Category Archive : राजनीति

महाराष्ट्र में फिर सियासी हलचल- अजित पवार नाराज, अमित शाह से मिले शिंदे, फडणवीस

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महाराष्ट्र की राजनीति में फिर भूचाल आने वाला है, महाराष्ट्र की राजनीति फिर करवट लेने वाली है,लेकिन इस बार किसी और की नहीं बल्कि खुद बीजेपी की मुश्किलें बढ़ गई है, हालत क्या हैं इसका अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि आनन-फानन में दिल्ली में महाराष्ट्र को लेकर तीन घंटे तक एक गहन मीटिंग चली, इस मीटिंग में अमित शाह, देवेंद्र फडणवीस और मुख़्यमंत्री एकनाथ शिंदे मौजूद रहे, लेकिन इस बैठक से उप मुख्यमंत्री अजित पवार गायब रहे, यही नहीं अजित पवार कैबिनेट की बैठक से भी गायब रहे.

महाराष्ट्र में सियासी बवाल-

सवाल तब उठने शुरू हुए जब अजित पवार कैबिनेट बैठक से तो गायब रहे लेकिन अपने समर्थकों और नेताओं के साथ उन्होंने एक सीक्रेट मीटिंग की उसके बाद से महाराष्ट्र में सियासी बवाल मचा हुआ है,कई सवाल उठ रहे हैं कि क्या अजित पवार एक बार फिर पलटी मारने वाले हैं, तो क्या एक बार फिर महाराष्ट्र सरकार खतरे में पड़ गयी है.

महाराष्ट्र में शिंदे-फडणवीस-पवार की ट्रिपल इंजन सरकार में खराबी की खबरें आ रही हैं। चर्चा है कि उप मुख्यमंत्री अजित पवार नाराज हैं। इन खबरों के बीच मंगलवार की शाम को इंजन में दुरुस्ती की गुहार लेकर मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे और उप मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस अचानक दिल्ली रवाना हो गए हैं। शिंदे-फडणवीस दिल्ली में बीजेपी अध्यक्ष जे.पी. नड्डा और केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह से मिले.

 

अजित पवार और शिंदे के बीच खींचतान-

 

सत्ता के गलियारों में यह चर्चा है कि मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे और अजित पवार के बीच पिछले कई दिनों से खींचतान चल रही है। अजित पवार बुधवार को मंत्रिमंडल की बैठक में भी नहीं गए। मंत्रिमंडल की बैठक के बाद मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने कहा कि अजित पवार की तबीयत ठीक नहीं है। हालांकि शिंदे और फडणवीस के दिल्ली रवाना होने के बाद अपने सरकारी बंगले ‘देवगिरी’ पर अपने मंत्रियों के साथ बैठक की। इससे पहले गणेश उत्सव के दौरान मुख्यमंत्री के सरकारी बंगले पर गणपति दर्शन के लिए अमित शाह, जे.पी. नड्डा समेत तमाम देसी-विदेशी लोग पहुंचे, लेकिन अजित पवार वहां नहीं गए थे।

गणेश उत्सव की समाप्ति पर पिछले शनिवार की रात को दोनों उप मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस और अजित पवार अचानक मुख्यमंत्री के बंगले पर पहुंचे। करीब डेढ़ घंटे तक तीनों के बीच बंद कमरे में बातचीत होती रही। पता चला कि तीनों ‘इंजनों’ की बैठक में कई मुद्दों पर बातचीत हुई.

 

प्रभारी मंत्रियों की नियुक्ति और विवाद –

बैठक में सबसे अहम मुद्दा जिलों के  प्रभारी मंत्रियों की नियुक्ति का था। जब से शिंदे सरकार अस्तित्व में आई है तब से ही  प्रभारी मंत्रियों की नियुक्ति नहीं हो पाई हैं। अपनी-अपनी मूल पार्टियों से बगावत कर सत्ता में शामिल हुए शिंदे-गुट और अजित गुट के मंत्रियों के बीच अपने-अपने जिलों का प्रभारी मंत्री बनने की होड़ मची है। खुद अजित पवार पुणे जिले का  प्रभारी मंत्री पद चाहते हैं। लेकिन इस पद पर पहले से ही बीजेपी के चंद्रकांत पाटील विराजमान हैं। ज्यादातर विवाद उन जिलों में है जहां एनसीपी और शिवसेना के बीच हमेशा से ही गलाकाट लड़ाई रही है।

शिंदे गुट शुरुआत से ही अजित पवार के सरकार में शामिल होने को लेकर नाखुश रहा है। अजित पवार सरकार में शामिल हुए और 9 मंत्री पद ले उड़े। शिंदे गुट को सत्ता की यह हिस्सेदारी रास नहीं आई। उन्हें लगता है कि उनका हिस्सा मारा गया है। अजीत गुट के सत्ता में आने के बाद मंत्रिमंडल विस्तार का इंतजार कर रहे विधायकों में भी असंतोष है।इस साल जुलाई में अजित पवार एनसीपी के 40 से अधिक विधायकों के साथ सरकार में शामिल हो गए थे, जिसके चलते एनसीपी दो गुटों (अजित पवार गुट) और (शरद पवार गुट) में विभाजित हो गई थी. इस बीच अजित पवार ने महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली.

 

क्या है दिल्ली दौरे का मकसद-



शिंदे-फडणवीस के दिल्ली दौरे का असली मकसद अगले कुछ दिनों में सुप्रीम कोर्ट से शिवसेना बनाम चुनाव आयोग के बीच चल रहे पार्टी के नाम और चुनाव चिन्ह शिंदे गुट को दिए जाने के खिलाफ दायर केस का फैसला आने की संभावना है। सुप्रीम कोर्ट ने अपने पहले फैसले में जो रुख दिखाया है, उसे देखते हुए आने वाला फैसला शिंदे गुट की मुश्किलें बढ़ा सकता है। इसको लेकर सरकार के भीतर एक तरह का डर है। शिंदे-फडणवीस के दिल्ली दौरे का असली मकसद यही हो सकता है।

इस घटना के बाद विपक्ष को टारगेट करने का मौका मिल गया और विपक्ष ने उनकी अनुपस्थिति को एक ‘राजनीतिक बीमारी’ बताया है, जो सरकार को हिला सकती है.एनसीपी सांसद सुप्रिया सुले ने कहा कि ‘ट्रिपल इंजन सरकार को सत्ता में आए अभी तीन महीने ही हुए है और मैंने सुना है कि एक गुट नाराज है.’ तीन महीने में अभी हनीमून खत्म नहीं हुआ और समस्याएं अभी से सामने आने लगी है. महज तीन महीने में ऐसी खबरें सामने आ रही है.

कुल मिलाकर महाराष्ट्र में राजनीतिक माहौल फिर गरमा गया है,लेकिन इस बार मुश्किल में भाजपा और शिंदे सरकार दिखाई दे रही है ये तो साफ़ है कि सब कुछ ठीक नहीं चल रहा, सवाल  उठ रहें है कि क्या अजीत एक बार फिर कोई नई चाल चल रहे हैं या फिर किसी बगावत की तैयारी महाराष्ट्र में चल रही है पर जैसे हालात अभी बने हुए हैं उससे अजीत की नाराजगी तो साफ़ दिखाई दे रही है. आगे अजीत क्या रुख अपनाएंगे इस पर सबकी नजर बनी रहेगी।

इस बार पता चलेगा वसुंधरा बीजेपी के लिए जरूरी या मजबूरी.

