसका स्थिर रखने वाला गुरुत्वाकर्षण केंद्र अपनी जगह छोड़ देता है। ऐसे में जब तेज बारिश होती है और नदियों का बहाव अपने वेग के साथ पहाड़ी इलाकों में बहता है, तो पहाड़ों की खोखली हो नीव को गिराने की क्षमता भी रखते हैं। यही परिस्थितियां सबसे खतरनाक होती है।

 

हिमालयन रीजन में इसलिए बढ़ रही हैं बड़ी समस्या।

 

पहाड़ी इलाकों में हो रहे निर्माण कार्यों पर नजर रखने वाली संस्था से जुड़े वैज्ञानिक और शोधकर्ताओं का कहना है कि पहाड़ पर बनने वाले एक मकान या एक सड़क या एक टनल के लिए भी वैज्ञानिक सर्वेक्षण बहुत जरूरी होता है। उनका कहना है क्योंकि पहाड़ की मजबूती बनाए गए मकान, बनाई गई सड़क और बनाई गई टनल के दौरान काटे गए पहाड़ के मलबे से ही जुड़ी होती है। जियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया की पहाड़ी इलाकों पर एक दशक तक किए गए शोध के नतीजे बताते हैं कि यहां पर जो निर्माण हुए उसमें पानी के निकास को लेकर उस तरह का ख्याल ही नहीं किया गया। शोधकर्ताओं के मुताबिक पहाड़ों पर पानी के निकास की सबसे बेहद जरूरत किसी भी हो रहे निर्माण के दौरान होती है। इस शोध को करने वाले जियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया के पूर्व अतिरिक्त महानिदेशक डीएस चंदेल की रिपोर्ट में पहाड़ों की मजबूती और पहाड़ों की मिट्टी से लेकर उसके पूरे भौगोलिक परिदृश्य को शामिल किया गया था। रिपोर्ट के मुताबिक अध्ययन में पाया था कि वे पहाड़ जहां पर इंसानी बस्तियां बहुत ज्यादा बसने लगी हैं, वहां पहाड़ धीरे-धीरे ही सही लेकिन खोखले होते जा रहे हैं। ऐसे माहौल में अगर कभी बड़ी बारिश होती है तो सबसे बड़ा खतरा पहाड़ों पर बसे शहरों के लिए ही होने वाला है।

 

 दिल्ली में टूटा रिकॉर्ड।

मौसम विभाग के अनुसार बारिश ने दिल्ली में 20 वर्षों का रिकॉर्ड तोड़ दिया है. मौसम विभाग के एक अधिकारी के अनुसार दिल्ली के प्राथमिक मौसम केंद्र सफदरजंग वेधशाला ने सुबह 8.30 बजे से शाम 5.30 बजे तक  126.1  मिलीमीटर (मिमी) बारिश दर्ज की. उन्होंने बताया कि बारिश का यह आंकड़ा 10 जुलाई 2003 के बाद सबसे ज्यादा है और तब 24 घंटों के दौरान 133.4 मिलीमीटर बारिश दर्ज की गई थी.

 

मौसम विभाग ने दी ये जानकारी….

मौसम विभाग ने कहा कि पश्चिमी विक्षोभ उत्तर भारत के ऊपर बना हुआ है, जबकि मानसून अपनी सामान्य स्थिति के दक्षिण की ओर फैल गया है. साथ ही, दक्षिण-पश्चिम राजस्थान के ऊपर एक चक्रवाती स्थिति बनी हुई है. आईएमडी ने दो दिन पहले हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड में बहुत ज्यादा बारिश होने की चेतावनी दी थी. इसके अलावा जम्मू कश्मीर के छिटपुट स्थानों, और पूर्वी राजस्थान, हरियाणा, चंडीगढ़, दिल्ली, और पंजाब में भी भारी बारिश का अनुमान लगाया गया था. आईएमडी ने कहा कि 11 जुलाई से क्षेत्र में भारी बारिश होने की संभावना नहीं है. मौसम विभाग के मुताबिक 15 किलोमीटर से कम बारिश हल्की, 15 मिलीमीटर से 64.5 मिलीमीटर वर्षा मध्यम, 64.5 मिलीमीटर से 115.5 भारी और 115.5 से 204.4 मिलीमीटर अत्यधिक बारिश समझी जाती है. दिल्ली में जुलाई में अब तक 137 मिलीमीटर बारिश हुई है . औसत के हिसाब से शहर में पूरे महीने में 209.7 मिलीमीटर बारिश होती है.

त्रिवेंद्र सरकार में लिया फैसला रोक सकता था जोशीमठ की तबाही ?

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जोशीमठ के लोगों पर फिर खतरा मंडराने लगा है,सरकार की अनदेखियों का खामयाजा भुगत रहे शहर को क्या समय रहते बचाया जा सकता था ?क्या पूर्व की त्रिवेन्द रावत की सरकार का एक फैसला तबाह होते जोशीमठ को बचा सकता था ?

जोशीमठ आपदा को छह माह का समय पूरा हो चुका है। सरकार जोशीमठ को बचाने के लिए धीरे-धीरे कदम बढ़ा रही है। कुछ आपदा प्रभावितों का जनजीवन पटरी पर लौट आया है, जबकि कुछ अभी राहत के इंतजार में हैं। कई आपदा प्रभावितों के दुख-दर्द से उबरने की उम्मीद कागजों में उलझी हुई है। ऐसे में वह राहत शिविर या रिश्तेदारों के घर रहने को मजबूर हैं। वहीं, मदद की बाट जोह रहे कुछ परिवार फिर से टूटे-फूटे घरों में रहने के लिए लौट गए हैं। आपको बता दें कि  नगर में दरार वाले 868 भवन चिह्नित किए गए थे। इनमें 181 भवन जीर्ण-शीर्ण हैं, यहां रहने वाले परिवारों में से 118 को पुनर्वास पैकेज के तहत 26 करोड़ रुपये वितरित किए जा चुके हैं।वर्तमान में 64 परिवारों के 259 सदस्य राहत शिविरों में रह रहे हैं, जबकि 232 परिवारों के 736 सदस्य रिश्तेदार या किराये के भवन में हैं।कई लोगों को होटलो में रुकवाया गया था लेकिन यात्रा सीजन शुरू होते ही होटल मालिकों ने इनसे होटल खाली करवा दिए जिसके बाद ये परिवार दोबारा उन्ही छतिग्रस्त मकानों में रहने को मजबूर हो गए हैं,6 माह के समय कबीट जाने के बाद भी सरकार इनको घर नहीं दे पाई है.. मानसून की दस्तक ने आपदा प्रभावितों की चिंता बढ़ा दी है। वर्षा से भूमि व मकानों में आई दरारें बढ़ने और शिलाओं के खिसकने का खतरा बढ़ गया है। हाल ही में सुनील गांव और नृसिंह मंदिर के पास दो जर्जर भवन क्षतिग्रस्त हुए हैं।

भू धसाव के समय असुरक्षित भवनों से 300 से अधिक परिवार राहत शिविरों में भेजे गए थे। यहां से 232 परिवार रिश्तेदार या किराये के भवन में रहने चले गए।  सरकार द्वारा इनको  किराया चुकाने के लिए प्रति माह पांच हजार रुपये देने की बात कही थी ,लेकिन 6 महीनो से अब तक मात्र  49 परिवारों को ही किराया मिला है। जिसके कारण  कुछ प्रभावित परिवार फिर असुरक्षित घरों में लौट आने को मजबूर हो गए हैं आपदा प्रभावितों के पुनर्वास को प्रशासन ने जोशीमठ से 14 किमी दूर उद्यान विभाग की भूमि पर 15 प्री-फेब्रिकेटेड हट बनाए थे जो तीन महीने से  खाली पड़े हैं। प्रभावितों का कहना है कि नगर से इतनी दूर जाकर खेती-बाड़ी और मवेशियों का ध्यान कैसे रख पाएंगे। बच्चों की पढ़ाई का क्या होगा। कुल मिलाकर सरकार जोशीमठ बचाने में फिलहाल विफल साबित हुई है… 

