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पुरानी पेंशन को लेकर 3 नवंबर की तीसरी बड़ी रैली का गवाह बनेगा रामलीला मैदान, इन 7 मांगों को रखेंगे सरकार के समक्ष. 

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केंद्र और राज्य सरकारों के कर्मचारी संगठन की लड़ाई पुरानी पेंशन को लेकर लगातार जारी है. पुरानी पेंशन कर्मियों की ये लड़ाई फिर एक बड़ा रूप लेने जा रही है. केंद्रीय कर्मियों की दो विशाल रैलियों के बाद अब उनकी जल्दी ही 3  नवंबर को दिल्ली के रामलीला मैदान में ही तीसरी बड़ी रैली होने जा रही है। कॉन्फेडरेशन ऑफ सेंट्रल गवर्नमेंट एम्पलाइज एंड वर्कर्स के बैनर तले होने वाली इस रैली में ऑल इंडिया स्टेट गवर्नमेंट एम्प्लाइज फेडरेशन सहित कई दूसरे कई संगठन हिस्सा लेंगे। रैली में केंद्र सरकार के समक्ष 7 बड़ी मांगें रखी जाएंगी। 

 

ये होंगी वो सभी मांगे-

पहली मांग ‘एनपीएस’ की समाप्ति और ‘पुरानी पेंशन’ व्यवस्था को बहाल कराना है। इसके अलावा केंद्र सरकार में रिक्त पदों को नियमित भर्ती के जरिए भरना, निजीकरण पर रोक, आठवें वेतन आयोग का गठन और कोरोनाकाल में रोके गए 18 महीने के डीए का एरियर जारी करना, ये बातें भी कर्मचारियों की मुख्य मांगों में शामिल हैं।

एजेंडे में OPS के अलावा ये मांगें भी-

कॉन्फेडरेशन ऑफ सेंट्रल गवर्नमेंट एम्प्लाइज एंड वर्कर्स के महासचिव एसबी यादव ने बताया, सरकारी कर्मचारियों की लंबित मांगों को लेकर पिछले साल से ही चरणबद्ध तरीके से प्रदर्शन किए जा रहे हैं। दिसंबर 2022 को दिल्ली के तालकटोरा इंडोर स्टेडियम में कर्मियों के ज्वाइंट नेशनल कन्वेंशन के घोषणा पत्र के मुताबिक, कर्मचारियों की मुहिम आगे बढ़ाई जा रही है। राज्यों में भी कर्मियों की मांगों के लिए सम्मेलन/सेमिनार और प्रदर्शन आयोजित किए गए हैं। इस कड़ी में अब तीन नवंबर को दिल्ली के रामलीला मैदान में रैली आयोजित की जाएगी। रैली के एजेंडे में ओपीएस की मांग सबसे ऊपर रखी गई है। बतौर यादव, कर्मियों की मांग है कि पीएफआरडीए एक्ट में संशोधन किया जाए। एनपीएस को समाप्त करें और पुरानी पेंशन बहाल की जाए। केंद्र और राज्यों के जिस विभाग में अनुबंध पर या डेली वेजेज पर कर्मचारी हैं, उन्हें अविलंब नियमित किया जाए। निजीकरण पर रोक लगे और सरकारी उपक्रमों को नीचे करने की सरकार की मंशा बंद हो। डेमोक्रेटिक ट्रेड यूनियन के अधिकारों का पालन सुनिश्चित हो। राष्ट्रीय शिक्षा कार्यक्रम का त्याग किया जाए और आठवें वेतन आयोग का गठन हो।

OPS पर हो चुकी हैं कर्मियों की दो रैलियां-

केंद्र और राज्यों के कर्मचारी संगठनों ने सरकार को स्पष्ट तौर से बता दिया है कि उन्हें बिना गारंटी वाली ‘एनपीएस’ योजना को खत्म करने और परिभाषित एवं गारंटी वाली ‘पुरानी पेंशन योजना’ की बहाली से कम कुछ भी मंजूर नहीं है। नई दिल्ली के रामलीला मैदान में दस अगस्त को कर्मियों की रैली हुई थी। ओपीएस के लिए गठित नेशनल ज्वाइंट काउंसिल ऑफ एक्शन (एनजेसीए) की संचालन समिति के राष्ट्रीय संयोजक एवं स्टाफ साइड की राष्ट्रीय परिषद ‘जेसीएम’ के सचिव शिवगोपाल मिश्रा ने रैली में कहा था, लोकसभा चुनाव से पहले पुरानी पेंशन लागू नहीं होती है तो भाजपा को उसका खामियाजा भुगतना पड़ेगा। कर्मियों, पेंशनरों और उनके रिश्तेदारों को मिलाकर यह संख्या दस करोड़ के पार चली जाती है। चुनाव में बड़ा उलटफेर करने के लिए यह संख्या निर्णायक है।

 

‘पेंशन शंखनाद महारैली’ में जुटे थे लाखों कर्मी-

एक अक्तूबर को रामलीला मैदान में ही ‘पेंशन शंखनाद महारैली’ आयोजित की गई। इसका आयोजन नेशनल मूवमेंट फॉर ओल्ड पेंशन स्कीम (एनएमओपीएस) के बैनर तले हुआ था। एनएमओपीएस के अध्यक्ष विजय कुमार बंधु ने कहा, पुरानी पेंशन कर्मियों का अधिकार है। वे इसे लेकर ही रहेंगे। दोनों ही रैलियों में केंद्र एवं राज्य सरकारों के लाखों कर्मियों ने भाग लिया था। उसके बाद 20 सितंबर को हुई राष्ट्रीय परिषद (जेसीएम) स्टाफ साइड की बैठक के एजेंडे में ‘ओपीएस’ का मुद्दा टॉप पर रहा था। कर्मचारियों का प्रतिनिधित्व करते हुए अखिल भारतीय रक्षा कर्मचारी महासंघ (एआईडीईएफ) के महासचिव सी. श्रीकुमार ने कहा था, हमने सरकार के समक्ष एक बार फिर अपनी मांग दोहराई है। एनपीएस को खत्म किया जाए और पुरानी पेंशन योजना’ को जल्द से जल्द बहाल करें। अगर सरकार नहीं मानती है तो देश में कलम छोड़ हड़ताल होगी, रेल के पहिये रोक दिए जाएंगे।

भारत बंद जैसे कई कठोर कदम-

श्रीकुमार के मुताबिक, सरकार, पुरानी पेंशन लागू नहीं करती है, तो ‘भारत बंद’ जैसे कई कठोर कदम उठाए जाएंगे। पुरानी पेंशन के लिए कर्मचारी संगठन, राष्ट्रव्यापी अनिश्चितकालीन हड़ताल कर सकते हैं। इसके लिए 20 और 21 नवंबर को देशभर में स्ट्राइक बैलेट होगा। कर्मचारियों की राय ली जाएगी। अगर बहुमत हड़ताल के पक्ष में होता है, तो केंद्र एवं राज्यों में सरकारी कर्मचारी, अनिश्चितकालीन हड़ताल पर चले जाएंगे। उस अवस्था में रेल थम जाएंगी तो वहीं केंद्र एवं राज्यों के कर्मचारी ‘कलम’ छोड़ देंगे।

पुरानी पेंशन बहाली के लिए केंद्र एवं राज्यों के कर्मचारी एक साथ आ गए हैं। लगभग देश के सभी कर्मचारी संगठन इस मुद्दे पर एकमत हैं। केंद्र और राज्यों के विभिन्न निगमों और स्वायत्तता प्राप्त संगठनों ने भी ओपीएस की लड़ाई में शामिल होने की बात कही है। कर्मचारियों ने हर तरीके से सरकार के समक्ष पुरानी पेंशन बहाली की गुहार लगाई है, लेकिन उनकी बात सुनी नहीं गई। अब उनके पास अनिश्चितकालीन हड़ताल ही एक मात्र विकल्प बचता है। दस अगस्त और एक अक्तूबर की रैली में देशभर से आए लाखों कर्मियों ने ‘ओपीएस’ को लेकर हुंकार भरी थी।

अंतरराष्ट्रीय बालिका दिवस- PMMVY में हजारों महिलाओं ने कराया पंजीकरण, किसी को नहीं मिला लाभ.

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अंतरराष्ट्रीय बालिका दिवस पर नहीं मिला लाभ.  