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राजस्थान में सियासी गर्मी इस कदर बढ़ी हुई हैं कि इसकी तपिश दिल्ली तक पहुंच रही है. जैसे कि आपको पता है कि बीजेपी जिस तरह से राजस्थान में कद्दावर नेत्री और दो बार की मुख़्यमंत्री वसुंधरा राजे को किनारे करने में लगी है उससे भाजपा में दो धड़े होते नजर आ रहे हैं. वसुंधरा जिस तरह से एक सख्त रुख अपनाये हुए है उससे राजस्थान में भाजपा मुश्किल में खड़ी दिखाई दे रही है. वसुंधरा और दिल्ली के रिश्तों में इस समय तल्खी साफ़ देखी जा सकती है.
क्या वसुंधरा राजस्थान में कोई बड़ा खेल करने की तैयारी में हैं ?
जब वसुंधरा राजे ने भरे मंच पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को नमस्कार किया तो मोदी जी बिना देखे चलते बने. अभी इससे पहले जयपुर रैली में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वसुंधरा से आँखे तक मिलाकर बात नहीं की और अब चित्तौड़गढ़ में तो इससे ज्यादा हो गया. खबरे यहां तक सामने आयी कि वसुंधरा नमस्कार करती रही और प्रधानमंत्री ने पलट कर तक नहीं देखा. जिसके वीडियो निकल कर सामने आये हैं खबरे भी इस पर बनी हैं,
वसुंधरा दिग्गज नेता हैं वो राजस्थान में अच्छी पकड़ रखती हैं, दो बार राजे मुख़्यमंत्री भी रह चुकी हैं, इस तरह बार-बार उनको अनदेखा करना अब राजस्थान चुनाव उनको भारी पड़ सकता है. क्योकि खबर निकलकर सामने आयी है कि प्रधानमंत्री की रैली खत्म होते ही वसुंधरा ने शक्ति प्रदर्शन करके आलाकमान को अपनी ताकत दिखाई है,, इतना ही नहीं इस दौरान कांग्रेस के विधायक भी वसुंधरा के पैर छूते दिखाई दिए.
एक खबर में दिखाया गया है कि किस तरह प्रधानमंत्री और वसुंधरा के बीच दूरी है जो मंच पर भी दिखाई दे रही है. इस तरह से वसुंधरा को नकारना क्या उनका अपमान नहीं है, ऐसे में क्या वसुंधरा अपना अपमान सहन करेंगी और कोई बगावत करेगी, लेकिन वसुंधरा और आलाकमान के बीच की दूरी अब खुल कर सामने दिखाई दे रही है और प्रधानमंत्री की रैली के बाद वसुंधरा का शक्ति प्रदर्शन बताता है कि वसुंधरा आर-पार के मूड में हैं और वो कर्नाटक के येदियुरप्पा नहीं बनना चाहती.
राजस्थान में ये नारे क्यों- 
पीएम मोदी ने राजस्थान की एक रैली में कहा कि राजस्थान में सिर्फ कमल निशान चेहरा है और आप उसे वोट करें. कमल निशान मतलब साफ़ है कि मोदी के चेहरे पर ही राजस्थान में चुनाव लड़ा जायेगा. लेकिन रैली खत्म होते ही वसुंधरा पहुंची बाड़मेर और वहां उन्होने शक्ति प्रदर्शन कर अपना जवाब दे दिया.
अब राजस्थान में ये नारे लग रहे हैं ”वसुंधरा राजे कमल निशान, मांग रहा है राजस्थान” तो आप समझे वसुंधरा ने आलाकमान को साफ़ कर दिया है की राजस्थान में क्या चलेगा.  इसके बाद एक सभा में महिलाओं के साथ बीच में बैठी वसुंधरा कुछ मीटिंग कर रही थी कि तभी वहां कांग्रेस विधायक  पहुंच जाते हैं और उनके पैर छूकर उनका आशीर्वाद लेते. इसके बाद अटकलों का बाजार गर्म हो जाता है.
क्या वसुंधरा बगावत करने वाली हैं ?
जो वसुंधरा राजे के पैर छू रहे हैं वो कोई और नहीं कांग्रेस के विधायक हैं मेवाराम जैन. जहां एक तरफ भाजपा में वसुंधरा को तवज्जो नहीं दी जा रही है वहीं कांग्रेस ने वसुंधरा को ऐसा सम्मान देकर तगड़ा दावं खेला है, एक तरफ इस सभा से भाजपा के पदाधिकारी गायब रहे तो दूसरी तरफ यहां कांग्रेस विधायक पहुंच जाते हैं. अब इस सब का क्या मतलब निकलता है,, क्या वसुंधरा राजस्थान में कोई बड़ा खेल करने की तैयारी में हैं,, या फिर कुछ और ही रणनीति चलाई जा रही है,, कुल मिलाकर जो भी हो भाजपा के लिए वसुंधरा को राजस्थान से हटाना कोई आसान नहीं है और वसुंधरा भी इसको लेकर रुख साफ़ कर चुकी हैं कि वो राजस्थान छोड़कर कहीं नहीं जाने वाली.

नीतीश कुमार का मास्टरस्ट्रोक, बिहार में जातिगत जनगणना के आंकड़े जारी,

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बिहार की नीतीश सरकार ने जाति गणना के आंकड़े किए जारी.
 

बिहार की नीतीश कुमार सरकार ने जाति गणना के आंकड़े जारी कर दिए हैं. आंकड़ों के मुताबिक बिहार में सबसे ज्यादा 36 फीसदी अति पिछड़ा वर्ग, 27 फीसदी पिछड़ा वर्ग, 19 फीसदी से ज्यादा अनुसूचित जाति, 15.52 फीसदी सवर्ण अनारक्षित वर्ग, और 1.68 फीसदी अनुसूचित जनजाति की जनसंख्या है.. 

 

 

आज मुख्य सचिव समेत अन्य अधिकारियों ने इसकी रिपोर्ट जारी की. बिहार सरकार की ओर से विकास आयुक्त विवेक सिंह ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा कि बिहार सरकार ने जातीय जनगणना का काम पूरा कर लिया है.  बिहार सरकार ने राज्य में जातिगत जनसंख्या 13 करोड़ से ज्यादा बताई है. अधिकारियों के मुताबिक जाति आधारित गणना में कुल आबादी 13 करोड़ 7 लाख 25 हजार 310 है.

2024 के आम चुनाव से पहले भाजपा को घेरने की कोशिश-

रिपोर्ट के मुताबिक अत्यंत पिछड़ा वर्ग की आबादी 36 फीसदी है और पिछड़ा वर्ग की संख्या 27 परसेंट है, साफ है की सबसे बड़े सामाजिक समूह ओबीसी वर्ग का है जिनकी संख्या 63 फीसदी है, इस रिपोर्ट के जारी होने के बाद नीतीश कुमार और लालू यादव की पार्टी आरजेडी दोनों ही मिलकर इसका श्रेय ले रहे हैं वहीं भाजपा भी समर्थन की बात करके ओबीसी को सबसे ज्यादा महत्व देने वाली पार्टी का दावा कर रही है साफ है कि 2024 के आम चुनाव से पहले ओबीसी पॉलिटिक्स केंद्रीय भूमिका में आ गई है.

साफ है की ओबीसी की राजनीति को बिहार से आए 63 के आंकड़े से ताकत मिलने वाली है राजनीतिक विश्लेषक संजय कुमार इस रिपोर्ट को लेकर कहते हैं यह आंकड़े हैरान करने वाले नहीं है पहले ही बिहार को लेकर ऐसा ही अनुमान रहा है लेकिन अब सरकारी आंकड़ा है तो तस्वीर ज्यादा साफ है इस रिपोर्ट के बाद नीतीश कुमार और लालू यादव जैसे नेता यह प्रचार करेंगे कि ओबीसी की आबादी 60% से ज्यादा है जबकि आरक्षण 27 फीसदी मिलता है इसे बढ़ाना चाहिए और सरकार अन्याय कर रही है इस तरह भाजपा को ओबीसी पर घेरने की कोशिश होगी एक तरफ से 2024 से पहले विपक्ष को एक हथियार मिल गया है.

 

बिहार में किस धर्म के कितने लोग? 

 

आबादी के अनुसार आरक्षण की मांग उठने लगी-

इसका अर्थ हुआ कि आने वाले दिनों में आबादी के मुताबिक आरक्षण की डिमांड तेज हो सकती है जेडीयू के सीनियर नेता केसी त्यागी ने तो नीतीश कुमार की तुलना कर्पूरी ठाकुर और वीपी सिंह से कर दी है उन्होंने कहा कि यह मंडल पार्ट 2 है और पिछड़ों को नीतीश कुमार न्याय दिला रहे हैं वहीं जीतन राम मांझी ने तो आंकड़े आते ही नौकरियों में आबादी के अनुसार आरक्षण की मांग रख दी. लालू यादव, नीतीश कुमार, अखिलेश यादव जैसे नेता लगातार यह मांग दोहराते रहे हैं अखिलेश यादव भी यूपी में जाति गणना की मांग करते रहे हैं.


बिहार से आई रिपोर्ट का उत्तर प्रदेश पर भी होगा असर ?

अब बिहार में आई रिपोर्ट के बाद वह इस पर और मुखर हो सकते हैं यही नहीं 2022 के उप चुनाव में तो स्वामी प्रसाद मौर्य जैसे नेताओं के जरिए उन्होंने 15 बनाम 85 का नारा दे ही दिया अब एक बार फिर से 2024 में यूपी बिहार जैसे हिंदी पट्टी के राज्यों में ओबीसी कार्ड तेज हो सकता है इसका असर उत्तर प्रदेश बिहार से आगे राजस्थान मध्य प्रदेश हरियाणा जैसे प्रदेश में भी दिख सकता है यानी 2024 के लिए विपक्ष को हथियार मिल चुका है देखना होगा कि वह इसका इस्तेमाल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मुकाबले कैसे कर पता है जो खुद ओबीसी चेहरे के तौर पर प्रोजेक्ट किए जाते हैं.
 