अब सवाल ये उठता है कि आखिर इतना पुराना ऐतिहासिक नगर  जोशीमठ में ये नौबत आयी क्यों,क्या समय रहते जोशीमठ को बचाया जा सकता था ? इन सवालों के जवाब ढूंढने के लिए हमें कुछ पुरानी बातों पर ध्यान देना होगा।।।

 

आपको बता दें कि सबसे पहले साल 1939 में आरनोल्ड हेम और ऑगस्ट गैनसर ने अपनी किताब Central Himalaya में बताया था कि जोशीमठ इतिहास में आए एक बड़े लैंड स्लाइड पर बसा है. इतिहासकार Shiv Prasad Dabral भी अपनी किताब में लिख चुके हैं कि जोशीमठ में लगभग 1000 साल पहले एक लैंडस्लाइड आया था जिसके चलते कत्यूर राजाओं को अपनी राजधानी जोशीमठ से शिफ्ट करनी पड़ी थी. लेकिन पिछले 50 साल की ओर देखें तो 1976 के आसा पास जोशीमठ में लैंडस्लाइड के काफी घटनाए हुई, जिसकी जांच के लिए तात्कालीन गढ़वाल कमिश्नर महेश चंद्र मिश्रा की अध्यक्षता में उत्तराखंड सरकार ने एक कमेटी बनाई थी. मिश्रा ने जियोलॉजिस्ट्स की मदद से गहन जांच की और एक टू द प्लाइंट रिपो्र्ट तैयार की थी .

 

इस रिपोर्ट में भी साफ कहा गया था कि जोशीमठ किसी ठोस चट्टान पर नहीं बल्की पहाड़ों के मलबे पर बना है जो अस्थिर है. और अगर जोशीमठ को बचाना है तो यहां पर कंस्ट्रक्शन को कम करने की ज़रूरत है और अगर कोई खास कंस्ट्रक्शन करनी भी है तो उसे गहन जांच के बाद ही शुरू किया जाए. जोशीमठ में बड़े कंस्ट्रक्शन पूरी तरह बंद किए जाएं. जोशीमठ के आस पास Erratic boulders यानी की बड़े बड़े चट्टानी पत्थरों को बिल्कुल न छेड़ा जाए और ब्लास्टिंग पर पूरी तरह से रोक लगा दी जाए. जोशीमठ के आस पास के एरियाज़ में पेड़ लगाने की बात भी कही गई थी ताकि ज़मीन की पकड़ बनी रहे और पनी की निकासी के लिए Pucca Drain बनाने की सलाह भी दी गई थी. लेकिन ये एक सरकारी रिपोर्ट थी और सरकारों ने इस रिपोर्ट को डस्टबिन में डाल दिया.उलटा यहां पर बांध निर्माण की स्वीकृति दे दी गयी,जिसके बाद  यहां लगातार ब्लास्टिंग भी की गयी,स्थानीय आज भी इसी परियोजना को तबाही का कारण मानते है, 

 

पिछले कुछ दशकों में जोशीमठ में वो सब हुआ जिसके लिए मिश्रा रिपोर्ट में मना किया गया था. आर्मी के लिए इस्टेब्लिशमेंट्स बनाई गईं, ITBP का कैंप बना, औली में कंस्ट्रक्शन हुआ , Tapovan-Vishnugad Hydropower Project के इर्द गिर्द खूब कंस्ट्रक्शन की गई. बद्रीनथ जाने वाले श्रद्धालुओं के लिए बड़े बड़े होटलों का निर्माण हुआ. जिससे जोशीमठ की स्लोप पर काफी छेड़छाड़ हुई और ड्रेनेज की कोई व्यवस्था न होने की वजह से होटलों और घरों से निकलने वाले पानी ने स्लोप को खोखला कर दिया. जिसके चलते जोशीमठ एक टिकिंग टाइम बॉम्ब में तबदील हो गया.

 

जिओलॉजिस्ट्सी के मुताबिक जोशीमठ की इस हालत के पीछे  Tapovan-Vishnugad Hydropower Project और चार धाम परियोजना के तहत बन रहे Helang Bypass की सबसे अहम भूमिका है. Hydropower Project के लिए जो टनल खोदी जा रही है उसकी खुदाई के लिए पहले जहां ब्लास्टिंग का इस्तेमाल किया गया वहीं टनल बोरिंग मशीन ने साल 2009 में जोशीमठ के पास एक पुराने वॉटर सोर्स को पंक्चर कर दिया था जिससे जोशीमठ में पानी की समस्या तक पैदा हो गई थी. उस वक्त इसे लेकर काफी प्रदर्शन भी हुए थे लेकिन तब भी सरकार के कानों में आवाज नहीं पहुंची  .  फिर 7 फरवरी 2021 को रिशीगंगा में आई भीषण बाड़ ने भी जोशीमठ को काफी नुकसान पहुंचाया. इसके अलावा Helang Bypass के निर्माण के दौरान भी अहतियात नहीं बरती गई जिसका परिणाम आज जोशीमठ भुगत रहा है. सबसे हैरान करने वाली बात है कि इतने फ्रैजाइल एरियाज़ में इतने बड़े बड़े निर्माण करने के दौरान किसी तरह की hydrogeological study तक नहीं की गई कि धरती के अंदर पानी की क्या स्थिती है.

 

इसकी ओर आम लोगों को भी ध्यान देने की ज़रूरत है क्योंकि जियोलॉजिस्ट्स की मानें तो जोशीमठ की भौगोलिक स्थिती के मुताबिक इसे एक गांव ही रहने देना चाहिए था लेकिन अर्बनाइज़ेंशन और व्यापार के चलते इस इलाके पर इमारतों का बोझ बढ़ता गया जिसका परिणाम आज हम भुगत रहे हैं. यही नहीं जियोलोजिस्ट्स की मानें तो जो जोशीमठ के नीचे अलकनंदा नदी बह रही है वो भी लगातार पहाड़ की स्लोप की जड़ को काट रही है. चार धाम परियोजना के खिलाफ भी सुप्रीम कोर्ट में अपील की गई थी ताकि पहाड़ी इलाकों को बचाया जा सके लेकिन ये फैसला भी सरकार के हक में ही रहा था और अब जोशीमठ में इस परियोजना के परिणाम भी दिखने लगे हैं. यानी व्यापारियों से लेकर सरकारी बाबूओं और ईंजीनियर्स द्वारा जियोलॉजिस्ट्स की अनदेखी के चलते पहाड़ों का ये हाल हो रहा है. खैर ये तो इतिहास की बात हुई लेकिन क्या जोशीमठ को बचाया जा सकता है?