देश की बेटियों को बढ़ावा देने के लिए सरकार कई तरह-तरह की योजनाएं ला रही है, लेकिन इसका लाभ पूरी तरह से नहीं मिल पा रहा है। प्रधानमंत्री मातृ वंदना योजना यानी की (पीएमवीवीवाई) भी इनमें से एक है। इसके तहत 14 हजार 841 महिलाएं पंजीकरण करवा चुकी हैं, लेकिन किसी को अभी तक लाभ नहीं मिल पाया है।

इस योजना के तहत गर्भवती महिलाओं को पहले बच्चे में गर्भावस्था की शुरुआत से ही बच्चे के पहले टीकाकरण तक 5000 रुपये का लाभ अलग-अलग किस्तों में दिया जाता है। यह प्रक्रिया सिर्फ पहले बच्चे में होती थी, लेकिन सरकार ने इस योजना में बदलाव कर बेटियों को प्रोत्साहन देने के लिए 1 अप्रैल से योजना का दूसरा चरण शुरू किया है। दूसरे बच्चे के रूप यदि बेटी का जन्म होता है तो एक बार फिर इस योजना का लाभ मिलेगा। इसमें 6000 रुपये अलग-अलग किस्त में न देकर एक साथ दिए जाने का प्रावधान है। लेकिन डेढ़ साल बाद भी इसका कोई लाभ नहीं मिल पाया।

प्रथम प्रसव के तहत अभी तक सिर्फ 933 महिलाओं को मिला लाभ-

महिला सशक्तिकरण एवं बाल विकास विभाग की रिपोर्ट के मुताबिक देहरादून जिले में प्रथम प्रसव पंजीकरण पर 3586 और दूसरी बेटी के जन्म पर 2877 महिलाओं का नवीन पोर्टल के माध्यम से पंजीकरण किया जा चुका है। वहीं, पूरे उत्तराखंड में प्रथम प्रसव पर 27 हजार 381 पंजीकरण और दूसरी बेटी के जन्म पर 14 हजार 841 महिलाओं के पंजीकरण हुए हैं। इसमें प्रथम प्रसव के तहत एक साल में सिर्फ 933 महिलाओं को योजना का लाभ मिला है। रायपुर की सीडीपीओ मंजेश्वरी ने बताया कि पोर्टल अपडेट हो रहा है, इस वजह से लंबे समय से प्रथम प्रसव का लाभ भी नहीं मिल पा रहा है। दूसरे चरण में भी अभी तक लाभ मिलना शुरू नहीं हो पाया है। 

महिलाओं के खाते में आता है पैसा-

आंगनबाड़ी कार्यकर्ता रजनी ने बताया योजना के तहत आंगनबाड़ी कार्यकर्ताएं गर्भवती महिलाओं के पास जाकर फॉर्म भरवाती हैं। इसका पैसा महिलाओं के बैंक खाते में आता है। महिला सशक्तीकरण एवं बाल विकास विभाग की ओर से संचालित योजना बेटियों के प्रति सकारात्मक व्यवहार परिवर्तन को बढ़ावा देने का प्रयास है। 

यह है पात्रता-

-ऐसी महिलाएं जिनकी पारिवारिक आय आठ लाख रुपये प्रति वर्ष से कम है। 
-मनरेगा जॉब कार्ड धारक महिलाएं। 
-महिला किसान, जो किसान सम्मान निधि के तहत लाभार्थी हैं। 
-ई-श्रम कार्ड धारक महिलाएं। 
-आयुष्मान भारत के तहत प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना की लाभार्थी महिला भी इसके लिए पात्र है। 

पोर्टल अपडेट हो रहा है इसलिए दूसरे चरण का लाभ मिलने में दिक्कत आ रही है। बजट जारी हो चुका है। अगर किसी का जन्म 1 अप्रैल 2022 के बाद हुआ है तो उसका 31 अक्टूबर तक भी पंजीकरण किया जा सकता है।

 

Nipah Virus: क्या है निपाह वायरस ? केरल में इसकी दस्तक के बाद अब उत्तराखंड में अलर्ट.

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पढ़ें निपाह वायरस के लक्षण और बचाव के उपाय…

कोविड की तरह निपाह वायरस भी एक से दूसरे को संक्रमित कर सकता है। केरल में छह मरीज मिलने और दो मरीजों की मौत के बाद देश के कई राज्यों में अलर्ट जारी किया गया है। उत्तराखंड में भी स्वास्थ्य विभाग की ओर से अस्पतालों में अलर्ट जारी किया है।

इसके लक्षण दिखने पर मरीजों को क्वारंटीन किया जाएगा। फिलहाल जिले में निपाह वायरस की जांच सुविधा नहीं है। अगर मरीज में लक्षण मिलते हैं तो जांच के लिए सैंपल ऋषिकेश एम्स भेजा जाएगा।

सीएमओ डॉ. संजय जैन ने बताया कि निपाह वायरस के मामले उत्तराखंड में अब तक सामने नहीं आए हैं, लेकिन अगर किसी भी मरीज में निपाह वायरस जैसे लक्षण दिखते हैं तो जांच के लिए ऋषिकेश एम्स भेजा जाएगा। दून मेडिकल कॉलेज के माइक्रोबायोलॉजी विभाग के असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. दीपक जुयाल ने बताया कि भारत में 2001 से अब तक निपाह वायरस छह बार आ चुका है। केरल में 2018 के बाद यह चौथी बार आया है। 

 

यह चमगादड़ या सूअर से फैलता है। इसकी अबतक कोई दवा या वैक्सीन नहीं बनी है। लक्षण के आधार पर ही इलाज होता है। उमस और गर्मी वाले इलाकों में यह वायरस अधिक तेजी से फैलता है। ठंडे इलाकों में इसका प्रभाव कम रहता है। दून अस्पताल में अगर ऐसा कोई मरीज आता है और जांच की जरूरत पड़ी तो किट मंगाकर जांच की जाएगी.

हो सकती है मौत-

डॉ. दीपक ने बताया कि इस वायरस से दिमाग में सूजन आने पर मरीज की मौत भी हो सकती है। हालांकि, यह वायरस एक से दूसरे में तभी फैलता है जब नजदीक कॉन्टैक्ट हो। फिलहाल सरकार की ओर से लोगों को जागरूक करने का प्रयास किया जा रहा है।

  लक्षण-

बुखार, सिर दर्द, कफ, गले में खराश, उल्टी, सांस लेने में दिक्कत, निमोनिया और दिमाग में सूजन।

  उपचार-

  • मरीज का इलाज लक्षण के आधार पर होता है।
  • मरीज को अन्य लोगों से अलग 21 दिन के लिए क्वारंटीन किया जाता है।
  • अन्य लोगों को संक्रमित के संपर्क में आने से मना किया जाता है।
  • मास्क पहनना और सोशल डिस्टेंसिंग जरूरी होता है।

भाजपा ने सोशल मीडिया पर राहुल को बताया था रावण, जेपी नड्डा और अमित मालवीय पर केस.

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भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा और आईटी सेल के हेड अमित मालवीय के खिलाफ जोधपुर कोर्ट में मानहानि का परिवाद दर्ज हो गया है। कांग्रेस नेता ने सोशल मीडिया पोस्ट के जरिए राहुल गांधी को रावण बताने पर ये परिवाद दर्ज कराया है। अतिरिक्त मुख्य महानगर मजिस्ट्रेट कोर्ट नंबर 1 में दायर इस परिवाद पर 11 अक्तूबर को सुनवाई होगी। परिवाद दर्ज कराने वाले कांग्रेस विधि विभाग के जिलाध्यक्ष और एडवोकेट दिनेश जोशी  का आरोप है कि भाजपा के एक्स अकाउंट (ट्विटर) से राहुल गांधी की छवि धूमिल करने के लिए ये पोस्ट डाली गई थी। इससे राजस्थान समेत देश भर के कार्यकर्ताओं में नाराजगी है। बात दें कि 5 अक्तूबर को डाली गई इस पोस्ट में राहुल गांधी को सात सिर वाला व्यक्ति दिखाया गया है और उनकी तुलना रावण से की गई है। कांग्रेस नेता इसे सनातन धर्म और राहुल गांधी का अपमान बता रहे हैं।
बता दें कि कल शुक्रवार को इसी मामले को लेकर कांग्रेस नेता और वकील जसवंत गुर्जर ने जयपुर की एक कोर्ट में अर्जी दायर की थी। जिसमें राहुल गांधी को रावण बताने पर जेपी नड्डा और अमित मालवीय के खिलाफ धारा 499, 500 और 504 में केस दर्ज करने की मांग की गई है।
जयपुर कोर्ट में भी दायर की गई है अर्जी-
बता दें कि कल शुक्रवार को इसी मामले को लेकर कांग्रेस नेता और वकील जसवंत गुर्जर ने जयपुर की एक कोर्ट में अर्जी दायर की थी। जिसमें राहुल गांधी को रावण बताने पर जेपी नड्डा और अमित मालवीय के खिलाफ धारा 499, 500 और 504 में केस दर्ज करने की मांग की गई है।

कैलाश विजयवर्गीय के बयान से चढ़ा सियासी पारा, क्या शिवराज का पत्ता कटना तय है?