सीएम नीतीश ने क्या संदेश दिया?

आंकड़े जारी होने के बाद बिहार के सीएम नीतीश कुमार ने ट्वीट कर जनगणना करने वाली पूरी टीम को बधाई दी है. उन्होंने कहा है,जाति आधारित गणना के लिए सर्वसम्मति से विधानमंडल में प्रस्ताव पारित किया गया था. बिहार विधानसभा के सभी 9 दलों की सहमति से निर्णय लिया गया था कि राज्य सरकार अपने संसाधनों से जाति आधारित गणना कराएगी. 02-06-2022 को मंत्रिपरिषद से इसकी स्वीकृति दी गई थी. इसके आधार पर राज्य सरकार ने अपने संसाधनों से जाति आधारित गणना कराई है. जाति आधारित गणना से न सिर्फ जातियों के बारे में पता चला है, बल्कि सभी की आर्थिक स्थिति की जानकारी भी मिली है.

 

बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के मुताबिक जाति गणना को आधार बनाकर आने वाले समय में सभी वर्गों के विकास एवं उत्थान के लिए काम किया जाएगा. उन्होंने ट्वीट में ये भी लिखा है कि बिहार में कराई गई जाति आधारित गणना को लेकर जल्द ही बिहार विधानसभा के सभी 9 दलों की बैठक बुलाई जाएगी. और जाति आधारित गणना के नतीजों के बारे में उन्हें बताया जाएगा.

Election 2024: लोकसभा चुनाव की तैयारियों में जुटी भाजपा, उत्तराखंड पर है केंद्रीय नेतृत्व की सीधी नजर.

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2024 में होने वाले लोकसभा चुनाव को मध्यनजर रखते हुए भाजपा का केंद्रीय नेतृत्व उत्तराखंड पर सीधी नजर बनाए हुए है।इसी को देखते हुए संगठन और सरकार से फीडबैक लेने के लिए पार्टी के राष्ट्रीय संगठक वी सतीश तीन दिवसीय दौरे पर उत्तराखंड पहुंचे हैं। शुक्रवार को उन्होंने प्रदेश भाजपा मुख्यालय में पार्टी के सभी मोर्चों के पदाधिकारियों के साथ बैठक में चुनावी दृष्टि से कई बिंदुओं पर जानकारी ली। 

  1. 2024 में होने वाले लोकसभा चुनाव की तैयारियों में जुटी बीजेपी
  2. बीजेपी का केंद्रीय नेतृत्व उत्तराखंड पर बनाए हुए है सीधी नजर
  3. उत्तराखंड के दौरे पर हैं भाजपा के राष्ट्रीय संगठक वी सतीश
इसके बाद धामी मंत्रिमंडल के सदस्यों से राष्ट्रीय संगठक वी सतीश ने अलग-अलग मुलाकात की। देर शाम को उन्होंने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के पदाधिकारियों से भेंट कर सरकार और संगठन के कामकाज को लेकर फीडबैक लिया। उत्तराखंड में वर्ष 2014 से लेकर अब तक के लोकसभा चुनाव से भाजपा अजेय बनी हुई है। तब से वह राज्य में लोकसभा की सभी पांचों सीटें जीतती हुई आई है। अब पार्टी के सामने हैट्रिक बनाने की चुनौती है।

बीजेपी ने बनाई रणनीति-

लोकसभा चुनाव में चूंकि बीजेपी पिछले लगातार 2014 के बाद से उत्तराखंड में पांचों सीटें जीतती आयी है, पार्टी ने इतिहास रचने की दृष्टि से रणनीति बनाई है और वह तैयारियों में जुट चुकी है, लेकिन केंद्रीय नेतृत्व फिर भी इसे किसी भी दशा में हल्के में लेने के मूड में तो बिलकुल भी नहीं है। और यही कारण है कि केंद्रीय नेतृत्व निरंतर ही चुनावी तैयारियों पर नजर रखने के साथ ही फीडबैक भी ले रहा है। इस दृष्टिकोण से बीजेपी के राष्ट्रीय संगठक वी सतीश के उत्तराखंड दौरे को महत्वपूर्ण माना जा रहा है।

चुनावी रणनीतियों को लेकर तैयारियां

शुक्रवार को देहरादून पहुंचकर वी सतीश ने प्रदेश कार्यालय में पार्टी के सभी 7 मोर्चों के प्रभारियों व अध्यक्षों के साथ बैठक की। सूत्रों के मुताबिक उन्होंने चुनावी तैयारियों की जानकारी ली। साथ ही जिन क्षेत्रों में पार्टी कमजोर है, वहां पर क्या और कैसी रणनीति अपनाई जा सकती है, इस बारे में सुझाव भी लिए। इसके बाद राष्ट्रीय संगठक ने राज्य सरकार के मंत्रियों से भी प्रदेश कार्यालय में अलग-अलग भेंट की। इस दौरान उन्होंने भावी रणनीति पर चर्चा करने के साथ ही केंद्रीय नेतृत्व की अपेक्षाओं से अवगत कराया। 

प्रदेश महामंत्रियों के साथ की बैठक-

वी सतीश ने पार्टी के तीनों प्रदेश महामंत्रियों के साथ भी बातचीत की। देर शाम उन्होंने तिलक रोड स्थित संघ कार्यालय जाकर प्रांत प्रचारक डॉ शैलेंद्र समेत अन्य पदाधिकारियों के साथ मंथन किया। उधर, भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष महेंद्र भट्ट ने बताया कि राष्ट्रीय संगठक शनिवार को पार्टी के प्रांतीय पदाधिकारियों और विधायकों के साथ अलग-अलग बैठकें कर स्थानीय मुद्दों, सामाजिक व राजनीतिक घटनाक्रमों के दृष्टिगत संगठनात्मक गतिविधियों पर चर्चा करेंगे।वहीँ आज वह मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी से भी मुलाकात करेंगे।

भाजपा नेता मोदी से भी बड़े, वोटर को हाथ जोड़ने में भी तकलीफ !

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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बीजेपी में कुछ नेताओं को निपटाने के चक्कर में भाजपा को ही निपटा रहे हैं,,ऐसा हम नहीं मध्य प्रदेश और राजस्थान की राजनीति में आया सियासी बबाल बता रहा है,मध्य प्रदेश में जिस तरह भाजपा में नेतृत्व परिवर्तन की बात चल रही है उसके संकेत भी मिलने शुरू हो गए हैं.

 
 

जब देश में गुजरात मॉडल चर्चा में था तब  एक बार शिवराज सिंह चौहान ने कहा था कि गुजरात मॉडल में क्या है,जरा मध्य प्रदेश का विकास मॉडल देखिए,और फिर वक्त ऐसा आया की इसी गुजरात मॉडल ने शिवराज को किनारे लगाने की तैयारी कर दी है,मगर शिवराज सिंह ऐसा लगता है की हार मानने वालों में से नहीं हैं,,उधर दूसरी तरफ वसुंधरा के साथ भी यही हो रहा है उनको भी धीरे धीरे किनारे करने की तैयारी चल रही है,लेकिन जिस तरह वसुंधरा अपने तेवर राजस्थान में दिखा रही है उससे ये आसान नहीं होने वाला. शिवराज और वसुंधरा दोनों ही ऐसे नेता है जो अपने अपने प्रदेश में मजबूत पकड़ रखते हैं ऐसे में कहीं इनको निपटाने के चक्कर में दोनों राज्यों में भाजपा ही न निपट जाय,,,,खैर इसके लिए थोड़ा इंतजार कर लेते हैं और फिर से राज्य राजनीति पर लौट चलते हैं.