 

पहाड़ों पर हो रहे बेहिसाब निर्माण से हो रहे नुकसान पर कभी किसी सरकार ने ठोस निति नहीं बनाई,, पूर्व की त्रिवेंद्र रावत सरकार जरूर इस पर काम करना शुरू किया था पर उनके पद से हटते ही इसको ठंडे बस्ते में दाल दिया गया,,दरअसल पूर्व की त्रिवेंद्र सरकार ने  13 नवंबर 2017 को सभी जिलों के स्थानीय प्राधिकरणों और नगर निकायों की विकास प्राधिकरण से संबंधित शक्तियां लेते हुए 11 जिलों में जिला स्तरीय विकास प्राधिकरण गठित किए थे। हरिद्वार-रुड़की विकास प्राधिकरण (एचआरडीए) में हरिद्वार के क्षेत्रों को शामिल कर लिया गया था, जबकि मसूरी-देहरादून विकास प्राधिकरण (एमडीडीए) में दून घाटी विकास प्राधिकरण को निहित कर दिया गया था। इसमें स्पष्ट किया गया था कि सभी जिला विकास प्राधिकरणों में नेशनल हाईवे और स्टेट हाईवे के 200 मीटर दायरे में आने वाले सभी गांव, शहर शामिल होंगे। इनमें नक्शा पास करना अनिवार्य कर दिया गया था। बाद में तीरथ सरकार और फिर धामी सरकार ने सभी जिला विकास प्राधिकरणों को स्थगित कर दिया था।लेकिन जिस तरह जोशीमठ बेहिसाब निर्माण कार्यों की सजा भुगत रहा है उस तरह की घटना कहीं और दोबारा न हो उसके लिए निर्माण कार्यों की स्वीकृति देने के लिए विकास प्राधिकरण जैसे कदम बेहद जरूरी थे,त्रिवेंद्र सरकार में लिया गया ये फैसला निश्चित रूप से प्रदेश के लिए एक अहम कदम था,हलाकि जोशीमठ त्रासदी के बाद इसको निस्प्रभावी करने वाली धामी सरकार को फिर से इनको सक्रिय करने जा रही है,, अगर ये प्राधिकरण पहले से प्रदेश में लागू होता तो शायद जोशीमठ की तबाही को काफी हद तक रोका जा सकता था,,लेकिन जब पूरा शहर तबाह हो गया अब सरकार को फिर से इस प्राधिकरण की जरूरत मससूस होने लगी है…  

2024 का रण, भाजपा का डर!उत्तराखंड भाजपा के तीन सांसद अपनी स्तिथि को लेकर आश्वस्त नहीं !

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तो क्या प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का करिश्माई चेहरे का असर फीका पड़ना शुरू हो गया है,? क्या अगले लोकसभा चुनाव में भाजपा मुश्किल में पड़ गयी  है ? उत्तराखंड में भाजपा के तीन सांसद क्यों डेंजर जोन में खुद को पा रहे हैं? 

 

2014और 2019  में भाजपा ने मोदी के करिश्में से देश में प्रचंड बहुमत की सरकार केंद्र में बनाई,खुद भाजपा अपने दम पर बहुमत को पार कर अपने इतिहास की सबसे बड़ी जीत दर्ज करने में कामयाब हुई,मोदी के चेहरे पर ही भरोसा करते हुए उत्तराखंड की जनता ने लगातार दो बार विधानसभा और लोकसभा में भाजपा को प्रचंड बहुमत दिया था, लेकिन 2024 आते आते अब भाजपा के लिए पहले जैसी स्तिथि नहीं रही हैं,,,
कई सर्वे और राजनैतिक विश्लेषक  ये बताते हैं कि आगामी चुनाव भाजपा के लिए आसान नहीं होने वाला है,और सिर्फ मोदी के नाम पर भाजपा हर चुनाव नहीं जीत सकती,अभी हाल ही में  वायरल हुए RSS का मध्य्प्रदेश को लेकर किये सर्वे में ये बात सामने आयी है,,,कांग्रेस ने इसका  जिक्र कर  मध्य्प्रदेश में वापसी की बात कह रही है, सर्वे में ये भी आरएसएस ने जिक्र किया है कि हर चुनाव मोदी के चहरे पर नहीं जीता जा सकता है,,  विपक्ष का लगातार एकजुट होना भी भाजपा के लिए खतरा बन रहा है,उसके ऊपर हिमांचल और कर्नाटक में बीजेपी की हार से ये साबित हो गया है कि मोदी का चेहरा भी भाजपा को हर राज्य में जीत नहीं दिला सकता।।।
उत्तराखंड में प्रचंड बहुमत की सरकार और पांचो लोकसभा सीट पर भाजपा  का कब्जा होने के बावजूद भी भाजपा के तीन सांसद अपनी स्तिथि को लेकर आश्वस्त नहीं है,और खुद को डेंजर जोन में पा रहे हैं, हाल ही में छपी एक रिपोर्ट में इस बात का खुलासा हुआ है… रिपोर्ट के अनुसार  उत्तराखंड में भाजपा के तीन लोकसभा सांसद डेंजर जोन में बताए जा रहे हैं।   सासंदों को अपनी स्थिति पार्टी की अपेक्षा के अनुरूप नहीं है। पार्टी के आंतरिक सर्वे में यह फीडबैक सामने आया है। जिसके  बाद पार्टी शीर्ष नेतृत्व की ओर से सांसदों को आगाह किया गया है।आंतरिक सर्वे में पार्टी के कुछ सांसदों की स्थिति ठीक नहीं पाई गई है। ऐसे में 2024 के चुनाव के लिए राज्य में कुछ चेहरे बदले जाने की चर्चा शुरू हो गई है। इस रिपोर्ट से साफ़ है कि उत्तराखंड में भी भाजपा आगामी लोकसभा चुनाव में खतरे में है,जिससे बचने के लिए इस बार प्रत्याशियों को बदला जा सकता है,,,
उत्तराखंड में भाजपा के लिए सबसे मुफीद सीट मानी जाती है पौड़ी लोकसभा सीट,जहां से इस समय पूर्व मुख़्यमंत्री तीरथ सिंह रावत सांसद हैं,पौड़ी सीट भाजपा की सबसे मजबूत सीट मानी जाती है,सैनिक बाहुल सीट होने के साथ यहां से कई मुख़्यमंत्री भी यहां से रहे हैं लेकिन इस बार इस सीट पर भी भाजपा को कड़ी चुनौती कांग्रेस से मिल सकती है,अंकिता हत्याकांड के बाद यहां  के लोगों में सरकार के प्रति काफी गुस्सा दिखाई दिया,जिसका असर भी आने वाले चुनाव में देखने को मिल सकता है,ख़ासतौर पर महिला वोटर इस घटना से बेहद आक्रोशित है,,, 
हरिद्वार सीट में जिस तरह से विधान सभा में भाजपा को अपेक्षा के अनुरूप जीत नहीं मिली उससे हरिद्वार लोकसभा सीट भी भाजपा के लिए बड़ी चुनौती साबित हो सकती है, यहां भी भाजपा के पूर्व मुख़्यमंत्री रमेश पोखरियाल निशंक वर्तमान में सांसद है,लेकिन जिस तरह से हरिद्वार सीट पर धड़ेबाजी भाजपा में दिखाई देती है वो भी पार्टी  के लिए मुसीबत खड़ी कर सकती है,,,  कुल मिलाकर आने वाले लोकसभा चुनाव में भाजपा को उत्तराखंड में काफी संघर्ष करना पड़ सकता है, ये भी हो सकता है भाजपा कई नए प्रत्याशियों को मौका दे दे,लेकिन इस सब से भी क्या भाजपा की राह आसान हो पाएगी ये तो आने वाला वक्त बतायेगा ?