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मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव के पहले नेताओं की बयानबाजी से सियासी पारा चढ़ता जा रहा है। अब जैसे ही शिवराज को MP से किनारे लगाया गया, शिवराज ने अब सीधे मोदी को ही चुनौती दे डाली है. मध्य प्रदेश में चुनावी कार्यक्रम के एलान से पहले ही सरगर्मियां बढ़नी शुरू हो गयी हैं. भाजपा ने इस बार शिवराज को किनारे कर सिर्फ नरेंद्र मोदी के नाम पर ही विधानसभा चुनाव लड़ने का फैसला किया है, इस बार बड़े-बड़े मंत्रियों को भी चुनावी मैदान में उतारा गया है, लेकिन सीएम शिवराज की दावेदारी को लेकर सस्पेंस अभी बरकरार है. कहा जा रहा है कि इस बार पीएम मोदी ने शिवराज से पूरी तरह किनारा कर दिया है.

 

क्या कहा कमलनाथ और पूर्व CM ने-

पूर्व सीएम और पीसीसी चीफ कमलनाथ ने सोशल मीडिया पर लिखा कि मध्य प्रदेश भाजपा में हताशा चरम पर है। पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का नाम लेना बंद कर दिया और उन्हें मुख्यमंत्री की दौड़ से बाहर कर दिया। इसके जवाब में प्रधानमंत्री पर दबाव बनाने के लिए पहले तो मुख्यमंत्री ने जनता के बीच यह पूछना शुरू किया कि मैं चुनाव लड़ूं या नहीं लड़ूं (Should I contest elections or not?) और अब सीधे पूछ रहे हैं कि मोदी जी को प्रधानमंत्री होना चाहिए या नहीं.

आखिर ऐसा क्यों कहा CM शिवराज ने-

भारतीय जनता पार्टी की तरफ से जो संकेत मिल रहे हैं वो शिवराज के लिए शुभ नहीं माने जा रहे हैं, खुद शिवराज सिंह चौहान को भी अपनी विदाई दिखाई दे रही है इसलिए कैबिनेट बैठक सहित सभाओं में वो भावुक नजर आ रहे हैं शिवराज ने कैबिनेट में सभी मंत्रियों सहित अधिकारियों को धन्यवाद किया था. वहीं 1 अक्टूबर को एक कार्यक्रम में उन्होने कहा था कि ऐसा भैया आपको दोबारा नहीं मिलेगा, जब  जाऊंगा तो बहुत याद आऊंगा, अभी एक दो दिन पहले उन्होंने अपने चुनावी क्षेत्र बुधनि में लोगों से पूछा था कि चुनाव लड़ूँ या नहीं, यहां से लड़ूँ या कहीं और से.

इस तरह के संकेत वो कई बार दे चुके हैं, जिस पर कांग्रेस कह रही है कि मामा जी अपनी विदाई के संकेत खुद दे रहे हैं और अब उनकी विदाई तय है,, इसलिए चुनाव से पहले शिवराज खूब घोषणाएं कर रहे हैं. लाड़ली बहन योजना भी चला रहे हैं, लेकिन मोदी ने उनको चुनाव से पूरी तरह साइडलाइन कर दिया है.

 

मोदी जी को पीएम बनना चाहिए शिवराज

कांग्रेस के मीडिया सलाहकार पीयूष बबेले ने एक वीडियो शेयर करते हुए लिखा है कि पीएम मोदी ने शिवराज जी का पत्ता काटा तो वो सीधे मोदी जी को ही चुनौती देने लग गए हैं और पूछ रहे हैं कि मोदी जी को प्रधानमंत्री बनना चाहिए कि नहीं ? शिवराज जी ईंट का जवाब पत्थर से दे रहे हैं,, तो कांग्रेस का कहना है कि शिवराज जी मोदी के खिलाफ बिगुल फूंक चुके हैं और सीधे लोगों से ही पूछ रहे हैं कि मोदी जी को प्रधानमंत्री बनना चाहिए कि नहीं.

अब बताइये वहां मुख़्यमंत्री का चुनाव होना है तो शिवराज प्रधानमंत्री बनने को लेकर ऐसा वक्तव्य या विचार अपने मन में क्यों लाएंगे, क्योकि ये बोलने का तो शिवराज का कोई मतलब नहीं बनता की मोदी जी पीएम बनेगें या नहीं.   इतना ही नहीं शिवराज ये भी कह रहे हैं कि जो हमारा साथ देगा हम भी उसी का साथ देंगे, जो नहीं देगा  हम भी उसका साथ नहीं देंगे.

 

मैं चुनाव लड़ूं या नहीं लड़ूं- शिवराज

कांग्रेस के पूर्व मुख़्यमंत्री कमलनाथ ने लिखा कि  मध्य प्रदेश भाजपा में हताशा अपने चरम पर है। पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का नाम लेना बंद कर दिया और उन्हें मुख्यमंत्री की दौड़ से बाहर कर दिया।  इसके जवाब में प्रधानमंत्री पर दबाव बनाने के लिए पहले तो मुख्यमंत्री  ने जनता के बीच यह पूछना शुरू किया कि मैं चुनाव लड़ूं या नहीं लड़ूं और अब सीधे पूछ रहे हैं कि मोदी जी को प्रधानमंत्री होना चाहिए या नहीं। नाथ ने कहा कि पीएम और सीएम की जंग में  भाजपा में जंग होना तय है। जिन्हें टिकट मिला वह लड़ने को तैयार नहीं हैं, और जो टिकट की रेस से बाहर हैं, वह सबसे लड़ते फिर रहे हैं.

3 अक्टूबर को मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने बुदनी में पूछा कि मैं चुनाव लड़ूं या नहीं? यहां से लड़ू या नहीं? 4 अक्टूबर को उन्होंने बुरहानपुर में कहा कि मैं देखने में दुबला पतला हूं, पर लड़ने में तेज हूं,, इससे पहले सीहोर में कहा था कि मैं चला जाऊंगा तो बहुत याद आऊंगा. शुक्रवार को डिंडोरी में जनता से पूछा कि सरकार कैसी चल रही है, सीएम बनूं या नहीं?

 

 

शिवराज की इस तरह की बयानबाजी से राजनीतिक माहौल गरमा गया है अब अगर बीजेपी सत्ता में आयी तो शिवराज सीएम बनेंगे या नहीं, शिवराज चुनाव लड़ेंगे या नहीं, इस पर संशय बना हुआ है क्योकि इससे पहले जब गृह मंत्री अमित शाह ने शिवराज सरकार का रिपोर्ट कार्ड पेश किया था तो पत्रकारों के सवाल पर गृह मंत्री ने कहा था कि अभी शिवराज मुख्यमंत्री हैं और इसके बाद होंगें या नहीं इस पर पार्टी फैसला लेगी,,  इस जवाब के बाद से ही कई कयास  शिवराज के भविष्य को लेकर लगने शुरू हो गए थे, इसके बाद पार्टी ने कई दिग्गज नेताओं को यहां से टिकट दिया जिसमे कैलाश विजयवर्गीय ने कहा था कि उनको तो उम्मीद ही नहीं थी कि पार्टी उनको चुनाव लड़ाएगी.  इतना ही नहीं कैलाश विजयवर्गीय ये भी कह चुके हैं कि वो सिर्फ विधायक बनने नहीं आये हैं, पार्टी उनको बड़ी जवाबदेही देगी, उनके जवाब के बाद ये कयास लगने लगे कि क्या बीजेपी ने शिवराज की विदाई तय कर ली है, जिस बड़ी जवाबदेही की बात विजयवर्गीय  कर रहे हैं वो क्या MP की कुर्सी को लेकर उनका इशारा है ? इस जवाब के बाद से ही कई कयास  शिवराज के भविष्य को लेकर लगने शुरू हो गए हैं.