 

MP में BJP में खलबली-
 

बात मध्य प्रदेश की करें तो यहां जिस तरह से कई सर्वे में पार्टी की हालात खराब दिखाई दे रही है,कई घोटालों के आरोप शिवराज सरकार पर लगे हैं, ऐसेे में अब मोदी के नाम पर मध्य प्रदेश को बचाने की कोशिस की जा रही है,, खुद मोदी हार के डर से शिवराज को किनारे करने लग गए हैं,, ऐसे संकेत मिलते हैं,, मोदी और भाजपा को  हार का कितना डर है,इस बात का अंदाजा इससे भी लगाया जा सकता है कि अब भाजपा के बड़े बड़े केंद्रीय मंत्रीयों को चुनाव मैदान में उतारा गया है,और वो भी बिना उनको पूछे, बिना उनकी मर्जी के..
भाजपा में हार का इतना डर वयाप्त है कि उन्होंने अपने बड़े- बड़े नेताओं को ही चुनावी रण में उतार दिया है,,,आलाकमान के इस फैसले से केंद्न की राजनीति करने वाले नेता मंत्री हैरान हैं, परेशान हैं, सूत्र बताते हैं की इस फैसले का उन तमाम दिग्गजों को पता ही नहीं था,,,अब इन साहब को ही देख लीजिये,जिनको लगता है कि अब वो ठहरे इतने बड़े नेता, विधायक जैसा छोटा चुनाव कैसे लडेंगे उनकी माने तो वो कहते हैं की मै इतना बड़ा नेता होने के बाद अब क्या लोगों के दरवाजे पर वोट मांगूंगा,,,, अब ये ना समझ लिजिएगा की ये हम कह रहे हैं,, हम नहीं बल्कि खुद बड़े नेता,, माफ़ करें भाजपा के राष्ट्रिय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय कह रहे हैं,,,आप खुद देख लीजिये ,,,,,क्या कहा विजयवर्गीय ने- 


पार्टी ने विजयवर्गीय को इंदौर-1 विधानसभा क्षेत्र से उम्मीदवार बनाया है। कैलाश विजयवर्गीय ने कहा कि उन्हें अभी भी विश्वास नहीं हो रहा है कि बीजेपी ने उन्हें आगामी विधानसभा चुनाव लड़ने का मौका दिया है, मेरी चुनाव लड़ने की इच्छा नहीं थी. मैं अंदर से खुश नहीं हूं. अब हम बड़े नेता हो गए हैं. हाथ जोड़ने कहां जाएं. मुझे अंदाजा नहीं था कि पार्टी मुझे टिकट देगी.” इससे ये तो साफ़ हो गया कि बीजेपी में हार का डर इतना है कि वो अपने बड़े नेताओं को ये तक नहीं पूछ रही कि आप लड़ना चाहते भी हैं या नहीं,,,

परिवारवाद का विरोध करने वाली बीजेपी के खुद के नेता किस तरह परिवारवाद से घिरे हैं इसकी पोल खुद भाजपा नेता ने ही खोल दी,, कैलाश विजयवर्गीय ने ये भी कहा,कि  “मैं सोचता था कि मैं चुनाव क्यों लड़ू, क्योंकि आकाश ने इंदौर शहर में अपनी एक जगह बनाई है. मेरी वजह से उसका राजनीतिक अहित नहीं होना चाहिए, ,, मतलब वो यहां से अपने बेटे का टिकट चाहते थे,,,,आकाश विजयवर्गीय उनके बेटे हैं जो अभी विधायक हैं लेकिन अब पिता को टिकट मिलने के बाद आकाश यानी कैलाश विजयवर्गीय के बेटे की टिकट कटने की संभावना प्रबलतम है,

बता दें कि आकाश विजयवर्गीय उस वक्त सुर्खियों में आए थे जब उन्होंने निगम अधिकारी पर बैट से हमला कर दिया था. इंदौर के गंजी कंपाउंड इलाके में तोड़फोड़ को लेकर बहस होने के बाद आकाश विजयवर्गीय का निगम अधिकारी पर क्रिकेट बैट से हमले का वीडियो वायरल हुआ था. इसके बाद उन्हें पुलिस ने उस वक्त  गिरफ्तार कर लिया था. इसको लेकर मध्य प्रदेश में उस वक्त खूब राजनीति हुई थी. साथ ही आलोचना भी हुई थी,,

 

क्या इसलिए चुनाव नहीं लड़ना चाहते हैं  विजयवर्गीय- 


ये भी सवाल पैदा होते हैं कि आखिर क्यों विजयवर्गीय चुनाव नहीं लड़ना चाहते है,क्या सिर्फ अपने बेटे की वजह से या फिर वो मध्य प्रदेश की हवा भांप चुके हैं,और उनको लगता है कि इस बार तो मुश्किल है इसलिए चुनाव ही नहीं लड़ा जाय, या फिर जिस तरह कैलाश विजयवर्गीय कह रहे हैं कि  वो सच में इतने बड़े नेता हो गए है कि अब वोट के लिए लोगों के सामने हाथ नहीं जोड़ सकते,,, इसका मतलब साफ है की भाजपा में मोदी से बड़े नेता और भी हैं,, यानी कैलाश,,अब कैलाश जी को ये कौन समझाए कि पीएम मोदी खुद जनता के दर पर हाथ जोड़ दिन-रात वोट की गुहार करते दिखाई देते हैं,, कैलाश को तो घर-घर जाकर वोट मांगने थे या कहें की हैं,, मगर विश्व गुरु को तो भरी दोपहर में सड़कों पर ही हाथ जोड़ वोट मांगने पड़ रहे हैं,, अब ऐसे में क्या वो उनसे भी बड़े नेता हैं,, जो घर-घर जाकर वोट नहीं मांग सकते।। 

 
आखिर बीजेपी ने ऐसा क्यों किया- 


भाजपा के  डर का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि इस बार भाजपा ने तीन केंद्रीय मंत्रियों सहित सात सांसदों को विधायकी लड़ाने के लिए उतारा है, लेकिन बीजेपी को उनका ये फैसला उल्टा पड़ता दिखाई दे रहा है,,अब एक और सांसद रह चुके नेता जिनको लगता है कि पार्टी अब मनमानी करने लगी है,लेकिन पार्टी ने यहां उनकी बात नहीं मानी और उनकी जगह यानी रत्नाकर सिंह की जगह गणेश सिंह को  सतना विधानसभा से बीजेपी का उम्मीदवार बनाया है,जिससे नाराज सांसद रत्नाकर सिंह ने बागी तेवर दिखाने शुरू कर दिए हैं. 

 

 टिकट न मिलने से नाराज रत्नाकर अब पार्टी पर मनमानी का आरोप लगा रहे हैं और अब निर्दलीय चुनाव लड़ने की धमकी भी दे रहे हैं,,, उनका कहना है जनता कहेगी तो निर्दलिय ही चुनाव लड़ूंगा,, अब इसका मतलब तो साफ है की बीजेपी टिकट दे या ना दे रत्नाकर सिंह चुनावी मैदान में तो ताल ठोकेंगे ही.. अब चाहे वो निर्दलीय लड़ें या किसी अन्य पार्टी के दामन को थाम कर..

दरअसल, बीजेपी इस साल मई में कर्नाटक में मिली हार और इस महीने की शुरुआत में हुए उप चुनावों में विपक्षी गठबंधन I.N.D.I.A. के हाथों हुई 3-4 की हार से चिंतित नजर आ रही है,चुनावों में पार्टी किसी भी उम्मीदवार को मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार के रूप में पेश नहीं करेगी। खासकर मध्य प्रदेश और राजस्थान जैसे हिंदी भाषी राज्यों में, पार्टी क्षेत्रीय नेताओं की महत्वाकांक्षाओं और आपसी द्वंद को इस तरह से कम करने की कोशिश भर कर रही है, या पुराने छत्रपों को निपटाने की, बीजेपी को ये भी उम्मीद है कि बड़े नाम वाले कैंडिडेट उन सीटों पर जीत हासिल करने में सफल रहेंगे जहां वह कमजोर है। भाजपा को लगता है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अपील से पार्टी चुनाव का एक और दौर जीतेगी, और मुख्यमंत्री पद का खुला रहना क्षेत्रीय नेताओं को कड़ी मेहनत करने के लिए प्रोत्साहित करने का काम करेगा.

 

आखिर क्यों नहीं है कैंडिडेट लिस्ट में शिवराज का नाम-


अब एक हैरान करने वाली बात ये भी है, की प्रदेश यानी मध्य प्रदेश की सत्ता पर विराजमान मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का नाम अभी तक चुनाव लड़ने वाले कैंडिडेट की लिस्ट में नहीं है। ये संकेत 64 वर्षीय चौहान के भविष्य के लिए अच्छा तो नहीं ही कहा जा सकता है। संभावना ये भी है कि कोई भी बड़ा नेता चुनाव के बाद सीएम बन सकता है।  


 अब जरा राजस्थान में एक नजर- 


राजस्थान में, संभावित मुख्यमंत्री चेहरों में केंद्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत और अर्जुन राम मेघवाल शामिल हैं, और संभावित उम्मीदवारों में राज्यसभा सांसद डॉ. किरोड़ी लाल मीणा और लोकसभा सांसद दीया कुमारी, राज्यवर्धन राठौड़ और सुखबीर सिंह जौनपुरिया भी शामिल हैं। राज्य में दो बार सीएम रह चुकीं 70 साल की वसुंधरा राजे के लिए ये चुनाव काफी अहम रहने वाला है। राज्य में पार्टी की सबसे प्रभावशाली नेता के रूप में वसुंधरा की पहचान है। लेकिन इस बार पार्टी ने यहां भी सामूहिक नेतृत्व के रूप में उतरने का फैसला किया है। देखना रोचक होगा कि राजे पार्टी के इस दांव से कैसे निपटती है। ये भी माना जा रहा है कि वह किसी अन्य सीएम के अधीन विधानसभा में तो नहीं जाएंगी। मतलब यहां के राजनीतिक हालात भी अभी काबू से बाहर हैं.

