Category Archive : रोजगार

न्यायिक सेवा की परीक्षा में एक सवाल पर विवाद पहुंचा कोर्ट,मामला देख जज भी हैरान !

356 Views -

अगर आपसे सवाल पूछा जाय कि बम धमाके से मारना हत्या है या कुछ और ? तो आपका जवाब क्या होगा ? शायद अधिकतर लोग इसको हत्या ही कहेंगे,लेकिन अगर इस सवाल को थोड़ा और घुमा कर कुछ इस तरह पूछा जाय जैसे जैसे की  “‘A ‘ एक मेडिकल स्टोर में बम रख देता है और विस्फोट से पहले लोगों को बाहर निकलने के लिए 3 मिनट का समय देता है। ‘B ‘ जो गठिया का मरीज है, वह भागने में विफल रहता है और मारा जाता है। ऐसे में ‘A ‘ के खिलाफ आईपीसी की किस धारा के तहत केस दर्ज किया जा सकता है?”  इस सवाल पर अब आपका जवाब क्या होगा ? निश्चित रूप से आप का सर घूम जायेगा और आप सोच रहे होंगे ये कैसा सवाल है ? तो आप बिलकुल सही सोच रहे हैं,,, ये कोई कल्पना या सिर्फ बोलने भर की बात नहीं है बल्कि ये सवाल सच में एक परीक्षा के दौरान पूछा गया,,कई छात्र इस सवाल से इतने परेशान हो गए कि उनकी समझ में कुछ आया ही नहीं,कि इसका जवाब क्या हो सकता है,,,इस सवाल से हैरान और असंतुष्ट छात्र कोर्ट पहुंच गए,कोर्ट में मामला सुनकर जज भी हैरान रह गए,आगे जो हुआ वो आपको चौंका देगा,,,

 

 

सवाल पर विवाद पहुंचा हाईकोर्ट 

दरअसल , उत्तराखंड न्यायिक सेवा सिविल जज प्रारंभिक परीक्षा में तीन सवालों को लेकर असफल आवेदकों ने आपत्ति जताई और  इससे संबंधित याचिका भी नैनीताल हाई कोर्ट में दायर की है। इस पर सुनवाई करते हुए उत्तराखंड हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश विपिन सांघी और न्यायमूर्ति राकेश थपलियाल की खंडपीठ के समक्ष विकट समस्या खड़ी हो गई, कि आखिर इस पर क्या फैसला दिया जाय,,,जिस सवाल पर आपत्ति जताई गई थी, उसने हाई कोर्ट के जजों को भी सोचने पर मजबूर कर दिया।

हुआ कुछ यूँ कि उत्तराखंड न्यायिक सेवा की परीक्षा में एक सवाल पर विवाद सामने आया है। परीक्षा में पूछा गया था कि एक मेडिकल स्टोर में बम रखने वाले और विस्फोट से पहले लोगों को बाहर निकलने के लिए 3 मिनट का समय देने वाले एक व्यक्ति के खिलाफ आईपीसी की किस धारा के तहत केस दर्ज किया जा सकता है? सवाल उत्तराखंड की न्यायिक सेवा की परीक्षा में पूछा गया था, जिसे लेकर विवाद अदालत की चौखट तक पहुंच गया । परीक्षा में असफल रहने वाले छात्रों ने विषय-विशेषज्ञों द्वारा बताए गए इस सवाल के जवाब पर असंतोष जताया है और दो अन्य सवालों पर आपत्ति के साथ कोर्ट में याचिका दाखिल कर दी। कोर्ट ने आयोग को दो सवालों पर फिर से विचार करने का सुझाव भी दे दिया है।

ऐसा सवाल जिस पर जज भी हो गए कन्फ्यूज 

जिस तीसरे सवाल को लेकर जज भी दुविधा में आ गए वो सवाल हम एक बार फिर हूबहू दोहराते हैं जो शायद आपको भी पूरी तरफ कन्फूज कर देगा, दरसल सवाल ये था कि अगर   ‘A ‘ एक मेडिकल स्टोर में बम रख देता है और विस्फोट से पहले लोगों को बाहर निकलने के लिए 3 मिनट का समय देता है। ऐसे में ‘बी’ जो गठिया का मरीज है, वह भागने में विफल रहता है और मारा जाता है। ऐसे में ‘ए’ के खिलाफ आईपीसी की किस धारा के तहत केस दर्ज किया जा सकता है?  जवाब के लिए जो विकल्प दिए गए थे, उनमें से एक ये था  कि आरोपी के खिलाफ धारा 302 के तहत केस दर्ज किया जाना चाहिए जो हत्या के आरोपियों पर लगायी जाती है।