 

शराब घोटाले में AAP क्यों नहीं है आरोपी, सुप्रीम कोर्ट ने किया साफ, ED से कोर्ट ने किये तीखे सवाल।

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ED और CBI देश के अलग अलग राज्यों में ताबड़तोड़ कारवाही कर रही है, सांसद से लेकर पत्रकारों को अलग-अलग मामलों में उठाया जा रहा है, इस कारवाही का देश में कई जगहों पर विरोध प्रदर्शन भी हो रहे हैं, इस सब के बीच आप सांसद संजय सिंह की गिरफ्तारी पर भी खूब बबाल हो रहा है, सरकार पर इसको लेकर गंभीर आरोप लग रहे हैं और इसको बदले की कारवाही बताया जा रहा है. इस सब के बीच दिल्ली के उप मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया के मामले में सुनवाई करते हुए कोर्ट ने ED और CBI की कारवाही पर कई सवाल उठाए हैं. 

कोर्ट के सवालों का कोई संतुष्ट जवाब जांच एजेंसियां नहीं दे पाई. इतना ही नहीं कोर्ट ने इस पूरी कारवाही पर ही सवाल उठा दिए. कोर्ट ने सुनवाई के दौरान ED को आड़े हाथों लिया, मामले की सुनवाई के दौरान बेंच ने जांच एजेंसी से  तीखे सवाल पूछे और सीबीआई के इस केस को बेहद कमजोर बताया।

कोर्ट ने ED और CBI से पूछे सवाल-

 

दिल्ली शराब घोटाला मामले में ईडी द्वारा दर्ज केस में मनीष सिसोदिया की जमानत याचिका पर गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट में पांच घंटे से भी ज्यादा सुनवाई हुई। इस दौरान जहां ईडी  ने मनीष सिसोदिया की जमानत का विरोध किया, वहीं जस्टिस खन्ना की बेंच ने ईडी से उसके द्वारा पेश तथ्यों के आधार पर यह पूछा, वो सबूत कहां है जो बताए कि सिसोदिया मनी लॉन्ड्रिंग के आरोपी हैं।अदालत ने ईडी से पूछा, प्रूफ कहां हैं? प्रमाण कहां हैं? आपको पूरी घटनी की श्रृंखला पेश करनी होगी? अपराध हुआ तो उसकी कमाई कहां है? सुप्रीम कोर्ट ने ED से पूछा कि अगर मनी ट्रेल में मनीष सिसोदिया की भूमिका नहीं है, तो मनी लांड्रिंग में सिसोदिया को आरोपी बनाकर कैसे शामिल किया और क्यों?

सिसोदिया की जमानत याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने रिमार्क दिया कि सिसोदिया इस मामले में संलग्न मालूम नहीं पड़ते। अदालत ने ईडी से ये भी पूछा कि वो कैसे मनी लॉन्ड्रिंग केस में आरोपी बनाए गए हैं? सर्वोच्च न्यायालय ने कहा, ‘मनीष सिसोदिया इस केस में सम्मिलित नहीं दिखते। विजय नायर जरूर है लेकिन मनीष सिसोदिया नहीं। आपने कैसे उन्हें मनी लॉन्ड्रिंग का आरोपी बनाया। उन्हें तो पैसे मिल नही रहे। ‘यही नहीं सुप्रीम कोर्ट ने ईडी से कई तरह से सवाल कर यह जानना चाहा कि जब कमाई सिसोदिया तक नहीं पहुंची तो उन्हें आरोपी कैसे बनाया है?

12 अक्टूबर को होगी अगली सुनवाई-


इस मामले की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने ED पर कई सवाल उठाए. कोर्ट ने ED के सरकारी गवाहों की गवाई पर भी सवाल उठाये जस्टिस संजीव खन्ना ने पूछा कि सरकारी गवाह के बयान पर कैसे भरोसा करेंगे? सुप्रीम कोर्ट ने ED से कहा कि आपकी दलील तो एक अनुमान है, जबकि ये सब कुछ सबूतों पर आधारित होना चाहिए. वरना अदालत में  होने पर यह केस दो मिनट में ही गिर जाएगा. सुप्रीम कोर्ट ने CBI-ED से पूछा कि सबूत कहां हैं? अप्रूवर के बयान के अलावा, क्या कोई अन्य सबूत है? सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि शराब नीति में बदलाव हुआ है, व्यापार के लिए अच्छी नीतियों का हर कोई समर्थन करेगा. नीति में बदलाव गलत होने पर भी कोई फर्क नहीं पड़ेगा, क्योंकि अगर नीति गलत भी है और उसमें पैसा शामिल नहीं है, तो यह अपराध नहीं है. पैसे वाला हिस्सा ही अपराध बनाता है.  

सुप्रीम कोर्ट ने जांच पर सवाल उठाते हुए ईडी से पूछा  कि क्या आपके पास यह दिखाने के लिए कोई डाटा है कि पॉलिसी कॉपी की गई थी, और शेयर की गई थी? अगर प्रिंट आउट लिया गया था तो डाटा उसे दिखाएगा. इस आशय का कोई डाटा नहीं है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सिर्फ अप्रूवर के बयानों के आधार पर कहा जा रहा है कि रिश्वत दी गई थी. आपके मामले के अनुसार मनीष सिसोदिया के पास कोई पैसा नहीं आया.

कोर्ट में ED की दलील-


ED की तरफ से दलील दी गयी कि सिसोदिया ने सीधे तौर पर पैसे का इस्तेमाल नहीं किया बल्कि इसे अप्रत्यक्ष रूप से संभाला क्योंकि पैसा उनकी पार्टी को जाता था। इसका इस्तेमाल चुनाव में किया जाता था। पीठ ने यह भी कहा कि शराब नीति में बदलाव की पैरवी करने वाले लोगों की केवल भागीदारी ही पर्याप्त नहीं थी। सीबीआई और ईडी को यह साबित करना था कि इसे अपराध बनाने के लिए इसमें रिश्वत शामिल थी। कोर्ट ने कई सवाल उठाते हुए कहा कि आरोपी का अपराध में सक्रिय रूप से शामिल होना जरूरी है। सीबीआई की चार्जशीट में है कि 100 करोड़ दिए गए। ED ने 33 करोड़ बताया है। शराब लॉबी से आरोपी तक पैसे किस तरह, किस रूट से पहुंचे, इस पूरी चेन को साबित करना जरूरी है। आपका केस आरोपी दिनेश अरोड़ा के बयानों के इर्द-गिर्द है। वह सरकारी गवाह बन गया। जांच एजेंसी सिर्फ सरकारी गवाह के बयान पर कैसे भरोसा कर सकती है? आपके पास दिनेश अरोड़ा के बयानों के अलावा शायद ही कुछ है।

कोर्ट का अहम सवाल-

ED और CBI के लिए पेश एडिशनल सॉलिसिटर जनरल एसवी राजू ने इस पर कहा कि सबूत होंगे तो किसी को बख्शा नहीं जाएगा. इस दौरान जजों ने कुछ सख्त सवाल भी किए. जस्टिस खन्ना ने पूछा कि पूरे मामले में पैसों के लेन-देन के क्या सबूत हैं?

जज ने कहा, “हो सकता है कि आबकारी नीति में बदलाव से कुछ लोगों को फायदा पहुंचा हो. यह भी संभव है कि उन्होंने नीति में बदलाव के लिए दबाव बनाया हो, लेकिन सिर्फ इससे भ्रष्टाचार साबित नहीं होता.”

 

ED का जवाब-

एडिशनल सॉलिसिटर जनरल ने कहा, “विजय नायर के व्हाट्सएप चैट समेत कई इलेक्ट्रॉनिक सबूत पैसों के आदान-प्रदान की तरफ इशारा करते हैं. जांच में कई और तथ्य मिले हैं, जो साफ तौर पर भ्रष्टाचार को दिखाते हैं. शराब के थोक व्यापारियों को फायदा पहुंचाने के लिए एक्साइज ड्यूटी को 5 से बढ़ा कर 12 फीसदी किया गया. फिर थोक व्यापार में कुछ लोगों को एकाधिकार दे दिया गया.”

