Category Archive : अपराध

मणिपुर की आग से 24 तबाह, दक्षिण में ढहता भाजपा का किला…   

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मणिपुर हिंसा का भाजपा की दक्षिण की राजनीति पर असर दिखना शुरू हो गया है, वो लोग, जिन्हें उनके समुदाय के नेताओं के ये कहने से कोई आपत्ति नहीं थी कि बीजेपी से अल्पसंख्यकों को कोई दिक्कत नहीं है, उनके  सुर भी अब पूरी तरह से बदलते हुए दिखाई देते हैं,  पिछले कुछ हफ्तों से इस समुदाय के लोग मणिपुर में हो रहे हमलों, हत्याओं और चर्चों को जलाए जाने के खिलाफ धरना प्रदर्शन कर रहे हैं जिनमें से कुछ प्रदर्शन ऐसे हैं जिनकी अगुवाई खुद वहां के पादरियों ने की है और लगातार कर भी रहे हैं. राज्य में चर्चों का प्रशासन देखने वाली संस्था केरल कैथोलिक बिशप काउंसिल (केसीबीसी) ने तो यहां तक कहा है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इतने समय तक क्यों चुप्पी साधे रखी,, कुल मिलाकर केरल में जो समुदाय भाजपा के साथ दिखाई देता था अब वो उनसे दूरी बनाने लगा है। केरल ही नहीं, अब के हालात में मणिपुर में रहने वाले अधिकतर नागरिक जो या तो कुकी समुदाय से हैं या फिर मैतई से, कहीं न कहीं ये दूरी उनके मन में भी होगी, ऐसा वहां के हालात को देखकर महसूस किया जा सकता है

 

मणिपुर मामले जब फिर कुछ नहीं बोले PM-  
 
100 दिन से अधिक समय तक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक बार 36 सेकंड और दूसरी बार तकरीबन 3 मिनट से कम समय ही निकाला है मणिपुर के मुद्दे पर बोलने के लिए, ये माना जा रहा था की संसद में अविश्वास प्रस्ताव के दौरान जब  प्रधानमंत्री  नरेंद्र मोदी बोलेंगे तो न केवल मणिपुर के लिए ज्यादा से ज्यादा केंद्रित होकर अपना भाषण देंगे बल्कि उम्मीद ये भी की जा रही थी कि तुरंत कोई बड़ा कदम उठाकर मणिपुर की जनता के जख्मों पर मरहम भी रखेंगे, पर न तो वहां हुई मौत के आंकड़ों पर और न ही नग्न अवस्था में परेड करवाई गयी महिलाओं के प्रति कोई गंभीर संवेदना दिखाई दी. अपने भाषण के दौरान उन्होंने ये जरुर कहा की अमित भाई यानी देश के गृहमंत्री अमित शाह इस मुद्दे पर सब कुछ पहले ही बोल चुके हैं
 2024 चुनाव में डाल सकता है असर- 

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का लगभग पूरा भाषण हंसी-ठट्टे, कांग्रेस को कोसने, विपक्षी दलों की असफलता, इंडिया को घमंडिया कहने में ही गुजर गया. सत्ता पक्ष का ये रवैया 2024 के लोकसभा चुनाव में खासा असर डाल सकता है. खासकर पूर्वोत्तर राज्यों में जहां पर अल्पसंख्यकों की यानी ईसाइयों की संख्या थोड़ी ज्यादा है.  गौरतलब है की इन अल्पसंख्यकों के वोट बैंक पर बहुत पहले से भाजपा की नजर रही है, और इस वोट बैंक को हासिल करने में पूर्व में भाजपा कामयाब भी हुई है, मगर हालात अब थोड़े जुदा हैं. याद कीजिए जब एक वक्त ऐसा भी था की प्रधानमंत्री ने पूर्वोत्तर के तीन राज्यों पर जीत के बाद अपनी सरकार बनाने के बाद कहा था, पूर्वोत्तर न दिल्ली से दूर है ना मेरे दिल से… पर 100 दिन से भी अधिक समय तक मणिपुर से दूरी बनाना ये संकेत जरुर देता है की दिल और दिल्ली दोनो से कम से कम मणिपुर से तो दूर ही है ।   


क्या कहती है BBC की रिपोर्ट- 

बीबीसी की एक  रिपोर्ट के अनुसार केरल के लोगों का कहना है कि “मणिपुर के लोग इसी भारत के सम्मानित नागरिक हैं. उनके घर जला दिए गए हैं और अब दिखाने के लिए उनके पास कोई रिकॉर्ड भी नहीं बचा है हालात ये हैं कि वो भारतीय हैं. ये साबित करना भी अब उनके लिए मुश्किल हो सकता है, आखिर वो अपनी पहचान कैसे साबित करेंगे बिना कागजों के, अपनी ही ज़मीन पर बाहरी होते ये लोग दोनो तरफ से हैं चाहे फिर वो कुकी समुदाय हो या फिर मैतई… ”राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि ईसाई समुदाय में कांग्रेस नीत यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट  के मजबूत आधार में सेंध लगाने के लिए बीजेपी के मेलजोल कार्यक्रम को केरल में ‘तगड़ा झटका’ लगा है.आपको बता दें कि राज्य में अल्पसंख्यकों की आबादी लगभग 46% है, जिसमें 26.56% मुसलमान और 18.38% ईसाई हैं

एक ऐसा भी समय रहा है, जब सीपीएम नीत लेफ्ट डेमोक्रेटिक फ्रंट (एलडीएफ़) इन दोनों समुदायों से वोट हासिल करने में सफल रहा. लेकिन आम तौर पर अल्पसंख्यकों का वोट यूडीएफ के साथ ही रहा है. बीजेपी इसी में सेंध लगाने की कोशिश में थी, जिसमे वो काफी हद तक कामयाब होती भी दिखाई दे रही थी,लेकिन मणिपुर की हिंसा ने इन कोशिशों पर मानो पानी फेर दिया है।


क्या कहते हैं राजनीतिक विश्लेषक- 

राजनीतिक विश्लेषक एमजी राधाकृष्णन के अनुसार, “मणिपुर निश्चित रूप से बीजेपी के लिए एक झटका है, जो कि ईसाई वोटरों को रिझाने की कोशिश करती रही है. पिछले कुछ समय से वे इस ओर अच्छी खासी सफलता भी हासिल करती दिखाई दे रही थी. ”एमजी राधाकृष्णन कहते हैं, “अभी पिछले ईस्टर में ही कार्डिनल जॉर्ज एलेनचेरी ने सार्वजनिक रूप से कहा था कि बीजेपी बहुत अच्छी है और अल्पसंख्यकों को इस पार्टी से कोई दिक्कत नहीं है. इससे पहले एक और बिशप ने सार्वजनिक रूप से कहा था कि अगर केंद्र सरकार रबर की सही कीमत दिलाए तो केरल से एक बीजेपी सांसद भेजा जा सकता है