उत्तराखंड के पलायन और बेरोजगारी को लेकर मील का पत्थर साबित हो रही ये योजना 

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उत्तराखंड में होता पलायन जिसकी सबसे बड़ी वजह है बेरोजगारी, उत्तराखंड में कई योजनाओं को लागू कर पहाड़ों में रोजगार पैदा करने की कोशिश की जा रही है, जिससे पलायन को रोका जा सके, आज के वीडियो में बात एक ऐसी ही योजना की करेंगे जो उत्तराखंड के कई बेरोजगार युवाओं के लिए वरदान साबित हुई, इस योजना के कारण कई युवाओं ने न केवल रिवर्स पलायन किया बल्कि आज खुद के साथ कई अन्य के रोजगार का माध्यम बने हैं,,,, उत्तराखंड के खाली होते गावों और छोटे शहरों में रहने वाली युवा पीढ़ी रोजगार की चाह में लगातार महानगरों की तरफ रुख करने को मजबूर हैं, जिस कारण पहाड़ और छोटे शहरों में लगातार पलायन होता जा रहा है,खासतौर पर युवाओं का प्रदेश छोड़कर जाना एक अच्छा संकेत नहीं है,,,

 

उत्तराखंड की सरकारों ने समय-समय पर कई योजनाओ को लागू किया है जिससे युवाओं को प्रदेश में ही रोजगार मिल पाए और पलायन थम सके, इन योजनाओ में सबसे कामयाब योजना रही होम स्टे योजना, जिसका असर आज धरातल पर दिख रहा है, इस योजना से जुड़े कई युवा न केवल वापस अपने गांव या शहर लौटे बल्कि आज खुद के रोजगार के साथ अन्य को भी रोजगार दे रहे हैं साथ ही उत्तराखंड पर्यटन उद्योग को भी खूब पंख लगा रहे हैं, उत्तराखंड में होमस्टे योजना का श्रेय पूर्व की त्रिवेंद्र रावत सरकार को जाता है,

उत्तराखंड में होमस्टे योजना की शुरुआत 20 अप्रैल 2018 को सीमावर्ती जनपद पिथौरागढ़ से पूर्व मुख़्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने की थी, इस योजना का मुख्य मकसद युवाओं को रोजगार देना और पलायन को रोकना था लेकिन देश में कोरोना काल के बाद अपने घर वापस लौटे बेरोजगार युवाओं के लिए ये रोजगार का एक अहम कदम साबित हुआ,कई युवाओं ने इस योजना के जरिये रोजगार शुरू किया,और अब तो ये योजना प्रदेश के युवाओं के लिए एक वरदान साबित हो रही है,इस योजना के लिए हर साल बड़ी संख्या में आवेदन हो रहे हैं,जबकि अब तक प्रदेश में हजारों होमस्टे संचालित हो रहे हैं,,,

पर्वतीय जिलों में होम स्टे से जुड़कर यहां के स्थानीय युवा स्वरोजगार को अपनाने के साथ ही पर्यटकों को उचित सेवा भी दे रहे हैं, जिससे उत्तराखंड के दुर्गम इलाकों के लोगों की आजीविका पर सुधार आया है और सीजन में स्थानीय लोग अच्छा रोजगार कमा रहे हैं. युवाओं को स्वरोजगार से जोड़ने और पहाड़ के गांवों से हो रहे पलायन को थामने के लिए उत्तराखंड सरकार द्वारा होम स्टे योजना की शुरुआत की गयी थी, जिसमें पर्यटक स्थलों में स्थानीय लोग अपने ही घरों में देश-विदेश के पर्यटकों के लिए ग्रामीण परिवेश में साफ व किफायती आवास की सुविधा उपलब्ध करा सकते हैं. यहां पर पर्यटकों को स्थानीय व्यंजन परोसने के साथ ही उन्हें यहां की सभ्यता व संस्कृति से भी परिचित कराया जा रहा है, जो पर्यटक खूब पसंद कर रहे हैं.

 

होम स्टे योजना की अब तक की तस्वीर देखें, तो वित्तीय वर्ष 2018-19 में प्रदेश के सभी जिलों में 965 होम स्टे पंजीकृत हुए. आर्थिक सर्वेक्षण के अनुसार, वर्ष 2021-22 में यह आंकड़ा बढ़कर 3 हजार 964 पहुंच गया. पर्वतीय जिलों में भी ये आंकड़ा बढ़ा है, बात अगर पिथौरागढ़ जिले की करें जहां इस योजना की शुरुआत हुई थी , तो 2021-22 में 608 लोगों ने और 2022-23 में 103 लोगों ने अपने घरों को होम स्टे में बदलने के लिए पर्यटन विभाग में पंजीकृत किया, जिसमें सबसे ज्यादा धारचूला में 423 लोग अपना पंजीकरण करा चुके हैं. धारचूला सीमांत जिले का उच्च हिमालयी क्षेत्र भी है, जहां की खूबसूरती का दीदार करने पर्यटक पहुंच रहे हैं. उनके रुकने की सुविधा यहां के गांवों में होम स्टे के रूप में विकसित हो रही है. इस योजना के माध्यम से सिर्फ साल 2020 में ही 5 हजार होमस्टे विकसित किए गए थे। इससे प्रदेश में रोजगार के अवसर को बढ़ावा मिलने की उम्मीद है और लोगों को कामकाज या कारोबार के लिए दूसरे राज्य में पलायन करने की जरूरत नहीं पड़ेगी।

 

टूट जाएगा गरीब बच्चों की पढ़ाई का सपना ? “शिक्षा के बढ़ते निजीकरण के आगे घुटने टेकती सरकार”

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कुछ समय पहले  धामी कैबिनेट ने शिक्षा को लेकर एक फैसला किया इस फैसले से जहां छात्र फेल होने से बच पाएंगे,साथ ही मेधावी छात्रों के लिए छात्रवृति देने का प्रस्ताव भी पास किया है,लेकिन इससे बड़ी एक और चीज शिक्षा के लिए जरूरी है जहां ध्यान देना सबसे अधिक जरूरी है और वो है प्रदेश की शिक्षा के बुनियादी ढांचे को सुधारना जिसको शायद प्रदेश के मुख़्यमंत्री और शिक्षा मंत्री भूल चुकें हैं। ..आज हम आपको इस से जुड़ी पूरी रिपोर्ट बताते है।इस प्रदेश के शिक्षा से जुड़ें कुछ ऐसे तथ्यों को आपके सामने रखेंगे जो आपके पैरों से जमीन खिसखा देंगे, खासतौर पर मध्यमवर्गीय उन अभिवाहकों जो अपना पेट काटकर अपने बच्चों के भविष्य सवारने में जुटे है,आज की रिपोर्ट में आपको बताएंगे कि किस तरह शिक्षा जिसको सबका अधिकार माना जाता है उसको हासिल करना धीरे-धीरे गरीब और मध्यम वर्ग के लिए मुश्किल हो रहा है, आज बात उत्तराखंड की शिक्षा से जुड़ें उन  अहम बिंदुओं पर जिनका अभी असर ही सही लेकिन आने वाले समय में अगर ऐसा ही चलता रहा तो लगभग प्रदेश के अधिकतर लोगों पर पड़ने वाला है.