एडिशनल सॉलिसिटर जनरल ने आगे कहा, “इससे राजस्व को नुकसान हुआ. गलत तरीके से अर्जित मुनाफे का बड़ा हिस्सा इन व्यापारियों ने अलग-अलग जगहों तक पहुंचाया. पैसों के लेन-देन से जुड़ी सारी बातचीत सिग्नल नाम के ऐप के जरिए की गई, ताकि उसे गुप्त रखा जा सके.”

 

26 फरवरी को हुई थी सिसोदिया की गिरफ्तारी-

आपको बता दें कि दिल्ली सरकार में डिप्टी सीएम रहे सिसोदिया के पास आबकारी विभाग भी था और उन्हें केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) ने 26 फरवरी को घोटाले में उनकी कथित भूमिका के लिए गिरफ्तार किया था और उस वक्त से वह अब तक हिरासत में हैं। ईडी ने तिहाड़ जेल में उनसे पूछताछ के बाद 9 मार्च को सीबीआई की प्राथमिकी से जुड़े मनी लॉन्ड्रिंग के मामले में उन्हें गिरफ्तार कर लिया। सिसोदिया ने 28 फरवरी को दिल्ली कैबिनेट से इस्तीफा दे दिया था।


हाई कोर्ट ने 30 मई को सीबीआई मामले में उन्हें जमानत देने से इनकार कर दिया था और कहा था कि उपमुख्यमंत्री और आबकारी मंत्री होने के नाते, वह एक हाई-प्रोफाइल व्यक्ति हैं जो गवाहों को प्रभावित करने की क्षमता रखते हैं। तीन जुलाई को, उच्च न्यायालय ने शहर सरकार की आबकारी नीति में कथित अनियमितताओं से जुड़े धन शोधन मामले में उन्हें जमानत देने से इनकार कर दिया था। सिसोदिया की जमानत याचिका पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई चल रही है।

नीतीश का जातीय वार, सवर्णो पर कड़ा प्रहार, इसी चुनाव में निपट जाएंगी ये पार्टियां !

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नीतीश कुमार की सरकार ने जिस तरह जातिगत गणना के आंकड़े पेश किये उसे कई लोग मास्टर स्ट्रोक बता रहे हैं और 2024 की लड़ाई से पहले बीजेपी को होता ये बड़ा नुकसान माना जा रहा है. राजनीतिक जानकारों का मानना है कि इस गणना के सामने आने के बाद बीजेपी का हिंदुत्व का मुद्दा हाशिए पर चला जायेगा और 2024 की लड़ाई जातीय आधार पर लड़ी जाएगी,, तो क्या सच में इस गणना के बाद भाजपा को नुकसान और इंडिया गठबंधन को फायदा होगा ?

क्या कहते हैं जातिगत आंकड़े-

बिहार में जातिगत सर्वे के आंकड़े सामने आने के बाद पूरे देश में इसको लेकर बहस जारी है. जहां एक ओर राजनीतिक उठापटक देखने को मिल रही है वहीं आने वाले चुनावों में भी इसका खासा असर देखा जा सकता है. गांधी जयंती पर जारी किए गए आंकड़ों के अनुसार बिहार में पिछड़ा वर्ग 27.12%, अति पिछड़ा वर्ग 36.12%,  मुसलमान 17.52%,  अनुसूचित जाति 19% और अनुसूचित जनजाति 1.68% हैं. इस संख्या के आधार पर ये अनुमान लगाया जा रहा है कि आंकड़ों के सामने आने के बाद पिछड़ों की राजनीति करने वाले नेताओं को तो आने वाले चुनाव में फायदा मिल ही सकता है लेकिन दूसरी पार्टियों को इसका नुकसान भी उठाना पड़ सकता है. साथ ही इस सर्वे के जारी होने के बाद देश की राजनीति ‘धर्म बनाम राजनीति’ के दो धड़ों में विभाजित हो गई है. साथ ही राजनीतिक आकलन करने वाले आम लोग ये अंदाजा लगाने में जुट गए हैं कि इन आंकड़ों के सामने आने के बाद इसका चुनावी फायदा किसे मिलने वाला है, इंडिया गठबंधन को या एनडीए को.

1990 के बाद बिहार में दलित-पिछड़ों की ही सरकार-

बिहार में आरक्षण और जाति का सवाल बड़ा ही संवेदनशील मुद्दा रहा है. यह इस बात से समझा जा सकता है कि साल 2015 के बिहार विधानसभा चुनाव में कैसे RSS प्रमुख मोहन भागवत के आरक्षण की समीक्षा किए जाने के एक बयान पर पूरी चुनावी फिजा ही बदल गई थी. बिहार में 1990 के बाद से लगातार दलित-पिछड़ों की ही सरकार बनती आ रही है. बीच-बीच में बीजेपी भी सत्ता में आई लेकिन वो भी जनता दल यूनाइटेड के गठबंधन के साथ. आज भी बिहार में अकेले अपने दम पर बीजेपी के सत्ता में आने की उम्मीदें कम ही दिखती हैं. कांग्रेस के कमजोर पड़ते ही सवर्ण और वैश्य वोटर बीजेपी के साथ चला गया, जिसे इस पार्टी का कोर वोटर कहा जाता है. ओबीसी जातियों को भी बीजेपी तोड़ने में सफल रही. बीजेपी ने इन वोटर्स में सेंधमारी के लिए उपेंद्र कुशवाहा, मुकेश साहनी, चिराग पासवान, नित्यानंद राय, रामकृपाल यादव, जीतन राम मांझी जैसे दलित-पिछड़ी जाति के नेताओं को अपनी पार्टी से जोड़ा. हालांकि पिछले चुनाव के मुकाबले अब माहौल बदल गया है.

बिहार में जातीय सर्वे को अगड़ा बनाम पिछड़ा के बीच एक सियासी जंग के रूप में भी देखा जा रहा है. हालांकि ये सियासी जंग पिछड़ी और अति पिछड़ी जातियों के बीच भी हो सकती है. पिछले कुछ समय में बिहार में पिछड़ा वर्ग की अगुवाई में यादव पिछड़ों के नेता बनकर उभरे हैं. आरजेडी का राजनीतिक आधार यादव-मुस्लिम समीकरण रहा है. शुरूआती दौर में ‘अत्यंत पिछड़ी जातियां’ और दलित समुदाय मजबूती के साथ लालू यादव के साथ जुड़ा था, लेकिन इनमें से बहुत सारी जातियां खिसक कर बीजेपी के साथ चली गईं. इसका एक बहुत बड़ा कारण यादव जाति के लोगों का दलित-पिछड़ी जातियों पर बढ़ता जातीय वर्चस्व रहा है. ‘लव-कुश’ यानी कुर्मी-कुशवाहा पर नीतीश कुमार का दावा मजबूत रहा है, लेकिन पिछले चुनाव में धर्म की राजनीति करने वाली बीजेपी का इस समाज ने साथ दिया. हालांकि अब जब अति पिछड़ा वर्ग बिहार में ज्यादा है ऐसे में यदि ईसीटी गोलबंद होता है तो सवर्ण, ओबीसी वोट बैंक को साधने वाली पार्टियों को नुकसान हो सकता है.

209 जातियों का आंकड़ा हुआ जारी-

बिहार में पिछड़ों की राजनीति करने वाली सरकार ने बिहार की कुल 209 जातियों का डेटा जारी किया है. इससे पहले, इन जातियों के आंकड़ों का अनुमान 1931 में हुई आखिरी जाति जनगणना में किया गया था. अब उपलब्ध जाति समूहों के नए आंकड़ों के साथ, राजनीतिक दलों से उन समुदायों को लुभाने और उन्हें साधने के अपने प्रयासों को और तेज करने की उम्मीद है जो उनका बड़ा वोट बैंक बन सकते हैं. राजनीतिक विश्लेषक नवल किशोर चौधरी ने द वायर से हुई बातचीत में बताया कि, ”जाति जनगणना इसलिए कराई गई है ताकि पिछड़ी जातियों को एकजुट किया जा सके. अब इन आंकड़ों के आधार पर अलग-अलग जातियों का प्रतिनिधित्व करने वाली पार्टियां आरक्षण की मांग करेंगी. जाति गणना पूरी तरह से एक राजनीतिक कदम है.”