2024 चुनाव में बीजेपी को लग सकता है झटका-

पूर्वोत्तर राज्यों में अल्पसंख्यक वोट कितने महत्वपूर्ण हैं उसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि ईसाई समुदाय को अपनी तरफ लाने के अभियान की बागडोर खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने हाथ में ले रखी थी. चाहे वो पोप फ़्रांसिस को भारत आमंत्रित करना हो या मलंकारा चर्च में 400 साल पुराने विवाद को हल करने की कोशिश हो या इसी साल अप्रैल में केरल में आठ प्रमुख चर्चों के प्रमुखों के साथ डिनर हो.  इसी डिनर में भारत के सबसे बड़े सायरो मालाबार चर्च के प्रमुख कार्डिनल एलेनचेरी ने प्रधानमंत्री की भूरि-भूरि प्रशंसा की थी. इसके बाद ही एक के बाद एक बिशप ने विवादास्पद बयान दिए थे. एक बिशप ने ईसाइयों को ‘नार्को टेररिज़्म’ के भ्रम में फंसने को लेकर चेताया था जबकि दूसरे ने लव जिहाद को लेकर सावधानी बरतने की बात कही थी.लेकिन लगता है मणिपुर हिंसा ने इन सब कोशिशों पर एक झटके में पानी फेर दिया है।


मणिपुर की घटना से बीजेपी को झटका- 

एमजी राधाकृष्णन ने कहा कि समुदाय में बीजेपी समर्थक रवैया दिखाई देता रहा है. समुदाय के ख़ासकर संपन्न लोगों में सोशल मीडिया पर इस्लामोफोबिया अभियान चल रहा है और समाज में बीजेपी के प्रति नरम रुख साफ़ दिखता है.. वो कहते हैं, “कुल मिलाकर बीजेपी बहुत आरामदायक स्थिति में थी. लेकिन अब मणिपुर की घटना ने उन्हें झटका दिया है, चर्च सत्तारूढ़ पार्टी के ख़िलाफ़ खुलकर सामने आ गए हैं.और अब  इस रिश्ते में अब बड़ी बाधा खड़ी हो गई है.”  राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि “इस हालात में ईसाई समुदाय में बीजेपी का प्रचार ठप पड़ सकता है क्योंकि ईसाई नेतृत्व सार्वजनिक रूप से बीजेपी का समर्थन करने का बहाना नहीं ढूंढ पाएंगे.”“मणिपुर की घटनाओं से अब एक जटिल स्थिति पैदा हो गई है. एक छोटा समूह था जो बीजेपी की ओर झुकाव रख रखा था. अब उन्हें फिर से अपना मन बनाना पड़ेगा कि वो बीजेपी के साथ हैं या नहीं

क्या कहते हैं लेखक राधाकृष्णन-

लेखक और एकेडमिक केएस राधाकृष्णन कहते हैं कि “ईसाई समुदाय के पास किसी भी संगठन या विचारधारा के साथ स्थायी राजनीतिक वफादारी नहीं है. वे अपने हित देखते हैं. अगर वे सोचते हैं कि बीजेपी उनका शुभचिंतक है तो वे उसका समर्थन कर देंगे. अगर ये उनके लिए फायदेमंद होगा तो वो बीजेपी के साथ चले जाएंगे.” उनके मुताबिक, “ईसाई समुदाय कांग्रेस और एलडीएफ दोनों का समर्थन कर चुका है. इन सबके बीच कांग्रेस परिस्थितियों पर बारीक नज़र बनाए हुए है. एर्नाकुलम से कांग्रेस के सांसद हिबी इडेन ने कहा, “मणिपुर के बाद, बीजेपी का समर्थन करने वाले कुछ ईसाई नेता समझ गए कि उस पार्टी का अल्पसंख्यकों के प्रति यही बुनियादी बर्ताव है.”

एमजी राधाकृष्णन का कहना है कि ईसाई समुदाय में बीजेपी समर्थक कूटनीतिक रूप से कम मुखर रहेंगे. जब मणिपुर मुद्दा खत्म हो जाएगा, वे बीजेपी के साथ जाने का कोई और बहाना ढूंढ लेंगे. लेकिन 2024 के लिए तो ये मुश्किल होगा क्योंकि अब बहुत समय बचा नहीं है. इसलिए सार्वजनिक रूप से वो कोई पक्ष नहीं लेंगे.  फ़ादर जैकब पालाकाप्पिल्ली कहते हैं, “मणिपुर के हालात के बारे में हम बहुत दुखी और सदमे में हैं. प्रधानमंत्री ने पीड़ितों को ढांढस तक नहीं बंधाया. शांति के लिए हम किस से कहेंगे


पूरे देश में मणिपुर हिंसा का असर- 

ये वो तमाम घटनाक्रम और बयान है जो बताते हैं कि मणिपुर में हिंसा का असर अब राजनीतिक रूप से भी दिखना शुरू हो गया है,  और साथ ही  2024 में बीजेपी को यहां झटका लग सकता है। भाजपा दक्षिणी राज्यों में अपना आधार पहले ही खोती दिखाई दे रही है. और मणिपुर की घटना से पूर्वोत्तर में भी वोट बैंक पर असर पड़ना तय माना जा रहा है.सिर्फ दक्षिण ही नहीं बल्कि देश के कई ऐसे राज्य जहां पर अल्पसंख्यक बहुतायत में हैं याद रहे ये अल्पसंख्यक कहने से मतलब सिर्फ मुस्लिम बाहुल्य क्षेत्र ही नहीं बल्कि अन्य अल्पसंख्यक समुदाय पर भी असर पड़ना तय माना जा रहा है.. क्योकिं मणिपुर हिंसा से सरकार की छवि न केवल आसपास के राज्यों में खराब हुई है बल्कि पूरे देश मे इसका असर पड़ा है, जैसे केरल में ये असर देखने को मिल रहा रहा है. मोदी सरकार से पहले ही किसान, बेरोजगार, महंगाई से त्रस्त लोग नाराज हैं

 

हत्या, बलात्कार, सजा और फिर रिहाई, अब कोर्ट में फिर सुनवाई…

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पिछले  साल स्वतंत्रता दिवस के भाषण में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भारत के लोगों से महिलाओं के प्रति अपना रवैया बदलने की गुज़ारिश की. उन्होंने कहा था कि महिला सशक्तिकरण के लिए महिलाओं को इज्जत देना बहुत ज़रूरी है. उन्होंने कहा था कि , “नारी का गौरव राष्ट्र के सपने पूरे करने में बहुत बड़ी पूंजी बनने वाला है. पीएम मोदी के इस बयान की बहुत तारीफ की गई और महिला अधिकारों के लिए इसे एक ठोस बयान बताया गया. लेकिन इस बयान के कुछ ही देर बाद, उसी दिन बिलकिस बानो गैंगरेप मामले के 11 दोषियों को गुजरात सरकार की एक कमेटी ने गोधरा जेल से रिहा कर दिया. साल 2002 में गोधरा ट्रेन जलाए जाने के बाद ये केस काफ़ी चर्चा में था.