ऐसे हालातो से ये तो साफ़ है कि भाजपा चुनावी राज्यों में हवा का कुछ हद तक अंदाजा लगा चुकी है और समझ चुकी है कि राह बेहद मुश्किल है, ऐसे में वो हर काम किया जा रहा है जिससे किसी भी डेमेज कंट्रोल को रोका जा सके,लेकिन इतने नेताओ की नारज करना बीजेपी के लिए उल्टा दावं भी साबित हो सकता है, परिणाम क्या होंगे वो आने वाला वक्त साफ़ करेगा.

AIADMK की एक मांग को अनसुनी करना भाजपा को पड़ा भारी, जानिए- वो वजह जिससे टूटा 4 साल पुराना गठबंधन

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2024 में होने वाले लोकसभा चुनाव से पहले भारतीय जनता पार्टी को एक बड़ा झटका लगा. दक्षिण भारत के राज्यों में बीजेपी अपनी पकड़ मजबूत करना चाहती है और उसके इरादों पर तब पानी फिर गया जब एआईएडीएमके ने राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन से बाहर होने की घोषणा कर दी.

एनडीए से अलग होने का फैसला चेन्नई में एआईएडीएमके मुख्यालय में पार्टी प्रमुख एडप्पादी के पलानीस्वामी की अध्यक्षता में हुई बैठक में लिया गया. पिछले साल नीतीश कुमार के नेतृत्व वाले जेडीयू के एनडीए से अलग होने के बाद ये गठबंधन के लिए सबसे बड़ा झटका है. देश के दक्षिणी राज्य कर्नाटक में हार के बाद बीजेपी तमिलनाडु से बहुत उम्मीदें लगाकर बैठी है ऐसे में एआईएडीएमके के अलग होने से देश की सबसे बड़ी पार्टी को झटका तो जरूर लगा है.

 

गठबंधन टूटने का समय-

एआईएडीएमके के एनडीए से अलग होने की टाइमिंग भी ऐसी रही है जब बीजेपी तमिलनाडु में सनातन धर्म पर डीएमके नेता उदयनिधि के बयान को भुनाने में लगी हुई है. बीजेपी हाल ही में बने विपक्षी गठबंधन इंडिया पर हमला करने के लिए एक बड़ी रणनीति के तहत इसका उपयोग कर रही है. गठबंधन टूटने के बाद द्रविड़ राजनीति के बारे में भगवा पार्टी की समझ पर भी सवाल उठने लगे हैं. एआईएडीएमके का एनडीए से अलग होना तमिलनाडु में गेम चेंजर साबित हो सकता है.

अब जश्न का ये वीडियो तेजी से वायरल हो रहा है, जिससे बीजेपी की काफी फजीहत हो रही है,,  राजस्थान, मध्य प्रदेश और छतीशगढ के साथ ही तमलनाडु में विधानसभा चुनाव हैं, ऐसे में बीजेपी को उम्मीद थी कि AIDMK के साथ चुनाव लड़ेगी लेकिन उन्होंने बीजेपी को जोरदार झटका दे दिया,, AIADMK ने सोमवार को एक औपचारिक प्रेस कॉन्फ्रेंस कर भाजपा के नेतृत्व वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन यानी NDA से बाहर निकलने की  घोषणा की और कहा कि वह  वह 2024 के लोकसभा चुनावों के लिए एक अलग मोर्चे का नेतृत्व करेगी. गठबंधन तोड़ने का एलान करते हुए पार्टी ने कहा कि 2024 लोकसभा चुनावों में वो अपनी जैसी सोच वाली पार्टियों के साथ गठबंधन करेगी.

 

समस्या कहां पर है?

बीते कुछ समय से दोनों पार्टियों के बीच तनाव चल रहा था. ये कदम ऐसे समय में उठाया गया है जब कुछ दिनों पहले एआईएडीएमके के वरिष्ठ नेताओं ने नई दिल्ली में बीजेपी चीफ जेपी नड्डा से मुलाकात कर उन्हें तमिलनाडु में बीजेपी प्रमुख अन्नामलाई की राजनीति की आक्रामक शैली से उत्पन्न राज्य की जमीनी स्थिति के बारे में बताया. नेताओं ने मांग की थी कि या तो अन्नामलाई द्रविड़ियन दिग्गज सीएन अन्नादुरई पर की गई टिप्पणी के लिए माफी मांगें या फिर बीजेपी अध्यक्ष बदला जाए लेकिन ऐसा हुआ नहीं.

दरअसल दोनों दलों के बीच विवाद की जड़ में अन्नामलाई का अन्नादुरई को लेकर दिया बयान बताया जा रहा है. अन्नामलाई ने कहा था- साल 1956 में अन्नादुरई ने हिंदू धर्म का अपमान किया था और फिर बाद में जब विरोध हुआ तो उन्हें माफ़ी मांगनी पड़ी और मदुरै से भागना पड़ा था

 

 

ADIMK  नेतृत्व राज्य में बीजेपी नेताओं की ओर से की जा रही टिप्पणियों से नाराज़ था. इसमें बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष के अन्नामलाई की टिप्पणी भी शामिल है. इन नेताओं को रोकने को लेकर बीजेपी के शीर्ष नेतृत्व की ओर से कोशिश नहीं दिखी. इससे AIDMK में नाराज़गी थी. ये गठबंधन तोड़ने का एलान ऐसे वक़्त में हुआ था, जब राज्य में पार्टी की पकड़ ढीली होती जा रही है.

 

जब AIADMK ने की NDA से अलग होने की घोषणा-

इसके बाद सोमवार को एआईएडीएमके ने एनडीए से अलग होने की घोषणा कर दी. हालांकि इस खटास के संबंध में किसी का नाम नहीं लिया गया और पूरा दोष बीजेपी राज्य नेतृत्व पर मढ़ दिया गया. अन्नाद्रमुक ने कहा कि बीजेपी के राज्य नेतृत्व ने जानबूझकर अन्नादुराई और पार्टी की दिवंगत मुखिया जे जयललिता और निवर्तमान प्रमुख पलानीस्वामी को बदनाम किया.

प्रस्ताव में कहा गया है कि एआईएडीएमके को निशाना बनाकर इस तरह की निंदनीय, अनियंत्रित आलोचना पिछले लगभग एक साल से चल रही है और इससे कार्यकर्ताओं और पदाधिकारियों में गहरी नाराजगी है. प्रवक्ता शशिरेखा ने सोमवार को कहा, “यह (हमारे लिए) सबसे खुशी का क्षण है. हम आगामी चुनावों (अपने दम पर) का सामना करके बहुत खुश हैं, चाहे वह संसदीय हो या विधानसभा.”

मै कहीं जाने वाली नहीं हूं- वसुंधरा राजे

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राजस्थान चुनाव से पहले एक तस्वीर सामने आयी है. जिसने वहां की राजनीतिक हलचल बढ़ा दी है. एक कार्यक्रम के मौके पर सीएम गहलोत और बीजेपी नेता वसुंधरा राजे दोनों एक साथ दिखे. तस्वीर सामने आने के बाद वहां अटकलों का दौर भी शुरू हो गया है. आपको बता दें कि वसुंधरा राजे इस बार बीजेपी के चुनाव प्रचार से भी दूर हैं और उन्होंने परिवर्तन यात्रा में भी हिस्सा नहीं लिया…

क्या बीजेपी को भारी पड़ सकती है वसुंधरा की बेरुखी-


 
क्या वसुंधरा और बीजेपी हाईकमान के बीच की दूरी लगातार बढ़ रही है, वसुंधरा के एक ऐलान के बाद प्रधानमन्त्री को आनन -फानन में चार साल से अधिक समय बाद जयपुर जाना पड़ा. और तो और बीजेपी आलाकमान ये भी फैसला कर चुका है कि राजस्थान चुनाव में वसुंधरा का करना क्या है ? और इस फैसले का ऐलान प्रधानमंत्री के राजस्थान दौरे के बाद किया जा सकता है. आखिर क्यों राजस्थान में बीजेपी के अंदर सियासी पारा चढ़ा हुआ है और क्या प्रधानमंत्री मोदी जयपुर वसुंधरा राजे को मनाने गए थे.
राजस्थान में चुनाव से पहले वसुंधरा बीजेपी के लिए एक बड़ी मुसीबत बन गयी है. कुल मिलाकर राजस्थान को लेकर बीजेपी और हाईकमान में रार जारी है, इसकी एक वजह है वसुंधरा राजे का एक वीडियो जो की खूब वायरल हो रहा है. कुल मिलाकर वसुंधरा राजे ने राजस्थान में बीजेपी की मुश्किलें बढ़ा दी है. पहले वो बयान सुनिए जिसमें वसुंधरा बीजेपी हाईकमान को सीधा संदेश देती दिखाई दे रही है.