कितनी है मुसलमानों की आबादी-

ओबीसी समूह और ईबीसी समूह की कुल जनसंख्या 63% है, जो चुनाव की दृष्टि से काफी जरूरी है. ओबीसी में भी 14.26 प्रतिशत आबादी के साथ यादव आगे हैं. वहीं, मुसलमानों की आबादी लगभग 17.70% है. कुल मिलाकर ये आंकड़ा 31 प्रतिशत सामने आता है और दोनों ही राजद के कोर वोट बैंक माने जाते हैं, इसलिए चुनावी तौर पर राजद मजबूत स्थिति में नजर आ रही है. इसके अलावा ईबीसी जातियों के वोट छोटे-छोटे राजनीतिक दलों में बिखरे हुए हैं, इसलिए राजनीतिक दल अब इन्हें गोलबंद करने की कोशिशों में भी जुट जाएंगे. पहले नाई जाति की आबादी तय नहीं थी, लेकिन जनगणना से पता चला है कि उनकी आबादी 1.56% है. इसी तरह, दुसाध, धारी और धाराही जातियों का कोई अनुमानित आंकड़ा नहीं था, लेकिन वर्तमान आंकड़ों से पता चला कि उनकी आबादी 5.31% है जबकि चमार जाति की आबादी 5.25% है. ऐसे में अब इन जातियों के आंकड़े सामने आने के बाद आगामी चुनावों में ये भी सीटों को लेकर मोलभाव कर सकते हैं.

क्यों दोधारी तलवार बन गया है बिहार में जातीय सर्वे?

इन आंकड़ों का यदि विश्लेषण किया जाए तो 36 फीसदी यानी सबसे ज्यादा आबादी अत्यंत पिछड़ों की है, जिनमें लगभग 100 से अधिक जातियां आती हैं. इनमें से बहुत सारी जातियां ऐसी हैं, जिनका न तो किसी पार्टी के संगठनों में और न विधानसभा या विधान परिषद में प्रतिनिधित्व है. सबसे ज्यादा जातीय सर्वे कराने वाली पार्टियों के लिए ही आगामी चुनाव लिटमस टेस्ट की तरह साबित हो सकता है. जिसमें आरजेडी और जनता दल यूनाइटेड का टिकट बंटवारा सभी जाति और कोटी को ध्यान में रखकर करना होगा. बिहार में लोकसभा की 40 सीटें हैं. वहीं अत्यंत पिछड़ी जातियों की संख्या 36 प्रतिशत है. 40 सीटों पर 36 फीसदी का अनुमान लगाया जाए तो वो लगभग 14 होता है. ऐसे में क्या इंडिया गठबंधन लोकसभा चुनाव में अत्यंत पिछड़ी जातियों को 14 सीटें दे पाएगा? इसी अनुसार बिहार में यादवों की जनसंख्या 14 प्रतिशत है. ऐसे में लोकसभा चुनाव में उनकी दावेदारी सिर्फ 5 या 6 सीटों की ही बनती है. वहीं ब्राह्मण, भूमिहार, राजपूत व कायस्थ की कुल आबादी 10.56 प्रतिशत है. ऐसे में बिहार की 40 लोकसभा सीटों पर सवर्णों की दावेदारी का आंकड़ा सिर्फ चार सीटों पर सिमट जाता है,  इसका साफ अर्थ ये है कि चार सवर्णों को ही लोकसभा चुनाव में टिकट मिलने की उम्मीद है.

क्या कहते हैं वरिष्ठ पत्रकार-

इस मुद्दे पर जब वरिष्ठ पत्रकार ओमप्रकाश अश्क ABP न्यूज़ को बताते हैं कि, “इसके तीन साइड इफेक्ट सामने आ रहे हैं. एक तो जिस तरह से जातियों का प्रतिनिधित्व दिखाया गया है उस हिसाब से जातीय नेतृत्व उभरेगा. संभव है कि जिन जातियों से अब तक कोई नेतृत्व नहीं है उनसे नई पार्टियां भी बन जाएं. जैसे मुसलमानों की आबादी बिहार में 17 प्रतिशत है तो तमाम जातियों पर ये भारी पड़ती है ऐसे में बिहार में उसी हिसाब से मंत्रिमंडल में हिस्सेदारी की मांग भी उठ सकती है.” उन्होंने आगे कहा, “क्योंकि अभी की स्थिति में देखें तो बिहार के मंत्रिमंडल में मुसलमानों की संख्या सबसे ज्यादा है. वहीं दूसरा खतरा ये है कि इसमें उन तत्वों को भी हाथ सेंकने का मौका मिल जाएगा जो धर्म के आधार पर समाज का विभाजन करना चाहते हैं. इसमें बीजेपी सबसे आगे है.”

आरजेडी और जनता दल यूनाइटेड की तुलना करते हुए ओमप्रकाश अश्क बताते हैं, “आरजेडी और जनता दल यूनाइटेड की अगर तुलना करें तो दोनों में आरजेडी की ताकत ज्यादा दिखती रही है. ये अलग बात है गठजोड़ के हिसाब से स्थितियां बदलती रहती हैं.” गोलबंदी पर अश्क बताते हैं, “इससे गैरबराबरी की भावना पनपेगी,  दलित और पिछड़े एक हो जाएं तो उनकी आबादी बहुत ज्यादा हो जाएगी और अति पिछड़ी जातियों की गोलबंदी भी दिख सकती है. हालांकि आम आदमी इस पर कुछ रिएक्ट नहीं कर रहा है उन्हें कुछ नफा नुकसान नहीं दिख रहा है. इसलिए लग रहा है जातीय गोलबंदी उस तरह से नहीं हो पाएगी जो पहले देखी जाती रही है, “ये एक सिर्फ सामाजिक टूल है जो आरजेडी ये बोलकर इस्तेमाल करेगी कि हमने वो करके दिखा दिया जो अब तक कोई नहीं कर पाया.”

अब  इस आंकड़े के सामने आने के बाद आकलन किया जा रहा है कि देश के कई राज्यों में अति पिछड़ा वर्ग की संख्या ज्यादा है ऐसे में अब राजनेताओं की नजर उन पर ज्यादा टिक सकती है. फिलहाल नीतीश का ये वार भाजपा के हिंदुत्व का तोड़ माना जा रहा है, भाजपा के सामने सबसे बड़ी समस्या ये है कि अब वो इस आंकड़े को नकार भी नहीं सकती,, क्योकि ऐसा करने पर विपक्ष को एक बड़ा हथियार मिल जाएगा,, ये भी हकीकत है कि अब जो भी पार्टी इन जातीय समीकरणों को देखते हुए तालमेल बढ़ाने में कामयाब होगी, वो 2024 में भी कामयाब हो सकती हैं और जो पार्टी इसमें चूक गयी तो वो निपट भी सकती है,, अब ये देखना दिलचस्प होगा कि आने वाले समय में ये जातीय समीकरण किस पार्टी को फायदा और किसको नुकसान पहुंचाते हैं, लेकिन फिलहाल नितीश का ये वार एक मास्टर स्ट्रोक के तौर पर ही देखा जा रहा है और जिसे समूचा विपक्ष खूब बढ़ा चढ़ा कर उठा रहा है.

महाराष्ट्र में फिर सियासी हलचल- अजित पवार नाराज, अमित शाह से मिले शिंदे, फडणवीस

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महाराष्ट्र की राजनीति में फिर भूचाल आने वाला है, महाराष्ट्र की राजनीति फिर करवट लेने वाली है,लेकिन इस बार किसी और की नहीं बल्कि खुद बीजेपी की मुश्किलें बढ़ गई है, हालत क्या हैं इसका अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि आनन-फानन में दिल्ली में महाराष्ट्र को लेकर तीन घंटे तक एक गहन मीटिंग चली, इस मीटिंग में अमित शाह, देवेंद्र फडणवीस और मुख़्यमंत्री एकनाथ शिंदे मौजूद रहे, लेकिन इस बैठक से उप मुख्यमंत्री अजित पवार गायब रहे, यही नहीं अजित पवार कैबिनेट की बैठक से भी गायब रहे.

महाराष्ट्र में सियासी बवाल-

सवाल तब उठने शुरू हुए जब अजित पवार कैबिनेट बैठक से तो गायब रहे लेकिन अपने समर्थकों और नेताओं के साथ उन्होंने एक सीक्रेट मीटिंग की उसके बाद से महाराष्ट्र में सियासी बवाल मचा हुआ है,कई सवाल उठ रहे हैं कि क्या अजित पवार एक बार फिर पलटी मारने वाले हैं, तो क्या एक बार फिर महाराष्ट्र सरकार खतरे में पड़ गयी है.