याचिकाकर्ताओं ने उत्तर के रूप में इसी विकल्प को चुना था लेकिन आयोग की ओर से जो उत्तर उपलब्ध कराया गया था, उसमें इस विकल्प को सही नहीं माना गया था। आयोग के अनुसार सही जवाब धारा 304 था, जो हत्या की श्रेणी में नहीं बल्कि गैर-इरादतन हत्या के मामलों में लगाया जाता है। आयोग का तर्क है कि उपर्युक्त मामला आईपीसी की धारा 302 से संबंधित नहीं है बल्कि यह इरादे के अभाव में या फिर लापरवाही के कारण मौत से संबंधित है।  मामले पर प्रतिक्रिया देते हुए हाई कोर्ट ने कहा कि हमारे लिए यह कहना पर्याप्त है कि विषय विशेषज्ञ ने मोहम्मद रफीक के मामले में 2021 के सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर भरोसा किया है। यह अदालत द्वारा दी गई राय के संबंध में कोई भी विचार देने से बचती है।

बता दें कि मोहम्मद रफीक मामले में मध्य प्रदेश में एक पुलिस अधिकारी को एक तेज रफ्तार ट्रक ने कुचल दिया था, जब उन्होंने वाहन पर चढ़ने की कोशिश की थी। ड्राइवर रफीक ने अधिकारी को धक्का देकर गिरा दिया था।
इस बीच याचिका ने कानूनी हलकों में इस बात पर बहस छेड़ दी है कि क्या किसी आतंकवादी कृत्य को ‘हत्या’ की बजाय ‘लापरवाही के कारण मौत’ के रूप में देखा जा सकता है। हाई कोर्ट के वरिष्ठ वकील  बताते हैं  कि यह स्पष्ट रूप से लापरवाही का मामला नहीं है क्योंकि अधिनियम स्वयं इरादे को दर्शाता है। ‘ए’ द्वारा किया गया  काम ऐक्ट के परिणामों को जानता था। ऐसे में बिना किसी संदेह के यह मामला आईपीसी की धारा 302 यानी हत्या के दायरे में आता है।

 

आयोग के जवाब पर इस तरह उठे सवाल 

आयोग द्वारा उपलब्ध कराए गए जवाब जिसे आयोग की ओर से सही जवाब बताया गया है. उसको 
हाईकोर्ट के वकील की दलील गलत साबित करती दिखाई देती है. हाई कोर्ट ने आयोग को दोनों सवालों पर पुनर्विचार करने का निर्देश दिया है। जबकि तीसरे प्रश्न के संबंध में कोर्ट ने कहा कि इसे पूरी तरह से संवेदनहीन तरीके से तैयार किया गया था। अदालत ने कहा कि हमें यह देखकर दुख होता है कि प्रश्न को पूरी तरह से कैजुअल अप्रोच के साथ तैयार किया गया है। अदालत ने कहा कि पूरी प्रक्रिया चार सप्ताह के भीतर पूरी की जानी चाहिए और एक नई मेरिट सूची तैयार की जानी चाहिए जिसके आधार पर चयन प्रक्रिया जारी रहनी चाहिए।

अब इस सवाल के बाद एक नई बहस कानून के नियमों को लेकर भी शुरू हो गयी है तो दूसरी तरफ आयोग की काम करने सहित प्रश्नपत्र बनाने को लेकर उनकी गंभीरता पर भी सवाल खड़े हो गए हैं,,,कोर्ट ने भी आयोग की सवेंदनहीनता को माना है,,,आयोगों पर उत्तराखंड में सवाल उठना कोई नई बात नहीं है बल्कि उत्तराखंड में परीक्षा आयोजित करने वाले आयोग पिछले काफी समय से सवालों के घेरे में हैं, चाहे वो uksssc रहा हो या अब ukpsc हो, इन आयोगों की विश्वसनीयता पिछले काफी समय से  सवालों के घेरे में रही है, हाल ही में सामने आये भर्ती घोटालों ने तो वैसे भी उत्तराखंड का नाम पूरे देश में प्रसिद्ध कर  दिया है, इन भर्ती घोटालों के खिलाफ बेरोजगार छात्र कई बार प्रदर्शन कर चुके हैं,और आज भी उनका प्रदर्शन जारी है, बेरोजगारों की सिर्फ यही मांग है कि इन भर्ती घोटालों की  निष्पक्ष जांच सीबीआई से करवाई जाय,पर आज तक उत्तराखंड की सरकार उनकी मांगों को मानना तो दूर आंदोलन कर रहे बेरोजगारों से मिलने तक नहीं गयी,,,आयोगों की घटती निष्ठा इस प्रदेश के बेरोजगार छात्रों के भविष्य के लिए एक बड़ी चिंता है और प्रदेश सरकार पर लगता एक बड़ा प्रश्न चिन्ह,,,जो परीक्षाये एक पारदर्शी तरिके से कराने में नाकमयाब साबित हुई है,,, बाकी रही सही कसर इस तरह के सवाल पूरे कर रहे  है,,,    

अमेठी के संजय गांधी अस्पताल पर ताला, इलाज के दौरान हुई थी महिला की मौत…

258 Views -
सवाल ये की आखिर बीजेपी पर ये आरोप क्यों लग रहे हैं ?
बीजेपी क्यों पहले से अस्पताल बंद करवाना चाहती थी ?
क्यों कांग्रेस ने इसे बदले की राजनीति का करार दिया ?
क्या ये बदले की राजनीति है ?