 

क्या था बिलकिस बानो केस-

2002 के गुजरात  दंगों के दौरान बिलकिस बानो के साथ गैंगरेप करने और उनके परिवार के सात सदस्यों की हत्या करने के लिए 11 दोषियों को उम्रकैद की सजा सुनाई गई थी. लेकिन गुजरात सरकार ने बीते साल 15 अगस्त को उन्हें रिहा कर दिया था. 27 फरवरी 2002 को भीड़ ने बिलकिस बानो और उनके परिवार पर तब हमला किया था जब वो भाग रहे थे. उन्होंने बिलकिस का गैंगरेप किया और उनकी तीन साल की बेटी समेत परिवार के 14 लोगों की हत्या कर दी थी ,, उस वक्त राज्य में बीजेपी की सरकार थी, अभी भी बीजेपी सत्ता में है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तब गुजरात के मुख्यमंत्री थे. विपक्षी पार्टियों ने दोषियों की रिहाई को लेकर सरकार की काफ़ी आलोचना की थी, लेकिन बीजेपी ने इस पर  कुछ नहीं कहा, न गुजरात में और न ही केंद्र में।

 

11 दोषियों को किया गया था रिहा-

उम्रकैद की सजा काट रहे 11 दोषियों को छोड़ने के गुजरात सरकार के फैसले की देशभर में आलोचना हुई थी .सज़ायाफ्ता दोषियों के जेल से बाहर आने के बाद माला और मिठाइयों से उनके स्वागत के वीडियो वायरल हुए थे , जिसके बाद कानूनी, सामाजिक और राजनीतिक दृष्टिकोण से भी इस फैसले की व्यापक रूप से निंदा आज भी की जा रही है. सालों तक न्याय के लिए संघर्ष करने वाली बिलकिस गुजरात दंगों में अल्पसंख्यकों और महिलाओं के साथ होने वाले अत्याचारों का चेहरा बन गई थीं। 

 

दोषियों को रिहा कर दिया गया था- 

जब आनंदीबेन पटेल 2014 में गुजरात की मुख्यमंत्री थीं तो उन्होंने महिलाओं से जुड़े किसी भी अपराध में रियायत नहीं देने का फ़ैसला किया था. उसके बाद ऐसे अपराधों में दोषी पाए गए वो लोग जो 20 साल से अधिक जेल में बिता चुके थे, उन्हें नहीं छोड़ा गया. लेकिन बिलकिस बानो मामले में, 1992 और 2014 दोनों के सर्कुलर को नजरअंदाज करते हुए दोषियों को रिहा कर दिया गया. गुजरात की जेलों में आज महिला संबंधित अपराधों में लगभग 450 दोषी बंद हैं. उन सभी को रिहा किया जा सकता था. लेकिन ऐसा नहीं हुआ, सिर्फ़ इन 11 लोगों को छोड़ा गया। 

सुप्रीम कोर्ट की पीठ कर रही है मामले की सुनवाई-

बिलकिस बानो ने सीपीआई नेता सुभाषिनी अली, तृणमूल सांसद महुआ मोइत्रा के साथ मिल कर इस फ़ैसले को चुनौती दी थी, जिस पर सुप्रीम कोर्ट की पीठ अब सुनवाई कर रही है.. बिलकिस बानो ने कोर्ट को बताया कि इन दोषियों ने उनका कई बार बलात्कार किया और उनके पूरे परिवार की हत्या कर दी थी, इसलिए सज़ा से पहले रिहाई के गुजरात सरकार के फैसले को पलटा जाए.  बिलकिस बानो की वकील शोभा गुप्ता ने कहा, “घटना इतनी दर्दनाक थी कि बिलकिस आज भी पुरुषों का सामना करने से डरती हैं. भीड़ में या अजनबियों के आसपास नहीं रह सकतीं. वो अब तक उस ट्रॉमा से उबर नहीं पाए हैं. हमें लगा था कि न्याय मिल गया है, लेकिन फिर ये हो गया। 

सभी को कोर्ट के फैसले का इंतजार- 

बिलकिस की वकील ने कोर्ट से कहा, “अपराध की प्रकृति इतनी भयावह और क्रूर थी, गर्भवती होने पर बिलकिस के साथ गैंगरेप किया गया. बिलकिस की पहली बेटी को चट्टान पर पटक-पटक कर मार डाला गया. बिलकिस की माँ के साथ गैंगरेप किया गया और उनकी हत्या कर दी गई. चचेरी बहन के साथ भी गैंगरेप किया गया. याचिकाकर्ता के चार नाबालिग भाई-बहनों की हत्या कर दी गई थी.. ”शोभा गुप्ता ने कहा कि CRPC  की धारा 432 के तहत सीबीआई ने ट्रायल कोर्ट के जज से इस रिहाई पर उनकी राय पूछी थी. जज ने एक विस्तृत राय देते हुए कहा कि दोषी किसी भी उदारता या रिहाई के हकदार नहीं हैं. यहां तक कि सीबीआई ने ये भी कहा कि वे किसी भी तरह की नरमी के हकदार नहीं हैं. इसके बावजूद उन्हें रिहा किया गया.

अभी कोर्ट में इस मामले की सुनवाई चल रही है देखना होगा की कोर्ट इस पर क्या फैसला देती है ? लेकिन कुल मिलाकर इस मामले में एक बार फिर नया मोड़ आ गया है,, अगर कोर्ट दोबारा बिलकिस के पक्ष में फैसला सुनाती है तो गुजरात सरकार के उनके रिहाई देने के फैसले पर फिर कई सवाल उठने शुरू हो जायेंगे और कहीं न कहीं विपक्ष को एक बार फिर सरकार को घेरने का मुद्दा मिल जायेगा।

 

मणिपुर मामले में CJI ने सरकार से किए सख्त सवाल, कहा- 14 दिन तक पुलिस ने कुछ क्यों नहीं किया…

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मणिपुर में वायरल वीडियो में जिसमें दो महिलाओं का यौन उत्पीड़न हुआ था. और उन्हें निर्वस्त्र कर घुमाया गया था.  दो महिलाओं के साथ हुई उस दरिंदगी से देश को शर्मसार करने वाले मामले में सुप्रीम कोर्ट में आज यानी 31 जुलाई को सुनवाई हुई. जिस पर सुप्रीम कोर्ट ने सरकार से कई सवाल किए।

CJI चंद्रचूड़ ने सरकार से पूछे कई सख्त सवाल- 

सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने सरकार से पूछा की 4 मई की घटना पर पुलिस ने 18 मई को जाकर FIR दर्ज की, आखिर 14 दिन तक पुलिस ने कुछ क्यों नहीं किया? वायरल वीडियों में महिलाओं को जब निर्वस्त्र कर घुमाया जा रहा था,, तब पुलिस कहां थी और कुछ क्यों नहीं कर पाई?

1 अगस्त को ही होगी मामले की अगली सुनवाई- CJI

डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा की यदि महिलाओं पर अपराध के 1000 मामले दर्ज होते हैं, तो क्या सभी जांच सीबीआई कर पाएगी ? साथ ही इस पर सरकार की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि जांच टीम में सीबीआई की एक जॉइंट डायरेक्टर रैंक की महिला अधिकारी को रखा जाएगा. इस पर वहीं, सरकार की ओर से पेश हुए अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमन ने कहा कि वो मंगलवार यानी, 1 अगस्त को हर केस पर तथ्यों के साथ जानकारी देंगे।

SC ने सभी FIR की जानकारी मांगी- 

 

CJI चंद्रचूड़ ने कहा की हमें जानना है कि 6000 FIR का वर्गीकरण क्या है, और इसमें कितने जीरो FIR है. कितनी अभी तक गिरफ्तारी हुई, और अभी तक क्या-क्या कार्रवाई हुई है, डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा की हम कल फिर सुनवाई करेंगे. क्योंकि परसों से अनुच्छेद 370 पर सुनवाई शुरु हो रही है. इसलिए इस मामले पर कल ही सुनवाई होगी.. वहीं सरकार की ओर से पेश सॉलिसिटर तुषार मेहता ने कहा, “कल सुबह तक FIR का वर्गीकरण उपलब्ध करवा पाना मुश्किल होगा।

CJI ने कहा कि पीड़ित महिलाओं की शिकायत कौन दर्ज करेगा. एक महिला जो राहत शिविर में रह रही है और अपने पिता या भाई की हत्या से डरी हुई है.  क्या ऐसा हो पाएगा कि न्यायिक प्रक्रिया उस तक पहुंच सके?”  चंद्रचूड़ ने कहा कि याचिकाकर्ताओं ने SIT के लिए भी नाम दिए हैं. आप इस पर भी जवाब दीजिए. अपनी तरफ से नाम का सुझाव दीजिए. या तो हम अपनी तरफ से कमिटी बनाएंगे, जिसमें पूर्व महिला जज भी होंगी।