 

क्यों कहा वसुंधरा ने ऐसा ?

अब ये सवाल उठ रहे हैं कि आखिर वसुंधरा राजे ऐसा क्यों कह रही हैं कि वो राजस्थान छोड़ कर नहीं जाएगी. दरअसल  जिस तरह से वसुंधरा राजे को चुनाव समिति में जगह नहीं दी गयी उसके बाद ये खबरें सामने आयी कि वसुंधरा की राजनीतिक पारी समाप्त हो चुकी है, उनको भाजपा ने साइडलाइन कर दिया है. लेकिन राजे राजस्थान में अच्छी खासी पकड़ और मजबूत जनाधार रखने वाली नेता है,,और वो ये भी अच्छे से  जानती हैं कि जिसको साइड लाइन कर दिया गया है उसको लाइमलाइट में कैसे लाना है ? तो वसुंधरा ने कैसे खेल किया उसके लिए आपको हम कुछ तस्वीरें दिखाते हैं.


कल हुई पीएम की रैली में वसुंधरा राजे मौजूद रही. लेकिन गहलोत सरकार के खिलाफ परिवर्तन रैली से वसुंधरा राजे गायब रहीं.  जिसका साफ़ संदेश था कि वसुंधरा चुनाव समिति में न रखे जाने से काफी नाराज थी.
एक तरफ अशोक  गहलोत के खिलाफ परिवर्तन रैली से वसुंधरा लगातार गायब रहीं तो दूसरी तरफ अशोक गहलोत के साथ उनकी तस्वीरें निकल कर सामने आ गयी.  21 सितंबर को ये तस्वीरें सामने आयीं और वायरल हो गयी, उसके बाद कहा जाने लगा कि राजस्थान में बीजेपी की मुश्किलें बढ़ने जा रही हैं,,वसुंधरा राजे भारतीय जनता पार्टी से इस्तीफा देने जा रही हैं,, बस इन तस्वीरों के तुरंत बाद प्रधानमंत्री मोदी का जयपुर का प्लान सामने आ गया..

 

क्या बीजेपी ने खुद मार दी अपने पैर पर कुल्हाड़ी-

 

खबरें चल रही हैं कि वसुंधरा राजे ने बीजेपी आलाकमान को अपनी ताकत दिखाई है, वसुंधरा ये दिखाना चाहती है कि किस तरह से बीजेपी ने उनको चुनाव समिति से बाहर करके कथित तौर पर अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मार दी है,,आप देख सकते हैं कि किस तरह वसुंधरा महिलाओं के हुजूम के बीच कह रही हैं कि राजस्थान में 60 प्रतिशत महिलाएं हैं,,मतलब जो महिलाएं है वो वोटर भी हैं,,,दूसरी तरफ वसुंधरा कहती हैं कि वो राजस्थान छोड़ कर कहीं नहीं जाएगी और यहीं रहकर यहां के लोगों के मुद्दे उठायेंगी,,,ये बात इसलिए भी महत्वपूर्ण हो जाती है क्योंकि वसुंधरा को केंद्रीय राजनीती में भेजे जाने के कयास लगाए जा रहे थे,,,इस बयान से वसुंधरा ने ये तो साफ़ कर दिया है कि वो राजस्थान से कहीं नहीं जाने वाली,, उनका ये बयान हाईकमान को भी साफ़ संदेश है, हालांकि इसके बाद वो पीएम मोदी की रैली में शामिल हुई,,

जल्द हो सकती है उम्मीदवारों की पहली सूची जारी-

कुल मिलाकर वसुंधरा इतने बगावती तेवर दिखा रही हैं कि जब परिवर्तन यात्रा उनके क्षेत्र से गुजरती हैं तब भी वो उसमें शामिल नहीं होती उलटा उनकी फोटो गहलोत के साथ सामने आ जाती है. वसुंधरा इस समय राजस्थान में हाट टॉपिक बनी हुई हैं,, ऐसे में क्या बीजेपी आलाकमान वसुंधरा को शीर्ष नेतृत्व में भेजने की तैयारी में है ? इसको लेकर भी खबरें सामने आ रही हैं, खबरों के मुताबिक, अगले सप्ताह दिल्ली में राजस्थान को लेकर बीजेपी की केंद्रीय चुनाव समिति की बैठक संभावित है। इसके बाद पार्टी राज्‍य के लगभग 50 उम्मीदवारों की पहली सूची जारी कर सकती है। पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे लगातार अपनी भूमिका स्पष्ट करने की मांग करती रही हैं। बावजूद इसके पार्टी आलाकमान की तरफ से उन्हें विधानसभा चुनाव के मद्देनजर कोई अहम भूमिका नहीं दी गई। इससे ऐसा लगता है कि पार्टी नेतृत्व ने उनके बारे में अपना मन बना लिया है।

चुनाव प्रचार से गायब हैं राजे-

बीजेपी ने राज्य में ‘परिवर्तन संकल्प’ यात्रा निकाली। इस यात्रा में ज्यादातर पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे गायब रहीं। बीजेपी की यात्रा से गायब रहने वाली वसुंधरा राजे ने मुख्यमंत्री अशोक गहलोत से मुलाकात की। इस मुलाकात के बाद राज्य में राजनीतिक हलचल बढ़ गई। लोगों के मन में वसुंधरा राजे को लेकर सवाल उठने लगे, क्या राजस्थान में कोई नई खिचड़ी पक रही है? क्या वसुंधरा राजे प्रेशर पॉलिटिक्स कर रही हैं? सामने आई तस्वीर में बीजेपी नेता राजेंद्र राठौड़ और सीएम अशोक गहलोत एक सोफे पर बैठे हुए हैं। वहीं दूसरे सोफे पर विधानसभा अध्यक्ष सीपी जोशी और पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे बैठी हुई हैं। इस मुलाकात को लेकर सोशल मीडिया पर तरह-तरह के कयास लगाए जा रहे हैं। कुछ लोगों का मानना है कि यह मुलाकात दोनों नेताओं के बीच किसी समझौते की ओर इशारा करती है। वहीं, कुछ लोग इसे केवल एक औपचारिक मुलाकात बता रहे हैं।

वसुंधरा राजे ने बीते  10 दिनों से दिल्ली में डेरा डाल रखा था.  इसके बाद अब उनकी तस्वीर सीएम गहलोत के साथ नजर आई हैं । राजस्थान में विधानसभा चुनाव 2023 में होने हैं। ऐसे में यह मुलाकात राजनीतिक रूप से काफी महत्वपूर्ण है। यह देखना दिलचस्प होगा कि इस मुलाकात के बाद दोनों दलों के बीच क्या होता है,, क्या वसुंधरा राजस्थान में अपनी बात पूरी न होने पर कोई बगावत कर सकती हैं, ये देखना होगा.

हाई कोर्ट के निर्देश पर कार्बेट में पेड़ कटान व अवैध निर्माण मामले में सीबीआई ने शुरू की जांच

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सीबीआई ने जिम कार्बेट नेशनल पार्क के पाखरो रेंज में टाइगर सफारी के नाम पर हुए अवैध निर्माण तथा छह हजार पेड़ काटने के मामले की जांच शुरू कर दी है। राज्य सतर्कता निदेशक वी मुर्गेशन के मुताबिक, राज्य सतर्कता ने कार्बेट मामले से संबंधित सभी दस्तावेज सीबीआई को सौंप दिए हैं।नैनीताल हाईकोर्ट के निर्देश पर सीबीआइ कार्बेट पार्क मामले की जांच सीबीआई कर रही है। इस मामले में सबसे पहले पाखरो सफारी मामले से जुड़े तीन सेवानिवृत्त प्रधान मुख्य वन संरक्षक (पीसीसीएफ) और एक मौजूदा पीसीसीएफ समेत रेंज में काम करने वाले करीब एक दर्जन वन अधिकारियों, कर्मचारियों व ठेकेदारों से सीबीआई पूछताछ करेगी।

 

जांच का प्रमुख केंद्र होंगे तत्कालीन वन मंत्री हरक सिंह रावत

सीबीआई की जांच का मुख्य केंद्र बिंदु तत्कालीन वन मंत्री हरक सिंह रावत होंगे। विजिलेंस और अन्य जांचों से पता चला है कि हरक सिंह के दबाव में कार्बेट टाइगर सफारी में वित्तीय और अन्य स्वीकृतियां लिए बिना ही काम शुरू कर दिया गया था।

बता दें है कि 21 अगस्त को मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति विपिन सांघी व न्यायमूर्ति आलोक कुमार वर्मा की खंडपीठ में देहरादून के अनु पंत की जनहित याचिका पर सुनवाई हुई थी। इसमें कहा गया था कि  बिना अनुमति के निर्माण कार्य किए गए। छह जनवरी, 2023 को हाई कोर्ट ने मुख्य सचिव से पेड़ों के कटान के प्रकरण पर जांच रिपोर्ट कोर्ट में पेश करने और यह बताने को कहा था कि किन लोगों की लापरवाही और संलिप्तता से यह अवैध कार्य हुए।

अमेठी के संजय गांधी अस्पताल पर ताला, इलाज के दौरान हुई थी महिला की मौत…

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सवाल ये की आखिर बीजेपी पर ये आरोप क्यों लग रहे हैं ?
बीजेपी क्यों पहले से अस्पताल बंद करवाना चाहती थी ?
क्यों कांग्रेस ने इसे बदले की राजनीति का करार दिया ?
क्या ये बदले की राजनीति है ?