अमेठी से बीजेपी ने सिर्फ राहुल गांधी को ही नहीं हटाया बल्कि वहां से  पूरे गांधी परिवार का नामो निशान मिटाने में लगी है.. इसलिए लंबे समय से बीजेपी की नजर संजय गांधी अस्पताल पर थी. अस्पताल को ताला लगाने की हर संभव कोशिश हो रही थी और फिर आखिरकार बीजेपी ने वो मौका ढूंढ ही लिया और बेहद जल्दबाजी दिखाते हुए संजय गांधी अस्पताल का लाइसेंस निरस्त कर दिया. यहां तक की उसकी ओपीडी और सारी सेवाएं बंद कर दी. इस मामले ने पूरे राज्य की राजनीति का पारा गरमा दिया. कांग्रेस पहले से ही इसे बदले की राजनीति बता रही है।उसका कहना है कि अस्पताल इसलिए बंद किया गया क्योंकि ये उस ट्रस्ट द्वारा संचालित है जिसकी अध्यक्ष सोनिया गांधी हैं. कांग्रेस ने यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से अस्पताल का ताला खुलवाने की मांग की है.इस बीच वरुण गांधी ने भी अस्पताल बंद करने पर आपत्ति जताई। 

 

 

सीएम योगी को लिखा पत्र-

 

कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष अजय राय ने सीएम योगी आदित्यनाथ को इसके लिए एक पत्र भी लिखा है. इसमें उन्होंने संजय गांधी अस्पताल का लाइसेंस रद्द किए जाने के आदेश को वापस लेने की अपील की है. उन्होंने कहा है कि अस्पताल का रजिस्ट्रेशन रद्द करना उचित नहीं है. प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष ने पत्र में आगे कहा है कि संजय गांधी अस्पताल में लाखों लोगों का इलाज़ होता है. अस्पताल कम पैसे पर बड़ी स्वास्थ्य सेवाएं मुहैया कराता है. ये अस्पताल अमेठी क्षेत्र के स्वास्थ्य सेवाओं की लाइफ लाइन है. ऐसे में उन्हें विश्वास है कि सीएम के निर्देशों से अमेठी की जनता व संजय गांधी अस्पताल के साथ अन्याय नहीं होगा.

 

क्यों लगाया गया अस्पताल पर ताला ?

इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के मुताबिक 14 सितंबर की सुबह पेट दर्द की शिकायत के बाद एक 22 साल की महिला को संजय गांधी अस्पताल में भर्ती कराया गया था. लेकिन, पित्ताशय की सर्जरी से पहले उसकी हालत खराब होने पर उसे लखनऊ के एक निजी अस्पताल में रेफर कर दिया गया. जहां 16 सितंबर को महिला की मौत हो गई. महिला के परिवार ने आरोप लगाया कि संजय गांधी अस्पताल में एनेस्थीसिया के ओवरडोज के कारण महिला की मौत हुई. इसे लेकर 17 सितंबर को एक FIR दर्ज की गई. पुलिस ने महिला की मौत पर अस्पताल के मुख्य कार्यकारी अधिकारी सहित चार कर्मचारियों के खिलाफ इलाज के दौरान लापरवाही से मौत होने का मामला दर्ज किया. जैसे ही ये खबर आयी ताक में बैठी बीजेपी सरकार तुरंत एक्शन में आ गयी.. मामले का संज्ञान उत्तर प्रदेश के उपमुख्यमंत्री बृजेश पाठक ने लिया और तत्काल जिले के मुख्य चिकित्सा अधिकारी डॉ अंशुमान सिंह को निर्देशित करते हुए कार्रवाई करने को कहा, इधर सीएमओ ने तीन सदस्यीय जांच कमेटी का गठन किया जांच कमेटी ने अस्पताल पहुंचकर हर पहलू की जांच कर अपनी रिपोर्ट सीएमओ को भेज दी, जिसके बाद संजय गांधी अस्पताल को कारण बताओ नोटिस देते हुए स्पष्टीकरण देने के लिए 3 महीने का समय दिया गया. 

 

 

आखिर बीजेपी को इतनी जल्दी क्यों ?