महाराष्ट्र में शिंदे-फडणवीस-पवार की ट्रिपल इंजन सरकार में खराबी की खबरें आ रही हैं। चर्चा है कि उप मुख्यमंत्री अजित पवार नाराज हैं। इन खबरों के बीच मंगलवार की शाम को इंजन में दुरुस्ती की गुहार लेकर मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे और उप मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस अचानक दिल्ली रवाना हो गए हैं। शिंदे-फडणवीस दिल्ली में बीजेपी अध्यक्ष जे.पी. नड्डा और केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह से मिले.

 

अजित पवार और शिंदे के बीच खींचतान-

 

सत्ता के गलियारों में यह चर्चा है कि मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे और अजित पवार के बीच पिछले कई दिनों से खींचतान चल रही है। अजित पवार बुधवार को मंत्रिमंडल की बैठक में भी नहीं गए। मंत्रिमंडल की बैठक के बाद मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने कहा कि अजित पवार की तबीयत ठीक नहीं है। हालांकि शिंदे और फडणवीस के दिल्ली रवाना होने के बाद अपने सरकारी बंगले ‘देवगिरी’ पर अपने मंत्रियों के साथ बैठक की। इससे पहले गणेश उत्सव के दौरान मुख्यमंत्री के सरकारी बंगले पर गणपति दर्शन के लिए अमित शाह, जे.पी. नड्डा समेत तमाम देसी-विदेशी लोग पहुंचे, लेकिन अजित पवार वहां नहीं गए थे।

गणेश उत्सव की समाप्ति पर पिछले शनिवार की रात को दोनों उप मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस और अजित पवार अचानक मुख्यमंत्री के बंगले पर पहुंचे। करीब डेढ़ घंटे तक तीनों के बीच बंद कमरे में बातचीत होती रही। पता चला कि तीनों ‘इंजनों’ की बैठक में कई मुद्दों पर बातचीत हुई.

 

प्रभारी मंत्रियों की नियुक्ति और विवाद –

बैठक में सबसे अहम मुद्दा जिलों के  प्रभारी मंत्रियों की नियुक्ति का था। जब से शिंदे सरकार अस्तित्व में आई है तब से ही  प्रभारी मंत्रियों की नियुक्ति नहीं हो पाई हैं। अपनी-अपनी मूल पार्टियों से बगावत कर सत्ता में शामिल हुए शिंदे-गुट और अजित गुट के मंत्रियों के बीच अपने-अपने जिलों का प्रभारी मंत्री बनने की होड़ मची है। खुद अजित पवार पुणे जिले का  प्रभारी मंत्री पद चाहते हैं। लेकिन इस पद पर पहले से ही बीजेपी के चंद्रकांत पाटील विराजमान हैं। ज्यादातर विवाद उन जिलों में है जहां एनसीपी और शिवसेना के बीच हमेशा से ही गलाकाट लड़ाई रही है।

शिंदे गुट शुरुआत से ही अजित पवार के सरकार में शामिल होने को लेकर नाखुश रहा है। अजित पवार सरकार में शामिल हुए और 9 मंत्री पद ले उड़े। शिंदे गुट को सत्ता की यह हिस्सेदारी रास नहीं आई। उन्हें लगता है कि उनका हिस्सा मारा गया है। अजीत गुट के सत्ता में आने के बाद मंत्रिमंडल विस्तार का इंतजार कर रहे विधायकों में भी असंतोष है।इस साल जुलाई में अजित पवार एनसीपी के 40 से अधिक विधायकों के साथ सरकार में शामिल हो गए थे, जिसके चलते एनसीपी दो गुटों (अजित पवार गुट) और (शरद पवार गुट) में विभाजित हो गई थी. इस बीच अजित पवार ने महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली.

 

क्या है दिल्ली दौरे का मकसद-



शिंदे-फडणवीस के दिल्ली दौरे का असली मकसद अगले कुछ दिनों में सुप्रीम कोर्ट से शिवसेना बनाम चुनाव आयोग के बीच चल रहे पार्टी के नाम और चुनाव चिन्ह शिंदे गुट को दिए जाने के खिलाफ दायर केस का फैसला आने की संभावना है। सुप्रीम कोर्ट ने अपने पहले फैसले में जो रुख दिखाया है, उसे देखते हुए आने वाला फैसला शिंदे गुट की मुश्किलें बढ़ा सकता है। इसको लेकर सरकार के भीतर एक तरह का डर है। शिंदे-फडणवीस के दिल्ली दौरे का असली मकसद यही हो सकता है।

इस घटना के बाद विपक्ष को टारगेट करने का मौका मिल गया और विपक्ष ने उनकी अनुपस्थिति को एक ‘राजनीतिक बीमारी’ बताया है, जो सरकार को हिला सकती है.एनसीपी सांसद सुप्रिया सुले ने कहा कि ‘ट्रिपल इंजन सरकार को सत्ता में आए अभी तीन महीने ही हुए है और मैंने सुना है कि एक गुट नाराज है.’ तीन महीने में अभी हनीमून खत्म नहीं हुआ और समस्याएं अभी से सामने आने लगी है. महज तीन महीने में ऐसी खबरें सामने आ रही है.

कुल मिलाकर महाराष्ट्र में राजनीतिक माहौल फिर गरमा गया है,लेकिन इस बार मुश्किल में भाजपा और शिंदे सरकार दिखाई दे रही है ये तो साफ़ है कि सब कुछ ठीक नहीं चल रहा, सवाल  उठ रहें है कि क्या अजीत एक बार फिर कोई नई चाल चल रहे हैं या फिर किसी बगावत की तैयारी महाराष्ट्र में चल रही है पर जैसे हालात अभी बने हुए हैं उससे अजीत की नाराजगी तो साफ़ दिखाई दे रही है. आगे अजीत क्या रुख अपनाएंगे इस पर सबकी नजर बनी रहेगी।

इस बार पता चलेगा वसुंधरा बीजेपी के लिए जरूरी या मजबूरी.