 

CJI ने निर्भया कांड का भी किया जिक्र- 
सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि पीड़ितों के बयान हैं कि उन्हें पुलिस ने भीड़ को सौंपा था. ये निर्भया जैसी स्थिति नहीं है, जिसमें एक बलात्कार हुआ था, वो भी काफी भयावह था लेकिन इससे अलग था. यहां हम प्रणालीगत हिंसा से निपट रहे हैं, जिसे आईपीसी (IPC) एक अलग अपराध मानता है।

क्या कहा मैतेई समुदाय के वकील ने- 

वहीं, सीजेआई ने मैतेई समुदाय के वकील से कहा कि इस बात पर आश्वस्त रहें कि किसी भी समुदाय के प्रति हिंसा हुई हो, हम उसे गंभीरता से लेंगे यह सही है कि ज़्यादातर याचिकाकर्ता पक्ष कुकी समुदाय की तरफ से हैं. उनके वकील अपनी बात रख रहे हैं लेकिन हम पूरी तस्वीर देख रहे हैं. ” सीजेआई ने आगे कहा, “निश्चित रूप से मैतेई समुदाय के लोग भी पीड़ित होंगे. हिंसा दोतरफा होती है इसलिए भी हम एफआईआर के वर्गीकरण को देखना चाहते हैं. इस पर मैतेई समुदाय के एक वकील ने कहा, “वहां लोगों से हथियार जब्त किए जाने की जरूरत है. कोर्ट इस पर भी विचार करे।

सीजेआई ने मैतेई समुदाय के वकील की बात पर कहा, “हां, ये भी जरूरी है. इस बात पर भी पूरा ध्यान दिया जाएगा. उन्होंने कहा कि मामले की सुनवाई अब 1 अगस्त को दोपहर 2 बजे होगी।

बीच बाजार में भी सुरक्षित नहीं हैं उत्तराखंड की बेटियां, मणिपुर जैसे हालात अब यहां भी…

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क्या उत्तराखंड ने अंकिता भंडारी केस से कुछ सीख ली ? क्या मणिपुर बनने की राह पर है उत्तराखंड? उत्तराखंड की कानून व्यवस्था और सरकार के खोखले दावे तो यहीं दर्शाते हैं, ऐसा कहने को हम तब मजबूर हो जाते हैं जब ये सामने आता है कि देहरादून जिसे राजधानी भी कहते हैं और वहां के व्यस्ततम चौराहे से एक खबर आती है कि भरे बाजार में अपनी दुकान पर काम कर रही लड़की के साथ सरेआम एक ऐसी घटना हो जाती है जो न केवल हमे डराती है बल्कि आसपास के जितने भी लोग इस घटना को देखते हैं डर से सिहर उठते हैं और हमें  ये सोचने को मजबूर करती है कि क्या लडकिया इस प्रदेश में सुरक्षित हैं, और कानून व्यवस्था की बात करने वाला पुलिस  प्रशासन कहाँ सोया है, बेटी बचाओ ,बेटी पढ़ाओ वाली डबल इंजन सरकार कहाँ सोई है?

देहरादून जिसे इस प्रदेश की  राजधानी भी कहा जाता है, जहां इस प्रदेश के मुखिया से लेकर उनके मंत्री और पूरी सरकार सहित सभी विभाग और अधिकारी बैठते हैं,कानून से जुड़े बड़े-बड़े अधिकारी भी यहीं रहते हैं अगर वहां पर दिन दहाड़े एक बेटी के साथ ऐसा होता है तो सीधा सवाल यहां की सरकार और पुलिस की कानून व्यवस्था पर उठते हैं ।
दुकानदार भी दहशत में- 
दरसल पूरा मामला कुछ इस तरह है कि देहरादून के डीबीएस कालेज के सामने टिहरी जिले की एक युवती एक साइबर कैफे की दुकान चलाती है, अचानक दिन में 20 से 25 लड़के मुहँ ढक कर वहां पर आते हैं और दुकान के अंदर घुस जाते हैं,उस युवती के गल्ले से पैसे निकालते हैं और उस युवती को घसीटते है, और ये घटना कोई रात को नहीं भरी दोपहरी में होती है, दूर गाँव से आकर अपना स्वरोजगार कर रही युवती इस घटना के बाद इतने ख़ौफ़ में है और न केवल युवती बल्कि आसपास के दुकानदार भी दहशत में है,अब आप सोचिए अगर भरी दोपहरी में इतनी भीड़ भाड़ वाले इलाके में भी अगर एक पाहड़ कि बेटी सुरक्षित नहीं हैं तो फिर अंदाजा लगाया जा सकता है कि बेटियां उत्तराखंड में कितनी सुरक्षित है,,और हमारी मित्र पुलिस शिकायत के बाद भी कई घण्टो तक घटना स्थल पर तक आने की जहमत नहीं उठाती, जबकि पास ही ssp ऑफिस से लेकर थाना चौकी मौजूद हो, जो दिखाता है कि हमारी पुलिस कितनी एक्टिव है। जब जाकर ये मामला मीडिया में उछला तब जाकर पुलिस ने इस पर रिपोर्ट लिखी।

 

कब तक महिलाएं सुरक्षित नहीं- 

 

अब सवाल ये उठता है कि क्या पुलिस ये इंतजार कर रही थी कि मणिपुर या अंकिता भंडारी जैसी घटना इस युवती के साथ हो जाती तो क्या तब जाकर पुलिस यहां कोई कारवाही करती,और क्या इस तरह बेटी बचेगी और बेटी पढ़ेगी,जब राजधानी और बीच बाजार में एक युवती जो अपने परिवार का सहारा बनने की कोशिश कर रही हो उसके साथ ये सब हो जाता है तो क्या इस तरह के माहौल में कोई और बेटी घर से बाहर आकर स्वरोजगार कर सकती है, इस तरह के माहौल में क्या कोई आत्म निर्भर और स्वरोजगार करने की हिम्मत करेगा.

इतना ही नहीं आज सुबह ही खबर आयी है कि राजधानी देहरादून के VVIP  इलाकों में शुमार कैंट रोड में एक महिला का शव मिला है. महिला के साथ दुराचार के बाद हत्या की आशंका व्यक्त की जा रही है. हालांकि पुलिस ने  महिला का शव बरामद करते हुए एक संदिग्ध युवक को भी हिरासत में ले लिया है, और मामले की जांच की जा रही है. आपको बता दें कि  सेंटीरियो मॉल के सामने महिला का शव मिलने से आस-पास के लोगों में सनसनी फैल गयी। महिला के सिर और पैर में गहरी चोट के निशान है। सूचना मिलने पर पुलिस ने मौके पर पहुंचकर शव को बरामद किया। जिसके बाद पुलिस ने बॉडी मोर्चरी में रखवाई। आशंका जताई जा रही है कि महिला के साथ दुराचार के बाद हत्या कर दी गई।

 