लेकिन 24 घंटे के अंदर ही संजय गांधी अस्पताल का लाइसेंस निरस्त करते हुए उसकी ओपीडी और सारी सेवाएं बंद कर दी गयी.. अब यहां पर सवाल उठता है की जब 3 महीने का समय स्पष्टीकरण के लिए दिया गया था तो इस पर ताला लगाने की इतनी जल्दी क्या थी.. बीजेपी ने क्यों 24 घंटे के अंदर ही सारी सेवाएं बंद कर दी.. क्या इस पर गौर करने वाली बात नहीं है ? इतनी जल्दी एक्शन लेने से सरकार की मंशा पर सवाल खड़े हो रहे है.  क्या सरकार को आम जनता की कोई चिंता नहीं है ? 

 

 

400 कर्मचारियों पर संकट-

उधर, अमेठी के मुंशीगंज में स्थित संजय गांधी अस्पताल का लाइसेंस निलंबित करने के बाद अस्पताल के 400 से अधिक कर्मचारियों के सामने रोजी-रोटी का संकट खड़ा हो गया है. बुधवार (20 सितंबर) को अस्पताल में तैनात कर्मचारियों ने अस्पताल परिसर में प्रदर्शन करने के बाद डीएम को ज्ञापन सौंपा. उन्होंने अस्पताल के लाइसेंस को बहाल करने की मांग की. कर्मचारियों का कहना था कि अगर अस्पताल बंद हो गया तो उनके सामने रोजी-रोटी का संकट खड़ा हो जाएगा.

 

 

कांग्रेस ने कहा सब कुछ स्मृति ईरानी के इशारे पर हुआ-

आपको बता दें इस मामले ने इसलिए भी इतना तूल पकड़ा है क्योंकि ये दो राष्ट्रीय पार्टियों बीजेपी और कांग्रेस के बीच का विवाद है, दरअसल ये अस्पताल संजय गांधी ट्रस्ट की तरफ से संचालित किया जाता  है. इस ट्रस्ट की अध्यक्ष सोनिया गांधी हाँ, और ट्रस्ट के सदस्य प्रियंका गांधी और राहुल गांधी है, यही नहीं अमेठी और रायबरेली कांग्रेस का गढ़ मन जाता है, जिसकी एक वजह ये अस्पताल भी है, ये अस्पताल 1986 से अपनी सेवाएं दे रहा है, अमेठी जिले का 350 बेड का ये एकलौता अस्पताल है, जहाँ पर लड़भाग 400 कर्मचारी काम करते है , यहाँ पर ANM, और GNM के कोर्स भी संचालित है जिसमे 1200 छात्र छात्राएं ट्रेनिंग ले रहे हैं ,

 

अब ऐसे में बीजेपी सरकार की इस कारवाही को लेकर कुछ राजनीति के जानकार ये दवा कर रहे हैं की अमेठी और रायबरेली में कांग्रेस और गांधी परिवार की इतनी पूछ है, जिस से बीजेपी इतनी परेशान है, और कांग्रेस का नामो निशान मिटाना चाहती है. वही कांग्रेस ने इस पर खुलकर बोला  है की ये बदले की राजनीति है, कांग्रेस जिला अध्यक्ष और कांग्रेस के पूर्व एमएलसी दीपक सिंह के नेतृत्व में कांग्रेसियों ने भी विरोध प्रदर्शन किया. विरोध प्रदर्शन को लेकर कांग्रेस के पूर्व एमएलसी दीपक सिंह ने कहा कि अस्पताल को बंद करना बिल्कुल ठीक नहीं है. अगर कोई संस्थागत व्यक्ति हो और वह संविधान की शपथ ले तो उसे संविधान के दायरे में रहकर काम करना चाहिए. दीपक सिंह ने सांसद स्मृति ईरानी पर निशाना साधने के साथ स्वास्थ्य मंत्री बृजेश पाठक पर भी निशाना साधा. उन्होंने कहा कि जो व्यक्ति कई बार विधायक रहा हो, कानून मंत्री रहा हो, उसे तो अमेठी की सांसद स्मृति ईरानी के इशारे पर ये काम नहीं करना चाहिए.

महंगे पेंट का खर्चा भूल जाइए, गाय के गोबर से बना एंटी बैक्टीरियल पेंट से चमकेगा घर…

210 Views -

गाय के गोबर से बनेगा प्राकृतिक पेंट, जाने  इसके फायदे-

गौशालाओं को आर्थिक रूप से सशक्त बनाने की मुहिम.

प्राकृतिक पेंट बनाने में किया जाएगा गोबर का इस्तेमाल.

गोबर युक्त पेन्ट एन्टी फंगल, एन्टी बैक्टीरियल, अन्य केमिकल पेन्ट से सस्ता.