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राजस्थान में सियासी गर्मी इस कदर बढ़ी हुई हैं कि इसकी तपिश दिल्ली तक पहुंच रही है. जैसे कि आपको पता है कि बीजेपी जिस तरह से राजस्थान में कद्दावर नेत्री और दो बार की मुख़्यमंत्री वसुंधरा राजे को किनारे करने में लगी है उससे भाजपा में दो धड़े होते नजर आ रहे हैं. वसुंधरा जिस तरह से एक सख्त रुख अपनाये हुए है उससे राजस्थान में भाजपा मुश्किल में खड़ी दिखाई दे रही है. वसुंधरा और दिल्ली के रिश्तों में इस समय तल्खी साफ़ देखी जा सकती है.
क्या वसुंधरा राजस्थान में कोई बड़ा खेल करने की तैयारी में हैं ?
जब वसुंधरा राजे ने भरे मंच पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को नमस्कार किया तो मोदी जी बिना देखे चलते बने. अभी इससे पहले जयपुर रैली में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वसुंधरा से आँखे तक मिलाकर बात नहीं की और अब चित्तौड़गढ़ में तो इससे ज्यादा हो गया. खबरे यहां तक सामने आयी कि वसुंधरा नमस्कार करती रही और प्रधानमंत्री ने पलट कर तक नहीं देखा. जिसके वीडियो निकल कर सामने आये हैं खबरे भी इस पर बनी हैं,
वसुंधरा दिग्गज नेता हैं वो राजस्थान में अच्छी पकड़ रखती हैं, दो बार राजे मुख़्यमंत्री भी रह चुकी हैं, इस तरह बार-बार उनको अनदेखा करना अब राजस्थान चुनाव उनको भारी पड़ सकता है. क्योकि खबर निकलकर सामने आयी है कि प्रधानमंत्री की रैली खत्म होते ही वसुंधरा ने शक्ति प्रदर्शन करके आलाकमान को अपनी ताकत दिखाई है,, इतना ही नहीं इस दौरान कांग्रेस के विधायक भी वसुंधरा के पैर छूते दिखाई दिए.
एक खबर में दिखाया गया है कि किस तरह प्रधानमंत्री और वसुंधरा के बीच दूरी है जो मंच पर भी दिखाई दे रही है. इस तरह से वसुंधरा को नकारना क्या उनका अपमान नहीं है, ऐसे में क्या वसुंधरा अपना अपमान सहन करेंगी और कोई बगावत करेगी, लेकिन वसुंधरा और आलाकमान के बीच की दूरी अब खुल कर सामने दिखाई दे रही है और प्रधानमंत्री की रैली के बाद वसुंधरा का शक्ति प्रदर्शन बताता है कि वसुंधरा आर-पार के मूड में हैं और वो कर्नाटक के येदियुरप्पा नहीं बनना चाहती.
राजस्थान में ये नारे क्यों- 
पीएम मोदी ने राजस्थान की एक रैली में कहा कि राजस्थान में सिर्फ कमल निशान चेहरा है और आप उसे वोट करें. कमल निशान मतलब साफ़ है कि मोदी के चेहरे पर ही राजस्थान में चुनाव लड़ा जायेगा. लेकिन रैली खत्म होते ही वसुंधरा पहुंची बाड़मेर और वहां उन्होने शक्ति प्रदर्शन कर अपना जवाब दे दिया.
अब राजस्थान में ये नारे लग रहे हैं ”वसुंधरा राजे कमल निशान, मांग रहा है राजस्थान” तो आप समझे वसुंधरा ने आलाकमान को साफ़ कर दिया है की राजस्थान में क्या चलेगा.  इसके बाद एक सभा में महिलाओं के साथ बीच में बैठी वसुंधरा कुछ मीटिंग कर रही थी कि तभी वहां कांग्रेस विधायक  पहुंच जाते हैं और उनके पैर छूकर उनका आशीर्वाद लेते. इसके बाद अटकलों का बाजार गर्म हो जाता है.
क्या वसुंधरा बगावत करने वाली हैं ?
जो वसुंधरा राजे के पैर छू रहे हैं वो कोई और नहीं कांग्रेस के विधायक हैं मेवाराम जैन. जहां एक तरफ भाजपा में वसुंधरा को तवज्जो नहीं दी जा रही है वहीं कांग्रेस ने वसुंधरा को ऐसा सम्मान देकर तगड़ा दावं खेला है, एक तरफ इस सभा से भाजपा के पदाधिकारी गायब रहे तो दूसरी तरफ यहां कांग्रेस विधायक पहुंच जाते हैं. अब इस सब का क्या मतलब निकलता है,, क्या वसुंधरा राजस्थान में कोई बड़ा खेल करने की तैयारी में हैं,, या फिर कुछ और ही रणनीति चलाई जा रही है,, कुल मिलाकर जो भी हो भाजपा के लिए वसुंधरा को राजस्थान से हटाना कोई आसान नहीं है और वसुंधरा भी इसको लेकर रुख साफ़ कर चुकी हैं कि वो राजस्थान छोड़कर कहीं नहीं जाने वाली.

दिल्ली-NCR समेत देश के कई राज्यों में आए तेज भूकंप के झटके, नेपाल से आईं तबाही की तस्वीरें.

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दिल्ली-एनसीआर में भूकंप के तेज झटके महसूस किए गए। मंगलवार यानी आज दोपहर को 2 बजकर 51 मिनट पर आए भूकंप के झटकों के बाद दहशत में लोग दफ्तर और घरों से बाहर निकल गए और खुले मैदानों में आ गए। नेशनल सेंटर फॉर सिस्मोलॉजी के मुताबिक, भूकंप की तीव्रता 6.2 मापी गई। जिसका केंद्र नेपाल के दिपायल से 38 किलोमीटर दूर जमीन के अंदर 5 किलोमीटर गहराई में था। झटके यूपी-दिल्ली समेत कई अन्य राज्यों में भी महसूस किए गए।

 

इससे पहले दोपहर दो बजकर 25 मिनट पर भी भूकंप के झटके महसूस हुए थे। इसका केंद्र भी नेपाल था। उस वक्त इसकी तीव्रता 4.6 मापी गई थी। इसके झटके उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश के कुछ हिस्सों में महसूस किए गए थे। अचानक ही धरती कांपने से लोग दहशत में आ गए। भूकंप के तीव्रता इतनी तेज थी की दिल्ली-एनसीआर, उत्तराखंड के आलाव नेपाल में भी भूकंप के झटके महसूस किए गए.

देश में आज 4 बार लगे तेज भूकंप के झटके- 

भूकंप की जानकारी देने वाले नेशनल सेंटर फॉर सिस्मोलॉजी के मुताबिक भूकंप के झटके पहली बार सुबह 11 बजकर 6 मिनट पर महसूस किए गए जिसकी तीव्रता रिक्टर स्केल पर 2.7 मापी गई. इस भूकंप का केंद्र हरियाणा के सोनीपत में था.  इसके बाद दूसरा भूकंप 1 बजकर 18 मिनट पर महसूस किया गया.  इसकी तीव्रता 3.1 मापी गई  इसका केंद्र भारत के असम का कार्बी अंगलोंग था. वही तीसरा भूकंप 2 बजकर 25 मिनट और चौथा भूकंप 2 बजकर 51 मिनट पर महसूस किया गया. तीसरे भूकंप की तीव्रता 4.6 तो वहीं चौथा भूकंप सबसे खतरनाथ था जिसकी तीव्रता 6.2 मापी गयी दोनो ही भूकंप का केंद्र नेपाल रहा.  उत्तर भारत के कई राज्यों में भूकंप के झटके महसूस किए गए। दिल्ली के अलावा गाजियाबाद, नोएडा और फरीदाबाद में भी भूकंप के झटके महसूस किए गए।

                                                              नेपाल में भूकंप के झटके- फोटो
नोएडा में आए भूकंप के तेज झटकों के बाद कई सोसायटी में लोग बाहर निकल आए। भूकंप आने के बाद सोसाइटी के बाहर निकले लोगों में दहशत का माहौल नजर आया। नोएडा के सेक्टर 73 की सोसायटी में लोग बाहर निकल आए।
दिल्ली एनसीआर में भूकंप के झटके इतने तेज थे कि सोसायटी में रह रहे लोग अपने बच्चों को लेकर बाहर परिसर में आ गए।
आखिर क्यों आता है भूकंप?

पृथ्वी के अंदर 7 प्लेट्स हैं, जो लगातार घूमती रहती हैं। जहां ये प्लेट्स ज्यादा टकराती हैं, वह जोन फॉल्ट लाइन कहलाता है। बार-बार टकराने से प्लेट्स के कोने मुड़ते हैं। जब ज्यादा दबाव बनता है तो प्लेट्स टूटने लगती हैं। नीचे की ऊर्जा बाहर आने का रास्ता खोजती हैं और डिस्टर्बेंस के बाद भूकंप आता है।

जाने भूकंप के केंद्र और तीव्रता का क्या है मतलब?

भूकंप का केंद्र उस स्थान को कहते हैं जिसके ठीक नीचे प्लेटों में हलचल से भूगर्भीय ऊर्जा निकलती है। इस स्थान पर भूकंप का कंपन ज्यादा होता है। कंपन की आवृत्ति ज्यों-ज्यों दूर होती जाती हैं, इसका प्रभाव कम होता जाता है। फिर भी यदि रिक्टर स्केल पर 7 या इससे अधिक की तीव्रता वाला भूकंप है तो आसपास के 40 किमी के दायरे में झटका तेज होता है। लेकिन यह इस बात पर भी निर्भर करता है कि भूकंपीय आवृत्ति ऊपर की तरफ है या दायरे में। यदि कंपन की आवृत्ति ऊपर को है तो कम क्षेत्र प्रभावित होगा।

कैसे मापी जाती है भूकंप की तीव्रता और क्या है मापने का पैमाना?

भूकंप की जांच रिक्टर स्केल से होती है। इसे रिक्टर मैग्नीट्यूड टेस्ट स्केल कहा जाता है। रिक्टर स्केल पर भूकंप को 1 से 9 तक के आधार पर मापा जाता है। भूकंप को इसके केंद्र यानी एपीसेंटर से मापा जाता है। भूकंप के दौरान धरती के भीतर से जो ऊर्जा निकलती है, उसकी तीव्रता को इससे मापा जाता है। इसी तीव्रता से भूकंप के झटके की भयावहता का अंदाजा होता है।