आरोपियों की तलाश जारी- 
एक ऐसी ही खबर हरिद्वार श्यामपुर थाना क्षेत्र से आयी है, जहां एक किशोरी को रुड़की में तीन दिन तक बंधक बनाकर उससे सामूहिक दुष्कर्म का मामला भी सामने आया है। बहादराबाद क्षेत्र में श्यामपुर क्षेत्र के एक गांव निवासी किशोरी दो महीने से दिहाड़ी मजदूरी करने के लिए आ रही थी। दिहाड़ी पर आने के बाद चार दिन पहले उसका नंबर बंद हो गया। संपर्क न होने पर परिजन बहाराबाद पहुंचे तो किशोरी उन्हें नहीं मिली। परिजनों ने पुलिस को शिकायत दी। श्यामपुर पुलिस ने गुमशुदगी दर्ज कर तलाश शुरू की। दिहाड़ी मजदूरी करने वाली किशोरी को उसकी परिचित युवती ने तीन युवकों के हवाले किया था। जबकि आरोपी युवक और युवती की तलाश शुरू कर दी गई है। पुलिस ने शिकायत मिलने के बाद किशोरी को रुड़की से बरामद कर लिया है। पुलिस ने बताया कि आरोपियों की तलाश की जा रही है. जल्द ही उन्हें गिरफ्तार कर लिया जाएगा.  ये पता चलते ही परिजनों के होश उड़ गए। इस घटना ने सरकार और कानून व्यवस्था की  महिला सुरक्षा को लेकर  पोल खोल कर रख दी है. ऐसा ही चलता रहा तो वो दिन भी दूर नहीं जब उत्तराखंड की बेटियों का घर से बाहर आना मुश्किल हो जाएगा।

आखिर महिला आयोग की अध्यक्ष ने मणिपुर में ऐसा क्या देखा जो हो गयी हैरान ?

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देश आज कारगिल शहीदों की याद में विजय दिवस मना रहा है और मणिपुर में आज उसी कारगिल में जीत दिलाने वाला सैनिक इस हिंसा में अपना सब कुछ खो चुका है, लेकिन सरकार ने उसकी कोई सुध लेना उचित नहीं समझा,,,  मणिपुर हिंसा और महिलाओं के साथ हुई अभद्र घटना के बाद अब ऐसा लग रहा है कि मानो सरकार की संवेदनाएँ भी मर चुकी है,  केंद्र और ना ही  राज्य सरकार को उन महिलाओं पर हुए अत्याचार से मानों कोई मतलब नहीं है? ,,,दिल्ली की महिला आयोग की अध्यक्ष ने आखिर मणिपुर में जाकर ऐसा क्या देखा कि वो गुस्से से भर उठी ? मणिपुर में जारी हिंसा को लेकर पुरे विश्व में चर्चा है, मणिपुर का वीडियो वायरल होने के बाद राज्य और केंद्र सरकार की कड़ी आलोचना पुरे देश में हो रही है, लेकिन इतनी हिंसा और महिलाओं के साथ हुई इस अभद्र घटना के बाद  राज्य सरकार और केंद्र सरकार ने अभी तक कोई संवेदनशीलता नहीं दिखाई, उल्टा मणिपुर के मुख़्यमंत्री एन बीरेन सिंह कहते हैं कि ऐसी तो सैकड़ों घटनाएं प्रदेश में इस दौरान हुई है, मुख़्यमंत्री के इस बयान से तो लगता है कि मुख़्यमंत्री को 3 महिलाओं के साथ हुई इस घटना से कोई अधिक फर्क नहीं  पड़ा क्योंकि उनके लिए तो ये उन सैकड़ों घटनाओं की ही तरह है,,,  सवाल आज भी वही बना हुआ है कि क्या इस घटना के बाद राज्य और केंद्र सरकार मणिपुर को लेकर कितनी चिंतित है ? इसका जवाब आपको दिल्ली की महिला आयोग की अध्यक्ष स्वाति मालीवाल उस बयान से मिल जायेंगे जो उन्होंने मणिपुर के उन पीड़ित परिवारों से मिलने के बाद के  दिया।

 

कारगिल युद्ध का एक सैनिक जिसने मणिपुर हिंसा में अपना सब कुछ गंवा दिया – 

कितनी हैरानी की बात है कि मणिपुर में महिलाओं के साथ हुई इस अभद्र घटना के बाद वहां के मुख़्यमंत्री एन बीरेन सिहं को अब तक उन पीड़ितों से मिलने का समय नहीं मिला, न तो मुख़्यमंत्री उन पीड़ितों से मिलने गए और न दर्द से भरे प्रधानमंत्री या उनकी तरफ से कोई नुमाइंदा, हद तो तब और ज्यादा हो गयी जब ये पता चलता है कि मुख़्यमंत्री और प्रधानमंत्री  तो छोड़िये इन लोगों तक कोई सरकारी मदद तक नहीं पहुंची,, हालांकि दिल्ली से एक महिला जो अक्सर महिलाओं पर हो रहे अत्याचार पर अपनी आवाज उठाती है वो इन हिंसाग्रस्त इलाकों में पहुंच कर उन महिलाओं का दर्द कुछ कम करने की कोशिश करती है,,, दिल्ली से इतना लम्बा सफर कर एक महिला तो उन इलाकों में पहुंच सकती है जहां महिलाएं सुरक्षित न हो लेकिन उसी राज्य की सरकार और उनकी कोई राहत वहां तक नहीं पहुंच पाती,,,,वो भी तब जब उन पीड़ित परिवारों में वो लोग भी शामिल हों जिन्होंने देश के लिए सीमाओं पर जंग लड़कर देश को गर्व करने का मौका दिया हो,,,आज देश कारगिल शहीदों की याद में विजय दिवस मना रहा है,जबकि इसी मणिपुर में उन पीड़ितों के बीच आज भी कारगिल वार का एक ऐसा सैनिक हैं जो इस हिंसा में अपना सब कुछ गवां चुका है, भले ही वो  देश की सीमा पर बाहरी दुश्मनों से देश को बचाने के लिए सफल रहा हो  लेकिन देश के अंदर के दुश्मनों से वो अपने परिवार को नहीं बचा पाया,, हमारी सरकार आज हर जगह कारगिल के शहीदों को श्रधांजलि अर्पित कर  रहे हैं, पर इस कारगिल में देश के लिए जी जान से लड़ने वाला एक सैनिक आज इस तरह बर्बाद हो गया लेकिन न वहां की राज्य सरकार और न केंद्र सरकार उसकी कोई सुध ले रही हैं।

 

दिल्ली महिला आयोग की अध्यक्ष ने की पीड़ित परिवार से मुलाकात-

दिल्ली महिला आयोग की अध्यक्ष स्वाति मालीवाल ने महिला आयोग की सदस्य वंदना सिंह के साथ बंदूक की गोलीबारी के बीच चुराचांदपुर, मणिपुर की यात्रा की और यौन हिंसा की पीड़िताओं की मां और पति से मुलाकात की। स्वाति मालीवाल  ने मोड़ रांग और इंफाल जिलों की भी यात्रा की, जहां उन्होंने कई राहत शिविरों में विस्थापित लोगों से बातचीत की। मणिपुर के चुराचांदपुर में लगातार हिंसा और भारी गोलीबारी हो रही है और दो दिन पहले भी वहां एक स्कूल में आग लगा दी गई थी. स्वाति मालीवाल के मुताबिक, मणिपुर सरकार ने उन्हें वहां जाने या हिंसा के पीड़ित लोगों से मिलने में कोई सहायता नहीं दी. ऐसे में स्वाति मालीवाल ने स्वयं अपनी मर्जी से, बिना किसी सुरक्षा के चुराचांदपुर जिले की यात्रा की और हिंसा के पीड़ित लोगों से बातचीत की।