यूपी के बांदा में अन्ना गोवंशों को संरक्षित रखने के लिए तीन सौ से अधिक गौशाला बनाए गए हैं। इन गौशालाओं में संरक्षित गोवंशों के भरण पोषण के लिए पर्याप्त बजट न होने पर जन भागीदारी से गोवंशों को चारा भूसा उपलब्ध कराया जा रहा है। साथ ही जिला अधिकारी दुर्गा शक्ति नागपाल गौशालाओं को आर्थिक रूप से सशक्त बनाने के लिए मुहिम चला रही हैं। इसी मुहिम के तहत अब गौशाला से निकलने वाले गोबर का इस्तेमाल प्राकृतिक पेंट बनाने में किया जा रहा है।

किसानों के लिए मुनाफे का सौदा-

गोवंश के गोबर से वर्मी कम्पोस्ट तैयार खाद कृषि उत्पादन के लिए बहुत लाभकारी है। इसके साथ ही गौवंश के गोबर युक्त पेन्ट एन्टी फंगल, अन्य केमिकल पेन्ट से सस्ता, एन्टी बैक्टीरियल भी होता है। इसका फसलों में इसका छिड़काव और प्रयोग करने से भी फसल पैदावार में भी लाभ मिलता है।इस तरह तैयार होगा प्राकृतिक पेंट-

  • सबसे पहले गाय के गोबर से कंकड़, घास निकाल कर अलग किया जाता हैं और उसका वजन किया जाता हैं।
  • इसके बाद साफ किए गए गोबर को एक भंडारण टैंक में डाला जाता हैं जिसमें पानी होता है।
  • मोटर चलित भंडारण टैंक गाय के गोबर और पानी को 40 मिनट तक मथता है।
  • इससे पहले उस मिश्रण को दूसरे सेक्शन में ले जाया जाता है। जहां इसे एक समान पेस्ट जैसे तरल में बदल दिया जाता है।
  • तरल को 100 डिग्री सेल्सियस के तापमान पर आधे घंटे तक गर्म किया जाता है, जिसके बाद इसे ब्लीच किया जाता है।
  • इसके बाद मिश्रण में रंग मिलाया जाता है, और यह प्राकृतिक पेंट तैयार होता है।
  • इस पेंट को प्राकृतिक पेंट के ब्रांड नाम से बाजार में बेचा जाता है।
 

प्राकृतिक पेंट बनाने का निर्णय-

इस प्राकृतिक पेंट प्रोजेक्ट के अंतर्गत, स्थानीय गौशाला संचालकों, पंचायत प्रमुखों, स्वयंसेवी संस्थाओं, और अधिकारियों को जागरूक करने के लिए एक अभियान चलाया जा रहा है। इस अभियान के तहत, तीन स्वयंसेवी संस्थाएं प्राकृतिक पेंट बनाने का निर्णय ले चुकी है। इसके अलावा गौवंशों को हरा चारा प्रदान करने के लिए भी कई मादक उपायों का उपयोग किया जा रहा है, जिससे उनकी सुरक्षा और खुशहाली सुनिश्चित की जा सकती है।

 

प्रतिदिन 5500 रुपये की होगी आमदनी-

प्रोजेक्ट मैनेजर की माने तो 1 किलोग्राम गोबर में पाउडर मिलाकर 3 लीटर पेंट तैयार होगा. 1 लीटर पेंट 225 से 250 रुपये लीटर में बिकेगा. यानी 1 किलो गोबर से करीब 700 रुपये की आमदनी होगी. एक गाय प्रतिदिन 8 किलोग्राम गोबर देती है, जिससे प्रतिदिन करीब 5500 रुपये तक की आमदनी होगी. इसके लिए खादी आश्रम से अनुबंध होगा, जो पेंट लेकर बिक्री करेगा. यह पेंट दो किस्म के डिस्टेंपर और इमल्शन में तैयार होगा. गाय के गोबर से बने प्राकृतिक पेंट को घर की दीवारों पर कराया जा सकेग।

 

2024 लोकसभा चुनाव के दौरान मोदी सरकार को परेशानी में डाल सकते हैं ये सभी मुद्दे…

358 Views -

बहुत हुई महंगाई की मार, अबकी बार मोदी सरकार. ‘हम मोदी जी को लाने वाले हैं, अच्छे दिन आने वाले हैं..  2014 के लोकसभा चुनाव में जब ऐसे नारे सामने आए तो कांग्रेस सरकार से नाखुश जनता को एक उम्मीद दिखी. उम्मीद कि मोदी सरकार आने के बाद वाकई उनके ‘अच्छे दिन’ आ जाएंगे. इसी उम्मीद से 17 करोड़ से ज्यादा लोगों ने बीजेपी को वोट दे दिया. बीजेपी ने 282 सीटें जीतीं. ये पहली बार था जब किसी गैर-कांग्रेसी पार्टी ने बहुमत हासिल किया था. 26 मई 2014 को नरेंद्र मोदी ने पहली बार प्रधानमंत्री पद की शपथ ली.  2019 में दूसरी बार 23 करोड़ से ज्यादा लोगों ने बीजेपी को वोट दिया और  बीजेपी ने 303 सीटें जीतीं. नरेंद्र मोदी दूसरी बार प्रधानमंत्री बने.   प्रधानमंत्री मोदी ने 2025 तक भारत की GDP 5 ट्रिलियन डॉलर तक पहुंचाने का टारगेट रखा है. हालांकि, अभी के हालात को देखते हुए ये टारगेट 2025  तक तो पूरा होना बहुत मुश्किल लगता है ।   