 

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उत्तराखंड में स्कूलों की छात्रसंख्या बढ़ाना हमेशा शिक्षा विभाग के लिए एक बड़ी चुनौती रहा है. अब महकमे ने शायद इस मामले पर हाथ खड़े कर लिये हैं. शायद इसीलिए राज्य के 3000 स्कूलों को जल्द ही बंद करने की तैयारी की जा रही है. यह वह स्कूल है जहां पर लगातार छात्र संख्या कम हुई है. बेहद कम छात्र संख्या के चलते यह स्कूल अब शिक्षा विभाग को बोझ लगने लगे हैं. उत्तराखंड शिक्षा विभाग में करोड़ों का बजट और लोक लुभावनी स्कीम भी सरकारी स्कूलों में बच्चों को लाने के लिए नहीं लुभा पा रही है.पर्वतीय क्षेत्रों में 5 और मैदानी क्षेत्रों में 10 या इससे कम छात्र संख्या वाले स्कूलों को बंद कर इन स्कूलों के बच्चों को नजदीक के उत्कृष्ट स्कूलों में भेजा जाएगा. राज्य में 10 या इससे कम छात्र संख्या वाले करीब तीन हजार स्कूल हैं.

सवाल ये उठता है कि आखिर ये नौबत आ क्यो गयी,आखिर क्यों सरकारी स्कूलों से लोगों का मोह भंग हो रहा है ? उत्तराखंड में हर साल औसतन 41 नए स्कूल खुल रहे हैं ये आंकड़ा देख लगता है कि प्रदेश की शिक्षा अच्छे ढर्रे की ओर जा रही है लेकिन अगले ही आंकड़े पर नजर पड़ते ही कई सवाल पैदा हो जाते हैं,41 नए स्कूल खुलने के साथ ही उसके दोगुने से ज्यादा बंद भी हो रहे हैं ये भी सालाना औसत लगाएं तो 112  विद्यालय बंद भी हो रहे हैं

 

इनफार्मेशन सिस्टम  एजुकेशन प्लस (UDISE+) 2019-20 में उपलब्ध जानकारी के अनुसार उत्तराखंड राज्य मेंकक्षा 1 से 12 तक के कुल 16,741 सरकारी स्कूल हैं। यदि इन स्कूलों में बुनियादी सुविधाओं की बात करें तो उत्तराखंड राज्य में मात्र 6.4% स्कूलों में सुचारू रूप से इंटरनेट कनेक्शन है, मात्र 22.26%स्कूलों में सुचारु रूप से कंप्यूटर की सुविधा है,और 20% से भी ज्यादा ऐसे स्कूल हैं जहां सुचारु रूप से बिजली कनेक्शन नहीं है।

इन सभी सुविधाओं के अतिरिक्त राज्य में अभी भी 10% से ज़्यादा स्कूल ऐसे हैं जहां पीने के पानी की सुविधा नहीं है, 13% स्कूलों में लड़कों के लिये और 12% स्कूलों में लड़कियों के लिए शौचालय की व्यवस्था नहीं है, इन सभी आंकड़ों के अतरिक्त वर्ष 2018 में आयी एनुअल स्टेटस ऑफ़ एजुकेशन रिपोर्ट (ASER) बताती है कि राज्य में 19.7% ऐसे प्राथमिक विद्यालय हैं जहां पर खेल का मैदान नहीं है।

शिक्षा क्षेत्र के लिए प्रकाशित होने वाली अधिकांश रिपोर्ट उत्तराखंडके स्कूलों की बदहाल स्थिति की ओर इशारा करती हैं। दिसम्बर 2021 में प्रधानमंत्री आर्थिक सलाहकार परिषद की ओर से जारी की गयी फाउंडेशनल लिटरेसी एंड न्यूमरेसी इंडेक्स की रिपोर्ट उत्तराखंड राज्य में स्कूली शिक्षा की बदहाली को उजागर करती है,यह रिपोर्ट बताती है कि राज्य में मात्र 8% प्राथमिक स्कूल ही हैं जहां कंप्यूटर की सुविधा उपलब्ध हैं।दस साल से कम उम्र के बच्चों में साक्षरता दर को बताने वाली इस रिपोर्ट के अनुसार उत्तराखंड राज्य ने शिक्षा के आधारभूत ढांचे में 64.89%, शैक्षणिक सुविधा की पहुंच में 39.94%, बेसिक हेल्थ में 64.44%, लर्निंग,आउटकम में 82.12% और गवर्नेंस में 44.6% अंक प्राप्त किये।

देश की दो बड़ी राजनीतिक पार्टियां भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस राज्य बनने से अब तक बारी-बारी से सरकारें चला  चुकी हैं, लेकिन राज्य के सरकारी स्कूल आज भी बुनियादी सुविधाओं से कोसो दूर हैं।आज भी चुनाव के समय अच्छीशिक्षा के लिए जनता से वादे तो किये जाते हैं लेकिन राज्य के विद्यालयों की स्थिति के आंकड़े बताते हैं कि सरकारी स्कूलों पर कुछ ख़ास ध्यान नहीं दिया जा रहा है जिसके चलते विद्यार्थिओं का नामांकन कम हो रहा है, और अंत में कम नामांकन के चलते स्कूल बंद कर दिया जाता है।

2012-13 में उत्तराखंड में कुल 12,499 राजकीय प्राथमिक विद्यालय और 2,805 राजकीय माध्यमिक विद्यालय थे जिनकी संख्या वर्ष 2019-20 तक घटकर क्रमशः 11,653 और 2,608 हो गयी। यदि जिलेवार इनकी संख्या देखें तो अल्मोड़ा में 130, बागेश्वर में 39, चमोली में 49, चम्पावत में 28, देहरादून में 57, हरिद्वार में 10, नैनीताल में 17, पिथौरागगढ़ में 130, रूद्रप्रयाग में 41 और टिहरी गढ़वाल में 180 सरकारी प्राथमिक विद्यालय पिछले 10 वर्षों में बंद हो चुके हैं।इस ही के विपरीत, मैदानी और पर्वतीय सभी जिलों में पिछले 10 सालों में निजी स्कूलों में बढ़ोतरी हुई है|

अभिभावकों का मानना है कि शिक्षा के लिए ज़रूरी सुविधाएँ जैसे कंप्यूटर, शिक्षकों की उचित संख्या, पीने के पानी की उपलब्धता, आदि सरकारी स्कूल की तुलना में निजी स्कूलों ज़्यादा अच्छी होती हैं।अगर सरकारी स्कूलों में भी अच्छी सुविधाएं सरकार उपलब्ध कराये तो हम या कोई भी व्यक्ति प्राइवेट स्कूलों में इतनी ज़्यादा फीस क्यों देना चाहेगा ?

निःशुल्क और अनिवार्य बाल शिक्षा का अधिकार अधिनियम 2009 के अनुसार प्रत्येक विद्यालय के लिए कुछ मानक निश्चित किये गये हैं। इन मानकों के अनुसार प्रत्येक विद्यालय के भवन में शिक्षकों के लिए एक कक्ष, बाधा मुक्त पहुंच, लड़के और लड़कियों के लिए अलग शौचालय, विद्यार्थिओं के लिए पर्याप्त और स्वच्छ पेयजल व्यवस्था, जिन विद्यालयों में मध्याह्न भोजन पकाया जाता है वहां रसोई; और एक खेल का मैदान का होना अनिवार्य है।