यात्रा के दौरान अपने चुनौतीपूर्ण अनुभव को साझा करते हुए मालीवाल ने दावा किया कि राज्य सरकार ने संघर्ष प्रभावित क्षेत्रों की यात्रा के लिए उनके सहयोग से इनकार कर दिया। स्वाति मालीवाल के साथ मुलाकात को लेकर कुछ वीडियो भी सामने आए हैं। जिसमें पीड़ित परिवार भावुक नजर आ रहा है और स्वाति मालीवाल उन्हें गले लगाकर उनका ढाढ़स बढ़ा रही हैं। स्वाति मालीवाल ने कहा- “मणिपुर की बर्बरता की पीड़ित बेटियों के परिवार से मिली…. इनके ये आंसू बहुत दिन तक सोने नहीं देंगे।

 

 

जरूरत की घड़ी में पूरा देश उनके साथ‘-

पीड़ित परिवार के परिजनों ने बताया कि आज तक न तो मुख्यमंत्री, न ही कोई  कैबिनेट मंत्री और न ही राज्य का कोई वरिष्ठ अधिकारी उनसे मिलने आया है. स्वाति मालीवाल उनसे मिलने वाली पहली थी. उन्होंने बताया कि उन्हें अब तक सरकार से कोई काउंसलिंग, कानूनी सहायता या मुआवजा नहीं मिला है. वे इस बात से नाराज थे कि उनके मामले में किसी भी पुलिस अधिकारी के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की गई. स्वाति मालीवाल ने दोनों से विस्तार से बात की और उन्हें आश्वासन दिया कि वे अकेले नहीं हैं बल्कि जरूरत की घड़ी में पूरा देश उनके साथ है।

 

 

अब तक नहीं मिली कोई सरकारी मदद-

स्वाति मालीवाल ने कहा, “ये तीन दिन मेरे लिए बेहद कठिन रहे. मुझे मणिपुर में प्रवेश करने के लिए सरकार ने किसी भी सहायता से इनकार कर दिया था लेकिन फिर भी मैं बड़े व्यक्तिगत जोखिम पर यहां आई. वायरल वीडियो ने मुझे अंदर तक झकझोर दिया और मैं हर कीमत पर बचे लोगों से मिलना चाहती थी. मुझे स्थानीय लोगों ने बताया कि पीड़ित लोगों के परिवारों से मिलने के लिए चुराचांदपुर की यात्रा करना बहुत कठिन है, फिर भी मैंने भारी गोलीबारी के बीच बिना किसी सुरक्षा के वहां जाने का फैसला किया.”उन्होंने कहा, ”किसी तरह मैं उनसे मिलने में कामयाब रही. वे कल्पना से भी बदतर नरक से गुजरे और यह जानकर बहुत दुख हुआ कि न तो मुख्यमंत्री और न ही कोई सरकारी अधिकारी उनसे मिले. अब तक न ही सरकार की ओर से उन्हें कोई सहयोग दिया गया है. अगर मैं दिल्ली से यहां की यात्रा कर सकती हूं और बिना किसी सुरक्षा के उन तक पहुंच सकती हूं तो निश्चित रूप से मणिपुर के मुख्यमंत्री और उनके मंत्रिमंडल के सदस्य बुलेट प्रूफ कार में जा सकते हैं और उनसे मिल सकते हैं. अब तक उन्हें काउंसलिंग, कानूनी सहायता और मुआवजा क्यों नहीं दिया गया?”

स्वाति मालीवाल ने कहा, ”मणिपुर में हिंसा बेहद परेशान करने वाली है और जहां भी मैं जा रही हूं वहां डरावनी कहानियां हैं जो दिमाग को सुन्न कर देती है. लोगों ने अपने घर और प्रियजनों को खो दिया है और सरकार उनकी रक्षा करने में पूरी तरह से विफल रही है. मुझे लगता है कि केंद्र को तत्काल मणिपुर के मुख्यमंत्री का इस्तीफा मांगना चाहिए.”उन्होंने कहा, ”प्रधानमंत्री को गृह मंत्री और महिला और बाल विकास मंत्री के साथ तत्काल मणिपुर का दौरा करना चाहिए. मणिपुर के लोग बहुत अच्छे और दयालु होते हैं. ये एक खूबसूरत भूमि है. इनकी सुरक्षा के लिए केंद्र से तत्काल कदम उठाए जाने चाहिए.।

 

 

महिला आयोग अध्यक्ष ने केंद्र व राज्य सरकार पर उठाए कई सवाल- 

स्वाति मालीवाल ने मणिपुर के महिला आयोग पर भी कई सवाल उठाए और उनके अधिकार और कर्तव्य उनको याद दिलाए,, स्वाति मालीवाल उन महिला अध्यक्ष में से एक है जो महिला अपराधों से लेकर कई अन्य मामलों में खुल कर सरकारों की आलोचना करती हैं, चाहे वो किसी की भी सरकार हो,,,स्वाति मालीवाल के मणिपुर को लेकर किए इन खुलासों से सरकार की नीयत पर भी कई सवाल उठते हैं, सरकार के इस रवैये से तो लगता है कि मानों न केंद्र और न ही राज्य सरकार किसी को भी इनका दर्द दिखाई नहीं देता क्योकि अगर इनको ये दर्द दिखाई देता तो आखिर क्यों सरकार या कोई सरकारी मदद  अभी तक इन तक नहीं पहुंची ?   इस रवैये से  राज्य सरकार पर तो सवाल उठते ही हैं, लेकिन केंद्र भी सवालों के घेरे में आता है कि आखिर क्यों केंद्र सरकार अब तक बिरेन सरकार से जवाब तलब नहीं कर रही है ?

 

मणिपुर की घटना से पूरा देश शर्मसार !

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भारत देश जिसे भारत माता के नाम से जाना जाता है, जिस देश में महिलाओं के अपमान पर महाभारत हो जाती है. उसी देश के पूर्वोत्तर इलाके मणिपुर से दिल दहलाने वाली घटना सामने आई. जो की इंसानियत को शर्मसार और हैवानियत की हदों को पार कर देने वाली इस घटना का वायरल वीडियो देखकर लोगों की रूह कांप गई. इस वायरल वीडियो में दो महिलाओं को निर्वस्त्र अवस्था में लोगों के बीच घुमाते हुए दिखाया गया. इतना ही नहीं, आरोप ये भी है कि इस खौफनाक परेड कराने से पहले उनके साथ दरिंदगी भी की गई.  इस घटना ने पूरे देश को शर्मसार कर दिया है.  नेताओं से लेकर आम जनता तक, हर कोई इस घटना की कड़ी निंदा कर रहा है.  मणिपुर में पिछले 83 दिनों से हिंसा जारी है। पुलिस ने इस घटना के मुख्य आरोपी को गिरफ्तार कर लिया है. जानकारी के मुताबिक, इस घटना को बीती 4 मई को अंजाम दिया गया था. इस घटना को लेकर हिंसा की आग में जलने वाले मणिपुर का माहौल और बिगड़ गया है. लेकिन देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एक बार भी मणिपुर नहीं गए,भले ही वो विदेश में जाकर भारत का खूब डंका बजाते रहे हों लेकिन ये भी उतना ही सच है कि उन्हीं की सरकार वाले राज्य में पिछले दो महीने से आग लगी है,कई लोग मौत के मुँह में समा गए,हजारों लोग  बेघर हो गए,सैनिकों के हथियार तक छीने जा रहे हैं, इस  घटना की तस्वीर  इतनी विचलित करती  है कि इसको दिखाया भी नहीं जा सकता, केंद्र और राज्य सरकार की नाकामी का इससे बड़ा कारण नहीं हो सकता कि इतने समय से प्रदेश में हिंसा जारी है और न तो राज्य सरकार इस पर कोई ठोस कार्रवाई कर पायी न केंद्र की सरकार। पीएम मोदी ने कहा कि दोषियों को किसी भी हालत में बख्शा नहीं जाएगा। सुप्रीम कोर्ट ने भी इस मामले को स्वत: संज्ञान लिया है। चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने केंद्र और राज्य सरकार को सख्त कार्रवाई के निर्देश दिए है।