 
मोदी सरकार की नीतियों पर कई सवाल- 

मोदी सरकार कुछ समय बाद फिर देश के आम चुनाव में उतरने वाली है तो तीसरी बार सत्ता तक पहुंचने से पहले उनको जनता के कई सवालों के जवाब भी देने होंगे ? मोदी सरकार के इन 9 सालों के कार्यकाल पर नजर डालें तो कई ऐसे तथ्य  सामने आते  है, जो मोदी सरकार की नीतियों पर कई सवाल करती हैं,,, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2014 के चुनावों में  डॉलर की गिरती कीमत को लेकर कांग्रेस सरकार को खूब घेरा था, कि आखिर भारत का रुपया डॉलर के मुकाबले को लेकर इतना क्यों गिर रहा है, लेकिन 2014 में 72 पर चल रहा डालर मोदी सरकार में आज 82 पर पहुंच गया है।

 
अर्थव्यवस्था का क्या हुआ ? 

मोदी सरकार इन 9 सालों में कई मोर्चों पर विफल नजर आती है, मोदी सरकार में विदेशी कर्ज भी देश पर खूब  बढ़ा है. इंडिया टुडे की एक रिपोर्ट के मुताबिक हर साल औसतन 25 अरब डॉलर का विदेशी कर्ज भारत पर बढ़ा है. मोदी सरकार से पहले देश पर करीब 409 अरब डॉलर का विदेशी कर्ज था, जो अब बढ़कर डेढ़ गुना यानी करीब 613 अरब डॉलर पहुंच गया है ।   

 
मोदी सरकार में बेरोजगारी का आंकड़ा- 

मोदी सरकार में सबसे चौंकाने वाला आंकड़ा रोजगार को लेकर सामने आता है, मोदी सरकार में बेरोजगारी दर जमकर बढ़ी है. इंडिया टुडे की रिपोर्ट के मुताबिक  बेरोजगारी के आंकड़ों पर नजर रखने वाली निजी संस्था सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी यानी CMIE के मुताबिक, अभी देश में करीब 41 करोड़ लोगों के पास रोजगार है. जबकि  मोदी सरकार के आने से पहले 43 करोड़ लोगों के पास रोजगार था. यानी हर साल 2 करोड़ रोजगार देने का वादा करने वाली मोदी सरकार में रोजगार मिलने के बजाय उल्टा २ करोड़ रोजगार कम हो गए।

 
नौकरियों का क्या हुआ ? 

CMIE ने पिछले साल एक रिपोर्ट जारी की थी. इसमें दावा किया गया था कि भारत में अभी 90 करोड़ लोग नौकरी के लिए योग्य हैं. इनमें से 45 करोड़ लोगों ने तो अब  नौकरी की तलाश करना ही छोड़ दिया है. यानी कि इस देश के 45 करोड़ युवा इतने निराश हैं कि वो मान चुके हैं कि अब उनको नौकरी नहीं मिल पायेगी,, ये आंकड़ा निश्चित रूप से इस देश के भविष्य उन युवाओं की हताशा को दर्शाता है,,, 2019 के चुनाव के बाद सरकार के ही एक सर्वे में सामने आया था कि देश में बेरोजगारी दर 6.1% है. ये आंकड़ा 45 साल में सबसे ज्यादा था. सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, मोदी सरकार के आने से पहले देश में बेरोजगारी दर 3.4% थी, जो इस समय बढ़कर 8.1% हो गई है. ये आंकड़े बताते हैं कि मोदी सरकार किस तरह रोजगार के मुद्दे पर पूरी तरह विफल साबित हुई और आने वाले चुनावों में देश के युवा सरकार से इस पर जवाब मांगेंगे जो की सरकार की परेशानियां जरुर बढ़ाएगी।

शिक्षा पर मोदी सरकार के आंकड़े-

किसी भी देश के विकास के लिए अच्छी शिक्षा बहुत जरूरी है. मोदी सरकार में शिक्षा का बजट बढ़ा है,  9 साल में शिक्षा पर खर्च का बजट 30 हजार करोड़ रुपये  बढ़ा है. लेकिन देश में स्कूल भी कम हो गए हैं, शिक्षक भी बढ़े हैं लेकिन छात्र नहीं . मोदी सरकार के आने से पहले देश में 15.18 लाख स्कूल थे, जो अब घटकर 14.89 लाख हो गए हैं. नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे-5 के मुताबिक, देश में अभी भी करीब 30 फीसदी महिलाएं और 15 फीसदी पुरुष अनपढ़ हैं. 10 में से 6 लड़कियां 10वीं से ज्यादा नहीं पढ़ पा रही हैं. वहीं, 10 में से 5 पुरुष ऐसे हैं जो 10वीं के बाद पढ़ाई छोड़ रहे हैं।