आज सरकार का रुझान निजीकरण की ओर बढ़ता जा रहा है,सरकारी तंत्र के पास साधन तो है लेकिन जनता के लिए काम करने की मंशा नहीं है इसी कारण आज सरकारी स्कूलों में अच्छे भवन तो हैं लेकिन जरुरी सुविधाएं नहीं हैं, उत्तराखंड राज्य में विद्यालयों की स्थिति के आंकड़े दिखाते हैं कि सरकारी स्कूलों पर कुछ ख़ास ध्यान नहीं दिया जा रहा है जिसके चलते विद्यार्थियों का नामांकन कम हो रहा है, और अंत में कम नामांकन के चलते स्कूल बंद कर दिया जाता है। वहीं दूसरी ओर राज्य में प्राइवेट स्कूलों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है। यूनिफाइड डिस्ट्रिक्ट इन्फॉर्मेशन सिस्टम फॉर एजुकेशन प्लस (UDISE+) पर उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार साल 2012-13 से लेकर साल 2019-20 तक प्रदेश में 846 राजकीय प्राथमिक विद्यालय और 197 राजकीय माध्यमिक विद्यालय बंद हो चुके हैं।लेकिन, इस दौरान निजी प्राथमिक-माध्यमिक विद्यालयों में काफी वृद्धि हुई है।साल 2012-13 में इन स्कूलों की संख्या 776 थी लेकिन साल 2019-20 में यह लगभग 280% बढ़कर 2197 हो गयी।

 

वहीं दूसरी ओर सरकार के द्वारा आरटीई के तहत निजी स्कूलों में एडमिशन को प्राथमिकता दी जा रही है,उत्तराखंड जैसे राज्य के लिए निजी स्कूलों में सीट आरक्षित करने से ज़्यादा बेहतर है कि सरकार अपने सरकारी स्कूलों को बेहतर बनाये। इस समय राज्य के निजी स्कूलों में करीब 90 हजार बच्चे आरटीई के तहत शिक्षा ले रहे हैंजिसका पिछले कुछ सालो में कुल खर्च 126 करोड़ रुपये तक आ चुका है। जो रुपये सरकार के द्वारा आरटीई के तहत निजी स्कूलों को दिये जा रहे हैं उनको सरकारी स्कूलों में जरुरी सुविधाओ को बेहतर बनाने के लिए खर्च किया जा सकता है। आज अधिकांश अभिभावक ना चाहते हुए भी अपने बच्चों को निजी स्कूलों में भेजने को मजबूर हैं। इन अभिभावकों से बात करने परमालूम होता है कि यदि सरकारी स्कूलों में अच्छी सुविधाएँ मिलें तो ये लोग भी अपने बच्चों को सरकारी स्कूलों में पढ़ना चाहेंगे। क्योंकि आज मंहगाई के इस दौर में निजी स्कूलों में भारी भरकम फ़ीस देना बहुत मुश्किल होता है।

इतना ही नहीं अब सरकार की नाकामी का इससे बड़ा क्या सबूत हो सकता है  कि उत्तराखंड में सरकारी स्कूलों पर करोड़ों रुपये खर्च करने के बाद हालत में सुधार नहीं हुआ तो इन्हे गोद देने की तैयारी की जा रही है। सामर्थ्यवान सरकारी स्कूलों को गोद लेकर इनमें उचित संसाधन मुहैया कराएंगे। यही नहीं वह अपने माता-पिता या किसी अन्य स्वजन के नाम पर इन स्कूलों का नामकरण भी कर सकेंगे।शिक्षा विभाग की ओर से इसके लिए नीति बनाई जा रही है।गोद लेने वाले व्यक्ति के माता-पिता या किसी अन्य के नाम पर स्कूल का नामकरण किया जाएगा। इसके बदले संबंधित को स्कूल पर आने वाले कुछ खर्च वहन करने होंगे। विभाग की ओर से इसके लिए प्रस्ताव तैयार किया जा रहा है,जिसे कैबिनेट में लाया जाएगा।ये हालात तब हैं जब 1100 करोड़ रुपये हर साल केंद्र सरकार की ओर से समग्र शिक्षा अभियान के तहत दिए जा रहे हैं।

शिक्षा का अधिकार कानून प्रत्येक बच्चे तक शिक्षा की पहुंच सुनिश्चित करने के लिए लाया गया था, अब अगर इस तरह सरकारी स्कूल बंद किए जाएंगे तो एक बड़ा वर्ग शिक्षा से वंचित रह जाएगा, जिसकी जिम्मेदारी आखिर  लेगा कौन? क्योकि कोई भी सरकार इस मुद्दे पर गंभीर नजर नहीं आती,  शिक्षा का होता निजीकरण एक दिन प्रदेश के अभिवाहकों को बड़ी मुश्किल में डालने वाला है, बंद होते सरकारी स्कुल और बढ़ते प्राइवेट विद्यालय के दौर में वो समय ज्यादा दूर नहीं जब जनता के पास कोई विकल्प नहीं बचेगा और फिर वो  समय भी जल्द आ सकता है जब निजी स्कूलों के आगे सरकारों  को भी घुटने टेकने पड़ेंगे,तो फिर आम आदमी की क्या बिसात जो  टिक पाये ।

हिमाचल ने कर दी शुरुआत,उत्तराखंड में कब ?

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उत्तराखंड राज्य 68 हजार करोड़ के कर्ज में डूब चुका है, पर शायद ही यहां के राजनेताओं को आपने इस  पर कभी कोई बात करते देखा या सुना होगा,प्रदेश के ऊपर कर्ज लगातार बढ़ रहा है लेकिन इसको कम कैसे किया जाय इसको लेकर किसी भी सरकार के पास आज तक कोई ठोस निति नहीं रही है,  अकेले विधायकों और मंत्रियों के वेतन और भत्तों पर अब तक 100 करोड़ रूपये खर्च किये जा चुके हैं, कर्ज तले दबे इस प्रदेश पर लगातार बोझ बढ़ता ही जा रहा है, ये कम कैसे होगा इसका जवाब किसी  सरकार के पास नहीं है,,,
 
 पड़ोसी  राज्य ‘हिमाचल’  जो भौगोलिक दृष्टि से लगभग  उत्तराखंड  प्रदेश से मिलता जुलता है,यहां भी आर्थिक हालात कुछ अच्छे नहीं हैं,अभी हाल ही में कांग्रेस ने यहां सत्ता संभाली है,और यहां की कमान संभाल रहे हैं सुखविंदर सिंह सुक्खू,,,,
 

पिछले एक दशक में हिमाचल की बिगड़ी आर्थिक सेहत को सुधारने के लिए खुद मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू ने  एक बहुत ही अच्छी पहल की है।जिसकी पूरे हिमाचल प्रदेश में तारीफ हो रही है..  

 

 

सुखविंदर सिंह सुक्खू ने  हिमाचल को कर्ज मुक्त और ग्रीन स्टेट बनाने के लिए हेलीकॉप्टर छोड़कर सामान्य यात्रियों की तरह विमान में सफर करना और छोटी ई-कार से यात्रा करना शुरू कर दिया है। वह बिना काफिले के जरूरी चार सामान्य कारों और सामान्य सुरक्षा के साथ चल रहे हैं। उन्होंने अपने मंत्रियों को भी इसी तरह बचत करने का सुझाव दिया है।  मुख़्यमंत्री की इस पहल की पूरे हिमांचल में सराहना की जा रही है,और अब अधिकारीयों से लेकर मंत्रियों पर भी खर्च कम करने को लेकर दबाव बढ़ गया है, इससे राज्य में हर माह 3 करोड़ की बचत होती है।

 