 

चार मई की घटना-

दरअसल, मणिपुर इन दिनों जातीय हिंसा की चपेट में है, लेकिन अब एक वीडियो को लेकर मणिपुर के पहाड़ी इलाकों में तनाव फैल गया है, जिसमें दो महिलाओं को निर्वस्त्र कर घुमाया जा रहा है। रिपोर्ट के मुताबिक, यह वीडियो चार मई का है और दोनों महिलाएं कुकी समुदाय से हैं, वहीं जो लोग महिलाओं को निर्वस्त्र कर घुमा रहे हैं वो सभी मैतई समुदाय से हैं। आदिवासी संगठन इंडिजिनस ट्राइबल लीडर्स फोरम ने दोषियों के खिलाफ कार्रवाई करने की मांग की है।

 
 

पहले पीएम मोदी और चीफ जस्टिस की टिप्पणी-

संसद के मानसून सत्र से पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मीडिया से बातचीत की। उन्होंने मणिपुर हिंसा का जिक्र करते हुए आक्रोश व्यक्त किया। प्रधानमंत्री ने कहा, ‘मेरा हृदय पीड़ा से भरा है, क्रोध से भरा है। मणिपुर की जो घटना सामने आई है, वह किसी भी सभ्य समाज के लिए शर्मसार करने वाली घटना है। पाप करने वाले, गुनाह करने वाले, कितने हैं-कौन हैं, यह अपनी जगह है, लेकिन बेइज्जती पूरे देश की हो रही है। 140 करोड़ देशवासियों को शर्मसार होना पड़ रहा है। सभी मुख्यमंत्रियों से आग्रह करता हूं कि वे माताओं-बहनों की रक्षा करने के लिए कठोर से कठोर कदम उठाएं। अपने राज्यों में कानून व्यवस्था को और मजबूत करें। घटना चाहे राजस्थान की हो, छत्तीसगढ़ की हो या मणिपुर की हो, हम राजनीतिक विवाद से ऊपर उठकर कानून व्यवस्था और नारी के सम्मान का ध्यान रखें। किसी भी गुनहगार को बख्शा नहीं जाएगा। मणिपुर की इन बेटियों के साथ जो हुआ है, उसे कभी माफ नहीं किया जा सकता।’
 
चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ –
 
‘हम सरकार को कार्रवाई करने के लिए थोड़ा समय देंगे नहीं तो हम खुद इस मामले में हस्तक्षेप करेंगे। हमारा विचार है कि अदालत को सरकार द्वारा उठाए गए कदमों से अवगत कराया जाना चाहिए ताकि अपराधियों पर हिंसा के लिए मामला दर्ज किया जा सके। मीडिया में जो दिखाया गया है और जो दृश्य सामने आए हैं, वे घोर संवैधानिक उल्लंघन को दर्शाते हैं और महिलाओं को हिंसा के साधन के रूप में इस्तेमाल करके मानव जीवन का उल्लंघन करना संवैधानिक
लोकतंत्र के खिलाफ है।’
 
 
दिगज्ज पत्रकारों के बयान-
 
इस घटना के बाद न केवल राजनीतिक पार्टियों ने बल्कि देश की दिग्गज पत्रकारों ने भी केंद्र और राज्य की सरकारों को आड़े हाथों लिया ..भले ही ये पिछले कई वर्षों में देखने को नहीं मिला हो पर अब दिखाई दिया जो कि इशारा करता है  वाकई घटना कितनी बड़ी है,,,,भले ही पहलवानों के मुद्दों पर या अन्य कई मुद्दों पर ऐसा कोई ट्वीट देखने को पिछले कई वर्षों में नहीं दिखाई दिया ..लेकिन इस बार कई पत्रकारों ने इस पर खुल कर विरोध जताया और सरकार को खूब
खरी खोटी सुनाई।
 
मणिपुर घटना पर फूटा सेलेब्स का गुस्सा-
 
मणिपुर से दिल दहला देने वाली जो वीडियो सामने आया है उस ने पूरे देश को शर्मसार कर दिया है. दो महिलाओं को निर्वस्त्र परेड कराने के  वीडियो पर कई सेलेब्स का भी गुस्सा फूटा है, इस भयावह वीडियो पर अभिनेता अक्षय कुमार ने भी इस घटना की निंदा करते हुए कहा कि दोषियों को सख्त सजा दी जानी चाहिए, वहीं इस पर रिचा चड्ढा, उर्फी जावेद, रेणुका सहारे भी एक्टिव है. उन्होंने भी इस घटना की निंदा की है
 
महिलाओं को नग्न कराकर घूमाने का किन पर लगा है आरोप-
 
रिपोर्ट्स के मुताबिक, वायरल वीडियो में जिन दो महिलाओं को नग्न करके घुमाया जा रहा है, वो कुकी समुदाय की हैं। यह वीडियो चार मई का बताया जा रहा है, जब हिंसा शुरुआती चरण में थी। महिलाओं को निर्वस्त्र कर घुमाने का आरोप मैतई समुदाय के लोगों पर लगा है।
इस मामले में पुलिस ने अज्ञात हथियारबंद बदमाशों के खिलाफ थौबल जिले के नोंगपोक सेकमाई पुलिस स्टेशन में अपहरण, सामूहिक दुष्कर्म और हत्या का मामला दर्ज किया है। उधर, मणिपुर के मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह ने भी मामले की जांच के लिए अलग टीम गठित कर दी है। केंद्र सरकार ने भी राज्य सरकार से इस मसले पर रिपोर्ट मांगी है। केंद्रीय महिला एवं बाल कल्याण मंत्री स्मृति ईरानी ने भी मुख्यमंत्री से बात की। 

 

 
 मणिपुर में क्यों भड़की हिंसा?

इसे समझने के लिए हमें मणिपुर का भौगोलिक स्थिति जानना चाहिए। दरअसल, मणिपुर की राजधानी इम्फाल बिल्कुल बीच में है। ये पूरे प्रदेश का 10% हिस्सा है, जिसमें प्रदेश की 57% आबादी रहती है। बाकी चारों तरफ 90% हिस्से में पहाड़ी इलाके हैं, जहां प्रदेश की 43% आबादी रहती है। इम्फाल घाटी वाले इलाके में मैतेई समुदाय की आबादी ज्यादा है। ये ज्यादातर हिंदू होते हैं। मणिपुर की कुल आबादी में इनकी हिस्सेदारी करीब 53% है। आंकड़ें देखें तो सूबे के कुल 60 विधायकों में से 40 विधायक मैतेई समुदाय से हैं।
वहीं, दूसरी ओर पहाड़ी इलाकों में 33 मान्यता प्राप्त जनजातियां रहती हैं। इनमें प्रमुख रूप से नगा और कुकी जनजाति हैं। ये दोनों जनजातियां मुख्य रूप से ईसाई हैं। इसके अलावा मणिपुर में आठ-आठ प्रतिशत आबादी मुस्लिम और सनमही समुदाय की है।