 
मोदी सरकार में बेतहाशा बढ़ती महंगाई-

अब बात आती है देश के सबसे बड़े मुद्दे की,,जिस मुद्दे ने मोदी  को सत्ता के सबसे ऊँचे मुकाम पर पहुंचाया और भारतीय जनता पार्टी को अब तक का सबसे प्रचंड जनादेश दिलवाया,,, जी हाँ  ‘बहुत हुई महंगाई की मार, अबकी बार मोदी सरकार’ 2014 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी का ये नारा था. जिसे पूरी भाजपा ने खूब जोर शोर से देश की जनता को सुनाया था लेकिन इसी मुद्दे पर सरकार सबसे ज्यादा मात खा रही है,,,  मोदी सरकार में महंगाई बेतहाशा बढ़ी है, पेट्रोल-डीजल की कीमतों में तो आग लग गई है. 9 साल में पेट्रोल की कीमत 24 रुपये और डीजल की कीमत 34 रुपये प्रति लीटर से ज्यादा बढ़ी है. पेट्रोल-डीजल के अलावा गैस सिलेंडर की कीमत भी तेजी से बढ़ी है. मोदी सरकार से पहले सब्सिडी वाला सिलेंडर 414 रुपये में मिलता था. लेकिन अब सिलेंडर पर नाममात्र की सब्सिडी मिलती है. अभी रसोई गैस सिलेंडर की कीमत 11 सौ रुपये तक पहुंच गई है. इतना ही नहीं, 9 साल में एक किलो आटे की कीमत 52%, एक किलो चावल की कीमत 43%, एक लीटर दूध की कीमत 56% और एक किलो नमक की कीमत 53% तक बढ़ गई है ।   

सभी चीजों पर बढ़ती महंगाई के आंकड़े- 

कुछ समय  पहले टमाटर के साथ सब्जियों के बढ़े दाम ने परेशानी बढ़ाई तो उसके बाद मसालों में आई तेजी ने खाने का स्वाद बिगाड़ दिया। वहीं अब दालों में भी महंगाई ने किचन का पूरा बजट ही गड़बड़ा दिया है। दालों के दाम में 10 से 15 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। बीते तीन महीने में दाल-चावल और आटे के दामों में काफी वृद्धि हुई है। इससे लोग खासे परेशान हैं। किराना स्टोर से मिले दामों को अगर मिलाया जाए तो बीते तीन महीने में दाल-चावल और आटे के दामों में काफी वृद्धि हुई है। तीन माह पूर्व 140 से 150 रुपये में बिकने वाली अरहर की दाल  180 रुपये तक पहुंच गई है। चना दाल भी 150 से 190 रुपये किलो के भाव पर बिक रही है। दालों के साथ-साथ आटा और चावल का रेट भी तीन महीने में करीब 10 से 20 प्रतिशत बढ़ा है। पांच किलो आटे के बैग की कीमत 225 रुपये है।  कुछ ऐसी स्थिति मसालों की भी है। मसालों में जीरे के दाम में सबसे ज्यादा 40 फीसदी वृद्धि हुई है। तीन महीने पहले 100 ग्राम जीरा जहां 45 रुपये का था। वहीं अब ये 360 रुपये प्रति किलो  तक पहुंच गया है।  गैस सिलेंडर पहले से महंगा है। वहीं, तेल, सब्जियों, मसालों के बाद अब दाल भी और महंगी हो गयी है। ऐसे में घर चलाने के लिए हर चीज में बजट कटौती नहीं की जा सकती। जिसका असर मसालों व दालों में भी देखने को मिल रहा है। आटा चावल में भी वृद्धि हुई है। टमाटर, अदरक समेत अन्य हरी सब्जियां महंगी थीं तो लोग दाल व मसालों से काम चला लेते थे, लेकिन अब ये भी महंगे हो गए हैं। ऐसे में आम और गरीब लोगों पर सबसे अधिक असर पड रहा है।

 

उत्तराखंड के पलायन और बेरोजगारी को लेकर मील का पत्थर साबित हो रही ये योजना 

199 Views -

उत्तराखंड में होता पलायन जिसकी सबसे बड़ी वजह है बेरोजगारी, उत्तराखंड में कई योजनाओं को लागू कर पहाड़ों में रोजगार पैदा करने की कोशिश की जा रही है, जिससे पलायन को रोका जा सके, आज के वीडियो में बात एक ऐसी ही योजना की करेंगे जो उत्तराखंड के कई बेरोजगार युवाओं के लिए वरदान साबित हुई, इस योजना के कारण कई युवाओं ने न केवल रिवर्स पलायन किया बल्कि आज खुद के साथ कई अन्य के रोजगार का माध्यम बने हैं,,,, उत्तराखंड के खाली होते गावों और छोटे शहरों में रहने वाली युवा पीढ़ी रोजगार की चाह में लगातार महानगरों की तरफ रुख करने को मजबूर हैं, जिस कारण पहाड़ और छोटे शहरों में लगातार पलायन होता जा रहा है,खासतौर पर युवाओं का प्रदेश छोड़कर जाना एक अच्छा संकेत नहीं है,,,