 
हिमाचल सरकार द्वारा सरकारी विभागों और पथ परिवहन निगम के बेड़े में इलेक्ट्रिक वाहनों को शामिल किया जा रहा है। सीएम ने विभिन्न मंचों से जलविद्युत परियोजनाओं में राज्य के अधिकारों की वकालत शुरू की है,ताकि वहां से भी राजस्व हासिल हो सके। दिल्ली का दौरा कर रॉयल्टी में वृद्धि व विभिन्न केंद्रीय सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों के स्वामित्व वाली बिजली परियोजनाओं में राज्य की हिस्सेदारी की मांग को सुक्खू ने उठाया है। सीएम के प्रयासों से शोंगटोंग जलविद्युत परियोजना के कार्यों में तेजी आई है, जिसके अब जुलाई 2025 तक पूरा होने की उम्मीद है। इस परियोजना के समय से पूरा होने से करीब 250 करोड़ रुपये की बचत होगी व 156 करोड़ का राजस्व व्याज हासिल होगा।
 
उत्तराखंड को भी कर्ज से निकालने की कुछ ऐसी पहल सरकार कर सकती है,जलविधुत परियोजनाओं से भी प्रदेश को खास फायदा होता नहीं  दिखाई देता,जरूरत है राज्य सरकार यहां बन रही विधुत परियोजनाओं में अपना एक मजबूत हिस्सा सुनिश्चित करे जिससे प्रदेश के आर्थिक हालात मजबूत किये जा सकें,क्योकि उत्तराखंड प्रदेश में प्राकृतिक संसाधनों की कोई कमी नहीं है बीएस जरूरत है तो उनके सही इस्तेमाल की और एक ठोस निति की जिससे पहाड़ की जवानी और पहाड़ का पानी इस प्रदेश के काम आ सके। …

यूनिफॉर्म सिविल कोड,असल मुद्दा या चुनावी चिंता

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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक बार फिर समान नागरिक संहिता  पर टिप्पणी की है। पीएम मोदी के इस टिप्पणी के बाद राजनीतिक बहस फिर से शुरू हो गई है। प्रधानमंत्री मोदी ने मंगलवार को कहा कि भारत दो कानूनों पर नहीं चल सकता और समान नागरिक संहिता संविधान का हिस्सा है। पीएम के बयान से देश भर में बहस छिड़ गई है क्योंकि कई विपक्षी नेताओं ने पीएम मोदी पर कई राज्यों में चुनाव नजदीक आने पर राजनीतिक लाभ के लिए यूसीसी मुद्दा उठाने का आरोप लगाया है।