अमेठी से बीजेपी ने सिर्फ राहुल गांधी को ही नहीं हटाया बल्कि वहां से  पूरे गांधी परिवार का नामो निशान मिटाने में लगी है.. इसलिए लंबे समय से बीजेपी की नजर संजय गांधी अस्पताल पर थी. अस्पताल को ताला लगाने की हर संभव कोशिश हो रही थी और फिर आखिरकार बीजेपी ने वो मौका ढूंढ ही लिया और बेहद जल्दबाजी दिखाते हुए संजय गांधी अस्पताल का लाइसेंस निरस्त कर दिया. यहां तक की उसकी ओपीडी और सारी सेवाएं बंद कर दी. इस मामले ने पूरे राज्य की राजनीति का पारा गरमा दिया. कांग्रेस पहले से ही इसे बदले की राजनीति बता रही है।उसका कहना है कि अस्पताल इसलिए बंद किया गया क्योंकि ये उस ट्रस्ट द्वारा संचालित है जिसकी अध्यक्ष सोनिया गांधी हैं. कांग्रेस ने यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से अस्पताल का ताला खुलवाने की मांग की है.इस बीच वरुण गांधी ने भी अस्पताल बंद करने पर आपत्ति जताई। 

 

 

सीएम योगी को लिखा पत्र-

 

कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष अजय राय ने सीएम योगी आदित्यनाथ को इसके लिए एक पत्र भी लिखा है. इसमें उन्होंने संजय गांधी अस्पताल का लाइसेंस रद्द किए जाने के आदेश को वापस लेने की अपील की है. उन्होंने कहा है कि अस्पताल का रजिस्ट्रेशन रद्द करना उचित नहीं है. प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष ने पत्र में आगे कहा है कि संजय गांधी अस्पताल में लाखों लोगों का इलाज़ होता है. अस्पताल कम पैसे पर बड़ी स्वास्थ्य सेवाएं मुहैया कराता है. ये अस्पताल अमेठी क्षेत्र के स्वास्थ्य सेवाओं की लाइफ लाइन है. ऐसे में उन्हें विश्वास है कि सीएम के निर्देशों से अमेठी की जनता व संजय गांधी अस्पताल के साथ अन्याय नहीं होगा.

 

क्यों लगाया गया अस्पताल पर ताला ?

इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के मुताबिक 14 सितंबर की सुबह पेट दर्द की शिकायत के बाद एक 22 साल की महिला को संजय गांधी अस्पताल में भर्ती कराया गया था. लेकिन, पित्ताशय की सर्जरी से पहले उसकी हालत खराब होने पर उसे लखनऊ के एक निजी अस्पताल में रेफर कर दिया गया. जहां 16 सितंबर को महिला की मौत हो गई. महिला के परिवार ने आरोप लगाया कि संजय गांधी अस्पताल में एनेस्थीसिया के ओवरडोज के कारण महिला की मौत हुई. इसे लेकर 17 सितंबर को एक FIR दर्ज की गई. पुलिस ने महिला की मौत पर अस्पताल के मुख्य कार्यकारी अधिकारी सहित चार कर्मचारियों के खिलाफ इलाज के दौरान लापरवाही से मौत होने का मामला दर्ज किया. जैसे ही ये खबर आयी ताक में बैठी बीजेपी सरकार तुरंत एक्शन में आ गयी.. मामले का संज्ञान उत्तर प्रदेश के उपमुख्यमंत्री बृजेश पाठक ने लिया और तत्काल जिले के मुख्य चिकित्सा अधिकारी डॉ अंशुमान सिंह को निर्देशित करते हुए कार्रवाई करने को कहा, इधर सीएमओ ने तीन सदस्यीय जांच कमेटी का गठन किया जांच कमेटी ने अस्पताल पहुंचकर हर पहलू की जांच कर अपनी रिपोर्ट सीएमओ को भेज दी, जिसके बाद संजय गांधी अस्पताल को कारण बताओ नोटिस देते हुए स्पष्टीकरण देने के लिए 3 महीने का समय दिया गया. 

 

 

आखिर बीजेपी को इतनी जल्दी क्यों ?

लेकिन 24 घंटे के अंदर ही संजय गांधी अस्पताल का लाइसेंस निरस्त करते हुए उसकी ओपीडी और सारी सेवाएं बंद कर दी गयी.. अब यहां पर सवाल उठता है की जब 3 महीने का समय स्पष्टीकरण के लिए दिया गया था तो इस पर ताला लगाने की इतनी जल्दी क्या थी.. बीजेपी ने क्यों 24 घंटे के अंदर ही सारी सेवाएं बंद कर दी.. क्या इस पर गौर करने वाली बात नहीं है ? इतनी जल्दी एक्शन लेने से सरकार की मंशा पर सवाल खड़े हो रहे है.  क्या सरकार को आम जनता की कोई चिंता नहीं है ? 

 

 

400 कर्मचारियों पर संकट-

उधर, अमेठी के मुंशीगंज में स्थित संजय गांधी अस्पताल का लाइसेंस निलंबित करने के बाद अस्पताल के 400 से अधिक कर्मचारियों के सामने रोजी-रोटी का संकट खड़ा हो गया है. बुधवार (20 सितंबर) को अस्पताल में तैनात कर्मचारियों ने अस्पताल परिसर में प्रदर्शन करने के बाद डीएम को ज्ञापन सौंपा. उन्होंने अस्पताल के लाइसेंस को बहाल करने की मांग की. कर्मचारियों का कहना था कि अगर अस्पताल बंद हो गया तो उनके सामने रोजी-रोटी का संकट खड़ा हो जाएगा.

 

 

कांग्रेस ने कहा सब कुछ स्मृति ईरानी के इशारे पर हुआ-

आपको बता दें इस मामले ने इसलिए भी इतना तूल पकड़ा है क्योंकि ये दो राष्ट्रीय पार्टियों बीजेपी और कांग्रेस के बीच का विवाद है, दरअसल ये अस्पताल संजय गांधी ट्रस्ट की तरफ से संचालित किया जाता  है. इस ट्रस्ट की अध्यक्ष सोनिया गांधी हाँ, और ट्रस्ट के सदस्य प्रियंका गांधी और राहुल गांधी है, यही नहीं अमेठी और रायबरेली कांग्रेस का गढ़ मन जाता है, जिसकी एक वजह ये अस्पताल भी है, ये अस्पताल 1986 से अपनी सेवाएं दे रहा है, अमेठी जिले का 350 बेड का ये एकलौता अस्पताल है, जहाँ पर लड़भाग 400 कर्मचारी काम करते है , यहाँ पर ANM, और GNM के कोर्स भी संचालित है जिसमे 1200 छात्र छात्राएं ट्रेनिंग ले रहे हैं ,

 

अब ऐसे में बीजेपी सरकार की इस कारवाही को लेकर कुछ राजनीति के जानकार ये दवा कर रहे हैं की अमेठी और रायबरेली में कांग्रेस और गांधी परिवार की इतनी पूछ है, जिस से बीजेपी इतनी परेशान है, और कांग्रेस का नामो निशान मिटाना चाहती है. वही कांग्रेस ने इस पर खुलकर बोला  है की ये बदले की राजनीति है, कांग्रेस जिला अध्यक्ष और कांग्रेस के पूर्व एमएलसी दीपक सिंह के नेतृत्व में कांग्रेसियों ने भी विरोध प्रदर्शन किया. विरोध प्रदर्शन को लेकर कांग्रेस के पूर्व एमएलसी दीपक सिंह ने कहा कि अस्पताल को बंद करना बिल्कुल ठीक नहीं है. अगर कोई संस्थागत व्यक्ति हो और वह संविधान की शपथ ले तो उसे संविधान के दायरे में रहकर काम करना चाहिए. दीपक सिंह ने सांसद स्मृति ईरानी पर निशाना साधने के साथ स्वास्थ्य मंत्री बृजेश पाठक पर भी निशाना साधा. उन्होंने कहा कि जो व्यक्ति कई बार विधायक रहा हो, कानून मंत्री रहा हो, उसे तो अमेठी की सांसद स्मृति ईरानी के इशारे पर ये काम नहीं करना चाहिए.