भारतीय संविधान के आर्टिकल 371C के तहत मणिपुर की पहाड़ी जनजातियों को विशेष दर्जा और सुविधाएं मिली हुई हैं, जो मैतेई समुदाय को नहीं मिलती। ‘लैंड रिफॉर्म एक्ट’ की वजह से मैतेई समुदाय पहाड़ी इलाकों में जमीन खरीदकर बस नहीं सकता। जबकि जनजातियों पर पहाड़ी इलाके से घाटी में आकर बसने पर कोई रोक नहीं है। इससे दोनों समुदायों में मतभेद बढ़े हैं।

 

 
 हिंसा की शुरुआत कब हुई-

मौजूदा तनाव की शुरुआत चुराचंदपुर जिले से हुई। ये राजधानी इम्फाल के दक्षिण में करीब 63 किलोमीटर की दूरी पर है। इस जिले में कुकी आदिवासी ज्यादा हैं। गवर्नमेंट लैंड सर्वे के विरोध में 28 अप्रैल को द इंडिजेनस ट्राइबल लीडर्स फोरम ने चुराचंदपुर में आठ घंटे बंद का ऐलान किया था। देखते ही देखते इस बंद ने हिंसक रूप ले लिया। उसी रात तुइबोंग एरिया में उपद्रवियों ने वन विभाग के ऑफिस को आग के हवाले कर दिया। 27-28 अप्रैल की हिंसा में मुख्य तौर पर पुलिस और कुकी आदिवासी आमने-सामने थे।
इसके ठीक पांचवें दिन यानी तीन मई को ऑल ट्राइबल स्टूडेंट्स यूनियन ऑफ मणिपुर ने ‘आदिवासी एकता मार्च’ निकाला। ये मैतेई समुदाय को एसटी का दर्जा देने के विरोध में था। यहीं से स्थिति काफी बिगड़ गई। आदिवासियों के इस प्रदर्शन के विरोध में मैतेई समुदाय के लोग खड़े हो गए। लड़ाई के तीन पक्ष हो गए।

एक तरफ मैतेई समुदाय के लोग थे तो दूसरी ओर कुकी और नगा समुदाय के लोग। देखते ही देखते पूरा प्रदेश इस हिंसा की आग में जलने लगा। चार मई को चुराचंदपुर में मुख्यमंत्री बीरेन सिंह की एक रैली होने वाली थी। पूरी तैयारी हो गई थी, लेकिन रात में ही उपद्रवियों ने टेंट और कार्यक्रम स्थल पर आग लगा दी। सीएम का कार्यक्रम स्थगित हो गया। अब तक इस हिंसा के चलते 150 से ज्यादा लोग मारे जा चुके हैं। तीन हजार से ज्यादा लोग घायल बताए  जा रहे हैं।

 

 
 हिंसा की तीन वजहें-

1. मैतेई समुदाय के एसटी दर्जे का विरोध-
मैतेई ट्राइब यूनियन पिछले कई सालों से मैतेई समुदाय को आदिवासी दर्जा देने की मांग कर रही है। मामला मणिपुर हाईकोर्ट पहुंचा। इस पर सुनवाई करते हुए मणिपुर हाईकोर्ट ने राज्य सरकार से 19 अप्रैल को 10 साल पुरानी केंद्रीय जनजातीय मामलों के मंत्रालय की सिफारिश प्रस्तुत करने के लिए कहा था। इस सिफारिश में मैतेई समुदाय को जनजाति का दर्जा देने के लिए कहा गया है।कोर्ट ने मैतेई समुदाय को आदिवासी दर्जा देने का आदेश दे दिया। अब हाईकोर्ट के इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई है। चीफ जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़, जस्टिस पी एस नरसिम्हा और जस्टिस जेबी पारदीवाला बेंच केस की सुनवाई कर रही है।

 

2. सरकार की अवैध अतिक्रमण के खिलाफ कार्रवाई-

 आरक्षण विवाद के बीच मणिपुर सरकार ने अवैध अतिक्रमण के खिलाफ कार्रवाई ने आग में घी डालने का काम किया। मणिपुर सरकार का कहना है कि आदिवासी समुदाय के लोग संरक्षित जंगलों और वन अभयारण्य में गैरकानूनी कब्जा करके अफीम की खेती कर रहे हैं। ये कब्जे हटाने के लिए सरकार मणिपुर फॉरेस्ट रूल 2021 के तहत फॉरेस्ट लैंड पर किसी तरह के अतिक्रमण को हटाने के लिए एक अभियान चला रही है।

वहीं, आदिवासियों का कहना है कि ये उनकी पैतृक जमीन है। उन्होंने अतिक्रमण नहीं किया, बल्कि सालों से वहां रहते आ रहे हैं। सरकार के इस अभियान को आदिवासियों ने अपनी पैतृक जमीन से हटाने की तरह पेश किया। जिससे आक्रोश फैला।

 

3. कुकी विद्रोही संगठनों ने सरकार से हुए समझौते को तोड़ दिया-

 हिंसा के बीच कुकी विद्रोही संगठनों ने भी 2008 में हुए केंद्र सरकार के साथ समझौते को तोड़ दिया। दरअसल, कुकी जनजाति के कई संगठन 2005 तक सैन्य विद्रोह में शामिल रहे हैं। मनमोहन सिंह सरकार के समय, 2008 में तकरीबन सभी कुकी विद्रोही संगठनों से केंद्र सरकार ने उनके खिलाफ सैन्य कार्रवाई रोकने के लिए सस्पेंशन ऑफ ऑपरेशन यानी SoS एग्रीमेंट किया।

इसका मकसद राजनीतिक बातचीत को बढ़ावा देना था। तब समय-समय पर इस समझौते का कार्यकाल बढ़ाया जाता रहा, लेकिन इसी साल 10 मार्च को मणिपुर सरकार कुकी समुदाय के दो संगठनों के लिए इस समझौते से पीछे हट गई। ये संगठन हैं जोमी रेवुलुशनरी आर्मी और कुकी नेशनल आर्मी। ये दोनों संगठन हथियारबंद हैं। हथियारबंद इन संगठनो के लोग भी मणिपुर की हिंसा में शामिल हो गए और सेना और पुलिस पर हमले करने लगे।

 

 
 अब सवाल पीएम से भी यही- 
 
अब सवाल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से भी यही है कि आख़िरकार मणिपुर के ऐसे हालात होने के बाद और उस पर ये विभत्स घटना होने के बाद भी आखिरकार मुख्यमंत्री एन बिरेन जी अपने पद पर बने हुए हैं जिनको नैतिकता के शायद मायने क्या हैं उसकी पूरी तरह से जानकारी नहीं होगी,,,मगर ऐसा नहीं है कि उनकी नैतिकता ने पहले हिल्लोरे नहीं मारे थे. और फ़ैसला भी किया था त्यागपत्र देने का ..मगर फिर अपने समर्थकों की दुहाई देने पर अपने ही फैसले को वापिस ले लिया और फिर से मुख्यंत्री की गद्दी पर विराजमान हो गए  ..पर ऐसा नहीं है कि दिल्ली दरबार इससे अंजान रहा होगा ..पर अब दिल्ली दरबार को ही क़दम आगे बढ़ाना होगा ..  फिलहाल पुलिस ने इस घटना के मुख्य आरोपी को गिरफ्तार कर लिया है. जानकारी के मुताबिक, इस घटना को बीती 4 मई को अंजाम दिया गया था. इस घटना को लेकर हिंसा की आग में जलने वाले मणिपुर का माहौल और बिगड़ गया है।