 

उत्तराखंड की सरकारों ने समय-समय पर कई योजनाओ को लागू किया है जिससे युवाओं को प्रदेश में ही रोजगार मिल पाए और पलायन थम सके, इन योजनाओ में सबसे कामयाब योजना रही होम स्टे योजना, जिसका असर आज धरातल पर दिख रहा है, इस योजना से जुड़े कई युवा न केवल वापस अपने गांव या शहर लौटे बल्कि आज खुद के रोजगार के साथ अन्य को भी रोजगार दे रहे हैं साथ ही उत्तराखंड पर्यटन उद्योग को भी खूब पंख लगा रहे हैं, उत्तराखंड में होमस्टे योजना का श्रेय पूर्व की त्रिवेंद्र रावत सरकार को जाता है,

उत्तराखंड में होमस्टे योजना की शुरुआत 20 अप्रैल 2018 को सीमावर्ती जनपद पिथौरागढ़ से पूर्व मुख़्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने की थी, इस योजना का मुख्य मकसद युवाओं को रोजगार देना और पलायन को रोकना था लेकिन देश में कोरोना काल के बाद अपने घर वापस लौटे बेरोजगार युवाओं के लिए ये रोजगार का एक अहम कदम साबित हुआ,कई युवाओं ने इस योजना के जरिये रोजगार शुरू किया,और अब तो ये योजना प्रदेश के युवाओं के लिए एक वरदान साबित हो रही है,इस योजना के लिए हर साल बड़ी संख्या में आवेदन हो रहे हैं,जबकि अब तक प्रदेश में हजारों होमस्टे संचालित हो रहे हैं,,,

पर्वतीय जिलों में होम स्टे से जुड़कर यहां के स्थानीय युवा स्वरोजगार को अपनाने के साथ ही पर्यटकों को उचित सेवा भी दे रहे हैं, जिससे उत्तराखंड के दुर्गम इलाकों के लोगों की आजीविका पर सुधार आया है और सीजन में स्थानीय लोग अच्छा रोजगार कमा रहे हैं. युवाओं को स्वरोजगार से जोड़ने और पहाड़ के गांवों से हो रहे पलायन को थामने के लिए उत्तराखंड सरकार द्वारा होम स्टे योजना की शुरुआत की गयी थी, जिसमें पर्यटक स्थलों में स्थानीय लोग अपने ही घरों में देश-विदेश के पर्यटकों के लिए ग्रामीण परिवेश में साफ व किफायती आवास की सुविधा उपलब्ध करा सकते हैं. यहां पर पर्यटकों को स्थानीय व्यंजन परोसने के साथ ही उन्हें यहां की सभ्यता व संस्कृति से भी परिचित कराया जा रहा है, जो पर्यटक खूब पसंद कर रहे हैं.

 

होम स्टे योजना की अब तक की तस्वीर देखें, तो वित्तीय वर्ष 2018-19 में प्रदेश के सभी जिलों में 965 होम स्टे पंजीकृत हुए. आर्थिक सर्वेक्षण के अनुसार, वर्ष 2021-22 में यह आंकड़ा बढ़कर 3 हजार 964 पहुंच गया. पर्वतीय जिलों में भी ये आंकड़ा बढ़ा है, बात अगर पिथौरागढ़ जिले की करें जहां इस योजना की शुरुआत हुई थी , तो 2021-22 में 608 लोगों ने और 2022-23 में 103 लोगों ने अपने घरों को होम स्टे में बदलने के लिए पर्यटन विभाग में पंजीकृत किया, जिसमें सबसे ज्यादा धारचूला में 423 लोग अपना पंजीकरण करा चुके हैं. धारचूला सीमांत जिले का उच्च हिमालयी क्षेत्र भी है, जहां की खूबसूरती का दीदार करने पर्यटक पहुंच रहे हैं. उनके रुकने की सुविधा यहां के गांवों में होम स्टे के रूप में विकसित हो रही है. इस योजना के माध्यम से सिर्फ साल 2020 में ही 5 हजार होमस्टे विकसित किए गए थे। इससे प्रदेश में रोजगार के अवसर को बढ़ावा मिलने की उम्मीद है और लोगों को कामकाज या कारोबार के लिए दूसरे राज्य में पलायन करने की जरूरत नहीं पड़ेगी।