एक साल पूरा ,न्याय अधूरा ! महिला आरक्षण बिल मुबारक हो…

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क्या बिल के बाद सुधरेगी महिलाओं की स्थिति-

 

चुनावी साल में तीन दशकों से लंबित महिला आरक्षण बिल को  मोदी कैबिनेट  ने मंजूरी दे दी, विपक्ष ने भी इस बिल के समर्थन में है. तो अब क्या ये माना जाय कि इस बिल के आने मात्र से  महिलाओं की स्तिथि में सुधार हो जायेगा, महिलाओ की कितनी स्थिति कितनी सुधरती है ये तो आने वाला वक्त बताएगा। बहरहाल  कई सवाल है, जिनका जवाब मिलना अभी बाकी है.

 

महिला आरक्षण से पहले सबसे ज्यादा जरूरी है उनकी सुरक्षा। प्रधानमंत्री मोदी हमेशा ही महिलाओं की बात हर मंच से करते दिखाई देते हैं,बेटी बचाओ,बेटी पढ़ाओ का नारा भी प्रधानमंत्री मोदी ने ही दिया है. लेकिन उन्ही के एक  राज्य जहां की महिलाओं ने उनको वोट के रूप में दिल खोलकर आशीर्वाद दिया हो उस राज्य में  एक बहादुर  बेटी की हत्या कर दी जाती है.

आखिर कब मिलेगा न्याय-

वो लड़की जो अपने दम  पर कुछ काम करके अपने परिवार का सहारा बनना चाहती थी और उस बेटी की बेबस मां न्याय के लिए कोर्ट से लेकर सड़क तक दर-दर भटक कर एड़ियां रगड़ रही हो. एक साल से उस मां के आंसू रुक नहीं रहे हो  और मोदी जी के धाकड़ मुख्यमंत्री उनको न्याय नहीं दिला पा रहे हों.  तो महिला सुरक्षा की बात करना बेमानी प्रतीत होता है,, एक साल से बुजुर्ग माता पिता न्याय के लिए हर दरवाजे और चौखट को खटका रहे हैं लेकिन सरकार उस बदनसीब बेटी के नाम पर एक जगह का नामकरण करके अपनी जिम्मेदारी से मुक्त होना चाहती है.

एक साल बाद भी इंसाफ नहीं-

उत्तराखंड के बहुचर्चित अंकिता भंडारी हत्याकांड को  एक साल पूरा हो गया है। इस मर्डर केस की गूंज पूरे उत्तराखंड में सुनाई दी थी। 19 साल की अंकिता के साथ युवकों की हैवानियत की कहानी ने लोगों को हिलाकर रख दिया था। अंकिता एक रिजॉर्ट मे रिसेप्शनिस्ट थी। उसकी हत्या सिर्फ इसलिए कर दी गई थी, क्योंकि उस पर रिजॉट में आने वाले VIP गेस्ट को स्पेशल सर्विस देने का दबाव बनाया गया था.. जिसे उसने मना कर दिया,,ये रिजॉर्ट भी बीजेपी नेता के बेटे का था और अपराधी भी खुद बीजेपी नेता का बेटा,,,,केस में भाजपा नेता विनोद आर्य के बेटे पुलकित आर्य पर रेप और हत्या के आरोप लगे, जिसमें सौरभ भास्कर और अंकित गुप्ता ने उसकी मदद की।पुलिस ने आरोपियों को दबोच कर सख्ती से पूछताछ की तो उन्होंने गुनाह कबूल लिया था।

आखिर इतनी देरी क्यों-

सवाल ये खड़ा होता है कि जब अपराधी अपना गुनाह कबूल कर चुके हैं, जांच टीम  दावा कर रही थी  कि टीम के पास पुरे सबूत मौजूद हैं,तो फिर अंकिता को एक साल बाद भी न्याय क्यों नहीं मिल पाया,न्याय मिलने में इतनी देरी क्यों ? अंकिता के माता -पिता ये दावा करते हैं कि स्थानीय विधायक ने रातो रात रिजॉर्ट पर बुलडोजर चला कर सबूत नष्ट किये लेकिन आज भी धाकड़ मुख़्यमंत्री ने अपनी विधायक से इसको लेकर कोई स्पष्टीकरण नहीं मांगा,ऐसे में ये भी संशय पैदा होता है कि क्या बीजेपी नेता का बेटा होने की वजह से अंकिता को न्याय मिलने में देरी हो रही है,,पूरा प्रदेश उस VIP का नाम जानना चाहती है जिसको स्पेशल सर्विस के नाम पर अंकिता पर दबाव बनाया जा रहा था,आखिर क्यों सरकार उस VIP का नाम सार्वजनिक नहीं करना चाह रही.

कई बयानों में खुलासा फिर भी न्याय नहीं-

हत्या से पहले अंकिता पर जो बीती उसका खुलासा गवाहों के बयान में हुआ है। एक  रिपोर्ट के मुताबिक अंकिता भंडारी का लगातार सेक्सुअल हरासमेंट हो रहा था। इतना ही नहीं हत्या से पहले उसके साथ रेप भी हुआ। गवाहों के बयान के मुताबिक पुलकित आर्य की बर्थडे पार्टी के दिन अंकिता को कोल्ड ड्रिंक में शराब मिलाकर पिलाई गई। जब वो बेहोश हो गई तो उसके साथ दुष्कर्म किया गया। सौरभ भास्कर इस करतूत में शामिल था। 108 नंबर कमरे में अंकिता के साथ दुष्कर्म हुआ था, पुलकित ने भी उसके साथ गलत हरकते की। ये लोग उसका यौन शोषण कर रहे थे, बाद में उसे वीआईपी को सौंपने की भी प्लानिंग कर रहे थे।

क्या ये है सरकार का न्याय-

अब जब हत्याकांड को एक साल हो गया है तो मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने अंकिता भंडारी के नाम पर डोभ श्रीकोट स्थित राजकीय नर्सिंग कॉलेज का नाम रखने की घोषणा कर दी, लेकिन आरोपियों को अभी तक सजा नहीं हुई।

 

अभी कुछ दिन पहले ही उत्तराखंड में एक सूचना सामने आयी है कि किस तरह बीजेपी की डबल इंजन की सरकार में 2021 से 2023 तक 38 सौ  से अधिक महिलाएं गायब हो गयी है, क्या इस तरह  मोदी सरकार के धाकड़ मुख़्यमंत्री बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ का नारा सफल बनाएंगे,ऐसे हालातों को देख तो लगता है कि जब बेटी बचेगी ही नहीं तो पढ़ने का तो सवाल ही पैदा नहीं होता.

पूरे प्रदेश में आक्रोश- 

अंकिता भंडारी हत्याकांड से पुरे प्रदेश के लोगों में रोष व्याप्त है,पहाड़ की इस बेटी से यहां के सभी लोगों की भावनाएं जुड़ी हुई हैं,लोगों का गुस्सा सड़कों पर भी फूटता दिखाई देता है, लोग सरकार की मंशा पर ही सवाल उठा रहे हैं, विपक्ष भी लगातार इस मुद्दे पर सरकार को घेरता आ रहा है,लेकिन भाजपा उन पर राजनीति करने का आरोप जरूर लगाती है.

2024 में भाजपा के लिए बड़ी दिक्कत-

लेकिन ये तय है कि जितनी देर अंकिता को न्याय मिलने में हो रही है,उससे सरकार की छवि को धीरे धीरे नुकसान हो रहा है,क्योकि जब हत्याकांड सामने आया था तब भी किसी भाजपा नेता ने इस पर खुल कर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी, जिससे जनता में पहले ही एक मेसेज जा चुका है,,,अभी भी अंकिता को न्याय न मिलना 2024 में भाजपा के सामने एक बड़ा मुद्दा बनकर उठेगा,,,जो कम से कम भाजपा के सबसे मजबूत गढ़ माने जाने वाली पौड़ी लोकसभा सीट पर बड़ा असर डालेगा,क्योकि अंकिता इसी सीट से आती है,जहां के लोग इस घटना से आज भी बेहद आक्रोशित हैं.