प्रधानमंत्री का यह बयान 22वें विधि आयोग द्वारा 30 दिनों के भीतर यूसीसी पर जनता और “मान्यता प्राप्त” धार्मिक संगठनों के विचार आमंत्रित करने के एक सप्ताह बाद आया है। कांग्रेस नेताओं ने पीएम मोदी पर महंगाई, बेरोजगारी और मणिपुर की स्थिति जैसी वास्तविक समस्याओं से ध्यान भटकाने के लिए यूसीसी मुद्दे का इस्तेमाल करने का आरोप भी लगाया।
   AIMIM  के प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने मंगलवार को प्रधानमंत्री की आलोचना करते हुए कहा, “भारत के प्रधानमंत्री भारत की विविधता और इसके बहुलवाद को एक समस्या मानते हैं। इसलिए, वह ऐसी बातें कहते हैं…कई पार्टियों के अलावा 30 से अधिक आदिवासी संगठनों ने भी आशंका व्यक्त की है कि समान नागरिक संहिता आदिवासी प्रथागत कानूनों को कमजोर कर देगी।कई मुस्लिम संगठन UCC को लेकर आशंकित हैं जिसको लेकर उनकी बैठकों का दौर भी चल रहा है.
अब आपको ये समझना होगा कि  UCC में आखिर ऐसा है क्या जो इसको लेकर इतना विवाद हो रहा है,,,,,, यूसीसी सभी धर्मों के लोगों के लिए व्यक्तिगत कानूनों की एक समान संहिता रखने का विचार है। व्यक्तिगत कानून में विरासत, विवाह, तलाक, चाइल्ड कस्टडी और गुजारा भत्ता जैसे कई पहलू शामिल हैं। हालांकि, वर्तमान में भारत के व्यक्तिगत कानून काफी जटिल और विविध हैं, प्रत्येक धर्म अपने विशिष्ट नियमों का पालन करता है।
भारतीय संविधान की मसौदा समिति के अध्यक्ष डॉ. बाबासाहेब अम्बेडकर का विचार था कि यूसीसी वांछनीय है, लेकिन संविधान सभा में महत्वपूर्ण विभाजन के बाद उन्होंने इसे फिलहाल स्वैच्छिक बने रहने का प्रस्ताव दिया। अंबेडकर ने कहा था कि , “शुरुआत करने के तरीके के रूप में, भविष्य की संसद यह प्रावधान कर सकती है कि संहिता केवल उन लोगों पर लागू होगी जो घोषणा करते हैं कि वे इसका पालन करने के इच्छुक हैं। दूसरे शब्दों में, प्रारंभ में, “संहिता का अनुप्रयोग विशुद्ध रूप से स्वैच्छिक हो सकता है।” अंबेडकर का  मानना था कि, यूसीसी को शुरू में एक स्वैच्छिक संहिता के रूप में पेश किया जा सकता है, और संसद निश्चित रूप से नागरिकों को इसका पालन करने के लिए बाध्य नहीं करेगी।
इसके पक्ष में दलील दी जाती है कि धार्मिक आधार पर पर्सनल लॉ होने की वजह से संविधान के पंथनिरपेक्ष की भावना का उल्लंघन होता है। संहिता के हिमायती यह मानते हैं कि हर नागरिक को अनुच्छेद 14 के तहत कानून के समक्ष समानता का अधिकार,अनुच्छेद 15 में धर्म, जाति, लिंग के आधार पर भेदभाव की मनाही और अनुच्छेद 21 के तहत जीवन और निजता के संरक्षण का अधिकार मिला हुआ है।इसके पक्षकारों की दलील है कि यूनिफॉर्म सिविल कोड के अभाव में महिलाओं के मूल अधिकार का हनन हो रहा है। शादी, तलाक, उत्तराधिकार जैसे मुद्दों पर एक समान कानून नहीं होने से महिलाओं के प्रति भेदभाव किया जा रहा है। पक्षकारों का तर्क है कि लैंगिक समानता और सामाजिक समानता के लिए समान नागरिक संहिता होनी ही चाहिए।
अल्पसंख्यक समुदाय के लोग यूनिफॉर्म सिविल कोड का खुलकर विरोध करते आए हैं। विरोध में तर्क देने वाले लोगों का कहना है कि संविधान के मौलिक अधिकार के तहत अनुच्छेद 25 से 28 के बीच हर शख्स को धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार मिला हुआ है। इसलिए हर धर्म के लोगों पर एक समान पर्सनल लॉ थोपना संविधान के साथ खिलवाड़ करना है।मुस्लिम इसे उनके धार्मिक मामलों में दखल मानते हैं। ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड  हमेशा से यूनिफॉर्म सिविल कोड को असंवैधानिक और अल्पसंख्यक विरोधी बताता रहा है। ये बोर्ड दलील देता है कि संविधान हर नागरिक को अपने धर्म के मुताबिक जीने की अनुमति देता है। इसी अधिकार की वजह से अल्पसंख्यकों और आदिवासी वर्गों को अपने रीति-रिवाज, आस्था और परंपरा के मुताबिक अलग पर्सनल लॉ के पालन करने की छूट है।
समान नागरिक कानून का जिक्र 1835 में ब्रिटिश सरकार की एक रिपोर्ट में भी किया गया था. इसमें कहा गया था कि अपराधों, सबूतों और ठेके जैसे मुद्दों पर समान कानून लागू करने की जरूरत है. इस रिपोर्ट में हिंदू-मुसलमानों के धार्मिक कानूनों से छेड़छाड़ की बात नहीं की गई है. हालांकि, 1941 में हिंदू कानून पर संहिता बनाने के लिए बीएन राव समिति का गठन किया गया. राव समिति की सिफारिश पर 1956 में हिंदुओं, बौद्धों, जैनियों और सिखों के उत्तराधिकार मामलों को सुलझाने के लिए हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम विधेयक को अपनाया गया. हालांकि, मुस्लिम, ईसाई और पारसियों लोगों के लिये अलग कानून रखे गए थे.
भारतीय अनुबंध अधिनियम-1872, नागरिक प्रक्रिया संहिता, संपत्ति हस्तांतरण अधिनियम-1882, भागीदारी अधिनियम-1932, साक्ष्य अधिनियम-1872 में सभी नागरिकों के लिए समान नियम लागू हैं. वहीं, धार्मिक मामलों में सभी के लिए कानून अलग हैं. इनमें बहुत ज्‍यादा अंतर है. हालांकि, भारत जैसे विविधता वाले देश में इसको लागू करना इतना आसान नहीं है. देश का संविधान सभी को अपने-अपने धर्म के मुताबिक जीने की पूरी आजादी देता है. संविधान के अनुच्छेद-25 में कहा गया है कि कोई भी अपने हिसाब धर्म मानने और उसके प्रचार की स्वतंत्रता रखता है.
भारत का सामाजिक ढांचा विविधता से भरा हुआ है. हालात ये हैं कि एक ही घर के सदस्‍य अलग-अलग रीति-रिवाजों को मानते हैं. अगर आबादी के आधार पर देखें तो देश में हिंदू बहुसंख्‍यक हैं. लेकिन, अलग राज्‍यों के हिंदुओं में ही धार्मिक मान्‍यताएं और रीति-रिवाजों में काफी अंतर देखने को मिल जाएगा. इसी तरह मुसलमानों में शिया, सुन्‍नी, वहावी, अहमदिया समाज में रीति रिवाज और नियम अलग हैं. ईसाइयों के भी अलग धार्मिक कानून हैं. वहीं, किसी समुदाय में पुरुष कई शादी कर सकते हैं. कहीं विवाहित महिला को पिता की संपत्ति में हिस्सा नहीं मिल सकता तो कहीं बेटियों को भी संपत्ति में बराबर का अधिकार दिया गया है. समान नागरिक संहिता लागू होते ही ये सभी नियम खत्म हो जाएंगे. हालांकि, संविधान में नगालैंड, मेघालय और मिजोरम के स्‍थानीय रीति-रिवाजों को मान्यता व सुरक्षा देने की बात कही गई है.
कोर्ट भी समय समय पर इस पर कई बार अपनी बात कह चुका है,ट्रिपल तलाक से जुड़े 1985 के चर्चित शाह बानो मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि अनुच्छेद 44 एक ‘मृत पत्र’ जैसा हो गया है. साथ ही कोर्ट ने देश में समान नागरिक संहिता लागू करने की जरूरत पर जोर दिया था. गोवा के लोगों से जुड़े 2019 के उत्तराधिकार मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था, ‘राज्य के नीति निदेशक सिद्धांतों की चर्चा करने वाले भाग चार के अनुच्छेद-44 में संविधान के संस्थापकों ने अपेक्षा की थी कि राज्य भारत के सभी क्षेत्रों में नागरिकों के लिए समान नागरिक संहिता लागू करने की कोशिश करेगा. लेकिन, आज तक इस पर कोई कदम नहीं उठाया गया.
समान नागरिक संहिता के मामले में गोवा अपवाद है. गोवा में यूसीसी पहले से ही लागू है. बता दें कि संविधान में गोवा को विशेष राज्‍य का दर्जा दिया गया है. वहीं, गोवा को पुर्तगाली सिविल कोड लागू करने का अधिकार भी मिला हुआ है. राज्‍य में सभी धर्म और जातियों के लिए फैमिली लॉ लागू है. इसके मुताबिक, सभी धर्म, जाति, संप्रदाय और वर्ग से जुड़े लोगों के लिए शादी, तलाक, उत्‍तराधिकार के कानून समान हैं. गोवा में कोई भी ट्रिपल तलाक नहीं दे सकता है. रजिस्‍ट्रेशन कराए बिना शादी कानूनी तौर पर मान्‍य नहीं मानी जाती . संपत्ति पर पति-पत्‍नी का समान अधिकार है. हालांकि, यहां भी एक अपवाद है. जहां मुस्लिमों को गोवा में चार शादी का अधिकार नहीं है. वहीं, हिंदुओं को दो शादी करने की छूट है. हालांकि, इसकी कुछ शर्तें भी हैं.
दुनिया के कई देशों में समान नागरिक संहिता लागू है. इनमें हमारे पड़ोसी देश पाकिस्‍तान और बांग्‍लादेश भी शामिल हैं. इन दोनों देशों में सभी धर्म और संप्रदाय के लोगों पर शरिया पर आधारित एक समान कानून लागू होता है. इनके अलावा इजरायल, जापान, फ्रांस और रूस में भी समान नागरिक संहिता लागू है. हालांकि, कुछ मामलों के लिए समान दीवानी या आपराधिक कानून भी लागू हैं. यूरोपीय देशों और अमेरिका में धर्मनिरपेक्ष कानून है, जो सभी धर्म के लोगों पर समान रूप से लागू होता है. दुनिया के ज्‍यादातर इस्लामिक देशों में शरिया पर आधारित एक समान कानून है, जो वहां रहने वाले सभी धर्म के लोगों को समान रूप से लागू होता है.

भारत में अगर यूनिफॉर्म सिविल कोड लागू होता है तो लड़कियों की शादी की उम्र बढ़ा दी जाएगी. इससे वे कम से कम ग्रेजुएट तक की पढ़ाई पूरी कर सकेंगी. वहीं, गांव स्‍तर तक शादी के पंजीकरण की सुविधा पहुंचाई जाएगी. अगर किसी की शादी पंजीकृत नहीं होगी तो दंपति को सरकारी सुविधाओं का लाभ नहीं मिलेगा. पति और पत्‍नी को तलाक के समान अधिकार मिलेंगे. एक से ज्‍यादा शादी करने पर पूरी तरह से रोक लग जाएगी. नौकरी पेशा बेटे की मौत होने पर पत्‍नी को मिले मुआवजे में माता-पिता के भरण पोषण की जिम्‍मेदारी भी शामिल होगी. उत्‍तराधिकार में बेटा और बेटी को बराबर का हक होगा.

 

पत्नी की मौत के बाद उसके अकेले माता-पिता की देखभाल की जिम्‍मेदारी पति की होगी. वहीं, मुस्लिम महिलाओं को बच्‍चे गोद लेने का अधिकार मिल जाएगा. उन्‍हें हलाला और इद्दत से पूरी तरह से छुटकारा मिल जाएगा. लिव-इन रिलेशन में रहने वाले सभी लोगों को डिक्लेरेशन देना पड़ेगा. पति और पत्‍नी में अनबन होने पर उनके बच्‍चे की कस्‍टडी दादा-दादी या नाना-नानी में से किसी को दी जाएगी. बच्‍चे के अनाथ होने पर अभिभावक बनने की प्रक्रिया आसान हो जाएगी.इस तरह के कई प्रावधान इसमें हो सकते हैं….